1. याष्ट्र-पऩता को बावाॊजलर
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राष्ट्र-पिता को भावाांजलि
याष्ट्रपऩता भहात्भा गाॊधी एक पवयर पवबूनत थे । उनकी याष्ट्र-बक्क्त आध्मात्भ की
गूढ़-गहन गहयाइमों से सत्म औय अहहॊसा के लसदधाॊतों को ऩोपषत कय त्माग,
सभऩपण, ननष्ट्ठा, दीघप-दृक्ष्ट्ि औय अदपवतीम कभपठता से बायत के उत्कषप के लरए
जन-जागृनत औय जन-आॊदोरन को चैतन्म प्रदान कयती हुई, वैक्ववकता के असीभ
क्षऺनतजों को व्माऩक फनाती हुई, पै रती यही । वे अनन्म याभबक्त थे औय गीता
के लसदधाॊतों को जीवन भें उतायकय उजागय कयने वारे कृ ष्ट्णबक्त थे । याभनाभ
ही उनके अॊनतभ उदगाय थे । रगबग ३८ वषों तक श्रीभदबगवदगीता के उनके
आचयण-भूरक अभ्मास के उऩयाॊत उन्होंने गुजयाती भें एक छोिे से बाष्ट्म की यचना
की थी, क्जसका शीषपक है – अनासक्क्त मोग । वे देश की सेवा को भानवता की
सेवा भानकय अऩनी प्रत्मेक क्रिमा को देशहहत भें सभपऩपत कयने वारे सत्मननष्ट्ठ
कभपमोगी थे । अऩनी सयर, लशष्ट्िाचायऩूणप जीवनशैरी भें वे स्वच्छता के ऩयभ
आग्रही थी । कामपननष्ट्ठा, कामप-कु शरता, श्रेष्ट्ठता औय गुणवत्ता के प्रनत उनकी
आचयण-भूरक ननष्ट्ठा हभेशा सफ को प्रेयणा औय सी ी़ख / सफक देती हुई, जड़, सोए
हुए सभाज भें नवचेतना का सॊचाय कयती यही । बायतीम सभाज की वणप-व्मवस्था
भें व्माप्त दूषणों के कायण पै री अस्ऩृवमता जैसी कु यीनतमों के ननभूपरन के लरए वे
जीवनऩमंत सॊघषपयत यहे । याष्ट्रसेवा भें सवपस्व सभपऩपत कयके बायतीम
जीवनभूल्मों को गौयवाॊपवत कयती पवचायधाया को अऩनाकय देश भें बाईचाया, एक-
सूत्रता स्थापऩत कय फनाए यखने भें रगी यही अऩनी जीवन-साधना के कायण वे
याष्ट्रपऩता कहराए ।
औय (बायत की) क्जस स्वतॊत्रता के लरए उन्होंने इतना ऩुरुषाथप क्रकमा, वह फॉिवाया
औय अॊधी याजनैनतक भहत्वाकाॊऺाओॊ से प्रेरयत क्रेश, हहॊसा, अयाजकता औय
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अव्मवस्था रेकय आई ! ऐसा होना उनके लरए क्रकतना पवकि, क्रकतना कष्ट्िदामक
यहा होगा, इसकी कल्ऩना हभ कय सकें , क्मा इतनी सॊवेदनशीरता हभभें है ? उस
ऩरयक्स्थनत भें उनके ननणपमों भें पववशता औय असभॊजस का प्रबाव होना स्वाबापवक
था । दो फेिों के फीच होते झगडों भें अक्सय भाता-पऩता अधधक उग्र हो यही
सॊतान को सहनशीरता का वास्ता देकय ऩरयक्स्थनत को ननमॊत्रण भें यखने का प्रमास
कयते हैं । फाऩू का ऐसा ही कु छ कयना उधचत न होने ऩय बी, इसके लरए उनकी
हत्मा कय देना औय वास्तपवक दोपषमों को भनभानी कयने देना क्रकस प्रकाय की
फुदधधभता का प्रदशपन था ? क्जन रोगों की रोबी भहत्त्वाकाॊऺाएॉ फाऩू के कष्ट्ि,
उनके असहाम फन जाने के लरए क्जम्भेदाय थीॊ, उन्हें योकने के मा उन्हें सफक
सीखाने के प्रमास क्मों नहीॊ क्रकए गए ? उन्हें आिोश का लशकाय क्मों नहीॊ
फनामा गमा ? उनकी भनभानी को क्मों सपर होने हदमा गमा ? औय क्जन्हें ऩद
मा याजनैनतक सत्ता की कोई रारसा न थी, क्जनकी याष्ट्रबक्क्त उस कष्ट्िदामी दौय
भें उनसे हुई “बूरों” से कहीॊ अधधक सच्ची औय भूल्मवान थी, ऐसे ऩयभवॊदनीम
याष्ट्रपऩता की हत्मा क्मों की गई ? उससे क्मा हालसर हुआ ?
याष्ट्रपऩता की हत्मा के घृणणत कभप को सही भाननेवारों / जतानेवारों की सोच औय
सभझ ऩवचाताऩ औय प्रामक्वचत के भागप से होती हुई आदशों की सही हदशा औय
कामपऺेत्र प्राप्त कये मह फहुत ही आववमक है । उतना ही आववमक मा शामद
उससे अधधक आववमक है, उनकी याह ऩय चरने के भ्रभ भें जीनेवारे उन रोगों का
भ्रभ िूिना, क्जनका दम्ब औय खोखराऩन उनके अऩने तथा सभाज के हहतों को
अॊदय ही अॊदय खाए जा यही असाध्म फीभायी की तयह पर-पू र यहा है ।
याष्ट्रपऩता के जीवन के उच्च्तभ आदशों को सभपऩपत प्रेयणादामी जीवन का
शभपनाक, कष्ट्िदामक अॊत बायत के इनतहास के सवापधधक दु:खद अध्मामों भें से
एक है । याष्ट्रपऩता भहात्भा गाॊधी सहहत बायत-बूलभ को ऩावन कयके अऩने
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जीवनकामप से भानव-जीवन को सही हदशा प्रदान कयनेवारी सबी पवबूनतमों के प्रनत
हभायी सोच, हभायी श्रदधा साप-सुथयी-ऩरयष्ट्कृ त हो, साक्त्वक हो मह आज के सभम
भें हभाये सभाज के लरए अनत आववमक है । अधधकायों के प्रनत अॊधी जागरूकता
ने अव्मवस्था की क्जस आॊधी के कहय भें सभाज को झोंक हदमा है, उसका शभन
जागृत कतपव्मननष्ट्ठा की प्रफरता से ही सम्बव होगा । मोग्मता, आदशप औय
गुणवत्ता के प्रनत हभायी उदासीनता, उनकी अवहेरना कयने की हभायी वृपत्त-प्रवृपत्त
कफ िरेगी ? इस हदशा भें प्राभाणणकता से क्रकए गए सफर प्रमास ही फाऩू को
हभायी सच्ची श्रदधाॊजलर, पवनम्र बावाॊजलर होगी ।
- वननता ठक्कय (३०-०९-२०१८ से ०२-१०-२०१८)