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छठी शताब्दी ईसा पूर्व की
आर्थवक दशाएँ
Prachi Virag Sontakke
Assistant Professor
Center for Advanced Studies
Department of A.I.H.C. & Archaeology,
Banaras Hindu University
virag@bhu.ac.in
Economic Conditions
during 6th Century BCE
प्रस्तार्ना
• ऐततहासककत काल का प्रारंभ
• राजनीततक, धार्मवक तथा आर्थवक
पररर्तवनों का काल
• महाजनपदों का उदय
• नर्ीन धमों का उदय
• द्वर्तीय नगरीकरण
• नगरों क
े उदय का काल
• र्सक्कों का प्रयोग ज्ञात
• व्यापार र्ाणणज्य में र्ृद्र्ध
• लेखन कला
• प्रचुर स्रोत
स्रोत
• ब्राह्मण एर्ं उपतनषद ग्रंथ
• पाणणनी की अष्टाध्यायी
• बौद्ध साहहत्य : वर्नयवपटक, सुत्तवपटक,
जातक
• जैन आगम
• वर्देशी यात्ररयों क
े वर्र्रण : स्काइलैक्स
हेरोडोटस
छठी शताब्दी ईसा पूर्व पररदृश्य : साहहत्त्यक साक्ष्य
• र्भन्न र्भन्न स्थानों प्रांतों तथा प्राकृ ततक वर्भागों का र्णवन
• अनेक जनपदों एर्ं महाजनपदों का उल्लेख
• बौद्ध साहहत्य : नगर एर्ं ग्राम र्ार्सयों की गततवर्र्धयाँ
• जातक : तत्कालीन सामात्जक-आर्थवक दशाओं का प्रततत्रबंब
• व्यापार, वर्नमय एर्ं वर्र्भन्न व्यर्सायों का उल्लेख
छठी शताब्दी ईसा पूर्व पररदृश्य :
पुरातात्त्र्क साक्ष्य
• साहहत्य में र्णणवत अहहच्छर, हत्स्तनापुर,
कौशांबी, उज्जैन, श्रार्स्ती, र्ैशाली, आहद
पुरस्थलों का उत्खनन
• उत्खनन से प्राप्त भौततक अर्शेष :
समृद्ध सत्न्नर्ेश
• नगर एर्ं ग्राम दोनों का अत्स्तत्र्
• वर्र्शष्ट मृदभांड परंपरा :
NBPW
• लौह का प्रचुर प्रयोग
• वर्र्शष्ट मृणमूततवयाँ
अथवव्यर्स्था क
े अर्यर्
• पशुपालन
• र्शकार
कृ वष
• र्शल्प
कला
• व्यापार
• उद्योग-धंधे
वर्नमय
कृ वष
• नगरीकरण हेतु अथवव्यर्स्था का महत्र् पूणव अंग
• महाभारत + रामायण : कृ वष एर्ं पशुपालन आय क
े प्रमुख स्रोत
• कृ वष अथवव्यर्स्था का मुख्य आधार
• नर्ीन क्षेर में कृ वष का प्रसार
• बहुतायत मे उत्पाद
• लौह का प्रयोग
• उत्खनन से कृ वष हेतु लौह उपकरण प्राप्त
• लौह उपकरण : हल, हर्सयाँ, क
ु दाल
• पाणणनी : सालाना दो फसल उगाने का उल्लेख
• फसल : मुख्यतः चार्ल, गेंहू , जौ, बाजरा
पशुपालन
• सुत्ततनपात : पशुर्ध का तनषेध क्यूँकक र्े लाभ क
े स्रोत
• कृ वष हेतु मर्ेर्शयों की सुरक्षा पर बल
• पुरास्थलों से बड़ी संख्या में पशु हड्डडयाँ प्राप्त-मर्ेशी,
भेड़,बकरी,घोड़ा,सुअर, मछली इत्याहद
• जली –कटी हड्डडयाँ : पशु भक्षण क
े प्रमाण
• मालर्ाहक क
े रूप मे प्रयुक्त
व्यापार
• व्यर्सायों क
े कई स्तर : बड़े व्यापारी, छोटे व्यापारी
• दुकानदार, फ
े री र्ाले, माल संग्रहक, थोक व्यापारी
• व्यर्साय : माला तनमावण, हाथीदांत र्शल्प, बढ़ई, लुहार, क
ुं भकार,धातु र्शल्पकार,
नतवक, गायक, नाई, र्शकारी (धनुधवर), मनका तनमावण, र्स्र तनमावण, इर तनमावण,
गृह तनमावण, ईंट तनमावण, धनुष तनमावण, सुरा तनमावण, चूड़ी तनमावण इत्याहद
• व्यर्साय उत्तरार्धकार में प्राप्त
• र्सफ
व पाररर्ार क
े सदस्य को ही पररर्ाररक व्यर्साय करने की अनुमतत
• इसी वर्धान व्यर्स्था से श्रेणणयों का उदय
• श्रेणी = व्यापाररक संगठन जो व्यापाररयों की हहतों की रक्षा एर्ं व्यापाररक तनयमों
की स्थापना हेतु बनाया गया
• राजा भी श्रेणी क
े तनयमों से बद्ध
• श्रेणणयों से व्यापाररक गततवर्र्धयों को प्रश्रय हदया
व्यापारी
• समाज का एक प्रभार्शाली र्गव
• नगरों का उदय एर्ं वर्कास सेत्थीयों से उदय से सम्बद्ध
• वर्र्भन्न प्रकार क
े व्यापारी : अपतनक (दुकानदार), क्रय-वर्क्रतयक
(थोक) , सेटहठ (रुपये लेने देने र्ाले).
• बौद्ध साहहत्य : ‘सेत्थी’ = र्ह त्जसक
े पास श्रेष्ठ है = व्यापारी
• जातक : सेत्थी’ क
े पास पयावप्त अथव = सामात्जक प्रततष्ठा एर्ं
शत्क्त
• ब्राह्मण ग्रंथ : सेत्थी एर्ं र्ैश्य = हीन
• सेत्थीयों द्र्ारा बौद्ध धमव को प्रश्रय
प्रर्सद्ध र्स्तुएँ
• काशी क
े सूती र्स्र
• गांधार क
े ऊनी क
ं बल
• र्संध क
े घोड़े
• रेशम
• मलमल
• इर
• शंख की चूडड़याँ
• स्र्णव आभूषण
• हत्स्तदंत की र्स्तुएँ : क
ं घी
• अधव बहुमूल्य मनक
े
ग्रामीण अथवव्यर्स्था
• पार्ल साहहत्य : 3 प्रकार क
े ग्राम
1. सामान्य प्रकार : र्भन्न जातत समूह द्र्ारा आर्ार्सत
2. अधव ग्राम : र्शल्पकायव से जुड़े ग्राम जो माल की आपूततव अन्य बाजारों तक
करते थे
3. सीमांत ग्राम = र्शकारी र्चडड़याँ पालने र्ालों की बस्ती
• ग्रामीण अथवव्यर्स्था का वर्कास : नए ग्रामों की स्थापना एर्ं पुराने ग्रामों का
पुनर् उद्धार
• राजकीय संरक्षण एर्ं राजस्र् : मर्ेशी, बीज, र्सचाई हेतु
• वर्शेष त्स्तर्थयों में कर में छ
ू ट अथर्ा मुत्क्त का प्रार्धान
• सेर्ातनर्ृत्त अर्धकाररयों को ग्रामीण क्षेरों मे भूर्म दान
• कृ वष प्रमुख व्यर्साय, अन्य व्यर्साय –पशुपालन, जंगल से प्राप्त र्स्तुओं की
त्रबक्री, मृदभांड तनमावण, अन्य र्शल्प
• बहुतायत का उपभोग अन्य ग्रामों एर्ं नगरीय बाजारों में
नगरीय अथवव्यर्स्था
• जीर्नयापन अथवव्यर्स्था क
े स्थान पर व्यापार/बाजार प्रधान अथवव्यर्स्था
• व्यापारी एर्ं र्शल्पकारों की अर्धकता
• नगर तनमावण/वर्कास पर अथवव्यर्स्था का बल
• सुरक्षा प्राचीर से तघरे नगर
• आंतररक एर्ं बाह्य व्यापार
• र्शल्प वर्र्शष्टता
• नर्ीन र्गव : धोबी, सफाई कमी, र्भखारी
• आदान प्रदान हेतु क
ें द्र : बाजार
• आर्थवक संपन्नता से प्रततष्ठा : राजनीततक-सामात्जक संगठनों में व्यापाररयों एर्ं
र्शत्ल्पयों भागीदारी
• र्शक्षक्षत समाज
व्यापाररक मागव
• आंतररक एर्ं बाहरी व्यापाररक मागव
• जल एर्ं थल मागव
• जातक : लंबी दूरी तय करते व्यापारी
• व्यापाररक मागों की कहठनाइयाँ एर्ं खतरें
• लंबही दूरी र्ाला व्यापार नगरों में क
ें हद्रत एर्ं वर्तररत
• बमाव, श्री लंका तक व्यापार
• पूर्व में तमलुक से पत्श्चम में भडौच तक
• प्रमुख मागव-
1. श्रार्स्ती से प्रततष्ठान
2. श्रार्स्ती से राजगृह
3. राजगृह से कोसांबी, उज्जैनी, भडौच
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6. कोसम्बी से तकक्षक्षला, ईरान, मध्य एर्शया
Coins
• बदलौन प्रथा : अंत की ओर अग्रर्सत
• वर्नामय का माध्यम = र्सक्क
े
• काषवपण = तनत्श्चत भारमान का चांदी/ताम्र
का अतनत्श्चत आकार का र्सक्का त्जस पर
र्चन्ह अंककत
• तकनीक : ठप्प वर्र्ध (punch mark)
• शासकीय तनगवत
• र्सक्क
े क
े प्रयोग से व्यापार, र्ाणणज्य में
सुवर्धा एर्ं तेज़ी
• बैंककं ग प्रणाली अज्ञात
• अर्धक धन : आभूषण, तनखात तनर्ध,
व्यत्क्त वर्शेष क
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सम्पन्न अथवव्यर्स्था : साहहत्त्यक उद्धरण
(बौद्ध)
• गहपती मेंडक ने 1250 गाय बौद्ध संघ को दान दी
• गहपती साक
े त ने 16000 र्सक्क
े , एक पुरुष और एक
स्री दास जीर्क को हदए उसकी सेर्ाओं क
े मूल्य रूप में
• जेतर्न का क्रय अनाथवपण्डक द्र्ारा
• आंबपाली की आय एर्ं दान
तनष्कषव
• अथवव्यर्स्था सुदृढ़ता-संपन्नता का काल
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• ग्रामीण अथवव्यर्स्था : कृ वष, पशुपालन, आखेट, संग्रहण
• नगरीय अथवव्यर्स्था : जहटल - व्यापारी, र्शल्पकार
• व्यापार-र्ाणणज्य में बढ़ती गततशीलता
लौह का
प्रयोग
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प्रयोग
नगर एर्ं
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  • 1. छठी शताब्दी ईसा पूर्व की आर्थवक दशाएँ Prachi Virag Sontakke Assistant Professor Center for Advanced Studies Department of A.I.H.C. & Archaeology, Banaras Hindu University virag@bhu.ac.in
  • 3. प्रस्तार्ना • ऐततहासककत काल का प्रारंभ • राजनीततक, धार्मवक तथा आर्थवक पररर्तवनों का काल • महाजनपदों का उदय • नर्ीन धमों का उदय • द्वर्तीय नगरीकरण • नगरों क े उदय का काल • र्सक्कों का प्रयोग ज्ञात • व्यापार र्ाणणज्य में र्ृद्र्ध • लेखन कला • प्रचुर स्रोत
  • 4. स्रोत • ब्राह्मण एर्ं उपतनषद ग्रंथ • पाणणनी की अष्टाध्यायी • बौद्ध साहहत्य : वर्नयवपटक, सुत्तवपटक, जातक • जैन आगम • वर्देशी यात्ररयों क े वर्र्रण : स्काइलैक्स हेरोडोटस
  • 5. छठी शताब्दी ईसा पूर्व पररदृश्य : साहहत्त्यक साक्ष्य • र्भन्न र्भन्न स्थानों प्रांतों तथा प्राकृ ततक वर्भागों का र्णवन • अनेक जनपदों एर्ं महाजनपदों का उल्लेख • बौद्ध साहहत्य : नगर एर्ं ग्राम र्ार्सयों की गततवर्र्धयाँ • जातक : तत्कालीन सामात्जक-आर्थवक दशाओं का प्रततत्रबंब • व्यापार, वर्नमय एर्ं वर्र्भन्न व्यर्सायों का उल्लेख
  • 6. छठी शताब्दी ईसा पूर्व पररदृश्य : पुरातात्त्र्क साक्ष्य • साहहत्य में र्णणवत अहहच्छर, हत्स्तनापुर, कौशांबी, उज्जैन, श्रार्स्ती, र्ैशाली, आहद पुरस्थलों का उत्खनन • उत्खनन से प्राप्त भौततक अर्शेष : समृद्ध सत्न्नर्ेश • नगर एर्ं ग्राम दोनों का अत्स्तत्र् • वर्र्शष्ट मृदभांड परंपरा : NBPW • लौह का प्रचुर प्रयोग • वर्र्शष्ट मृणमूततवयाँ
  • 7. अथवव्यर्स्था क े अर्यर् • पशुपालन • र्शकार कृ वष • र्शल्प कला • व्यापार • उद्योग-धंधे वर्नमय
  • 8. कृ वष • नगरीकरण हेतु अथवव्यर्स्था का महत्र् पूणव अंग • महाभारत + रामायण : कृ वष एर्ं पशुपालन आय क े प्रमुख स्रोत • कृ वष अथवव्यर्स्था का मुख्य आधार • नर्ीन क्षेर में कृ वष का प्रसार • बहुतायत मे उत्पाद • लौह का प्रयोग • उत्खनन से कृ वष हेतु लौह उपकरण प्राप्त • लौह उपकरण : हल, हर्सयाँ, क ु दाल • पाणणनी : सालाना दो फसल उगाने का उल्लेख • फसल : मुख्यतः चार्ल, गेंहू , जौ, बाजरा
  • 9. पशुपालन • सुत्ततनपात : पशुर्ध का तनषेध क्यूँकक र्े लाभ क े स्रोत • कृ वष हेतु मर्ेर्शयों की सुरक्षा पर बल • पुरास्थलों से बड़ी संख्या में पशु हड्डडयाँ प्राप्त-मर्ेशी, भेड़,बकरी,घोड़ा,सुअर, मछली इत्याहद • जली –कटी हड्डडयाँ : पशु भक्षण क े प्रमाण • मालर्ाहक क े रूप मे प्रयुक्त
  • 10. व्यापार • व्यर्सायों क े कई स्तर : बड़े व्यापारी, छोटे व्यापारी • दुकानदार, फ े री र्ाले, माल संग्रहक, थोक व्यापारी • व्यर्साय : माला तनमावण, हाथीदांत र्शल्प, बढ़ई, लुहार, क ुं भकार,धातु र्शल्पकार, नतवक, गायक, नाई, र्शकारी (धनुधवर), मनका तनमावण, र्स्र तनमावण, इर तनमावण, गृह तनमावण, ईंट तनमावण, धनुष तनमावण, सुरा तनमावण, चूड़ी तनमावण इत्याहद • व्यर्साय उत्तरार्धकार में प्राप्त • र्सफ व पाररर्ार क े सदस्य को ही पररर्ाररक व्यर्साय करने की अनुमतत • इसी वर्धान व्यर्स्था से श्रेणणयों का उदय • श्रेणी = व्यापाररक संगठन जो व्यापाररयों की हहतों की रक्षा एर्ं व्यापाररक तनयमों की स्थापना हेतु बनाया गया • राजा भी श्रेणी क े तनयमों से बद्ध • श्रेणणयों से व्यापाररक गततवर्र्धयों को प्रश्रय हदया
  • 11. व्यापारी • समाज का एक प्रभार्शाली र्गव • नगरों का उदय एर्ं वर्कास सेत्थीयों से उदय से सम्बद्ध • वर्र्भन्न प्रकार क े व्यापारी : अपतनक (दुकानदार), क्रय-वर्क्रतयक (थोक) , सेटहठ (रुपये लेने देने र्ाले). • बौद्ध साहहत्य : ‘सेत्थी’ = र्ह त्जसक े पास श्रेष्ठ है = व्यापारी • जातक : सेत्थी’ क े पास पयावप्त अथव = सामात्जक प्रततष्ठा एर्ं शत्क्त • ब्राह्मण ग्रंथ : सेत्थी एर्ं र्ैश्य = हीन • सेत्थीयों द्र्ारा बौद्ध धमव को प्रश्रय
  • 12. प्रर्सद्ध र्स्तुएँ • काशी क े सूती र्स्र • गांधार क े ऊनी क ं बल • र्संध क े घोड़े • रेशम • मलमल • इर • शंख की चूडड़याँ • स्र्णव आभूषण • हत्स्तदंत की र्स्तुएँ : क ं घी • अधव बहुमूल्य मनक े
  • 13. ग्रामीण अथवव्यर्स्था • पार्ल साहहत्य : 3 प्रकार क े ग्राम 1. सामान्य प्रकार : र्भन्न जातत समूह द्र्ारा आर्ार्सत 2. अधव ग्राम : र्शल्पकायव से जुड़े ग्राम जो माल की आपूततव अन्य बाजारों तक करते थे 3. सीमांत ग्राम = र्शकारी र्चडड़याँ पालने र्ालों की बस्ती • ग्रामीण अथवव्यर्स्था का वर्कास : नए ग्रामों की स्थापना एर्ं पुराने ग्रामों का पुनर् उद्धार • राजकीय संरक्षण एर्ं राजस्र् : मर्ेशी, बीज, र्सचाई हेतु • वर्शेष त्स्तर्थयों में कर में छ ू ट अथर्ा मुत्क्त का प्रार्धान • सेर्ातनर्ृत्त अर्धकाररयों को ग्रामीण क्षेरों मे भूर्म दान • कृ वष प्रमुख व्यर्साय, अन्य व्यर्साय –पशुपालन, जंगल से प्राप्त र्स्तुओं की त्रबक्री, मृदभांड तनमावण, अन्य र्शल्प • बहुतायत का उपभोग अन्य ग्रामों एर्ं नगरीय बाजारों में
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  • 15. नगरीय अथवव्यर्स्था • जीर्नयापन अथवव्यर्स्था क े स्थान पर व्यापार/बाजार प्रधान अथवव्यर्स्था • व्यापारी एर्ं र्शल्पकारों की अर्धकता • नगर तनमावण/वर्कास पर अथवव्यर्स्था का बल • सुरक्षा प्राचीर से तघरे नगर • आंतररक एर्ं बाह्य व्यापार • र्शल्प वर्र्शष्टता • नर्ीन र्गव : धोबी, सफाई कमी, र्भखारी • आदान प्रदान हेतु क ें द्र : बाजार • आर्थवक संपन्नता से प्रततष्ठा : राजनीततक-सामात्जक संगठनों में व्यापाररयों एर्ं र्शत्ल्पयों भागीदारी • र्शक्षक्षत समाज
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  • 20. व्यापाररक मागव • आंतररक एर्ं बाहरी व्यापाररक मागव • जल एर्ं थल मागव • जातक : लंबी दूरी तय करते व्यापारी • व्यापाररक मागों की कहठनाइयाँ एर्ं खतरें • लंबही दूरी र्ाला व्यापार नगरों में क ें हद्रत एर्ं वर्तररत • बमाव, श्री लंका तक व्यापार • पूर्व में तमलुक से पत्श्चम में भडौच तक • प्रमुख मागव- 1. श्रार्स्ती से प्रततष्ठान 2. श्रार्स्ती से राजगृह 3. राजगृह से कोसांबी, उज्जैनी, भडौच 4. तकक्षक्षला से श्रार्स्ती 5. काशी से पत्श्चमी तट तक 6. कोसम्बी से तकक्षक्षला, ईरान, मध्य एर्शया
  • 21. Coins • बदलौन प्रथा : अंत की ओर अग्रर्सत • वर्नामय का माध्यम = र्सक्क े • काषवपण = तनत्श्चत भारमान का चांदी/ताम्र का अतनत्श्चत आकार का र्सक्का त्जस पर र्चन्ह अंककत • तकनीक : ठप्प वर्र्ध (punch mark) • शासकीय तनगवत • र्सक्क े क े प्रयोग से व्यापार, र्ाणणज्य में सुवर्धा एर्ं तेज़ी • बैंककं ग प्रणाली अज्ञात • अर्धक धन : आभूषण, तनखात तनर्ध, व्यत्क्त वर्शेष क े पास रखा
  • 22. सम्पन्न अथवव्यर्स्था : साहहत्त्यक उद्धरण (बौद्ध) • गहपती मेंडक ने 1250 गाय बौद्ध संघ को दान दी • गहपती साक े त ने 16000 र्सक्क े , एक पुरुष और एक स्री दास जीर्क को हदए उसकी सेर्ाओं क े मूल्य रूप में • जेतर्न का क्रय अनाथवपण्डक द्र्ारा • आंबपाली की आय एर्ं दान
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  • 24. तनष्कषव • अथवव्यर्स्था सुदृढ़ता-संपन्नता का काल • वर्वर्ध कारण • ग्रामीण अथवव्यर्स्था : कृ वष, पशुपालन, आखेट, संग्रहण • नगरीय अथवव्यर्स्था : जहटल - व्यापारी, र्शल्पकार • व्यापार-र्ाणणज्य में बढ़ती गततशीलता लौह का प्रयोग र्सक्क े का प्रयोग नगर एर्ं बाजारों का उदय उन्नत कृ वष वर्वर्ध वर्कर्सत र्शल्प