Inter-state Relationship & Diplomacy : Upāya, Shadgunya and Mandala theories
1. AIHC & Arch-C-601: Ancient Indian Polity and Administration
Unit IV : Administration and Administrative Units
9. Inter-state Relationship & Diplomacy :
Upāya, Shadgunya and Mandala theories
Sachin Kr. Tiwary
2. Upāya (उपाय) Caturupāya/'उपाय-चतुष्ठय' (चार उपाय)
• रामायण, २/७३/१७ ; ४/५४/६; ५/४१/२; २/१००/६८
• महाभारत भीष्मपर्व, ९/७३/७५ ; शान्ततपर्व १०३/३६-३७ ; भीष्मपर्व ९/७३-७५
• अर्वशास्त्र ९/३/७
• शुक्र्रनीतत ४/१/२३-२८
• मत्सस्त्यपुराण २२२/२
• अन्ननपुराण २२६/५-६
• र्ृहस्त्पततसूर ५/१,३
• कामतदक नीततसार १७/३
• Jain text Nitivakyamitra
• खारर्ेल क
े हार्ी गुफा अभभलेख में
• Seven in number: sāma, bheda, daṇḍa, dāna, upekṣā, māyā and indrajāla Acts done
with upāyās become fruitful (मत्सस्त्यपुराण, अन्ननपुराण, र्ृहस्त्पततसूर, कामतदक नीततसार
एर्ं वर्ष्णुधमोत्तर पुराण में सात प्रकार की नीततयों का र्णवन भमलता है).
• राजा की सफलता एवं राज्य में शान्तत क
े ललए चार प्रकार क
े उपायों साम, दाम, भेद
और दण्ड
4. • साम (स्तुतत – प्रशंसा)- साम तथ्य और अतथ्य दो प्रकार का कहा गया है। उनमें भी
अतथ्य ( झूठी प्रशंसा ) साधु पुरुषों की अप्रसतनता का ही कारण बन जाती है। इसभलए
सज्जन व्यन्तत को प्रयत्सनपूर्वक सच्ची प्रशंसा से र्श में करना चाहहए। जो क
ु लीन,
सरलप्रकृ तत, धमवपरायण और न्जतेन्तरय हैं र्े सच्ची प्रशंसा से ही प्रसतन होते हैं, अतः
उनक
े प्रतत झूठी प्रशंसा का प्रयोग नहीं करना चाहहए।
• दान सभी उपायों में सर्वश्रेष्ठ है। प्रचुर दान देने से मनुष्य दोनों लोकों को जीत लेता
है। ऐसा कोई नहीं है जो दान द्र्ारा र्श में न ककया जा सक
े । दान से देर्ता लोग भी
सदा क
े भलए मनुष्यों क
े र्श में हो जाते हैं। दानी मनुष्य संसार में सभी का वप्रय हो
जाता है। दानशील राजा शीघ्र ही शरुओं को जीत लेता है। दानशील ही संगहठत शरुओं
का भेदन करने में समर्व हो सकता है।यद्यवप तनलोभी स्त्र्भार् र्ाले मनुष्य स्त्र्यं दान
को स्त्र्ीकार नहीं करते, तर्ावप र्े भी दानी व्यन्तत क
े प्रशंसक बन जाते हैं।
• दण्ड- जो अतय उपायों क
े द्र्ारा र्श में नहीं ककये जा सकते, उतहें दंडनीतत क
े द्र्ारा
र्श में करना चाहहए तयोंकक दंड मनुष्यों को तनन्चचत रूप से र्श में करने र्ाला है।
बुद्धधमान राजा को सम्यक रूप से उस दंडनीतत का प्रयोग धमवशास्त्र क
े अनुसार
मंत्ररयों और पुरोहहतों की सहायता से करना चाहहए। अदण्डनीय पुरुषों को दंड देने तर्ा
दंडनीय पुरुषों को दंड न देने से राजा इस लोक में राज्य से च्युत हो जाता है और
मरने पर नरक में पड़ता है। इसभलए वर्नयशील राजा को कल्याण की कामना से
धमवशास्त्र क
े अनुसार ही दंडनीतत का प्रयोग करना चाहहए। यहद राज्य में दंडनीतत की
व्यर्स्त्र्ा न रखी जाये तो बालक, र्ृद्ध, आतुर, सतयासी, ब्राह्मण, स्त्री और वर्धर्ा –
ये सभी आपस में ही एक दूसरे को खा जाएँ।
5. • भेद- जो परस्त्पर र्ैर रखने र्ाले, क्रोधी, भयभीत तर्ा अपमातनत हैं, उनक
े प्रतत
भेदनीतत का प्रयोग करना चाहहए, तयोंकक र्े भेद द्र्ारा साध्य माने गए हैं। लोग न्जस
दोष क
े कारण दूसरे से भयभीत होते हैं उतहें उसी दोष क
े द्र्ारा भेदन करना चाहहए।
उनक
े प्रतत अपनी ओर से आशा प्रकट करे और दूसरे से भय की आशंका हदखलाये।
इस प्रकार उतहें फोड़ ले तर्ा फ
ू ट जानेपर उतहें अपने र्श में कर ले। संगहठत लोग
भेदनीतत क
े त्रबना इतर द्र्ारा भी दुःसाध्य होते हैं। इसभलए नीततज्ञ लोग भेदनीतत की
प्रशंसा करते हैं।
• व्यन्तत अपनी चतुराई से र्स्त्तु को वर्परीत रूप में हदखाता है, यर्ार्व क
े अभार् में भी
उतहें हदखा देता है। यह उसकी माया है। यहाँ का अर्व भमथ्या ज्ञान या ऐसे ज्ञान का
वर्षय है।
• इतरजाल- रामचररतमानस में यह भी र्णवन आता है कक न्जस भसर को राम अपने बाण
से काट देते हैं पुनः उसक
े स्त्र्ान पर दूसरा भसर उभर आता र्ा। वर्चार करने की बात
है कक तया एक अंग क
े कट जाने पर र्हाँ पुनः नया अंग उत्सपतन हो सकता है?
र्स्त्तुतः रार्ण क
े ये भसर कृ त्ररम र्े - आसुरी माया से बने हुये। मारीच का चाँदी क
े
त्रबतदुओं से युतत स्त्र्णव मृग बन जाना, रार्ण का सीता क
े समक्ष राम का कटा हुआ
भसर रखना आहद से भसद्ध होता है कक राक्षस मायार्ी र्े।
7. मनु और कौहटल्य ने राज्य क
े परराष्रीय संबंधों क
े भलए षाड्गुण्य नीतत सुझाई है न्जसक
े
अनुसार राज्य को दूसरे देशों क
े सार् अपने सम्बतध ककस पररन्स्त्र्तत में क
ै सा रखना चाहहए.
उतहोंने परराष्रीय या अंतरावष्रीय संबंधों क
े 6 प्रकार बताये हैं-
• i)संधि- दो देशों में परस्त्पर सम्बतध स्त्र्ावपत करना.
• ii)ववग्रह- इसका अर्व दो देशों में सम्बतध को समाप्त करना..
• iii)यान-आक्रमण करना.
• iv)आसन-मौन रहना.
• v)संश्रय-दूसरे क
े आश्रय में स्त्र्यं को समवपवत करना.
• vi)द्वैिीभाव-एक राज्य की दूसरे राज्य से संधध कराना.
https://www.mpgkpdf.com/2021/03/kautiliya-shaangunya-theory.html
https://www.mpgkpdf.com/2021/03/types-of-war-according-to-kautilya.html
8. मंडल लसद्िांत
• कौहटल्य ने अर्वशास्त्र क
े छठे अधधकरण में मंडल भसद्धांत का र्णवन ककया है. मंडल
का अर्व है “देशों का समूह”. उतहोंने मंडल में 12 प्रकार क
े देशों का न्जक्र ककया है-
• ‘ववन्जगीषु’,
• ‘अरर’,
• ‘लमत्र’,
• ‘अरर-लमत्र’,
• ‘लमत्र-लमत्र’,
• ‘अरर-लमत्र-लमत्र’,
• ‘पान्ष्णिग्राह’,
• ‘आक्र
ं द’,
• ‘पान्ष्णिग्राहसार’,
• ‘आक्रतदसार’,
• ‘मध्यमा’ तथा
• ‘उदासीन’ देश.
• उतहोंने मंडल क
े इन सभी देशों क
े एक दूसरे क
े सार् संबंधों को ही मंडल भसद्धांत का
नाम हदया है.
ववजीगीषु का तात्पयि है-
वह राजा जो अपनी सत्ता
(प्रभाव) का ववस्तार करना
चाहता है।
अरर (शत्रु)
ववजीगीषु को अपने शत्रु राज्य
को कमजोर करने क
े ललए
साम-दाम-दंड-भेद
द्वारा इसक
े सहयोगी राज्यों को
इस से अलग करने का प्रयास
करना चाहहए।