1. अन्योन्याश्रय ? (एक दूजे के लिए ?)
- नमस्ते / प्रणाम – शान्ता शमाा
कहते हैं, सूरज उगता तो ददन ननकिता है !
बताओ तो, क्या ददन ननकिने से सूरज न उगता है ?
कहते हैं, रात आने पर अन्धेरा छाता है !
बताओ तो, क्या अन्धेरा छाने पर रात न होती है ?
चन्र के घटने-नघसने से अमावास्या पड़ती है !
बताओ तो, अमावास्या के आने से चााँद न ओझि होता है ?
कहते हैं, तुम्हें सुनाने ही मैं बोिा करती हूाँ !
बताओ तो, क्या तुम न सुनते तो मैं न बोिती ?
कहते हैं, हम जीने के लिए ही खाते हैं !
बताओ तो, क्या खाने के लिए िोग न जीते हैं ?
कहते हैं, कि की आशा िेकर ही सब जीते हैं !
बताओ तो, क्या ननराश िोग जीते नहीीं हैं ?
कहते हैं, ‘हााँ’ के अस्स्तत्व से ‘न’ का जन्म होता है !
बताओ तो, क्या ‘न’ की उपस्स्िनत से ‘हााँ’ की अनुपस्स्िनत न होती है ?
कहते हैं, हवा चिती है तो पत्ते दहिते हैं !
बताओ तो, क्या पत्तों के दहिने से हवा न चिती है ?
कहते हैं, कक अच्छाई है तभी बुराई भी जनमती है !
बताओ तो, क्या बुराई नहीीं होती तो अच्छाई भी न होती ?
कहते हैं, अशास्न्त की मौजूदगी में शास्न्त लमट जाती है !
बताओ तो, क्या शास्न्त की मौत पर अशास्न्त न पैदा होती है ?
2. कहते हैं, कक महासागर हैं, िहरों को आश्रय देते हैं !
बताओ तो, क्या िहरों के न होने से सागर मर जाते हैं ?
(क्या िहरें अन्य जिाशय में न जीववत रहती हैं ?)
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