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कर्मण्येवाधिकारस्ते
वनिता ठक्कर Page 1
E-mail : vanitaa.thakkar@gmail.com
कर्मण्येवाधिकारस्ते
(2) गुणानुराग
भारतीय संस्कृ नत प्राचीि और सुववकससत है । मािव अस्स्तत्व की ववसभन्ि
अवस्थाओं और स्तरों का गहि और ववस्तृत अभ्यास भारतीय ववचारधाराओं,
परम्पराओं और जिजीवि का आधार बिा । वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण,
महाभारत, श्रीमद् भगवद् गीता जैसे ग्रंथों में ददए जीवि मूल्यों के शाश्वत /
आध्यस्त्मक वैचाररक, सामास्जक और वैज्ञानिक तथ्यों को खुले, निष्पक्ष मि और
सूक्ष्म वववेक से समझिा आवश्यक है । कृ ष्ण में स्जि (अव)गुणों को आरोवपत
करके लोग अपिी लम्पट-लोभी और कपटी वृवियों को पोवषत करते हैं, उन्हें
देखकर ऐसा लगता है कक क्या ऐसी ववभूनत को ईश्वर मािा जाएगा ? मैं तो
कभी ि मािूूँ !! अपिी पुस्तक प्रीनत और अध्ययि के प्रनत थोड़े लगाव की
वजह से (कु छ ददिों पूवव ही अिायास) मुझे यह ज्ञात हुआ कक हमारे शास्र भी
यही कहते हैं । संत तुलसीदास-कृ त श्री रामचररत मािस में उल्लेख है कक
हमारे शास्रों के अिुसार, भगवाि उन्हें मािा जाता है जो सम्पूणव ऐश्वयव, धमव,
यश, श्री, ज्ञाि और वैराग्यरूप छ: ईश्वरीय गुणों से युक्त हों । योग और योग
परम्पराओं की जििी, हमारी मातृभूसम, हमारी भारत भूसम पर ईश्वर और
ईश्वरीय गुणों की धारणा का स्तर इतिा िीचे उतर आया है ??!! क्यों और
कै से ? और इससे भी महत्त्वपूणव है यह समझिा कक इस समस्या को, ऐसी
गलत सोच / धारणा को दूर करिा अनत आवश्यक है ।
यदद पररस्स्थनतवश कृ ष्ण िे या ककसी अन्य ववभूनत िे या हमारे ककसी पूववज िे
कु छ ऐसा ककया जो हमारी समझ या स्वीकृ नत के दायरों से आगे हो / दूर हो,
तो उिकी ऐसी बातों / चेष्टाओं को दोहराकर या उसे अधधक व्यापक रूप देकर
क्या हम उिका िाम अधधक रोशि कर रहे हैं या उिकी सद्गनत सुनिस्श्चत कर
रहे हैं ?! राष्रवपता महात्मा गान्धी अपिे बुरे अक्षरों के प्रनत खेद व्यक्त करके
कहते थे कक उिके दुगुवणों का अिुसरण ि ककया जाए । दुगुवणों को ढूूँढ़िे की
कर्मण्येवाधिकारस्ते
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अकसर अनियंत्ररत और अववरत लालसा के पीछे हमारी कौि-सी दुबवलता है और
उसे हम दूर क्यों िहीं कर पा रहे हैं, इस प्रश्ि के उिर में अिेक समस्याओं का
हल नछपा हुआ है । एक व्यस्क्त के रूप में, एक समाज के रूप में इस
समस्या को सुलझािे के प्रयास हर प्रकार से लाभदायक होंगे ।
भारतीय संस्कृ नत सिाति (दहन्दू) धमव की ववचारधारा पर आधाररत है और उसी
से पोवषत होकर फली-फू ली है । इस ववचारधारा की लाक्षणणकता है उसका
चैतन्य और वववेक से ओत-प्रोत खुलापि ! प्रकृ नत में व्याप्त पारस्पररकता के
संजोती मयावदाओं का नियमि अवश्य है – और आवश्यक भी है ! साथ ही,
प्रकृ नत की सजविशीलता, िवविता से छलकती ताजगी और सौन्दयव से अिुरंस्जत
अिंत मुक्त ववहार है । जीवि का ऐसा ही सुन्दर – माटी और फू लों की
सुगन्ध से भरी हवाओं की तरह गुिगुिाता, झरिों की तरह बहता और
णखलणखलाता स्वरूप इस ववचारधारा िे प्रस्तुत ककया है ।
मािव अस्स्तत्व की ववसभन्ि अवस्थाओं और स्तरों का स्जतिा गहि और
ववस्तृत अभ्यास हमारी संस्कृ नत में ककया गया है वह अन्यर हुआ हो ऐसा
दृस्ष्टगोचर िहीं होता । सिाति धमव की ववचारधारा / शास्रों-ग्रंथों में आध्यात्म
की चरम सीमा / अिंतता के ववराटतम और सूक्ष्मतम आयामों का अभ्यास और
मागवदशवि है । यहाूँ निगुवण-निराकार और सगुण-साकार साधिा पंथों में रही
अन्योन्यपूरकता, ववववधता में रही एकता और हर पद्धनत की साथवकता सह
स्वीकृ नत दशावता, पयावप्त और पूणवतालक्षी अभ्यास और मागवदशवि उपलब्ध है ।
अपिे अल्प अभ्यास और सीसमत क्षमताओं के बावजूद मेरा पूरी िम्रता और
दृढ़ता के साथ ऐसा ववश्वास है कक प्राचीितम और सवावधधक संशोधधत होिे के
कारण हमारी संस्कृ नत और धमव आधुनिक गणणत में पढ़ाई जाती सेट धथयरी के
एक ऐसे युनिवसवल सेट के समाि हैं स्जसमें अन्य सभी धमव सम्बन्धी
ववचारधाराएूँ सबसेट बिकर समादहत हो जाती हैं । और हमारे इस युनिवसवल
सेट में उि ववचारधाराओँ में जािी और मािी गई बातों / तथ्यों के उपरांत भी
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कई-कई बातें और तथ्य हैं स्जिको जीवि में उतारिे से साम्प्रत सामास्जक,
वैज्ञानिक और निरंतरता (sustainability) जैसी अस्स्तत्त्व सम्बन्धी अिेकों
समस्याओं का समुधचत निराकरण हो सकता है । बौद्ध धमव का उद्भव भारत
में हुआ और भगवाि बुद्ध को सिाति ववचारधारा के अंतगवत सृस्ष्ट के लालि-
पालि के सलए उिरदायी, िारायण स्वरूप, भगवाि ववष्णु के अवतार के रूप में
स्वीकार ककया गया है । एसशया महाद्वीप के अिेक देशों में वह प्रसाररत
होकर स्थावपत हुआ । इस बात का राजकीय लाभ उठाकर उि देशों पर प्रत्यक्ष
या परोक्ष रूप से अपिा प्रभुत्त्व स्थावपत करिे की चेष्टा भारत िे कभी िहीं
की । एक भारतीय होिे के िाते इस बात का मुझे बेहद संतोष और गवव है ।

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Karmanyevaadhikaaraste - 2 : Love for Godly Qualities - Gunaanuraag (गुणानुराग) : Vanita Thakkar

  • 1. कर्मण्येवाधिकारस्ते वनिता ठक्कर Page 1 E-mail : vanitaa.thakkar@gmail.com कर्मण्येवाधिकारस्ते (2) गुणानुराग भारतीय संस्कृ नत प्राचीि और सुववकससत है । मािव अस्स्तत्व की ववसभन्ि अवस्थाओं और स्तरों का गहि और ववस्तृत अभ्यास भारतीय ववचारधाराओं, परम्पराओं और जिजीवि का आधार बिा । वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीमद् भगवद् गीता जैसे ग्रंथों में ददए जीवि मूल्यों के शाश्वत / आध्यस्त्मक वैचाररक, सामास्जक और वैज्ञानिक तथ्यों को खुले, निष्पक्ष मि और सूक्ष्म वववेक से समझिा आवश्यक है । कृ ष्ण में स्जि (अव)गुणों को आरोवपत करके लोग अपिी लम्पट-लोभी और कपटी वृवियों को पोवषत करते हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कक क्या ऐसी ववभूनत को ईश्वर मािा जाएगा ? मैं तो कभी ि मािूूँ !! अपिी पुस्तक प्रीनत और अध्ययि के प्रनत थोड़े लगाव की वजह से (कु छ ददिों पूवव ही अिायास) मुझे यह ज्ञात हुआ कक हमारे शास्र भी यही कहते हैं । संत तुलसीदास-कृ त श्री रामचररत मािस में उल्लेख है कक हमारे शास्रों के अिुसार, भगवाि उन्हें मािा जाता है जो सम्पूणव ऐश्वयव, धमव, यश, श्री, ज्ञाि और वैराग्यरूप छ: ईश्वरीय गुणों से युक्त हों । योग और योग परम्पराओं की जििी, हमारी मातृभूसम, हमारी भारत भूसम पर ईश्वर और ईश्वरीय गुणों की धारणा का स्तर इतिा िीचे उतर आया है ??!! क्यों और कै से ? और इससे भी महत्त्वपूणव है यह समझिा कक इस समस्या को, ऐसी गलत सोच / धारणा को दूर करिा अनत आवश्यक है । यदद पररस्स्थनतवश कृ ष्ण िे या ककसी अन्य ववभूनत िे या हमारे ककसी पूववज िे कु छ ऐसा ककया जो हमारी समझ या स्वीकृ नत के दायरों से आगे हो / दूर हो, तो उिकी ऐसी बातों / चेष्टाओं को दोहराकर या उसे अधधक व्यापक रूप देकर क्या हम उिका िाम अधधक रोशि कर रहे हैं या उिकी सद्गनत सुनिस्श्चत कर रहे हैं ?! राष्रवपता महात्मा गान्धी अपिे बुरे अक्षरों के प्रनत खेद व्यक्त करके कहते थे कक उिके दुगुवणों का अिुसरण ि ककया जाए । दुगुवणों को ढूूँढ़िे की
  • 2. कर्मण्येवाधिकारस्ते वनिता ठक्कर Page 2 E-mail : vanitaa.thakkar@gmail.com अकसर अनियंत्ररत और अववरत लालसा के पीछे हमारी कौि-सी दुबवलता है और उसे हम दूर क्यों िहीं कर पा रहे हैं, इस प्रश्ि के उिर में अिेक समस्याओं का हल नछपा हुआ है । एक व्यस्क्त के रूप में, एक समाज के रूप में इस समस्या को सुलझािे के प्रयास हर प्रकार से लाभदायक होंगे । भारतीय संस्कृ नत सिाति (दहन्दू) धमव की ववचारधारा पर आधाररत है और उसी से पोवषत होकर फली-फू ली है । इस ववचारधारा की लाक्षणणकता है उसका चैतन्य और वववेक से ओत-प्रोत खुलापि ! प्रकृ नत में व्याप्त पारस्पररकता के संजोती मयावदाओं का नियमि अवश्य है – और आवश्यक भी है ! साथ ही, प्रकृ नत की सजविशीलता, िवविता से छलकती ताजगी और सौन्दयव से अिुरंस्जत अिंत मुक्त ववहार है । जीवि का ऐसा ही सुन्दर – माटी और फू लों की सुगन्ध से भरी हवाओं की तरह गुिगुिाता, झरिों की तरह बहता और णखलणखलाता स्वरूप इस ववचारधारा िे प्रस्तुत ककया है । मािव अस्स्तत्व की ववसभन्ि अवस्थाओं और स्तरों का स्जतिा गहि और ववस्तृत अभ्यास हमारी संस्कृ नत में ककया गया है वह अन्यर हुआ हो ऐसा दृस्ष्टगोचर िहीं होता । सिाति धमव की ववचारधारा / शास्रों-ग्रंथों में आध्यात्म की चरम सीमा / अिंतता के ववराटतम और सूक्ष्मतम आयामों का अभ्यास और मागवदशवि है । यहाूँ निगुवण-निराकार और सगुण-साकार साधिा पंथों में रही अन्योन्यपूरकता, ववववधता में रही एकता और हर पद्धनत की साथवकता सह स्वीकृ नत दशावता, पयावप्त और पूणवतालक्षी अभ्यास और मागवदशवि उपलब्ध है । अपिे अल्प अभ्यास और सीसमत क्षमताओं के बावजूद मेरा पूरी िम्रता और दृढ़ता के साथ ऐसा ववश्वास है कक प्राचीितम और सवावधधक संशोधधत होिे के कारण हमारी संस्कृ नत और धमव आधुनिक गणणत में पढ़ाई जाती सेट धथयरी के एक ऐसे युनिवसवल सेट के समाि हैं स्जसमें अन्य सभी धमव सम्बन्धी ववचारधाराएूँ सबसेट बिकर समादहत हो जाती हैं । और हमारे इस युनिवसवल सेट में उि ववचारधाराओँ में जािी और मािी गई बातों / तथ्यों के उपरांत भी
  • 3. कर्मण्येवाधिकारस्ते वनिता ठक्कर Page 3 E-mail : vanitaa.thakkar@gmail.com कई-कई बातें और तथ्य हैं स्जिको जीवि में उतारिे से साम्प्रत सामास्जक, वैज्ञानिक और निरंतरता (sustainability) जैसी अस्स्तत्त्व सम्बन्धी अिेकों समस्याओं का समुधचत निराकरण हो सकता है । बौद्ध धमव का उद्भव भारत में हुआ और भगवाि बुद्ध को सिाति ववचारधारा के अंतगवत सृस्ष्ट के लालि- पालि के सलए उिरदायी, िारायण स्वरूप, भगवाि ववष्णु के अवतार के रूप में स्वीकार ककया गया है । एसशया महाद्वीप के अिेक देशों में वह प्रसाररत होकर स्थावपत हुआ । इस बात का राजकीय लाभ उठाकर उि देशों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपिा प्रभुत्त्व स्थावपत करिे की चेष्टा भारत िे कभी िहीं की । एक भारतीय होिे के िाते इस बात का मुझे बेहद संतोष और गवव है ।