1. गाथा 1 : मगलाचरण
जाे स, श एव अकलक है एव
जनके सदा गुणपी राे के भूषणाे का उदय रहता है,
एेसे ी जनेवर नेमच वामी काे नमकार करके
जीव क पणा काे कगा
स स पणमय जणदवरणेमचदमकलक
गुणरयणभूसणुदय जीवस पवण वाेछ
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2. सजलणणाेकसायाणुदअाे मदाे जदा तदा हाेद
अपमगुणाे तेण य, अपमाे सजदाे हाेद 45
अथ - जब सवलन अाैर नाेकषाय
का मद उदय हाेता है तब सकल
सयम से यु मुिन के माद का
अभाव हाे जाता है इस ही लये
इस गुणथान काे अमसयत
कहते है
इसके दाे भेद है - एक
वथानाम, दूसरा
साितशयाम 45
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4. अम-वरत
परणामपरणाम
माद का अभाव
सकल सयमयु मुिन
िनमिनम
सवलन अाैर नाेकषाय का
मद उदय
३ कषाय चाैकड़ का अनुदय
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5. णासेसपमादाे, वयगुणसीलाेलमडअाे णाणी
अणुवसमअाे अखवअाे, झाणणलणाे अपमाे 46
अथ - जस सयत के सपूण याय माद न हाे चुके है,
अाैर
जाे सम ही महात, अाईस मूलगुण तथा शील से यु है,
शरर अाैर अाा के भेदान मे तथा माे के कारणभूत धययान
मे िनरतर लन रहता है,
एेसा अम मुिन जब तक उपशमक या पक ेणी का अाराेहण
नही करता तब तक उसकाे वथान अम अथवा िनरितशय
अम कहते है 46
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6. 7 वा गुणथान7 वा गुणथान
वथान अम
वरत
वथान अम
वरत
जसमे जीव 6 – 7 वे गुणथान
मे गमनागमन करता है
जसमे जीव 6 – 7 वे गुणथान
मे गमनागमन करता है
साितशय
अमवरत
साितशय
अमवरत
जसमे जीव ेणी अाराेहण करता
है
जसमे जीव ेणी अाराेहण करता
है
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7. वथान अम
साितशय अम
म वरत
अपूवकरण
7 वा गुणथान
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8. इगवीसमाेहखपणुपसमणणमाण ितकरणाण तह
पढम अधापव, करण त करेद अपमाे 47
अथ - अयायानावरण, यायानावरण अाैर सवलन
सबधी ाेध, मान, माया, लाेभ इस तरह बारह अाैर नव
हायादक नाेकषाय कु ल मलकर माेहनीय कम क इन
इस कृ ितयाे के
उपशम या य करने काे अाा के ये तीन करण अथात्
तीन कार के वश परणाम िनमभूत है - अध:करण,
अपूवकरण अाैर अिनवृकरण
उनमे से साितशय अम अथात् जाे ेण चढ़ने के लये
सुख या उत अा है वह िनयम से पहले अध:वृकरण
काे करता है 47
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9. उपशम ेणी पक ेणी
21 कृ ितयाे का उपशम 21 कृ ितयाे का य
8, 9, 10, 11 गुणथान 8, 9, 10, 12 गुणथान
ेणी ा?
ेणी अथात् चार माेहनीय क 21 कृ ितयाे के उपशम या
य मे िनमभूत वृगत वीतराग परणाम
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10. 8 8
9
10
12
10
9
11
7
पक
ेणी
उपशम
ेणी
13 वा
गुणथान
ायक सय
ायक सय,
उपशम सय
ायक सय मुिनराज उपशम ेणी या पक ेणी अाराेहण कर सकते है
उपशम सय मुिनराज उपशम ेणी ही अाराेहण कर सकते है, पक ेणी
नही
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11. ेणी चढ़ने क वध
ायाेपशमक सयवी अम सयत मुिनराज
अनतानुबधी क वसयाेजना करके
फर वाम करके
दशन माेह का उपशम करे दशन माेह क पणा करे
अध: वृकरण ारभ करते है
अथवा
वाम करके
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12. अथवाअथवा
ायक सयवी अम
मुिनराज
ायक सयवी अम
मुिनराज
अध:वृकरण करते हैअध:वृकरण करते है
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13. जा उवरमभावा, हेमभावेह सरसगा हाेित
ता पढम करण अधापवाे ण 48
अथ - अध:वृकरण के काल मे से ऊपर के
समयवती जीवाे के परणाम नीचे के समयवती जीवाे के
परणामाे के सश अथात् सया अाैर वश क
अपेा समान हाेते है, इसलये थम करण काे
अध:वृ करण कहा है 48
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14. • जहा भ समयवती जीवाे के परणाम समान
भी हाे सकते है अाैर भ भी हाे सकते है
अध वृकरण
• जहा भ समयवती जीवाे के परणाम भ ही
हाेते है
अपूवकरण
• जहा समान समयवती जीवाे के परणाम समान
ही हाेते है
अिनवृकरण
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15. तीन करण एक जीव
क अपेा है या नाना
जीवाे क अपेा?
नाना जीवाे क अपेा
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16. अताेमुमेाे, तालाे हाेद तथ परणामा
लाेगाणमसखमदा, उववर सरसवगया 49
अथ - इस अध:वृकरण का काल अतमुत मा है
अाैर उसमे परणाम असयातलाेक माण हाेते है,
अाैर ये परणाम ऊपर-ऊपर सश वृ काे ा हाेते
गये है 49
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21. 162 39 40 41 42
166 40 41 42 43
ताे थम समय सबधी रचना एेसे बनेगी
एेसे ही तीय समय सबधी रचना बनाइये
एेसे ही सारे समयाे मे बनाइये
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23. अनुकृ रचना
थम समय
तीय समय
तृतीय समय
चतथ समय
पचम समय
असयात लाेक माण परणाम
असयात लाेक माण परणाम
असयात लाेक माण परणाम
असयात लाेक माण परणाम
असयात लाेक माण परणाम
काल - अतमुत
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24. अनुकृ रचना
थम समय
तीय समय
तृतीय समय
चतथ समय
पचम समय
काल - अतमुत
नीचे के समय मे थत
परणाम-पुज का ऊपर के
समय मे पाया जाना
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26. अनुकृ खडाे के परणाम
सबसे जघय खड व उकृ ट खड सवथा असमान है
एक खड के जघय से उसी खड का उकृ ट परणाम
अनत गुणी वशता लए है
खड के उकृ ट से अगले खड का जघय परणाम अनत
गुणी वशता लए है
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27. वातवक सयाए
• अध:वृकरण का काल अतमुत है अथात् असयात समय
• कु ल परणामाे क सया असयात लाेक माण है
• चय का माण भी असयात लाेक है
• एक-एक समय के परणामाे क सया भी असयात लाेक है
• अनुकृ गछ अतमुत का सयातवा भाग हाेकर भी असयात है
• अनुकृ चय का माण भी असयात लाेक है
• एक-एक अनुकृ खड के परणाम भी असयात लाेक है
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28. अध वृकरण के 4 अावयक
ितसमय अनतगुणी वश बढ़नाितसमय अनतगुणी वश बढ़ना
थितबधापसरणथितबधापसरण
पाप कृ ितयाे का अनुभागबधापसरणपाप कृ ितयाे का अनुभागबधापसरण
पुय कृ ितयाे का बढ़ता अा अनुभाग बधपुय कृ ितयाे का बढ़ता अा अनुभाग बध
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29. जीव मे हाेने
वाला एकमा
अावयक
ितसमय
अनतगुणी
वश
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30. जीव के
परणामाे के
िनम से
वह भी नवीन
बधने वाले कमाे
मे
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31. बधने वाले समत कमाे क थित
हर अतमुत मे
घट-घट कर बधती है
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33. समत कमाे का थित-बध
ाे घटता है? सफ पाप
कृ ितयाे का ाे नही?
ाेक 3 अायु काे छाेड़कर शेष सभी
कमाे क थित पाप-प ही है
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34. बधने वाले पाप कमाे का अनुभाग
ितसमय घट-घट कर बधता है
अनतगुणा हीन - अनतगुणा हीन हाेकर
मा थानीय बध हाेता है
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35. लता दा अथ शैल
घाित कमाे का चत:थान अनुभाग बध
नए बधने वाले घाित कमाे मे इन दाे
थान का अनुभाग नही बधता
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36. िनब काजीर वष हलाहल
अघाित कमाे का चत:थान अनुभाग बध
नए बधने वाले अघाित कमाे मे इन
दाे थान का अनुभाग नही बधता
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37. लता दा
इन दाे अनुभाग मे भी ितसमय अनत गुणा हीन-हीन
हाेकर अनुभाग बाधता है
थित अनुभाग
समय 1
समय 2
समय 3
समय 4
समय 5
पाप कृ ितयाे का
नया अनुभाग बध
िनब काजीर
घाित कम
अघाित कम
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38. बधने वाले पुय कमाे का अनुभागबधने वाले पुय कमाे का अनुभाग
ितसमय अधक-अधक बधता हैितसमय अधक-अधक बधता है
अनतगुणा अधक - अनतगुणा अधकअनतगुणा अधक - अनतगुणा अधक
चत:थानीय बध हाेता हैचत:थानीय बध हाेता है
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39. गुड़ खाड शक रा अमृत
अघाित कमाे का चत:थान अनुभाग बध
नए बधने वाले अघाित कमाे मे पुय कृ ित का चत:थानीय
अनुभाग बध हाेता है
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40. सभी
कमाे का
थित
बध
घटता है
पाप
कृ ितयाे
का
अनुभाग
बध
घटता है
पुय
कृ ितयाे
का
अनुभाग
बध
बढ़ता है
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41. •अध वृकरण के
थम समय से
•जब तक बध है
अथात् 10वे के अत
तक
ये चार अावयक
कब तक हाेते है?
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42. अताेमुकाल, गमऊण अधापवकरण त
पडसमय सझताे, अपुकरण समयइ 50
अथ - जसका अतमुत मा काल है, एेसे
अध:वृकरण काे बताकर वह साितशय अम जब
ितसमय अनतगुणी वश काे लए ए अपूवकरण
जाित के परणामाे काे करता है, तब उसकाे
अपूवकरणनामक अमगुणथानवती कहते है 50
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43. एद गुणाणे, वसरससमययेह जीवेह
पुमपा जा, हाेित अपुा परणामा 51
अथ - इस गुणथान मे भसमयवती जीव, जाे पूव
समय मे कभी भी ा नही ए थे एेसे अपूव परणामाे
काे ही धारण करते है, इसलये इस गुणथान का नाम
अपूवकरण है 51
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44. भणसमययेह दु, जीवेह ण हाेद सदा सरसाे
करणेह एसमययेह सरसाे वसरसाे वा 52
अथ - यहा पर (अपूवकरण मे) भ समयवती जीवाे
मे वश परणामाे क अपेा कभी भी साय नही
पाया जाता; कत एक समयवती जीवाे मे साय
अाैर वसाय दाेनाे ही पाये जाते है 52
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45. भ समयवती
जीवाे के परणाम भ ही
एक समयवती
जीवाे के परणाम
भ भी समान भी
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46. अपूवकरण गुणथान
थम समय
तीय समय
तृतीय समय
चतथ समय
पचम समय
असयात लाेक माण परणामकाल - अतमुत
ितसमय अपूव-अपूव
परणाम
यहा अनुकृ रचना
नही है
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48. अपूवकरण के परणामाे क रचना
(अक स से)
कु ल परणाम = 4096
समय = 8
चय = 16
8
568
(3529-4096)
7
552
(2977-3528)
6
536
(2441-2976)
5
520
(1921-2440)
4
504
(1417-1920)
3
488
(929-1416)
2
472
(457-928)
1
456
(1-456)
समय प रणाम क सं या
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49. अताेमुमेे, पडसमयमसखलाेगपरणामा
कमउा पुगुणे, अणुक णथ णयमेण 53
अथ - इस गुणथान का काल अतमुत मा है अाैर
इसमे परणाम असयात लाेकमाण हाेते है, अाैर
वे परणाम उराेर ितसमय समानवृ काे लये
ए है तथा
इस गुणथान मे िनयम से अनुकृ रचना नही हाेती
है 53
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50. वातवक सयाए
अपूवकरण का काल अतमुत है अथात् असयात समय
कु ल परणामाे क सया असयात लाेक माण है
चय का माण भी असयात लाेक है
एक-एक समय के परणामाे क सया भी असयात लाेक
है
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51. परणामाे क वश
अपूवकरण के पहले समय का जघय परणाम अध:वृ
करण के अतम सववश परणाम से भी अनतगुणा
वश है
येक समय के जघय परणाम से उसी समय का उकृ ट
परणाम अनत गुणी वशता लए है
एक समय के उकृ ट परणाम से अगले समय का जघय
परणाम भी अनत गुणी वशता लए है
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52. अपूवकरण के 4 अावयक
1. गुणेणी िनजरा
2. गुण-समण
3. थित-काडक घात
4. अनुभाग-काडक घात
ये सब काय सा के कमाे मे हाेते है
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53. सा मे थत कमाे क
ितसमय
असयात गुणाकार प से
िनजरा हाेना
गुणेणी िनजरा कहलाता है
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54. गुणेणी का उदाहरण
मानाक अपकृ य = 8500, गुणेणी अायाम = 4
िनषेक य
चतथ िनषेक मे दया य 6400
तृतीय िनषेक मे दया य 1600
तीय िनषेक मे दया य 400
थम िनषेक मे दया य 100
8500
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55. गुणेणी िनजरा
पूव सव
गुणेणी ारा
िनजरा
अतमुत
100
400
1600
6400
उदाहरण
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56. जनका बध नही हाे रहा, सा मे थत एेसी पाप
कृ ितयाे का
ितसमय
असयात गुणा
वतमान मे बधने वाल अय कृ ित प हाेना
गुण-समण कहलाता है
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57. एक कम का अय कमप हाेनाएक कम का अय कमप हाेना
कन कमाे का ?कन कमाे का ?
अशत कमाे काअशत कमाे का
बधने वालाे का ?बधने वालाे का ?
नही, सा के कमाे कानही, सा के कमाे का
कब ?कब ?
ितसमयितसमय
कतना ?कतना ?
पहले समय से अगले समय असयातगुणापहले समय से अगले समय असयातगुणा
वष
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58. समण िनयम
मूल कृ ितयाे मे परपर समण नही हाेता है
चाराे अायुअाे का अापस मे समण नही हाेता है
माेहनीय के उर भेद – दशन माेहनीय अाैर चार माेहनीय का अापस
मे समण नही हाेता है
दशन माेहनीय का दशन माेहनीय मे अाैर चार माेहनीय का चार
माेहनीय के भेदाे मे अापस मे समण हाे सकता है
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59. थितकाडक घात
सा मे थत
समत कमाे क थित
हर अतमुत मे न करना
थितकाडक घात कहलाता है
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60. थित
थित घटाकर
िनषेकाे काे नीचे क
थित मे लाना
ि थ तकांडक घात कै से होता है ?
जतनी थित नाश करनी है,
अ भाग के उतने थित के
िनषेकाे काे नीचे क थित मे
दया जाता है ।
एक अतमुत मे सारे िनषेकाे
काे नीचे देकर ऊपर क थित
समा हाे जाती है ।
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62. वशेष
एक थितखडन मे अतमुत काल लगता है
अायु काे छाेड़कर शेष सारे कमाे क थित का खडन
(घात) कया जाता है
एक करण मे सयात हजार बार थितकाडक घात हाेते है
एेसे थितकाडक घात के ारा थित-सव करण के अाद
से अत मे सयात गुणा कम हाे जाता है
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63. अनुभाग काडक घात
सा मे थत
पाप कृ ितयाे का अनुभाग
हर अतमुत मे
अनत बभाग न करना
अनुभागकाडक घात कहलाता है
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64. अनुभाग घटाकर पधकाे
काे हीन श वाले
पधकाे मे लाना
अनुभागकाडक घात कै से हाेता है ?
जतने अनुभाग का नाश करना
है, अ भाग के उतने अनुभाग
के पधकाे काे हीन अनुभाग के
पधकाे मे दया जाता है ।
एक अतमुत मे सारे पधकाे
काे हीन अनुभाग मे देने पर
अधक श वाले पधक
समा हाे जाते है ।
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66. वशेष
एक अनुभाग खडन मे अतमुत काल लगता है
सा के सव अशत कमाे का अनुभाग घात हाेता है
पुय कृ ितयाे का अनुभाग नही घटता है
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68. तारसपरणामयजीवा जणेह गलयितमरेह
माेहसपुकरणा, खवणुवसमणुया भणया 54
अथ - अान अधकार से सवथा रहत जनेदेव ने कहा है क
उ परणामाे काे धारण करने वाले अपूवकरण गुणथानवती जीव
माेहनीयकम क शेष कृ ितयाे का पण अथवा उपशमन करने मे
उत हाेते है 54
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69. णापयले णे, सद अाऊ उवसमित उवसमया
खवय ढे खवया, णयमेण खवित माेह त 55
अथ - जनके िना अाैर चला क बधयुछ हाे चुक है तथा
जनका अायुकम अभी वमान है, एेसे उपशमेणी का अाराेहण
करने वाले जीव शेष माेहनीय का उपशमन करते है अाैर जाे
पकेणी का अाराेहण करने वाले है, वे िनयम से माेहनीय का
पण करते है 55
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70. उपशम ेणी
अपूवकरण के थम
भाग मे मरण नही
शेष काल मे मरण
सभव है
पक ेणी
सव मरण सभव
नही
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71. एक कालसमये, सठाणादह जह णवित
ण णवित तहाव य, परणामेह महाे जेह 56
हाेित अणयणाे ते, पडसमय जेसमेपरणामा
वमलयरझाणयवह-सहाह ण कवणा 57
अथ - अतमुतमा अिनवृकरण के काल मे से अाद या मय या अत के एक
समयवती अनेक जीवाे मे जसकार शरर क अवगाहना अाद बा करणाे से तथा
ानावरणादक कम के याेपशमाद अतरम करणाे से परपर मे भेद पाया जाता है,
उसकार जन परणामाे के िनम से परपर मे भेद नही पाया जाता उनकाे
अिनवृकरण कहते है अिनवृकरण गुणथान का जतना काल है, उतने ही उसके
परणाम है इसलये उसके काल के येक समय मे अिनवृकरण का एक ही परणाम
हाेता है तथा ये परणाम अयत िनमल यानप अ क शखाअाे क सहायता से
कमवन काे भ कर देते है 56-57
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72. अिनवृकरण गुणथान
अ + िनवृ + करणअ + िनवृ + करण
वमान नही है + भेद + वश परणामाे मेवमान नही है + भेद + वश परणामाे मे
वह अिनवृकरण हैवह अिनवृकरण है
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73. अिनवृकरण गुणथान वशेष:
शरर का सथान, वण, वय
तथा उपयाेगाद मे भेद सभव
है
यहा येक समय सभी जीवाे
के एक जैसा, एक ही
परणाम सभव है
इसका काल अतमुत है थम समय
तीय समय
तृतीय समय
चतथ समय
पचम समय
काल - अतमुत
एक ही
परणाम
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74. अिनवृकरण के अावयक
20 कृ ितयाे का
य
10वे गुणथान मे
भाेगने के लये
सवलन लाेभ क
सू कृ ी
11वे गुणथान के लये
21 कृ ितयाे का
अतरकरणप उपशम
चढ़ने अाैर उतरने के 10वे
गुणथान मे भाेगने के लए
सवलन लाेभ क सू
कृ ी
पक ेणी मे उपशम ेणी
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75. अध:वृकरण अपूवकरण अिनवृकरण
परणाम
ऊपर समय वाले जीवाे के
परणाम नीचे समय वालाे से
मलते है
ितसमय अपूव (जाे पहले
न ये हाे) एेसे नवीन
परणाम हाेते है
जहा सथानाद का
भेद हाेने पर भी
परणामाे मे भेद नही
एक समयवती
जीवाे के परणाम
समान भी, भन भी समान भी, भन भी समान ही
भन समयवती
जीवाे के परणाम
समान भी, भन भी भन ही भन ही
अनुकृ रचना हाेती है नही हाेती है नही हाेती है
परणामाे क
सया
असयात लाेकमाण
(ऊपर—2 समान वृ
सहत)
असयात लाेकमाण
(अध:वृकरण से
असयातगुणे)
असयात—जतने
इसके समय
काल तीनाे का
अतमुत
सबसे बड़ा
अध:वृकरण से सयात
गुणा हीन
अपूवकरण से सयात
गुणा हीन
उदाहरण 16 समय 8 समय 4 समय
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76. ये करण के परणाम अाैर कहा-कहा हाेते है?
. पद गुणथान
1 थमाेपशम सयव १
2 अनतानुबधी क वसयाेजना ४ से ७
3 ायक सयव ४ से ७
4 तीयाेपशम सयव ७
5 उपशम ेणी ७, ८, ९
6 पक ेणी ७, ८, ९
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77. धुदकाेसभयवथ, हाेह जहा सहमरायसजु
एव सहमकसाअाे, सहमसरागाे णादाे 58
अथ - जस कार धुले ए काैसभी व मे लालमा -
सखी सू रह जाती है, उसी कार जाे जीव अयत सू
राग-लाेभ कषाय से यु है उसकाे सूसापराय नामक
दशम गुणथानवती कहते है 58
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78. सूसापराय गुणथान
सू सवलन
लाेभ का उदय
अयत सू राग
(लाेभकषाय) से
सयु
धुले ए काैसभी
व के समान
सू लालमा
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79. पुापुफय-बादरसहमगयक अणुभागा
हीणकमाणतगुणेण-वरादु वर च हेस 59
अथ - पूवपधक से अपूवपधक के अाैर अपूवपधक से बादरकृ के
तथा बादरकृ से सूकृ के अनुभाग म से अनतगुणे-अनतगुणे
हीन है अाैर ऊपर के (पूव-पूव के ) जघय से नीचे का (उराेर का)
उकृ अाैर अपने-अपने उकृ से अपना-अपना जघय अनतगुणा
अनतगुणा हीन है 59
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80. पूव अाैर अपूव पधक मे अतर
पूव पधक अपूव पधक
वप
ससार-अवथा मे पाए
जाने वाले कम क
श समूहप
अिनवृकरण परणामाे
से कए गए पूव पधक
के अनतवे भाग माण
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81. कृ
अनुभाग का
कृ ष करना
(घटाना)
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82. एक पधक से दूसरे पधक का अनुभाग थाेड़ा ही अधक
है,
जबक एक कृ से दूसर कृ का अनुभाग अनत गुणा
है
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84. कषाय-नाेकषाय सभी
के हाेते है
अपूव
पधक
सवलन ाेध, मान,
माया लाेभ क हाेती है
बादर
कृ ी
सफ सवलन लाेभ
क हाेती है
सू
कृ ी
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85. उपशम ेणी मे सू कृ ही
हाेती है, अपूव पधक अाैर
बादर कृ नही क जाती
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86. अणुलाेह वेदताे, जीवाे उवसामगाे व खवगाे वा
साे सहमसापराअाे, जहखादेणूणअाे क च 60
अथ - चाहे उपशम ेणी का अाराेहण करनेवाला हाे अथवा
पकेणी का अाराेहण करनेवाला हाे, परत जाे जीव
सूलाेभ के उदय का अनुभव कर रहा है, एेसा दशवे
गुणथानवाला जीव यथायात चार से कु छ ही यून रहता है
60
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87. 6 से 10 गुणथान मे सवलन का
उदय कै सा ?
गुणथान सवलन का उदय
6 ती
7 मद
8 मदतर
9 मदतम
10 सू
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89. कदकफलजुदजल वा, सरए सरवाणय व णलय
सयलाेवसतमाेहाे, उवसतकसायअाे हाेद 61
अथ - िनमल फल से यु जल क तरह, अथवा शरद ऋत
मे ऊपर से वछ हाे जाने वाले सराेवर के जल क तरह,
सपूण माेहनीय कम के उपशम से उप हाेने वाले िनमल
परणामाे काे उपशातकषाय नामक यारहवा गुणथान कहते है
61
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90. उपशातकषाय गुणथान
िनम
सव माेहनीय कम
का उपशम
परणाम
पूण वीतराग िनमल दशा
उदाहरण
1. िनमल फल से
सहत वछ जल
2. शरद-कालन
सराेवर का जल
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92. पतन के कारणपतन के कारण
कालयकालय
िनयम से दसवा
गुणथान
िनयम से दसवा
गुणथान
भवयभवय
िनयम से देवगित –
चाैथा गुणथान
िनयम से देवगित –
चाैथा गुणथान
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93. णसेसखीणमाेहाे, फलहामलभायणुदयसमचाे
खीणकसाअाे भणद, णगथाे वीयरायेह 62
अथ - जस िनथ का च माेहनीय कम के सवथा ीण हाे
जाने से फटक के िनमल पा मे रखे ए जल के समान
िनमल हाे गया है उसकाे वीतराग देव ने ीणकषाय नाम का
बारहवे गुणथानवती कहा है 62
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94. ीणकषाय गुणथान
सव माेहनीय
कम का य
अयत िनमल
वीतरागी
परणाम
फटक मण
के पा मे
रखा िनमल
जल
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95. के वलणाणदवायरकरण-कलावपणासयणाणाे
णवके वललुगम, सजणयपरमपववएसाे 63
असहायणाणदसणसहअाे इद के वल जाेगेण
जुाे ित सजाेगजणाे, अणाइणहणारसे उाे 64
अथ - जसका के वलानपी सूय क अवभागितछेदप करणाे के
समूह से (उकृ अनतानत माण) अान-अधकार सवथा न हाे गया
हाे अाैर जसकाे नव के वललधयाे के (ायक-सयव, चार, ान,
दशन, दान, लाभ, भाेग, उपभाेग, वीय) कट हाेने से ‘परमाा’ यह
यपदेश (सा) ा हाे गया है, वह इय-अालाेक अाद क अपेा न
रखने वाले ान-दशन से यु हाेने के कारण के वल अाैर याेग से यु
रहने के कारण सयाेग तथा घाित कमाे से रहत हाेने के कारण जन कहा
जाता है, एेसा अनादिनधन अाष अागम मे कहा है 63-64
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96. पराथप सपदा वाथप सपदा
• सूय क करणाे के
समूह समान के वलान
के ारा दयविन से
पदाथ काशत कर
शयाे के अान-
अधकार काे नट करते
है
• नव के वल लध सहत
हाेने से परमाा है
• ायक सयव,
चार, ान, दशन,
दान, लाभ, भाेग,
उपभाेग, वीय
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97. सयाेग-के वल-जन
सयाेग
•याेग-सहत
हाेने से
के वल
•असहाय
(पर
सहायरहत)
ान-दशन
हाेने से
जन
•घाित कमाे
का समूल
नाश करने
से
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98. सीले स सपाे, णणसेसअासवाे जीवाे
करयवपमुाे, गयजाेगाे के वल हाेद 65
अथ - जाे अठारह हजार शील के भेदाे का वामी हाे चुका
है अाैर
जसके कमाे के अाने का ार प अाव सवथा बद हाे
गया है तथा
सव अाैर उदयप अवथा काे ा कमप रज क
सवथा िनजरा हाेने से उस कम से सवथा मु हाेने के
सुख है,
उस याेगरहत के वल काे चाैदहवे गुणथानवती अयाेग-
के वल कहते है
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99. अठारह हजार
शील के भेदाे का
वामी
सव अाव
िनराेधक
सव अाैर उदय ा
कमरज से मु हाेने
के सुख
याेगरहत के वल
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100. सुपीये, सावयवरदे अणतकसे
दसणमाेहखवगे, कसायउवसामगे य उवसते 66
खवगे य खीणमाेहे, जणेस दा असखगुणदकमा
तवरया काला, सखेगुणमा हाेित 67
अथ - सयाेप अथात् साितशय मया अाैर सय, ावक,
वरत, अनतानुबधी कम का वसयाेजन करनेवाला, दशनमाेहनीय कम
का य करनेवाला, कषायाे का उपशम करने वाले 8-9-10वे
गुणथानवती जीव, उपशातकषाय, कषायाे का पण करनेवाले 8-9-
10वे गुणथानवती जीव, ीणमाेह, सयाेगी अाैर अयाेगी दाेनाे कार के
जन, इन यारह थानाे मे य क अपेा कमाे क िनजरा म से
असयातगुणी-असयातगुणी अधक-अधक हाेती जाती है अाैर उसका
काल इससे वपरत है म से उराेर सयातगुणा-सयातगुणा हीन
है 66-67
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101. गुणेणी िनजरा के थान
थान वप
वामी (गुणथान
अपेा)
साितशय
मया
थमाेपशम सयव क उप के समय
करण लध के अितम समय मे वतमान
जीव
1
1. सय अती ावक 4
2. ावक ती ावक 5
3. वरत मुिन 6-7
4. अनतानुबधी
वयाेजक
अनतानुबधी काे अयायानावरण अाद
प वसयाेजत करने वाला
4-7
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102. थान वप
वामी (गुणथान
अपेा)
5. दशनमाेह पक
दशनमाेह का य करने
वाला
4-7
6. उपशामक चारमाेह दबाने वाला उपशम ेणी 8-10
7. उपशात कषाय चारमाेह दबने पर 11
8. पक
चारमाेह काे य करने
वाला
पक ेणी 8-10
9. ीण माेह चारमाेह के य हाेने पर 12
10. वथान सयाेगी जन
घाितया कमाे का य करने
के बाद याेग-सहत
13
11. समुातगत सयाेगी
जन
समुात अवथा काे ा
सयाेगके वल जन
13
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103. उदाहरण
सयात का माण 2 माना, अाैर असयात का माण 5 माना |
िनजरा हेत य बाटने याेय अायाम एक िनषेक काे ात अाैसत
1 10,000 2096 5
2 50,000 1024 50
3 2,50,000 512 500
4 12,50,000 256 5000
5 62,50,000 128 50000
ितथान मे य असयातगुणा बढ़ता है अाैर
गुणेणी अायाम का काल सयातगुणा हीन हाेता है
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104. अवहकवयला, सीदभूदा णरजणा णा
अगुणा कदका, लाेयगणवासणाे सा 68
सदसव सखाे मड, बुाे णेयाइयाे य वेसेसी
ईसरमडलदसण,वदूसण कय एद 69
अथ - जाे ानावरणाद अ कमाे से रहत है,
अनतसखपी अमृत के अनुभव करनेवाले शातमय
है, नवीन कमबध काे कारणभूत मयादशनाद
भावकमपी अन से रहत है, सयव, ान, दशन,
वीय, अयाबाध, अवगाहन, सूव, अगुलघु, ये
अाठ मुय गुण जनके कट हाे चुके है, कृ तकृ य है,
लाेक के अभाग मे िनवास करनेवाले है, उनकाे स
कहते है 68
अथ - सदाशव, साय, मकर, बाै, नैयायक अाैर
वैशेषक, कतृवाद (ईर काे का मानने वाले),
मडल इनके मताे का िनराकरण करने के लये ये
वशेषण दये है 69
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105. साे के वशेषण एव अाठ मताे का खडन
वशेषण
कस मत का
खडन
मत क मायता
(जीव....
िनराकरण
ानावरणाद
अाठ कमाे से
रहत
सदाशव
....सदा कम से
रहत है
मु हाेने पर ही कम से रहत
हाेता है
मीमासक .... के मु नही कमरहत हाेने पर मु हाेती है
सख वप सायमत
....काे मु मे सख
नही
सव दु:खाे का अभाव कर जीव
ही मु मे सखी हाेता है
िनरजन (भाव
कमाे से रहत)
मकर सयासी
.... मु हाेने पर
ससार मे पुन: अाते
है
भाव कम के अभाव मे नवीन
य कम नही हाेते उसके
अभाव मे ससार नही हाेता
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106. वशेषण
कस मत
का खडन
मत क मायता
(जीव....
िनराकरण
िनय बाै .... णक है
सू अथपयाय का
उपादयय, परत य सदा
िनय
अाठ गुणाे से
सहत
नैयायक
वैशेषक
.... काे मु मे बु
अाद गुणाे का वनाश
हाेता है
अनतानत गुण कट हाेते है
कृ तकृ य (कु छ
करना शेष नही)
ईवर सृवाद ईवर सृ बनाता है
सकल कम नाश हाेने पर कु छ
करना शेष नही रहता
लाेक के अ भाग
मे थत
मडल
.... सदा ऊपर काे
गमन करता, कभी
ठहरता नही
लाेक के अागे धमातकाय का
अभाव हाेने से तनुवातवलय मे
थत रहता है
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107. वह गित मे थम, तीय एव चतथ गुणथान ही हाेते है
तीसरे, बारहवे एव तेरहवे गुणथान मे जीव क मृयु नही हाेती
• पक ेणी के कसी भी गुणथान मे मरण नही हाेता
• उपशम ेणी के अाठवे गुणथान के थम भाग मे भी मरण नही हाेता
ससार मे पहला, चाैथा, पाचवा, छठवा, सातवा अाैर तेरहवा इन गुणथानाे मे जीव सदा
वमान रहते ही है
बारहवा, तेरहवा, चाैदहवा एव पकेणी का अाठवा, नाैवा अाैर दसवा ये गुणथान
अितपाित है
जसके नरक, ितय अाैर अगल मनुय-अायु क सा हाे वाे अवरत सयव से उपर के
गुणथानाे मे वेश नही कर सकता
सासादन गुणथान मे मरण हाे ताे जीव नरक मे नही जाता |
गुणथान : कु छ राेचक तय
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109. गुणथान उकृ काल जघय काल
1.मयाव अनाद अनत या अनाद सात या साद सात—कु छ कम
अ पुल परावतन
अतमुत
2.सासादन छह अावल एक समय
3.म सवाेकृ अतमुत सव लघु अतमुत
4.अवरत साधक तैतीस सागर अतमुत
5.देशवरत 1 पूवकाेट वष – 1 अतमुत अतमुत
6.मसयत एक अतमुत एक समय
7.अमसयत एक अतमुत एक समय
गुणथानाे मे काल अपेा वचार
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110. गुणथान उकृ काल जघय काल
8.अपूवकरण एक अतमुत एक समय
9.अिनवृकरण एक अतमुत एक समय
10.सूसापराय एक अतमुत एक समय
11.उपशातमाेह एक अतमुत एक समय
12.ीणमाेह जघय, उकृ = अतमुत
13.सयाेगके वल 8 वष अाैर अतमुत कम 1 काेट पूव अतमुत
14.अयाेगके वल जघय, उकृ = अ,इ,उ,ऋ, का उारण काल
गुणथानाे मे काल अपेा वचार
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111. समयब का बटवारा - उदाहरण
समयब = 6300 परमाणु, थित = 48
गुणहािन अायाम = 8
नाना गुणहािन =
थित
गुणहािन अायाम
= = 6
अयाेयायत राश = नाना गुणहािन = = 64
िनषेकहार = 2 गुणहािन अायाम
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112. अितम गुणहािन का य =
समयब
अयाेयायत राश
= = = 100
पूव क गुणहािनयाे का य इससे दुगुना-दुगुना है, अत
पाचवी गुणहािन का य 200
चतथ गुणहािन का य 400
तीसर गुणहािन का य 800
तीय गुणहािन का य 1600
थम गुणहािन का य 3200
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113. थम गुणहािन
थम िनषेक =
समयब
साधक डेढ़ गुणहािन
= = 512
चय =
थम िनषेक
िनषेकहार
= = 32
थम िनषेक से अगले िनषेक एक-एक चय हीन है | अत थम
गुणहािन इस कार ा हाेगी -
थम
गुणहािन
288
320
352
384
416
448
480
512
थम गुणहानी के सव-य का माण = 3200
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114. तीय गुणहािन
थम गुणहािन के अितम िनषेक से एक चय
अाैर घटाने पर तीय गुणहािन के थम
िनषेक अाता है |
थम गुणहािन से अागे-अागे क गुणहािनयाे मे
चय अाधा-अाधा हाेता जाता है |
अत तीय गुणहािन इस कार हाेगी
तीय
गुणहािन
144
160
176
192
208
224
240
256
तीय गुणहानी के सव-य का माण = 1600
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115. शेष गुणहािनया भी इसी कार िनकालना
1st गुणहा न 2nd गुणहा न 3rd गुणहा न 4th गुणहा न 5th गुणहा न 6th गुणहा न
288 144 72 36 18 9
320 160 80 40 20 10
352 176 88 44 22 11
384 192 96 48 24 12
416 208 104 52 26 13
448 224 112 56 28 14
480 240 120 60 30 15
512 256 128 64 32 16
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116. Reference : गाेटसार जीवकाड, सयान चका,
गाेटसार जीवकाड रेखाच एव तालकाअाे मे
Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
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116
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