WASH( Water Sanitation and Hygiene) by Dr Sushma Singh
Chapter 6 the judiciary xi
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अध्याय – 6 (XI)
न्यायपालिका
न्यायपालिका सरकार का महत्वपूर्ण तीसरा अंग हैं । जिसे ववलिन्न व्यजततयों या ननिी संस्थाओं
ने आपसी वववादों को हि करने वािे पंच के रूप में देखा िाता हैं । िो कानून के शासन की
रक्षा और कानून की सवोच्चता को सुननजचचत करें । इसके लिए यह िरूरी हैं कक न्यायपालिका
ककसी िी रािनीनतक दबाव से मुतत होकर स्वतंत्र ननर्णय िे सके । न्यायपालिका देश के संववधान
िोकताजन्त्रक परंपरा और िनता के प्रनत िवाबदेह हैं ।
ववधानयका और कायण पालिका, न्यायपालिका के कायों से ककसी प्रकार की बाधा न पहुंचे और
न्यायपालिका ठीक प्रकार से कायण कर सके । तथा न्यायाधीश बबना िय या िेदिाव के अपना
कायण कर सकें ।
न्यायाधीश के रूप में ननयुतत होने के लिए ककसी व्यजतत को वकाित का अनुिव या कानून का
ववशेषज्ञ होना चाहहए । इनका ननजचचत कायणकाि होता हैं । वे सेवा ननवृत्त होने तक पद पर बने
रहते हैं । ववशेष जस्थनतयों में न्यायाधीशों को हटाया िा सकता हैं ।
न्यायपालिका, ववधानयका या कायण पालिका पर ववत्तीय रूप से ननिणर नहीं हैं ।
न्यायाधीश की ननयुजतत
मंत्री मण्डि, राज्यपाि, मुख्यमंत्री और िारत के मुख्य न्यायाधीश – ये सिी न्यानयक ननयुजतत
की प्रकिया को प्रिाववत करते हैं । मुख्य न्यायाधीश की ननयुजतत के संदिण में यह परंपरा िी हैं
कक सवोच्च न्यायािय के सबसे वररष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश चुना िाता हैं । ककन्तु
िारत में इस परंपरा को दो बार तोड़ा िी गया हैं । सवोच्च न्यायािय और उच्च न्यायािय के
अन्य न्यायाधीश की ननयुजतत राष्रपनत िारत के मुख्य न्यायाधीश की सिाह से करता हैं । ताकक
न्यायािय की स्वतन्त्रता व शजतत संतुिन दोनों बने रहें ।
न्यायपालिका की वपरालमड रूपी संरचना
सवोच्च न्यायािय
उच्च न्यायािय
जििा न्यायािय
अधीनस्थ न्यायािय
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सवोच्च न्यायािय का क्षेत्राधधकार
ररट
मौलिक अधधकारों का संरक्षर्, राष्रपनत उपराष्रपनत के चुनाव संबंधधत वववाद हि करना ।
अपीिीय
दीवानी फ़ौिदारी व संवैधाननक सवािों से िुड़े अधीनस्थ न्यायाियों के मुकदमों पर अपीि
सुनना ।
सिाहकारी
िनहहत के मामिों तथा कानून के मसिों पर राष्रपनत को सिाह देना ।
ववशेषाधधकार
ककसी िारतीय अदाित के हदये गए फै सिे पर स्पेशि िाइव वपटीशन के तहत अपीि पर
सुनवाई करना ।
िारत में न्यानयक सकियता का मुख्य साधन िनहहत याधचका या सामाजिक व्यवहार याधचका रही
हैं । 1979 - 80 के बाद िनहहत याधचकाओं और न्यानयक सकियता के द्वारा न्यायाधीश ने उन
मामिों में रुधच हदखाई िहां समाि के कु छ वगों के िोग आसानी से अदाित की सेवाएँ नहीं िे
सकते हैं । इस उद्देचय की पूनतण हेतु न्यायािय ने िन सेवा की िावना से िरे नागररक सामाजिक
संगठन और वकीिों को समाि के िरूरतमन्द और गरीब िोगों की और से याधचकाएँ दायर करने
की इिाित दी ।
आरंलिक क्षेत्राधधकार मौलिक अधधकार
कें द्र और राज्यों के बीच वववादों का ननपटारा ।
न्यायािय के कायण
ररट अपीिीय ववशेषाधधकार सिाहकारी
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न्यानयक सकियता ने न्याय व्यवस्था को िोकताजन्त्रक बनाना और कायण पालिका उत्तरदायी बनाने
पर बाध्य ककया । तथा चुनाव प्रर्ािी को िी ज्यादा मुतत और ननष्पक्ष बनाने का प्रयास ककया
। चुनाव िड़ने वािे प्रत्यालशयों की अपनी संपनत आय और शैक्षणर्क योग्यताओं के संबंध में
शपथ पत्र देने का ननदेश हदया ताकक िोग सही िानकारी के आधार पर प्रनतननधधयों का चुनाव
कर सकें ।
सकिय न्यायपालिका का नकारात्मक पहिू
न्यायपालिका में काम का बोझ बढ़ा । न्यानयक सकियता से ववधानयका, कायण पालिका और
न्यायपालिका के कायों के बीच अंतर करना बहुत मुजचकि हो गया हैं िैसे – वायु और ध्वनन
प्रदूषर् दूर करना, भ्रष्टाचार की िांच व चुनाव सुधार करना इत्याहद ववधानयका की देखरेख में
प्रशासन को करनी चाहहए आहद । सरकार के प्रत्येक अंग का कतणव्य हैं कक एक – दूसरे की
शजततयों और क्षेत्राधधकार का सम्मान करें ।
न्यानयक पुनराविोकन का अधधकार
न्यानयक पुनराविोकन का अथण हैं कक सवोच्च न्यायािय ककसी िी कानून की संवैधाननक िांच
कर सकता हैं यहद यह संववधान के प्रावधानों के ववपरीत हो तो उसे गैर -संवैधाननक घोवषत कर
सकता हैं । संघीय संबंधी (कें द्र -राज्य संबंध) के मामिों में िी सवोच्च न्यायािय न्यानयक
पुनराविोकन की शजतत का प्रयोग कर सकता हैं । न्यायपालिका ववधानयका द्वारा पाररत क़ानूनों
की और संववधान की व्याख्या करती हैं । प्रिावशािी ढंग से संववधान की रक्षा कर सकती हैं ।
नागररकों के अधधकारों की रक्षा करती हैं । िनहहत याधचकाओं द्वारा नागररकों के अधधकारों की
रक्षा में न्यायपालिका की शजतत में बढ़ौतरी की हैं ।
न्यायपालिका और संसद
िारतीय संववधान में सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कायणक्षेत्र हैं । इस कायण वविािन के
बाविूद संसद व न्यायपालिका तथा कायण पालिका व न्यायपालिका के बीच टकराव िारतीय
रािनीनत की ववशेषता रही हैं । संपनत का अधधकार के ववषय में न्यायािय ने कहा कक यह मूि
ढांचे का हहस्सा नहीं हैं । संसद की संववधान को संशोधधत करने की शजतत के संबंध में कहा गया
हैं कक इस मूि ढांचे को संववधान को संशोधधत करके िी नहीं बदिा िा सकता । तथा इनके
द्वारा मौलिक अधधकारों को सीलमत नहीं ककया िा सकता । न्यायपालिका द्वारा समय - समय
पर ननवारक निरबंदी कानून की व्याख्या की गई हैं । तथा नौकररयों में आरक्षर् संबंधी कानून
की व्याख्या िी की गई हैं ।
1973 में सवोच्च न्यायािय के ननर्णय
संववधान का एक मूि ढांचा हैं और संसद सहहत कोई िी इस मूि ढांचे से छेड़ – छाड़ नहीं कर
सकता । संववधान संशोधन द्वारा िी इस मूि ढांचे को नहीं बदिा िा सकता । संपवत्त के अधधकार
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के ववषय में न्यायािय ने कहा कक यह मूि ढांचे का हहस्सा नहीं हैं उस पर समुधचत प्रनतबंध
िगाया िा सकता हैं । न्यायािय ने यह ननर्णय अपने पास रखा कक कोई मुद्दा मूि ढांचे का
हहस्सा हैं या नहीं यह ननर्णय संववधान की व्याख्या करने की शजतत का सवोत्तम उदाहरर् हैं ।
संसद व न्यायपालिका के बीच वववाद के ववषय बने रहते हैं । संववधान यह व्याख्या करता हैं
कक न्यायाधीशों के आचरर् पर संसद में चचाण नहीं की िा सकती हैं । िेककन कई अवसरों पर
न्यायपालिका के आचरर् पर उंगिी उठाई गई हैं । इसी प्रकार न्यायपालिका ने िी कई अवसरों
पर ववधानयका की आिोचना की हैं । िोकतन्त्र में सरकार के एक अंग का दूसरे अंग की सत्ता के
प्रनत सम्मान बेहद िरूरी हैं ।
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