2. क मीर व िहमाचल प्रदेश म बफर् बारी का सीधा असर, सदर् हवाओं व पाला पड़ने के
प म, पड़ता है, अतः पशुओं को शीत-लहर से बचाने के आव यक उपाय कर ल।
पाला पड़ने की संभावना हो, तो कृ ित्रम प्रकाश या गमीर् का प्रब ध अव य कर।
कमज़ोर व रोगी पशुओं को बोरी की झूल बनाकर ओढ़ाय। सदीर् से बचने के िलए
रात के समय पशुओं को छत के नीचे या घास-फू स के छ पर म बांध कर रख।
पशुओं को संकड़े/नम थान म ब द करने से, एवं धुआं आिद से गमीर् पहुँचाने की
कोिशश, उनके यूमोिनया से पीिड़त होने की संभावना को अिधक बढ़ाती ह।
पशुओं को बांटा और पानी गुनगुना कर के द।
दुधा पशुओं को तेल व गुड़ देने से भी शरीर का तापक्रम सामा य बनाये रखने म
सहायता िमलती है।
अभी से चारे का संग्रहण अथवा उसको सही समय पर खरीद कर रख, साथ ही
पशुओं म लवण की कमी नहीं होने पाये, इस हेतु लवण िम ण िनधार्िरत मात्रा म
दाने या बांटे म िमला कर द।
अ तः परजीवीनाशक घोल या दवा देने का सही समय भी यही है।
पशुओं को बा य परजीिवय से बचाने के िलये पशु-शाला म फशर्, दीवार आिद साफ
रख। अतः िनगुर् डी, तुलसी, या नींबू घास का गुलद ता पशु-शाला म लटका िदया
जाए, क्य िक इसकी गंध बा य परजीिवय को दूर रखती है। पशु-शाला को
कीटाणुरिहत करने के िलए नीम तेल आधािरत कीटनाशक का प्रयोग कर।
पशु-पालक को चािहए िक अगर मुँहपका-खुरपका रोग (Foot and Mouth Disease),
पी.पी.आर., गलघ टू (Haemorrhagic Septicaemia), फड़िकया (Enterotoxemia), लंगड़ा
बुखार (Black Quarter) आिद रोग से बचाव के टीके नहीं लगवाएं ह , तो अभी
लगवा ल। िवशेष प से मेमन को फड़िकया का टीका लगवाएं।
िरजका व बरसीम म 20-30 िदन, एवं जई म 20-22 िदन के अ तराल पर
आव यकता अनुसार िसंचाई करते रह।
3. मौसम वैज्ञािनक के अनुसार फरवरी माह म अनेक थान पर वषार् होने की
संभावना रहती है, अतः पशुओं को भीगने से बचाएं एवं बादल हटने पर सदीर् के
बढ़ने के आसार को देखते हुए पयार् त बचाव के उपाय कर।
िपछले माह िदये गए सदीर् से बचाव के उपाय इस माह भी जारी रख।
जो पशु जनवरी माह म िनयि त्रत प्रजनन कायर्क्रम के तहत उपचार म थे, उनका
अनुसरण फरवरी माह म भी रखा जाए तािक सभी पशु इस महीने तक गिभर्त हो
जाएं।
नवजात बछड़े-बछिड़य को अ तः परजीवी नाशक िनयिमत प से द।
मेमन को पी.पी.आर. का टीका लगवाएं।
दुधा पशुओं को थनैला रोग (Mastitis) से बचाने के िलए, उनका दूध पूरा व मु ठी
बांध कर िनकाल।
िरजका व बरसीम एवं जई की िसंचाई क्रमशः 12-14 एवं 18-20 िदन के अंतराल
पर कर।
बरसीम, िरजका एवं जई को सूखा चारा या अचार (साईलेज) के प म एकित्रत कर
भिव य म संभािवत चारे की कमी के समय के िलए सुरिक्षत रख।
4. इस माह से गमीर् म होने वाले रोग के प्रित सावधानी रखनी होगी।
यिद म छर, मक्खी, चींचड़, आिद, जीव की संख्या म वृ िध हो रही हो, तो इनसे
फै लने वाले रोग से बचाव करना आव यक है।
आने वाले समय म पशुओं म बाँझपन एवं फु राव (Johne’s disease), आिद रोग भी
होते ह, अतः ऐसे म पशुओं की तुर त िचिक सा करवाएं।
यिद दूध उ पादन म कमी हो रही हो, तो पशु िचिक सक वारा दूध और पेशाब,
दोन की जाँच करवाएं।
बरसीम-िरजका एवं जई की िसंचाइ 10 िदन एवं 12-14 िदन क्रमशः के अ तराल
पर कर।
ग्री मकाल म हरे चारे हेतु मक्का, बाजरा एवं वार की बोवाई कर।
बहुऋतुजीवी चारा घास जैसे हाईिब्रड नेिपयर, िगनी घास, इ यािद की रोपाई पहले से
तैयार खेत म कर।
हरे चारे से साईलेज तैयार कर।
याँने वाले पशुओं को प्रसूित बुखार (Puerperal Fever) से बचाने के िलए खिनज
िम ण 50-60 ग्राम प्रितिदन द।
5. इस माह म अिधक तापक्रम होने की संभावना रहती है।
पशुओं म जल व लवण की कमी, भूख कम होना, एवं कम उ पादन, अिधक
तापक्रम के प्रमुख प्रभाव होते ह, अतः पशुओं को अ यिधक तापक्रम से बचाने के
उपाय कर।
भार ढोने वाले पशुओं को दोपहर से शाम चार बजे तक छाया वाले एवं हवादार
थान म आराम करने द।
पीने के पानी के इंतज़ाम पर भी यान द। पानी की कु डी साफ रख। पशुओं को
िदन म कम से कम चार बार पानी िपलाने का प्रयास कर।
कु छ मादा पशुओं म गमीर् (ताव म आना) के लक्षण िदन म कम तथा राित्र म
अिधक प्रदिशर्त होते ह, अतः पशुपालक इसका यान रख।
थनैला रोग (Mastitis) की पहचान और िनदान के उपाय कर।
मेमन को फड़िकया (Enterotoxemia) व भेड़ चेचक रोग (Sheep Pox) का टीका
लगवाएं।
गािभन (छः माह से अिधक) पशुओं को अितिरक्त आहार द।
चारागाह म घास यूनतम तर पर होती है, तथा पशुपोषण भी वषार् न होने तक
अपेक्षाकृ त कमज़ोर रहता है। ऐसे म लवण, िवशेषकर फॉसफोरस की कमी के कारण
पशुओं म ‘पाइका’ (Pica – depraved appetite) नामक रोग के लक्षण नज़र आने लगते
ह, अतः बाँटा-चाट (Mineral block) म लवण िम ण अव य िमलाय।
सामुदाियक प्रयास से सुिनि चत कर िक मृत पशु, ह डी, चमड़ा, कं काल आिद
चारागाह के रा त एवं उन थान पर इक् ठा नहीं होने पाए जहाँ से पशुओं का
रोज़ाना आना जाना रहता है।
ऐसे थान की तारबंदी/बाड़बंदी कर पशुओं को रोक, क्य िक मृत पशु के अवशेष को
खाने व चबाने से प्राण-घातक रोग ‘बोचुिल म’ (Botulism) हो सकता है, िजसका
कोई उपचार नहीं है।
चारे के िलए बोई गई मक्का, बाजरा एवं वार की कटाई 45-50 िदन की अव था
म कर।
6. मई माह म अिधक तापक्रम होने की संभावना रहती है, साथ ही कु छ थान पर
आँधी-तूफान के साथ वषार् भी प्रायः होती है।
गमीर्-जिनत रोग के फै लने से पशुओं म तापघात, जल व लवण की कमी, भूख
कम होना, एवं कम उ पादन जैसे लक्षण देखने को िमलते ह।
पशुओं को धूप व लू से बचाने के उपाय कर।
चारे का संग्रहण, व उसकी समय पर खरीद कर सक, ऐसे उपाय के बारे म सोच।
पशुओं म लवण की कमी नहीं होने पाए, इस हेतु लवण-िम ण िनधार्िरत मात्रा म
दाने या बाँटे म िमलाकर द।
पशुओं के आहार म मौसम के अनुसार आव यक बदलाव कर। गेहूँ का चोकर और
जौ की मात्रा बढ़ाएं।
पशुओं को संतुिलत आहार द, िजससे उनकी दुग्ध उ पादन क्षमता बनी रहे।
िचंचड़ व पेट के कीड़ से पशुओं के बचाव का उिचत प्रब ध कर।
चारे के िलये बोई गई चरी, मक्का एवं बहुऋतुजीवी चारा घास की कटाई कर।
इस माह म भेड़ के ऊन कतरने का कायर् कर।
7. जून माह म अिधकतम तापक्रम बढ़ने से पशुओं म तापघात, जल व लवण की
कमी, भूख कम होना, एवं कम उ पादन जैसे लक्षण देखने को िमलते ह ।
िपछले माह के अनुसार पशुओं को अ यिधक तापक्रम, धूप व लू से बचाने के उपाय
कर।
गमीर् से बचाव हेतु पशुओं को वृक्ष की छाया म रख।
िपछले माह म भेड़ के ऊन कतरने का कायर् न िकया हो तो इस माह म कर ल।
गलघ टु (Haemorrhagic Septicaemia), एवं लंगड़ा बुखार (Black Quarter) बीमारी से
बचाव के टीके अव य लगवाएं।
चारागाह म चरने वाले पशुओं की सुबह, शाम या रात्री म चराई कर, तथा भरपूर
पानी भी िपलाएं।
‘पाइका’ (Pica – depraved appetite) ग्र त पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा
देकर लवण-िमि त आहार प्रदान कर, तािक ‘पाइका’ रोग के लक्षण से छु टकारा
प्रा त हो।
पशुओं को हरा चारा नहीं िमल रहा हो तो ‘िवटािमन ए’ के इंजेक्शन लगवाएं।
पशुओं को िवटािमन एवं लवण-िमि त आहार द।
गिमर् के मौसम म पैदा की गई वार म जहरीले पदाथर् हो सकते ह, जो पशुओं के
िलए हािनकारक ह। अप्रैल म बीजाई की गई वार िखलाने से पहले 2-3 बार पानी
अव य िपलाएं।
घास की रोपाई हेतु खेत की तैयारी कर।
मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग, गलघ टू, ठ पा रोग, फड़िकया
(Enterotoxemia), आिद के टीके लगवा ल।
भेड़ के शरीर को ऊन कतरने के 21 िदन बाद, बा य परजीिवय से बचाने के िलये,
िकटाणु-नाषक घोल से िभगोएं।
8. जुलाई म अिधकांश िह स म वषार् ऋतु आने की स भावना रहती है, तथा कु छ थान पर
आँधी-तूफान के साथ वषार् होती है। ऐसे म गमीर् व नमी जिनत रोग से पशुओं को बचाएं।
ृ िम-नाषक घोल या दवा
देने का समय भी यही है।
अगर मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग, गलघ टू (Haemorrhagic
Septicaemia), ठ पा (Black Quarter) रोग, फड़िकया (Enterotoxemia) रोग आिद के टीके
नहीं लगवाए ह , तो कृ पया अभी लगवा ल। िवशेष प से य क भेड़ और बकिरय को
फड़िकया रोग का टीका लगवाएं।
पशु याँने के दो घ टे के अ दर नवजात बछड़े व बछिड़य को खीस (प्रथम– त य) अव य
िपलाएं।
िसंिचत हरे चारे के खेत म पशुओं को नहीं जाने द, क्य िक ल बी गमीर् के बाद अचानक
वषार् से जो हरे चारे की बढ़वार होती है उसम साइनाइड जहर पैदा होने से चारा जहरीला हो
जाता है। यह वार की फसल म िवशेष तौर पर होता है। ऐसी फसल को समय पूवर् क ची
अव था म ना काट, और न ही पशुओं को िखलाएं।
बहुऋतुजीवी चारा घास की रोपाई कर, और बढ़ रही घास की कटाई 40 से 50 िदन के
अंतर पर करते रह। संतुिलत पशु-आहार के िलए मक्का, वार, बाजरे की, लोिबया व ग्वार
के साथ िमला कर िबजाई कर।
भेड़ के शरीर को ऊन कतरने के 21 िदन बाद, बा य परजीिवय से बचाने के िलये,
िकटाणु-नाषक घोल से िभगोएं।
कीचड़, बाढ़, आिद का प्रभाव पशओु ं पर यनतमू हो, ऐसे उपाय अभी से कर।
वषार्जिनत रोग से बचाव के उपाय नहीं भलू ; अतःं परजीवी व क
यादा दधू देने वाले पशओु ं के याँने के 7-8 िदन तक दग्धु वर (Milk Fever) होने की
संभावना अिधक होती है। इस रोग से पशु को बचाने के िलए उसे गािभन अव था म
उिचत मात्रा म सयू र् की रोशनी िमलनी चािहए। साथ ही गभार्व था के अंितम माह म पशु
िचिक सक वारा लगाया जाने वाला िवटािमन ई व िसलेिनयम का िटका प्रसव उपरांत
होने वाली किठनाईयाँ, जसै े की जेर का न िगरना, इ यािद म लाभदायक होता है, अतः
पानी के साथ 5 से 10 ग्राम चनाू िमलाकर, या कै ि शयम, फा फोरस का घोल 70 से 100
िम.ली. प्रितिदन भी िदया जा सकता है।
9. पशुओं को अ यिधक तापक्रम एवं धूप से बचाने के उपाय कर।
मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग, गलघ टू (Haemorrhagic Septicaemia),
ठ पा (Black Quarter) रोग, फड़िकया (Enterotoxemia) रोग आिद के टीके नहीं लगवाएं
हो, तो कृ पया अभी लगवा ल।
मुँहपका-खुरपका रोग से ग्र त पशुओं को अलग थान अथवा बाड़े म बांध, तािक
संक्रमण व थ पशुओं म नहीं हो। यिद आस-पास के पशुओं म यह रोग फै ल रहा है,
तो अपने पशुओं का सीधा संपकर् रोगी पशुओं से नहीं होने द।
मुँहपका-खुरपका रोग से ग्र त गाय का दूध बछड़ को नहीं पीन द, क्य िक उनम इस
रोग के कारण दयघात से मृ यु हो सकती ह।
रोगग्र त पशुओं के मुंह, खुर व थन के छाल को लाल दवा (Potassium permanganate)
का 1 प्रितशत घोल बना कर धोय। गलघ टू व ठ पा रोग के लक्षण िदखते ही तुरंत पशु
िचिक सक से संपकर् कर।
बोचूिल म (Botulism) की रोकथाम के िलए मृत पशुओं के अवशेष को चारागाह से
अव य हटाएं।
भेड़ बकिरय म पी.पी.आर., भेड़ चेचक (Sheep Pox) व फड़िकया रोग होने की संभावना
रहती है, अतः इन रोग से बचाव के टीके लगवा ल।
पशुओं को अ तः परजीवी तथा कृ िम-नाशक दवाई पशु िचिक सक से परामशर् करके सही
मात्रा म अव य द।
पशुओं को बा य परजीवी से बचाने के िलए उपयुक्त दवाई, पशु िचिक सक से परामशर्
करके अव य िदलवाएं। पशुशाला म फशर्, दीवार आिद साफ रख, अतः िनगुर् डी, तुलसी,
या नींबू घास का गुलद ता पशु-शाला म लटका िदया जाए, क्य िक इसकी गंध बा य
परजीिवय को दूर रखती है। पशु-शाला को कीटाणुरिहत करने के िलए नीम तेल
आधािरत कीटनाशक का प्रयोग कर।
बरसात के मौसम म पशु घर को सूखा रख, एवं मक्खी रिहत करने के िलए नीलिगिर
या िन बू घास के तेल का िछड़काव करते रह।
पशुओं को खिनज िम ण 30-50 ग्राम प्रितिदन द, िजससे पशु की दूध उ पादन और
शारीिरक क्षमता बनी रह।
10. अ छा मानसून होने पर पशु-शाला म जल भराव सम या व आद्रता जिनत रोग के
संक्रमण की प्रबल स भावना रहती है, अतः वषार् जल िनकासी का समुिचत प्रबंधन कर।
पशुओं को यथासंभव सूखे व ऊँ चे थान पर रख।
चारे का पयार् त और उपयुक्त भ डारण सूखे व ऊँ चे थान पर कर।
चारागाह/बाड़े की साफ-सफाई का िवशेष यान रख। समय-समय पर फशर् व दीवार पर
चूने के घोल का िछड़काव कर।
वातावरणीय तापमान म उतार-चढ़ाव से पशुओं को बचाने के उपाय पर यान द।
दुग्ध वर (Milk Fever) से दुधा पशुओं को बचाने के िलए जुलाई माह म दीये गए
उपचार का पालन कर।
पशुओं का परजीिवय से बचाव कर। िवशेष प से मेमन को फड़िकया (Enterotoxemia)
रोग का टीका लगवाएं।
गाय के मद (हीट) म आने के 12 से 18 घ टे के अ दर गािभन करवाने का उिचत
समय है।
हरे चारे की बहु-उपल धता के कारण पशुओं म हरे चारे के अिधक सेवन से स बंिधत
सम याओं से बचने के िलए, पशुओं को बाहर खुले म चरने के िलए नहीं भेजे, इससे
संक्रमण होने की संभावना बढती है। लवण-िम ण को चारे/दाने के साथ द।
हरे चारे से साईलेज बनाएं, अतः हरे चारे के साथ सूखे चारे को िमलाकर िखलाएं।
बहुऋतुजीवी घास की कटाई करते रह; यथा आव यक उवर्रक, गोबर की खाद अथवा
क पो ट डालते रह।
बरसीम व िरजका की िबजाई इस माह के अि तम स ताह म शु कर सकते है।
इस माह म भेड़ के ऊन कतरने का कायर् कर।
11. इस माह से सदीर् का मौसम शु हो जाता है, अतः पशुओं का सदीर् से बचाव का
उिचत प्रब ध कर।
िपछले माह म भेड़ के ऊन कतरने का कायर् न िकया हो तो इस माह म कर ल।
मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग होने पर पशु के प्रभािवत भाग को
लाल दवा (Potassium permanganate) 1 प्रितशत घोल से उपचािरत कर।
मुँहपका-खुरपका रोग, गलघ टू (Haemorrhagic Septicaemia), ठ पा (Black Quarter)
रोग, फड़िकया (Enterotoxemia) रोग आिद के टीके यिद अभी भी नहीं लगवाएं ह ,
तो कृ पया समय रहते लगवा ल।
परजीवी तथा कृ िम नाशक दवा/घोल देने का समय भी उपयुक्त है। परजीवीनाशक
दवा को बारी बारी से बदल कर उपयोग म ल।
चारे की सही समय पर खरीद-फरोख्त व संग्रहण पर पूरा यान द।
पशुओं को लवण-िम ण िनधार्िरत मात्रा म दाने या बाँट म िमलाकर द।
हरी घास व चारे की उपल धता बढ़ने पर भी पशु आहार म चारे की मात्रा िनयंित्रत
ही रख, व सूखे चारे की मात्रा बढ़ा कर द, क्य िक हरे चारे को अिधक मात्रा म
खाने से पशुओं म हरे रंग की द त अथवा एिसडोिसस (रक्त म अ लता की वृ िध)
की सम या हो सकती है।
अिधक चारा लेने के िलए बरसीम फसल की उ नत िक म बी.एल.10, बी.एल.22,
वरदान, जे.एच.बी. 146 व बी.एल.42 की िबजाई इस माह अव य कर ल।
भेड़ के शरीर को ऊन कतरने के 21 िदन बाद, बा य परजीिवय से बचाने के िलये,
िकटाणु-नाषक घोल से िभगोएं।
12. इस माह म तापक्रम अचानक कम होने की ि थित म पशुओं को सदीर् से बचाने के
उपाय करने ह ग, इसके िलए रात म पशुओं को खुले म ना बांधे।
पशुओं का िबछावन सूखा होना चािहए तथा प्रितिदन बदल द।
मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग, गलघ टू (Haemorrhagic Septicaemia),
भेड़/बकरी चेचक (Sheep/Goat Pox), ठ पा (Black Quarter), फड़िकया (Enterotoxemia) रोग
आिद के टीके यिद अभी भी नहीं लगवाएं ह , तो कृ या समय रहते लगवा ल।
थनैला (Mastitis) रोग से बचाव के उपाय कर।
परजीवीनाशक दवा या घोल देने से पशुओं को परजीवी प्रकोप से बचाया जा सकता
है, िजससे ना के वल पशुओं के वा य म सुधार होगा, अिपतु जो भोजन पशु खाता
है उसका शरीर म सदुपयोग होगा तथा उ पादन बढ़ेगा।
पशुओं को लवण-िम ण िनधार्िरत मात्रा म दाने या बाँट म िमलाकर द।
चारे की सही समय पर खरीद-फरोख्त व संग्रहण पर पूरा यान द।
बहुऋतुजीवी घास की कटाई कर ल। इसके बाद ये सु ताव था म चली जाती है,
िजससे अगली कटाई तापमान बढ़ने पर फरवरी-माचर् म ही प्रा त होती है।
जई फसल से अिधक चारा लेने के िलए उ नत िक म, जैसे िक िसरसा जई 6,
िसरसा जई 9, जे.एच.ओ. 822, जे.एच.ओ. 851 की िबजाई माह के म य से शु
कर।
बरसीम व िरजका की िबजाई माह के म य तक अव य पूरी कर ल।
तीन वषर् म एक बार पी.पी.आर. का टीका भेड़ और बकिरय को अव य लगवाएं।
भेड़ के शरीर को ऊन कतरने के 21 िदन बाद, बा य परजीिवय से बचाने के िलये,
िकटाणु-नाषक घोल से िभगोएं।
13. पशुओं का सदीर् से बचाव का उिचत प्रब ध कर। रात म पशुओं को अंदर गमीर् वाले
थान, जैसे िक छत के नीचे या घास-फू स की छ पर तले बांध।
मुँहपका-खुरपका (Foot and Mouth Disease) रोग, गलघ टू (Haemorrhagic
Septicaemia), भेड़ चेचक (Sheep Pox), फड़िकया (Enterotoxemia) रोग आिद के टीके
यिद अभी भी नहीं लगवाएं ह , तो कृ पया समय रहते लगवा ल।
पशुओं को खिनज लवण-िम ण िनधार्िरत मात्रा म दाने या बाँट म िमलाकर द।
दुधा पशुओं को थनैला (Mastitis) रोग से बचाने के िलए पूरा दूध िनकाल, और दुध
दोहने के बाद थन को कीटाणु नाशक घोल म धो ल।
पशु आहार म हरे चारे की मात्रा िनयंित्रत ही रख, व सूखे चारे की मात्रा बढ़ा कर द,
क्य िक हरे चारे को अिधक मात्रा म खाने से पशुओं म द त इ यादी की सम या हो
सकती है।
यिद इस समय वातावरण म बादल नहीं है, और पशुओं को िखलाने के प चात
अितिरक्त हरा चारा बचा हुआ हो, तो उसे छाया म सुखाकर ‘हे’(सूखी घास) के प
म संरिक्षत कर।
िबजाई के 50-55 िदन के बाद बरसीम, एवं 55-60 िदन बाद जई की चारे के िलए
कटाई कर। इसके प चात बरसीम की कटाई 25-30 िदन के अ तराल पर करते रह।
िदस बर की चटकीली धुप म चारा प्रदान करने वाले वृक्ष की छंटाई के बाद पि य
आिद को छाया म सुखाकर गमीर् के मौसम म जब कम चारा उपल ध रहता है, उस
समय पशुओं को िखलाने के िलए संग्रहण कर।