5. 1.शबदालंक ार :-
िजस अलंकार मे शबदो के पयोग के कारण कोई चमतकार उपिसथत हो जाता है
और उन शबदो के सथान पर समानाथी दूसरे शबदो के रख
देने से वह चमतकार समाप हो जाता है, वह पर शबदालंकार माना जाता है।
शबदालंकार के पमुख भेद है -
1.अनुपास 2.यमक 3.शेष
1.अनुप ास :- अनुपास शबद 'अनु‘ तथा 'पास‘ शबदो के योग से बना है । 'अनु' का अथर है :- बार- बार तथा
'पास‘ का अथर है -वणर । जहाँ सवर की समानता के िबना भी वणो की बार -बार आवृित होती है ,वहाँ अनुपास
अलंकार होता है । इस अलंकार मे एक ही वणर का बार -बार पयोग िकया जाता है ।
जैसे -
जन रं जन मंज न दनुज मनुज रप सुर भूप ।
िवश बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
6. 2. यमक अलंक ार :-
जहाँ एक ही शबद अिधक बार पयुक हो , लेिकन अथर हर बार िभन हो , वहाँ यमक अलंकार
होता है। उदाहरण -
कनक कनक ते सौगुन ी ,मादकता अिधकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा पाये बौराय। ।
यहाँ कनक शबद की दो बार आवृित हई है िजसमे एक कनक का अथर है –
धतूरा और दूसरे का सवणर है ।
7. 3.शेष अलंक ार :-
ार
जहाँ पर ऐसे शबदो का पयोग हो ,िजनसे एक से अिधक अथर िनलकते हो ,वहाँ पर शेष
अलंकार होता है ।जैसे -
िचरजीवो जोरी जुरे कयो न सनेह गंभ ीर ।
को घिट ये वृष भानुज ा ,वे हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानुजा के दो अथर है -
1. वृषभानु की पुत्री राधा
2.वृषभ की अनुजा गाय ।
इसी पकार हलधर के भी दो अथर है -
1. बलराम
2. हल को धारण करने वाला बैल ।
11. 4.अितशयोिक अलंक ार :-
जहाँ पर लोक - सीमा का अितकमण करके िकसी िवषय का वणरन होता है । वहाँ पर अितशयोिक
अलंकार होता है।
उदाहरण -
हनुम ान की पूंछ मे लगन न पायी आिग ।
सगरी लंक ा जल गई ,गये िनसाचर भािग। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ मे आग लगते ही समपूण लंका का जल जाना तथा राकसो का भाग
र
जाना आिद बाते अितशयोिक रप मे कही गई है।
12. 5.संदे ह अलंक ार :-
जहाँ पसतुत मे अपसतु त का संशयपूणर वणरन हो ,वहाँ संदह अलंकार होता है।
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जैसे –
'सारीिबच नारी है िक नारी िबच सारी है ।
िक सारी हीकी नारी है िक नारी हीकी सारी है । ‘
इस अलंकार मे नारी और सारी के िवषय मे संशय है अतः यहाँ संदह अलंकार है ।
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13. 6.दृ ष ानत अलंक ार :-
जहाँ दो सामानय या दोनो िवशेष वाकय मे िबमब -
पितिबमब भाव होता है ,वहाँ पर दृषानत अलंकारहोता है। इस अलंकार मे उपमेय रप मे कही गई बात से िम
लती -जुलती बात उपमान रप मे दूसरे वाकय मे होती है।
उदाहरण :-
'एक मयान मे दो तलवारे ,कभी नही रह सकती है ।
िकसी और पर पेम नािरयाँ,पित का कया सह सकती है । । ‘
इस अलंकार मे एक मयान दो तलवारो का रहना वैसे ही असंभव है जैसा िक एक
पित का दो नािरयो पर अनुरक रहना । अतः यहाँ िबमब-पितिबमब भाव दृिषगत हो रहा है।