1. टेलीववजन
कुछ उपहार िेने की िात सामने आई थी. खिर आने के िाि हर तरफ हो-हकला होते गए और इनकी जगह सनसनी और मनोरंजन ने ले ली. और यह पूरा खेल
मचा. बिज्ापनिाताओं ने भी सिाल उठाए और चैनल के लोगों ने भी. बिज्ापन हुआ उस टीआरपी के नाम पर बजसकी व्यिथथा में खुि ही कई खाबमयां हैं.
के रूप में 2500 करोड़ रु (यह 2001 का आंकड़ा है जो आज 10 हजार करोड़
से भी ज्यािा हो गया है) की रकम बजस आधार पर खचर् हो रही हो उसी में बमलािट हालांकि यह भी बिलचथप है बक कुछ समय पहले तक समाचार चैनलों को
की खिर बमले तो ऐसा होना थिाभाबिक ही था. रेबटंग तय करने िाली एजेंसी ने चलाने िाले लोग अतसर यह तकर् बिया करते थे बक समय के साथ खिरों की
बफर गोपनीयता का भरोसा बिलाया. कहा बक जो गलबतयां हुई हैं उन्हें सुधार बलया पबरभाषा ििल गई है. लेबकन अि जि टीआरपी की पूरी िबिया की पोल धीरे-
जाएगा. िात आई-गई हो गई. लेबकन 10 साल िाि पटना की घटना ने एक िार धीरे खुल रही है और उसी टीआरपी ने चैनल िमुखों की नौकबरयों को चुनौती
बफर टीआरपी नाम की इस व्यिथथा की खाबमयों का संकत िे बिया है.
े िेना शुरू कर बिया है तो कई टीआरपी की व्यिथथा पर सिाल उठाने लगे हैं.
िैसे इन 10 िषोों के िौरान भी कई मतर्िा टीआरपी पर सिाल उठते रहे हैं. आगे िढ़ने से पहले टीआरपी से संिबं धत कुछ िुबनयािी िातों को समझना
2001 के िाि से िेश में समाचार चैनलों की संयया तेजी से िढ़ी और समय के जरूरी है. अभी िेश में टीआरपी तय करने का काम टैम मीबडया बरसचर् नामक
साथ खिरों की पबरभाषा भी ििलती चली गई. आरोप लगे बक खिरों की जगह कंपनी करती है. यहां टैम का मतलि है टेलीबिजन ऑबडएंस मेजरमेंट. रेबटंग तय
भूत-िेत और नाग-नाबगन ने ले ली है. यह भी बक खिबरया चैनल मनोरंजन चैनलों करने के बलए एक िूसरी कंपनी भी है बजसका नाम है एमैप. हालांबक, कुछ बिनों
की राह पर चल पड़े हैं. आलोचक मानते हैं बक इस िौरान खिरों से सरोकार गायि पहले ही यह खिर आई बक एमैप िंि हो रही है. इस िारे में कंपनी के ििंध बनिेशक
रबिरतन अरोड़ा का कहना था बक िे अपना कारोिार समेट नहीं रहे िबकक
तकनीकी ििलािों के चलते इसे चार महीने तक रोक रहे हैं. 2004 में शुरू होने
वाइंट्स
िाली कंपनी एमैप अभी तक 7,200 मीटरों के जबरए रेबटंग तैयार करने का काम
कर रही थी. उधर, 1998 में शुरू हुई टैम के कुल मीटरों की संयया 8,150 है. इनमें
से 1,007 मीटर डीटीएच, कैस और आईपीटीिी िाले घरों में हैं. जिबक 5,532
दूसरों को राह ददखाने का दावा करने वाले न्यूज
चैनल कैसे टीआरपी नाम की एक खराब व्यवस्था
की वजह से खुद ही राह भटकने को मजबूर हैं.
हिमांशु शेखर की दरपोटट
मीटर एनालॉग केिल और 1,611 मीटर गैर केिल यानी िूरिशर्न िाले घरों में हैं.
एक मीटर की लागत 75,000 रुपये से एक लाख रुपये के िीच िैठती है.
इन्हीं मीटरों के सहारे टीआरपी तय की जाती है. ये मीटर संिबं धत घरों के
टेलीबिजन सेट से जोड़ बिए जाते हैं. इनमें यह िजर् होता है बक बकस घर में बकतनी
िेर तक कौन-सा चैनल िेखा गया. अलग-अलग मीटरों से बमलने िाले आंकड़ों
के आधार पर रेबटंग तैयार की जाती है और िताया जाता है बक बकस चैनल को
बकतने लोगों ने िेखा. टैम सप्ताह में एक िार अपनी रेबटंग जारी करती है और इसमें
पूरे हफ्ते के अलग-अलग कायर्िमों की रेबटंग िी जाती है. टैम यह रेबटंग अलग-
अलग आयु और आय िगर् के आधार पर िेती है. इस रेबटंग के आधार पर ही
बिज्ापनिाता तय करते हैं बक बकस चैनल पर उन्हें बकतना बिज्ापन िेना है. रेबटंग
के आधार पर ही बिज्ापनिाताओं को यह पता चल पाता है बक िे बजस िगर् तक
अपना उत्पाि पहुंचाना चाहते हैं िह िगर् कौन-सा चैनल िेखता है. चैनलों की
आमिनी का सिसे अहम जबरया बिज्ापन ही हैं. इस िजह से चैनलों के बलए
टीआरपी की पूरी व्यवस्था ही
दोषपूणर् है. इसमें न तो हर तबके की
भागीदारी है और न ही हर क्षेत्र की
आशुतोष, प्रबंध संपादक, आईबीएन-7
आवरण कथा 39