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तुम्हें किसिी चाह ?
प्रणाम / नमस्ते – शान्ता शमाा
बहारों िी मंद-मंद हवा,
गमी में िोयल िा गान,
वर्ाा िे घने बादल,
मन में प्रखर शांतत,
….. इनमें तुम्हें किसिी चाह ?
मानससि सद्भावों िे फू ल,
पेड़ों िी आराम छाया,
नये सुमन फु लवारी िे ,
मधुर स्पशा किसलय िा,
….. इनमें तुम्हें किसिी चाह ?
आँखों में किसिी थाह ?
भूधरों में किसिी आह ?
थामे रहे किसिी बाँह ?
जाए तो किसिी पनाह ?
….. इनमें तुम्हें किसिी चाह ?
चाँद िा किरण-सार,
चाति-स्वातत िा प्यार,
िे सर िा प्रप्रय पराग,
लताओं िा सहज अनुराग,
….. इनमें तुम्हें किसिी चाह ?
“स्वगा इि अनोखा वहाँ”
हम भौरों िा क्या िहना,
आज इधर िल िहीं उधर,
मस्ती ले अपने साथ चले
पराग-िण बबखेर चले |
चंपा थी िल िली-िली,
हमें देख अब खुली-खखली,
जलज हँसा सूरज तनिला,
हमनें चखा मधुरस अहा |
पीिर आज़ादी की अद्भुत अमी,
प्यार लुटािर फू लों िा,
िष्ट भुला इन िाँटों िा,
हम छोड़ चले अरमान भले |
बुरा भला सब भूल चले,
सबिो अपना मान चले,
देखे हमने चमन हरे,
झूल इन डालों िे संग हहले |
हमारा अपना और पराया िहाँ ?
सब आबाद चमन में साथ यहाँ,
प्रीत-प्रेम से जुड़ बँधे जहाँ,
देखा स्वगा इि अनोखा वहाँ |

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