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२४ फरवरी, २०१५
चेन्नई,
प्रणाम
सवर्प्रथम राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार के िलए चयिनत माननीय श्री िगरीश पंकज जी, डा० पवन
िवजय जी, श्री प्रदीप तरकश जी , श्री िशव चाहर जी ,श्रीमती इस्मत ज़ैदी िशफ़ा जी को बहुत बहुत
शुभकामनाएं। भारतीय भाषाओं के िलए आपके द्वारा िकये गये समस्त प्रयासों को मेरा नमन।
मैं यहाँ चुनाव सिमित के अध्यक्ष श्री सतीश सक्सेना जी को बधाई देना चाहता हूँ िजन्होंने िहंदी भाषा
के िलए चुनाव सिमित के अध्यक्ष का कायर्भार संभाला और पूरी िनष्पक्षता के साथ इस कायर् का
िनवर्हन िकया, चुनाव सिमित के अन्य सदस्य श्रीमती वंदना अवस्थी दुबे, श्री संतोष ित्रवेदी, श्री
अिभव्रत अक्षांश, को भी हािदर् क आभार िजन्होंने सिमित के कायोर्ं का िनवर्हन िकया। मुझे कहते हुए
बड़ी प्रसन्नता हो रही है िक आनंद ही आनंद फाउंडेशन के िबना हस्तक्षेप और पूणर्तः स्वतंत्र तरीके से
चुनाव सिमित ने अपना कायर् िकया, भारत में पुरस्कारों की इस नयी परंपरा का भी स्वागत है ,पुरस्कार
देने वाली संस्था चयन प्रिक्रया से िबलकु ल अलग है।
िपछले वषर् जुलाई माह में इस पुरस्कार के िलए ये योजना बनायी थी और इसका उद्देश्य था, भारतीय
भाषाओं में संवाद का एक नया युग स्थािपत िकया जाये मैंने जुलाई २०१४ में कहा था
" भाष्य गौरव” पुरस्कार का प्रमुख उद्देश्य भारतीय भाषाओँ के संरक्षण में सामूिहक तौर पर
एक भाष्य क्रांित को ला देने का िवचार है , भारतीय भाषाएँ आज एक किठन दौर से गुजर
रहीं है ( वो िहंदी हो, या मराठी, बंगाली, अवधी, भोजपुरी, तिमल, तेलगु, कन्नड़, ओिरया एवं
अन्य ) इस किठन दौर में भारतीय भाषाओं में सामूिहक तौर पर समाज का िचं तन बड़ा कम
हो गया है। आज का युवा अपनी मातृ-भाषा सही तरीके से पढ़ भी नहीं सकता, इस किठन
दौर में यह आवश्यक है िक भारतीय भाषाओँ को सुरिक्षत रखने और संवाद की दुिनया में
अपनी िस्थित प्रकट करने के िलए सामूिहक तौर पर इस क्षेत्र में प्रयास िकये जाएँ
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k , я я , , 440010
53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000
आज भारतीय भाषाओँ में उत्तम सािहत्य बहुत ही कम िमलता है, और जो सािहत्य हम िवदेशी
भाष्य में पैदा कर भी पा रहे रहें है वो बड़े नाटकीय हैं ( देखें िकतनी सफलता हमें िमली है
अंतरार्ष्ट्रीय तौर पर? आज सबसे सफल सािहत्य वो है जो अपनी मौिलक भाषा में िलखा
गया है ) सािहत्य िकसी राष्ट्र की जीवंतता का पिरचय है, ये पिरचय तभी जाग्रत हो सकता है
जब हम स्थानीय भाषाओं में िलखना और पढ़ना शुरू करें। जब एक गहरा िचं तन स्थानीय
भाष्य में प्रकट होने लगेगा तब हम एक प्रामािणक सािहत्य का भी स्थान दे पाएंगे।
एक अन्य बात यह है िक भारत एक दूसरी गहन िस्थित से गुजर रहा है जहाँ हमारा स्थानीय
पिरवेश और उसके साथ जुड़ी हुई बातें हमारे समक्ष कभी प्रकट ही नहीं होतीं। आज भारत
के िकतने गाँव और शहर अपनी त्रासदी से िसफर् इसिलए नहीं गुजर रहे िक वहां रोजगार नहीं
है या अन्य समस्या बिल्क इसिलए िक आज अपने ग्राम, नगर, शहर और उसके साथ जुडी
हुई बातों से हम अनिभज्ञ हैं। हम अपने स्थानीय पिरवेश में भी एक िवदेशी की तरह जीते हैं,
और जब हम अपने स्थानीय पिरवेश में िवदेशी की तरह जीते रहेंगे तब हम उसके साथ वैसा
ही वतार्व करते हैं। आज शहरों और गाँव से स्थानीय खान, पान, एक तरीके से सारी संस्कृ ित
ही खत्म होते जा रही है, हम स्वयं अपनी संस्कृ ित को खत्म करने का मागर् रच रहे हैं। आज
भारत का सारा ऐितहािसक वैभव हािसये पर खड़ा है, हमारी ऐितहािसक खोज को हम खुद
ही नकार रहे हैं। ना जाने िकतने भवन, स्थल, प्रांगण, निदयां, खान पान, जो हमारे स्थानीय
जीवन की पहचान हुआ करता था, आज हमें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं।
आज के बच्चे िजतनी जानकारी अमेिरका के राज्यों के बारे में रखते हैं शायद उतनी
जानकारी अपने राज्य और िजले के बारे में भी नहीं होती। भाष्य गौरव पुरस्कार का प्रयास है
िक वो हमें अपने शहर, राज्य और स्थान से अपनी भाषा के माध्यम से जोड़ सके , हम खुद को
और दूसरों को अपने भारत से पिरिचत करा सकें , और इसी पिरचय की धरा में भाषाओँ के
गौरव को पुनः स्थािपत कर सकें । भारत अपना गौरव तभी प्राप्त कर सकता है जब हम भारत
की भारतीयता में स्वयं को समािहत कर लें।
भारतीय समाज में न जाने िकतने ऐसे लोग रहे हैं िजन्होंने इस समाज को महत्वपूणर् योगदान
िदया है, वो चाहें स्थानीय िशक्षक, डॉक्टर, वकील, लेखक, समाजसेवी या कोई और। पर
उनके सम्बन्ध में हमारी सामािजक दृिष्ट सीिमत रही और उनके योगदान को बहुत कम लोग
देख पाये। मेरा मानना है िक हमारे सामािजक प्रतीक हमसे बहुत दूर हैं, भारत को आज
दूसरी जरुरत इन स्थानीय प्रतीकों को पुनः स्थािपत करने की है, िजनसे उस राज्य, प्रदेश,
िजले, शहर के लोग अपना व्यिक्तगत सम्बन्ध स्थािपत कर सकें , हम जीवन में सबसे ज्यादा
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उनसे सीखते हैं िजनसे हम व्यिक्तगत सम्बन्ध स्थािपत कर सकते हैं। भाष्य गौरव पुरस्कार के
तहत कु छ ऐसे िवषय ( जीवनी ) िलए जा रहें हैं, जहाँ से मैं समझता हूँ िक अगर स्वतंत्र
लेखन हुआ तो हमारे सामने न जाने िकतने नायक प्रकट हो जायेंगे, स्थानीय भाषाओँ में
जीिवत ये नायक समाज को एक नया क्रम लाकर दे सकते हैं। भाष्य गौरव पुरस्कार लेखन
की कला के आधार से इस क्षेत्र में भी अपनी भूिमका देने में सफल हो जायेगा।
भाष्य गौरव पुरस्कार का उद्देश्य स्थानीय समाज और संस्कृ ित के प्रित जाग्रित पैदा करना
और साथ ही साथ लेखन और कला को िवकिसत करते हुए स्थानीय भाषाओं में एक नयी
जानकारी को पैदा करते हुए पूरे भारत को भारत से पिरिचत कराना है। मैं समझता हूँ, भारत
को आज अपनी भाषाओं में ही भारत की दुबारा खोज करनी होगी, अन्यथा भारत सांस्कृ ितक
तौर पर अपने आप को स्वयं खत्म कर लेगा।
आइये िमलकर अपने समाज, अपने शहर और नगरों से लेखन कला और अपनी भाषा में एक
बार िफर से भारत को पुनजीर्िवत िकया जाये, बनाया जाय एक ऐसा भारत जहाँ हमें अपनी
भाषाओँ में पढ़ने, िलखने, बोलने और संवाद करने में हीनता का एहसास न हो। भारत के
गौरव को भारतीयता से पुनः जीवंत करें और अपने समाज में एक नयी नूतन क्रांित समस्त
भाषाओँ के िलए लाकर संवादों का नया अध्याय प्रस्तुत करें"
आज इस पहले वषर् इन पुरस्कारों के साथ मैं आशा करता हूँ िक यह पुरस्कार एक नयी क्रांित का सूत्र
जरूर बनेगा।
आपका
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  • 1. २४ फरवरी, २०१५ चेन्नई, प्रणाम सवर्प्रथम राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार के िलए चयिनत माननीय श्री िगरीश पंकज जी, डा० पवन िवजय जी, श्री प्रदीप तरकश जी , श्री िशव चाहर जी ,श्रीमती इस्मत ज़ैदी िशफ़ा जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं। भारतीय भाषाओं के िलए आपके द्वारा िकये गये समस्त प्रयासों को मेरा नमन। मैं यहाँ चुनाव सिमित के अध्यक्ष श्री सतीश सक्सेना जी को बधाई देना चाहता हूँ िजन्होंने िहंदी भाषा के िलए चुनाव सिमित के अध्यक्ष का कायर्भार संभाला और पूरी िनष्पक्षता के साथ इस कायर् का िनवर्हन िकया, चुनाव सिमित के अन्य सदस्य श्रीमती वंदना अवस्थी दुबे, श्री संतोष ित्रवेदी, श्री अिभव्रत अक्षांश, को भी हािदर् क आभार िजन्होंने सिमित के कायोर्ं का िनवर्हन िकया। मुझे कहते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है िक आनंद ही आनंद फाउंडेशन के िबना हस्तक्षेप और पूणर्तः स्वतंत्र तरीके से चुनाव सिमित ने अपना कायर् िकया, भारत में पुरस्कारों की इस नयी परंपरा का भी स्वागत है ,पुरस्कार देने वाली संस्था चयन प्रिक्रया से िबलकु ल अलग है। िपछले वषर् जुलाई माह में इस पुरस्कार के िलए ये योजना बनायी थी और इसका उद्देश्य था, भारतीय भाषाओं में संवाद का एक नया युग स्थािपत िकया जाये मैंने जुलाई २०१४ में कहा था " भाष्य गौरव” पुरस्कार का प्रमुख उद्देश्य भारतीय भाषाओँ के संरक्षण में सामूिहक तौर पर एक भाष्य क्रांित को ला देने का िवचार है , भारतीय भाषाएँ आज एक किठन दौर से गुजर रहीं है ( वो िहंदी हो, या मराठी, बंगाली, अवधी, भोजपुरी, तिमल, तेलगु, कन्नड़, ओिरया एवं अन्य ) इस किठन दौर में भारतीय भाषाओं में सामूिहक तौर पर समाज का िचं तन बड़ा कम हो गया है। आज का युवा अपनी मातृ-भाषा सही तरीके से पढ़ भी नहीं सकता, इस किठन दौर में यह आवश्यक है िक भारतीय भाषाओँ को सुरिक्षत रखने और संवाद की दुिनया में अपनी िस्थित प्रकट करने के िलए सामूिहक तौर पर इस क्षेत्र में प्रयास िकये जाएँ 1 k , я я , , 440010 53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000
  • 2. आज भारतीय भाषाओँ में उत्तम सािहत्य बहुत ही कम िमलता है, और जो सािहत्य हम िवदेशी भाष्य में पैदा कर भी पा रहे रहें है वो बड़े नाटकीय हैं ( देखें िकतनी सफलता हमें िमली है अंतरार्ष्ट्रीय तौर पर? आज सबसे सफल सािहत्य वो है जो अपनी मौिलक भाषा में िलखा गया है ) सािहत्य िकसी राष्ट्र की जीवंतता का पिरचय है, ये पिरचय तभी जाग्रत हो सकता है जब हम स्थानीय भाषाओं में िलखना और पढ़ना शुरू करें। जब एक गहरा िचं तन स्थानीय भाष्य में प्रकट होने लगेगा तब हम एक प्रामािणक सािहत्य का भी स्थान दे पाएंगे। एक अन्य बात यह है िक भारत एक दूसरी गहन िस्थित से गुजर रहा है जहाँ हमारा स्थानीय पिरवेश और उसके साथ जुड़ी हुई बातें हमारे समक्ष कभी प्रकट ही नहीं होतीं। आज भारत के िकतने गाँव और शहर अपनी त्रासदी से िसफर् इसिलए नहीं गुजर रहे िक वहां रोजगार नहीं है या अन्य समस्या बिल्क इसिलए िक आज अपने ग्राम, नगर, शहर और उसके साथ जुडी हुई बातों से हम अनिभज्ञ हैं। हम अपने स्थानीय पिरवेश में भी एक िवदेशी की तरह जीते हैं, और जब हम अपने स्थानीय पिरवेश में िवदेशी की तरह जीते रहेंगे तब हम उसके साथ वैसा ही वतार्व करते हैं। आज शहरों और गाँव से स्थानीय खान, पान, एक तरीके से सारी संस्कृ ित ही खत्म होते जा रही है, हम स्वयं अपनी संस्कृ ित को खत्म करने का मागर् रच रहे हैं। आज भारत का सारा ऐितहािसक वैभव हािसये पर खड़ा है, हमारी ऐितहािसक खोज को हम खुद ही नकार रहे हैं। ना जाने िकतने भवन, स्थल, प्रांगण, निदयां, खान पान, जो हमारे स्थानीय जीवन की पहचान हुआ करता था, आज हमें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं। आज के बच्चे िजतनी जानकारी अमेिरका के राज्यों के बारे में रखते हैं शायद उतनी जानकारी अपने राज्य और िजले के बारे में भी नहीं होती। भाष्य गौरव पुरस्कार का प्रयास है िक वो हमें अपने शहर, राज्य और स्थान से अपनी भाषा के माध्यम से जोड़ सके , हम खुद को और दूसरों को अपने भारत से पिरिचत करा सकें , और इसी पिरचय की धरा में भाषाओँ के गौरव को पुनः स्थािपत कर सकें । भारत अपना गौरव तभी प्राप्त कर सकता है जब हम भारत की भारतीयता में स्वयं को समािहत कर लें। भारतीय समाज में न जाने िकतने ऐसे लोग रहे हैं िजन्होंने इस समाज को महत्वपूणर् योगदान िदया है, वो चाहें स्थानीय िशक्षक, डॉक्टर, वकील, लेखक, समाजसेवी या कोई और। पर उनके सम्बन्ध में हमारी सामािजक दृिष्ट सीिमत रही और उनके योगदान को बहुत कम लोग देख पाये। मेरा मानना है िक हमारे सामािजक प्रतीक हमसे बहुत दूर हैं, भारत को आज दूसरी जरुरत इन स्थानीय प्रतीकों को पुनः स्थािपत करने की है, िजनसे उस राज्य, प्रदेश, िजले, शहर के लोग अपना व्यिक्तगत सम्बन्ध स्थािपत कर सकें , हम जीवन में सबसे ज्यादा 2 k , я я , , 440010 53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000
  • 3. उनसे सीखते हैं िजनसे हम व्यिक्तगत सम्बन्ध स्थािपत कर सकते हैं। भाष्य गौरव पुरस्कार के तहत कु छ ऐसे िवषय ( जीवनी ) िलए जा रहें हैं, जहाँ से मैं समझता हूँ िक अगर स्वतंत्र लेखन हुआ तो हमारे सामने न जाने िकतने नायक प्रकट हो जायेंगे, स्थानीय भाषाओँ में जीिवत ये नायक समाज को एक नया क्रम लाकर दे सकते हैं। भाष्य गौरव पुरस्कार लेखन की कला के आधार से इस क्षेत्र में भी अपनी भूिमका देने में सफल हो जायेगा। भाष्य गौरव पुरस्कार का उद्देश्य स्थानीय समाज और संस्कृ ित के प्रित जाग्रित पैदा करना और साथ ही साथ लेखन और कला को िवकिसत करते हुए स्थानीय भाषाओं में एक नयी जानकारी को पैदा करते हुए पूरे भारत को भारत से पिरिचत कराना है। मैं समझता हूँ, भारत को आज अपनी भाषाओं में ही भारत की दुबारा खोज करनी होगी, अन्यथा भारत सांस्कृ ितक तौर पर अपने आप को स्वयं खत्म कर लेगा। आइये िमलकर अपने समाज, अपने शहर और नगरों से लेखन कला और अपनी भाषा में एक बार िफर से भारत को पुनजीर्िवत िकया जाये, बनाया जाय एक ऐसा भारत जहाँ हमें अपनी भाषाओँ में पढ़ने, िलखने, बोलने और संवाद करने में हीनता का एहसास न हो। भारत के गौरव को भारतीयता से पुनः जीवंत करें और अपने समाज में एक नयी नूतन क्रांित समस्त भाषाओँ के िलए लाकर संवादों का नया अध्याय प्रस्तुत करें" आज इस पहले वषर् इन पुरस्कारों के साथ मैं आशा करता हूँ िक यह पुरस्कार एक नयी क्रांित का सूत्र जरूर बनेगा। आपका 3 k , я я , , 440010 53 BD DE LA TOUR D’AUVERGNE, RENNES, FRANCE, 35000