सर्जना वितान ( बी. आई. टी., सिंदरी ) के वार्षिक सम्मलेन - विसंवाद की स्मारिका | हिन्दी कथा - कहानियों, कविताओं, एवं समसामयिक विषयों पर चिंतन आदि का संग्रह |
3. ऊ
र्ध् ज
विसंिाद-पञ्चम
सर् जना तथा सर् जना-वितान का िावष जक सम्मेलन
ु
माघ कृ ष्ण १ तथा २, २०६७ तदनसार २३ तथा २४ र्निरी २०११
बी. Aaई. टी. वसन्दरी
स्मारिका
4.
5. ् ु
मङ्गलं भगिान विष्णुः मङ्गलं गरुडर्ध्र्ुः ।
ु
मङ्गलं पण्डरीकाऺुः मङ्गलाय तनोहवरुः ॥
मानसभिन में Aaर्य्र्न वर्स की उतारें Aaरती
ज
्
भगिान ! भारतिषज में गर् े हमारी भारती
ूँ
हो भद्रभािोद्भाविनी िह भारती, हे भगिते
सीतापते ! सीतापते !! गीतामते ! गीतामते !!
– िाष्ट्रकवि मैविलीशिण गुप्त
6.
7. अध्यऺीम सन्देश
सर्ना-वितान की स्मावयका हभाये उन अभूर्त् ज सनातन व्यसनों का सयल प्रकटीकयण है, र्ो वियकाल से भानि-भन का भन्थन
ज
कयते आ यहे हैं। इसी भन्थन का ऩवयणाभ ुआआ वक िेदों, ऩुयाणों एिभ ्उऩवनषदों की सृवि ुआई औय साभिेद का गामन ुआआ। इस न े ही
ु ु ु
‘सूय’ को ‘सूम’ज फनामा औय ‘तलसी’ को ‘तलसीदास’ की सञ्ज्ञा दी। इसी की प्रेयणा से भीया के कण्ठ से भधय ऩद पू ट ऩड़े औय अनऩढ़
ु ु
कफीय न े दोहों को गनगनामा। इस की वियाटता तो देविए वक भीया न े वनयाकाय भें साकाय को ऩामा, तो कफीय न े साकाय भें वनयाकाय को
ु
ऩामा। इसी दैिी िासना का ियदान भनर् भात्र को प्राप्त है।
कवि सोभ ठाकुय न े इन्हीं अवबव्यविमों के ललए ललिा था –
ु
कल्पिृऺों के सनहये पू ल हैं मे,
ददज की आकाशिाणी के ििन हैं,
तू इन्हें वदल के िर्ान े भें सॉर्ो ले
गीत मे वर्न्दा सभन्दय के यतन हैं।
याभवगयी के मऺ से मे कफ अलग हैं
औय कफ दभमविमों से दूय हैं मे
ु
र्हय का प्याला वऩए सकयात हैं मे
छोड़न े ऩय बी न छूटें गे कबी मे
ॉु
बािना के भहलगे आवदभ व्यसन हैं।
गीता, कुआजन, फाइवफल, अिेस्ता सबी इस के प्रभाण हैं वक हभाया विश्वेश बी इन बािनाओ ॊ से अछूता नहीं है। िह बी शब्द
ु
यिता है, उसे बी अव्यि औय अभूर्त् ज यहना कफ तक यास आता। मह अऩनी अियात्मा भें अतल गहये उतयकय सत्य का स्वय सनन े का
नाभ है। मह स्वय सफ को शावि ही दे मह आिश्मक नहीं, मह क्रावि का र्नक बी हो सकता है।
वनयाला के शब्दों भें
गयर्-गयर् घन अन्धकायों भें गा अऩन े सङ्गीत,
फन्ध,ु िे फाधा अिविहीन
आॉिों भें निर्ीिन का तू अञ्जन लगा ऩुनीत
वफिय झय र्ान े दे प्रािीन
. . . बय उद्दाभ िेग से फाधा हय तू ककज शप्राण
दूय कय वनफ जल वन्श्वास
वकयणों की गवत से आ आ तू, गा तू गौयिगान
एक कय दे धयती आकाश।
एक फाय वपय गयर्न े-फयसन े, हय फाधा हयन े, धयती-आकाश एक कयन े औय निर्ीिन का अञ्जन लगाकय निवकयणों का
स्वागत कयन े हभ सफ वपय एक साथ है। िाग्देिी की कृ ऩा से सफकुछ एक फाय वपय देदीप्यभान हो उठे गा, ऐसी आशा है।
शबच्छाओ ॊ सवहत,
ु े
यवि शङ्कय प्रसाद
ज
अध्यऺ, सर्ना-वितान
8.
9. सन्देश
ु
सिजप्रथभ सर्जना-वितान के सबी सदस्यों को भेया सादय प्रणाभ एिॊ स्मावयका के भख्य सम्पादक को ऩवत्रका के सपल
सम्पादन हेत ु धयवािाद।
सावहवत्यक बू-ऩटल ऩय हभ निाङ्कयों को नेवहल ऊष्मा प्रदान कयनेिाले अग्रर्ों के सहृदम मोगदान के कायण ही विसॊिाद-
ु
ु
ितथज सपल ुआआ। सावहत्य एिॊ वििायों के सागय भें गोते लगिाने का उन का प्रमास वकतना सपल ुआआ, मह उर्त्य देना कवठन है
ऩयि ु इतना तो कहा ही र्ा सकता है वक अग्रर्ों के साविध्य एिॊ सावहत्य के अनबि ने हभ अनर्ों को प्रेवयत वकमा।
ु ु
ु
इन्हीं कायणों से हभ विसॊिाद-ऩञ्चभ को लेकय उत्सक हैं तथा आशा कयते हैं वक आऩ की बागीदायी से हभाया उत्साह
ु
सावहत्य, सर्जना एिॊ र्ीिन के रूऩों के प्रवत गणात्मक रूऩ से फढ़ता यहेगा।
महाॉ से अफ स्तयीम यिनाएॉ विलुप्त हो यहीं हैं ,र्ो वििा का विषम है। इस अिैिावयक वतवभय को वभटाने हेत ु हभ सर्जना-
सदस्य वििायों के नन्हे दीऩ र्लामे ुआए हैं। अऩने अग्रर्ों से उम्मीद है वक िे हभें एक प्राणिाम ु प्रदान कयें ग े तावक हभाया मह दीऩक
सदा प्रज्वललत यहे एिॊ सावहवत्यक विकास के प्रवत हभाया उत्साह फना यहे।
इसी काभना के साथ एक फाय वपय भैं अऩने सबी अग्रर्ों को हावदिक धयवािाद देता हॉ, अऩने फुआभूल्य वििाय, सभम एिॊ
ु
साविध्य प्रदान कयने हेत।
इवत
ु
वियेन्द्र श¬a
ु
भख्य सम्पादक, सर्जना
10.
11. सम्पादकीम
नभस्काय,
ु
विसॊिाद-ऩञ्चभ की स्मावयका के रूऩ भें मह ‘ऊर्ध्व’ आऩ के हाथों भें है। ऩविका के भख-ऩृष्ठ के आन्तय बाग ऩय श्रीयाभचवयतभानस का एक दोहा
लिखा गमा है, वजस का बािाथव कुछ इस प्रकाय है – “जैसी बवितव्यता होती है, िैसी ही सहामता वभि जाती है। मा तो िह आऩ ही उस के
ऩास आती है, मा उस को िहाॉ िे जाती है।”
ु
स्मावयका आऩ को सभवऩवत कयते हुए भझ े बी ऐसा ही भहसूस हो यहा है। मह ‘ऊर्ध्व’ ईश्वय की इच्छा औय आऩ सफ की सहामता का ही
ु ु
प्रवतपि है। सफ ने इस ऩस्तक के प्रकाशन भें भझ े इतना सहमोग वदमा है वक भैं स्वमॊ को सम्पादक के तौय ऩय तो क्या एक सङ्किनकताव के रूऩ
भें बी नहीं देख ऩा यहा हॉ। सच कहॉ तो इस ऩविका के वनष्पादन का अस्सी प्रवतशत कामव तो के िि सौयब सय के द्वाया हुआ है। फाकी दीऩक
सय, सत्यन सय औय विनम सय से भागवदशवन वभिता यहा। कई कामों भें निनीत ने फहुत भदद की। ऩङ्कज औय सन्दीऩ ने कई कामव आसान
ु ु
वकमे। यवि सय औय सजवना-ऩवयिाय ने इस के आकयण के लिए फहुत ऊजाव खचव की है। भैं ने जनसम्पकव का ही कामव वकमा है औय भझ े खशी है
वक के िि इतना कयने से ही स्मावयका आऩ के हाथों भें है।
ु ु
वपय बी मह कामव सीखने का एक अद्भुत अिसय देता है। कई िोगों के सझाि आऩ को यास्ता वदखाते चिते हैं । खद की एक प्रवतशत भेहनत
ु ु
फाकी के सहमोग से शत-प्रवतशत भें फदिती जाती है। एक सङ्कल्पना से शरू होकय एक ऩस्तक का रूऩ िेत े हुए ‘ऊर्ध्व’ को देखना एक ताउम्र
ु
माद यहनेिािा अनबि यहेगा भेये लिए। मह नाभ ‘ऊर्ध्व’ बी इसीलिए है। हभ भानवसक रूऩ से, अध्याविक रूऩ से जीिन के हय ऺेि भें
ऊर्ध्वगाभी फनें औय हभाया मह ऊर्ध्वगभन इस बायतिर्व, इस सभाज औय हभायी सजवना के मशोर्ध्ज को औय ऊॉ चा कये, ऐसी हभायी
भङ्गिकाभना है।
स्मावयका भें कई चीजें नमी हुई हैं । ज ैसे इस फाय सायी यचनाएॉ इण्टयनेट से ही आमीं। वकसी को डाकघय जाकय डाक से यचना नहीं बेजनी
ऩड़ी। फहुत सायी यचनाएॉ ऩहिे से ही टाइऩ की हुई आमीं, इसीलिए उन का सम्पादन बी अऩेऺतमा आसान यहा।
स्मावयका दो खण्डों भें फॉटी है – स्तिन तथा छान्दवसक। स्तिन खण्ड भें यचनाएॉ हैं औय छान्दवसक खण्ड भें साऺात्काय, जो भेये विचाय भें इस
े ्
स्मावयका के आकर्वण यहें ग। छन्दस शब्द ऩयम्पयमा िेदों के लिए प्रमोग वकमा जाता है, औय काव्य की िमािक इकाई के रूऩ भें हभ इस से
ऩवयवचत हैं ही। दोनों खण्डों के आयविक ऩृष्ठों ऩय जो कविताएॉ दी गमी हैं , िे सौयब सय द्वाया लिवखत हैं । स्तिन के लिए लिखी गमी कविता भें
ु
आऩ अमोध्या की उस ऊफड-खाफड धयती को ऩहचान सकते हैं वजस भें भहवर्व िाल्मीवक के अनसाय याभामण के वसद्ध ऩाठक का िम होना
वसद्ध है औय वजस का सन्दबव सौयब सय की कई यचनाओ ॊ भें हभें वभिता है। छान्दवसक के लिए लिखी गमी कविता भें आऩ हभायी िणवभािा भें
िणों के स्वरूऩ तथा ऋग्िेद के प्रवसद्ध भन्त्र “चत्वावय शृङ्गा िमोो अस्य ऩादा द्वे शीर्े सप्त हस्ताोसो अस्य। विधाो फद्धो िृोर्बो योोयिीवत भहो देिो
े
भत्यााँ आ विो िश॥” को ऩहचान सकते हैं । इस भन्त्र की व्याख्या कई प्रकाय से की गमी है औय भहवर्व ऩतञ्जलि ने अष्टाध्यामी ऩय लिखे अऩने
प्रवसद्ध बाष्य भहाबाष्य भें इस की व्याख्या शब्दब्रह्म की ऩहचान के रूऩ भें की है। िाक ् की इन अनवगनत बायतीम व्याख्यािक बवङ्गभाओ ॊ के
अवबिेख हभायी ही आिा के साक्ष्य हैं औय हभाये लिए वकतनी दूय तक प्रेयणािक रूऩ भें गवतभान ्होते हैं , मह हभाये ऊऩय है। हभ वजतने
अवधक ऊर्ध्वगाभी होने की चेष्टा कयें ग े इन की वसवद्ध उतने ही निीन रूऩों भें हभाये साभने आएगी। मह ‘ऊर्ध्व’ इसी का प्रायि हो, मह भेयी
काभना है।
ु
अफ्सोस मह यहा वक ऩयाने िोगों भें जो ऩहिे से यचनाएॉ देत े यहे हैं , उन्हों ने ही यचनाएॉ दीं, नमे िोगों भें फस दो-तीन नाभ ही दीखते हैं । भेये
ु े
फैच के िोगों ने सफ से अवधक वनयाश वकमा भझ। भेये फाद के िोगों भें अदीऩ, ऩङ्कज औय आवशर् ने अच्छी यचनाएॉ दीं। सॊस्थान से तीन-चाय
ही अच्छी यचनाएॉ वभि ऩामीं। स्वेता औय स्नेहा ने अच्छी कविताएॉ बेजीं। वपय बी कविताओ ॊ का खण्ड कभजोय ही यहता मवद अवन्तभ सभम
ु
ऩय दीऩक सय, सत्यन सय एिॊ याजेश सय की कविताएॉ न आ जातीं। छऩते-छऩते विद्याऩवत वभश्र सय की एक फहुत सन्दय कविता वभि गमी।
ु
मह कविता हभाये ‘बायत’ ऩय इतनी सटीक िगी वक इसे छाऩने का िोब हभ सॊियण न कय सके । विद्या सय का विशेर् अनग्रह यहा वक उन्हों ने
ु
इसे छाऩने की अनभवत हभें दे दी। विद्या सय का इस के लिए फहुत-फहुत धन्यिाद।
ु
अॉगयेजी खण्ड भें इस फाय सन्नाटा यहा, डयािना सन्नाटा। एक ही श्रेष्ठ यचना वभि ऩामी, विनम सय की। मह कहानी सचभच आऩ को इस तयह
ु
डुफोती है वक अन्त भें आऩ से एक ‘आह’ वनकिे वफना नहीं यहती। कौस्तब का एक िेख छऩ सकता था, िेवकन कुछ गिीय विसङ्गवतमों के
कायण हभ उसे बी प्रकावशत नहीं कय ऩामे। इस के अिािा अॉगयेजी भें कुछ बी हभ प्रकाशन की अवन्तभ सूची भें नहीं डाि ऩामे। इस विर्म
ु
ऩय विसॊिाद भें हभें गिीयता से सोचना होगा। अगय सचभच वहन्दी औय अॉगयेजी भें फयाफय यचनाएॉ आतीं तो हभ अस्सी ऩृष्ठों की एक
स्मावयका के फदिे चािीस-चािीस ऩृष्ठों की दो स्मावयकाएॉ प्रकावशत कय सकते थे।
12. यचनाओ ॊ के फाये भें औय फात कयें तो तीन-चाय यचनाएॉ जेहन भें आ यही हैं । एक तो कौस्तब की कहानी ‘ऩायखी’। मह कहानी अऩने कथ्य औय
ु
ु ु
वशल्प दोनों भें श्रेष्ठ औय भभवस्पशी िगी। सचभच फाजायिाद के दफाि ने हभाये वशवल्पमों के हाथ काट डािे हैं । भझ े अऩने स्कू ि के वदन माद
आते हैं , जफ भैं अऩने स्कू ि के ऩास के कुम्हाय की चाक के ऩास फाय-फाय जा फैठता था। तफ वभट्टी के िौंदे से प्यालिमों का वनकिना जादू
िगता था। कुम्हाय की अङ्गलु िमों का घूभना, धागे से प्यािी को काटकय अिग कयना औय कताय भें सूखने के लिए डािना वकसी जादूगय की
कयाभात से कभ नहीं िगते थे। फाजाय ने जल्दी ऩ ैसा कभाने, शाटव कट भें हावसि कयने के जो तयीके वदखाने शरू वकमे उस ने कुम्हाय,
ु
भूवतवकाय औय इन के जस े वकतने वशल्पकायों-किाकवभवमों को यसाति ऩहुॉचा वदमा।
ै
ु
यवि सय ने अऩने िेख भें फाि सावहत्य के अबाि तथा सावहत्य के प्रवत मिा ऩीढी की उदासीनता की फात कही है। मे फातें कापी सटीक ढङ्ग से
ु
यखी गमी हैं । एक ऩूयी ऩीढी को हभ ने ¬कव ही फना डािा है। िे किा-सावहत्य-बार्ा की फात क्या कयें ग े औय क्यों कयें ग े ? ऩस्तकें गमीं, ऩाठ्य-
ु े
ऩस्तकों से सावहत्य गमा तो फ्े तो टी. िी. औय इण्टयनेट के ऩास ही जाएॉग। दादी-नानी की कहावनमों की क्या कहें , जफ नानी-दादी ही
ऩवयिाय का अङ्ग नहीं यहीं। वहन्दी की कुछ ऩस्तकें अबी भैं ने देखी हैं , झायखण्ड वशऺा-फोडव की। ऐसा िगता है वक इन्हें स्नातकोतय के लिए
ु
सङ्कलित वकमा गमा था औय फाद भें गिती से दसिीं कऺा भें दे वदमा गमा है। इस से फ्े सावहत्य से डयें ग े नहीं तो क्या कयें ग। अच्छी फाि
े
ऩविकाओ ॊ की फात बी है। घय भें स्वमॊ को औय अनजों को देखता हॉ तो दोनों के सावहवत्यक झकाि / ऩवयचम के अन्तय का सफ से प्रत्यऺ
ु ु
ु
कायण मही दीखता है वक उन के सभम तक फाि सावहत्य की स्तयीम वकताफें औय इन वकताफों की दुकानें दोनों ऩवयदृश्म से गामफ हो चकी थीं।
ु
इस के अिािा सौयब सय का साऺात्काय अद्भुत िगा। अदीऩ की नक्सििाद ऩय लिखी गमी कहानी छऩने िामक िगी। भकेश की कहानी बी
अऩने वशल्प के कायण फहुत ऩसन्द आमी। वियेन्द्र के साऺात्काय से एक फात वदभाग भें आमी – “क्यों हभ बायत को इवण्डमा फनाना चाहते हैं ?
क्यों चाहते हैं वक हभ बी बेडचाि का वहस्सा फनें ? हभ क्यों बायत को वपय से बायत ही नहीं फनाना चाहते ?”
ु
बायतिर्व के फाये भें अबी ऩढ यहा हॉ तो ऐसा िग यहा है वक साभने अिग-अिग योशनी की वखडवकमाॉ खिती जा यही हैं । बायत क्या था, हभ
ु
क्या थे औय आगे दोनों क्या हो सकते हैं , मह सोचने ऩय आश्चमव होने िगता है। भझ े औय शामद भेयी ऩूयी ऩीढी को जो बायत दीखा है, िह
अन्धी दौड भें बागता, ऩवश्चभ की नकि के द्वाया स्वमॊ को ऩवश्चभ से ज्यादा श्रेष्ठ सावफत कयने की कोवशश कयता, अऩने ही नमे स्वप्नों ऩय
ु
आिभग्ध होता हुआ दीखा है। आश्चमव मह है वक हभें ऩता बी नहीं चिता वक हभ स्वमॊ को छि यहे हैं । वशऺा का ऩवश्चभीकयण, किा का
ु
ऩवश्चभीकयण, औय तो औय धभव का ऩवश्चभीकयण कयते गमे हैं अॉगयेजीदाॉ सधायक। भैं ऩवश्चभ का वियोधी हॉ, ऐसी कोई फात नहीं, ऩय ऩवश्चभ की
ु
जीिनशैिी ऩवश्चभ के सभाज औय ऩवयिेश के अनकूि है, न वक हभाये सभाज के ।
वजस वशऺा-ऩद्धवत को बायत ने आज अऩना लिमा है, िह के िि ‘¬aeन’ फना सकती है, क्यों वक इस वशऺा-ऩद्धवत को विकवसत ही ‘¬कव ’ फनाने
के लिए वकमा गमा है। एक जसा सोचने, फोिने औय लिखनेिािे िोग कताय भें खडे नजय आते हैं । किा, सावहत्य, सङ्गीत औय दशवन सफ भें
ै
ऩवश्चभ की नकि कयनेिािे मे िोग अन्तययाष्ट्रीम भञ्च ऩय बायत का प्रवतवनवधत्व कयते नजय आते हैं । जफ इन्हों ने बायत को जाना ही नहीं, तो
बायत का ऩऺ मे कै स े यख ऩाएॉग। ऩवश्चभ ने बी इस वस्थवत को विकवसत कयने भें फहुत जोयदाय बूवभका वनबामी है। हय िह कामव जो बायत को
े
ु
कोसता है, अन्तययाष्ट्रीम स्तय ऩय सिो् ऩयस्काय ऩाता है। स्िभडॉग वभलिमनेमय, िी. एस. नामऩाि की यचनाएॉ, सिभान रुश्दी की वकताफें,
एभ. एप. हुस ैन की कृ वतमाॉ आवद स ैकड़ों उदाहयण हैं ।
ु
धभव भें बी मही हाि यहा है। िे-देकय हभ स्वमॊ को कै थोलिक मा प्रोटे स्टेण्ट के सभकऺ खडा कयने भें िगे हैं । मह सचभच अजीफ फात है वक
ु
सनातन धभव मा हभाया वहन्दू धभव ईसाई औय इस्िाभ से फहुत ऩयाना औय अिग विचायधाया का है। ईसाइमत औय इस्िाभ की विचायधाया
अिगाि ऩय आधृत है, मानी जो हभाये विश्वास को नहीं भानता िह हभाया शि ु है। ऩय वहन्दुत्व की विचायधाया सह-अवस्तत्व ऩय आधृत है औय
ु
वकसी को बी ईश्वय से अिग नहीं भानती, उस से ऩये नहीं भानती। वपय बी िोग तिना कयने भें िगे हैं ।
भैं ने अबी हाि भें कहीं ऩढा है वक “हभ दुवनमा भें नम्बय एक हैं ” ऐसा सोचने भें बायतीम दुवनमा भें नम्बय एक हैं । अिग-अिग तकों औय
फहसों से हभ अऩने को, अऩनी प्राचीनता को औय उस की श्रेष्ठता को सावफत कयने भें िगे हैं । ऩय िह प्राचीनता क्या सन्देश देती है। इतनी
ु
वटकाऊ सभ्यता के वनभावण के तत्त्व क्या यहे, इस ऩय हभिोग नहीं सोच यहे। बायत को जानना हभायी मिा ऩीढी के लिए औय ज्यादा आिश्मक
ु
इसलिए बी हो जाता है वक हभें अबी तक इसे जानने नहीं वदमा गमा है। एक भ्राभक प्रचाय ने हभाये चायों ओय एक जाि फन यखा है, वजस से
फाहय हभ वनकि नहीं ऩा यहे हैं ।
आशा है वक इस फाय के विसॊिाद भें हभ ‘बायत’ को जानने के प्रायि की कोवशश कयें ग े औय अऩने आसऩास छामी अयाजकता औय
े
भूल्यहीनता के कायणों को सभझेंग।
इस स्मावयका भें िवु टमाॉ फहुत होंगी, आशा है वक आऩ उन के लिए ऺभा कयें ग। आऩ सफ की, इस ऩवयिाय की कुशिकाभना के साथ।
े
आऩ सफ का
यभेश कुभाय वसन्हा
सम्पादक
13. विषम-सूची
कविताएँ
िो लड़की आविष कुभाय ऩाण्डेम १०
वनमवत सत्यन कुभाय ११
भयीवचका १३
खोज ३८
अनकही स्नेहा ित्स ११
बेद दीऩक कुभाय १२
धूऩ की आस १२
छब्बीस साल यभेि कुभाय वसन्हा १३
वद‘I-आगया ३८
जागन े औय सोन े के फीच १५
ट्रे न-वखड़की-हाथ ३८
भठ ३३
अथ थ औय यङ्ग ३३
िहय याजेि ‘आम’थ १४
पुवचमा १४
कौन ३८
ु
भैं स्वप्न फनता हँ ३२
थ
भेया ऩुनजन्म होगा ३३
चाफी ब्रजेि ऩाण्डेम १५
यङ्गऩा्र स्वेता ३२
वझझक ३९
ओस की आस ३९
कहावनमाँ
ऩायखी ु
कौस्तब गयाई ०३
यास्ता ु
भकेि भालाकाय १६
PUNISH ME LORD IF I AM GUILTY विनम कुभाय वसन्हा २१
वयफेल अदीऩ कुभाय २५
स्मृवत
एक था याहुल ऩङ्कज कुभाय गप्ता
ु ३४
वनफन्ध
ु
आधवनक वहन्दी सावहत्य की दिा एिं वदिा यवििङ्कय प्रसाद ४०
संिाद
वियेन्द्र ि¬a से विनम कुभाय वसन्हा
ु ४७
यवि िङ्कय प्रसाद से कुभाय सौयब ५१
कुभाय सौयब से यभेि कुभाय वसन्हा ५८
14.
15. दृष्टिभ्रम का
भ्रम देता कोई
झाॉकता है
ऩथरीले ऊबड़-खाबड़ माग ग ऩर ष्टबछी
धूल ऩर बनी रेखाओ ॉ से
ष्टनयष्टत बताती है –
ु
शरू होना होता है
वहीँ से
हर अन्त के बाद,
माग ग प्रत्येक
ढूॉढता है शरण्य
इसी अष्टन्तम ऩथरीले माग ग मेँ
े
जहाॉ न अॉधरा होता है
और न उजाला
वस एक अजीब गड्डमड्ड
े
अॉधरा जहाॉ हर ऩल उजाला बनता है
े
और उजाला अॉधरा
ु
ष्टनयष्टत, तम न े उसे
कब नाम दे ष्टदया –
ईश्वरत्व
स्तवन
16.
17. ऩायखी
दृश्म व्यशक्त [दुकान भें अगयफती जलान े के स्थान से भाशचस की
ु
शडशफमा उठाकय, शसगयेट सलगाते हुए] – का हो भूशतिवाले, भूशति
[बाजार में गहमागहमी है। हरे क सामान के लिए ऊचे-ऊचे
ँ ँ
शकतन े की दे यहे हो ?
स्वर में बोि िग रहे हैं। कोई ताजी सलजजयाँ बेच रहा है, तो
कोई भाँलत-भाँलत के कपड़े, तो कहीं कई ककस्म की लमठाइयाँ शिल्पकाय – बाई, भूशतिमों को देशखए, फड़ी भेहनत से फनामा है,
लबक रही हैं। कोने में लस्ित लिल्प की एक दुकान है, लजस में जो उशचत जान ऩड़े दे दीशजए।
बैठा दुकानदार (जो स्वयं लिल्पकार है) , अपनी बनाई मूर्त्तियों ॉु
व्यशक्त [लम्बा कि ले कय, धआ ॉ उगलते हुए] – इ फन्दय की भूशति
को लनहारता है, और देख-देखकर कभी इतराता है, कभी हाि का क्या बाव है, औय मे कौन पकीय गधे को हाॉक यहा है ?
फे रता है, तो कभी मुस्काता है।] ु
शिल्पकाय – मे फन्दय नहीं हनभान जी हैं , औय मे श्रीयाभ हैं जो
शिल्पकाय (अऩनी भूशतिमों को शनहायते हुए, फजयङ्ग फली की भूशति मऻ की वेिबूषा भें अश्व को अश्वभेध मऻ के ललए अलङ्कृत कय यहे
को सहलाकय, आॉखों भें वात्सल्य बय, स्वमॊ से) – अये फजयङ्गी, तू ु
हैं । आऩ न े वह कथा तो सनी ही होगी शक सीता की स्वणि-प्रशतभा
ु
न े तो फनन े भें फड़ा वक्त ललमा। अगय भेयी ऩत्नी भझ े जफयदस्ती से याभजी न े मऻ के ललए अऩनी अधािशङ्गनी की कभी को ऩूया शकमा
ु ु
तझ े थभा कय नहीं बेजती तो तम्हें कबी नहीं फेचता। फीस साल था औय इस मऻ के फाद कै स े लव औय कुि न े घोड़े को फन्दी फना
ु
की कड़ी भेहनत से तझे फनामा है। बाग्मवान कहती है शक शजतन े ललमा था।
दाभ ऩय बी शफक जाए, फेच दो, ज्यादा कीभत न यखना। क्या कये व्यशक्त – मे भूशतिमाॉ तो भेये ऩ‘e नहीं ऩड़ यही हैं बाई। लगता है
ु
वह बी, दो शदन से चूल्हा नहीं जला है। भन्ने के स्कू ल के ऩ ैसे बी नौशसशखमे हो, इन्हें छोड़ कोई भजेदाय भूशति शदखाओ।
नहीं बये हैं , कहते हैं कल तक न बया तो उसे स्कू ल से शनकाल
शिल्पकाय – भजेदाय भतलफ ?
देंग। आज तो उस न े कह ही शदमा शक अगय वाऩस लेकय आमे तो
े
व्यशक्त – छत्रसाल भहायाज की, भहायाणा प्रताऩ की। ऐसा लगे शक
ु ु
वह तझे नदी भें पक आएगी। तझे तो भैं फीस हजाय से कभ भें
ें
कोई वीय ित्र ु के सॊहाय के ललए तत्पय है। अये टी. वी. ऩय
ूॉ
नहीं फेचगा। हय एक हजाय रुऩमे हय एक साल की भेहनत के
भहायाणा प्रताऩ जी का सीशयमल क्या खूफ दे यहा है। क्या
ललए। नदी के फीच से ऩाषाण काट कय तेये ललए ऩत्थय शनकाला
ु
तलवायफाजी शदखाते हैं , भजा आ जाता है। तभ देखते हो जी ?
ु
था। फायीशकमाॉ बी सटीक फनी हैं , अहा। तझ े फनाते हुए हय योज
[भाशचस की शडशफमा को अऩन े स्थान ऩय यख देता है।]
ु
तान े सनन े ऩड़ते थे। वह कहती है शक कभ सभम भें फन जाए ऐसी
ु
भूशति फनाओ मा धन्धा फदल लो। ऩयखों की दी गई कला कै स े शिल्पकाय – जी, इस तयह की भूशतिमाॉ तो शफकती नहीं, अगय
छोड़ दॉ . . . औय तू तो भेये प्राणों से बी शप्रम यचना है। दसयी आऩ कुछ ऩेिगी दे कय कहें तो जरूय फना दॉ।
ु ूॉ
भूशति शफक गई तो तझ े तो नहीं फेचगा। फड़ी देय से तू शभलता है ये। ु
व्यशक्त – लगता है तम्हायी अक्ल शठकान े नहीं है, ऐसे काभ कयोगे
ॉु
याभ को बी तो तू फड़ी देय से शभला था। तेया पू ला हुआ भह फनन े ु
तो तम्हायी भूशतिमाॉ शफकें गी नहीं। भैं तो चलता हॉ बाई। आज
भें ही इतना सभम लगा। तेये सीन े भें ऩेशिमाॉ बी कभ नहीं है। ऩय अशभताब की नई शपल्म शनकली है, भैं तो चला देखन े। भेयी भानो
तेयी कृ ऩा न जान े कफ हो, तू ही वेि फदल कय आ जा औय अऩनी ु
तो तभ बी शपल्म देखा कयो। आजकल दुशनमा भें क्या सफ चल
भूशति ले जा। यहा है, जानो, उन कलाओ ॊ को अऩनी प्रशतभा भें लाओ, तबी
तबी एक व्यशक्त प्रवेि कयता है। ऩतलून औय टी-िटि ऩहन े हुए। ु
तम्हायी भूशति शफके गी।
ॉु
फाल फढे हुए हैं , काला चश्भा डाले हुए है, भह भें शसगयेट धॉसी हुई ु
शिल्पकाय न े आदभी को घूयकय देखा औय गस्से का घूट ऩीकय
ॉ
है। कुछ देय सोचता यहा शक शकस तयह की भूशति फनानी चाशहए। उसे
३
18. अऩन े फच्चे की तयह हय प्रशतभा प्यायी लग यही थी। लगे बी क्यों शिल्पकाय – हुजूय आजकल शसपि शभट्टी की प्रशतभाएॉ ही दस-
न, एक-एक को फदन से खून औय ऩसीना शनचोड़ कय जो उस न े ऩन्द्रह हजाय से कभ भें नहीं आती है, औय सही काभ के ललए
सॉवाया था। सभम तो चाशहए ही।
वह आदभी चला जाता है औय शिल्पकाय सोचन े लगता है शक व्यशक्त – देखो फन्ध ु ! इस यवैम े को छोड़ो। एक सलाह है भेयी शक
उस व्यशक्त की फातों को भैं कै स े लूूँ, कहीं वह सही तो नहीं कह यहा भूशतिमाॉ ऩहले से ही तैमाय यखो औय फाजाय को देखते हुए भूशतिमाॉ
था ? उसे तो फस भाशचस की शडशफमा चाशहए थी। उसे भूशतिकला फनाओ।
का क्या ऻान ? भैं क्यों उस की फात भानूॉ ? अफ फताओ भेये याभ वे सज्जन शफना भूशति ललए ही चले गमे। फाहय ड्राइवय ऩय बड़कन े
ु
जी, तम्हें छोड़ औय शकसे फनाऊॉ । भेये शऩताजी न े बी इस कला को लगे औय शपय गाड़ी के चालू होन े की आवाज गूजी। शिल्पकाय
ॉ
जीशवत यखन े के ललए क्या-क्या कष्ट नहीं उठाए हैं । वह खयीदाय शपय से सोचन े लगता है शक कहाॉ कभी यह गई उस की भूशतिमों भें।
नहीं था, जो बी खयीदन े के उद्देश्म से आएगा उसे कृ शत की सायी भनोयभ तो लग यही हैं । कोई बी शिल्पकाय इस से अच्छा
ु
सन्दयता औय इस भें लगी भेहनत अवश्म सभझ भें आएगी । क्या कय सकता है ? ऐसी भूशतिमों ऩय तो यजवाड़़ों भें भोशतमों के
तबी एक व्यशक्त प्रवेि कयता है, ि¬-सूयत से कोई अपसय हाय शगया कयते थे। इतन े शदन से भूशतिमाॉ नहीं शफकी हैं , ईश्वय इतना
भालूभ होता है। सूट–फूट ऩहन यखे हैं । यौफदाय भूछे हैं , फाहय
ॉ शनदिम नहीं हो सकता। शखड़की से फाहय झाॉकता है औय उस की
झाॉककय देखन े ऩय सयकायी गाड़ी बी दीखती है, िामद उसी भें ु
नजय िाललक के एक जोड़े ऩय ऩड़ती है। अहा, क्या ही सन्दय
आए हैं । अठखेललमाॉ कय यहे हैं । कबी चोंच से एक-दसये को सहलाते हैं तो
व्यशक्त [अऩनी जेफ से हाथ शनकालकय कॉलय को ठीक कयते हुए] कबी एक-दसये के ऩीछे उड़ जाते हैं । आनन्द के ज ैसे सौ फहान े
– दुकान तो फहुत ही फढ़ढमा है। साप-सपाई ऩय तो अच्छी-खासी हों, औय शकसी की कोई शपकय बी तो नहीं है। दोनों साथ पुदक-
ु ु
पुदक कय दाना चग यहे हैं । जफ भन्ने की भाॉ ब्याह कय घय आई
ु
भेहनत की है तभ न े। भूशति कौन-कौन सी यखे हो ?
ु
थी तो घय भें ऐसी ही यौनक थी। इन का दीखना एक अच्छा सगन
शिल्पकाय – कुछ देवी-देवताओ ॊ की भूशतिमाॉ हैं । सायी ऩशवत्र
है। आज कुछ भूशतिमाॉ जरूय शफकें गी। इन की प्रशतभा बी फनाई जा
िीलावती नदी के शकनाये से लाए गए ऩशवत्र ऩत्थयों से फनी हैं ।
सकती है। इसी तयह एक शदन वह गाम औय उस का फछड़ा दीखे
असीभ कृ ऩा यहती है इन ऩय देवों की। फसन े के ललए ऐसे ही स्थान
थे। आज शकतनी भनोयभ भूशति फनी है, उन की। आज तो भेये
ढूढते हैं मे देवगण ।
ॉ
ु
हनभान जी बी तैमाय हैं , उसे तो कोई एक नजय भें देखकय खयीद
े
व्यशक्त – बाई भेय, देव तो हृदम भें फसते हैं , उन के ललए भूशतिमों लेगा। आज अगय शकसी शिल्प के शफकन े से कुछ ऩ ैसे शभलते हैं तो
की क्या जरूयत ? कायऩोयल कालेज के भैदान भें श्री याधाकृ ष्णन ु
भन्ने के ललए कचौड़ी लेत े हुए जाऊॉ गा। बूख े ऩेट स्कू ल गमा है।
जी की भूशति लगान े के शवषम भें सोचा जा यहा है। भैं महाॉ वही ु
एक फस्ते की बी शजद कय यहा था, वह बी यास्ते भें ले लूूँगा। भन्ने
भूशति लेन े आमा हॉ। ु
की भाॉ के हाथ भें जफ रुऩमे थभाऊॉ गा तो साया गस्सा िान्त हो
शिल्पकाय – जी ऐसी भूशति तो शपलहाल भेये महाॉ नहीं है, ऩय जाएगा। न, ऩूये ऩ ैसे नहीं दॉगा, वह अऩन े औय फच्चों के ललए कऩड़े
अगय आऩ आडिय दें तो फना सकता हॉ। भैं न े आडिय ऩय बी कई कबी नहीं लेगी, वह भैं महीं से लौटते वक्त लेत े जाऊॉ गा, शपय . . .
भूशतिमाॉ तैमाय की है। ऩहाड़ी के शिवभशन्दय की भूशति देखी है आऩ तबी एक नौजवान प्रवेि कयता है। दाढी-भूछ फढी हुई है।
ॉ
न े ? भैं न े ही आडिय ऩय फनामी थी ।
नौजवान – अये ओ भूशतिवाले ! क्या-क्या भूशति यखे हो?
व्यशक्त – लगबग तीस पुट की चाशहए। काले ऩत्थय की फनी होनी
ु
शिल्पकाय [होठों ऩय भस्कान बय, अत्यन्त ही उत्साह से] – शिव
ु
चाशहए। उन की तसवीय तभ को कॉलेज से शभल जाएगी। सभम
की, देवों की, श्रीयाभ की, आऩ को साये देव-देशवमों की भूशति महाॉ
शकतना लगेगा औय ऩ ैसे शकतन े खचि होंगे ?
शभल जाएगी। मे देशखए, जया हाथ यख कय तो देशखए, भहीन सूई
शिल्पकाय – अगय ऩूये ऩत्थय ऩय फनवाना चाहते हैं तो तीन साल से तयािा है। स्थाऩना कयें मा सजावट के ललए यखें, ऩूया कभया
औय साठ हजाय रुऩमे। शखल उठे गा।
ु ु
व्यशक्त – तम्हाया शदभाग तो नहीं शपय गमा ? भूशति भझ े आज-कल नौजवान [भूशतिमों को घूयकय, कुछ को छूकय] – ऩत्थय को तो फड़ा
के अन्दय चाशहए औय इतन े ऩ ैसे, ज ैसे सोन े की भूशति फनाओगे। ही शचकना तयािा है ! सङ्गभयभय का काभ बी कापी अच्छा है !
४
19. शिल्पकाय – धन्यवाद ! आऩ ज ैसे कुछ ऩायखी नजयवाले लोगों से ु
शिल्पकाय [अऩन े आऩ से] – भेये याभ जी, अफ तभ ही फताओ,
ही अऩनी योजी-योटी चलती है। कौन-सा दे दॉ ? ु ु
मह भेयी कला की हाय है मा इस मग की, जहाॉ तेयी ऩहचान बला
ु
दी जा यही है। मा िामद इतन े शदनों भें भझ े कला की सही ऩहचान
नौजवान – गभि खून भें जो कला को ऩयखन े की ऺभता होती है
ु
हुई ही नहीं। गौ भाता, तभ से तो अऩन े फच्चे की ऺुधा देखी नहीं
वह फात औय कहाॉ ! भेयी आॉखें हभेिा सही काभ को ऩहचान लेती
ु ु ु
जाती। भन्ने की भाॉ का गस्सा जामज है, भूशति न शफकी तो भैं क्या
हैं । इसीललए तो शभत्रगण कोई बी खयीदायी कयते हैं तो भझ े ले
जाते हैं । वे भझ े कसौटी कहते हैं , कसौटी ! भझे तो कुछ ऐसी
ु ु ॉु
भह लेकय उस के ऩास जाऊॉ गा।
भूशतिमाॉ ऩेि कीशजए जो सौन्दमि को दिािती हों। शकसी शपल्मी तबी एक औयत एक छोटे फच्चे के साथ प्रवेि कयती है। लड़का
अशबन ेत्री की, कोई प्रेशभका अऩन े प्रीतभ का आललङ्गन कयती हुई, ु
घसते ही फड़ी भूशतिमों को तो छूकय देखन े लगता है औय छोटी
मा ज ैसे कोई गाॉव की गोयी ऩानी बयती हुई, कोई ऐसी प्रशतभा जो भूशतिमों को गोद भें उठाकय ऩयखन े लगता है।
उवििी को दिािती हो, शजसे देख शिव का बी इभान डोल जाए, औयत – अये ओ बईमा ! मह लड़का फड़ा ऩयेिान कयता है, कोई
काभदेव औय यशत की भूशति जो यस-क्रीड़ा भें भग्न हों। खेलन े लामक छोटी-भोटी भूशति है तो शदखाना जया, शजस से इस
शिल्पकाय – जी ऐसी तो कोई भूशति नहीं है भेये ऩास। भेये ऩास तो लड़के का भन फहल सके ।
शपलहाल देवी-देवताओ ॊ की भूशतिमाॉ ही हैं । लड़का भूशतिमों को छेड़न े लगता है।
नौजवान – अफ मह न कहना भेये बाई शक आडिय देन े ऩय शिल्पकाय – अये फाफू, उस भूशति के साथ छेड़-छाड़ भत कयो। न .
फनाओगे। इ सफ चक्कय भें तो सायी जवानी उतय जाएगी। फूढे होन े . . नहीं उसे बी नहीं। वह छोटा हुआ तो क्या हुआ, शगय गमा तो
ऩय ब्रह्माजी की भूशति लेकय हशय-कीतिन करूगा, ऩय अबी तो नहीं।
ॉ टूट जाएगा।
ु
शिल्पकाय – जवानी के सवोतभ प्रतीक तो हनभान जी हैं , उन की ु
लड़का [ततलाते हुए भासूभ िब्दों भें] – मह घोले के सात कौन
े
भूशति ले जाइए, आऩ की सवि भनोकाभना ऩूयी कयें ग। ु
है? भज े तो फच मह घोला ही चाशहए।
नौजवान – बाई भेय, उन के तो फड़े -फड़े कै लेण्डय भैं न े घय भें टाॉग े
े शिल्पकाय – मह याभ जी हैं । सायी धयती का सञ्चालन मही कयते
हैं , भझे तो कोई भनोयभ भूशति चाशहए। भैं कुछ ही शदनों भें िादी
ु
ॉु
हैं । [औयत की ओय भह कय] इसे ले जाइए, याभ जी के साथ आऩ
ु
कयन े जा यहा हॉ, भैं उन के फल का कामल हॉ ऩय वे तो खद अऩना के लड़के का बाग्म बी चभक उठे ग।
घय नहीं फसा ऩाए। आऩ ईश्वय की भूशतिमाॉ यखते हैं तो कृ ष्ण औय
ु
लड़का – नहीं भज े तो शसपि घोला ही चाशहए। उच ऩल फैठकल भैं
याधा के यास की कथाओ ॊ को दिािन ेवाली ही कोई भूशति शदखाइए।
खेलूँूगा, दल ऩहाली भें लेकल जाऊॉ गा ।
शिल्पकाय – जी ऐसी कोई भूशति तो नहीं है भेये ऩास। आऩ अगय
शिल्पकाय – घोड़ा औय याभजी तो एक ही ऩत्थय से एक साथ फन े
कुछ शदन फाद आएॉ तो िामद आऩको फनाकय शदखा सकूॉ ।
हुए हैं , मे तो अलग नहीं हो सकते हैं फाफू।
ु
नौजवान – फस बई, तेये से मही सनन े की उम्मीद थी। ठीक है, भैं
लड़का – कै च े नहीं हो सकते हैं , तोल देन े से ही अलग हो जाएॉग।
े
चलता हॉ। महाॉ आसऩास दसयी दुकान कौन-सी है ?
भैं अबी कल के फताता हॉ ।
शिल्पकाय [सकुचाते हुए, धीभे िब्दों भें] – फाजू भें, भशन्दय के
शिल्पकाय [घफड़ाकय] – अये-अये, नहीं ऐसा भत कयना। इधय
ऩास।
ु
देखो। मे हैं हनभान जी। इनके साथ भन लगाओगे तो फहादुय
ु ु
मवक शफना सन े ही शनकल गमा, ज ैसे अफ उस शिल्पकाय की सायी ु
औय वीय फनोगे। एक ही छलाूँग से मे ऩूया सभद्र लाूँघ जाते हैं ।
फातें फकवास हो। शिल्पकाय शपय फैठकय सोचन े लगा। उस न े इन्हों न े याऺसों की ऩूयी लङ्का जला डाली थी ।
अऩनी नजय िून्य ऩय शटका यखी थी। शपय उस न े शखड़की से
ु ु
लड़का – भाॉ, भज े मही हनभान चाशहए ।
नजय हटा कभये भें शपयामी तो उस की नजय अऩनी गाम की
प्रशतभा ऩय ऩड़ी तो उसे कुछ कभी-सी भहसूस हुई। उस न े ऩतली औयत – शकतन े की दे यहे हो बईमा ?
ु
छेनी औय सई शनकाली औय उस प्रशतभा के ऩास जाकय जीब औय शिल्पकाय – देशखए फहन जी, िीलावती नदी के शकनाये से लामे
ॉु
फछड़े के भह ऩय शघसकय उसे तयािन े लगा। ु
गमे सङ्गभयभय से फनी है। एक-एक अङ्ग भहीन सई से तयािा गमा
है . . .
५
20. औयत – ठीक है, ऩूये दो सौ रुऩमे यशखमे। आऩ बी क्या माद शिल्पकाय – भहायाज ! आऩ के आन े से भन भें फहुत ही आस
कयें ग,े फस भूशति फच्चे को बा गई इसीललए । जगी है। आऩ तो अन्तमािभी हैं , जान ही गए होंगे शक कई शदनों से
शिल्पकाय – क्यों भजाक कयती हैं फहन जी। फीस हजाय से कभ शफक्री नहीं हुई है। मह देशखए श्रीयाभजी अहल्या ऩय ऩ ैय यख उसे
की नहीं है मह भूशति। खाललस सङ्गभयभय ऩय फीस साल की कड़ी िाऩ से भशु क्त शदला यहे हैं । मह देशखए भाॉ सीता बूगबि भें सभाती
भेहनत के फाद फनी है। हुईं।
औयत – भजाक तो आऩ कय यहे हैं । भैं कोई भशन्दय भें स्थाऩना के भशु न – वह तो ठीक है ऩय कीभत तो फताओ।
ललए भूशति थोड़े ही ले जा यही हॉ। एक फच्चे के शखलौन े के ललए शिल्पकाय – आऩ तो ऻानी, अन्तमािभी ठहये। साल़ों की भेहनत से
फीस हजाय। कोई सौ-दो सौ का साभान शदखाइए। ऐसे बी ऐसी फनी है मे भूशतिमाॉ। याभजी की भूशति आऩ के ललए फस दस हजाय
चीजों को टूटना ही है, इस िैतान के साथ शकतन े शदन शटक की। वैस े तो मह भैं ऩन्द्रह से कभ भें नहीं देता हॉ ।
ऩाएॉगी। सेवक – क्यों लूट भचा यखे हो ? भशु नश्री को बी लूटना चाहते हो।
शिल्पकाय – ऺभा कीशजएगा फहन जी। ऐसे ही खेल के ललए कोई ु
इन के क्रोध से तम्हाये दुकान का नाि हो सकता है। चल सही
चीज तो भैं फनाता नहीं हॉ। औय कोई वैसी सस्ती भूशति बी नहीं है कीभत फता।
भेये ऩास । भशु न – िान्त वत्स ! देखो शिल्पकाय फालक, तम्हायी भूशतिमाॉ
ु
ु
लड़का – नहीं भज े तो चाशहए ही . . . भाॉ, शदला दो न . . . भाॉ . . . तायीप के काशफल हैं । लेशकन भैं इतना खचि नहीं कय सकता। भेया
ु
आिीष है शक तम्हायी भूशतिमाॉ अच्छे दयों भें शफकें गी, ऩय कीभत
लड़का चीखता-शच‘aता यहा ऩय उसकी भाॉ उसे खींचते हुए फाहय
ले गई। कुछ देय तक वह फैठा दयवाजे की ओय देखता यहा। शपय जया कभ यखो, मह भेयी सलाह है। मह धन-दौलत शसपि भामा है।
उस न े एक कऩड़े का टुकड़ा उठामा औय भूशतिमाॉ साप कयन े फस इतना ध्यान यखना शक इन प्रशतभाओ ॊ भें फैठी देवी को धन से
ु
लगा। वह शपय गाम औय फछड़े को देखता है। उसे अऩन े भन्ने की तौल नहीं सकते हो। इस भामा से फाहय शनकलो वत्स ।
माद आती है। उस की आॉखें बय आती हैं । वह सोचता है शक मह शिल्पकाय – जी।
फच्चा बी शकतना प्याया था। खेलन े के ललए एक घोड़ा ही तो भाॉग भशु न – देखो फेटा, मह सम्पूण ि सृशष्ट उन्हीं की देन है, शजन ऩत्थयों
यहा था। फच्चे बगवान का रूऩ होते हैं , इन्हें शनयाि नहीं कयना ु
से तभ मे भूशतिमाॉ फनाते हो, उन्हीं का फनामा हुआ है, औय शजन
चाशहए। शकसी शदन लकड़ी का घोड़ा फना कय उसे सस्ते दाभ भें दे ऩत्थयों के ललए फनाते हो वे बी। इन के अन्दय फसन ेवाला ईश्वय
आऊॉ गा। तबी गेरुआ वस्त्र ऩहन े हुए एक भशु न का प्रवेि होता है। शफकाऊ नहीं है। मह जन-जन तक ऩहुॉच े इसी का प्रमास कयो। भैं
उन की सेशवका ऩङ्खा झल यही होती है। एक सेवक शजस न े भाथे बी मही प्रमास कयता यहता हॉ शक उस सवििशक्तभान की कीशति दय-
ऩय छाता ऩकड़ यखा था, उस न े छाता यख फैठन े का इन्तजाभ दय तक पै ले। अगय कोई इन भूशतिमों के भाध्यभ से ईश्वय को ऩाना
कयन े के ललए शिल्पकाय से आग्रह शकमा। ु
चाहता है तो क्यों ऊॉ ची कीभतें सना कय उस की बशक्तबावना ऩय
शिल्पकाय सोचता है शक देय से ही सही, ऩय अफ िामद भूशति के चोट ऩहुॉचाते हो ?
ललए सही खयीदाय शभला है। भशु न के आश्रभ भें भेये देवगण सेवा शिल्पकाय – जी भैं सस्ती भूशतिमाॉ फनान े का प्रमास करूगा। ऩय
ॉ
बी ऩाएॉग। ऩय . . . ऩय अगय भशु न दान भें भाॉग फैठे तो। मे कोई
े इस भूशति को औय कभ भें नहीं दे सकता।
पकीय तो नहीं लग यहे हैं , शजस को बगा शदमा जा सके । कह देंग े
भशु न – तम्हाया कल्याण हो।
ु
शक अबी तक फोहनी नहीं हुई है, फाद भें ऩहुॉचवा दॉगा। ऩय अगय
ु
गस्से से िाऩ दे फैठे तो . . . इतना कहकय भशु न बी शफना भूशति ललए ही चले गमे। भूशतिकाय
ु
शपय से सोच भें ऩड़ गमा शक अगय इतन े भहान ऻानी ऩरुष ऐसा
भशु न – शकस सोच भें ऩड़ गए वत्स ? भैं शवयाट ् वन का भशु न हॉ,
कह कय जाते हैं तो िामद उस न े ही अऩनी भूशतिमों को गलत
खयीदायी कयन े आमा हॉ, दान लेन े नहीं। चलो िङ्का-आिङ्का छोड़
सभझा है। वह शपय जाकय अऩनी भूशतिमों को शनहायता है। ऩूये
भूशति शदखाओ।
ऩत्थय की फनी हुई भूशतिमाॉ। ऩत्थयों को ढूढन े भें भहीना बय लग
ॉ
भशु न के िब्दों न े शिल्पकाय को फहुत याहत दी। वह एक लम्बी जाता है। शपय तयािन े का काभ। काभ शजतना फायीक हो, उतना
साॉस ले कय भूशतिमाॉ शदखान े लगा। ू
ही सभम लगता है। अफ बी जफ दुगािऩजा का सभम आता है तो
६