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अ देवघर
देवघर
(पोवारी कहानी संग्रह)
लेखक
ऋषि षिसेन
आ देवघर
देवघर
(पोवारी कहानी संग्रह)
सवााषिकार : ऋषि षिसेन, िालाघाट
षिला : िालाघाट ( मध्यप्रदेश), ४८१००१
लेखक, मुखपृष्ठ और प्रकाशक : ऋषि षिसेन
प्रभुत्तम नगर, िालाघाट
षिला : िालाघाट ( मध्यप्रदेश), ४८१००१
७९७४७७१५९७
प्रथमावृषि : २४/०५/२०२३
मुद्रण: श्री हरीश िोगलकर
वेषदका ग्राषिक्स, गणेशपेठ, नागपुर
४४००१८
ISBN 9789358959277
देवघर( पोवारी भािा मा कहानी संग्रह)
इ देवघर
प्रेरणाश्रोत
मोरी आषिमाय स्व. कौशल्या िाई षिसेन ला समषपात
ई देवघर
मनोगत
देवघर, पोवारी(पंवारी) भािा मा षलखी मोरी कहानी को संग्रह
आय। देवघर को अर्थ, घर मा स्थर्त पूिा-पाठ का कक्ष या िागा से। हर
सनातनी षहन्दू को घरमा देवघर कोनी न कोनी रुपमा रहवसे। तसच
पोवार समाि मा भी देवघर, आपरो धरम अन आथर्ा को क
ें द्र होसे।
मोरी या षकताि चौिीस कर्ा इनको संग्रह आय। मोरी आषिमाय को
िीवन चररत अन िीवन मा आयो अस कई प्रसंग इनकी प्रेरना ला कर्ा
को स्वरूप देयकन यन षकताि को षनमाथण भयो। आपरो समाि का
इषतहास, संस्क
ृ षत, नेंग-दस्तूर, ररश्ता-नाता, धरम-करम, संस्कार, आदशथ
रािा असो कई षविय परा कहानी यन षकताि मा सेती।
पोवारी(पंवारी), छत्तीस क
ु र का पंवार(पोवार) समाि की
मातृभािा(मायिोली) आय। छत्तीस क
ु र का पंवार(पोवार) समाि अि
मूल रूप लक िालाघाट, षसवनी, गोंषदया अना भंडारा षिला मा
षनवासरत सेती। यन समाि को इषतहास को अध्ययन मा यव तथ्य आवसे
की अठारवी सदी की शुरुवात मा मालवा-रािपुताना (अि का उत्तर-
पषिम भारत) लक हमारो पुरखाइन मध्य-भारत मा आई होषतन। थर्ानीय
रािा इनको आग्रह परा उनला सैन्य सहयोग को उद्देश्य लक वय इतन
आया होता। हमारो पुरखाइन को शौयथ अना वीरता लक प्रभाषवत
होयकन थर्ानीय शासक इनना यव योद्धा रािपूत इनला इतन सैन्य अन
शासन का पद को संग िाघा-िमीन देईन एको कारन एनकी वैनगंगा
क्षेत्रमा थर्ायी िसाहट भई। असल मा यव रािपूत क
ु ल को संघ आय
िेको नाव पोवार/पंवार समाि से। इनला छत्तीस क
ु र का पंवार भी
कवहसेती।
हमारो समाि को भाट इनको अनुसार यन ित्था मा मालवा को
परमार क
ु ल को संग उनका नातेदार क
ु र िी नगरधन आया होता। आपरो
उ देवघर
पुरखा यव सांगसेषत की आषम मालवा का पोवार आिन। भाट न आपरी
पोषर्मा हर क
ु र को मूल थर्ान िी सांषगसे। पुरातन इषतहास, षिल्हा
गैज़ेट, िनगणना इनको दस्तावेि माआम्रो समाि अना समाि की भािा
को इषतहास षमल िासे। सिमा यव तथ्य चोवसे की हमारो पुरखाइन
मालवा-रािपुताना लक वैनगंगा क्षेत्र मा आया होता अना उनना आपरी
भािा ला संगमा आनीन। इषतहास मा यव िी उल्लेख षमलसे की आपरो
पुरखा एक सैन्य ित्था को रूपमा िुंदेलखंड िसो कई दुसरोक्षेत्र मा िी
रही होषतन। पहली िात की वय कई क्षेत्र का रािपूत क
ु ल होषतन अना
दू सरी िात की वय मालवा का परमार रािा इनका वंशि/नातेदार आती।
यव कारन से की हमारी भािा मा गुिराती, रािथर्ानी, मालवी, षनमाड़ी
अन षवदभथ मा आन को िाद मराठी भािा का कई शब्द षमल िासेती।
हमारी यव पोवारी भािा, आपरो मा समाि को क्षेत्रवार षवथर्ापन
की कहानी सांग देसे। मूल रूप लक पोवारी भािा पुरातन भािा आय
परा षवदभथ मा आन को िाद यन ित्था का आपरो पूवथि इनको क्षेत्र लक
दुरी भय गयी। अठारवी सदी की सुरुवात लक आगे तीन-चार पीढ़ी
षवदभथ को थर्ानीय समाि अना नागपुर परा मराठा षनयंत्रण को िाद
उनको संग सैन्य अना रािकीय भागीदारी होन को कारन हमारो समाि
मा रािपूत वैभव अना मराठी संस्क
ृ षत का समन्वय भयो, िेको प्रभाव
संस्क
ृ षत अन समाि की भािा मा षदस िासे।
देश आिाद भया, देश को संग समाि न िी खुप तरक्की कररस
परा अषधषनकीकरण को प्रभाव को कारन आपरी यव भािा आता षहंदी,
मराठी, अंग्रेिी की मंघा भय गयी। समाि िन आता पोवारी मा कम
िोलसेती, यव दुुःख को षविय आय। समाि का सषहत्यकार अना संस्क
ृ षत
प्रेमीवगथ आपरी पोवारी भािा को ितन मा िुटी सेती। साषहत्य को रूप
मा पोवारी आता समृद्ध होय रही से। यव िी मोरो षहरदय ला प्रेररत करसे
की हमाला आपरी भािा अन संस्क
ृ षत को ितन करनो से। देवघर,
ऊ देवघर
कहानी संग्रह मा आपरी संस्क
ृ षत अना इषतहास का षवषवध पहलु को संग
समाि का ररश्ता-नाता को ताना-िाना परा षलखन का एक प्रयास से।
मी मोरी आषिमाय स्व. कौशल्या िाई षिसेन, षपता श्री िागुलाल
षिसेन, माता श्रीमती क
ृ ष्णा षिसेन, पत्नी षिंदु षिसेन को संग मोरो दुही
िेटा मानस अना तुिीर षिसेन का लगत-लगत आभार मानुिु की वय हर
पल मोरो काम मा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लक मोरो संग िी देईन अस्खन
प्रेररत िी करीन। संग म मी पोवारी भािा का सप्पा साषहत्यकार अन
षवचारक इनला धन्यवाद करसु की उनना सदा मोला आपरी मूल
मातृभािा पोवारी मा षलखान लाई प्रेररत करीन। संग मा अस्खल भारतीय
क्षषत्रय पोवार/पंवार महासंघ का पदाषधकारी इनको िी धन्यवाद करुसु
की उनना मोला आपरी भािा अन संस्क
ृ षत षविय परा लेखन करनला
सदा प्रेररत कररसेन। सिकी प्रेरना लक िनी यव नहानसी षकताि
समािला समषपथत करुसु।
ऋषि षिसेन (IRS), नागपुर
मूलषनवास : ग्राम-खामघाट,
तहसील: लालिराा, षिला िालाघाट
िन्म स्थान : खोलवा, तहसील : िैहर, षिला िालाघाट
************
ऋ देवघर
प्रस्तावना
मालवाक
् माती मा िल्मी अना वैनगंगाक
् आचलमा िली ि
ू ली
पोवार समािकी मायिोली पोवारी. पोवारी िोली या पोवार समािक
्
संस्क
ृ तीको मूल आधार से. पोवारी िोलीमा पोवार समािको आत्मा िसी
से. आयररश अषधकारी अना भािाषवदिॉिथ अब्राहम षग्रयसथनक
् नेतृत्वमा
साल १९०४ मा देशव्यापी भािा सवेक्षण भयेव. येन् सवेक्षणक
्
"षलंस्िस्िक सवे ऑफ़ इंषडया" येन् ररपोटथमा (पान नं. १७७ - १७९) िॉिथ
षग्रयसथनन् पोवारी िोलीक
् िार्यामा षलखी सेस. येन् ररपोटथमा षग्रयसथनन्
षलखीसेस का, पोवार ये मुलत: मालवाका रािपूत प्रमार आती. षिनकी
भािा पोवारी से. पोवार समाि मूलत: भंडारा, गोंषदया, षसवनी अना
िालाघाट षिलामा िसी से.
पोवार समािक
् िोलीको भािा वैज्ञाषनक डॉ. सु. िा. क
ु लकणी
इनन् सन १९७२ मा पोवारी िोलीपर संशोधन करस्यान एक शोधषनिंध
प्रकाषशत करीन. उनक
् मतानुसार पोवारी पोवार िातकी िाषतिोली
आय. पोवारी िोली मा रािथर्ानी, िघेली, मालवी अना मराठी को षमश्रण
षदससे. िालाघाट, षसवनी षिलाक
् पोवारी िोलीपर षहंदीको त् भंडारा,
गोंषदया षिलाक
् पोवारीपर मराठीको प्रभाव षदससे. षवदभथमा
पोवारईनको षदघथकालवरी वास्तव्यक कारण पोवारीको घाट मालवी अना
र्ाट नागपुरी से.
पोवारी िोली पोवार समािक
् संपक
थ मा आयेव अन्य समािमािी
िोली िासे. पोवारी िोलीपर मध्यप्रदेशमा षहंदीको अना महाराष्ट्र मा
मराठीको प्रभाव देखनला षमलंसे. गाव खेळामा घरघरमा िोली िानेवाली
पोवारी शहरी क्षेत्रमा अन्य भािाक
् प्रभावलक कम िोली िासे. पर
षपछलो दुयच्यार सालमा समािमा आपल् िोलीक
् प्रती िनिागृती चल
रही से. येन् िनिागृतीलक पोवार समािमा पोवारी िोली िोलनकप्रती
िागृती होय रही से. येको कारण पोवारी िोलीक
् प्रती षशषक्षत समािमा
ऌ देवघर
िोलीक
् िार्यामा ि
ै लेव न्यूनगंड कम होयस्यान नवो षपढीमा पोवारी
िोलीको प्रचलन िढ रही से. येव आशादायी षचत्र षदनसक
् मंग् पोवारी
साषहस्त्यकईनकी मेहनतिी महत्वपूणथ से.
"देवघर" येन् कर्ा संग्रहक
् माध्यमलक लेखक ऋिीिी षिसेन
पोवारी साषहत्यला अषदक समृद्ध करनक
् प्रयासमा आपलो महत्वपूणथ
योगदान देय रह्या सेत. येक
ं पयले उनको "पोवारी संस्क
ृ ती" येव कषवता
संग्रह प्रकाषशत भयी से. आपल् आिूिािूला घटीत रोिमराथकी घटना,
मानवी स्वभावका अलग अलग पहलू येन् कर्ाक
् माध्यमलक उिागर
होसेत. पोवारी िोली पोवार समािक
् संस्क
ृ तीको आरसा आय.पोवारी
िोली समािला संगषठत करस्यान समािमा एकताको भाव उत्पन्न करसे.
िोलीको ितनद्वारा संस्क
ृ तीको ितन साध्य होये येव भाव लेखक कर्ाक
्
माध्यमलक व्यक्त करसेत.
प्रस्तुत कर्ा संग्रहमा आपल् षहम्मतक
् िलपर िाघपासून आपल्
दोस्तईनला िचावनेवाली शक्ती, आपल् कामक
् प्रती अपार षनष्ठा
ठे वनेवालो दलपत, पोवारीमा भािण देयस्यान मायिोली पोवारी
िचावनसाती तत्पर रवनेवाली कषवता, पुस्तकलाको इलाि करनसाती
आपली पूंिी लगावनेवाली िुडगी काकीिी ये आपल् शेिार िेठारमा
षदसनेवाला कर्ाईनका नायक/नाषयका आपलाच लगंसेत.
कर्ा आपलो िवरच घटीत होय रही से असो षचत्र िाचकक
्
सामने उभो करणकी ताकत येन् कर्ाईनमा से. दुष्ट्तापूणथ व्यवहार
करनेवालोला ईश्वर सिा देये येव संदेश देनेवाली "हरीकी इच्छा" या
कर्ा, दू धमा षमलावट करनेवालो रािारामकी "दू ध मा पानी" या कर्ा
दुष्क
ृ त्य करनला परावृत्त करनकी षसख देसे.
मंषदरसाती आपल् षिवनभरकी पुंिी दान करनेवाली रेवतनिाई,
अिीक
् षनधनलक षवचलीत मुक
े शको इलािक
् क्षेत्रमा िानको प्रण,
मेहनतलक सांसद िननेवालो मंत्री, मावसीको नकारात्मक व्यवहारला
ऍ देवघर
सकारात्मकतालक स्स्वकारनेवालो मुरली, िीवनमा श्रद्धाको भाव
षसखावनेवाली "श्रद्धा" या कर्ा, पुरखाईनको आषशवाथद देनेवालो देवघर,
इषतहासलक षिवनकी प्रेरणा देनेवाली "िय रािा भोि" या कर्ा ये कर्ा
षिवनको अलग पहलू उिागर करनेवाली सेत.
शहरीकरनक
् येन् युगमा गावकन चलो असो भावकी पेरणी
करनेवाली कर्ा िाचकको गावसंगमा लगाव िढावनोमा प्रेरणाको काम
करेत."देवघर" येन् कर्ासंग्रहामाकी कर्ा िसी षिवनमा
सकारात्मकताकी षसख देसेत तसोच उच्च षिवनमूल्य िोपासनको
ध्येयिी देसेत.
देवपर षनष्ठा ठे वनेवाली कौशल्या आपलो िालगोपालपर षिस्वास
ठे यस्यान वोला ध्यान करनेवा लेखक, आपलो वैभवशाली इषतहासलक
प्रेरणा लेयस्यान डाॅक्टर िननेवालो षदलीप की कर्ा उच्च षिवणमूल्य
देणारी सेत. नहान टुरूनला मायक
् ममतालक खािो देनेवाली नरिदा
आिीकी "नरिदा" कर्ा, षवियला रोवतो देख आपली भूल स्स्वकार
करस्यान पाटी वापस देनेवालो षदलीपकी "षवियकी पाटी" कर्ा ममता,
माया, षनतीमत्ताकी षसख देसेत.
पोवारी संस्क
ृ तीमा पल्या िढ्या कवी/ लेखक ऋिीिी षिसेन
इनको षलखानमा पद पद पर वैभवशाली पोवारी इषतहास, पोवारी
संस्क
ृ ती अना पोवारी िोलीको दशथन होसे. "देवघर" येव कर्ासंग्रह वूनक
्
पोवारी संस्कारकी साक्ष देसे. पोवारी साषहत्यपर "देवघर" येव कर्ासंग्रह
आपली अलग छाप छोडे येव मोला षिस्वास से. ऋिीिी षिसेन ईनला
भावी लेखन कायथलाई लगीत लगीत शुभकामना!
िोलो पोवारी, िाचो पोवारी, षलखो पोवारी
- गुलाि रमेश षिसेन
लेखक/िालसाषहत्यिक
ऎ देवघर
देवघर (काव्यसंग्रह) को प्रकाशन पर मन की िात
श्रीमद्भागवत गीता मा अध्याय 4 को श्लोक “यदा यदा षह धमथस्य
ग्लाषनभथवषत भारत। अभ्युत्थानमधमथस्य तदात्मानं सृिाम्यहम्” को अर्थ
िसो षनराशा ला दू र कर से तसोच पोवार समाि अन् पोवारी को वत्याथ
ज्या सामाषिक षनराशा न् घर िनाईसेस तसोच आमरी मातृभािा पोवारी
पर की षनराशा आपरो षलखान अन् काव्य को माध्यमलक
् दू र करन को
प्रयास श्री ऋषि षिसेन िी न करी सेन।“कमथण्येवाषधकारस्ते मा िलेिु
कदाचन” िसो यन् श्लोक को अर्थ कमथ करन माच् व्यस्क्त को अषधकार
से वोको िल मा नही तसोच पोवारी मायिोली, पोवारी संस्क
ृ षत को प्रचार
प्रसार लाईक आपलो सामािीक कमथ करन को हट्टहास कषव/लेखक को
रही से ओको िल मा नही।
आपरो िचपन लक
् पंवार समाि को सदस्य होनको गवथ, षसहारपठ
पंवार राम मंषदर िैहर को साषनध्य मा श्रध्दाप्रसाद अन् महाषवद्यालयीन
पढ़ाई को संग - संग पंवार समाि को कायथ करत सामाषिक षज़म्मेदारी
ला आदरणीय श्री ऋषि षिसेन िी न् पुरो करी सेन। समस्त पंवार
(पोवार) समाि उनको षनभथय, समषपथत अन् षवनम्र व्यस्क्तत्व ला हमेशा
सराहना करी सेन। िसी पंवार समाि की मायिोली पोवारी से िेको
प्रचार प्रसार अन् पोवारोत्थान लाईक श्री ऋषि षिसेन िी की पहचान से
वय् संस्कार उनको मातृ वात्सल्य लक
् आत्मसात् भया सेती। माता - षपता
आशीवाथद अन् पररवार को मागथदशथन लक
् योग्य - अयोग्य िसो िरक
आमला चोवसे तसोच आमरो संस्क
ृ षत को ह्रास नही चाईसे यको कारण
उनकी प्रर्म षकताि पोवारी संस्क
ृ षत को प्रकाशन गत विथ उनको
परमपुज्यषनय मातािी को िनमषदवस परा २४ मई ला भयों होतो।
पोवार समाि मा आमरो देव ला िहुत महत्व से अन् आमरो कोनतो
भी कायथ की सुरुवात देवघर को पुिापाठ लकाच् होसे। देवघर (चवरी),
ए देवघर
पंवार (पोवार) समाि को हर एक सदस्य को िीवन को अषभन्न अंग रही
से। काही िन आधुषनकीकरण अन् भटकाव मा आपरो संस्क
ृ षत,
ररतीररवाि अन् पुरखा का षनयम ला तोड रह्या सेती ओको महत्व ला
स्मरण करवानलाईक अन् पोवार समाि को धाषमथक आथर्ा को पदषचह्न
पर आधाररत, पोवार समाि को अषवभाज्य प्रषतषिंि ला शोभे असो
षशिथक श्री ऋषि षिसेन िी की दुसरी षकताि / काव्यसंग्रह “देवघर”
प्रकाषशत होय रही से।
पोवारी साषहत्य, पोवार समाि को उत्थान, पोवारी संस्क
ृ षत को िचाव
अन् पंवार (पोवार) समाि का युवाईनला मागथदशीत कर उनला उच्चतम
षशक्षा अन् लोकसेवा आयोग की परीक्षा मा भाग लेनलाईक प्रोत्साषहत
करनकी श्री ऋषि षिसेन िी प्रार्षमकता रही से। अिको येन्
आधुषनकीकरण को व्यस्त िीवन मा आपरो नौकरी को संग- संग मा
पाररवाररक षज़म्मेदारी ला न्यायसंगत ठे यस्यानी पंवार समाि को उत्थान,
पोवारी संस्क
ृ षत अन् पोवारी को प्रचार प्रसार मा समषपथत आदरणीय श्री
ऋषि षिसेन िी ला िहुत हिथपुवथक मी डॉ षवशाल षिसेन अस्खल भारतीय
क्षषत्रय पोवार (पंवार) महासंघ तर्ा समस्त पंवार (पोवार) समाि को
सदस्य करलक
् िधाई अन् शुभकामना प्रदान करु सु। मॉ गढकाषलका
आपरो सि कायथ मा आषशवाथद प्रदान करें या कामना व्यक्त करु सु।
डॉ षवशाल षिसेन
अध्यक्ष
अत्यखल भारतीय क्षषिय पोवार (पंवार) महासंघ
**********
ऐ देवघर
अनुक्रमषणका
१. देवघर १
२. सिलक मोठो दान ४
३. मुक
े श को प्रण ६
४. सौ रुपया ८
५. दलपत की होरी ११
६. कषवता की मायिोली पोवारी १३
७. पुस्तकला अना काकीिी १५
८. मोहन की ईमानदारी १८
९. श्रद्धा २०
१०. देवघर का देव २२
११. हमरो महादेव २४
१२. हरर इक्छा २६
१३. शस्क्त २९
१४.दू ध मा पानी ३१
१५. भोिशाला ३३
१६.िय रािा भोि ३६
१७.नरिदा ३८
१८. मंत्री ४०
१९. स्वणथपात्र ४२
२०.गाव वापसी ४४
२१. देवघर की चौरी की माटी ४७
२२.षविय की पाटी ४९
२३. िालगोपाल ५१
२४.शहर लक देवघर को रस्ता ५३
१ देवघर
१. देवघर
कौशल्या िाई को िीवन को संघिथ मा देवघर की आथर्ा ना पर्
प्रदशथक को काम करर होषतस। पषत को सार् षिया को क
ु छ िरस को
िाद छु ट गयो होतो अना चार नहान-नहान टू रू पोटू को भार वोको
कांधा परा आय गयो होतो। ओन िेरा मा मोठो िेटा दस िरस का अना
नाहनो डेढ़ िरस को होतो। दस िरस को िेटा आपरो अिी की षचता ला
अषि देयकन खेत मा िािार को दस्तुर मा मोठी षिम्मेदारी को िोझ ला
कसो समझयो यव कौशन पटलीन न आपरो देवा ला िरूर पुसी रही रहे
अना आपरो षहरदय ला लोखंड वानी िनायकन िीवन को रास्ता परा
चलतो िावनो को संकल्प लेई रहे।
देखता देखता िेरा आपरो गषत लक चलता गयो अना रोि षदवस
देवघर की षदया िाती को संग देव की षहम्मत सिला आपरो-आपरो
काम काि मा भेटत गयी। कौशन पटषलन को िीवन पूिा-पाठ अना
धरम-करम ला समषपथत होय गयो होतो। कौशन पटलीन को खेत को
िवर माय वैनगंगा की पावन धारा होती अना कौशन पटलीन की याच
माय गंगा होती। इषतहास मा भी या तथ्य उल्लेस्खत से की वैनगंगा, पावन
गंगा नदी को अंश आय।
देवघर की आथर्ा अना गंगा माय की षकरपा लक टूरू पोटू
मोठा भय गया। उनको यव सदा यव कर्न होतो की मोला मोरी गंगा
आपरो संगमा लेय िाहे अना मोरी षचताला ला कोषन ला हार् धरन की
नौित नही आन षक, सिको समझ को परे होतो परा सन्याषसन िषस
कौशन पटलीन को गाव अना समाि मा मोठो मान होतो।
कौशन पटषलन की देवघर परा लगीत आथर्ा होती अना उनकी
सिला देन वाली सीख को कारन पुरो गाव मा सिला देवघर मा आथर्ा
होती। देवघर की चौरी परा पुरो िीवन को रीषत-ररवाि षटकयो होसे।
२ देवघर
पोवारी संस्क
ृ षत को क
ें द्र आपरो देवघर मा रहसे असो वा सिला सांगत
होती। उनको िेटा िेटी को संगमा नाती पोता इनला भी यव संस्कार
षवरासत मा भेटयो। देव उठनो लक देव को सोवन को मुहूतथ अना
षकसानी को कई चक्र संग मा होसे। सनातनी षहन्दू को तीि षतव्हार भी
असो कालक्रम मा आवसेती।
कौशन पटलीन कहन ला त दू सरी कक्षा तक शाला पढनला
गयी होती परा उनला पुरो मुहुतथ अना तीि षतव्हार को मौस्खक ज्ञान
होतो। देव को आशीवाथद लक उनको िेटा िेटी सि आपरो िीवन मा
सिल भया अना उनको षदवस को चक्र भगवान सूयथदेव को अनुरूपच
चलत होतो। वय पुरो गाव की माय िसी होती अना सिको लाई उनको
षहरदय मा षपरम अना आशीवाथद होतो।
येक रोि कौसन पटलीन न आपरो षििोड़ा की पोटली ला धररि
अना गाव मा घर घर िायकन सिला िरा िरा सो िीि िाटन लगीन की
िाररश आय गयी से, तुमला िीि डाक्नो से अना आपरो देव परा पुरो
भरूिा भी राखनो से। अि उनको यव िरताव हर रोि लक िरासो
अलगच होतो।
श्याम ला उनना रोि को िसो देवघर अना महादेव को िवर
षदया िाती कररन अना िेवन को िेरा मा दू ध रोटी को दू ध ला आपरो
नाती ला देय देईन। रोटी को षनवाला उनको गरो मा षहलग गयो आना
ओको संग उनकी आवाि भी िंद भय गयी। असो लग्यो की ऊपर वालो
ना आपरो िवर िुलावान लाइ रोटी को यन षनवाला ला उनको गरो मा
रोक देईन अना यव उनको भगवान िवर िान को कारन िन्यो। सकार
होउता होउता कौशन पटलीन आपरो देव को िवर चली गइन। पूरी रात
मा एतरी िाररश भई की गंगािी मा भी पुर आय गयो होतो। असो लग
रह्यो होतो की पुरो षनसगथ उनको िावन को दुुःख मा रोय रह्यो होतो।
३ देवघर
माटी को चोला ल अषि को सुपरुत करनला माय वैनगंगा को
िवर सि पहूंच गया अना मोठो चट्टान परा षचता ला अषि देई गइन। नदी
को पुर अस्खन िढ़न लग्यो अना पानी को धार गोटा को चारी ओर आय
गयो। असो लगन लग्यो की आता कौशन पटलीन की अधिली षचता
िोहाय िाहे। परा असा काइच नही भयोय।
माय गंगा को कोरा मा ओषक िेटी की षचता होती, असो कसो
िोहाय िाती। पानी को िीच मा षचता िरती गयी अना राख आपो आपो
िोहावत गयी। देखन वालो ल यव दृश्य चमत्कार वानी होतो की असो
कसो होय षसक से की पानी को िीच मा षचता िरती रही। उनको यव
कर्न की,“मोला मोरी गंगा आपरो संगमा लेय िाहे अना मोरी षचताला
ला कोषन ला हार् धरन की नौित नही आन षक”,अि सत्य भय गयो।
देवघर की पूिक, कौशन पटलीन माय वैनगंगा को कोरा मा षवलीन होय
गयी।
४ देवघर
२. मोठो दान
शहर को कोनामा येक गरीि मोहल्ला होतो, ओको नाव श्रीराम
मोहल्ला होतो। यन मोहल्लामा येक िूड़गी माताराम रहवत होती। वोको
नाव रेवतन िाई होतो। िूड़गी माय मेहनत मिूरी लक आपरो गुिारा
करत होती। वोका कोई नही होषतन अन वा एखलीच रहवत होती।
श्रीराम मोहल्लामा मा कोनी भी मंषदर नही होतो। मोहल्लावासी
इनकी इत मंषदर िनावन की चाह होती। चुनाव को िाद रघुवीर षसंह,
श्रीराम मोहल्लामा मा नवो पािथद िीतकन आयो अना वोना श्रीराम मंषदर
षनमाथण लाई सहयोग करन को वादा करर होषतस। येक रोि रघुवीर ना
सप्पा मोहल्ला वासी इनकी िैठक रास्खस। यन िैठक मा मंषदर षनमाथण
लाई येक सषमषत को गठन भयो। रघवीर आपरो घर का रहीस होतो अना
ओना नंषदर षनमाथण की लागत का एक चौर्ाई खचथ देनकी घोिणा
करीस। सषमषतला मंषदर षनमाथण को संग िाषक पइसा संगरावन को काम
होतो। दू य महीना मा श्रीराम मंषदर षनमाथण सषमतीना पइसा संग्रायकन
मंषदर षनमाथण को मोठो काम पुरो कर डाषकस। मंषदर को षनमाथण मा
क
ु ल पांच लाख रुप्या का खचाथ भयो। रघुवीर ना सवा लाख की रकम
देईस अना िाषक का पइसा सिना आपरो-आपरो हैषसयत को
षहसािलक देईन।
श्रीराम मंषदर को उद् घाटन लाई एक कायथक्रम को आयोिन
करीन अना यन कायथक्रम का उद् घाटन सिलक मोठो दानदाता को हार्
लक करवावन का ि
ै सला सषमषत न करीस।यव तो सिला षदस रह्वो
होतो की पािथद रघुवीर का दान सि लक मोठो से त यव तय भयो की
मंषदर को उद् घाटन रघुवीर को हार् लक होहे।
कायथक्रम को रोि मंषदरमा दानदाता इनकी सूषच िारी भई अना
सषमषत को एक सदस्य, श्रीराम मोहल्ला की शाला को षशक्षक ना एक
५ देवघर
िात कायथक्रम मा रास्खन की दानदाता सूषच को मूल्यााँकनमा एक पहलु
देखनमा सुट गयी से षक सप्पा दानदाता इनना आपरो-आपरो हैषसयत
को षहसाि लक दान देइसेत परा रेवतन काकी की दानराषश भी लषगत
मोठी से अन वय उमरमा मोहल्लामा सिलकमोठी कमावन वाली सदस्य
आय त उनको हार् लक़ मंषदर का उदघाटन करवावन कसो रहे? यन
िात परा रघुवीर की घरवाली न आपषत्त करीस की रेवतन काकी न दान
मा २२३२४/- रुपया दान मा देईसे अना मोरो पषत न १ लाख २५ हिार
रुपया दानमा देइसे त यव तो सिला षदस रषहसे की कोनको दान
सिलक मोठो से।
गुरूिी न मंग कहीन की िेटी तोरी िात सही से परा मोरो
अवलोकन का षहसाि लक़ सिना आपरो संपषत्त को नहानसो भाग
दानमा देईसेत अना रेवतन काकी न आपरो िीवन भर की सप्पा कमाई,
प्रभु श्रीराम को मंषदर िनावन लाई दानमा मा देय देईस। यन िातला
सुनकन पूरी िनताना को िीच िोर लक़ ताली ििायकन काकी की
ियकार भई। मंग रघुवीर ऊभो भयो न माइक आपरो हार् मा लेयकन
कहवन िस्यो की गुरूिी को कवहनो सही से, मीन त आपरी संपषत्त को
येक नाहनो षहस्सा दान मा देयी सेव परा रेवतन काकी न आपरो पुरो
िीवन की सप्पा कमाई भगवान को चरनमा अषपथत कर देयी सेस। यव
यन मंषदर षनमाथण का सिलक मोठो दान से। काकी तुम्ही धन्य आय
अना मी काकी लक़ षिनती करूसू की वय आपरो हार् लक़ प्रभु श्रीराम
मंषदर का उदघाटन करहेती। आता िय श्रीराम को नारा लक़ िनता की
आवाि गुिन लगी।
**********
६ देवघर
३. मुक
े श को प्रण
मुक
े श कक्षा छटवी को छात्र होतो। वोको अिी रेलवे मा
कमथचारी होतो। मुक
े श को घर मा वोकी माय, नहानी िषहन अन् आिी
माय होती। अिी को नौकरी की व्यस्तता को कारन माय ला पूरो
षकरसानी को धंधा देखनो पड़त होतो। रोि राती दुषहला िुड़गी माय नवी
नवी कर्ा सांगत होती । कहानी सुनतो सुनतोच उनला िप् आवत होती।
यक रोि की िात से। मुक
े श ला िप् नही आय रही होती त
मुक
े श सायनी माय ला पुसन लग्यो की मोरो अिी सरकारी नौकरीमा से
तरी मायला काय लाई एतरो धंधा करनो पड़ से। अिी ल भी कई महीना
भय गया अन् घरअ नही आय रही सेत। मोरी माय ला भीकाइ आराम
नहाय। आिी माय कसे की तू काय लाई येतरो पुसोसेस, काईच नही भई
से तू सािरों लक
् सोय िाय। र्ोड़ी देरमा मुक
े श ला िप् आय गयी।
दू सरों रोि मुक
े श न यव िात आपरी माय ला भी पुषसस परा
वोन कहीस की तोरो शाला िावन को िेरा भय गयी से आता तू आपरी
षसदोरी धर न शाला िाय। स्क
ू ल िावता िावता वोको डोस्कामा यव
षिचार षिर रहयो होतो की मोरो अिी ला कािक होय गयी से की आता
वय भी घरअ नही आय रही सेती अन् घरमा भी कोनी काईच नही सांग
रही सेत। शाला मा कक्षा को िाद मुक
े श न यव िात आपरो गुरुिी ला
पूछन को षिचार करीस अन् गुरुिी को िवर िायकन येन षविय परा
पुसन लग्यो।
गुरुिी कसे की िेटा तोला मोठा मानुस िननो से। मोरी अन्
तोरो अिी की यव चाह से की तू िल्दी लक
् मोठो होय िाय अन् सािरी
पढ़ाई कर डॉक्टर िनिोस। मंग मुक
े श कसे की गुरुिी मी तुमरी िात
मान लेसु परा तुम्हीन मोरो प्रश्न को िवाि नही देयत। मोरो अिी षकत
सेती, वोय काय लाई घर नही आय रही सेत। माय अन् सायनी माय मोला
७ देवघर
काईच नयी सांग रही सेती अन् तुम्ही भी असोच मोला घुमाय षिरायकन
सांग रही सेव। गुरुिी मी तुमरी सप्पा िात मानहु अन् सािरो लक
् पढ़-
षलखकन सिको सपन ला पूरो कर देवु, मोला आता येतरी समझ आय
गयी से, परा मोरो अिी को सही सांगनोच पढ़े।
गुरुिी न मुक
े श की असी समझ की गोष्ठी सुन वोला आपरो
हार् लक
् पोचारकन कहवन लग्यो की िेटी तू लगतच होषशयार टुरा िन
गयी सेस। आता तोला सही सांगनोच पढ़े। तोरी माय न मोला या िात
िोली होषतस की तोरो अिी को सच तोला नही सांगषिन नही त तू परीक्षा
मा सािरों लक
् नही पढ़िोश परा तू आता एतरो षिद कर रही सेस त
सुन की तोरो अिी आता येन दुषनया मा नहाती अन् वय भगवान िवर
चली गई सेती। यव कोरुना को कारन उनकी शहर मा िौत भय गयी
होती।
यव सुन मुक
े श रोवन लग्यो न कहन िस्यो की, "अिी : यन
िीमारी की दवाई नही होवन को कारन तुमरो षनधन भयो", आता यव
मोरो िीवन को लक्ष्य भय गयो की मोला इलाि को क्षेत्र माच काम करनो
से अन् िेतरो संभव होहे समाि की वोतरीच सेवा करनो से। घर
आयकन मुक
े श न आपरी माय अन् सायनी माय ला यव भान नही होंन
देईस की वोला सिक
ु छ चेत गयी से अन् घर को धंधा मा हार् िटावन
लग्यो अस्खन संग मा सािरों लक
् पढ़ाई भी करन लग्यो। एक षदन
मुक
े श मोठो षचषकत्सक िनकन देश मा कइ महामारी को षटका को
षवकास कर आपरो प्रण ला पुरो करीस।
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८ देवघर
४. सौ रुपया
मुरली कक्षा दसवीं की परीक्षाला मा प्रर्म श्रेणीमा पास होन को
संग पुरो कक्षा मा पषहलो आयो होतो। घर की आषर्थक हालात सािरो
नही होन को कारन ओकी आगे की पढाईला िारी रखनो र्ोड़ो मुस्िल
होतो। कोनी न मुरलीला समझाईस देई होती की आई टी आई, सरकारी
कॉलेि लक होय िासे अना िादमा िल्दी लक नौकरी िी षमल िाहे।
आई टी आई को िामथ अना षकताि का खचाथ सौ रुपया होतो परा वोन
समय यव राषश िी मुरली लाइ लषगत होती, काहे की घरमा एत्तो रुपया
नोहोषतन। मुरलीला ध्यानमा आयो की वोषक मावसी आपरो घर की रहीस
आय त उनको िवर िानो मा काई मदद षमल सक से।
सकारीच मुरली साइकल धरकन मावसी को गाव चली गयो।
िेवन को िाद वू आपरी मावसीला आई टी आई करन की िात सांषगस
अना िारम अस्खन पुस्तक लेन लाई सौ रुपया की मांग करीस। मावसी
क
ै से की िेटा सौ रुपया त मोठी रकम आय अना मी तोला दे िी देसु त तू
वापस कसो करिोस, येको लाई मी तोला पईसा नही देय सक
ू । आता तू
मोठो भय गयी सेस अना काई काम धंधा खोि,आगे पढ़्कन भी कािक
करिोस?कोई कलेक्टर र्ोड़ीना िनिािोस।
मावसी की असी गोष्ठीला सुनकन मुरलीला लषगत धक्का लग्यो।
वोला उत काईच नही उमज्यो त चुपचाप आपरी साइषकल ला धरकन
आपरो घर आय गयो। मावसी का हर शिद ओको कानमा गूंि रह्वो
होतो। तू कलेक्टर र्ोड़ो ही न िन िािो !!!! तिच ओको षदमाग मा येक
चुनौती भरो षिचार आयो की कलेक्टर कसो िनसेती? आपरो षिला का
कलेक्टर त षिला को मुख्यालय मा िससेती, आता मोरो षदमाग भन्नाय
रहीसे त उनला िायकन पुसुसु। मुरली आपरी साइषकल धरकन सीधो
षिलाधीश को कायाथलय मा गयो अना िाषहर ऊभो सुरक्षा िवान ला
९ देवघर
आपरो क
ै ररयर मा मागथदशथन लाई कलेक्टर साहि लक षमलन की चाह
िताइस। िरासो रस्ता देखन को िाद कलेक्टर साहाि न मुरलीला
आपरो कायाथलय मा भेटनला िुलाय लेइस, अना पुषसस की तू कायलाई
मोरोपास आई सेस।
मुरली को प्रश्न होतो की कलेक्टर कसो िन सेती। कलेक्टर
साहि र्ोड़ो सो हासन को सार् कसेती की िेटा तोला िननोसे का। मंग
मुरली कसे की िननो त से पर मोरो िवर काई पैसा नहाय की मी येत्तो
मोठो पद परा आय षसक
ु , अस्खन मोरो घर-पररवार मा किीच कोनी भी
षकतन सरकारी नौकरी मा नही गया सेती।
कलेक्टर सहाि ना सांगीन की यन पद परा चयन लाई सि लक
पषहलो षवधार्ीला कोनी िी षविय मा स्नातक होनो िरुरी से। प्रारंषभक,
मुख्य अना साक्षात्कार असा तीन चरन की परीक्षा होसे। तोरी आषर्थक
स्थर्षत को षहसाि लक़ तोला पढ़नलाई छात्रवषत्त भी भेटे काहे की तुना
दसवीं मा सािरो प्रषतशत िनाईसेस। संग मा तोला शासन कन लक़
षकताि अना षसषवल सेवा परीक्षा को मुफ्त प्रषशक्षण षमल षसकसे। िस तू
खुदला यन परीक्षा की तैयारी लाई झोक दे, त् सिलता तय से।
आता मुरली न आई टी आई करन को ििाय ग्यारवी मा प्रवेश
लेन को षवचार िनाय लेइस। शासन की योिना इनको मदद लक़ मुरली
ना आपरी पढ़ाई िारी रास्खस। संग मा मुरली आपरो खचाथ लाई िच्चा
इनको ट्यूशन भी लेवत होतो। कॉलेिमाच मुरली ला कलेक्टर सहाि को
मागथदशथन लक़ षसषवल सेवा की सप्पा तयारी भय गयी। कॉलेि को िाद
मुरली का प्रर्म प्रयास मा चयन भय गयो अना आई ए एस भेटयों।
मावसी को नकारात्मक व्यवहार मुरली लाई िीवन मा
मागथदशथक मोड़ भयो। अना सिलता लाई मुरली न सिलक पषहले
१० देवघर
मावसी को धन्यवाद करीस की वा सौ रुपया देय देषतस त् मोला षिद
नही भेटती अना अि षम कलेक्टर नही िनतो।
येको लाइ यव कह्व्यो िासे षक क
े तरीच मुस्िल घड़ी रहे, परा
आपरो धीरि नही खोवन को से। िीवन मा सिलता लाई उषचत
मागथदशथन को भी मोठो मान से। सही षदशा को चयन को िाद वोनो रस्ता
परा षनयषमत रूप लक चलन को से अना भगवान परा भरुिा भी िरुरी
से, काहे की एको लक मन ला सही षदशा परा रवहन की शस्क्त भेटसे
अना यव आपरी मंषिल की प्रास्ि ला सहि िनाय देसे।
११ देवघर
५. दलपत की होरी
या कहानी दलपत की आय, वू िोपचे िी को घर मा िारामासी
नौकर होतो। दलपत ला आपरो काम की लगत लगन होती।वू कभीच
आपरो काम मा खोरमा नहीं करत होतो। पर िोपचे िी मन को र्ोड़ो
कठोर होतो अना वोला कोनी पर भी दया कमच आवत होती।
होरी िरन को षदवस िदमाश टोरू पोटु ला िदमाशी अना चोरी
चकारी मा िड़ो मज्या आवसे। िोपचे िी को खेत मा चना पीड़ाय गयो
होतो, येको लाइ अि को षदवस अना राषत की िगवाली को काम दुही
नौकर षगनला षदयो गयो होतो।दलपत की पारी षदन मा होती।राती को
पाली वाली नौकर की तषियत अचानक ख़राि भय गयी होती, येको
कारन काम मा नयी आयो। यव िात वोको माषलक ला मालुम नोहोतो।
दलपत शाम ला दुसरो नौकर की िाट देखत होतो की वू आहे त
आपरो घर िाहुाँ। पर वा नही आयो त ओकी भी िगली आता वोलाच
करनो पढ़ें, नहीं त होरी िरन की रात से, िरासो चूक भयी त सप्पा चना
चोर ढ़ाक
े त।येको लाइ आपरो मचान लक षहलयोच नहीं।
होरी की रात ठं डी गार होती अना वोको िवर काही गरम कपड़ा
नोहोषतन, न काई इस्तो पेटावन को साधन होतो। दलपत काम को पक्को
होतो आता करतो भी का िेचारों, ठं डी मा तषनश परा िसकन रात काटन
लाग्यो।
अधो रात लक दलपत घर नहीं आयो त वोकी घरवाली घर मा
पूिनला आयी ति िोपचेिी ला या िात पता भई की दुसरो नौकर रात
को काम मा नहीं आयी से। वे लाहकी लक खेत वरर आयो न देख् से की
दलपत ला पुरो गार भेद गयो होतो पर वोन् आपरी िगली की िागाह
नहीं छोषड़स।ओला देख िोपचे िी कसे की तू काय लाइ कपड़ा अना
१२ देवघर
माषचस लेनला घर मा नहीं आयोस, त दलपत कसे की आि होरी की
रात से अना िरसो इता उता होतो त सप्पा चना की िसल ला चोर
लेिाषतन।दलपत की असी षनष्ठा देख अि िोपचे िी को मन पसीि गयो
अना दलपत को इनाम मा दुसरो रोि गरम कपड़ा अना सौ रुपया
महीना को िढ़ोतरी षमली।
१३ देवघर
६. कषवता की मायिोली पोवारी
कषवता कक्षा चौर्ी मा होती. कषवता को घर मा सिझन
आपरी मायिोली पोवारी मा च िात करत होषतन. येको लाइ कषवता ला
पोवारी िोली िड़ी प्यारी लगत होती।परS पाठशाला मा सि कषवता ला
पोवारी मा िोलता देख हाशत होतीन, येको लाइ कषवता को मन मा दुुःख
होवत होतो की मोरी िोलन की लय षहंदी अना अंग्रेिी िोलन वाला िसो
काय लाइ नहाय।यव आत्मग्लाषन लक कषवता ला पाठशाला मा सािरो
नहीं लगत होतो अना वोको चेहरा मोहरा को हाव् भाव मा या षदशत
होतो।
भारत शासन अना षवश्व संथर्ा यूनेस्को को तरि लक
षवलुस्ि को कगार मा पषड़न िोली भािा षगनला िचावन लाइ तय भयो
कायथक्रम को तहत रज्य शासन को द्वारा तहसील कायाथलय मा यक गोष्ठी
राखी होषतन। येनो गोष्ठी मा पोवर समाि की मायिोली पोवारी भी
शाषमल होती।।
पुरो पाठशाला मा पोवारी िोलनो वालो कई षवधार्ी होषतन परा
कषवता की पोवारी सिलक सािरी से, यव िात सिला मालूम होतो।
गुरुिी ना कषवता को नाव पोवारी भािा मा सम्बोधन लाई षलखाय देषयन।
गाव लक वा येखली होती अना वोको मन मा या भय भी होतो की ऐतरो
मोठो आयोिन मा वा सािरो लक िोल षसक
े क नही।
कषवता को मन मा शंका देख ओका माय - अिी न वोला समझाईश
देयीन की तोरी पोवारी त सािरी से अना तोला आपरी मातृभािा लक
लगत षपरम भी से अस्खन संगमा तोरो यन षवश्व स्तर को मोठो आयोिन
मा सम्बोधन लक पोवारी िचावन को कायथक्रम मा शासन लक सहयोग
भी षमलहे। िेतरी सािरी तोरी प्रस्तुषत रहे, ओतरो आमरी मातृभािा
पोवारी को देश-दुषनया मा नाव होहे।
१४ देवघर
गोष्ठी को तय िेरा मा कषवता न पोवारी ला िचावन लाइ आपरो
षिचार रास्खस की पोवारी भािा पुरातन से अना या उनको पुरखा षगनकी
िोली आय। अि को िमाना मा लोख दुषनया आता षहंदी, अंग्रेिी, मराठी
िोल रही सेत पर आपली मायिोली मा िोलन ला शरम करसेती। येनो
कारण लक आमरी या िोली मुराय रही से अना पोवार भाई-िषहन षदन-
प-षदन आपरी पुरखा इनकी यव धरोहर आपरी मायिोली पोवारी ला
षिसर रही सेती। कषवता ना सिलक यव आव्हान कररस की पोवारी अना
असी कई िोली-भािा सेती षिनला सिको सहयोग लक षमलकन
िचावन को ितन करनो िरुरी से।
कषवता को असा माषमथक षनवेदन लक शासन का साहि षगन खुश
भया अना पोवारी िोली ला आपरो िोली िचाओंअषभयानमा राख
लेषयन।येतरी नहान सी िेटी को येनो प्रयास लाई कषवता ला भारत देश
लक भािा को िाल प्रषतषनषध को दिाथ षमलयो।
आि पूरो देश मा कषवताको नाव होतो अना िेन िोली ला
िोलन मा कषवता की हाशीहोवत होती वा च िोली अि वोको नाव अना
मानसम्मान को कारन भय गयी।कषवता ला आपरी िोली पोवारी अना
पहचान मा गौरव को भान आय गयो।
**********
१५ देवघर
७. पुस्तकला अना काकीिी
गांव को आखर िवर एक नाह्यनसी झोपड़ी होती अना वोन
िवर दू सरों कोनी घर नोहोषतन।टोरू पोटू उताकन िावन लाई डरात
होषतन। उनला असा सांषगन होषतन की वोनॉ झोपड़ी मा यक शोधाइन
िुडगी रहोसे।
िस्ती मा रामधन नाम को गरीि षकसान होतो। वोकी एकच िेटी
होती, वोको नाम पुस्तकला होतो। पोला को सन मा आखर िवर िईल
िोड़ी छ
ू टन की तोरण िंधी होती अना िोड़ी छ
ू टन को िाद मा पुस्तकला
अस्खन वोकी सहेली षनमथला दुही िोझारा लेवन लाइ िुडगी माय की
झोपडी िवर गईन अना हाकषलन की घर मा कोनी सेती का।
टुरी षगनको हाकलन सुन भीतर लक एक डरानी आवाि सुनायी
देईस, षकवाड़ िवर कोन िोमलरही से। उनला पांढरी पातल मा यक
िुडगीचोई। दुही टुरी डराय गईन अना उत्ताषनच सरपट आपरो घर कन
पराय गई। िोझारा की िात सोड़ वेय दुही आपरा आपरा घर चली गइन।
राषत सपन मा पुस्तकला ला वा िुडगी माय अस्खन आई अना वा
सािरा लक सोयच नहीं षसकी। सकार पासून को वोला तेि िुख़ार ताप
भय गयो। गांव को वैद्य ना दवाई देषयन पर वोको ताप मा काषयच कमी
नहीं देख ओझा ला िुलाय लेइन।षनमथला न आखर की िुडगी को घर
िावन की िात आपरी माय ला सांगी होती।ओझा न झाड़ ि
ु क करीस
अनाकव्हन लग्यो की या काही आखर िवर की देवाल से। तुम्ही हिार
रुपया को पूिा को षिनुस आन देव तिा यो देवाल ला खेदाड़न की पूिा
होय षसक से। रामधन गरीि होता अना वोको िवर एतरो पैसा नोहोतीन
त वा ओझा षिना आपरी पूिा को चली गयो।
१६ देवघर
पुस्तकला को रोग ठीक नहीं होय रह रह्यो होतो। आता सिकी षचंता
िढ़ रही होती. गांव को मािरिी उनको घर आयो अना पुस्तकला की
असी हालत देख शहर को अस्पताल लेय िावन को मशवरा देषयन।
रामधन को भाई को घर खासर होती।लाहकी लक वोना खासर
िूपीस अना शहर िावन लाई वेय षहट गई। नराती वय अस्पताल पहुंषचन
तिा वरी पुस्तकला की ताशीर अस्खन षिगड़ गयी अना वा अचेत भय
गयी।घर वाला न शोधाषयन माताराम की िात डॉक्टर ला सांषगन।
डॉक्टर कसे की यो षवज्ञान को िमाना से अना असो शोधाषयन, भूत
अना देवाल काहीच नहीं होवती। या तुमरो वहयम से।एको परा पुस्तकला
की माय कसे, की या सि वा शोधाइन िुडगी को घर मा िावन को कारन
भयो, वोनाच काही िादु टोना करी रहे।डॉक्टर कसे तुम्ही िवर की क
ु ची
मा िसो मी सि देख रही सू।. वोकी पुरी िांच भई अना षदमाग मा कही
ट्युमर होवन को पररणाम षहटयों अना उनना इलाि मा िीस हिार
रुपया को खचाथ सांषगन।
एतरा पैसा कहां लक आनषिन, आता हमरी िेटी नही िच षसक,
असा िोलता िोलता पुस्तकला की माय रोवन लगी, अना उनको कोनी
आसरा नोहोतो। पैसा नही होन को कारन आता वय घर वापस िावन को
सोचन लषगन।तिच द्वी िषहनिी उनको िवर आयकर कसेत आता
आमी िेटी ला ऑपरेशन लाइ लेय िाय रही सेिन।त रामधन क
ै से की
उनको िवर काई पैसा कौड़ी नहाती त या ऑपरेशन को खचाथ कसो
देषिन।
वय पुस्तकला ला सिथरी को कक्ष मा ले गईन। ओको माय अिी ला
काषयच उमज्यो नहीं। िसो तसो रात कटी अना दू सरों रोि शाम ला एक
नसथ ना उनला दुसरो कमरा मा लेय गयीस। उतन पुस्तकला ला सिथरी
को िाद राखी होतीन। धीरू धीरू वोला होश आय रहयो होतो। उनको
१७ देवघर
लाइ यव देवा को चमत्कारच होतो। र्ोड़ो देर मा पुस्तकला ला पूरो होश
आय गयो।
रामधन डॉक्टर की खोली मा गयो अना उनला पुशोिे की आमरो
िवर पैसा नोहोतो अना कोनी मददगार नहीं त तुम्ही कसो एतरो माहंगो
ऑपरेशन करयात। मंग डॉक्टर न सांषगस की तुमरोच गाव की यक
िुडगी िो वोनो कोंटा मा िसी से वोनाच पूरो पैसा को िंदोिस्त
कररसेस।ओन िुडगी माय देख रामधन को डोरा लक आशु िोहान
लषगन। असल मा वा रामधन की काकीिी होती। उनला शोधाइन को
षमशालक घर लक हेड देय होषतन अना वोना पुरो िीवन आखर िवर
षिताय देईस पर आपरो ससराल की डेहरी नहीं छोषड़स। आपरो षिहाव
को िेवर िुट्टा षगरवी धर वोना पुस्तकला को इलाि लाई पैसा को
िंदोिस्त करी होषतस।
डॉक्टर ना उनला समझाइस देईस की िादू -टोना, देवाल-भुत
असा काही नहीं होवत। पुस्तकला ला या रोग नहानपन लक होतो अना
यव काई िादू टोना लक नहीं भईसे। तुम्हीं आपरी काकीिी ला आपरो
संग माच मा राखो।
अंधषवश्वास लक षिनको िीवन भर षतरस्कार भयो सच मा वू त
देवी होती। आि पुस्तकला ला पोला को सािरो िोझारा भेट्यो। तीन
रोि मा पुस्तकला की अस्पताल लक छु ट्टी भय गयी अना सि काकीिी
को संग हासी ख़ुशी लक आपरो घर लवट गइन।
*********
१८ देवघर
८. मोहन की ईमानदारी
एक गाव मा मोहन नाव को एक षकसान होतो। मोहन आपरी
मेहनत अना ईमानदारी लाई पुरो क्षेत्रमा लषगत प्रषसध्द होतो। मोहन की
ईमानदारी की िात रािा भोिदेव तक भी पहुंची त रािा खुश होयो अना
मोहन लक भेटन की ओनकी चाह िाग्रत भयी। रािा भोिना ना आपरो
मंत्री ला आदेश देईन की मी मोहन की इनामदारी ला परखकन देखसु।
रािा को आदेशानुसार सोनो को षसक्का लक भरी एक झारी मोहन को
खेत मा गाड़ देईन।
खेत मा िुताई को िेरा मोहन ला सोना का षसक्का लक भरी यव
झारी भेटी। मोहन ना झारी ला उघाड़कन देस्खस त ओला सोनो को
षसक्का चोयीन। मोहनला लषगत अचम्भा भयो की यव धन कोनको आय
अना यन गरीि को खेतमा षकत लक आय गयो। मोहन को िायको न
कषहस यव हमरो खेतमा भेटीसे त हमरो आय, परा मोहन को कहनो
होतो की यव धन ओषक कमाई को नहाय त कसो हमरो होय षसकसे।
असो धन परा पुरो समाि को हक़ से आम्हाला यन झारी ला रािा को
िवर िायकन देनो सािरो रहे।
मोहन झारीला धरकन रािमहल चली गयो अना द्वारपाल लक
महाराि संग भेट करन की अनुमषत मांषगस। रािा भोि को दरिार
िनता लाई हर िखत खुलो रहवत होतो। मोहन ला रािदरिार मा रािा
संग भेट्न की अनुमषत षमली।
मोहन झारी ला धरकन रािा भोि को सम्मुख प्रस्तुत भयो अना
खेतमा धन भेटन की िात सांषगस। मोहन कसे की यव धन मोरो नहाय
काहे की येला मीन कमाया नहीं सेव। रािा को मंत्री न आपरो तक
थ देईस
की यव तोरो खेत मा भेषट से त यव तोरोच से। मंग मोहन कसे की मोरो
खेत की िसल परा मोरो हक़ होसे काहे की षम वोला पैदा करन लाइ
१९ देवघर
आपरो श्रम देउसू परा यव धन त मोला खेत मा गड़्यो भेषट से अना यव
कोनना उत ठे इसे मोला मालूम नहाय, एको लाई यन धन परा मोरो हक
कसो होय षसकसे। याच कारन से की मी यन झारी ला धरकन महाराि
ला अषपथत करन लाइ आई सेव।
मोहन की असी ईमानदारी देख रािा भोि लषगत खुश भयो
अना ओला झारी को सोना की कीमत की िागा इनाम मा देईन। रािा
भोि को कहवनो होतो की मोहन धरती को सच्चो पुत्र आय येको लाई
ओषक ईमानदारी को िल िागा लक िेहतर कायी नही होय षसक। ।
२० देवघर
९. श्रद्धा
िीवन नाव को येक िालक होतो। वोको मनमा लगत
नकारात्मकता को भाव भरयो होतो। हर िातमा िीवनला काई न काई
िुराई चोवत होती अना कोनी भी चीि परा ओको भरुिा नही होतो।
असी असमंियस्ता को कारन िीवनला आपरो रोिका काम मा कई
िाधा आवत होती।
येक डाव की िात आय। िीवनला िुखार ताप आयो होतो।
वोको अिी न वोला वैध िवर लेिायकन षदखाइस अना वैधिी न
िीवनला सािरी दवाई देईस। िीवन कसे की डॉक्टर सहाि मीन असो
सुषनसेंव की तुमरी दवाई काई नही कर त मी कसो सािरो होऊ
ं ? वैद्यिी
न कहीन की िेटा तू मोरो परा भरुिा राख़, मीन तोला सिलक सािरी
दवाई देई सेंव, तू िरूर ठीक होय िािोस। परा िीवन न वैध िी की
िातला नही पषतयाइस। माय अिी को कहवनो परा िीवन ना दवाई त
खाय लेईस परा वोकी तषियत मा िास्ती सुधार नयी भयो।
तीन रोि भय गया अना िीवनला आिा भी सािरो नयी लग
रहवो होतो। घरमा सिकी षचंता िढ़गयी होती की िीवन कायलाई
सािरो नयी होय रही से। वोकी िड़ीमाय िूनो ख़यालात की होती अना
वोना कषहस की टुराला काई िाहरी िाधा झोम गईसे आता येला गाव को
धूनी िािाला देखाय देव। िीवन को अिी न कहीन की अि को नवो
िमानामा असो काई िाषहर िाधाला माननो ठीक नहाय परा तुम्ही कह
रही सेव त मी िीवनला आिाच िािािी िवर षदखायकन आनुसु।
िािािी, िीवन को िव्यहार लक अवगत होषतन। िािािी न
िीवनला आपरो िवर काई चमत्काररक शस्क्त होन की िात सांषगन
अस्खन यव िी सांषगस की वोको िवर आयकन कई मोठा-मोठा रोग-
संताप वाला मानुि सािरो होयकन गयी सेत। मी तोला हवनक
ु ण्ड की
२१ देवघर
भभूषत देसु अना तू देखिोस की सकारीच तू सािरो होयकन खेलनला
िस िािो। िीवन को भरुिा पक्को भय गयो की िािा की भभूषतमा
काई सत से अना वू आता सािरो होय िाहे।
दुसरो रोि सकारीच उठन को िाद िीवनला सािरो लगन लग्यो
अना वू िािािी की क
ु षटया मा परावता गयो अना कहवन िस्यो की
िािािी तुम्ही महान सेव। तुमरो िवर चमत्कार करन की ताकतसे।
तुमरी चमत्काररक भभूषत लक़ मोरी तषियत सािरी भय गयी। मंग
िािािी कसे की तोरी मोरो परा श्रद्धा होती अन तुन याच श्रद्धालक़ मोरी
देयी भभूषतला खाई होषतस। मी आता तोला येक रािकी गोष्ठी सांगूसु,
परा तू कोनीला नोको सांगिोस, की मोरो िवर कोनीिी चमत्कार करन
की ताकत नहाय। यव सिको मोरो प्रषत श्रद्धा का भाव आय की वय
सुधर िासेती। तोला मीन यव भरुिा देयो होतो की मोरो िवर
चमत्काररक ताकत से अना यव भरुिा को कारन भभूषत न दवाई को
काम कररस। तू त वैद्ध िी की दवाई लकच सुधर गयो होतो परा तोला
वोन परा भरुिा नयी होनको कारन ठीक होनको िाविूद भी तोला
सािरो नयी लग रहयो होतो। आता यव तोला सीख देसु की तू आपरो
मन का नकारात्मक भाव इनला ि
े क दे अना सि परा भरुिा राख़।
सकारात्मक श्रद्धा राख़ त िीवनमा सिलता षमलहे। येको िादमा िीवन
को िीवनमा सकारात्मक िदलाव आवनो चालू भय गयो।
**********
२२ देवघर
१०. देवघर का देव
रामषकशोर ला नहानपन लक वोषक माय की यव सीख भेटी
होती की घरका देवघर मा सप्पा देवताइन को वास् होसे। एको लाइ यव
घर की सि लक पावन िागा रवहसे। माय न रामषकशोर ला िालपन
लक यव सीख देई होषतस की आपरो देवी-देवता को िीवनमा आशीवाथद
रहवनो चाषहसे तिच आपरो िीवन सिल होय षसक से। माय को
संस्कारी िीवन को अनुरूप रामषकशोर का भी िीवन संस्कारी होतो
अना माय को स्वगथलोक िावन को िाद वू हररोि देवघरमा षदवा राखत
होतो।
घर मा िटवारा को िाद रामषकशोर का षहस्सा मा दूय एकड़
िागा अना िूनो घर आयो होतो, षित देवघर होतो। िूनो घर भेटन को
िाद िी वोला यन िात को लगत संतोि होतो की वोको षहस्सामा देवघर
आई से। कम िागा होन को कारन पररवार का गुिारा िरासो कषठन
होतो परा रामषकशोर ला आपरो देवघरमा लषगतच आथर्ा होती की येक
रोि सि सािरो होय िाहे।
यन िरस लषगत िाररस पड़ रही होती। रामषकशोर को घर षमट्टी
का होतो अना िाररस अषदक होन को कारन िांषध कन की दू य षदवार
खसल गयी। िसो तसो र्ूनी गाड़कन अना षझल्ली िांधकन िाकी को
घरला उनना सािुत राखीन। पंचायत को माध्यम लक शासन कन लक
िाररश पीषड़त, षिनको घर पड़ गयो होतो उनला नवो घरको षनमाथण लाइ
मदद भेटी।
गावमा सिना रामषकशोर ला सलाह देईन की इत िागा कम से
एको लाई तुम्ही आता आपरो पक्को घर खेतमा रोड परा िांधो। ओको
पड़ोसी रहीस होतीन अना वोन िाघा की तीन गुना कीमत देनको प्रस्ताव
भी राखीन परा रामषकशोर तय्यार नही भयो। रामषकशोरला आपरो
२३ देवघर
ओषढल इनकी डेरी परा लषगत आथर्ा होती अना वू आपरो पुरखाइन की
देवघर की िाघाला कोनी भी कीमत परा देनला तय्यार नही भयो। ओको
यव भरुिा प्रिल होतो की मोरी माय की आत्मा यनच घरमा से अना
आपरो देवघर का देव सि सािरा करहेषत।
रामषकशोर न आपरो िूनो घर परा नवो घर िांधन को काम
चालू कर देईस। ओको यन ि
ै सला परा पत्नी अन िेटा भी संग होतीन।
रामषकशोर को यव माननो होतो की आपरो देव इनको आशीवाथद लकच
मोला शासन की मदद भेटीसे अना भषवष्यमा भी उनको आशीवाथद लक
सि सािरो होय िाहे। देवघर की चौरी ला आपरी िाघा परा राखकन
नवो घर को षनमाथण पुरो भयो।
देव को आशीवाथद लक लषगत िाररश को िाविूद भी रामषकशोर ला
सािरी िसल भयी अन घरमा दू य गाय भी िनी। ओना र्ोड़ो अनाि
षिककन सािरो दूध की अस्खन दू य गाय खररदकन दू ध का धंधा शुरू
करीस। यव सपा देवघर का देव को आशीवाथदच होतो की ओको दू ध को
काम सािरोलक चलन लग्यो अना सािरी िसल भी होन लगी। िल्दीच
रामषकशोर धन-धनसी लक पररपूणथ होय गयो। रामषकशोर को िेटा न
पढाई मा खूि तरक्की करीस।
रामषकशोर को कवहनो होतो की यव सि घरका देवघर का देव
अना ओषढल पुरखा इनको आशीवाथद आय की मोरो घरमा सप सािरो
भय गयो।
**********
२४ देवघर
११. हमरो महादेव
ज्योषत अना नरेश िुड़वा भाई-िषहन होषतन। ज्योषत होती दूय
षमनट की मोठी, परा होती िड़ी सयानी। नरेश िी दू य षमनट मोठी िषहन
ला आपरी मोठी दीदी होवन को मान देवत होतो अना दुही भाई-िषहन
मा लषगत षपरम होतो। पररवार मा क
ु लदेव महादेव को मंषदर होतो अना
ओनकी सायनी माय रोि षदवस िूढ़ता देवघर, तुरसी को संग महादेव
िवर षदया ठे वत होती। उनको कवहनो होतो की महादेव आपरो क
ु लदेव
आय अना ओनकी छत्रछाया मा हमरो िीवन को कल्याण होसे। आपरो
कोनी भी दुुःख मा महादेव ला याद करनमा येको षनवारण होय िासे। घर
मा सािरो धाषमथक संस्कार को कारन ज्योषत अना नरेश को मन मा
आपरी सनातनी संस्क
ृ षत को प्रषत लगत आथर्ा होती।
सायनी माय को िीवन को आस्खरमा दुही आपरो पोता-पोती
लाइ एकच सीख होती की िखत कसो भी रहे, तुमला भगवान् मा आपरी
आथर्ा राखनो से। सायनी माय को भगवान को िवर िावन को िाद
आता उन ओनकी माय आपरी सासु को चलायो सप्पाई नेंग-दस्तूर ला
पारन मा मंघा नहीं होती। षपतािी एक स्क
ू ल मा अध्यापक होषतन अना
दुही िेटा-िेटी भी पढाई-षलखाईमा सािरा होषतन।
एक रोि की िात आय। षपतािी की चुनाव मा ड्यूटी लगी होती
अना वय चुनाव करवावन लाइ िवर को दुसरो षिला मा गयी होषतन।
ओन रोि मौसम िहूत च ख़राि होय गया अना लगत िोरलक िादर
गरिन लषगन। गरि-चमक को संग लगत िाररश होवन लगी। माय की
तषियत सािरी नही होती अना मौसम को कारन राषत ओकी तषियत
अस्खन षिगड़ गयी। षििली भी नोहती अना माय की असी हालत देख
दुही भाई िषहन डराय गईन की आता कािक करिीन। माय को ताप
येतरो होय गयो की आता उठनों मुस्िल होय रहयो होतो। मंग नरेश
२५ देवघर
कसे की आता कसो करिीन, दीदी तू मोठी से, सांग आता कसो करिीन,
मोला त काइच नयी उमि रही से। ख़राि मौसम को कारन घर लक
षहटनो भी मुस्िल होतो। गरि चमक अना इंधारो को कारन लषगतच
भय लगन लगयो। ति ज्योषत ला आपरी सायनी माय की सीख याद आयी
की मुसीित मा आपरो महादेवला याद करनमा वय मदद लाई आवसेती।
ज्योषत मंग नरेश ला कसे की भयिीत होवन की िरुरत नहाय, हमरो
घरमा महादेव सेअना वय काई रस्ता िरूर षदखाएती, चल उनला
सुमरिीन। तिा ज्योषत ला आपरो षशक्षक की सीख याद आयी की काई
मुसीितमा सौ नम्बर डायल करो त पुषलस मदद लाई आय िासे। नरेश
तू िोन लगाय कन देख।
कपकपातो हार् लक़ नरेश ना सौ नंिर डायल करीस त पुषलस
ना िोन उठाईन अना वोना पुषलस ला पूरी िात सांषगस। पुषलस ना
सांषगस की तुम्ही एक सौ आठ परा डायल करो त मेषडकल मदद लाई
एम्बुलेंस आय िासे। नरेश को एक सौ आठ नम्बर परा िोन लग गयो
अना र्ोड़ो देरमा एम्बुलेंस घर आय गई। तुरतच मायला िवर को
अस्पताल ले िायकन भती करायदेईन। राषतच उत िरुरी वाडथ मा
इलाि चालू भय गयो अना माय ला दवाई समय परा भेषट त र्ोड़ो आराम
होनो चालू भय गयो। सकार होवता होवता मायला होस आय गयो ओको
अना ताप उतर गयो।
षपतािीला भी राषतिोन चली गयो होतो अना पहाट की िस लक
वय भी छु ट्टी लेयकन घर वाषपस आय गईन। आपरो नहान-नहान िेटा-
िेटी की सूझिूझ अना समझ लक़ माता-षपता लषगत खुश भया।
**********
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Devghar

  • 1.
  • 2. अ देवघर देवघर (पोवारी कहानी संग्रह) लेखक ऋषि षिसेन
  • 3. आ देवघर देवघर (पोवारी कहानी संग्रह) सवााषिकार : ऋषि षिसेन, िालाघाट षिला : िालाघाट ( मध्यप्रदेश), ४८१००१ लेखक, मुखपृष्ठ और प्रकाशक : ऋषि षिसेन प्रभुत्तम नगर, िालाघाट षिला : िालाघाट ( मध्यप्रदेश), ४८१००१ ७९७४७७१५९७ प्रथमावृषि : २४/०५/२०२३ मुद्रण: श्री हरीश िोगलकर वेषदका ग्राषिक्स, गणेशपेठ, नागपुर ४४००१८ ISBN 9789358959277 देवघर( पोवारी भािा मा कहानी संग्रह)
  • 4. इ देवघर प्रेरणाश्रोत मोरी आषिमाय स्व. कौशल्या िाई षिसेन ला समषपात
  • 5. ई देवघर मनोगत देवघर, पोवारी(पंवारी) भािा मा षलखी मोरी कहानी को संग्रह आय। देवघर को अर्थ, घर मा स्थर्त पूिा-पाठ का कक्ष या िागा से। हर सनातनी षहन्दू को घरमा देवघर कोनी न कोनी रुपमा रहवसे। तसच पोवार समाि मा भी देवघर, आपरो धरम अन आथर्ा को क ें द्र होसे। मोरी या षकताि चौिीस कर्ा इनको संग्रह आय। मोरी आषिमाय को िीवन चररत अन िीवन मा आयो अस कई प्रसंग इनकी प्रेरना ला कर्ा को स्वरूप देयकन यन षकताि को षनमाथण भयो। आपरो समाि का इषतहास, संस्क ृ षत, नेंग-दस्तूर, ररश्ता-नाता, धरम-करम, संस्कार, आदशथ रािा असो कई षविय परा कहानी यन षकताि मा सेती। पोवारी(पंवारी), छत्तीस क ु र का पंवार(पोवार) समाि की मातृभािा(मायिोली) आय। छत्तीस क ु र का पंवार(पोवार) समाि अि मूल रूप लक िालाघाट, षसवनी, गोंषदया अना भंडारा षिला मा षनवासरत सेती। यन समाि को इषतहास को अध्ययन मा यव तथ्य आवसे की अठारवी सदी की शुरुवात मा मालवा-रािपुताना (अि का उत्तर- पषिम भारत) लक हमारो पुरखाइन मध्य-भारत मा आई होषतन। थर्ानीय रािा इनको आग्रह परा उनला सैन्य सहयोग को उद्देश्य लक वय इतन आया होता। हमारो पुरखाइन को शौयथ अना वीरता लक प्रभाषवत होयकन थर्ानीय शासक इनना यव योद्धा रािपूत इनला इतन सैन्य अन शासन का पद को संग िाघा-िमीन देईन एको कारन एनकी वैनगंगा क्षेत्रमा थर्ायी िसाहट भई। असल मा यव रािपूत क ु ल को संघ आय िेको नाव पोवार/पंवार समाि से। इनला छत्तीस क ु र का पंवार भी कवहसेती। हमारो समाि को भाट इनको अनुसार यन ित्था मा मालवा को परमार क ु ल को संग उनका नातेदार क ु र िी नगरधन आया होता। आपरो
  • 6. उ देवघर पुरखा यव सांगसेषत की आषम मालवा का पोवार आिन। भाट न आपरी पोषर्मा हर क ु र को मूल थर्ान िी सांषगसे। पुरातन इषतहास, षिल्हा गैज़ेट, िनगणना इनको दस्तावेि माआम्रो समाि अना समाि की भािा को इषतहास षमल िासे। सिमा यव तथ्य चोवसे की हमारो पुरखाइन मालवा-रािपुताना लक वैनगंगा क्षेत्र मा आया होता अना उनना आपरी भािा ला संगमा आनीन। इषतहास मा यव िी उल्लेख षमलसे की आपरो पुरखा एक सैन्य ित्था को रूपमा िुंदेलखंड िसो कई दुसरोक्षेत्र मा िी रही होषतन। पहली िात की वय कई क्षेत्र का रािपूत क ु ल होषतन अना दू सरी िात की वय मालवा का परमार रािा इनका वंशि/नातेदार आती। यव कारन से की हमारी भािा मा गुिराती, रािथर्ानी, मालवी, षनमाड़ी अन षवदभथ मा आन को िाद मराठी भािा का कई शब्द षमल िासेती। हमारी यव पोवारी भािा, आपरो मा समाि को क्षेत्रवार षवथर्ापन की कहानी सांग देसे। मूल रूप लक पोवारी भािा पुरातन भािा आय परा षवदभथ मा आन को िाद यन ित्था का आपरो पूवथि इनको क्षेत्र लक दुरी भय गयी। अठारवी सदी की सुरुवात लक आगे तीन-चार पीढ़ी षवदभथ को थर्ानीय समाि अना नागपुर परा मराठा षनयंत्रण को िाद उनको संग सैन्य अना रािकीय भागीदारी होन को कारन हमारो समाि मा रािपूत वैभव अना मराठी संस्क ृ षत का समन्वय भयो, िेको प्रभाव संस्क ृ षत अन समाि की भािा मा षदस िासे। देश आिाद भया, देश को संग समाि न िी खुप तरक्की कररस परा अषधषनकीकरण को प्रभाव को कारन आपरी यव भािा आता षहंदी, मराठी, अंग्रेिी की मंघा भय गयी। समाि िन आता पोवारी मा कम िोलसेती, यव दुुःख को षविय आय। समाि का सषहत्यकार अना संस्क ृ षत प्रेमीवगथ आपरी पोवारी भािा को ितन मा िुटी सेती। साषहत्य को रूप मा पोवारी आता समृद्ध होय रही से। यव िी मोरो षहरदय ला प्रेररत करसे की हमाला आपरी भािा अन संस्क ृ षत को ितन करनो से। देवघर,
  • 7. ऊ देवघर कहानी संग्रह मा आपरी संस्क ृ षत अना इषतहास का षवषवध पहलु को संग समाि का ररश्ता-नाता को ताना-िाना परा षलखन का एक प्रयास से। मी मोरी आषिमाय स्व. कौशल्या िाई षिसेन, षपता श्री िागुलाल षिसेन, माता श्रीमती क ृ ष्णा षिसेन, पत्नी षिंदु षिसेन को संग मोरो दुही िेटा मानस अना तुिीर षिसेन का लगत-लगत आभार मानुिु की वय हर पल मोरो काम मा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लक मोरो संग िी देईन अस्खन प्रेररत िी करीन। संग म मी पोवारी भािा का सप्पा साषहत्यकार अन षवचारक इनला धन्यवाद करसु की उनना सदा मोला आपरी मूल मातृभािा पोवारी मा षलखान लाई प्रेररत करीन। संग मा अस्खल भारतीय क्षषत्रय पोवार/पंवार महासंघ का पदाषधकारी इनको िी धन्यवाद करुसु की उनना मोला आपरी भािा अन संस्क ृ षत षविय परा लेखन करनला सदा प्रेररत कररसेन। सिकी प्रेरना लक िनी यव नहानसी षकताि समािला समषपथत करुसु। ऋषि षिसेन (IRS), नागपुर मूलषनवास : ग्राम-खामघाट, तहसील: लालिराा, षिला िालाघाट िन्म स्थान : खोलवा, तहसील : िैहर, षिला िालाघाट ************
  • 8. ऋ देवघर प्रस्तावना मालवाक ् माती मा िल्मी अना वैनगंगाक ् आचलमा िली ि ू ली पोवार समािकी मायिोली पोवारी. पोवारी िोली या पोवार समािक ् संस्क ृ तीको मूल आधार से. पोवारी िोलीमा पोवार समािको आत्मा िसी से. आयररश अषधकारी अना भािाषवदिॉिथ अब्राहम षग्रयसथनक ् नेतृत्वमा साल १९०४ मा देशव्यापी भािा सवेक्षण भयेव. येन् सवेक्षणक ् "षलंस्िस्िक सवे ऑफ़ इंषडया" येन् ररपोटथमा (पान नं. १७७ - १७९) िॉिथ षग्रयसथनन् पोवारी िोलीक ् िार्यामा षलखी सेस. येन् ररपोटथमा षग्रयसथनन् षलखीसेस का, पोवार ये मुलत: मालवाका रािपूत प्रमार आती. षिनकी भािा पोवारी से. पोवार समाि मूलत: भंडारा, गोंषदया, षसवनी अना िालाघाट षिलामा िसी से. पोवार समािक ् िोलीको भािा वैज्ञाषनक डॉ. सु. िा. क ु लकणी इनन् सन १९७२ मा पोवारी िोलीपर संशोधन करस्यान एक शोधषनिंध प्रकाषशत करीन. उनक ् मतानुसार पोवारी पोवार िातकी िाषतिोली आय. पोवारी िोली मा रािथर्ानी, िघेली, मालवी अना मराठी को षमश्रण षदससे. िालाघाट, षसवनी षिलाक ् पोवारी िोलीपर षहंदीको त् भंडारा, गोंषदया षिलाक ् पोवारीपर मराठीको प्रभाव षदससे. षवदभथमा पोवारईनको षदघथकालवरी वास्तव्यक कारण पोवारीको घाट मालवी अना र्ाट नागपुरी से. पोवारी िोली पोवार समािक ् संपक थ मा आयेव अन्य समािमािी िोली िासे. पोवारी िोलीपर मध्यप्रदेशमा षहंदीको अना महाराष्ट्र मा मराठीको प्रभाव देखनला षमलंसे. गाव खेळामा घरघरमा िोली िानेवाली पोवारी शहरी क्षेत्रमा अन्य भािाक ् प्रभावलक कम िोली िासे. पर षपछलो दुयच्यार सालमा समािमा आपल् िोलीक ् प्रती िनिागृती चल रही से. येन् िनिागृतीलक पोवार समािमा पोवारी िोली िोलनकप्रती िागृती होय रही से. येको कारण पोवारी िोलीक ् प्रती षशषक्षत समािमा
  • 9. ऌ देवघर िोलीक ् िार्यामा ि ै लेव न्यूनगंड कम होयस्यान नवो षपढीमा पोवारी िोलीको प्रचलन िढ रही से. येव आशादायी षचत्र षदनसक ् मंग् पोवारी साषहस्त्यकईनकी मेहनतिी महत्वपूणथ से. "देवघर" येन् कर्ा संग्रहक ् माध्यमलक लेखक ऋिीिी षिसेन पोवारी साषहत्यला अषदक समृद्ध करनक ् प्रयासमा आपलो महत्वपूणथ योगदान देय रह्या सेत. येक ं पयले उनको "पोवारी संस्क ृ ती" येव कषवता संग्रह प्रकाषशत भयी से. आपल् आिूिािूला घटीत रोिमराथकी घटना, मानवी स्वभावका अलग अलग पहलू येन् कर्ाक ् माध्यमलक उिागर होसेत. पोवारी िोली पोवार समािक ् संस्क ृ तीको आरसा आय.पोवारी िोली समािला संगषठत करस्यान समािमा एकताको भाव उत्पन्न करसे. िोलीको ितनद्वारा संस्क ृ तीको ितन साध्य होये येव भाव लेखक कर्ाक ् माध्यमलक व्यक्त करसेत. प्रस्तुत कर्ा संग्रहमा आपल् षहम्मतक ् िलपर िाघपासून आपल् दोस्तईनला िचावनेवाली शक्ती, आपल् कामक ् प्रती अपार षनष्ठा ठे वनेवालो दलपत, पोवारीमा भािण देयस्यान मायिोली पोवारी िचावनसाती तत्पर रवनेवाली कषवता, पुस्तकलाको इलाि करनसाती आपली पूंिी लगावनेवाली िुडगी काकीिी ये आपल् शेिार िेठारमा षदसनेवाला कर्ाईनका नायक/नाषयका आपलाच लगंसेत. कर्ा आपलो िवरच घटीत होय रही से असो षचत्र िाचकक ् सामने उभो करणकी ताकत येन् कर्ाईनमा से. दुष्ट्तापूणथ व्यवहार करनेवालोला ईश्वर सिा देये येव संदेश देनेवाली "हरीकी इच्छा" या कर्ा, दू धमा षमलावट करनेवालो रािारामकी "दू ध मा पानी" या कर्ा दुष्क ृ त्य करनला परावृत्त करनकी षसख देसे. मंषदरसाती आपल् षिवनभरकी पुंिी दान करनेवाली रेवतनिाई, अिीक ् षनधनलक षवचलीत मुक े शको इलािक ् क्षेत्रमा िानको प्रण, मेहनतलक सांसद िननेवालो मंत्री, मावसीको नकारात्मक व्यवहारला
  • 10. ऍ देवघर सकारात्मकतालक स्स्वकारनेवालो मुरली, िीवनमा श्रद्धाको भाव षसखावनेवाली "श्रद्धा" या कर्ा, पुरखाईनको आषशवाथद देनेवालो देवघर, इषतहासलक षिवनकी प्रेरणा देनेवाली "िय रािा भोि" या कर्ा ये कर्ा षिवनको अलग पहलू उिागर करनेवाली सेत. शहरीकरनक ् येन् युगमा गावकन चलो असो भावकी पेरणी करनेवाली कर्ा िाचकको गावसंगमा लगाव िढावनोमा प्रेरणाको काम करेत."देवघर" येन् कर्ासंग्रहामाकी कर्ा िसी षिवनमा सकारात्मकताकी षसख देसेत तसोच उच्च षिवनमूल्य िोपासनको ध्येयिी देसेत. देवपर षनष्ठा ठे वनेवाली कौशल्या आपलो िालगोपालपर षिस्वास ठे यस्यान वोला ध्यान करनेवा लेखक, आपलो वैभवशाली इषतहासलक प्रेरणा लेयस्यान डाॅक्टर िननेवालो षदलीप की कर्ा उच्च षिवणमूल्य देणारी सेत. नहान टुरूनला मायक ् ममतालक खािो देनेवाली नरिदा आिीकी "नरिदा" कर्ा, षवियला रोवतो देख आपली भूल स्स्वकार करस्यान पाटी वापस देनेवालो षदलीपकी "षवियकी पाटी" कर्ा ममता, माया, षनतीमत्ताकी षसख देसेत. पोवारी संस्क ृ तीमा पल्या िढ्या कवी/ लेखक ऋिीिी षिसेन इनको षलखानमा पद पद पर वैभवशाली पोवारी इषतहास, पोवारी संस्क ृ ती अना पोवारी िोलीको दशथन होसे. "देवघर" येव कर्ासंग्रह वूनक ् पोवारी संस्कारकी साक्ष देसे. पोवारी साषहत्यपर "देवघर" येव कर्ासंग्रह आपली अलग छाप छोडे येव मोला षिस्वास से. ऋिीिी षिसेन ईनला भावी लेखन कायथलाई लगीत लगीत शुभकामना! िोलो पोवारी, िाचो पोवारी, षलखो पोवारी - गुलाि रमेश षिसेन लेखक/िालसाषहत्यिक
  • 11. ऎ देवघर देवघर (काव्यसंग्रह) को प्रकाशन पर मन की िात श्रीमद्भागवत गीता मा अध्याय 4 को श्लोक “यदा यदा षह धमथस्य ग्लाषनभथवषत भारत। अभ्युत्थानमधमथस्य तदात्मानं सृिाम्यहम्” को अर्थ िसो षनराशा ला दू र कर से तसोच पोवार समाि अन् पोवारी को वत्याथ ज्या सामाषिक षनराशा न् घर िनाईसेस तसोच आमरी मातृभािा पोवारी पर की षनराशा आपरो षलखान अन् काव्य को माध्यमलक ् दू र करन को प्रयास श्री ऋषि षिसेन िी न करी सेन।“कमथण्येवाषधकारस्ते मा िलेिु कदाचन” िसो यन् श्लोक को अर्थ कमथ करन माच् व्यस्क्त को अषधकार से वोको िल मा नही तसोच पोवारी मायिोली, पोवारी संस्क ृ षत को प्रचार प्रसार लाईक आपलो सामािीक कमथ करन को हट्टहास कषव/लेखक को रही से ओको िल मा नही। आपरो िचपन लक ् पंवार समाि को सदस्य होनको गवथ, षसहारपठ पंवार राम मंषदर िैहर को साषनध्य मा श्रध्दाप्रसाद अन् महाषवद्यालयीन पढ़ाई को संग - संग पंवार समाि को कायथ करत सामाषिक षज़म्मेदारी ला आदरणीय श्री ऋषि षिसेन िी न् पुरो करी सेन। समस्त पंवार (पोवार) समाि उनको षनभथय, समषपथत अन् षवनम्र व्यस्क्तत्व ला हमेशा सराहना करी सेन। िसी पंवार समाि की मायिोली पोवारी से िेको प्रचार प्रसार अन् पोवारोत्थान लाईक श्री ऋषि षिसेन िी की पहचान से वय् संस्कार उनको मातृ वात्सल्य लक ् आत्मसात् भया सेती। माता - षपता आशीवाथद अन् पररवार को मागथदशथन लक ् योग्य - अयोग्य िसो िरक आमला चोवसे तसोच आमरो संस्क ृ षत को ह्रास नही चाईसे यको कारण उनकी प्रर्म षकताि पोवारी संस्क ृ षत को प्रकाशन गत विथ उनको परमपुज्यषनय मातािी को िनमषदवस परा २४ मई ला भयों होतो। पोवार समाि मा आमरो देव ला िहुत महत्व से अन् आमरो कोनतो भी कायथ की सुरुवात देवघर को पुिापाठ लकाच् होसे। देवघर (चवरी),
  • 12. ए देवघर पंवार (पोवार) समाि को हर एक सदस्य को िीवन को अषभन्न अंग रही से। काही िन आधुषनकीकरण अन् भटकाव मा आपरो संस्क ृ षत, ररतीररवाि अन् पुरखा का षनयम ला तोड रह्या सेती ओको महत्व ला स्मरण करवानलाईक अन् पोवार समाि को धाषमथक आथर्ा को पदषचह्न पर आधाररत, पोवार समाि को अषवभाज्य प्रषतषिंि ला शोभे असो षशिथक श्री ऋषि षिसेन िी की दुसरी षकताि / काव्यसंग्रह “देवघर” प्रकाषशत होय रही से। पोवारी साषहत्य, पोवार समाि को उत्थान, पोवारी संस्क ृ षत को िचाव अन् पंवार (पोवार) समाि का युवाईनला मागथदशीत कर उनला उच्चतम षशक्षा अन् लोकसेवा आयोग की परीक्षा मा भाग लेनलाईक प्रोत्साषहत करनकी श्री ऋषि षिसेन िी प्रार्षमकता रही से। अिको येन् आधुषनकीकरण को व्यस्त िीवन मा आपरो नौकरी को संग- संग मा पाररवाररक षज़म्मेदारी ला न्यायसंगत ठे यस्यानी पंवार समाि को उत्थान, पोवारी संस्क ृ षत अन् पोवारी को प्रचार प्रसार मा समषपथत आदरणीय श्री ऋषि षिसेन िी ला िहुत हिथपुवथक मी डॉ षवशाल षिसेन अस्खल भारतीय क्षषत्रय पोवार (पंवार) महासंघ तर्ा समस्त पंवार (पोवार) समाि को सदस्य करलक ् िधाई अन् शुभकामना प्रदान करु सु। मॉ गढकाषलका आपरो सि कायथ मा आषशवाथद प्रदान करें या कामना व्यक्त करु सु। डॉ षवशाल षिसेन अध्यक्ष अत्यखल भारतीय क्षषिय पोवार (पंवार) महासंघ **********
  • 13. ऐ देवघर अनुक्रमषणका १. देवघर १ २. सिलक मोठो दान ४ ३. मुक े श को प्रण ६ ४. सौ रुपया ८ ५. दलपत की होरी ११ ६. कषवता की मायिोली पोवारी १३ ७. पुस्तकला अना काकीिी १५ ८. मोहन की ईमानदारी १८ ९. श्रद्धा २० १०. देवघर का देव २२ ११. हमरो महादेव २४ १२. हरर इक्छा २६ १३. शस्क्त २९ १४.दू ध मा पानी ३१ १५. भोिशाला ३३ १६.िय रािा भोि ३६ १७.नरिदा ३८ १८. मंत्री ४० १९. स्वणथपात्र ४२ २०.गाव वापसी ४४ २१. देवघर की चौरी की माटी ४७ २२.षविय की पाटी ४९ २३. िालगोपाल ५१ २४.शहर लक देवघर को रस्ता ५३
  • 14. १ देवघर १. देवघर कौशल्या िाई को िीवन को संघिथ मा देवघर की आथर्ा ना पर् प्रदशथक को काम करर होषतस। पषत को सार् षिया को क ु छ िरस को िाद छु ट गयो होतो अना चार नहान-नहान टू रू पोटू को भार वोको कांधा परा आय गयो होतो। ओन िेरा मा मोठो िेटा दस िरस का अना नाहनो डेढ़ िरस को होतो। दस िरस को िेटा आपरो अिी की षचता ला अषि देयकन खेत मा िािार को दस्तुर मा मोठी षिम्मेदारी को िोझ ला कसो समझयो यव कौशन पटलीन न आपरो देवा ला िरूर पुसी रही रहे अना आपरो षहरदय ला लोखंड वानी िनायकन िीवन को रास्ता परा चलतो िावनो को संकल्प लेई रहे। देखता देखता िेरा आपरो गषत लक चलता गयो अना रोि षदवस देवघर की षदया िाती को संग देव की षहम्मत सिला आपरो-आपरो काम काि मा भेटत गयी। कौशन पटषलन को िीवन पूिा-पाठ अना धरम-करम ला समषपथत होय गयो होतो। कौशन पटलीन को खेत को िवर माय वैनगंगा की पावन धारा होती अना कौशन पटलीन की याच माय गंगा होती। इषतहास मा भी या तथ्य उल्लेस्खत से की वैनगंगा, पावन गंगा नदी को अंश आय। देवघर की आथर्ा अना गंगा माय की षकरपा लक टूरू पोटू मोठा भय गया। उनको यव सदा यव कर्न होतो की मोला मोरी गंगा आपरो संगमा लेय िाहे अना मोरी षचताला ला कोषन ला हार् धरन की नौित नही आन षक, सिको समझ को परे होतो परा सन्याषसन िषस कौशन पटलीन को गाव अना समाि मा मोठो मान होतो। कौशन पटषलन की देवघर परा लगीत आथर्ा होती अना उनकी सिला देन वाली सीख को कारन पुरो गाव मा सिला देवघर मा आथर्ा होती। देवघर की चौरी परा पुरो िीवन को रीषत-ररवाि षटकयो होसे।
  • 15. २ देवघर पोवारी संस्क ृ षत को क ें द्र आपरो देवघर मा रहसे असो वा सिला सांगत होती। उनको िेटा िेटी को संगमा नाती पोता इनला भी यव संस्कार षवरासत मा भेटयो। देव उठनो लक देव को सोवन को मुहूतथ अना षकसानी को कई चक्र संग मा होसे। सनातनी षहन्दू को तीि षतव्हार भी असो कालक्रम मा आवसेती। कौशन पटलीन कहन ला त दू सरी कक्षा तक शाला पढनला गयी होती परा उनला पुरो मुहुतथ अना तीि षतव्हार को मौस्खक ज्ञान होतो। देव को आशीवाथद लक उनको िेटा िेटी सि आपरो िीवन मा सिल भया अना उनको षदवस को चक्र भगवान सूयथदेव को अनुरूपच चलत होतो। वय पुरो गाव की माय िसी होती अना सिको लाई उनको षहरदय मा षपरम अना आशीवाथद होतो। येक रोि कौसन पटलीन न आपरो षििोड़ा की पोटली ला धररि अना गाव मा घर घर िायकन सिला िरा िरा सो िीि िाटन लगीन की िाररश आय गयी से, तुमला िीि डाक्नो से अना आपरो देव परा पुरो भरूिा भी राखनो से। अि उनको यव िरताव हर रोि लक िरासो अलगच होतो। श्याम ला उनना रोि को िसो देवघर अना महादेव को िवर षदया िाती कररन अना िेवन को िेरा मा दू ध रोटी को दू ध ला आपरो नाती ला देय देईन। रोटी को षनवाला उनको गरो मा षहलग गयो आना ओको संग उनकी आवाि भी िंद भय गयी। असो लग्यो की ऊपर वालो ना आपरो िवर िुलावान लाइ रोटी को यन षनवाला ला उनको गरो मा रोक देईन अना यव उनको भगवान िवर िान को कारन िन्यो। सकार होउता होउता कौशन पटलीन आपरो देव को िवर चली गइन। पूरी रात मा एतरी िाररश भई की गंगािी मा भी पुर आय गयो होतो। असो लग रह्यो होतो की पुरो षनसगथ उनको िावन को दुुःख मा रोय रह्यो होतो।
  • 16. ३ देवघर माटी को चोला ल अषि को सुपरुत करनला माय वैनगंगा को िवर सि पहूंच गया अना मोठो चट्टान परा षचता ला अषि देई गइन। नदी को पुर अस्खन िढ़न लग्यो अना पानी को धार गोटा को चारी ओर आय गयो। असो लगन लग्यो की आता कौशन पटलीन की अधिली षचता िोहाय िाहे। परा असा काइच नही भयोय। माय गंगा को कोरा मा ओषक िेटी की षचता होती, असो कसो िोहाय िाती। पानी को िीच मा षचता िरती गयी अना राख आपो आपो िोहावत गयी। देखन वालो ल यव दृश्य चमत्कार वानी होतो की असो कसो होय षसक से की पानी को िीच मा षचता िरती रही। उनको यव कर्न की,“मोला मोरी गंगा आपरो संगमा लेय िाहे अना मोरी षचताला ला कोषन ला हार् धरन की नौित नही आन षक”,अि सत्य भय गयो। देवघर की पूिक, कौशन पटलीन माय वैनगंगा को कोरा मा षवलीन होय गयी।
  • 17. ४ देवघर २. मोठो दान शहर को कोनामा येक गरीि मोहल्ला होतो, ओको नाव श्रीराम मोहल्ला होतो। यन मोहल्लामा येक िूड़गी माताराम रहवत होती। वोको नाव रेवतन िाई होतो। िूड़गी माय मेहनत मिूरी लक आपरो गुिारा करत होती। वोका कोई नही होषतन अन वा एखलीच रहवत होती। श्रीराम मोहल्लामा मा कोनी भी मंषदर नही होतो। मोहल्लावासी इनकी इत मंषदर िनावन की चाह होती। चुनाव को िाद रघुवीर षसंह, श्रीराम मोहल्लामा मा नवो पािथद िीतकन आयो अना वोना श्रीराम मंषदर षनमाथण लाई सहयोग करन को वादा करर होषतस। येक रोि रघुवीर ना सप्पा मोहल्ला वासी इनकी िैठक रास्खस। यन िैठक मा मंषदर षनमाथण लाई येक सषमषत को गठन भयो। रघवीर आपरो घर का रहीस होतो अना ओना नंषदर षनमाथण की लागत का एक चौर्ाई खचथ देनकी घोिणा करीस। सषमषतला मंषदर षनमाथण को संग िाषक पइसा संगरावन को काम होतो। दू य महीना मा श्रीराम मंषदर षनमाथण सषमतीना पइसा संग्रायकन मंषदर षनमाथण को मोठो काम पुरो कर डाषकस। मंषदर को षनमाथण मा क ु ल पांच लाख रुप्या का खचाथ भयो। रघुवीर ना सवा लाख की रकम देईस अना िाषक का पइसा सिना आपरो-आपरो हैषसयत को षहसािलक देईन। श्रीराम मंषदर को उद् घाटन लाई एक कायथक्रम को आयोिन करीन अना यन कायथक्रम का उद् घाटन सिलक मोठो दानदाता को हार् लक करवावन का ि ै सला सषमषत न करीस।यव तो सिला षदस रह्वो होतो की पािथद रघुवीर का दान सि लक मोठो से त यव तय भयो की मंषदर को उद् घाटन रघुवीर को हार् लक होहे। कायथक्रम को रोि मंषदरमा दानदाता इनकी सूषच िारी भई अना सषमषत को एक सदस्य, श्रीराम मोहल्ला की शाला को षशक्षक ना एक
  • 18. ५ देवघर िात कायथक्रम मा रास्खन की दानदाता सूषच को मूल्यााँकनमा एक पहलु देखनमा सुट गयी से षक सप्पा दानदाता इनना आपरो-आपरो हैषसयत को षहसाि लक दान देइसेत परा रेवतन काकी की दानराषश भी लषगत मोठी से अन वय उमरमा मोहल्लामा सिलकमोठी कमावन वाली सदस्य आय त उनको हार् लक़ मंषदर का उदघाटन करवावन कसो रहे? यन िात परा रघुवीर की घरवाली न आपषत्त करीस की रेवतन काकी न दान मा २२३२४/- रुपया दान मा देईसे अना मोरो पषत न १ लाख २५ हिार रुपया दानमा देइसे त यव तो सिला षदस रषहसे की कोनको दान सिलक मोठो से। गुरूिी न मंग कहीन की िेटी तोरी िात सही से परा मोरो अवलोकन का षहसाि लक़ सिना आपरो संपषत्त को नहानसो भाग दानमा देईसेत अना रेवतन काकी न आपरो िीवन भर की सप्पा कमाई, प्रभु श्रीराम को मंषदर िनावन लाई दानमा मा देय देईस। यन िातला सुनकन पूरी िनताना को िीच िोर लक़ ताली ििायकन काकी की ियकार भई। मंग रघुवीर ऊभो भयो न माइक आपरो हार् मा लेयकन कहवन िस्यो की गुरूिी को कवहनो सही से, मीन त आपरी संपषत्त को येक नाहनो षहस्सा दान मा देयी सेव परा रेवतन काकी न आपरो पुरो िीवन की सप्पा कमाई भगवान को चरनमा अषपथत कर देयी सेस। यव यन मंषदर षनमाथण का सिलक मोठो दान से। काकी तुम्ही धन्य आय अना मी काकी लक़ षिनती करूसू की वय आपरो हार् लक़ प्रभु श्रीराम मंषदर का उदघाटन करहेती। आता िय श्रीराम को नारा लक़ िनता की आवाि गुिन लगी। **********
  • 19. ६ देवघर ३. मुक े श को प्रण मुक े श कक्षा छटवी को छात्र होतो। वोको अिी रेलवे मा कमथचारी होतो। मुक े श को घर मा वोकी माय, नहानी िषहन अन् आिी माय होती। अिी को नौकरी की व्यस्तता को कारन माय ला पूरो षकरसानी को धंधा देखनो पड़त होतो। रोि राती दुषहला िुड़गी माय नवी नवी कर्ा सांगत होती । कहानी सुनतो सुनतोच उनला िप् आवत होती। यक रोि की िात से। मुक े श ला िप् नही आय रही होती त मुक े श सायनी माय ला पुसन लग्यो की मोरो अिी सरकारी नौकरीमा से तरी मायला काय लाई एतरो धंधा करनो पड़ से। अिी ल भी कई महीना भय गया अन् घरअ नही आय रही सेत। मोरी माय ला भीकाइ आराम नहाय। आिी माय कसे की तू काय लाई येतरो पुसोसेस, काईच नही भई से तू सािरों लक ् सोय िाय। र्ोड़ी देरमा मुक े श ला िप् आय गयी। दू सरों रोि मुक े श न यव िात आपरी माय ला भी पुषसस परा वोन कहीस की तोरो शाला िावन को िेरा भय गयी से आता तू आपरी षसदोरी धर न शाला िाय। स्क ू ल िावता िावता वोको डोस्कामा यव षिचार षिर रहयो होतो की मोरो अिी ला कािक होय गयी से की आता वय भी घरअ नही आय रही सेती अन् घरमा भी कोनी काईच नही सांग रही सेत। शाला मा कक्षा को िाद मुक े श न यव िात आपरो गुरुिी ला पूछन को षिचार करीस अन् गुरुिी को िवर िायकन येन षविय परा पुसन लग्यो। गुरुिी कसे की िेटा तोला मोठा मानुस िननो से। मोरी अन् तोरो अिी की यव चाह से की तू िल्दी लक ् मोठो होय िाय अन् सािरी पढ़ाई कर डॉक्टर िनिोस। मंग मुक े श कसे की गुरुिी मी तुमरी िात मान लेसु परा तुम्हीन मोरो प्रश्न को िवाि नही देयत। मोरो अिी षकत सेती, वोय काय लाई घर नही आय रही सेत। माय अन् सायनी माय मोला
  • 20. ७ देवघर काईच नयी सांग रही सेती अन् तुम्ही भी असोच मोला घुमाय षिरायकन सांग रही सेव। गुरुिी मी तुमरी सप्पा िात मानहु अन् सािरो लक ् पढ़- षलखकन सिको सपन ला पूरो कर देवु, मोला आता येतरी समझ आय गयी से, परा मोरो अिी को सही सांगनोच पढ़े। गुरुिी न मुक े श की असी समझ की गोष्ठी सुन वोला आपरो हार् लक ् पोचारकन कहवन लग्यो की िेटी तू लगतच होषशयार टुरा िन गयी सेस। आता तोला सही सांगनोच पढ़े। तोरी माय न मोला या िात िोली होषतस की तोरो अिी को सच तोला नही सांगषिन नही त तू परीक्षा मा सािरों लक ् नही पढ़िोश परा तू आता एतरो षिद कर रही सेस त सुन की तोरो अिी आता येन दुषनया मा नहाती अन् वय भगवान िवर चली गई सेती। यव कोरुना को कारन उनकी शहर मा िौत भय गयी होती। यव सुन मुक े श रोवन लग्यो न कहन िस्यो की, "अिी : यन िीमारी की दवाई नही होवन को कारन तुमरो षनधन भयो", आता यव मोरो िीवन को लक्ष्य भय गयो की मोला इलाि को क्षेत्र माच काम करनो से अन् िेतरो संभव होहे समाि की वोतरीच सेवा करनो से। घर आयकन मुक े श न आपरी माय अन् सायनी माय ला यव भान नही होंन देईस की वोला सिक ु छ चेत गयी से अन् घर को धंधा मा हार् िटावन लग्यो अस्खन संग मा सािरों लक ् पढ़ाई भी करन लग्यो। एक षदन मुक े श मोठो षचषकत्सक िनकन देश मा कइ महामारी को षटका को षवकास कर आपरो प्रण ला पुरो करीस। ***********
  • 21. ८ देवघर ४. सौ रुपया मुरली कक्षा दसवीं की परीक्षाला मा प्रर्म श्रेणीमा पास होन को संग पुरो कक्षा मा पषहलो आयो होतो। घर की आषर्थक हालात सािरो नही होन को कारन ओकी आगे की पढाईला िारी रखनो र्ोड़ो मुस्िल होतो। कोनी न मुरलीला समझाईस देई होती की आई टी आई, सरकारी कॉलेि लक होय िासे अना िादमा िल्दी लक नौकरी िी षमल िाहे। आई टी आई को िामथ अना षकताि का खचाथ सौ रुपया होतो परा वोन समय यव राषश िी मुरली लाइ लषगत होती, काहे की घरमा एत्तो रुपया नोहोषतन। मुरलीला ध्यानमा आयो की वोषक मावसी आपरो घर की रहीस आय त उनको िवर िानो मा काई मदद षमल सक से। सकारीच मुरली साइकल धरकन मावसी को गाव चली गयो। िेवन को िाद वू आपरी मावसीला आई टी आई करन की िात सांषगस अना िारम अस्खन पुस्तक लेन लाई सौ रुपया की मांग करीस। मावसी क ै से की िेटा सौ रुपया त मोठी रकम आय अना मी तोला दे िी देसु त तू वापस कसो करिोस, येको लाई मी तोला पईसा नही देय सक ू । आता तू मोठो भय गयी सेस अना काई काम धंधा खोि,आगे पढ़्कन भी कािक करिोस?कोई कलेक्टर र्ोड़ीना िनिािोस। मावसी की असी गोष्ठीला सुनकन मुरलीला लषगत धक्का लग्यो। वोला उत काईच नही उमज्यो त चुपचाप आपरी साइषकल ला धरकन आपरो घर आय गयो। मावसी का हर शिद ओको कानमा गूंि रह्वो होतो। तू कलेक्टर र्ोड़ो ही न िन िािो !!!! तिच ओको षदमाग मा येक चुनौती भरो षिचार आयो की कलेक्टर कसो िनसेती? आपरो षिला का कलेक्टर त षिला को मुख्यालय मा िससेती, आता मोरो षदमाग भन्नाय रहीसे त उनला िायकन पुसुसु। मुरली आपरी साइषकल धरकन सीधो षिलाधीश को कायाथलय मा गयो अना िाषहर ऊभो सुरक्षा िवान ला
  • 22. ९ देवघर आपरो क ै ररयर मा मागथदशथन लाई कलेक्टर साहि लक षमलन की चाह िताइस। िरासो रस्ता देखन को िाद कलेक्टर साहाि न मुरलीला आपरो कायाथलय मा भेटनला िुलाय लेइस, अना पुषसस की तू कायलाई मोरोपास आई सेस। मुरली को प्रश्न होतो की कलेक्टर कसो िन सेती। कलेक्टर साहि र्ोड़ो सो हासन को सार् कसेती की िेटा तोला िननोसे का। मंग मुरली कसे की िननो त से पर मोरो िवर काई पैसा नहाय की मी येत्तो मोठो पद परा आय षसक ु , अस्खन मोरो घर-पररवार मा किीच कोनी भी षकतन सरकारी नौकरी मा नही गया सेती। कलेक्टर सहाि ना सांगीन की यन पद परा चयन लाई सि लक पषहलो षवधार्ीला कोनी िी षविय मा स्नातक होनो िरुरी से। प्रारंषभक, मुख्य अना साक्षात्कार असा तीन चरन की परीक्षा होसे। तोरी आषर्थक स्थर्षत को षहसाि लक़ तोला पढ़नलाई छात्रवषत्त भी भेटे काहे की तुना दसवीं मा सािरो प्रषतशत िनाईसेस। संग मा तोला शासन कन लक़ षकताि अना षसषवल सेवा परीक्षा को मुफ्त प्रषशक्षण षमल षसकसे। िस तू खुदला यन परीक्षा की तैयारी लाई झोक दे, त् सिलता तय से। आता मुरली न आई टी आई करन को ििाय ग्यारवी मा प्रवेश लेन को षवचार िनाय लेइस। शासन की योिना इनको मदद लक़ मुरली ना आपरी पढ़ाई िारी रास्खस। संग मा मुरली आपरो खचाथ लाई िच्चा इनको ट्यूशन भी लेवत होतो। कॉलेिमाच मुरली ला कलेक्टर सहाि को मागथदशथन लक़ षसषवल सेवा की सप्पा तयारी भय गयी। कॉलेि को िाद मुरली का प्रर्म प्रयास मा चयन भय गयो अना आई ए एस भेटयों। मावसी को नकारात्मक व्यवहार मुरली लाई िीवन मा मागथदशथक मोड़ भयो। अना सिलता लाई मुरली न सिलक पषहले
  • 23. १० देवघर मावसी को धन्यवाद करीस की वा सौ रुपया देय देषतस त् मोला षिद नही भेटती अना अि षम कलेक्टर नही िनतो। येको लाइ यव कह्व्यो िासे षक क े तरीच मुस्िल घड़ी रहे, परा आपरो धीरि नही खोवन को से। िीवन मा सिलता लाई उषचत मागथदशथन को भी मोठो मान से। सही षदशा को चयन को िाद वोनो रस्ता परा षनयषमत रूप लक चलन को से अना भगवान परा भरुिा भी िरुरी से, काहे की एको लक मन ला सही षदशा परा रवहन की शस्क्त भेटसे अना यव आपरी मंषिल की प्रास्ि ला सहि िनाय देसे।
  • 24. ११ देवघर ५. दलपत की होरी या कहानी दलपत की आय, वू िोपचे िी को घर मा िारामासी नौकर होतो। दलपत ला आपरो काम की लगत लगन होती।वू कभीच आपरो काम मा खोरमा नहीं करत होतो। पर िोपचे िी मन को र्ोड़ो कठोर होतो अना वोला कोनी पर भी दया कमच आवत होती। होरी िरन को षदवस िदमाश टोरू पोटु ला िदमाशी अना चोरी चकारी मा िड़ो मज्या आवसे। िोपचे िी को खेत मा चना पीड़ाय गयो होतो, येको लाइ अि को षदवस अना राषत की िगवाली को काम दुही नौकर षगनला षदयो गयो होतो।दलपत की पारी षदन मा होती।राती को पाली वाली नौकर की तषियत अचानक ख़राि भय गयी होती, येको कारन काम मा नयी आयो। यव िात वोको माषलक ला मालुम नोहोतो। दलपत शाम ला दुसरो नौकर की िाट देखत होतो की वू आहे त आपरो घर िाहुाँ। पर वा नही आयो त ओकी भी िगली आता वोलाच करनो पढ़ें, नहीं त होरी िरन की रात से, िरासो चूक भयी त सप्पा चना चोर ढ़ाक े त।येको लाइ आपरो मचान लक षहलयोच नहीं। होरी की रात ठं डी गार होती अना वोको िवर काही गरम कपड़ा नोहोषतन, न काई इस्तो पेटावन को साधन होतो। दलपत काम को पक्को होतो आता करतो भी का िेचारों, ठं डी मा तषनश परा िसकन रात काटन लाग्यो। अधो रात लक दलपत घर नहीं आयो त वोकी घरवाली घर मा पूिनला आयी ति िोपचेिी ला या िात पता भई की दुसरो नौकर रात को काम मा नहीं आयी से। वे लाहकी लक खेत वरर आयो न देख् से की दलपत ला पुरो गार भेद गयो होतो पर वोन् आपरी िगली की िागाह नहीं छोषड़स।ओला देख िोपचे िी कसे की तू काय लाइ कपड़ा अना
  • 25. १२ देवघर माषचस लेनला घर मा नहीं आयोस, त दलपत कसे की आि होरी की रात से अना िरसो इता उता होतो त सप्पा चना की िसल ला चोर लेिाषतन।दलपत की असी षनष्ठा देख अि िोपचे िी को मन पसीि गयो अना दलपत को इनाम मा दुसरो रोि गरम कपड़ा अना सौ रुपया महीना को िढ़ोतरी षमली।
  • 26. १३ देवघर ६. कषवता की मायिोली पोवारी कषवता कक्षा चौर्ी मा होती. कषवता को घर मा सिझन आपरी मायिोली पोवारी मा च िात करत होषतन. येको लाइ कषवता ला पोवारी िोली िड़ी प्यारी लगत होती।परS पाठशाला मा सि कषवता ला पोवारी मा िोलता देख हाशत होतीन, येको लाइ कषवता को मन मा दुुःख होवत होतो की मोरी िोलन की लय षहंदी अना अंग्रेिी िोलन वाला िसो काय लाइ नहाय।यव आत्मग्लाषन लक कषवता ला पाठशाला मा सािरो नहीं लगत होतो अना वोको चेहरा मोहरा को हाव् भाव मा या षदशत होतो। भारत शासन अना षवश्व संथर्ा यूनेस्को को तरि लक षवलुस्ि को कगार मा पषड़न िोली भािा षगनला िचावन लाइ तय भयो कायथक्रम को तहत रज्य शासन को द्वारा तहसील कायाथलय मा यक गोष्ठी राखी होषतन। येनो गोष्ठी मा पोवर समाि की मायिोली पोवारी भी शाषमल होती।। पुरो पाठशाला मा पोवारी िोलनो वालो कई षवधार्ी होषतन परा कषवता की पोवारी सिलक सािरी से, यव िात सिला मालूम होतो। गुरुिी ना कषवता को नाव पोवारी भािा मा सम्बोधन लाई षलखाय देषयन। गाव लक वा येखली होती अना वोको मन मा या भय भी होतो की ऐतरो मोठो आयोिन मा वा सािरो लक िोल षसक े क नही। कषवता को मन मा शंका देख ओका माय - अिी न वोला समझाईश देयीन की तोरी पोवारी त सािरी से अना तोला आपरी मातृभािा लक लगत षपरम भी से अस्खन संगमा तोरो यन षवश्व स्तर को मोठो आयोिन मा सम्बोधन लक पोवारी िचावन को कायथक्रम मा शासन लक सहयोग भी षमलहे। िेतरी सािरी तोरी प्रस्तुषत रहे, ओतरो आमरी मातृभािा पोवारी को देश-दुषनया मा नाव होहे।
  • 27. १४ देवघर गोष्ठी को तय िेरा मा कषवता न पोवारी ला िचावन लाइ आपरो षिचार रास्खस की पोवारी भािा पुरातन से अना या उनको पुरखा षगनकी िोली आय। अि को िमाना मा लोख दुषनया आता षहंदी, अंग्रेिी, मराठी िोल रही सेत पर आपली मायिोली मा िोलन ला शरम करसेती। येनो कारण लक आमरी या िोली मुराय रही से अना पोवार भाई-िषहन षदन- प-षदन आपरी पुरखा इनकी यव धरोहर आपरी मायिोली पोवारी ला षिसर रही सेती। कषवता ना सिलक यव आव्हान कररस की पोवारी अना असी कई िोली-भािा सेती षिनला सिको सहयोग लक षमलकन िचावन को ितन करनो िरुरी से। कषवता को असा माषमथक षनवेदन लक शासन का साहि षगन खुश भया अना पोवारी िोली ला आपरो िोली िचाओंअषभयानमा राख लेषयन।येतरी नहान सी िेटी को येनो प्रयास लाई कषवता ला भारत देश लक भािा को िाल प्रषतषनषध को दिाथ षमलयो। आि पूरो देश मा कषवताको नाव होतो अना िेन िोली ला िोलन मा कषवता की हाशीहोवत होती वा च िोली अि वोको नाव अना मानसम्मान को कारन भय गयी।कषवता ला आपरी िोली पोवारी अना पहचान मा गौरव को भान आय गयो। **********
  • 28. १५ देवघर ७. पुस्तकला अना काकीिी गांव को आखर िवर एक नाह्यनसी झोपड़ी होती अना वोन िवर दू सरों कोनी घर नोहोषतन।टोरू पोटू उताकन िावन लाई डरात होषतन। उनला असा सांषगन होषतन की वोनॉ झोपड़ी मा यक शोधाइन िुडगी रहोसे। िस्ती मा रामधन नाम को गरीि षकसान होतो। वोकी एकच िेटी होती, वोको नाम पुस्तकला होतो। पोला को सन मा आखर िवर िईल िोड़ी छ ू टन की तोरण िंधी होती अना िोड़ी छ ू टन को िाद मा पुस्तकला अस्खन वोकी सहेली षनमथला दुही िोझारा लेवन लाइ िुडगी माय की झोपडी िवर गईन अना हाकषलन की घर मा कोनी सेती का। टुरी षगनको हाकलन सुन भीतर लक एक डरानी आवाि सुनायी देईस, षकवाड़ िवर कोन िोमलरही से। उनला पांढरी पातल मा यक िुडगीचोई। दुही टुरी डराय गईन अना उत्ताषनच सरपट आपरो घर कन पराय गई। िोझारा की िात सोड़ वेय दुही आपरा आपरा घर चली गइन। राषत सपन मा पुस्तकला ला वा िुडगी माय अस्खन आई अना वा सािरा लक सोयच नहीं षसकी। सकार पासून को वोला तेि िुख़ार ताप भय गयो। गांव को वैद्य ना दवाई देषयन पर वोको ताप मा काषयच कमी नहीं देख ओझा ला िुलाय लेइन।षनमथला न आखर की िुडगी को घर िावन की िात आपरी माय ला सांगी होती।ओझा न झाड़ ि ु क करीस अनाकव्हन लग्यो की या काही आखर िवर की देवाल से। तुम्ही हिार रुपया को पूिा को षिनुस आन देव तिा यो देवाल ला खेदाड़न की पूिा होय षसक से। रामधन गरीि होता अना वोको िवर एतरो पैसा नोहोतीन त वा ओझा षिना आपरी पूिा को चली गयो।
  • 29. १६ देवघर पुस्तकला को रोग ठीक नहीं होय रह रह्यो होतो। आता सिकी षचंता िढ़ रही होती. गांव को मािरिी उनको घर आयो अना पुस्तकला की असी हालत देख शहर को अस्पताल लेय िावन को मशवरा देषयन। रामधन को भाई को घर खासर होती।लाहकी लक वोना खासर िूपीस अना शहर िावन लाई वेय षहट गई। नराती वय अस्पताल पहुंषचन तिा वरी पुस्तकला की ताशीर अस्खन षिगड़ गयी अना वा अचेत भय गयी।घर वाला न शोधाषयन माताराम की िात डॉक्टर ला सांषगन। डॉक्टर कसे की यो षवज्ञान को िमाना से अना असो शोधाषयन, भूत अना देवाल काहीच नहीं होवती। या तुमरो वहयम से।एको परा पुस्तकला की माय कसे, की या सि वा शोधाइन िुडगी को घर मा िावन को कारन भयो, वोनाच काही िादु टोना करी रहे।डॉक्टर कसे तुम्ही िवर की क ु ची मा िसो मी सि देख रही सू।. वोकी पुरी िांच भई अना षदमाग मा कही ट्युमर होवन को पररणाम षहटयों अना उनना इलाि मा िीस हिार रुपया को खचाथ सांषगन। एतरा पैसा कहां लक आनषिन, आता हमरी िेटी नही िच षसक, असा िोलता िोलता पुस्तकला की माय रोवन लगी, अना उनको कोनी आसरा नोहोतो। पैसा नही होन को कारन आता वय घर वापस िावन को सोचन लषगन।तिच द्वी िषहनिी उनको िवर आयकर कसेत आता आमी िेटी ला ऑपरेशन लाइ लेय िाय रही सेिन।त रामधन क ै से की उनको िवर काई पैसा कौड़ी नहाती त या ऑपरेशन को खचाथ कसो देषिन। वय पुस्तकला ला सिथरी को कक्ष मा ले गईन। ओको माय अिी ला काषयच उमज्यो नहीं। िसो तसो रात कटी अना दू सरों रोि शाम ला एक नसथ ना उनला दुसरो कमरा मा लेय गयीस। उतन पुस्तकला ला सिथरी को िाद राखी होतीन। धीरू धीरू वोला होश आय रहयो होतो। उनको
  • 30. १७ देवघर लाइ यव देवा को चमत्कारच होतो। र्ोड़ो देर मा पुस्तकला ला पूरो होश आय गयो। रामधन डॉक्टर की खोली मा गयो अना उनला पुशोिे की आमरो िवर पैसा नोहोतो अना कोनी मददगार नहीं त तुम्ही कसो एतरो माहंगो ऑपरेशन करयात। मंग डॉक्टर न सांषगस की तुमरोच गाव की यक िुडगी िो वोनो कोंटा मा िसी से वोनाच पूरो पैसा को िंदोिस्त कररसेस।ओन िुडगी माय देख रामधन को डोरा लक आशु िोहान लषगन। असल मा वा रामधन की काकीिी होती। उनला शोधाइन को षमशालक घर लक हेड देय होषतन अना वोना पुरो िीवन आखर िवर षिताय देईस पर आपरो ससराल की डेहरी नहीं छोषड़स। आपरो षिहाव को िेवर िुट्टा षगरवी धर वोना पुस्तकला को इलाि लाई पैसा को िंदोिस्त करी होषतस। डॉक्टर ना उनला समझाइस देईस की िादू -टोना, देवाल-भुत असा काही नहीं होवत। पुस्तकला ला या रोग नहानपन लक होतो अना यव काई िादू टोना लक नहीं भईसे। तुम्हीं आपरी काकीिी ला आपरो संग माच मा राखो। अंधषवश्वास लक षिनको िीवन भर षतरस्कार भयो सच मा वू त देवी होती। आि पुस्तकला ला पोला को सािरो िोझारा भेट्यो। तीन रोि मा पुस्तकला की अस्पताल लक छु ट्टी भय गयी अना सि काकीिी को संग हासी ख़ुशी लक आपरो घर लवट गइन। *********
  • 31. १८ देवघर ८. मोहन की ईमानदारी एक गाव मा मोहन नाव को एक षकसान होतो। मोहन आपरी मेहनत अना ईमानदारी लाई पुरो क्षेत्रमा लषगत प्रषसध्द होतो। मोहन की ईमानदारी की िात रािा भोिदेव तक भी पहुंची त रािा खुश होयो अना मोहन लक भेटन की ओनकी चाह िाग्रत भयी। रािा भोिना ना आपरो मंत्री ला आदेश देईन की मी मोहन की इनामदारी ला परखकन देखसु। रािा को आदेशानुसार सोनो को षसक्का लक भरी एक झारी मोहन को खेत मा गाड़ देईन। खेत मा िुताई को िेरा मोहन ला सोना का षसक्का लक भरी यव झारी भेटी। मोहन ना झारी ला उघाड़कन देस्खस त ओला सोनो को षसक्का चोयीन। मोहनला लषगत अचम्भा भयो की यव धन कोनको आय अना यन गरीि को खेतमा षकत लक आय गयो। मोहन को िायको न कषहस यव हमरो खेतमा भेटीसे त हमरो आय, परा मोहन को कहनो होतो की यव धन ओषक कमाई को नहाय त कसो हमरो होय षसकसे। असो धन परा पुरो समाि को हक़ से आम्हाला यन झारी ला रािा को िवर िायकन देनो सािरो रहे। मोहन झारीला धरकन रािमहल चली गयो अना द्वारपाल लक महाराि संग भेट करन की अनुमषत मांषगस। रािा भोि को दरिार िनता लाई हर िखत खुलो रहवत होतो। मोहन ला रािदरिार मा रािा संग भेट्न की अनुमषत षमली। मोहन झारी ला धरकन रािा भोि को सम्मुख प्रस्तुत भयो अना खेतमा धन भेटन की िात सांषगस। मोहन कसे की यव धन मोरो नहाय काहे की येला मीन कमाया नहीं सेव। रािा को मंत्री न आपरो तक थ देईस की यव तोरो खेत मा भेषट से त यव तोरोच से। मंग मोहन कसे की मोरो खेत की िसल परा मोरो हक़ होसे काहे की षम वोला पैदा करन लाइ
  • 32. १९ देवघर आपरो श्रम देउसू परा यव धन त मोला खेत मा गड़्यो भेषट से अना यव कोनना उत ठे इसे मोला मालूम नहाय, एको लाई यन धन परा मोरो हक कसो होय षसकसे। याच कारन से की मी यन झारी ला धरकन महाराि ला अषपथत करन लाइ आई सेव। मोहन की असी ईमानदारी देख रािा भोि लषगत खुश भयो अना ओला झारी को सोना की कीमत की िागा इनाम मा देईन। रािा भोि को कहवनो होतो की मोहन धरती को सच्चो पुत्र आय येको लाई ओषक ईमानदारी को िल िागा लक िेहतर कायी नही होय षसक। ।
  • 33. २० देवघर ९. श्रद्धा िीवन नाव को येक िालक होतो। वोको मनमा लगत नकारात्मकता को भाव भरयो होतो। हर िातमा िीवनला काई न काई िुराई चोवत होती अना कोनी भी चीि परा ओको भरुिा नही होतो। असी असमंियस्ता को कारन िीवनला आपरो रोिका काम मा कई िाधा आवत होती। येक डाव की िात आय। िीवनला िुखार ताप आयो होतो। वोको अिी न वोला वैध िवर लेिायकन षदखाइस अना वैधिी न िीवनला सािरी दवाई देईस। िीवन कसे की डॉक्टर सहाि मीन असो सुषनसेंव की तुमरी दवाई काई नही कर त मी कसो सािरो होऊ ं ? वैद्यिी न कहीन की िेटा तू मोरो परा भरुिा राख़, मीन तोला सिलक सािरी दवाई देई सेंव, तू िरूर ठीक होय िािोस। परा िीवन न वैध िी की िातला नही पषतयाइस। माय अिी को कहवनो परा िीवन ना दवाई त खाय लेईस परा वोकी तषियत मा िास्ती सुधार नयी भयो। तीन रोि भय गया अना िीवनला आिा भी सािरो नयी लग रहवो होतो। घरमा सिकी षचंता िढ़गयी होती की िीवन कायलाई सािरो नयी होय रही से। वोकी िड़ीमाय िूनो ख़यालात की होती अना वोना कषहस की टुराला काई िाहरी िाधा झोम गईसे आता येला गाव को धूनी िािाला देखाय देव। िीवन को अिी न कहीन की अि को नवो िमानामा असो काई िाषहर िाधाला माननो ठीक नहाय परा तुम्ही कह रही सेव त मी िीवनला आिाच िािािी िवर षदखायकन आनुसु। िािािी, िीवन को िव्यहार लक अवगत होषतन। िािािी न िीवनला आपरो िवर काई चमत्काररक शस्क्त होन की िात सांषगन अस्खन यव िी सांषगस की वोको िवर आयकन कई मोठा-मोठा रोग- संताप वाला मानुि सािरो होयकन गयी सेत। मी तोला हवनक ु ण्ड की
  • 34. २१ देवघर भभूषत देसु अना तू देखिोस की सकारीच तू सािरो होयकन खेलनला िस िािो। िीवन को भरुिा पक्को भय गयो की िािा की भभूषतमा काई सत से अना वू आता सािरो होय िाहे। दुसरो रोि सकारीच उठन को िाद िीवनला सािरो लगन लग्यो अना वू िािािी की क ु षटया मा परावता गयो अना कहवन िस्यो की िािािी तुम्ही महान सेव। तुमरो िवर चमत्कार करन की ताकतसे। तुमरी चमत्काररक भभूषत लक़ मोरी तषियत सािरी भय गयी। मंग िािािी कसे की तोरी मोरो परा श्रद्धा होती अन तुन याच श्रद्धालक़ मोरी देयी भभूषतला खाई होषतस। मी आता तोला येक रािकी गोष्ठी सांगूसु, परा तू कोनीला नोको सांगिोस, की मोरो िवर कोनीिी चमत्कार करन की ताकत नहाय। यव सिको मोरो प्रषत श्रद्धा का भाव आय की वय सुधर िासेती। तोला मीन यव भरुिा देयो होतो की मोरो िवर चमत्काररक ताकत से अना यव भरुिा को कारन भभूषत न दवाई को काम कररस। तू त वैद्ध िी की दवाई लकच सुधर गयो होतो परा तोला वोन परा भरुिा नयी होनको कारन ठीक होनको िाविूद भी तोला सािरो नयी लग रहयो होतो। आता यव तोला सीख देसु की तू आपरो मन का नकारात्मक भाव इनला ि े क दे अना सि परा भरुिा राख़। सकारात्मक श्रद्धा राख़ त िीवनमा सिलता षमलहे। येको िादमा िीवन को िीवनमा सकारात्मक िदलाव आवनो चालू भय गयो। **********
  • 35. २२ देवघर १०. देवघर का देव रामषकशोर ला नहानपन लक वोषक माय की यव सीख भेटी होती की घरका देवघर मा सप्पा देवताइन को वास् होसे। एको लाइ यव घर की सि लक पावन िागा रवहसे। माय न रामषकशोर ला िालपन लक यव सीख देई होषतस की आपरो देवी-देवता को िीवनमा आशीवाथद रहवनो चाषहसे तिच आपरो िीवन सिल होय षसक से। माय को संस्कारी िीवन को अनुरूप रामषकशोर का भी िीवन संस्कारी होतो अना माय को स्वगथलोक िावन को िाद वू हररोि देवघरमा षदवा राखत होतो। घर मा िटवारा को िाद रामषकशोर का षहस्सा मा दूय एकड़ िागा अना िूनो घर आयो होतो, षित देवघर होतो। िूनो घर भेटन को िाद िी वोला यन िात को लगत संतोि होतो की वोको षहस्सामा देवघर आई से। कम िागा होन को कारन पररवार का गुिारा िरासो कषठन होतो परा रामषकशोर ला आपरो देवघरमा लषगतच आथर्ा होती की येक रोि सि सािरो होय िाहे। यन िरस लषगत िाररस पड़ रही होती। रामषकशोर को घर षमट्टी का होतो अना िाररस अषदक होन को कारन िांषध कन की दू य षदवार खसल गयी। िसो तसो र्ूनी गाड़कन अना षझल्ली िांधकन िाकी को घरला उनना सािुत राखीन। पंचायत को माध्यम लक शासन कन लक िाररश पीषड़त, षिनको घर पड़ गयो होतो उनला नवो घरको षनमाथण लाइ मदद भेटी। गावमा सिना रामषकशोर ला सलाह देईन की इत िागा कम से एको लाई तुम्ही आता आपरो पक्को घर खेतमा रोड परा िांधो। ओको पड़ोसी रहीस होतीन अना वोन िाघा की तीन गुना कीमत देनको प्रस्ताव भी राखीन परा रामषकशोर तय्यार नही भयो। रामषकशोरला आपरो
  • 36. २३ देवघर ओषढल इनकी डेरी परा लषगत आथर्ा होती अना वू आपरो पुरखाइन की देवघर की िाघाला कोनी भी कीमत परा देनला तय्यार नही भयो। ओको यव भरुिा प्रिल होतो की मोरी माय की आत्मा यनच घरमा से अना आपरो देवघर का देव सि सािरा करहेषत। रामषकशोर न आपरो िूनो घर परा नवो घर िांधन को काम चालू कर देईस। ओको यन ि ै सला परा पत्नी अन िेटा भी संग होतीन। रामषकशोर को यव माननो होतो की आपरो देव इनको आशीवाथद लकच मोला शासन की मदद भेटीसे अना भषवष्यमा भी उनको आशीवाथद लक सि सािरो होय िाहे। देवघर की चौरी ला आपरी िाघा परा राखकन नवो घर को षनमाथण पुरो भयो। देव को आशीवाथद लक लषगत िाररश को िाविूद भी रामषकशोर ला सािरी िसल भयी अन घरमा दू य गाय भी िनी। ओना र्ोड़ो अनाि षिककन सािरो दूध की अस्खन दू य गाय खररदकन दू ध का धंधा शुरू करीस। यव सपा देवघर का देव को आशीवाथदच होतो की ओको दू ध को काम सािरोलक चलन लग्यो अना सािरी िसल भी होन लगी। िल्दीच रामषकशोर धन-धनसी लक पररपूणथ होय गयो। रामषकशोर को िेटा न पढाई मा खूि तरक्की करीस। रामषकशोर को कवहनो होतो की यव सि घरका देवघर का देव अना ओषढल पुरखा इनको आशीवाथद आय की मोरो घरमा सप सािरो भय गयो। **********
  • 37. २४ देवघर ११. हमरो महादेव ज्योषत अना नरेश िुड़वा भाई-िषहन होषतन। ज्योषत होती दूय षमनट की मोठी, परा होती िड़ी सयानी। नरेश िी दू य षमनट मोठी िषहन ला आपरी मोठी दीदी होवन को मान देवत होतो अना दुही भाई-िषहन मा लषगत षपरम होतो। पररवार मा क ु लदेव महादेव को मंषदर होतो अना ओनकी सायनी माय रोि षदवस िूढ़ता देवघर, तुरसी को संग महादेव िवर षदया ठे वत होती। उनको कवहनो होतो की महादेव आपरो क ु लदेव आय अना ओनकी छत्रछाया मा हमरो िीवन को कल्याण होसे। आपरो कोनी भी दुुःख मा महादेव ला याद करनमा येको षनवारण होय िासे। घर मा सािरो धाषमथक संस्कार को कारन ज्योषत अना नरेश को मन मा आपरी सनातनी संस्क ृ षत को प्रषत लगत आथर्ा होती। सायनी माय को िीवन को आस्खरमा दुही आपरो पोता-पोती लाइ एकच सीख होती की िखत कसो भी रहे, तुमला भगवान् मा आपरी आथर्ा राखनो से। सायनी माय को भगवान को िवर िावन को िाद आता उन ओनकी माय आपरी सासु को चलायो सप्पाई नेंग-दस्तूर ला पारन मा मंघा नहीं होती। षपतािी एक स्क ू ल मा अध्यापक होषतन अना दुही िेटा-िेटी भी पढाई-षलखाईमा सािरा होषतन। एक रोि की िात आय। षपतािी की चुनाव मा ड्यूटी लगी होती अना वय चुनाव करवावन लाइ िवर को दुसरो षिला मा गयी होषतन। ओन रोि मौसम िहूत च ख़राि होय गया अना लगत िोरलक िादर गरिन लषगन। गरि-चमक को संग लगत िाररश होवन लगी। माय की तषियत सािरी नही होती अना मौसम को कारन राषत ओकी तषियत अस्खन षिगड़ गयी। षििली भी नोहती अना माय की असी हालत देख दुही भाई िषहन डराय गईन की आता कािक करिीन। माय को ताप येतरो होय गयो की आता उठनों मुस्िल होय रहयो होतो। मंग नरेश
  • 38. २५ देवघर कसे की आता कसो करिीन, दीदी तू मोठी से, सांग आता कसो करिीन, मोला त काइच नयी उमि रही से। ख़राि मौसम को कारन घर लक षहटनो भी मुस्िल होतो। गरि चमक अना इंधारो को कारन लषगतच भय लगन लगयो। ति ज्योषत ला आपरी सायनी माय की सीख याद आयी की मुसीित मा आपरो महादेवला याद करनमा वय मदद लाई आवसेती। ज्योषत मंग नरेश ला कसे की भयिीत होवन की िरुरत नहाय, हमरो घरमा महादेव सेअना वय काई रस्ता िरूर षदखाएती, चल उनला सुमरिीन। तिा ज्योषत ला आपरो षशक्षक की सीख याद आयी की काई मुसीितमा सौ नम्बर डायल करो त पुषलस मदद लाई आय िासे। नरेश तू िोन लगाय कन देख। कपकपातो हार् लक़ नरेश ना सौ नंिर डायल करीस त पुषलस ना िोन उठाईन अना वोना पुषलस ला पूरी िात सांषगस। पुषलस ना सांषगस की तुम्ही एक सौ आठ परा डायल करो त मेषडकल मदद लाई एम्बुलेंस आय िासे। नरेश को एक सौ आठ नम्बर परा िोन लग गयो अना र्ोड़ो देरमा एम्बुलेंस घर आय गई। तुरतच मायला िवर को अस्पताल ले िायकन भती करायदेईन। राषतच उत िरुरी वाडथ मा इलाि चालू भय गयो अना माय ला दवाई समय परा भेषट त र्ोड़ो आराम होनो चालू भय गयो। सकार होवता होवता मायला होस आय गयो ओको अना ताप उतर गयो। षपतािीला भी राषतिोन चली गयो होतो अना पहाट की िस लक वय भी छु ट्टी लेयकन घर वाषपस आय गईन। आपरो नहान-नहान िेटा- िेटी की सूझिूझ अना समझ लक़ माता-षपता लषगत खुश भया। **********