1. टेलीववजन
टीआरपी के 8,000 मीटरों के आधार पर लगाया है. अि टैम ने इसमें
150 मीटर और जोड़ बिए हैं.
मीटिों के इस भेिभािपूणर् िंटिारे के नतीजे की ओर इशारा करते
हुए बसंह कहते हैं, ‘आप िेखते होंगे बक बिकली या मुंिई की कोई छोटी-
सी खिर भी रा£ीय खिर िन जाती है लेबकन आजमगढ़ या गोपालगंज
की िड़ी घटना को भी खिबरया चैनलों पर जगह पाने के बलए संघषर् करना
पड़ता है. इसबलए बक टीआरपी के मीटर िहां नहीं हैं जिबक मुंिई में 501
और बिकली में 530 टीआरपी मीटर हैं. टीआरपी िड़े शहरों के आधार पर तय
होती है, इसबलए खिरों के मामले में भी इन शहरों का िभुत्ि बिखता है. इसके
आधार पर कहा जा सकता है बक खिर और टीआरपी के बलए चलाई जा रही
खिर में फकर् होता है.’
एनके बसंह ने जो तथ्य रखे हैं िे इस िात की पुबट कर रहे हैं बक टीआरपी कुछ
ही शहरों के लोगों की पसंि-नापसंि के आधार पर तय की जा रही है. जिबक
डीटीएच के िसार के िाि टीिी िेखने िाले लोगों की संयया छोटे शहरों और
गांिों में भी तेजी से िढ़ी है. इसके िािजूि िहां तक टैम के िे मीटर नहीं पहुंचे
हैं बजनके आधार पर टीआरपी तय की जा रही है. मीटर उन्हीं जगहों पर लगे हैं
जहां की आिािी एक लाख से अबधक है. इसबलए िड़े शहरों के िशर्कों की पसंि-
नापसंि को ही छोटे शहरों और गांि के लोगों की पसंि-नापसंि मान बलया जा
रहा है. थथायी संसिीय सबमबत के सामने सूचना और िसारण मंिालय, ट्राई, िसार
भारती, िसारण बनगम और इंबडयन िाॅडकाबथटंग फाउंडशन ने भी माना है बक
े
ग्रामीण भारत को िशार्ए िगैर कोई भी रेबटंग पूरी तरह सही नहीं हो सकती.
सुधार की ओर
टेलीविजन रेवटंग व्यिस्था को िुरुथत करने के मकसि से िसारकों
और बिज्ापन क्षेि की िड़ी कंपबनयों ने बमलकर कुछ महीने पहले
िॉडकाथट ऑबडएंस बरसचर् काउंबसल यानी िाकर् का गठन बकया है.
अबमत बमिा सबमबत की बसफाबरशों के मुताबिक मीटरों की संयया िढ़ाकर
िाकर् कंपनी अबधबनयम 1956 की धारा 25 के तहत गबठत की गई है
30,000 कर िी जाए तो भी तया गारंटी है बक टीआरपी की पूरी िबिया पर
और यह एक गैरलाभकारी संथथा होगी. जि िाकर् का गठन बकया
सिाल नहीं उठेंग.े आलोचक इस पर तकर् िेते हैं बक सिाल तो ति भी उठेंगे गया था तो कहा गया था बक यह बिटेन की िॉडकाथटसर् ऑबडएंस
लेबकन टीआरपी की बिकिसनीयता िढ़ेगी. बरसचर् िोडट यानी िािर् के मॉडल को अपनाएगी. हालांबक, अि तक
सिाल केिल मीटरों की कम संयया का ही नहीं है िबकक इनका िंटिारा िाकर् की कोई उकलेखनीय गबतबिबध बिखी नहीं है.
भी भेिभािपूणर् है. अि भी पूिोर्त्तर के राज्यों और जम्मू-ककमीर में टीआरपी भारत की पबरबथथबतयों में िािर् की कायर्पधबत को सिसे उपयुतत
मीटर नहीं पहुंचे हैं. ज्यािा मीटर िहीं लगे हैं जहां के लोगों की िय क्षमता अबधक िताया जा रहा है. इसके पक्ष में कई तकर् बिए जा रहे हैं. पहली िात तो
है. आशुतोष कहते हैं, 'लोगों की िय क्षमता को ध्यान में रखकर टीआरपी के यह बक इसके पैनल का बडजाइन समानुपाबतक है और बकसी भी
मीटर लगाए गए हैं. यह सही नहीं है. सिसे ज्यािा मीटर बिकली और मुिई में ं भौगोबलक और जनसांबययकीय अनुपातहीनता को िूर करने के बलए
हैं. जिबक बिहार की आिािी काफी अबधक होने के िािजूि िहां बसफर् 165 इसमें पयार्प्त ध्यान बिया जाता है. इसके पैनल में समाज के सभी आयु
मीटर ही हैं. पूिोर्त्तर और जम्मू-ककमीर तक तो मीटर पहुंचे ही नहीं हैं. इससे पता िगोों और सामाबजक िगोों का िबतबनबधत्ि सुबनबकचत बकया गया है.
चलता है बक टीआरपी की व्यिथथा बकतनी खोखली है.' िािर् 52,000 साक्षात्कारों के आधार पर अपना सालाना सिवेक्षण
एनके बसंह इस िात को कुछ इस तरह रखते हैं, ‘35 लाख की आिािी करता है. इस सिवेक्षण की रूपरेखा इस तरह तैयार की गई है बक
िाले शहर अहमिािाि में टीआरपी के 180 मीटर लगे हुए हैं. जिबक 10.5 साक्षात्कार के बलए बिटेन के बकसी भी घर को चुना जा सकता है.
करोड़ की आिािी िाले राज्य बिहार में बसफर् 165 टीआरपी मीटर ही हैं. िेश िािर् ने अपने हर काम के बलए एक अलग एजेंसी या कंपनी के साथ
के आठ िड़े शहरों में तकरीिन चार करोड़ लोग रहते हैं और इन लोगों के अनुिंध कर रखा है. इससे आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ की संभािना
बलए टीआरपी के 2,690 मीटर लगे हैं. जिबक िेश के अन्य बहथसों में रहने कम हो जाती है. िािर् हर रोज भी आंकड़े मुहैया कराती है और
िाले 118 करोड़ लोगों के बलए 5,310 टीआरपी मीटर हैं.’ बसंह ने यह बहसाि साप्ताबहक थतर पर भी.
15 अक्टूबर 2011 तहलका आवरण कथा 43