2. प्रस्तावना
• अत्यंत महत्वपूर्ण = शिक्षर्-पद्धतत की सफलता-असफलता इन पर तनर्भणर
• गुरु-शिष्य का संबंध ककसी संस्था क
े माध्यम से नह ं अपपतु सीधे न्ह बी था
• महावग्ग : गुरु-शिष्य परस्पर सम्मान, पवश्वास और एकत्रित जीवन क
े कारर्
अशर्भ्न हो जाते है
• पारािर स्मृतत : क
े वल पुस्तक से नपलब्ध ज्ञान क
े सम्बद्ध मे समाज को िंका
रहती थी
• व्यावसातयक शिक्षा, नच् कोट का कौिल्य क
े वल अनेक वर्षों क
े अनुर्भवी
शिक्षक से ह प्राप्त हो सकता है
• मुंडक नपतनर्षद : मुक्तत का मागण तो गुरु ह ददखा सकता है
• याज्ञवल्क : गुरु ज्ञान रूपी द पक से आवरर् को हट कर प्रकाि नत्प्न करता
है
• पाणर्नी : आ ायण एवं शिष्य एक दूसरे की परस्पर छाते समान रक्षा करते है
• काशलदास : गुरु-शिष्य क
े परस्पर संबंध को ‘गुरुवो गुरु पप्रयम’ कहा है
4. पपता-पुिवत संबंध
• गुरु माता-पपता से अधधक आदर का पाि –माता पपता से क
े वल पाधथणव िर र शमलता है; गुरु से
बौद्धधक न्नतत और पवकास
• अथवणवेद : आ ायण शिष्य का मानस-पपता
• तनरुतत : शिष्य का कतणव्य है की वह गुरु को पपतृ व माता तुल्य माने तथा ककसी र्भी क्स्थतत में
नसक
े प्रतत द्रोह ना करे
• छ्दोग्य नपतनर्षद : आ ायण अपने पुि और अंतेवासी को एक ह कोट में रखता था
• प्रश्न नपतनर्षद : सुक
े िा आ ायण पपपलाद से कहती है ‘आप हमारे पपता है तयोंकक आप अपवद्या से
पार ले जाते है’
• आपस्तंर्भ धमणसूि : शिष्य क
े साथ गुरु का व्यवहार पुिवत होता है
• मनुस्मृतत : पहला ज्म माता क
े गर्भण से, दूसरा नपनयन संस्कार से। द्पवतीय ज्म मे नसकी
माता ‘गायिी मंि’ ,पपता ‘गुरु
• पं तंि : गुरु शिष्य का मानस पपता है अतः शिष्य की समस्त दोर्षों का नत्तरदातयत्व गुरु पर
• महावग्ग + इक्त्संग + हर्षण ररत : शिष्य की रुग्र्ावस्था में पपता की र्भांतत नसकी ध ककत्सा और
सेवा का र्भार गुरु वहन करता है
• लक्ष्मीधर : आ ायण शिष्य को पुि समान स्नेह करता था और नसकी सर्भी आवश्यकताओं की पूततण
करता था
5. स्नेह शसतत संबंध
• गुरु को शिष्य से प्रगाढ़ वात्सल्य
• मत्स्य पुरार्: शिष्य गुरु को ब्रह्म की मूततण मानता था
• कादंबर : ंद्रापीड़ क
े प्रतत गुरुजनों का स्नेह र्भाव था
• रामायर् : वाल्मीकक अपने शिष्य लव-क
ु ि क
े दहत की सवणदा ध ंता करते थे
• महार्भारत : र्भारद्वाज अपने शिष्य द्रोर् और द्रुपद क
े प्रतत अपार स्नेह रखते थे
• तैततररय नपतनर्षद : गुरु और शिष्य का ज्ञान तेजस्वी हो
6. आदरर्भाव
• आपस्तंर्भ : शिष्य को गुरु क
े प्रतत नच् सम्मान का नपदेि
• महार्भारत : गुरु की दैव तुल्य प्रततष्ठा
• नपतनर्षद : आ ायण और शिष्य एकदूसरे क
े प्रतत तनष्ठावान और आदरवान
• प्रश्न नपतनर्षद : सुक
े िा ने अपनी क्जज्ञासा का समाधान पाने पर आ ायण
पपप्पलाद का अ णन ककया
• बृहदारण्यक नपतनर्षद : याज्ञवल्क द्वारा पवदेह राज जनक को ब्रह्म ज्ञान देने
पर राजा जनक ने न्हे नमस्कार ककया और कहा ‘समस्त पवदेह और मैं
आपका ह हूूँ’
• बृहदारण्यक नपतनर्षद : प्रवाहर् जाबाशल ने शिष्य रूप मे आए नद्दालक का
सस्नेह सम्मान ककया था
• बृहदारण्यक नपतनर्षद : नाध क
े ता जब ज्ञान प्राक्प्त क
े शलए यमराज क
े यहाूँ गए
तो यमराज ने ननका हाददणक अशर्भनंदन ककया
7. गुरु-शिष्य संबंध: व्यवहार
• बृहदारण्यक नपतनर्षद : आ ायण पतंजशल ने अपने शिष्य कबंध आथवणर् क
े बार-
बार प्रश्न पूछने पर प्रत्येक बार नम्रतापूवणक ननका नत्तर ददया
• छ्दोग्य नपतनर्षद : आ ायण आरुणर् ने शिष्य श्वेतक
े तु क
े आत्मा क
े पवर्षय मे
बार-बार पूछे जाने पर नसकी पृच्छाओं का सम्मान ककया था
• आपस्तंर्भ : आ ायण में बुराइयाूँ हो तो शिष्य ननकी ओर एकांत में गुरु का
ध्यान आकपर्षणत करे तथा नसे बुरे रास्ते पर जाने से रोक
े
• कृ त्यकल्पतरु : ककसी र्भी गुरु क
े शलए नध त नह ं था कक वह ककसी पवद्याथी
को अपेक्षक्षत ज्ञान से वंध त रखे बक्ल्क वह शिष्य को अनेकानेक ज्ञान-पवज्ञान
की शिक्षा दे
• गौतमधमणसूि : यदद शिष्य कोई पाप करता है तो नसक
े शलए आ ायण ह
नत्तरदायी होता है
• शमशलंदप्ह : गुरु छाि से क
ु छ र्भी नह ं तछपाता था
• आपस्तंर्भ धमणसूि : यदद गुरु छाि से क
ु छ छ
ु पाता है तो वह आ ायण पद का
अधधकार नह ं
8. सेवा भाव
• शिष्य गुरु क
े आश्रम को अपने कतणव्यों और सत्कमों से यिस्वी करता था
• महार्भारत : गुरु की सेवा करना शिष्य का परम कतणव्य
• मनुस्मृतत : शिष्य आ ायण क
े दहत मे सदा यत्निील रहता था
• गुरु की आज्ञा का पालन करता था
• गुरु की तनंदा नह ं करता था ना ह सुनता था
• वह तप से आ ायण को तृप्त करता था
• महार्भारत : गुरु सेवा क
े त्रबना ज्ञान की प्राक्प्त नह ं होती
• दिक
ु मार ररत : गुरु की प्रिंसा की गई है और शिष्य को नसका अनुवती होने
का संक
े त ककया गया है
• आरुर्ी की कतणव्यतनष्ठा और गुरु र्भक्तत का नदाहरर्
9. अपवाद
• महार्भारत : गौतम ऋपर्ष का नत्त्क नामक शिष्य अपनी वृद्धावस्था
तक मुक्तत नह ं पा सका ना ह जीवन क
े सुखों से पररध त हो सका
• जातक : शिष्यों को इच्छा क
े पवपर त गुरु-क्याओं से पववाह करना
पड़ता था
• महार्भारत : आ ायण द्रोर् अपने पुि अश्वत्थामा को अ्य शिष्यों से
इतर पविेर्ष समय में पवद्या प्रदान करते थे
10. छात्र जीवि क
े अिंतर गुरु-शिष्य संबंध
• समावतणन क
े पश् ात र्भी संबंध पूवणवत
• घतनष्ठता में ककसी प्रकार की शिधथलता नह ं
• आपस्तंर्भ धमणसूि : गृहस्थ हो जाने पर र्भी बार बार गुरु क
े दिणन करना,
नपहार र्भेंट करना शिष्य का कतणव्य
• जातक : गुरु अपने पुराने शिष्यों क
े घर जाया करते थे
• गुरु अपने शिष्यों से ननक
े स्वाध्याय क
े संबंध में पूछताछ करते थे
• ऐसे र्भी कथाएूँ जहाूँ शिष्य अपने गुरु को िास्िाथण हेतु ललकारता है पर ऐसे
शिष्य हेय दृक्ष्ट से देखे जाते थे