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समाज मनोविज्ञान की
मानवसक स्वास्थ्य में
उपयोविता
धमेन्द्र वसकरिार
एम. ए. प्रथम िर्ष
समाज मनोविज्ञान
जीिाजी विश्वविद्यालय
ग्वावलयर
समाज मनोविज्ञान
समाज मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की िह शाखा है वजसक
े अन्तर्गत सामावजक
समस्याओं, सामावजक व्यिहार तथा मनुष्य की सामावजक अंतःविया का
िमबद्ध तथा िैज्ञावनक रूप सै अध्ययन वकया जाता है। “समाज मनोविज्ञान
व्यक्तियों की पारस्पररक प्रवतविया का और इससे प्रभावित व्यक्ति क
े
विचारों, संिेर्ो, तथा आदतों का अध्ययन है।”
मानवसक स्वास्थक्या क्या है ?
• मानवसक स्वास्थ्य या तो संज्ञानात्मक अथिा भािनात्मक सलामती क
े स्तर
का िर्गन करता है या विर वकसी मानवसक विकार की अनुपक्तथथवत को
दशागता है।[1][2] सकारात्मक मनोविज्ञान विषय या साकल्यिाद क
े
दृविकोर् से मानवसक स्वास्थ्य में एक व्यक्ति क
े जीिन का आनंद लेने की
क्षमता और जीिन की र्वतविवियों और मनोिैज्ञावनक लचीलापन हावसल
करने क
े प्रयास क
े बीच सामंजस्य शावमल हो सकता है।
• मानवसक स्वास्थ्य समस्या ि दुष्प्रभाि
• विश्व स्वास्थ्य संर्ठन क
े अनुसार, िषग 2020 तक अिसाद
(DEPRESSION) दुवनया भर में दू सरी सबसे बडी समस्या होर्ी।
• कई शोिों में यह वसद्ध वकया जा चुका है वक अिसाद, ह्रदय संबंिी रोर्ों
का मुख्य कारर् है।
• मानवसक बीमारी कई सामावजक समस्याओं जैसे- बेरोज़र्ारी, र्रीबी और
नशाखोरी आवद को जन्म देती है।
• भारत और मानवसक रोि- ितषमान पररदृश्य
• WHO क
े अनुसार, भारत में मानवसक रोर्ों से पीवडत लोर्ों की सबसे अविक संख्या
मौजूद है।
• आँकडे बताते हैं वक भारत में 15-29 िषग की आयु िर्ग क
े लोर्ों की मृत्यु का सबसे
बडा कारर् आत्महत्या है।
• उपरोि तथ्ों क
े आिार पर यह कहना अवतशयोक्ति नहीं होर्ा वक भारत एक र्ंभीर
मानवसक स्वास्थ्य महामारी की ओर बढ़ रहा है।
• भारत में मानवसक स्वास्थ्यकवमगयों की कमी भी एक महत्त्वपूर्ग विषय है। विश्व स्वास्थ्य
संर्ठन क
े अनुसार, िषग 2011 में भारत में मानवसक स्वास्थ्य विकार से पीवडत प्रत्येक
100,000 रोवर्यों क
े वलये 0.301 मनोवचवकत्सक और 0.07 मनोिैज्ञावनक थे।
• िषग 2011 की जनर्र्ना क
े आँकडे बताते हैं वक भारत में तकरीबन 1.5 वमवलयन लोर्ों में बौक्तद्धक
अक्षमता और तकरीबन 722,826 लोर्ों में मनोसामावजक विकलांर्ता मौजूद है।
• इसक
े बािजूद भी भारत में मानवसक स्वास्थ्य पर वकये जाने िाला व्यय क
ु ल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का
मात्र 1.3 प्रवतशत है।
• साथ ही िषग 2011 की जनर्र्ना आँकडों से पता चलता है वक मानवसक रोर्ों से ग्रवसत तकरीबन
78.62 िीसदी लोर् बेरोज़र्ार हैं।
• मानवसक विकारों क
े संबंि में जार्रूकता की कमी भी भारत क
े समक्ष मौजूद एक बडी चुनौती है। देश
में जार्रूकता की कमी और अज्ञानता क
े कारर् लोर्ों द्वारा वकसी भी प्रकार क
े मानवसक स्वास्थ्य
विकार से पीवडत व्यक्ति को ‘पार्ल’ ही माना जाता है एिं उसक
े साथ उसकी इच्छा क
े विरुद्ध जानिरों
जैसा बतागि वकया जाता है।
• भारत में मानवसक रूप से बीमार लोर्ों क
े पास या तो देखभाल की आिश्यक सुवििाएँ उपलब्ध नहीं हैं
और यवद सुवििाएँ हैं भी तो उनकी र्ुर्ित्ता अच्छी नहीं है।
• सामावजक मनोविज्ञान और मानवसक स्वास्थ्य
•
• अिसाद, वचंता, तनाि, िोवबया, वसज़ोफ्र
े वनया, मनोविक
ृ वत और व्यक्तित्व विकार जैसी मानवसक स्वास्थ्य
समस्याएं आिुवनक दुवनया की बढ़ती हुई समस्याएं हैं। अविकांश मानवसक स्वास्थ्य समस्याओं क
े
सामावजक-मनोिैज्ञावनक कारर् होते हैं/
• जैसे दू सरों क
े साथ तनािपूर्ग संबंि, वप्रयजनों की मृत्यु, वििाह समायोजन क
े मुद्दे, कमजोर पाररिाररक
बंिन, ब्रेक-अप, तनािपूर्ग िातािरर् में काम करना और अप्रत्यावशत सामावजक पररितगन। ऐसी
सामावजक पररक्तथथवतयाँ भािनात्मक र्डबडी, मानवसक मंदता, नशीली दिाओं क
े दुरुपयोर्, असामान्य
व्यिहार और यहाँ तक वक आपराविक व्यिहार का कारर् बन जाती हैं।
समाज मनोविज्ञान का मानविक स्वास्थ्य में
योिदान
• मानवसक स्वास्थ्य क
े मुद्दों को संबोवित करने में सामावजक मनोविज्ञान महत्वपूर्ग भूवमका वनभाता है।
सामावजक मनोविज्ञान मानवसक बीमाररयों क
े वनदान और उपचार से संबंवित है। चूंवक आजकल अविकांश
मानवसक स्वास्थ्य मुद्दों क
े सामावजक-मनोिैज्ञावनक कारर् होते हैं, इसवलए इन कारर्ों की पहचान करना
और तदनुसार उनका समािान करना एक बेहतर तरीका है।
• सामावजक मनोविज्ञान इन कारर्ों की पहचान करने क
े वलए बुवनयादी ज्ञान और उपकरर् प्रदान करता है
जो अप्रत्यक्ष रूप से वकसी व्यक्ति क
े शारीररक स्वास्थ्य से जुडे होते हैं लेवकन सीिे सामावजक संदभग से
उत्पन्न होते हैं जहां व्यक्ति इन मुद्दों का अनुभि कर सकता है।
• क
ु छ देशों में, सामावजक मनोिैज्ञावनकों को उपचार क
े मनोिैज्ञावनक अभ्यासों का उपयोर् करक
े मानवसक
स्वास्थ्य समस्याओं िाले रोवर्यों का इलाज करने क
े वलए लाइसेंस वदया जाता है। कई अन्य देशों में,
मानवसक बीमारी क
े इलाज क
े वलए सामावजक मनोिैज्ञावनक मनोवचवकत्सकों और वचवकत्सा डॉक्टरों क
े साथ
वमलकर काम करते हैं।
• देश में मानवसक स्वास्थ्य से संबंवित समस्या लर्ातार बढती जा रही है। ऐसे में आिश्यक है वक इससे वनपटने क
े
वलये उपयुगि क्षमताओं का विकास वकया जाए और संसािनों में िृक्तद्ध की जाए।
• इस संबंि में जार्रूकता बढ़ाना भी एक महत्त्वपूर्ग कदम हो सकता है, क्ोंवक जार्रूकता की कमी क
े कारर् ही
कई रोवर्यों को अमानिीय व्यिहार का सामना करना पडता है।
• विश्व बैंक का आकलन है वक दुवनया की 90 प्रवतशत स्वास्थ्य संबंिी ज़रूरतों को प्राथवमक स्तर पर ही पूरा वकया जा
सकता है, परंतु आँकडे बताते हैं वक भारत में प्राथवमक स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल का बुवनयादी ढाँचा कािी कमज़ोर
है और यहाँ प्रत्येक 51000 लोर्ों पर मात्र एक ही प्राथवमक स्वास्थ्य क
ें द्र मौजूद है। अतः आिश्यक है वक प्राथवमक
स्वास्थ्य क
ें द्रों क
े वनमागर् पर वनिेश वकया जाए।
• स्वास्थ्य देखभाल राज्य सूची का विषय है और इसवलये इसकी चुनौवतयों से वनपटने क
े वलये राज्य और क
ें द्र क
े मध्य
उवचत समन्वय की आिश्यकता है।
• इस संबंि में सरकारी वित्तीय सहायता भी एक महत्त्वपूर्ग भूवमका अदा कर सकती है।
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  • 1.
  • 2. समाज मनोविज्ञान की मानवसक स्वास्थ्य में उपयोविता धमेन्द्र वसकरिार एम. ए. प्रथम िर्ष समाज मनोविज्ञान जीिाजी विश्वविद्यालय ग्वावलयर
  • 3. समाज मनोविज्ञान समाज मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की िह शाखा है वजसक े अन्तर्गत सामावजक समस्याओं, सामावजक व्यिहार तथा मनुष्य की सामावजक अंतःविया का िमबद्ध तथा िैज्ञावनक रूप सै अध्ययन वकया जाता है। “समाज मनोविज्ञान व्यक्तियों की पारस्पररक प्रवतविया का और इससे प्रभावित व्यक्ति क े विचारों, संिेर्ो, तथा आदतों का अध्ययन है।”
  • 4. मानवसक स्वास्थक्या क्या है ? • मानवसक स्वास्थ्य या तो संज्ञानात्मक अथिा भािनात्मक सलामती क े स्तर का िर्गन करता है या विर वकसी मानवसक विकार की अनुपक्तथथवत को दशागता है।[1][2] सकारात्मक मनोविज्ञान विषय या साकल्यिाद क े दृविकोर् से मानवसक स्वास्थ्य में एक व्यक्ति क े जीिन का आनंद लेने की क्षमता और जीिन की र्वतविवियों और मनोिैज्ञावनक लचीलापन हावसल करने क े प्रयास क े बीच सामंजस्य शावमल हो सकता है।
  • 5. • मानवसक स्वास्थ्य समस्या ि दुष्प्रभाि • विश्व स्वास्थ्य संर्ठन क े अनुसार, िषग 2020 तक अिसाद (DEPRESSION) दुवनया भर में दू सरी सबसे बडी समस्या होर्ी। • कई शोिों में यह वसद्ध वकया जा चुका है वक अिसाद, ह्रदय संबंिी रोर्ों का मुख्य कारर् है। • मानवसक बीमारी कई सामावजक समस्याओं जैसे- बेरोज़र्ारी, र्रीबी और नशाखोरी आवद को जन्म देती है।
  • 6. • भारत और मानवसक रोि- ितषमान पररदृश्य • WHO क े अनुसार, भारत में मानवसक रोर्ों से पीवडत लोर्ों की सबसे अविक संख्या मौजूद है। • आँकडे बताते हैं वक भारत में 15-29 िषग की आयु िर्ग क े लोर्ों की मृत्यु का सबसे बडा कारर् आत्महत्या है। • उपरोि तथ्ों क े आिार पर यह कहना अवतशयोक्ति नहीं होर्ा वक भारत एक र्ंभीर मानवसक स्वास्थ्य महामारी की ओर बढ़ रहा है। • भारत में मानवसक स्वास्थ्यकवमगयों की कमी भी एक महत्त्वपूर्ग विषय है। विश्व स्वास्थ्य संर्ठन क े अनुसार, िषग 2011 में भारत में मानवसक स्वास्थ्य विकार से पीवडत प्रत्येक 100,000 रोवर्यों क े वलये 0.301 मनोवचवकत्सक और 0.07 मनोिैज्ञावनक थे।
  • 7. • िषग 2011 की जनर्र्ना क े आँकडे बताते हैं वक भारत में तकरीबन 1.5 वमवलयन लोर्ों में बौक्तद्धक अक्षमता और तकरीबन 722,826 लोर्ों में मनोसामावजक विकलांर्ता मौजूद है। • इसक े बािजूद भी भारत में मानवसक स्वास्थ्य पर वकये जाने िाला व्यय क ु ल सरकारी स्वास्थ्य व्यय का मात्र 1.3 प्रवतशत है। • साथ ही िषग 2011 की जनर्र्ना आँकडों से पता चलता है वक मानवसक रोर्ों से ग्रवसत तकरीबन 78.62 िीसदी लोर् बेरोज़र्ार हैं। • मानवसक विकारों क े संबंि में जार्रूकता की कमी भी भारत क े समक्ष मौजूद एक बडी चुनौती है। देश में जार्रूकता की कमी और अज्ञानता क े कारर् लोर्ों द्वारा वकसी भी प्रकार क े मानवसक स्वास्थ्य विकार से पीवडत व्यक्ति को ‘पार्ल’ ही माना जाता है एिं उसक े साथ उसकी इच्छा क े विरुद्ध जानिरों जैसा बतागि वकया जाता है। • भारत में मानवसक रूप से बीमार लोर्ों क े पास या तो देखभाल की आिश्यक सुवििाएँ उपलब्ध नहीं हैं और यवद सुवििाएँ हैं भी तो उनकी र्ुर्ित्ता अच्छी नहीं है।
  • 8. • सामावजक मनोविज्ञान और मानवसक स्वास्थ्य • • अिसाद, वचंता, तनाि, िोवबया, वसज़ोफ्र े वनया, मनोविक ृ वत और व्यक्तित्व विकार जैसी मानवसक स्वास्थ्य समस्याएं आिुवनक दुवनया की बढ़ती हुई समस्याएं हैं। अविकांश मानवसक स्वास्थ्य समस्याओं क े सामावजक-मनोिैज्ञावनक कारर् होते हैं/ • जैसे दू सरों क े साथ तनािपूर्ग संबंि, वप्रयजनों की मृत्यु, वििाह समायोजन क े मुद्दे, कमजोर पाररिाररक बंिन, ब्रेक-अप, तनािपूर्ग िातािरर् में काम करना और अप्रत्यावशत सामावजक पररितगन। ऐसी सामावजक पररक्तथथवतयाँ भािनात्मक र्डबडी, मानवसक मंदता, नशीली दिाओं क े दुरुपयोर्, असामान्य व्यिहार और यहाँ तक वक आपराविक व्यिहार का कारर् बन जाती हैं।
  • 9. समाज मनोविज्ञान का मानविक स्वास्थ्य में योिदान • मानवसक स्वास्थ्य क े मुद्दों को संबोवित करने में सामावजक मनोविज्ञान महत्वपूर्ग भूवमका वनभाता है। सामावजक मनोविज्ञान मानवसक बीमाररयों क े वनदान और उपचार से संबंवित है। चूंवक आजकल अविकांश मानवसक स्वास्थ्य मुद्दों क े सामावजक-मनोिैज्ञावनक कारर् होते हैं, इसवलए इन कारर्ों की पहचान करना और तदनुसार उनका समािान करना एक बेहतर तरीका है। • सामावजक मनोविज्ञान इन कारर्ों की पहचान करने क े वलए बुवनयादी ज्ञान और उपकरर् प्रदान करता है जो अप्रत्यक्ष रूप से वकसी व्यक्ति क े शारीररक स्वास्थ्य से जुडे होते हैं लेवकन सीिे सामावजक संदभग से उत्पन्न होते हैं जहां व्यक्ति इन मुद्दों का अनुभि कर सकता है। • क ु छ देशों में, सामावजक मनोिैज्ञावनकों को उपचार क े मनोिैज्ञावनक अभ्यासों का उपयोर् करक े मानवसक स्वास्थ्य समस्याओं िाले रोवर्यों का इलाज करने क े वलए लाइसेंस वदया जाता है। कई अन्य देशों में, मानवसक बीमारी क े इलाज क े वलए सामावजक मनोिैज्ञावनक मनोवचवकत्सकों और वचवकत्सा डॉक्टरों क े साथ वमलकर काम करते हैं।
  • 10. • देश में मानवसक स्वास्थ्य से संबंवित समस्या लर्ातार बढती जा रही है। ऐसे में आिश्यक है वक इससे वनपटने क े वलये उपयुगि क्षमताओं का विकास वकया जाए और संसािनों में िृक्तद्ध की जाए। • इस संबंि में जार्रूकता बढ़ाना भी एक महत्त्वपूर्ग कदम हो सकता है, क्ोंवक जार्रूकता की कमी क े कारर् ही कई रोवर्यों को अमानिीय व्यिहार का सामना करना पडता है। • विश्व बैंक का आकलन है वक दुवनया की 90 प्रवतशत स्वास्थ्य संबंिी ज़रूरतों को प्राथवमक स्तर पर ही पूरा वकया जा सकता है, परंतु आँकडे बताते हैं वक भारत में प्राथवमक स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल का बुवनयादी ढाँचा कािी कमज़ोर है और यहाँ प्रत्येक 51000 लोर्ों पर मात्र एक ही प्राथवमक स्वास्थ्य क ें द्र मौजूद है। अतः आिश्यक है वक प्राथवमक स्वास्थ्य क ें द्रों क े वनमागर् पर वनिेश वकया जाए। • स्वास्थ्य देखभाल राज्य सूची का विषय है और इसवलये इसकी चुनौवतयों से वनपटने क े वलये राज्य और क ें द्र क े मध्य उवचत समन्वय की आिश्यकता है। • इस संबंि में सरकारी वित्तीय सहायता भी एक महत्त्वपूर्ग भूवमका अदा कर सकती है।