4. 4 माय गढ़काली
2. संसार सुख दुख को
येव सांसाि से सुख दुुः ख को!
येव जीवन आय युग्मन को।
१)सांत सत्सांग िा कह गया!
प्रवचन िहात्मा देय गया।
येव भेद आय भगवन को:-
येव जीवन आय युग्मन को*:---
२)आत्मा पििात्मा िा मिल जासे!
जसो फ
ू ल उपवन िा खखल जासे।
होसे घुसिन येल नि तन को::-
येव जीवन आय युग्मन को **----
३)काया िा सिायकन िोहिाया!
योगी िुमन कई भििाया।
चक्र येव सािो जन जन को:::---
येव जीवन आय युग्मन को*---
४) अनुभूमत होसे िहापुरुष ला!
साांगकन सािो दुमनया ला।
भखक्त िा भाव येव िांथन को::::--
येव जीवन आय युग्मन को**---
५)पटले िािचिण किसे वन्दन!
होयकन तल्लीन िन िगन।
सािाांर् से परिवतशन को:::::----
येव जीवन आय युग्मन को***-
5. 5 माय गढ़काली
६)जय जय हो िाय गढ़काली!
तुच िाय मवमभन्न नाववाली।
भजन गीत तोिो सुििण को::::::-
येव जीवन आय युग्मन को**
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6. 6 माय गढ़काली
3. सनातन धमम की ख्याजत
पुस्तक िा पमवत्र ग्रांथ गीता!
िािायण िा पमवत्र देवी सीता।
पौधा िा र्ुभ तुलसी िाता!
इनिा ििण किसे दुगाश ज्ञाता।
पक्षी िा िहान गरुड़ देवता!
पहाड़ िा महिालय प्रख्याता ।
नदी िा प्रमसद्ध गांगा जी िाता!
पुष्प िा किल की र्ोभमनयता।
देव िा अग्रगण्य गणपमत!
येिा मर्व पावशती की र्खक्त।
सवशश्रेष्ठ महन्दू धिश सांस्क
ृ मत!
बीज िांत्र ओि की कलाक
ृ मत।
प्रवाही िा र्ुद्ध गांगाजल!
बसी िाय कार्ी तीथश अांचल।
चढ़से सबला नारियल फल!
जिसे मदप ज्योमत उज्जवल।
गुरु मबन नहीां मिलसे ज्ञान!
सब देव का भया गुरु िहान!
िहादेव सबलक िोठो भगवान!
अजन्मेव सृमि को पहलोां मवधान।
************************************
7. 7 माय गढ़काली
4. अनोखा जसधदांत
जेकी जसी भावना;तसोच िव्हसे िन!
जेकी जसी कल्पना;तसोच बगसे तन।
जेकी जसी दृमि;ओला तसीच मदससे सृमि!
सत्सांग आध्याखत्मक कथन:-
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन:-------
जसोच पानी;वसीच वाणी।
येव आध्याखत्मक वचन:--
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन::-------
जसोच दान;तसोच खान पान!
येव िानव को लक्षण:::----
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन:::------
जसो किश;तसोच धिश!
से सबला येव अपशण:::----
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन::::--------
जसी स्मृमत;तसीच खथथमत।
ऐव वृमि को उन्मूलन:::-----
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन::::--------
जसो देर्;तसो भेर्!
येव आय कायान्तिण :--
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन::::---------
आिाधना या प्राथशना:-
8. 8 माय गढ़काली
ये युखक्त का साधन::------
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन::::-------------
िनन मचन्तन भजन पठन!
ये पुरुषाथश का युगल बन्धन::::--
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन*:::----
िािचिण पटले किसे कमवताकिण:!
होयक
े िाय भवानी ला सिपशण:-
जेकी जसी कल्पना तसोच बगसे तन:::----------
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9. 9 माय गढ़काली
5. महाभारत को नव सूत्र सार शाब्दिक भावार्म:---
(मायबोली मा):---
िहाभाित की कहानी; उपयोगी कहलाय!
किश धिश पि सुहानी; धिशनीमत मसखलाय।
हि िानव जीवन िा; कलयुग ला या लुभाय!
आधुमनक या मप्रती ला;जन जन िा या सुहाय।
कौिव अना पाांडव; क्षमत्रय की खानदान!
धन दौलत साती ताांडव; युद्ध भयो घिासान।
अधिी धृतिािर की;अमभिानी कौिव सांतान!
पतन भयो कौिव दल;पल िा मिटेव गुिान।
सांतान की गलत िाांग लक; दुयोधन कदि बढ़ाय!
पतन भयो भगवान लक;भयो धृतिािर असहाय।
पूत्रिोह िा धृतिािर;सब किश धिश भूल जाय!
िाजा होयकन भी धृतिािर;वर्ांज ला ठु किाय।
कौिव दल सांग कणश;होतो बहुत बलवान!
अधिश ला साथ देयकन; व्यथश गांवाईस प्राण।
अधिश को कािण लक;मनष्फल भया सब बाण!
अधिी ला वचन देयकन भीष्ममपता भयो अवसान।
अांध व्यखक्त ला कभी भी; नहीां सुहाव प्रकार्!
धृतिािर को पूत्रिोह िा;होय गयो मवनार्।
मववेक की बांधी डोि; अजुशन होय गयो पास!
जीत कभी भी सत्य की;या बात से खास।
र्क
ु नी िािा न किीस;कायश कपट छल!
मवद्रोह प्रपांच िचकन ;भय गयो असफल।
10. 10 माय गढ़काली
युमधमष्ठि धिश नीमत को कािण भय गयो सफल!
िहाभाित की सांिचना; दुमनया िा भयी प्रबल।
मवद्या को दुरुपयोग लक; अश्वत्थािा ििेव कटकन
द्रोणाचायश ला दुुः ख भयो;िन िा भयो मवचलन
िहाभाित िचना ला देख, हृदय होसे कम्पन्न
अधिश को कािण;मदल िा होसे धड़कन
कई आत्माएां तड़प उठी;मदल हृदय मविहन
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11. 11 माय गढ़काली
6. महाभारत को संदजभमत प्रसंग मा
वेद पुराण ग्रंर् संक्षेपण
भागवत गीता मलखेव;िायबोली र्ब्ाांकन!
दुगाश सप्तर्ती ला िचेव; सम्पूणश पाठ मवविण।
दर्शन र्ास्त्र ला पढ़ेव;किीसेव िूल्ाांकन!
िाय भवानी भखक्त िा;भाव मवभोि होयकन।
दुमनया भयी बाांविी; िहाभाित एक प्रतीक!
कलयुग ला जतलायकन; बहुत मिली सीख।
िािायण को बाद िा; िहाभाित को आलेख!
देवी गीतकाि-िािचिण पटले किसे उल्लेख।
पहली िाय देवी; सिस्वती ब्रम्हाणी!
दुसिी िाय देवी;लक्ष्मी जी कल्ाणी।
तीसिी िाय देवी; पावशती जी रुद्राणी!
तीनी एक सिागि;बन गई भवानी।
भक्त भगवान को साती अवताि ला लेयकन!
सांकट हटावन ला अश्त्र र्स्त्र ला धिकन।
सब देवता ईनन किीसेन आवाहन!
जगत जननी िाय किसे सांचालन।
मलख िही सेव िायबोली; इमतहास दर्ाशयकन!
िोिा सब सिूह का वरिष्ठ गण ला से निन।
सत्काि आभाि से करुसू सबला वन्दन!
हाथ जोड़कन सबला िी कहूसू कथन।
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12. 12 माय गढ़काली
7. लोकगीत
प्रकार -नकल टाईप:-
पिहा बढ़ावन चलो जामबन;भाऊ ियािाि मकसान को!
धावत धावत बाांधी िा पड़बीन;मिले जेवन घुांघिी खान को।।*:--
-----टेक:-----
१) पन्द्रह मदवस भयो पिहा सि िही से;सबला से मनिांत्रण!
गांहू;पोपट की घुांघिी मिले;अना साग काटवल को भोजन।
हो आये िजा मकचड़ िा खेलन को:-घुांघिी सांग भात जेवन
को:-----
२)होल्ा आयो बाजा बजावन;भयी पिहा बढ़ावन की तैयािी!
सब मिलकन जेवन किबीन;पहले खाबीन मसदोिी।
हो बाजा बज िही से नाचन को:-मिले भात घुांघिी जेवन को:---
---
३)दारु मपयकन नौकि चाकि;भया नर्ा िा चूि!
िवदाांड़ा भयो बाांधी िा;बन्यािन होतीन दूि!!
हो भिसे ढोला अन्न धन को:-मिले भात घुांघिी जेवन को:::------
--
४)पानी खूब िदबद बिससे;डू ब जासे पिहा!
बोढ़ी तलाब लबालब भिसे;फ
ू ट जासेती धूिहा।
उल्टी िसिी चढ़न लगसे; िजा आवसे धिन को:-
५)मकसानी की नकल;िचना किसे पटले िािचिण!
नगदी च प्रस्तुत किसे;किकन भवानी सुििण!!
हो खेत िा पिहा सिावन को::--
मकसानी काि तन िन को:----
13. 13 माय गढ़काली
8. चतुमामस मजहमा अपरम्पार
प्रकार:-गीत:--
चतुिाशस को िमहना;जग िा अपिम्पाि!
जप तप िा ध्यानास्त;मबष्णू जी पालनहाि।टेक।:------
१)र्ेष र्ैय्या पि सोयकन;िन िा किसे मवचाि!
र्ांकि जी की क
ृ पा पायकन सृमि को किताि।:--जप तप िा
ध्यानास्त:-------हो*:--
२)अि मसखद्ध नव मनधी को; गणेर् मवश्व रुप साकाि!
िाय बाप को आज्ञाकािी; दुमनया को मदलदाि।:-जप तप िा
ध्यानास्त:-हो :--------
३) पहले गणेर्जी ला पठावसेत;किनला कि सांहाि!
होसे दुुः ख भांजन सबको; सृमि को उध्दाि।।:-जप तप िा
ध्यानास्त::----हो :*------
४)िांग आवसे नविामत्र;िाय किकन नव श्रांगाि!
चुिाड़ा असूिन को किसे;धिकन हाथ िा तलवाि।:-जप तप िा
ध्यानास्त:-हो:-------
५)जगत की िाय जगदम्बा; सृमि की आधाि!
भाव भखक्त िा दुमनया;सब देवन को आभाि।।:-जप तप िा
ध्यानास्त -हो:-----------
६)हो िािचिण पटले;िाय देवी को गीतकाि!
क
ृ पादृमि पायकन;भजन गीत को िचनाकाि।।:-जप तप िा
ध्यानास्त -हो:------------
*********************
14. 14 माय गढ़काली
9. संतन का जवचार
जामत जामत सब कहे;सब िाटी िा सिाय!
मवक
ृ मत या भ्ाांमत की;पल िा बदलत जाय।
प्रक
ृ मत सबिा श्रेष्ठ;सब गुणला दर्ाशय!
ईांन्र्ान नहीां सिझ;नाहक टेि लगाय।
नाज किनो किश पि;धिश ला ताज लुभाय!
येव तो िन को फ
े ि से; नहीां सिझ िा आय।
सांत कई बतलाय गया; ििश सब जतलाय!
काज किनो असो मक दुमनया गुणला गाय।
तन काया बदलसे; परिवतशन ईठलाय!
परिवतशन भी किश;या बात सबला सुहाय।
क
ृ ष्ण भगवान; अजुशन ला ज्ञान पढ़ाय!
वेद पुिाण िमहिा;साि सत्य सुनाय।
मबिला च ग्रहण किे;ओको जीवन ति जाय!
िाय भवानी गढ़काली वर्ांज ला सििझाय।
आम्ही तोां गुणगायक; श्रद्धा भखक्त ला पाय:---
िािचिण पटले सूक्ष्म भेद ला जतलाय::----
***********************************
15. 15 माय गढ़काली
10.माय भक्त की वाणी
िानव तन मिलसे िुखिल लक;
किनो जी सत्किी काि!
सब िाय बाप की सेवा किश लक;
मिलसे सांतान ला आिाि।
िाय बाप को चिणन िा सेती;
सब दुमनया का चाि धाि!
सांत सत्सांग िा साांगसेती;
सबका मसद्ध होसेती काि।
िाि नाि की िमहिा न्यािी;
सबला से जी प्रणाि!
िाय की मकती सबिा प्यािी;
िाय को ििता िा तिाि।
भवानी भक्त िािचिण;
कसे िाय भखक्त आयाि!
हाथ जोड़कन किसे वन्दन;
अजी सबला से पैगाि।
***********************
16. 16 माय गढ़काली
11.भगवान भयोव दुय स्वरुप
दुय रुप र्ांकि जी भयोव;
प्रणव अना पामथशव अवताि।
प्रणव रुप मबष्णू जी बनेव;
खुद पामथशव किन चित्काि।।
मबष्णू र्ांकि सदा सांग िव्हत;
देव आपस िा कित सत्काि।
आिाध्य ईि सम्मान कित;
देत दुमनया ला प्रेि सांस्काि।।
मबष्णू सांग लक्ष्मी मप्रया बनी;
र्ांकि सांग िा; पावशती साकाि।
दुय स्वरुप िा या सृमि सनी;
भया देव ये मनत्य साक्षात्काि।।
िािायण अना िहाभाित िा;
दर्ाशवत आपस का व्यवहाि।
झलक मदखावत पल पल िा;
मदसत सबला मभन्न मभन्न प्रकाि।।
िमहिा अजब-गजब की से;
सांसाि सब कित मदव्य दर्शन!
मकतीला िािचिण बखान से;
किसे भव्य काव्य चरित्र मचत्रण।।
धन्य भवानी िाय गढ़काली;
तोला िोिोां से र्त-र्त निन!
दुमनया वाली तू खुमर्यावाली;
करु सू सत्य स्वरूप मवविण!!
17. 17 माय गढ़काली
12.एक सत्य कहानी
पहले को िाजा इनकी;आयको;
पिि सत्य प्रचमलत कहानी।
अटल मनत्य मनयि िव्ह उनको!
प्रजा बात िानत कित मनगिानी।।
अज एक नािक होतो िहािाजा;
पूत्र जन्मेव धिी दर्िथ िाजा।
अयोध्या नगिी को िृदुिाजा;
तीन लोक िा बजेव जी बाजा।।
िाजा दर्िथ ला भयी तीन िानी;
पहली कौर्ल्ा होती योमगनी।
दुसिी सुमित्रा होती तपखस्वनी;
तीसिी क
ै कयी होती गुणज्ञानी।।
िािायण की या बनी जो कहानी!
किश धिश गाथा या वेद पौिाणी।
वाल्मीमक ऋमष की िुख जुबानी;
वाल्मीमक जी होतो िहाविदानी।।
काही मदवस िाजा मन सन्तान िहेव;
सन्तान को साती मवचमलत भयोव।
ऋष्यश्रांग ऋमष ला द्वाि बुलायकन;
दिबाि िा हवन यज्ञला किायकन।।
ऋमषजी न खीि पात्र िांगायकन;
तीनी िानी ला खीिला खवायकन।
भयोव तीनी पमिला गभशधािण;
18. 18 माय गढ़काली
िाजा को िन भयोव अमत प्रसन्न।।
कौर्ल्ा लक भयो िाि जी जनि
सुमित्रा लक भया दुय पूत्र उत्पन्न।
नाि र्त्रुघ्न अना दुसिो लक्ष्मण;
क
ै क
े यी लक भित जी प्रगटकन।।
भगवान मबष्णु जी को भयो आगिन;
तीनी िानी को िन ला हमषशत किन।
भगवान खुद आयोव देनला दर्शन;
तीनी देवी को पूज्य बेटा बनकन।।
िाि जी िा होतो िोठो आकषशण;
अयोध्या वासी होत देख प्रसन्न।
िािजी को होतो सुडोल तन िन;
नेत्र िा होत सबला देवता दर्शन।।
नाग रुपी होतो भाई लक्ष्मण;
र्ांख स्वरुपी होतो भाई र्त्रुघ्न।
भित जी होतो चक्र सुदर्शन;
िचना मलखसे पटले िािचिण।।
िाय भवानी साांग से मवविण;
मलख मलख कसे िोला वचन।
सपनो िा िात-मदन उठायकन;
कसे कलयुग ला साांग दे कथन।।
हि बाि लेजो तू बेटा िे जनि;
धन्य सेस बेटा तू िोला सिपशण।
काांच िा चिक जो जसो दपशण;
19. 19 माय गढ़काली
तोिो िा मिलेती िोिा िे लक्षण।।
जेव भी तू कव्हजोस सत्य होये;
तोला जय िाता दी दुमनया कहे।
िोिोां वानी तोिो भी नाव िहे;
जय हो की जयकाि होत िहें।।
देवी दुगाश िाय मलखावसे कथन:
गीतकाि बेटाला बनायकन:
दुमनया िा किनला प्रसािण:
सदा िहे िायला िोिोां निन::
सबला िी करुसू जी वन्दन:-
देवी गीतकाि पटले िािचिण:-
देवी दुगाश ज्वाला किसे जागिण**
िाय गढ़काली को जायकन र्िण*
***********************************
20. 20 माय गढ़काली
13.रामायण एक महाकाव्य प्रकांड
आमदकाांड याने बालकाांड िा;
भयोव भगवान को अवतिण।
दर्िथ िाजा को परिवाि िा;
आयोव मबष्णू जी प्रगटकन।।
िाि नाि ला पायकन;
भयोव नािकिण।
अयोध्या वासी सब देखकन;
प्रसन्न भयोव जन जन।।
अयोध्या काण्ड
**""*""""*
आता अयोध्या नगिी को;
आयको सब मवर्लेषण।
प्रजा िा सब आनन्द को;
उिांमगत होतो वाताविण।।
किश धिश की कहानी को;
किनो होतो सिाकलन।
उदगि भयोव िािायण को;
भयोव जग िा अवलोकन।।
िचना या बनी घटना;
भयोव परिवाि मवघटन।
घिेलू या घटी मवडम्बना;
भयोव दुुः ख िाति मविहन।।
या कथा व्यथा सबिा प्रचलन:
21. 21 माय गढ़काली
आयको सािाांर् येव सांक्षेपण::
कसेती लोग क
ै क
े यी को कािण;
मक
ां तु होतो मवमध को मनधाशिण**
मबखिेव िाजा दर्िथ को आसन्न;
सब िाजमसांहासन को कािण::---
िोहिाया कि सबला मवचलन;
िाि ला जानो पड़ेव वन--वन**:-
अरण्य कांड
******
अत्याचाि भी बढ़ गयोव होतो;
किनो होतो सबको पतन र्िन। असूि दैत्य ला िािन को
होतो;
िाि जी गयोव तब दण्डक वन।।
चौदा बिस वन--वन मफिकन;
सांगिा पिी अना भाई लक्ष्मण।
दुि होतो लांकापमत िावण;
किीस सीता जी ला हिण।।
दुुः ख कई वन िा झेलकन;
िाि जी को दुखिय जीवन।
सीता जी ला लगेव खोजन;
मित्र मिलेव सुग्रीव बनकन।।
सुन्दरकाण्ड
*****
खोजत खोजत सीता जी ला:;
िाि मफिन लगेव वन--वन।
22. 22 माय गढ़काली
िाि दिर् की ईच्छा सबला;
भयोव िाि-सुग्रीव को मिलन।।
सुग्रीव को पिि सेवक;
होतो हनुिान पूत्र पवन!
बनेव िाि को सदा सहायक;
लगया सीता जी ला ढूांडन!!
िाि की िमहिा िाि च जाने;
सुग्रीव को दुुः ख किे हिण।
बालीव ला;िाि जी न िािकन;
जाग उठी आर्ा की मकिण।।
हनुिान को सुन्दिकाण्ड िा;
िुख्य भूमिका को से मवविण**
प्रथथान भयोव हनुिान;
उड़कन लांका को दिम्यान।
पहुांच गयोव सलवान;
िाय की बचावन र्ान।।
िावण ला घबिाय देईस;
किकन लांका ला श्मर्ान।
पता सीता को लगायकन;
िाि को जगाईस अििान।।
लंका कांड
****
िाि जी की सेना पहुांच गई;
23. 23 माय गढ़काली
युद्ध किन लगी घिार्ान;
िावण की सेना मिट गई।
िावण को मिटेव गवश गुिान।।
अन्त िा िावण िािेव गयोव;
मनकल्ा िावण का प्राण।
िाि जी की मवजय भयी;
जानसे सकल जहान ।।
लव-क
ु श रचना
*******
अश्विेघ यज्ञ ला िचकन;
िाि जी न किीस जग एलान;!
घोड़ा छोड़ीस किन भ्िण;
लड़े जो क्षमत्रय पूत सिान।।
भयोव िाि परिवाि मिलन;
बड़ो दमदशलो से मवविण:-
साि सांक्षेपण िा मलखकन;
प्रस्तुत किसे पटले िािचिण**
िोिोां सबला से निन;
जन जन ला से वन्दन;
किक
े िाय को सुििण***
रामायण जववेचना
*******
तार्पिी को खेल सिान;
24. 24 माय गढ़काली
से िािायण को मनिाशण।
बावन पात्र सब सज्जन;
जग िा भयोव बखान।।
ऋमष वमर्ष्ठ मवश्वामित्र जसा कई;
उपिोक्त सांक्षेपण िा छ
ू ट गया।
ताड़का सुबाहु िािीच अनेकोां;
सब िाि जी लक ििमिट गया।।
: िाि जी को सब दर्शन लक;
ऋमष िुमन भक्त गण ति गया।
र्बिी मभलनी;अमहल्ा भखक्तन;
किलक सब पल िा उबि गया।।
**************************************
25. 25 माय गढ़काली
14.युग पररवतमन आय
येन कलयुग जिानोां िा;
कभी र्त्रु:कभी मित्र बन जासे।
या िांगीली चांचल दुमनया िा;
कोन्ही ग़िीब कोन्ही धनवान होसे।
या प्रक
ृ मत िाय की धिती;
उथल पुथल िचाय देसे।
परिवतशन की से कलाक
ृ मत;
सािो ब्रम्हाण्ड ला महलाय देसे।।
िमहिा अजब की मनिाली से;
ज्वालािुखी िाय भूकम्पी से।
िात कभी अांमधयािी उमजयाली से;
िाय तिांग कम्पन्न अनुकम्पी से।।
सिुद्र सागि को तलछट िा से;
हि प्राणी को िाय जीवन िा से।
क
ां ठ स्वि बोली को घट-घटिासे;
िांमदि को पाषाण िा अवतिण से।
कोन्हीला देवघि िा मदससे तोां;
आपिो हि घिोघि िा चोवसे।
कोन्ही अम्मा कसे;कोन्ही अम्मी;
या िाय सबकी मनगिानी किसे।।
या िाय धिनी जग जननी से;
विदामहनी या महतकिनी से।
ििताियी िाय िनिोमहनी से;
27. 27 माय गढ़काली
15.भारतीय जहन्दू संस्क
ृ जत
सनातन धिश की िमहिा न्यािी!
एक ब्रम्हा दो मलांग नि -नािी।
तीन देव ब्रम्हा मवष्णु र्ांकि!
चाि युग िा ये देव प्रगटकि।
पाांच तत्व की िचायकन काया!
छुः किश िा सिायकन िोहिाया।
सात चक्र अना सात च वाि!
सप्तिांग िा सृमि को श्रृांगाि।
आठ मसध्दी;आठ च लक्ष्मी जी!
आठ वसु िा सिायकन प्रभू जी।
नवदुगाश नव ग्रह नव र्खक्त िाई!
नव आहवान किसेती िघुिाई।
दस िहामवद्या की िमहिा न्यािी!
दस अवताि मबष्णू जी चित्कािी।
दस सती दुमनया की कितािी!
ग्यािहवीां कल्पना किसे िुिािी।
बािहवो अध्याय िा िचना सािी!
पूजा पाठ किसे सकल सांसािी।
वेद पुिाण ग्रांथ र्ास्त्र अध्ययन!
िािचिण पटले किसे अवलोकन।
िाय गढ़काली सृमि सृजनाकािी!
सबलक सुन्दि िायबोली पोवािी ।
निन करुसू सब वरिष्ठ गण ला!
पदामधकािी अना सदस्य सबला।
जय जय जय हो िाजा भोज!
भि देसे सब वर्ांज िा ओज।
जय जय हो िाय गढ़काली!
दुमनयावाली िाय खुमर्यावाली।
28. 28 माय गढ़काली
16.संसार मा संस्कार को सार
ब्रम्हा मवष्णु िहेर् सृमि सृजनाकाि!
ब्रम्हा जी येन सांसाि को िचनाकाि।
भगवान मबष्णू सृमि को पालनहाि!
भगवान र्ांकि जी किसे सृमि को सांहाि।
दुय मलांग दुय पक्ष सृमि का किताि!
दुय पूजा दुय अयन; परिवतशन को साि।
तीन लोक तीन गुण;ईनको स्वरुप चक्राकाि!
तीन स्ति तीन काल िा;िचेव गयो सांसाि।
तीन देवी तीन र्खक्त ये लेयकन अवताि!
चाि धाि चाि वेद िा किसेती चित्काि।
चाि अप्सिा चाि गुरु ये मर्क्षा का आधाि!
पाांच तत्व पाांच किश िा सब सृमि को आकाि।
छुः ऋतु छुः ज्ञान अांग ईनिा सत्सांग साकाि!
सात छां द सात स्वि िा जगत को श्रृांगाि।
सात ऋमष सात िांग िा सृमि को अलांकाि!
आठ िातृका आठ लक्ष्मी ईनिा सिायो प्याि।
नवदुगाश नव िि नव मनधी भििाि!
दस िहामवद्या दस मदर्ा को प्रकाि।
दस सती प्रगट भयी र्खक्तिय सांचाि!
तैंतीस कोमट सब देव किसेती जयकाि।
*************************
29. 29 माय गढ़काली
17.चमकसे तलवार रािा भोि पंवार की
*आन अना बान से िाजा भोज पांवाि की!
जग िा से ख्यामत; िाजा भोज तलवाि की।।टेक।।
१)अकड़्या दुश्मन ला पछाड़ देईसेस!
जिीन िा मजांन्दो उनला गाड़ देईसेस!
असी से फनकाि िाजा भोज प्रहाि की। :-हो -हो-----------
२) दुमनया िा कईयोां लड़ीसेस जांग!
मवपक्षी दल देखकन;होय गया दांग!
ललकाि गिज उठी; िाजा भोज हुांकाि की।::---हो -हो::-------
३)सब दुि पापी अचखित होय गया!
घि का ना घाट का;ििघट को होय गया!
धनुष बाण टांकाि िाजा भोज फ
ुां काि की। :::-हो-हो:::----------
४) भगदड़ िचाय देईस ओय;ओय जहाां तहाां पिाय गया!
िणछोड़ कई भागीन;कई पाताल िा सिाया!
झांकाि बजी जीत की;िाजा भोज जयकाि की। ::::--हो -हो ----
५)कट गया दुि;नदी खून की बह गई!
नाचन ला अप्सिा सब आय गई!
देवता ईनन गुण गाईन; धिशनीमत धाि की।:::::--हो-हो---------
जग िा से र्ान िाजा भोज पांवाि की
*********************************
30. 30 माय गढ़काली
18.िय िय हो माय भवानी
जय जय हो िाय भवानी;तोिी करुसू पुकाि!
धिा नभ पि तोिो से इन्तजाि!!टेक!!
१)अमत अदभुत मवकिाली भवानी!
भव्य मदव्य मवर्ाली ब्रम्हाणी!!
िमहिा से तोिी िाय जग िा अपाि। :--हो -होओ धिा नभ िा
से िाय तोिो इन्तजाि:-----
२) आसिाां भी तोिो िाय किसे सम्मान!
मवश्व िा तोिी से आन बान र्ान!
नविामत्र िा होसे र्खक्त सांचाि।::-हो -हो -धिा नभ िा से िाय
तोिो इन्तजाि:--------
३) र्खक्त भखक्त युखक्त िाय प्रदाता!
सकल सृमि की िाय मवधाता!
गुणला गावसे सािो सांसाि।:::----हो-हो-धिा नभ िा से िाय
तोिो इन्तजाि::-----
४) दृमि मत्रनेत्र िा तोिो ब्रम्हाण्ड सिायो!
ब्रम्हा मवष्णु र्ांकि जी चिण िा धायो!
सब देवता आया तोिो दिबाि।::::-हो-हो धिा नभ पि िाय तोिो
इन्तजाि::-----
५)वेद ग्रांथ र्ास्त्र को मलखूसू साि!
मलखावसेस भक्त ला;किसेस दुलाि!
भक्त िािचिण पटले िाय किसे प्रसाि।:::::--हो -हो -हो------
-----धिा नभ पि िाय तोिो इन्तजाि
31. 31 माय गढ़काली
19.तुलसीदास ियंती
४/८/२०२२मदन से गुरुवाि;
तुलसीदास जी की जय जयकाि!
िािचरितिानस का िचनाकाि;
भगवान िाि की िमहिा अपाि।
भाित िा जनम्या कई गुणकाि;;
कमवताकाि कोन्ही;कई गीतकाि।
सामहत्यकाि कोन्ही;कई इमतहासकाि;
भजनकाि कोन्ही;कई मकतशनकाि।
आध्याखत्मक सत्सांग की िमहिा अपाि;
अिि आत्मा लक िचेव सांसाि;
पांच तत्व िा नि देह से साकाि;
जगत जननी िाय सबकी आधाि।
************************
32. 32 माय गढ़काली
20.माय जबना नहीं धरती सुहाय
िाय भवानी नहीां तोां काही नहीां;
िाय मबना नहीां काहीच सुहाय!
िाय को मबना सांसाि चल नहीां;
र्ांकि भगवान सुनसान िह जाय।
स्वगश िा सब क
ु छ मिल जासे;
मक
ां तु िौत; नहीां नजि िा आय!
गीता िा;सब क
ु छ सहज से;
झूठ को कहि नि होय जाय।
दुमनया िा सब क
ु छ सिल से;
लेमकन कभी च सुक
ू न नाहाय!
कलयुग िा हि पल क्षण क्षण;
पिन्तु सब्र फल मधिज नाहाय।
िाजा भोज पूछसे कामलदास ला;
अदभुत अचिज का दस सवाल!
उिि देयकन जल्दी साांग िोला;
िहाकमव उपामध मिले तत्काल।
१) दुमनया िा सवशश्रेष्ठ िचना का से?
कामलदास साांगसे उिि िािाय!
२) सवशश्रेष्ठ फ
ू लकौनसे से?
उिि िाकपास फ
ू लजतलाय।
३) सवशश्रेष्ठसुगांधकौनसी से?
बषाश लक मभांगी िाटी बतलाय!
४) सवशश्रेष्ठमिठासकौनसी से?
33. 33 माय गढ़काली
वाणी कीिधूिता ला फििाय।
५) सवशश्रेष्ठदूधकोनको होसे?
उिि िा:-साांगीस िाय को दूध!
६)सब लककािो का ?से;
उिि िा:-*कलांक से अर्ुद्ध।
७)सब लक "भािी"का चीज से;
उिि िा:-सब लक कहीसपाप!
८)सब लकसस्तो का?से;
सेसलाहसबदून अच्छी साफ।
९) सबदून िहांगोांका चीज से?
साांगीस कामलदास नसहयोग!
१०) सब लककड़वोकायिा से;
उिि िा:-सत्य कोअनुप्रयोग।
कामलदास सब पिीक्षा पास भयो;
भयो िाजा भोज दल िा र्ामिल!
िहाकमव सांसाि को कहलायो;
असो मवद्वान होतो िहाकामबल।
असी घमटत पावन िचना ला;
िािचिण पटले सत्य दर्ाशय!
काव्यात्मक किकन सबला;
पांध्याांर्ीकिण िा सिझाय।
**********************
34. 34 माय गढ़काली
21.रामायण मायबोली मा जलखाई
****"****
(प्रकार:--गीत स्वरुप)
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।।
१) अयोध्या नगिी िा जन्म लेयकन!
िाजा दर्िथ को बेटा बनकन!!
धन्य से तोिी कौर्ल्ा िाई:--हो-हो
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।
२)मबष्णू जी स्वरुपी तोिी से काया!
मवश्व ब्रह्माण्ड सब तुझिा सिाया!!
मवलाप िा िाय क
ै कयी सताई::--हो हो -------
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।।
३)सुमित्रा िाय िही भूखी प्यासी!
तीनी िाय मजज्ञासू अमभलाषी!!
याद दिर् िा आयी िोवाई:---हो-हो -----------
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।।
४) सिस्वती लक्ष्मी जसी पावशती!
मत्रलोकी तीन सिागि िूमतश!!
िोहिाया योगिाया िहािाई:--हो-हो------
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।।
35. 35 माय गढ़काली
५) िािचिण पटले गीत िा गाये!
िािायण नवीन िचना बनाये!!
सांगीतबद्ध करु कमवताई::---हो-हो-----
दोहा सोिठा छां द:;गाऊ चौपाई!
जय जय जय हो; श्रीिाि िघुिाई।।
***********************************
36. 36 माय गढ़काली
22.भगवान श्रीराम की मजहमा
********
मायबोली मा बखान
जब;िाि जी वनवास िा गया;
आयकनो पांचवटी को दृिाांत!
नामर्क िा काही मदवस िया;
वहाां घटेव मवमचत्र भव्य वृताांत।
िाि;लखन अना सीता समहत;
चुप र्ाांत बसेव होतो भगवान!
अचानक र्ूपशणखा मविामजत;
स्वरुप बदलकन आयी र्ैतान।
िोमहत होय गई वा जो मदवानी;
िािजी;ओला देख भयो हैिान!
किकन ओन हिकत सी र्ैतानी;
र्ूपशणखा कटाय गई नाक कान।
बदला लेनला दुि आयो िावण;
िाि जी को क
ु मटया को दिम्यान!
ढोांगी साधु को भेष िा आयकन;
सीता जी ला िाांगकन भोजनदान।
देवी सीता ला लांका लेजायकन;
इत िाि लखन दुई भाई पिेर्ान!
ढुांडन लग्या यहाां वहाां जायकन;
भगवान िाि ला सब होतो ज्ञान।
पहले च िाि न िाया िचायकन;
37. 37 माय गढ़काली
अमिदेव को किकन आहवान!
अमिदेव जवड़ सीता ला ठे यकन;
येव आय गुप्त िहस्य को मवधान।
िाया की बनी;बदलकन काया;
दुमनया वाला सिझ नहीां पाया!
िावण जसा कई दुि चकिाया;
बड़ा -बड़ा सब ज्ञानी भििाया।
या सब लीला प्रभू िाि की होती;
मबगड़ गई होती िावण की िमत!
कलयुग ला या दर्ाशवन की नीमत!
पिि चरित्रवान िाय सीता होती।
जय जय जय हो िाय भवानी;
कभी ब्रम्हाणी कभी कल्ाणी!
लक्ष्मी स्वरुपा िाय या मवद्वानी;
िािचिण पटले की या जुबानी।
वेद पुिाण ग्रांथ की मलखकन कहानी;
किजो िाय सदा सवशदा मनगिानी!
भक्त जनन पि किजो िेहिबानी;
अजि अिि आत्मा वाली विदानी।
*********************************
38. 38 माय गढ़काली
23.आध्याब्दिक कजवता
या िांमजला देह मिली से;
सात चक्र िा सजेव िकान!
येिा पाांच तत्व मवलीन से;
येिा उड़तो से िन -प्राण।
िूलाधािचक्र थथान र्खक्त को;
क
ुां डली िािकन मलप्ट्या साांप!
ध्यान साधन िाध्यि सांचाि को;
हृदय िा ऊजाश आवसे अनाप।
छे :पांखुड़ी लक सजेव तन िन;
स्वामधष्ठान चक्र से जी िहान!
आत्ममवश्वास लक सब उत्पन्न;
होसे अांग िा काया को उत्थान।
पीत वणश िमणपुि चक्र सांग िा;
ििण किसे पीथ िज्जा सांथथान!
किल खखलसे दस पांखुड़ी िा;
जागसे अमिभाव नव मनिाशण।
िध्य छाती िा से हृदय चक्र;
ईनिा से नर्-नाड़ी परिधान!
िन येव भांविा मफिसे वक्र िा;
प्रक
ृ मत लक जुड़ी से मवधान।
मवर्ुद्ध चक्र से क
ां ठ थथान िा;
येलक मनभीक िव्हसे जी जान!
अष्ठ मसध्दी नव मनधी सबिा;
39. 39 माय गढ़काली
येलक होसे र्ांका को सिाधान।
िी कौन सेव लक उिि देसे;
असो मर्व नेत्र लक कसे पुिाण!
क
ुां डली सहस्त्रसाि सुषुम्ना से;
ईनिा मत्रवेणी सांगि को मठकान।
सहस्त्रसाि येव िोक्ष िागश को;
पूणश साधना लक पिि मवश्राि!
पिि मिलन;मर्व िा र्खक्त को;
ये सब पिि सिामध िुखक्तधाि।
सिय िहे तोां जाग जाय िे बांदे;
बसकन सत्सांग को दिम्यान!
नेत्र िहकन; नोकोां बनस अांधे;
तोिो पि क
ृ पा किे िे भगवान।
अन्तध्याशनी िाय भवानी लक;
पायो असो भव्य मदव्य विदान!
गुप्त साधन वाली िाय झलक;
क्षण िा भि देसे रिक्त थथान।
*******************************
40. 40 माय गढ़काली
24.नवो भिन भगवान पर
हो -हो भगवान भी तिसी से:;:-:जन्म ईांन्र्ान को लेन ला::!टेक!
अ.१):-अजि अिि िहकन पाषाण िा िहेव !
िाटी को हि कण िा मिलेव!!
जागी मपपासा किश किनला --।हो -हो भगवान भी तिसी से;
जन्म ईांन्र्ान को लेन ला:-------
अ.२):-बहुत त्रास भोगकन; अदृश्य िहकन!
कभी अखबाि पेपि िा छपकन!!
जागी अमभलाषा धिश किनला --।-हो -हो भगवान भी तिसी से
जन्म ईांन्र्ान को लेन ला।।
अ.३):--सत्यता होती सत्पुरुष होय गयो!
िहापुरुष बनकन श्री िाि जी होय गयो!
आयो सृमि को सांकट हिणला --। हो -हो भगवान भी तिसी से
जन्म ईांन्र्ान को लेन ला।।।
अ.४):- भजन िािचिण पटले मलखकन!
िाय को भखक्त िा िगन होयकन!
लग गयो गीत भजन मलखनला -। हो -हो भगवान भी तिसी से
जन्म ईांन्र्ान को लेन ला।**
***********************************
41. 41 माय गढ़काली
25.रामायण सन्दभम मा मायबोली शिावली गीत
आजद अवतार देवी सीता िी को परम पावन चररत्र
जवषयक कजवताकरण:-
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता:
िाय सीता ला देखकन!
िाि जी भी िन िा िोयो;:
अमि पिीक्षा लेयकन!!टेक!!
अ.१) अयोध्या नगिी नजािोां देख िही!
दुमनया इर्ािोां िा सांकोच कि िही!!
बोल गई झगड़ा को हाल धोबन;
सीता को चरित्र ला दाग लगायकन;
अयोध्यावासी भ्मित होयकन;?
मवचमलत भयो िाि बात सुनकन?
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता;िाय सीता ला देखकन:-----िाि
जी भी िोयो;अमि पिीक्षा लेयकन।
अ.२):भयो होतो झगड़ा धोबन को घि िा ?
उदाहिण उलाहना देयकन सब िा?
सियू नदी गई वा कपड़ा धोवनला!
कलांक लगायकन सीता को जीवन ला!
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता;िाय सीता ला देखकन::----िाि
जी िोयो अमि पिीक्षा लेयकन।
अ.३):िाि जी न;गुप्त िांत्री ला पठायकन!
गाांव गाांव िा पठाईस;सभा बसायकन!
मविोधी कई होता;बोल्ा कटू वचन!
कई सच्चा होता;किीन सत्य अवलोकन!
दुमवधा िा िािजी भयो मवचलन!
42. 42 माय गढ़काली
दुय बाि सीता जी की पिीक्षा लेयकन!
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता;सीता ला देखकन:::----िाि जी भी
िोयो अमि पिीक्षा लेयकन।
*अ.४)जानो पड़ेव सीता िाय ला घोि वन वन!
वाल्मीमक ऋमष को जवड़ सुिमक्षत िहकन!
िाजा की िानी िहकन भी मविहन!
भया सीता जी ला;दुय टू िा उत्पन्न!
अन्त िा भयो;लवक
ु र् िाि परिवाि मिलन!
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता;सीता ला देखकन ----िाि जी
िोयो अमि पिीक्षा लेयकन।
अ. ५)अश्विेघ यज्ञ प्रभू िाि न किायकन!
यज्ञ को घोड़ो ला लवक
ु र् न धिकन!
िाि जी आयो घोड़ोां ला िाांगन!
अन्त िा भयो;भ्ि हटावन मनष्कषशण!
लवक
ु र् खूब िोया;सवाल पुछकन!
अयोध्या की हि गली िा जायकन?
िाय सीता साती किीन सत्यापन!
दुुः ख िा मबतेव िाय सीता को जीवन!
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता;सीता ला देखकन ----िाि जी भी
िोयो अमि पिीक्षा लेयकन।
अ.६):िािचरितिानस को येव मवविण!
िायबोली लक किेव मववेचन!!
िाि जी भी िोयो होतो िन मह िन!
बड़ो दमदशलो िाय सीता को चरित्र मचत्रण!!
िािचिण पटले न किकन सांक्षेपण**
हो -हो धड़ -धड़ िोई जनता सीता ला देखकन ----िाि जी भी
िोयो अमि पिीक्षा लेयकन:-----
43. 43 माय गढ़काली
26.भगवान की मजहमा महान
होां -हो जय जय र्ांकि भगवान्!
किसे भक्त जन को कल्ाण !टेक!
अ १) अवताि लेयकन कभी िाि को!
रुद्र रुप लेय रुप हनुिान को!!
हो -हो बनकन वीि बलवान*:-
हो-हो जय जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!
अ. २) ब्रम्हा जी ला आदेर् देयकन!
सृमि की िचना ला किायकन!
हो -हो किसे मदव्य भव्य मनिाशण*:-
हो -हो जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!
*अ. ३) मबष्णू जी ला अांग िा धािण कि!
नाग बनायकन गिो िा पेहिकि!
हो िचकन सािो मवधान::----
हो -हो जय जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!
अ.४) धिती का सब दुि मिटायकन!
काल कि सबको हटायकन!!
हो सािो जग किसे गुणगान*:--
हो -हो जय जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!
अ.५) पूजा पाठ किसे नि नािी!
44. 44 माय गढ़काली
हो मर्व र्ांकि भोला भांडािी!!
हो होयकन सब पि िेहिबान**:--
हो-हो जय जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!*
अ.६) भोले को सब पि से एअसान!
िािचिण पटले किसे िमहिा बखान!
हो किसे कमठन काि आसान*
हो जय जय हो र्ांकि भगवान!
किसे भक्त जन को कल्ाण!!
**********************
देवी गीतकार-रामचरण पटले
महाकाली नगर नागपुर
मोबाइल नं.८२०८४८८०२८९८२३९३४६५६
मु.पोष्ट:-कटेरा तहसील -कटंगी जिला
बालाघाट (म.प्र.)