Vygyanic Chetana Ke Vahak Sir Chandra Shekhar Venkat Ramamn (CV Raman) Class 9
1.
2. चंद्रशेखर वेंकट रामन :
(अंग्रेज़ी: Chandrasekhara Venkata Raman, जन्म:7
नवम्बर, 1888 - मृत्यु:21 नवम्बर, 1970) पहले व्यक्ति थे
क्तजन्होंने वैज्ञाक्तनक संसार में भारत को ख्याक्तत
क्तिलाई। प्राच़ीन भारत में क्तवज्ञान की उपलक्तधियााँ थीं जैसे-
शून्य और िशमलव प्रणाल़ी की खोज, पृथ्व़ी के अपऩी िुऱी
पर घूमने के बारे में तथा आयुवेि के फारमूले इत्याक्ति। मगर
पूणणरूप से क्तवज्ञान के प्रयोगात्मक कोण में कोई क्तवशेष
प्रगक्तत नहीं हुई थ़ी। रामन ने उस खोये रास्ते की खोज की
और क्तनयमों का प्रक्ततपािन क्तकया क्तजनसे स्वतंर भारत के
क्तवकास और प्रगक्तत का रास्ता खुल गया। रामन ने
स्वाि़ीन भारत में क्तवज्ञान के अध्ययन और शोि को जो
प्रोत्साहन क्तिया उसका अनुमान कर पाना कक्तिन है।
3. पररचय
चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म तक्तमलनाडु के क्ततरुक्तचरापल्ल़ी शहर में 7
नवम्बर1888 को हुआ था, जो क्तक कावेऱी नि़ी के क्तकनारे क्तस्थत है। इनके
क्तपता चंद्रशेखर अय्यर एक स्कू ल में पढाते थे। वह भौक्ततकी और गक्तणत के
क्तवद्वान और संग़ीत प्रेम़ी थे। चंद्रशेखर वेंकट रामन की मााँ पावणत़ी अम्माल थीं।
उनके क्तपता वहााँ कॉलेज में अध्यापन का कायण करते थे और वेतन था मार
िस रुपया। उनके क्तपता को पढने का बहुत शौक़ था। इसक्तलए उन्होंने अपने
घर में ह़ी एक छोट़ी-स़ी लाइब्रेऱी बना रखा थ़ी। रामन का क्तवज्ञान और अंग्रेज़ी
साक्तहत्य की पुस्तकों से पररचय बहुत छोट़ी उम्र से ह़ी हो गया था। संग़ीत के
प्रक्तत उनका लगाव और प्रेम भ़ी छोट़ी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर
उनकी वैज्ञाक्तनक खोजों का क्तवषय बना। वह अपने क्तपता को घंटों व़ीणा बजाते
हुए िेखते रहते थे। जब उनके क्तपता क्ततरुक्तचरापल्ल़ी से क्तवशाखाप्तननममें
आकर बस गये तो उनका स्कू ल समुद्र के तट पर था। उन्हें अपऩी कक्षा की
क्तखड़की से समुद्र की अगाि ऩील़ी जलराक्तश क्तिखाई िेत़ी थ़ी। इस दृश्य ने
इस छोटे से लड़के की कल्पना को सम्मोक्तहत कर क्तलया। बाि में समुद्र का
यह़ी ऩीलापन उनकी वैज्ञाक्तनक खोज का क्तवषय बना।
4. ● छोट़ी-स़ी आयु से ह़ी वह भौक्ततक क्तवज्ञान की ओर आकक्तषणत थे।
● एक बार उन्होंने क्तवशेष उपकरणों के क्तबना ह़ी एक डायनमों
बना डाला।
● एक बार ब़ीमार होने पर भ़ी वह तब तक नहीं माने थे जब तक
क्तक क्तपता ने 'ल़ीडन जार' के कायण का प्रिशणन करके नहीं
क्तिखाया।
● रामन अपऩी कक्षा के बहुत ह़ी प्रक्ततभाशाल़ी क्तवद्याथी थे।
उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छारवृक्त्तनयााँ क्तमलत़ी रहीं।
● अध्यापक बार-बार उनकी अंग्रेज़ी भाषा की समझ,
स्वतंरक्तप्रयता और दृढ चररर की प्रशंसा करते थे।
के वल ग्यारह वषण की उम्र में वह िसवीं की पऱीक्षा में प्रथम आये।
● मद्रास के प्रेस़ीडेंस़ी कॉलेज में पहले क्तिन की कक्षा में
यूरोक्तपयन प्राध्यापक ने नन्हें रामन को िेखकर कहा क्तक वह
ग़लत़ी से उनकी कक्षा में आ गये हैं।
5. क्तशक्षा
रामन संग़ीत, संस्कृ त और क्तवज्ञान के वातावरण में बड़े हुए। वह
हर कक्षा में प्रथम आते थे। रामन ने 'प्रेस़ीडेंस़ी कॉलेज' में ब़ी. ए.
में प्रवेश क्तलया। 1905 में प्रथम श्रेण़ी में उ्तऩीणण होने वाले वह अके ले
छार थे और उन्हें उस वषण का 'स्वणण पिक' भ़ी प्राप्त हुआ। उन्होंने
'प्रेस़ीडेंस़ी कॉलेज' से ह़ी एम. ए. में प्रवेश क्तलया और मुख्य क्तवषय
के रूप में भौक्ततक शास्त्र को क्तलया। एम. ए. करते हुए रामन
कक्षा में यिा-किा ह़ी जाते थे। प्रोफे सर आर. एल. जॉन्स जानते
थे क्तक यह लड़का अपऩी िेखभाल स्वयं कर सकता है। इसक्तलए
वह उसे स्वतंरतापूवणक पढने िेते थे। आमतौर पर रामन कॉलेज
की प्रयोगशाला में कु छ प्रयोग और खोजें करते रहते। वह
प्रोफे सर का 'फे बऱी-क्तपराट इन्टरफे रोम़ीटर'[1] का इस्तेमाल
करके प्रकाश की क्तकरणों को नापने का प्रयास करते।
6. रामन की मन:क्तस्थक्तत का अनुमान प्रोफे सर जॉन्स भ़ी नहीं समझ पाते थे क्तक
रामन क्तकस च़ीज की खोज में हैं और क्या खोज हुई है। उन्होंने रामन को
सलाह ि़ी क्तक अपने पररणामों को शोि पेपर की शक्ल में क्तलखकर लन्िन से
प्रकाक्तशत होने वाल़ी 'क्तफलॉसक्तफकल पक्तरका' को भेज िें। सन् 1906 में पक्तरका
के नवम्बर अंक में उनका पेपर प्रकाक्तशत हुआ। क्तवज्ञान को क्तिया रामन का यह
पहला योगिान था। उस समय वह के वल 18 वषण के थे।
क्तवज्ञान के प्रक्तत प्रेम, कायण के प्रक्तत उत्साह और नई च़ीजों को स़ीखने का
उत्साह उनके स्वभाव में था। इनकी प्रक्ततभा से इनके अध्यापक तक अक्तभभूत
थे। श्ऱी रामन के बड़े भाई 'भारत़ीय लेखा सेवा' (IAAS) में कायणरत थे। रामन भ़ी
इस़ी क्तवभाग में काम करना चाहते थे इसक्तलये वे प्रक्ततयोग़ी पऱीक्षा में सक्तम्मक्तलत
हुए। इस पऱीक्षा से एक क्तिन पहले एम. ए. का पररणाम घोक्तषत हुआ क्तजसमें
उन्होंने 'मद्रास क्तवश्वक्तवद्यालय' के इक्ततहास में सवाणक्तिक अंक अक्तजणत क्तकए और
IAAS की पऱीक्षा में भ़ी प्रथम स्थान प्राप्त क्तकया। 6 मई 1907 को कृ ष्णस्वाम़ी
अय्यर की सुपुऱी 'क्तरलोकसुंिऱी' से रामन का क्तववाह हुआ।
7. शोि कायण
कु छ क्तिनों के बाि रामन ने एक और शोि पेपर क्तलखा
और लन्िन में क्तवज्ञान की अन्तराणष्ऱीय ख्याक्तत प्राप्त
पक्तरका 'नेचर' को भेजा। उस समय तक वैज्ञाक्तनक
क्तवषयों पर स्वतंरतापूवणक खोज करने का आत्मक्तवश्वास
उनमें क्तवकक्तसत हो चुका था। रामन ने उस समय के एक
सम्माक्तनत और प्रक्तसद्ध वैज्ञाक्तनक लॉडण रेले को एक पर
क्तलखा। इस पर में उन्होंने लॉडण रेले से अपऩी वैज्ञाक्तनक
खोजों के बारे में कु छ सवाल पूछे थे। लॉडण रेले ने उन
सवालों का उ्तनर उन्हें प्रोफे सर सम्बोक्तित करके क्तिया।
वह यह कल्पना भ़ी नहीं कर सकते थे क्तक एक भारत़ीय
क्तकशोर इन सब वैज्ञाक्तनक खोजों का क्तनिेशन कर रहा
है।
"जब नोबेल पुरस्कार की घोषणा की
गई थी तो मैं ने इसे अपनी व ्यक्ततगत
ववजय माना, मेरे ललए और मेरे
सहयोगगयों के ललए एक उपलक्धि - एक
अत्यंत असािारण खोज को मान्यता
दी गई है, उस लक्ष्य तक पहुंचने के ललए
8. रामन की प्रक्ततभा अक्तद्वत़ीय थ़ी। अध्यापकों ने रामन के क्तपता को सलाह
ि़ी क्तक वह रामन को उच्च क्तशक्षा के क्तलए इंग्लैंड भेंज िें। यक्ति एक क्तब्रक्तटश
मेक्तडकल अफसर ने बािा न डाल़ी होत़ी तो रामन भ़ी अन्य प्रक्ततभाशाल़ी
व्यक्तियों की तरह िेश के क्तलए खो जाते। डॉक्टर का कहना था क्तक
स्वास्थ्य नाजुक है और वह इंग्लैंड की सख़्त जलवायु को सहन नहीं
कर पायेंगे। रामन के पास अब कोई अन्य रास्ता नहीं था। वह क्तब्रक्तटश
सरकार द्वारा आयोक्तजत प्रक्ततयोग़ी पऱीक्षा में बैिे। इसमें उ्तऩीणण होने से
नौकऱी क्तमलत़ी थ़ी। इसमें पास होने पर वह सरकार के क्तव्तऩीय क्तवभाग में
अफसर क्तनयुि हो गये। रामन यह सरकाऱी नौकऱी करने लगे। इसमें
उन्हें अच्छा वेतन और रहने को बंगला क्तमला।
क्तवज्ञान की उन्हें िुन थ़ी। उन्होंने घर में ह़ी एक छोट़ी-स़ी प्रयोगशाला
बनाई। जो कु छ भ़ी उन्हें क्तिलचस्प लगता उसके वैज्ञाक्तनक तथ्यों की
खोज में वह लग जाते। रामन की खोजों में उनकी युवा पत्ऩी भ़ी अपना
सहयोग िेंत़ी और उन्हें िूसरे कामों से िूर रखतीं। वह यह क्तवश्वास करत़ी
थीं क्तक वह रामन की सेवा के क्तलये ह़ी पैिा हुईंहैं। रामन को महान बनाने
में उनकी पत्ऩी का भ़ी बड़ा हाथ है।
9. सरकाऱी नौकऱी
रामन कोलकाता में सहायक महालेखापाल के पि पर क्तनयुि थे, क्तकं तु
रामन का मन बहुत ह़ी अशांत था क्योंक्तक वह क्तवज्ञान में अनुसंिान कायण
करना चाहते थे। एक क्तिन िफ़्तर से घर लौटते समय उन्हें 'इक्तडडयन
एसोक्तसएशन फॉर कक्तल्टवेशन ऑफ साइंस' का बोडण क्तिखा और अगले ह़ी
पल वो पररषि के अंिर जा पहुाँचे। उस समय वहााँ पररषि की बैिक चल
रह़ी थ़ी। बैिक में आशुतोष मुखजी जैसे क्तवद्वान उपक्तस्थत थे। यह पररषि
क्तवज्ञान की अग्रगाम़ी संस्था थ़ी। इसके संस्थापक थे डॉक्टर महेन्द्रलाल
सरकार। उन्होंने सन् 1876 में िेश में वैज्ञाक्तनक खोजों के क्तवकास के
क्तलए इसकी स्थापना की थ़ी। कई कारणों से इस इमारत का वास्तक्तवक
उपयोग के वल वैज्ञाक्तनकों के क्तमलने या क्तवज्ञान पर भाषण आक्ति के क्तलए
होता था। संस्था की प्रयोगशाला और उपकरणों पर पड़े-पड़े िूल जमा हो
रह़ी थ़ी। जब रामन ने प्रयोगशाला में प्रयोग करने चाहे तो साऱी सामग्ऱी
और उपकरण उनके सुपुिण कर क्तिये गये। इस तरह पररषि में उनके
वैज्ञाक्तनक प्रयोग शुरू हुए और उन्होंने वह खोज की क्तजससे उन्हें 'नोबेल
पुरस्कार' क्तमला।
10. रामन सुबह साढे पााँच बजे पररषि की प्रयोगशाला में पहुाँच जाते और पौने िस
बजे आकर ऑक्तफस के क्तलए तैयार हो जाते। ऑक्तफस के बाि शाम पााँच बजे क्तफर
प्रयोगशाला पहुाँच जाते और रात िस बजे तक वहााँ काम करते। यहााँ तक की
रक्तववार को भ़ी सारा क्तिन वह प्रयोगशाला में अपने प्रयोगों में ह़ी व्यस्त रहते।
वषों तक उनकी यह़ी क्तिनचयाण बऩी रह़ी। उस समय रामन का अनुसंिान
संग़ीत-वाद्यों तक ह़ी स़ीक्तमत था। उनकी खोज का क्तवषय था क्तक व़ीणा, वॉयक्तलन,
मृिंग और तबले जैसे वाद्यों में से मिुर स्वर क्यों क्तनकलता है। अपने अनुसंिान
में रामन ने पररषि के एक सािारण सिस्य आशुतोष डे की भ़ी सहायता ल़ी।
उन्होंने डे को वैज्ञाक्तनक अनुसंिान के तऱीकों में इतना पारंगत कर क्तिया था क्तक
डे अपऩी खोजों का पररणाम स्वयं क्तलखने लगे जो बाि में प्रक्तसद्ध क्तवज्ञान
पक्तरकाओंमें प्रकाक्तशत हुए। रामन का उन व्यक्तियों में क्तवश्वास था जो स़ीखना
चाहते थे बजाय उन के जो के वल प्रक्तशक्तक्षत या क्तशक्तक्षत थे। वास्तव में जल्ि़ी ह़ी
उन्होंने युवा वैज्ञाक्तनकों का एक ऐसा िल तैयार कर क्तलया जो उनके प्रयोगों में
सहायता करता था। वह पररषि के हॉल में क्तवज्ञान को लोकक्तप्रय बनाने के क्तलए
भाषण भ़ी िेने लगे, क्तजससे युवा लोगों को क्तवज्ञान में हुए नये क्तवकासों से
पररक्तचत करा सकें । वह िेश में क्तवज्ञान के प्रविा बन गये। रामन की क्तवज्ञान में
लगन और कायण को िेखकर कलक्तना क्तवश्वक्तवद्यालय के उपकु लपक्तत आशुतोष
मुखजी जो 'बगाल के बाघ' कहलाते थे, बहुत प्रभाक्तवत हुए। उन्होंने क्तब्रक्तटश
सरकार से अनुरोि क्तकया क्तक रामन को िो वषों के क्तलए उनके काम से छु ट्ट़ी िे
ि़ी जाए क्तजससे वह पूऱी तन्मयता और ध्यान से अपना वैज्ञाक्तनक कायण कर सकें ।
11. लेक्तकन सरकार ने इस प्रस्ताव को अस्व़ीकार कर क्तिया। इस़ी िौरान पररषि में भौक्ततक शास्त्र में
'तारकनाथ पाक्तलत चेयर' की स्थापना हुई। चेयर एक ख्याक्तत प्राप्त वैज्ञाक्तनक को क्तमलने वाल़ी थ़ी, मगर
मुखजी उत्सुक थे क्तक चेयर रामन को क्तमले। चेयर के क्तलए लगाई गई शतों में रामन एक शतण पूऱी नहीं
करते थे क्तक उन्होंने क्तविेश में काम नहीं क्तकया था। मुखजी ने रामन को बाहर जाने के क्तलए कहा मगर
उन्होंने साफ इन्कार कर क्तिया। उन्होंने मुखजी से क्तवनत़ी की क्तक यक्ति उनकी सेवा की आवश्यकता है
तो इस शतण को हटा क्तिया जाये। अन्ततः मुखजी साहब ने ऐसा ह़ी क्तकया। रामन ने सरकाऱी नौकऱी
छोड़ ि़ी और सन् 1917 में एसोक्तसएशन के अंतगणत भौक्ततक शास्त्र में पाक्तलत चेयर स्व़ीकार कर ल़ी।
इसका पररणाम- िन और शक्ति की कम़ी, लेक्तकन रामन क्तवज्ञान के क्तलए सब कु छ बक्तलिान करने को
तैयार थे। मुखजी साहब ने रामन के बक्तलिान की प्रशंसा करते हुए कहा,-
"इस उिाहरण से मेरा उत्साह बढता है और आशा दृढ होत़ी है क्तक 'ज्ञान के मक्तन्िर' क्तजसे बनाने की
हमाऱी अक्तभलाषा है, में सत्य की खोज करने वालों की कम़ी नहीं होग़ी।" इसके पश्चात रामन अपना
पूरा समय क्तवज्ञान को िेने लगे।
कु छ क्तिनों के पश्चात रामन का तबािला बमाण (अब म्यांमार) के रंगून (अब यांगून) शहर में हो गया।
रंगून में श्ऱी रामन मन नहीं लगता था क्योंक्तक वहां प्रयोग और अनुसंिान करने की सुक्तविा नहीं थ़ी।
इस़ी समय रामन के क्तपता की मृत्यु हो गई। रामन छह मह़ीनों की छु ट्ट़ी लेकर मद्रास आ गए। छु रट्टयााँ
पूऱी हुईंतो रामन का तबािला नागपुर हो गया।
12. कोलकाता के क्तलए स्थानांतरण
सन 1911 ई. में श्ऱी रामन को 'एकाउंटेंट जरनल' के पि पर क्तनयुि करके पुनः
कलक्तना भेज क्तिया गया। इससे रामन बड़े प्रसन्न थे क्योंक्तक उन्हें पररषि की
प्रयोगशाला में पुनः अनुसंिान करने का अवसर क्तमल गया था। अगले सात वषों तक
रामन इस प्रयोगशाला में शोिकायण करते रहे। सर तारक नाथ पाक्तलत, डॉ. रासक्तबहाऱी
घोष और सर आशुतोष मुखजी के प्रयत्नों से कोलकाता में एक साइंस कॉलेज खोला
गया। रामन की क्तवज्ञान के प्रक्तत समपणण की भावना इस बात से लगता है क्तक उन्होंने
अपऩी सरकाऱी नौकऱी छोड़कर कम वेतन वाले प्राध्यापक पि पर आना पसंि क्तकया।
सन् 1917 में रामन कलक्तना क्तवश्वक्तवद्यालय में भौक्ततक क्तवज्ञान के प्राध्यापक क्तनयुि
हुए। भारत़ीय संस्कृ क्तत से रामन का हमेशा ह़ी लगाव रहा। उन्होंने अपऩी भारत़ीय
पहचान को हमेशा बनाए रखा। वे िेश में वैज्ञाक्तनक दृक्ति और क्तचंतन के क्तवकास के
प्रक्तत समक्तपणत थे।
13. क्तविेश में श्ऱी रामन
वेंकटरामन क्तब्रटेन के प्रक्ततक्तित कै क्तम्ब्रज यूक्तनवक्तसणट़ी की 'एम. आर. स़ी.
लेबोरेऱीज ऑफ म्यलूकु लर बायोलोज़ी' के स्रकचरल स्टड़ीज क्तवभाग के
प्रमुख वैज्ञाक्तनक थे। सन 1921 में ऑक्सफोडण, इंग्लैंड में हो रह़ी
यूक्तनवसणट़ीज कांग्रेस के क्तलए रामन को क्तनमन्रण क्तमला। उनके ज़ीवन में
इससे एक नया मोड़ आया। सामान्यतः समुद्ऱी यारा उकता िेने वाल़ी होत़ी
है क्योंक्तक ऩीचे समुद्र और ऊपर आकाश के क्तसवाय कु छ क्तिखाई नहीं िेता
है। लेक्तकन रामन के क्तलए आकाश और सागर वैज्ञाक्तनक क्तिलचस्प़ी की
च़ीजें थीं। भूमध्य सागर के ऩीलेपन ने रामन को बहुत आकक्तषणत क्तकया।
वह सोचने लगे क्तक सागर और आकाश का रंग ऐसा ऩीला क्यों है।
ऩीलेपन का क्या कारण है।
14. रामन जानते थे लॉडण रेले ने आकाश के ऩीलेपन का कारण
हवा में पाये जाने वाले नाइरोजन और ऑक्स़ीजन के अणुओं
द्वारा सूयण के प्रकाश की क्तकरणों का क्तछतराना माना है। लॉडण
रेले ने यह कहा था क्तक सागर का ऩीलापन मार आकाश का
प्रक्ततक्तबम्ब है। लेक्तकन भूमध्य सागर के ऩीलेपन को िेखकर
उन्हें लॉडण रेले के स्पि़ीकरण से संतोष नहीं हुआ। जहाज के
डेक पर खड़े-खड़े ह़ी उन्होंने इस ऩीलेपन के कारण की खोज
का क्तनश्चय क्तकया। वह लपक कर ऩीचे गये और एक उपकरण
लेकर डेक पर आये, क्तजससे वह यह पऱीक्षण कर सकें क्तक
समुद्र का ऩीलापन प्रक्ततक्तबम्ब प्रकाश है या कु छ और। उन्होंने
पाया क्तक समुद्र का ऩीलापन उसके भ़ीतर से ह़ी था। प्रसन्न
होकर उन्होंने इस क्तवषय पर कलक्तने की प्रयोगशाला में खोज
करने का क्तनश्चय क्तकया।
15. जब भ़ी रामन कोई प्राकृ क्ततक घटना िेखते तो वह सिा
सवाल करते—ऐसा क्यों है। यह़ी एक सच्चा वैज्ञाक्तनक
होने की क्तवशेषता और प्रमाण है। लन्िन में स्थान और
च़ीजों को िेखते हुए रामन ने क्तवस्पररंग गैलऱी में छोटे-
छोटे प्रयोग क्तकये।
कलक्तना लौटने पर उन्होंने समुद्ऱी पाऩी के अणुओंद्वारा
प्रकाश क्तछतराने के कारण का और क्तफर तरह-तरह के
लेंस, द्रव और गैसों का अध्ययन क्तकया। प्रयोगों के
िौरान उन्हें पता चला क्तक समुद्र के ऩीलेपन का कारण
सूयण की रोशऩी पड़ने पर समुद्ऱी पाऩी के अणुओंद्वारा
ऩीले प्रकाश का क्तछतराना है। सूयण के प्रकाश के बाकी
रंग क्तमल जाते हैं।
16. इस खोज के कारण सारे क्तवश्व में उनकी प्रशंसा हुई।
उन्होंने वैज्ञाक्तनकों का एक िल तैयार क्तकया, जो ऐस़ी
च़ीजों का अध्ययन करता था। 'ऑक्तटटकस' नाम के
क्तवज्ञान के क्षेर में अपने योगिान के क्तलये सन् 1924 में
रामन को लन्िन की 'रॉयल सोसाइट़ी' का सिस्य
बना क्तलया गया। यह क्तकस़ी भ़ी वैज्ञाक्तनक के क्तलये बहुत
सम्मान की बात थ़ी। रामन के सम्मान में क्तिये गये
भोज में आशुतोष मुखजी ने उनसे पूछा,-
अब आगे क्या?
तुरन्त उ्तनर आया- अब नोबेल पुरस्कार।
17. उस भोज में उपक्तस्थत लोगों को उस समय यह शेखक्तचल्ल़ी की शेख़ी ह़ी लग़ी होग़ी क्योंक्तक उस
समय क्तब्रक्तटश शाक्तसत भारत में क्तवज्ञान आरक्तम्भक अवस्था में ह़ी था। उस समय कोई कल्पना भ़ी
नहीं कर सकता था क्तक क्तवज्ञान में एक भारत़ीय इतऩी जल्ि़ी नोबेल पुरस्कार ज़ीतेगा। लेक्तकन
रामन ने यह बात पूऱी गम्भ़ीरता से कह़ी थ़ी। महत्त्वाकांक्षा, साहस और पररश्रम उनका आिशण थे।
वह नोबेल पुरस्कार ज़ीतने के महत्त्वाकांक्ष़ी थे और इसक्तलये अपने शोि में तन-मन-िन लगाने
को तैयार थे। िुभाणग्य से रामन के नोबेल पुरस्कार ज़ीतने से पहले ह़ी मुखजी साहब चल बसे थे।
एक बार जब रामन अपने छारों के साथ द्रव के अणुओंद्वारा प्रकाश को क्तछतराने का अध्ययन
कर रहे थे क्तक उन्हें 'रामन इफे क्ट' का संके त क्तमला। सूयण के प्रकाश की एक क्तकरण को एक छोटे
से छेि से क्तनकाला गया और क्तफर बेन्ज़ीन जैसे द्रव में से गुजरने क्तिया गया। िूसरे छोर से
डायरेक्ट क्तवजन स्पेक्रोस्कोप द्वारा क्तछतरे प्रकाश—स्पेक्रम को िेखा गया। सूयण का प्रकाश एक
छोटे से छेि में से आ रहा था जो क्तछतऱी हुई क्तकरण रेखा या रेखाओंकी तरह क्तिखाई िे रहा था।
इन रेखाओंके अक्ततररि रामन और उनके छारों ने स्पेक्रम में कु छ असािारण रेखाएाँ भ़ी िेखीं।
उनका क्तवचार था क्तक ये रेखाएाँ द्रव की अशुद्धता के कारण थीं। इसक्तलए उन्होंने द्रव को शुद्ध
क्तकया और क्तफर से िेखा, मगर रेखाएाँ क्तफर भ़ी बऩी रहीं। उन्होंने यह प्रयोग अन्य द्रवों के साथ भ़ी
क्तकया तो भ़ी रेखाएाँ क्तिखाई िेत़ी रहीं।
इन रेखाओंका अन्वेषण कु छ वषों तक चलता रहा, इससे कु छ क्तवशेष पररणाम नहीं क्तनकला।
रामन सोचते रहे क्तक ये रेखाएाँ क्या हैं। एक बार उन्होंने सोचा क्तक इन रेखाओंका कारण प्रकाश
की कण़ीय प्रकृ क्तत है। ये आिुक्तनक भौक्ततकी के आरक्तम्भक क्तिन थे। तब यह एक नया क्तसद्धांत था
क्तक प्रकाश एक लहर की तरह भ़ी और कण की तरह भ़ी व्यवहार करता है।
18. रामन प्रभाव
भौक्ततकी का नोबेल पुरस्कार सन् 1927
में, अमेररका में, क्तशकागो क्तवश्वक्तवद्यालय के ए. एच.
कॉम्पटन को 'कॉम्पटन इफे क्ट' की खोज के
क्तलये क्तमला। कॉम्पटन इफे क्ट में जब एक्स-रे को
क्तकस़ी सामग्ऱी से गुजारा गया तो एक्स-रे में कु छ
क्तवशेष रेखाएाँ िेख़ी गईं। (प्रकाश की तरह की एक
इलेक्रोमेगनेक्तटक रेक्तडयेशन की क्तकस्म)।
कॉम्पटन इफे क्ट एक्स-रे कण़ीय प्रकृ क्तत के
कारण उत्पन्न होता है। रामन को लगा क्तक उनके
प्रयोग में भ़ी कु छ ऐसा ह़ी हो रहा है।
19. प्रकाश की ककरण कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह
व्यवहार कर रही थ ीं। फोटोन्स रसायन द्रव के अणुऔीं
पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक किके ट का बॉल
फु टबॉल पर करता है। किके ट का बॉल फु टबॉल से
टकराता तो तेज से है लेककन वह फु टबॉल को थोडा-
सा ही हहला पाता है। उसके ववपरीत किके ट का बॉल
स्वयीं दूसरी ओर कम शक्तत से उछल जाता है और
अपन कु छ ऊजाा फु टबाल के पास छोड जाता है। कु छ
असाधारण रेखाएँ देत हैं तयोंकक फोटोन्स इस तरह
कु छ अपन ऊजाा छोड देते हैं और छछतरे प्रकाश के
स्पेतरम में कई बबन्दुओीं पर हदखाई देते हैं। अन्य
फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं—न ऊजाा लेते हैं
और न ही छोडते हैं और इसललए स्पेतरम में अपन
सामान्य क्स्थछत में हदखाई देते हैं।
20. फोटोन्स में ऊजाण की कु छ कम़ी और इसके पररणाम स्वरूप स्पेक्रम में
कु छ असािारण रेखाएाँ होना 'रामन इफे क्ट' कहलाता है। फोटोन्स द्वारा
खोई ऊजाण की मारा उस द्रव रसायन के द्रव के अणु के बारे में सूचना
िेत़ी है जो उन्हें क्तछतराते हैं। क्तभन्न-क्तभन्न प्रकार के अणु फोटोन्स के
साथ क्तमलकर क्तवक्तवि प्रकार की पारस्पररक क्तिया करते हैं और ऊजाण
की मारा में भ़ी अलग-अलग कम़ी होत़ी है। जैसे यक्ति क्तिके ट बॉल,
गोल्फ बॉल या फु टबॉल के साथ टकराये। असािारण रामन रेखाओंके
फोटोन्स में ऊजाण की कम़ी को माप कर द्रव, िोस और गैस की आंतररक
अणु रचना का पता लगाया जाता है। इस प्रकार पिाथण की आंतररक
संरचना का पता लगाने के क्तलए रामन इफे क्ट एक लाभिायक उपकरण
प्रमाक्तणत हो सकता है। रामन और उनके छारों ने इस़ी के द्वारा कई
क्तकस्म के ऑक्तटटकल ग्लास, क्तभन्न-क्तभन्न पिाथों के क्तिस्टल, मोत़ी,
रत्न, ह़ीरे और क्वाटणज, द्रव यौक्तगक जैसे बैन्ज़ीन, टोल़ीन, पेनटेन और
कम्प्रेस्ड गैसों का जैसे काबणन डायाक्साइड, और
नाइरस ऑक्साइड इत्याक्ति में अणु व्यवस्था का पता लगाया।
21. रामन अपऩी खोज की घोषणा करने से पहले क्तबल्कु ल क्तनक्तश्चत होना चाहते थे। इन असािारण
रेखाओंको अक्तिक स्पि तौर से िेखने के क्तलए उन्होंने सूयण के प्रकाश के स्थान पर मरकऱी
वेपर लैम्प का इस्तेमाल क्तकया। वास्तव में इस तरह रेखाएाँ अक्तिक स्पि क्तिखाई िेने लगीं। अब
वह अपऩी नई खोज के प्रक्तत पूणणरूप से क्तनक्तश्चंत थे। यह घटना 28 फरवऱी सन् 1928 में घट़ी। अगले
ह़ी क्तिन वैज्ञाक्तनक रामन ने इसकी घोषणा क्तविेश़ी प्रेस में कर ि़ी। प्रक्ततक्तित पक्तरका 'नेचर' ने उसे
प्रकाक्तशत क्तकया। रामन ने 16 माचण को अपऩी खोज 'नई रेक्तडयेशन' के ऊपरबंगलौर में क्तस्थत
साउथ इंक्तडयन साइन्स एसोक्तसएशन में भाषण क्तिया। इफे क्ट की प्रथम पुक्ति जॉन हॉपक्तकन्स
यूक्तनवसणट़ी, अमेररका के आर. डधलयू. वुड ने की। अब क्तवश्व की सभ़ी प्रयोगशालाओंमें 'रामन
इफे क्ट' पर अन्वेषण होने लगा। यह उभरत़ी आिुक्तनक भौक्ततकी के क्तलये अक्ततररि सहायता थ़ी।
क्तविेश यारा के समय उनके ज़ीवन में एक महत्त्वपूणण घटना घक्तटत हुई। सरल शधिों में पाऩी के
जहाज से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे ऩीले पाऩी को िेखा। इस ऩीले पाऩी को िेखकर श्ऱी
रामन के मन में क्तवचार आया क्तक यह ऩीला रंग पाऩी का है या ऩीले आकाश का क्तसफण परावतणन।
बाि में रामन ने इस घटना को अपऩी खोज द्वारा समझाया क्तक यह ऩीला रंग न पाऩी का है न ह़ी
आकाश का। यह ऩीला रंग तो पाऩी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीणणन से उत्पन्न होता
है क्योंक्तक प्रकीणणन की घटना में सूयण के प्रकाश के सभ़ी अवयव़ी रंग अवशोक्तषत कर ऊजाण में
पररवक्ततणत हो जाते हैं, परंतु ऩीले प्रकाश को वापस परावक्ततणत कर क्तिया जाता है। सात साल की
कड़़ी मेहनत के बाि रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज 'रामन
प्रभाव' के नाम से प्रक्तसद्ध है।
22. राष्ऱीय क्तवज्ञान क्तिवस
'रामन प्रभाव' की खोज 28 फरवऱी 1928 को हुई थ़ी। इस महान खोज की
याि में 28 फरवऱी का क्तिन हम 'राष्ऱीय क्तवज्ञान क्तिवस' के रूप में मनाते
हैं।भारत में 28 फरवऱी का क्तिन 'राष्ऱीय क्तवज्ञान क्तिवस' के रूप में मनाया
जाता है। इस क्तिन वैज्ञाक्तनक लोग भाषणों द्वारा क्तवज्ञान और तकऩीकी
की उन्नक्तत और क्तवकास एवं उसकी उपलक्तधियों के बारे में सामान्य लोगों
व बच्चों को बताते हैं। इन्हीं क्तवषयों पर क्तफल्में और ट़ी. व़ी. फीचर क्तिखाये
जाते हैं। इस समय क्तवज्ञान एवं तकऩीकी पर प्रिशणक्तनयााँ लगत़ी हैं और
समारोह होते हैं क्तजनमें क्तवज्ञान और तकऩीकी में योगिान के क्तलये
इनाम और एवाडण क्तिये जाते हैं। सन् 1928 में इस़ी क्तिन िेश में सस्ते
उपकरणों का प्रयोग करके क्तवज्ञान की एक मुख्य खोज की गई थ़ी। तब
पूरे क्तवश्व को पता चला था क्तक क्तब्रक्तटश द्वारा शाक्तसत और क्तपछड़ा हुआ
भारत भ़ी आिुक्तनक क्तवज्ञान के क्षेर में अपना मौक्तलक योगिान िे सकता
है। यह खोज के वल भारत के वैज्ञाक्तनक इक्ततहास में ह़ी नहीं बक्तल्क
क्तवज्ञान की प्रगक्तत के क्तलए भ़ी एक म़ील का पत्थर प्रमाक्तणत हुई। इस़ी
खोज के क्तलए इसके खोजकताण को 'नोबल पुरस्कार' क्तमला।
23. व्यक्तित्व
श्ऱी वेंकटरामन के क्तवषय में खास बात है क्तक वे बहुत ह़ी सािारण
और सरल तऱीक़े से रहते थे। वह प्रकृ क्तत प्रेम़ी भ़ी थे। वे अक्सर
अपने घर से ऑक्तफस साइक्तकल से आया जाया करते थे। वे िोस्तों
के ब़ीच 'वैंकी' नाम से प्रक्तसद्ध थे। उनके माता-क्तपता िोनों
वैज्ञाक्तनक रहे हैं। एक साक्षात्कार में वेंकटरामन के क्तपता श्ऱी 'स़ी.
व़ी. रामकृ ष्णन' ने बताया क्तक 'नोबेल पुरस्कार सक्तमक्तत' के
सक्तचव ने लंिन में जब वेंकटरामन को फोन कर नोबेल पुरस्कार
िेने की बात कह़ी तो पहले तो उन्हें यकीन ह़ी नहीं हुआ। वेंकट
ने उनसे कहा क्तक 'क्या आप मुझे मूखण बना रहे हैं?' क्योंक्तक
नोबेल पुरस्कार क्तमलने से पहले अक्सर वेंकटरामन के क्तमर
फोन कर उन्हें नोबेल क्तमलने की झूि़ी खबर िेकर क्तचढाया
करते थे।'
24. स्वटनद्रिा रामन
रामन ने कई वषों तक एकान्तवास क्तकया। लेक्तकन वह सिा सक्तिय रहे। उन्हें बच्चों का साथ
बहुत भाता था। वह अक्सर अपने इंस्ट़ीट्यूट में स्कू ल के बच्चों का आमंक्तरत करते और घंटों उन्हें
इंस्ट़ीट्यूट और वहााँ की च़ीजें क्तिखाते रहते। वह बड़़ी क्तिलचस्प़ी से उन्हें अपने प्रयोग और
उपकरणों के बारे में समझाते। वह स्वयं स्कू लों में जाकर क्तवज्ञान पर भाषण िेते। वह बच्चों को
बताते क्तक क्तवज्ञान हमारे चारों ओर है और हमें उसका पता लगाना है। क्तवज्ञान के वल प्रयोगशाला
तक स़ीक्तमत नहीं है। वह बच्चों को कहते थे क्तक तारों, फू लों और आसपास घटत़ी घटनाओंको
िेखों और उनके बारे में सवाल पूछो। अपऩी बुक्तद्ध और क्तवज्ञान की सहायता से उ्तनरों की खोज
करो।
आज के कई ख्याक्तत प्राप्त वैज्ञाक्तनकों ने रामन की बातें और भाषण सुनकर ह़ी क्तवज्ञान को अपना
क्तवषय चुना था। वह आनेवाल़ी नई सुबह के अग्रिूत थे। चंद्रशेखर वेंकट रामन ने अपने ज़ीवन
काल में ह़ी रामन इफे क्ट के क्तलए क्तफर से आिुक्तनक प्रयोगशालाओंमें रुक्तच उत्पन्न होत़ी िेख़ी।
इसका श्रेय सन् 1960 में लेजर की खोज को जाता है—एक संसि और शक्तिशाल़ी प्रकाश।
पहले रामन इफे क्ट की स्पि तसव़ीर के क्तलए कई क्तिन लग जाते थे। लेजर से वह़ी पररणाम कु छ
ह़ी िेर में क्तमल जाता है। अब ज़्यािा से ज़्यािा क्षेरों में जैसे रसायन उद्योग, प्रिूषणकी समस्या,
िवाई उद्योग, प्राण़ी शास्त्र के अध्ययन में छोट़ी मारा में पाये जाने वाले रसायनों का पता लगाने
के क्तलए रामन इफे क्ट इस्तेमाल हो रहा है। रामन इफे क्ट आज उन च़ीजों के बारे में सूचना िे रहा
है क्तजसके बारे में रामन ने इसकी खोज के समय कभ़ी सोचा भ़ी नहीं था।
25. स्वतंर संस्थान की स्थापना
सन 1933 में डॉ. रामन को बंगलुरु में स्थाक्तपत 'इंक्तडयन
इंस्ट़ीट्यूट ऑफ साइंसेज' के संचालन का भार सौंपा गया।
वहााँ उन्होंने 1948 तक कायण क्तकया। बाि में डॉ.रामन ने
बेंगलूर में अपने क्तलए एक स्वतंर संस्थान की स्थापना की।
इसके क्तलए उन्होंने कोई भ़ी सरकाऱी सहायता नहीं ल़ी।
उन्होंने बैंगलोर में एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोि-
संस्थान ‘रामन ररसचण इंस्ट़ीट्यूट’ की स्थापना की। रामन
वैज्ञाक्तनक चेतना और दृक्ति की साक्षात प्रक्ततमूक्त्तनण थे। उन्होंने
हमेशा प्राकृ क्ततक घटनाओंकी छानब़ीन वैज्ञाक्तनक दृक्ति से
करने का संिेश क्तिया। डॉ.रामन अपने संस्थान में ज़ीवन के
अंक्ततम क्तिनों तक शोिकायण करते रहे।
26. ररसचण इंस्ट़ीट्यूट
सन 1948 में रामन का बंगलौर में अपना इंस्ट़ीट्यूट बनाने का सपना साकार हो
गया। इसे रामन ररसचण इंस्ट़ीट्यूट कहते हैं। उन्होंने अपऩी बचत का िन इकट्ठा
क्तकया, िान मााँगा, कु छ उद्योग आरम्भ क्तकए क्तजससे इंस्ट़ीट्यूट को चलाने के क्तलए
क्तनयक्तमत रूप से िन क्तमलता रहे।
इंस्ट़ीट्यूट की रचना में रामन की सुरुक्तच झलकत़ी है। संस्था के चारों ओर
बुगनक्तबला, जाकरन्िाज और गुलाब के फू लों के अक्ततररि यूक्तक्लपटस से लेकर
महोगऩी के पेड़ों की भरमार है। वातावरण एक उद्यान जैसा है।
यहााँ पर रामन अपऩी पसन्ि के क्तवषयों पर शोि और खोजब़ीन करते थे। कु छ भ़ी
जो चमकता है उनके अनुसंिान का क्तवषय बन जाता था। उन्होंने 300 ह़ीरे खऱीिे।
ह़ीरे को िोस का राजा कहते हैं। उन्होंने उनकी आंतररक संरचना और भौक्ततक गुणों
का अध्ययन क्तकया। पक्ष़ी के पंख, क्तततक्तलयााँ, ब़ीटल और फू लों की पक्त्तनयों तक ने
उन्हें आकक्तषणत क्तकया। उन्होंने यह अन्वेषण क्तकया क्तक ये सब इतने रंग-क्तबरंगे क्यों हैं।
इस अध्ययन के पररणामों से उन्होंने क्तवजन और कलर का क्तसद्धांत प्रक्ततपािन क्तकया
जो उन्होंने अपऩी पुस्तक 'ि क्तफक्तजयोलॉज़ी आफ क्तवजन' में क्तलखा है। इस क्तवषय ने
अभ़ी-अभ़ी वैज्ञाक्तनकों का ध्यान क्तफर अपऩी ओर आकक्तषणत क्तकया। रामन ये जानते थे
क्तक पक्तश्चम़ी िेशों में हो रहे अध्ययन से क्तभन्न क्तवषय, अध्ययन और शोि के क्तलये कै से
खोजें जायें।
27. सन 1947 में भारत के स्वतंर होने के पश्चात रामन को बड़़ी क्तनराशा हुई
क्योंक्तक उन्हें लगा क्तक िेश में क्तवज्ञान को क्तवकक्तसत करने के क्तलए कोई
क्तवशेष प्रयास नहीं क्तकया जा रहा, क्तजसके क्तलए वे इतना प्रयत्न कर रहे थे।
इसके क्तवपऱीत वैज्ञाक्तनकों को बड़़ी संख्या में उच्च क्तशक्षा के क्तलए क्तविेश
भेजा जाने लगा। यद्यक्तप वैज्ञाक्तनक अध्ययन के क्तलए अपने िेश में काफी
अवसर और बहुत ह़ी क्तवस्तृत क्षेर था। यह हमारा कतणव्य था क्तक हम क्तवज्ञान
का मूल आिार तैयार करें। इसके क्तलए हमें भ़ीतर िेखने की ह़ी जरूरत थ़ी।
अपने युवा वैज्ञाक्तनकों के सामने यह आिशण रखने के क्तलए क्तक क्तविेश़ी
क्तडक्तग्रयों और सम्मानों के प़ीछे नहीं भागना चाक्तहए, रामन ने स्वयं लन्िन
की 'रॉयल सोसाइट़ी' की सिस्यता से त्यागपर िे क्तिया। उन्हें इस बात से
बहुत घृणा थ़ी क्तक लोग राजऩीक्तत के द्वारा क्तवज्ञान का शोषण करें। उन्होंने
महसूस क्तकया क्तक क्तवज्ञान और राजऩीक्तत का कोई मेल नहीं है। क्तवज्ञान सिा
राजऩीक्तत से मात खा जायेगा। जब उनके सामने 'भारत के उपराष्रपक्तत' के
पि का प्रस्ताव रखा गया तो उन्होंने क्तबना एक क्षण भ़ी गंवाये उसे
अस्व़ीकार कर क्तिया। सन् 1954 में उन्हें 'भारत रत्न' की उपाक्ति से
सम्माक्तनत क्तकया गया। अब तक वह पहले और आक्तखऱी वैज्ञाक्तनक हैं क्तजन्हें
यह उपाक्ति क्तमल़ी है।
28. संग़ीत वाद्य यंर और अनुसंिान
डॉ.रामन की संग़ीत में भ़ी गहऱी रुक्तच थ़ी। उन्होंने
संग़ीत का भ़ी गहरा अध्ययन क्तकया था। संग़ीत वाद्य
यंरों की ध्वक्तनयों के बारे में डॉ. रामन ने अनुसंिान
क्तकया, क्तजसका एक लेख जमणऩी के एक 'क्तवश्वकोश'
में भ़ी प्रकाक्तशत हुआ था। वे बहू बाजार क्तस्थत
प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल
करके शोि कायण करते थे। क्तफर उन्होंने अनेक वाद्य
यंरों का अध्ययन क्तकया और वैज्ञाक्तनक क्तसद्धांतों के
आिार पर पक्तश्चम िेशों की इस भ्ांक्तत को तोड़ने का
प्रयास क्तकया क्तक भारत़ीय वाद्य यंर क्तविेश़ी वाद्यों की
तुलना में घक्तटया हैं।
29. सम्मान एवं पुरस्कार
डॉ.रामन को उनके योगिान के क्तलए भारत के सवोच्च पुरस्कार भारत
रत्न और नोबेल पुरस्कार, लेक्तनन पुरस्कार जैसे अंतराणष्ऱीय पुरस्कारों से सम्माक्तनत
क्तकया गया।
नोबेल पुरस्कार
रामन इफे क्ट की लोकक्तप्रयता और उपयोक्तगता का अनुमान इस़ी से लगा सकते हैं क्तक
खोज के िस वषण के भ़ीतर ह़ी सारे क्तवश्व में इस पर क़ऱीब 2,000 शोि पेपर प्रकाक्तशत
हुए। इसका अक्तिक उपयोग िोस, द्रव और गैसों की आंतररक अणु संरचना का पता
लगाने में हुआ। इस समय रामन के वल 42 वषण के थे और उन्हें ढेरों सम्मान क्तमल चुके
थे।
रामन को यह पूरा क्तवश्वास था क्तक उन्हें अपऩी खोज के क्तलए 'नोबेल पुरस्कार'
क्तमलेगा। इसक्तलए पुरस्कारों की घोषणा से छः मह़ीने पहले ह़ी उन्होंने स्टॉकहोम के
क्तलए क्तटकट का आरक्षण करवा क्तलया था। नोबेल पुरस्कार ज़ीतने वालों की घोषणा
क्तिसम्बर सन् 1930 में हुई।
रामन पहले एक्तशयाई और अश्वेत थे क्तजन्होंने क्तवज्ञान में नोबेल पुरस्कार ज़ीता था। यह
प्रत्येक भारत़ीय के क्तलए गवण की बात थ़ी। इससे यह स्पि हो गया क्तक क्तवज्ञान के क्षेर
में भारत़ीय क्तकस़ी यूरोक्तपयन से कम नहीं हैं। यह वह समय था जब यूरोक्तपयन क्तवज्ञान
पर अपना एकाक्तिकार समझते थे। इससे पहले सन् 1913 में रव़ीन्द्रनाथ
टैगोर साक्तहत्य के क्तलए नोबेल पुरस्कार पा चुके थे।
30. नोबेल पुरस्कार के पश्चात रामन को क्तवश्व के अन्य भागों से कई
प्रक्ततक्तित सम्मान प्राप्त हुए। िेश में क्तवज्ञान को इससे बहुत ह़ी प्रोत्साहन
क्तमला। यह उपलक्तधि वास्तव में एक ऐक्ततहाक्तसक घटना थ़ी। इससे भारत के
स्वतंरता पूवण के क्तिनों में कई युवक-युवक्ततयों को क्तवज्ञान का क्तवषय लेने
की प्रेरणा क्तमल़ी।
इस महान खोज 'रामन प्रभाव' के क्तलये 1930 में श्ऱी रामन को 'भौक्ततकी
का नोबेल पुरस्कार' प्रिान क्तकया गया और रामन भौक्ततक क्तवज्ञान में
नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले एक्तशया के पहले व्यक्ति बने। रामन की
खोज की वजह से पिाथों में अणुओंऔर परमाणुओंकी आंतररक संरचना
का अध्ययन सहज हो गया। पुरस्कार की घोषणा के बाि वेंकटरामन ने
अपऩी प्रक्ततक्तिया िेते हुए कहा क्तक-
"म़ीक्तडया का ज़्यािा ध्यान वैज्ञाक्तनकों के काम पर तब जाता है जब उन्हें
पक्तश्चम में बड़े सम्मान या पुरस्कार क्तमलने लगते हैं। ये तऱीक़ा ग़लत है,
बक्तल्क होना ये चाक्तहए क्तक हम अपने यहााँ काम कर रहे वैज्ञाक्तनकों, उनके
काम को जानें और उसके बारे में लोगों को बताएं। उन्होंने कहा क्तक भारत
में कई वैज्ञाक्तनक अच्छे काम कर रहे हैं, म़ीक्तडया को चाक्तहए क्तक उनसे क्तमले
और उनके काम को सराहे, साथ ह़ी लोगों तक भ़ी पहुंचाए।"
31. "जब नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई थ़ी तो मैं ने इसे अपऩी
व्यक्तिगत क्तवजय माना, मेरे क्तलए और मेरे सहयोक्तगयों के क्तलए
एक उपलक्तधि - एक अत्यंत असािरण खोज को मान्यता ि़ी गई
है, उस लक्ष्य तक पहुंचने के क्तलए क्तजसके क्तलए मैंने सात वषों से
काम क्तकया है। लेक्तकन जब मैंने िेखा क्तक उस खचाखच हॉल मैंने
इिण-क्तगिण पक्तश्चम़ी चेहरों का समुद्र िेखा और मैं, के वल एक ह़ी
भारत़ीय, अपऩी पगड़़ी और बन्ि गले के कोट में था, तो मुझे
लगा क्तक मैं वास्तव में अपने लोगों और अपने िेश का
प्रक्ततक्तनक्तित्व कर रहा हूं। जब क्तकं ग गुस्टाव ने मुझे पुरस्कार क्तिया
तो मैंने अपने आपको वास्तव में क्तवनम्र महसूस क्तकया, यह
भावप्रवण पल था लेक्तकन मैं अपने ऊपर क्तनयंरण रखने में सफल
रहा। जब मैं घूम गया और मैंने ऊपर क्तब्रक्तटश यूक्तनयन जैक िेखा
क्तजसके ऩीचे मैं बैिा रहा था और तब मैंने महसूस क्तकया क्तक मेरे
ग़ऱीब िेश, भारत, का अपना ध्वज भ़ी नहीं है।" - स़ी.व़ी. रमण
32. भारत रत्न
डॉ.रामन का देश-ववदेश की प्रख्यात वैज्ञाछनक
सींस्थाओीं ने सम्मान ककया। तत्कालीन भारत
सरकार ने 'भारत रत्न' की सवोच्च उपाधध
देकर सम्माछनत ककया।
लेछनन पुरस्कार
सोववयत रूस ने उन्हें 1958 में 'लेछनन
पुरस्कार' प्रदान ककया।