3. f’kdkxks सम्मलेन भाषण
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत ककया हैं उसके प्रतत आभार
प्रकट करने के तनममत्त खडे होते समय मेरा हृर्य अवर्दनीय हर्द से पूर्द हो रहा हैं। संसार में
संन्यामसयों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवार् र्ेता हूूँ; धमों की माता
की ओर से धन्यवार् र्ेता हूूँ; और सभी सम्प्रर्ायों एवं मतों के कोटट कोटट टहन्र्ुओं की ओर
से भी धन्यवार् र्ेता हूूँ।
मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कततपय वक्ताओं के प्रतत भी धन्यवार् ज्ञापपत करता हूूँ
जिन्होंने प्राची के प्रतततनधधयों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कक सुर्ूर र्ेशों
के ये लोग सटहष्र्ुता का भाव पवपवध र्ेशों में प्रचाररत करने के गौरव का र्ावा कर सकते
हैं। मैं एक ऐसे धमद का अनुयायी होने में गवद का अनुभव करता हूूँ जिसने संसार को
सटहष्र्ुता तथा सावदभौम स्वीकृ त- र्ोनों की ही मशक्षा र्ी हैं। भाईयो मैं आप लोगों को एक
स्तोत्र की कु छ पंजक्तयाूँ सुनाता हूूँ जिसकी आवृतत मैं बचपन से कर रहा हूूँ और जिसकी
आवृतत प्रततटर्न लाखों मनुष्य ककया करते हैं:
रुचीनाां वैचचत्र्यादृजुकु टिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसस पयसामणणवव वव।।
अथादत िैसे पवमभन्न नटर्याूँ मभन्न मभन्न स्रोतों से तनकलकर समुद्र में ममल िाती हैं उसी
प्रकार हे प्रभो! मभन्न मभन्न रुधच के अनुसार पवमभन्न टेढे-मेढे अथवा सीधे रास्ते से
िानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर ममल िाते हैं।
यह सभा, िो अभी तक आयोजित सवदश्रेष्ठ पपवत्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के
इस अद्भुत उपर्ेश का प्रततपार्न एवं िगत के प्रतत उसकी घोर्र्ा करती है:
ये यथा माां प्रपद्यन्ते ताांस्ततथैव भजाम्यहम्। मम व्माणवनुवतणवन्ते मनुषयााः पाथणव सवणवशाः।।
अथादत िो कोई मेरी ओर आता है-चाहे ककसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूूँ। लोग
मभन्न मागद द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।
साम्प्रर्ातयकता, हठधममदता और उनकी वीभत्स वंशधर धमादन्धता इस सुन्र्र पृथ्वी पर बहुत
समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को टहंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार
मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं,
4.
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