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RAJKIYA AYUVRVEDIC
COLLEGE ATTARA
BANDA
दुष्ट स्तन्यपानजन्य
व्याधियााँ(disorder due to vit
milk)
Submitted to
Submitted by
Prince Kumar Chaudhary
III professional (Batch-2019)
Roll no.- 422191110038
Dr. Surya
Prakash
Chaudhary
(HOD Pediatrics)
वात दू धित स्त्न्य . क
ृ शता, स्वादहाधन, क
ृ च्छ्
र तापूववक
वृद्धि
बात दू धित स्तन्य
- बिमल, मूत्र, अपानवात अवरोि,
बाधतक धशरोरोग, पीनस
पित दू पित स्तन्य शरीर से अपत स्वेदोत्पपि, अपततष्णा,
मलभेद, शरीर सर्वदणा उ् िणाण्डु एर्ं
कणामलणा
पिि दू पित स्तन्य
र्मन, क
ुं थन, ललणासरणार्, कफिूर्व
नणासणापद स्रोत, पनद्रणा, क्लम, श्वणास, कणास,
प्रसेक, तमक
कफ दू पित स्तन्य - लणालणालु, मुख और नेत्र शोधयुक्त,
आचणायव चरक ने दुष्ट स्तन्यिणान जन्य लक्षर् एर्ं
व्यणापधयों कणा र्र्वन अष्टक्षीरदोि क
े अन्तर्वत पकयणा है।
(च.पि. 30/237-250)
◦ आचायव काश्यप क
े अनुसार पटुक्षीर (लवणरस युक्त दुग्ध) क
े सेवन से पङ् गुता, जड़ता एवं मूकता उत्पन्न
होता है।
Lactose intolerance
◦ After consumption as diet, lactose is hydrolyzed into glucose and galactose by lactase enzyme in
small intestine.
◦
◦ > Lactase enzyme is located in the brush border of the small intestinal mucosa. Lactose intolerance is
a condition that manifests with characteristic signs and symptoms upon consumption of food
substances containing lactose (due to lactase deficiency)
◦ > Lactose is present in milk and dairy products. Lactose intolerance is sometimes referred to as
lactose malabsorption.
◦
◦ ➤ Lactose intolerance is a common disease,
◦
◦ it is rare in children less than 5 years age.
There are four main causes of lactose
deficiency
1= primary lactase deficiency [ लेक्टोज non-persistence(
most common)]
. It is a hereditary cause of lactase deficiency.
. Gradual decline in lactase enzyme activity with
increasing age.
2.Secondary lactase deficiency
Due to injury to intestinal mucosa because of
.Gastroenteritis
.Celiac disease
.Crohn disease
.Ulcerative colitis
> Chemotherapy
.Antibiotics
3-Congenital Lactase deficiency (rare)
◦ Deficiency since birth due to autosomal recessive inheritance.
◦
◦ It manifests in the newborn after ingestion of milk.
◦
◦ 4-Developmental Lactase Dificiency
◦ It is seen in premature infants born at 28 to 37 weeks of gestation.
◦
◦ Due to underdeveloped intestine of infant.
◦
◦ The condition improves with increasing age.
Pathophysiology
◦ Unabsorbed lactose within the bowel causes an influx of fluid into the bowel lumen resulting in
osmotic diarrhea.
◦
◦ Colonic bacteria ferment the unabsorbed lactose producing various gaseous (hydrogen, carbon
dioxide, and methane).
◦ Lactoseget hydrolyzed into monosaccharides leading to additional influx of fluid within the
lumen.
Clinical features --
◦ Manifestation of lactose intolerance within 1 to 2 hours after ingestion of milk
containing
◦ (dairy) products.
◦ ➤ Diarrhea
◦ Abdominal bloating
◦ Abdominal Pain
◦ Nausea and vomiting
◦ Fullness
◦ Flatulence
◦ Headache, muscle pain, joint pain, mouth ulcers, urinary symptoms and loss of
concentration (Less common).
Complication
◦ Osteopenia
◦
◦ Osteoporosis
◦
◦ Malnutrition
◦
◦ Weight loss
Laboratory tests
◦ 1-Hydrogen breath test:
The test is positive if post lactose breath hydrogen value rise greater than 20 ppm
compared with baseline
2- stool acidity test :
Stool pH get lowered due to fermentation of unabsorbed
lactose into lactic acid ,
3- lactose tolerance test :
Failure of blood glucose levels to rise even after ingestion of
lactose containing liquid indicate lactose intolerance
◦ 4- small bowel biopsy ( rarely performed)
Indicated to rule out secondary cause of lactose intolerance.
Management €
..Dietary Modification
.Lactase containing milk products and calcium supplements
.Restriction of intake of lactose containing products like soft and
processed cheese, buttermilk, cream, milk, ice cream, sour
cream, whey, yogurt, mashed potatoes, butter, margarine.
..Lactase Supplements
Prognosis
◦ Lactose intolerance has an excellent prognosis. Most patients have a considerable
improvement in signs and symptoms with dietary modification alone.
• क्षीरालशक :
◦ क्षीरणालसक दो शब्ों से पमलकर िनणा है (क्षीर + अलसक) । आचणायव चरक ने अलसक रोर् कणा र्र्वन आमजन्य व्यणापध क
े
अन्तर्वत पकयणा है, पजसकणा लक्षर् है- “प्रयणापत न उर्ध्वम न अधः स्थ’ अथणावत् दोिों कणा उर्ध्व तथणा अधः मणार्व से न पनकल िणानणा
तथणा “आमणाशये अलसीभूतस्ते” अथणावत् आमणाशय में दोिों कणा अलसीभूत होनणा। क्षीरणालसक शब् व्यणापध क
े प्रसंर् में सर्वप्रथम
आचणायव र्णाग्भट द्वणारणा प्रयुक्त हुआ है। जो सर्वथणा अलसक व्यणापध से पभन्न है।
◦ धनदान /संप्राद्धि=
◦ धणात्री द्वणारणा पत्रदोिकणारक आहणार कणा सेर्न
◦ ¥
◦ पत्रदोि प्रकोि
◦ ¥
◦ एक सणाथ सभी दोिों कणा र्क्ष प्रदेश में आपित क्षीरर्ह रसणायपनयों में प्रर्ेश
◦ ¥
◦ दुष्ट स्तन्य कणा पशशु द्वणारणा िणान
◦ ¥
◦ क्षीरणालसक
लक्षण :
◦ स्तन्ये धत्रदोिमधलने दुगवन्ध्यामं जलोपमम् । धवबिमच्छ्ं धवद्धच्छ्न्नं
फ
े धनलं चोपवेश्यते ॥
◦ शक
ृ न्नानाव्यथावणं मूत्रं पीतं धसतं घनम् ।
ज्वरारोचकतृट्छधदवशुष्कोद्गार धवजृद्धिकााः ॥ अङ्गभङ्गोऽङ्गधवक्षेपाः
क
ू जनं वेपथुर्भ्वमाः । घ्राणधक्षमुखपाकाद्या जायन्तेऽन्येऽधप तं गदम्॥
क्षीरालसकधमत्याहुरत्ययं चाधतदारुणम् ॥
◦ (अ. हृ. उ. 2/20-23)
◦ मल:- आम, दुगवन्धयुक्त, जल सदृश द्रव रूप रुक- रुक कर, धनमवल धवद्धच्छ्न्न एवं झागदार, नाना
प्रकार क
े रंग एं व वेदना से युक्त होता है।
◦
◦ मूत्र:- पीला, श्वेत एवं घन होता है। ज्वर, अरोचक, तृष्णा, वमन, शुष्कोद्गार, जृिा, अङ्गभङ्ग,
धवक्षेप, आंत्र क
ू जन, कम्पन्न, र्भ्म, नाधसका, अधक्ष, मुख पाक आधद अनेक रोग
◦ > दृधष्ट उपप्लव, स्वरसाद
सणाध्यणासणाध्यतणा:
आत्यपयक, दणारुर्, अपतकपिन एर्ं दुपिपक्स्य
◦धचधकत्सा :
◦ तत्राशु िात्रींबालं च वमनेनोपपादयेत् ॥ धवधहतायां च संसर्ग्यो वचाधदं योजयेद्गणम् । धनशाधदं वाऽथवा
माद्रीपाठाधतक्ताघनामयान् । पाठा शुण्ठ्यमृताधतक्तधतक्तादेवाह्वसाररवााः। समुस्तमूवेन्द्रयवााः
स्तन्यदोिहरााः परम् ॥ अनुबन्धे यथाव्याधि प्रधतक
ु वीतं कालधवत् ।
◦ (अ.हृ. उ. 2/23-26)
◦ सोिन धचधकत्सा =
◦ िात्री एवं बालक को शीघ्र वमन कराने तथा पेयाधद क्रम से संसजवन कमव कराने का धनदेश
है।
◦ शमन धचधकत्सा
◦ 1. वचाधदगण तथा धनशाधदगण हररद्राद
◦ 2. हररद्राधद गण की औिधियों का किाय
◦ 3. पाठाधद गण की औिधियों का किाय 4. जम्बु, आम्र, धतन्दुक, कधपत्थपत्र क्वाथ
◦ 5. अधतधविा (पाठ भेद से धपपप्ली), पाठा, क
ु टकी,
◦ मुस्ता, एवं क
ु ष्ठ का क्वाथ
◦ 6. धबल्वमज्जा (धबल्वभङ्गस्य)
◦ लक्षणों क
े अनुसार धचधकत्सा
◦ अनुिन्धे च यथणाव्यणापधं प्रपतक
ु र्ीत
◦ स्तन्यदोिहर क्वाथ:-
◦ 1. िणािणा, शुण्ठी, र्ुड
ू ची, पकरणातपतक्त, क
ु टकी, देर्दणारु, सणाररर्णा, मोथणा, मूर्णाव और इन्द्रयर्
◦ 2. रणास्नणा, पप्रयङ् र्ु, यर्णानी, िणािणा, तेजिल, िुननवर्णा, एर्ं र्षपिकणाली क्वणाथ, जम्बु, आम्र, पतन्दुक एर्ं कपित्थित्र क्वणाथ
◦ क्षीरालसक नाशक प्रमुख योगाः
◦ 1. क
ु मार कल्याण रस
◦ 2. बालाक
व रस
◦ 3. बालचतुभवद्र चूणव
◦ 4. बालरोगान्तक 5. क
ु टज धबल्व पानक
◦ 6. मुस्ताधद चूणव
◦ 7. बालयक
ृ दरर लौह
◦ 8. मण्ड
ू रभस्म
◦ 9. प्रवालभस्म
◦ 10. वसन्तमालती रस
Gastroenteritis
◦ The inflammation of gastrointestinal tract manifested combination of diarrhea, as vomiting,
abdominal pain and cramping.
◦ Etiology:
◦ > Route : Feco-oral
◦ CausativeOrganism: Enteropathogens Shiegella,
Enterohemorrhagic E.coli,
Campylobacter jejuni, Rota virus ,Giardia lamblia ,
cryptosporidium parum, entamoeba histolytica
Clinical features
◦ Acute onset:Nausea, Vomiting with Fever
◦ (within 6 hours)
◦ Abdominal cramps
◦ Watery diarrhea (within 8-72hrs)
◦ Weight loss
◦ Malaise
◦ Lethargy
◦ Irritability
◦ Altered frequency of feeding and thirst.
◦ Extra intestinal Manifestation –
◦ > Urinary tract infection & Vulvovaginitis
◦ > Endocarditis, Osteomyelitis, Meningitis
◦ Pneumonia, Hepatitis, Peritonitis, IgA nephropathy, Reactive arthritis, Septic thrombophlebitis
◦ Complications:
◦ ➤ Dehydration
◦ Malnutrition
◦ Secondary infection
◦ ▷ Micronutrient (Fe & Zn) deficiencies
◦Prevention
◦ Maintenance of proper hygiene
◦ Vaccination: Vaccine against Rotavirus
◦ Treatment
◦ Oral rehydration therapy
◦ Zinc supplementation
◦ Probiotics
◦ Antimicrobial therapy
क
ु क
ू णक:
◦ क
ु क
ू णक नेत्रगत व्याधि है परन्तु धनधमत्त क
े दृधष्ट से धवधभन्न आचायों क
े मत धनम्न प्रकार से है-
◦ आचायव सुश्रुत क
े अनुसार
◦ > स्तन्य प्रकोप, धत्रदोि, रक्तजन्य एवं वर्त्वगत व्याधि
◦ स्तन्यप्रकोपकफमारुतधपत्तरक्तैबावलाधक्षवर्त्वभव एव क
ु क
ू णकोऽन्याः ।
◦ (सु.उ.19/9)
◦ > आचायव वाग्भटद्वय क
े अनुसार दन्तोत्पधत्त धनधमत्त
◦ क
ु क
ू णकाः धशशोरेव दन्तोत्पधत्तधनधमत्तजाः ।
◦ (अ.सं.उ. 11/24) (अ.हृ. उ. 8/19)
◦ > आचणायव हणारीत क
े अनुसणार
◦ क्षणारदुग्ध िणानजन्य
◦ चक्षुरोर्ि कण्ड
ू ि क्षतश्लेष्मणार्स्त्रणापर्तणा । संक्लेदयुक्तं नणासणास्यं जणायते क्षणारदुग्धक
े
पनदणान
◦ यदा माता क
ु मारस्य मिुराधण धनिेवते। मत्स्यं मांसं पयाः शाक
ं नवनीतं तथा दधि ॥
◦ सुरासवं धपष्टमयं धतलधपष्टाम्लकाधिकम् । अधभष्यन्दीधन सवावधण काले काले धनिेवते ॥ भुक्त्वा भुक्त्वा धदवा शेते धवसंज्ञा च धवबुध्यते । (का.द्धख)
◦ माता क
े द्वारा सेधवत धनदानाः मिुर द्रव्य, मछली, मांस, दुग्ध, शाक, नवनीत, दधि, सुरा, आसव, माि एवं धतल धपष्ट पदाथव, अम्ल कांजी, अधभष्यन्दी द्रव्य का धनत्य सेवन तथा भोजनोपरान्त धदवास्वप्न, लवण एवं अम्ल रस आधद क
े अधिक सेवन से स्तन्य दू धित हो जाता है।
◦ संप्राद्धि
◦ माता क
े द्वारा धनदान सेवन
¥
दोि प्रकोप
¥
क्षीरवाधह स्रोतसों में द्धस्त्न्थत
¥
दोिों द्वारा मागाववरण
¥
स्तन्य दुधष्ट
¥
धशशु द्वारा क
े वल दुग्धपान (अन्न सेवन क
े अभाव में)
¥
आक्षेप तथा उष्णता से कफ, रक्त प्रकोप
¥
क
ु क
ू णक (नेत्ररोग)
लक्षण :
◦ अभीक्ष्णमत्रं स्रवते (आाँखों से धनरन्तर अश्रुस्राव)
◦ न च क्षीवधत (छींक न आना)
◦ > दुमवनााः (मन अप्रसन्न रहना)
◦ > नाधसकां पररमृद्नाधत कणं वा (कष्टपूववक नाधसका अथवा कणव को क
ु रेदना)
◦ > ललाटमधक्षक
ू टं च नासां च पररमदवधत (ललाट, अधक्षक
ू ट तथा नासा का मदवन)
◦ नेत्रे कण्ड
ू यतेऽभीक्ष्णं पाधणना चाप्यतीव (अत्यधिक नेत्र कण्ड
ू तथा हाथों से रगड़ना)
◦ > प्रकाशं न सहते (प्रकाश सहन न कर पाना )
◦ > अश्रुचास्य प्रवतवते (अश्रु प्रवृधत्त)
◦ वर्त्वधनश्वयथुश्चास्य (वर्त्वगत शोथ )
पचपकत्सणा :
◦ आचणायव कणाश्यि क
े अनुसणार :
◦ िात्रीं तु तस्य वामयेद् युक्तं चैव धवपाचयेत् ॥ तस्या वान्तधवररक्ताया
धनदुवह्य च स्तनावुभौ । भोजनाधन च सवावधण यथायुक्तं प्रदापयेत् ॥
पथ्यं भुिीत खादेत धवपरीतं च वजवयेत्। प्रयता शुिवत्रा
स्यादद्धिष्टाऽमधलना तथा ॥ (का. द्धख. 13/12-14)
◦ िात्रीाः युद्धक्तपूववक शोिन (वमन धवरेचन), दोिों का पाचन, स्तन्य धनहवरण, पथ्य सेवन, अपथ्य
त्याग, धनमवल वत्र िारण, स्वच्छ् तथा िेश रधहत धनवास।
◦
◦ → धशशुाः स्त्न्थाधनक धक्रया (जलौका अवचारण, अिन, वधतव आधद)
◦ तं वामयेत्तु मिुसैन्धवसम्प्रयुक्तैाः पीतं पयाः खलु फलैाः खरमिरीणाम्॥ स्याद्धत्पप्पलीललीलवणमाधक्षकसंयुतैवाव नैनं
वमन्तमधप
◦ वामधयतुं यतेत।
◦ दत्त्वा वचामशनदुग्धभुजे प्रयोज्यमूर्ध्वं तताः फलयुतं वमनं धवधिज्ञैाः ॥(सु.उ. 19/11-12)
◦ िात्री का वमन एवं धवरेचनाः अजा दुग्ध, मिु, सैन्धव, अपामागव चूणव अथवा धपप्पलीलली तदोपरान्त धवरेचन
◦ > दोिों का पाचन तदोपरान्त स्तन्य धनहवरण, पथ्य सेवन तथा अपथ्य त्याग, धनमवल वत्र िारण, स्वच्छ् एवं िेश रधहत धनवास ।
◦ > धशशु में वमन (आचायव सुश्रुत क
े अनुसार) : संशोिन में मात्र वमन कमव कहा है।
◦ धशशु को प्रथम माता (िात्री) अथवा अजा दुग्ध धपलाकर शहद क
े साथ सैन्धव लवण चूणव और अपामागव बीज का चूणव चटाकर वमन
कराना चाधहए अथवा धपप्पलीलली, सैन्धव लवण का चूणव और शहद में अपामागव चूणव धमलाकर वमन करायें।
◦ यधद वमन धशशु को स्वयं हो रहा हो तो वमन कराना आवश्यक नहीं है।
◦ क्षीरान्नाद में वचा चूणव दू ि या जल से वमन करायें
◦ अन्नाद में मदनफल चूणव क
े द्वारा वमन करायें।
* रक्त मोक्षण (जलौका) अथवा लेखन ( पत्र) क
े उपरान्त प्रधतसारण (धत्रकटु चूणव एवं मिु )
◦ > पररिेकाः एरण्ड, रोपहि, त्वक्क्क्षीरी तथणा र्रुर् क्वणाथ से।
◦ आश्च्योतनः
◦ 1. पनम्ब एर्ं र्ुड
ू ची कल्क / क्वणाथ अथर्णा पत्रफलणा कल्क/क्वणाथ पसद्ध घषत
◦ 2. फपर्ज्झक तथणा तुलसी ित्र रस, जणातीित्र रस, प्रसन्नणा, मण्ड तथणा मधुयष्टी युक्त अथर्णा शीतल जल से, भषङ्गरणाजित्र
तथणा पिल्व पनयणावस एर्ं ित्र स्वरस एर्ं सुरणामण्ड पिष्ट से 2 यणा 3 पदन तक आश्च्योतन करणाएँ ।
◦अिनाःक
ु क
ू र्क में प्रयुक्त होने र्णाले अञ्जन कणा पनमणार्व-
◦ 1. समभणार् मनःपशलणा, मररच, शङ
् खनणापभ, रसणाञ्जणान, सैन्धर्, र्ुड़, मधु से ।
◦ 2. मधुरसणा (मूर्णाव), मधुक (मुलेिी) एर्ं आम्रत्वक जलणाकर अञ्जन िनणायें
◦ 5. पनम्बित्र, मधुयष्टी, दणारूहररद्रणा, तणाम्रचूर्व यणा भस्म एर्ं लोध्र एकत्र कर, चूर्वकर समणान भणार् अञ्जन
पमलणाकर जल क
े सणाथ खरल कर र्ुपटकणाञ्जन िनणायें।
◦ > र्पतवः हररद्रणाद्वय, लोध्र, मधुयष्टी, क
ु टकी, पनम्बित्र, एर्ं तणाम्र भस्म समभणार् को जलपिष्ट कर र्पतव
िनणायें ।
: अपहिूतनणा :
◦ अपहिूतनणा कणा र्र्वन आचणायव सुिुत ने पचपकत्सणास्थणान क
े क्षुद्ररोर्पचपकत्सणा में तथणा आचणायव र्णाग्भटद्वय
(अष्टणाङ्गहृदयकणार एर्ं अष्टणाङ्गसङ् रहकणार) ने उिरस्थणानम् क
े िणालणामयप्रपतिेधणाध्यणाय में पकयणा है।
◦ इसकी र्र्नणा क्षुद्ररोर् क
े अन्तर्वत की र्यी है तथणा यह र्ुदप्रदेश में होने र्णाली व्यणापध है ।
◦ धनदान- सम्प्राद्धि – लक्षण
◦ र्ुदणा में मल क
े उिलेि अथर्णा स्वेद क
े रह जणाने से, रक्त एर्ं कफजन्य तणाम्र र्र्व कणा कण्ड
ू युक्त व्रर् हो जणातणा है। यह
उिद्रर् िहुल होतणा है। क
ु छ आचणायव इसे मणातषकणा दोि और क
ु छ अन्य इसे अपहिूतनणा िषष्टणारु, र्ुदक
ु ट्ट एर्ं अनणामक
कहते हैं।
◦ मणाधर् पनदणान ने भी मल एर्ं मूत्र से पलप्त र्ुदणा, अथर्णा स्वेदयुक्त होने िर भी प्रक्षणालन क
े अभणार् में रक्त एर्ं कफजन्य
कण्ड
ू स्रणार् एर्ं स्फोट युक्त व्रर् क
े उत्पपत को अपहिूतनणा कहणा है।
.‘मधुकोश एर्ं भोज ने दुष्टस्तन्य क
े िणान एर्ं मल क
े अप्रक्षणालन से दोिों क
े अनुसणार कण्ड
ू , दणाह, एर्ं रुजणा युक्त
िीपडकणाओं की उत्पपि को अपहिूतनणा कहणा है।
पचपकत्सणा :
◦ तत्र संशोिनैाः पूवं िात्रीस्तन्यं धवशोियेत् । धत्रफलाखधदरक्वाथैव्रणवणानां
क्षालनं धहतम् ॥ (यो.र.क्षु.रो. पृ. 285)
◦ सववप्रथम औिधियों द्वारा िात्री क
े स्तन्य का शोिन, तदुपरान्त समभाग हरीतकी, धवभीतकी,
आमलकी एव खधदर से धनधमवत क्वाथ द्वारा व्रणण का प्रक्षालन करना चाधहए।
◦ 1. िात्री स्तन्य का धपत्त – श्लेष्महर द्रव्यों से शोिन एवं किाय पान।
◦ 2. पटोल पत्र, धत्रफला, रसािन में धसि घृत का पान क
ृ च्छ्
र साध्य अधहपूतना को भी नष्ट करता है।
◦ 3 मिु, रसांजन युक्त अधतशीतल द्रव्य का पान एवं लेपन ।
◦ 4. धत्रफला, बेर, खधदर क
े त्वक
् क
े क्वाथ से पररिेक
◦ 5. कासीस, गोरोचन, तुत्थ, हरताल, रसािान को कांजी में (सैन्धव लवण क
े साथ) पीसकर लेपन
अथवा बारीक चूणव का व्रणण पर अवचूणवन ।
Napkin Rashes ::
◦ Diaper Rashes
◦ Diaper Rashes are most commonly caused by Candida (fungus, yeast). It is very
common in infants and is more likely to occur when not kept clean and dry ..
◦ Intake of antibiotics frequently, frequent stool, acidic stool, ammonia in the urine,
too tight diaper, reaction to soaps and other products are the other causes.
◦ ➤ Bright red rash with scaly areas on the scrotum & penis in boys and labia &
vagina in girls.
◦ Pimples, blisters, ulcers, large bumps, or sores filled with pus
◦ KOH test confirms Candida.
◦ The best treatment is to keep the diaper area clean and dry.
◦ Zinc oxide or petroleum jelly based products can be applied topically.
◦ Nystatin, Miconazole, Clotrimazole, and Ketoconazole can be applied.
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Disorder due to vitiated milk (BAMS)

  • 2. दुष्ट स्तन्यपानजन्य व्याधियााँ(disorder due to vit milk) Submitted to Submitted by Prince Kumar Chaudhary III professional (Batch-2019) Roll no.- 422191110038 Dr. Surya Prakash Chaudhary (HOD Pediatrics)
  • 3. वात दू धित स्त्न्य . क ृ शता, स्वादहाधन, क ृ च्छ् र तापूववक वृद्धि बात दू धित स्तन्य - बिमल, मूत्र, अपानवात अवरोि, बाधतक धशरोरोग, पीनस पित दू पित स्तन्य शरीर से अपत स्वेदोत्पपि, अपततष्णा, मलभेद, शरीर सर्वदणा उ् िणाण्डु एर्ं कणामलणा पिि दू पित स्तन्य र्मन, क ुं थन, ललणासरणार्, कफिूर्व नणासणापद स्रोत, पनद्रणा, क्लम, श्वणास, कणास, प्रसेक, तमक कफ दू पित स्तन्य - लणालणालु, मुख और नेत्र शोधयुक्त, आचणायव चरक ने दुष्ट स्तन्यिणान जन्य लक्षर् एर्ं व्यणापधयों कणा र्र्वन अष्टक्षीरदोि क े अन्तर्वत पकयणा है। (च.पि. 30/237-250)
  • 4. ◦ आचायव काश्यप क े अनुसार पटुक्षीर (लवणरस युक्त दुग्ध) क े सेवन से पङ् गुता, जड़ता एवं मूकता उत्पन्न होता है।
  • 5. Lactose intolerance ◦ After consumption as diet, lactose is hydrolyzed into glucose and galactose by lactase enzyme in small intestine. ◦ ◦ > Lactase enzyme is located in the brush border of the small intestinal mucosa. Lactose intolerance is a condition that manifests with characteristic signs and symptoms upon consumption of food substances containing lactose (due to lactase deficiency) ◦ > Lactose is present in milk and dairy products. Lactose intolerance is sometimes referred to as lactose malabsorption. ◦ ◦ ➤ Lactose intolerance is a common disease, ◦ ◦ it is rare in children less than 5 years age.
  • 6. There are four main causes of lactose deficiency 1= primary lactase deficiency [ लेक्टोज non-persistence( most common)] . It is a hereditary cause of lactase deficiency. . Gradual decline in lactase enzyme activity with increasing age.
  • 7. 2.Secondary lactase deficiency Due to injury to intestinal mucosa because of .Gastroenteritis .Celiac disease .Crohn disease .Ulcerative colitis > Chemotherapy .Antibiotics
  • 8. 3-Congenital Lactase deficiency (rare) ◦ Deficiency since birth due to autosomal recessive inheritance. ◦ ◦ It manifests in the newborn after ingestion of milk. ◦ ◦ 4-Developmental Lactase Dificiency ◦ It is seen in premature infants born at 28 to 37 weeks of gestation. ◦ ◦ Due to underdeveloped intestine of infant. ◦ ◦ The condition improves with increasing age.
  • 9. Pathophysiology ◦ Unabsorbed lactose within the bowel causes an influx of fluid into the bowel lumen resulting in osmotic diarrhea. ◦ ◦ Colonic bacteria ferment the unabsorbed lactose producing various gaseous (hydrogen, carbon dioxide, and methane). ◦ Lactoseget hydrolyzed into monosaccharides leading to additional influx of fluid within the lumen.
  • 10.
  • 11. Clinical features -- ◦ Manifestation of lactose intolerance within 1 to 2 hours after ingestion of milk containing ◦ (dairy) products. ◦ ➤ Diarrhea ◦ Abdominal bloating ◦ Abdominal Pain ◦ Nausea and vomiting ◦ Fullness ◦ Flatulence ◦ Headache, muscle pain, joint pain, mouth ulcers, urinary symptoms and loss of concentration (Less common).
  • 13. Laboratory tests ◦ 1-Hydrogen breath test: The test is positive if post lactose breath hydrogen value rise greater than 20 ppm compared with baseline 2- stool acidity test : Stool pH get lowered due to fermentation of unabsorbed lactose into lactic acid , 3- lactose tolerance test : Failure of blood glucose levels to rise even after ingestion of lactose containing liquid indicate lactose intolerance
  • 14. ◦ 4- small bowel biopsy ( rarely performed) Indicated to rule out secondary cause of lactose intolerance. Management € ..Dietary Modification .Lactase containing milk products and calcium supplements .Restriction of intake of lactose containing products like soft and processed cheese, buttermilk, cream, milk, ice cream, sour cream, whey, yogurt, mashed potatoes, butter, margarine. ..Lactase Supplements
  • 15. Prognosis ◦ Lactose intolerance has an excellent prognosis. Most patients have a considerable improvement in signs and symptoms with dietary modification alone.
  • 16. • क्षीरालशक : ◦ क्षीरणालसक दो शब्ों से पमलकर िनणा है (क्षीर + अलसक) । आचणायव चरक ने अलसक रोर् कणा र्र्वन आमजन्य व्यणापध क े अन्तर्वत पकयणा है, पजसकणा लक्षर् है- “प्रयणापत न उर्ध्वम न अधः स्थ’ अथणावत् दोिों कणा उर्ध्व तथणा अधः मणार्व से न पनकल िणानणा तथणा “आमणाशये अलसीभूतस्ते” अथणावत् आमणाशय में दोिों कणा अलसीभूत होनणा। क्षीरणालसक शब् व्यणापध क े प्रसंर् में सर्वप्रथम आचणायव र्णाग्भट द्वणारणा प्रयुक्त हुआ है। जो सर्वथणा अलसक व्यणापध से पभन्न है। ◦ धनदान /संप्राद्धि= ◦ धणात्री द्वणारणा पत्रदोिकणारक आहणार कणा सेर्न ◦ ¥ ◦ पत्रदोि प्रकोि ◦ ¥ ◦ एक सणाथ सभी दोिों कणा र्क्ष प्रदेश में आपित क्षीरर्ह रसणायपनयों में प्रर्ेश ◦ ¥ ◦ दुष्ट स्तन्य कणा पशशु द्वणारणा िणान ◦ ¥ ◦ क्षीरणालसक
  • 17. लक्षण : ◦ स्तन्ये धत्रदोिमधलने दुगवन्ध्यामं जलोपमम् । धवबिमच्छ्ं धवद्धच्छ्न्नं फ े धनलं चोपवेश्यते ॥ ◦ शक ृ न्नानाव्यथावणं मूत्रं पीतं धसतं घनम् । ज्वरारोचकतृट्छधदवशुष्कोद्गार धवजृद्धिकााः ॥ अङ्गभङ्गोऽङ्गधवक्षेपाः क ू जनं वेपथुर्भ्वमाः । घ्राणधक्षमुखपाकाद्या जायन्तेऽन्येऽधप तं गदम्॥ क्षीरालसकधमत्याहुरत्ययं चाधतदारुणम् ॥ ◦ (अ. हृ. उ. 2/20-23) ◦ मल:- आम, दुगवन्धयुक्त, जल सदृश द्रव रूप रुक- रुक कर, धनमवल धवद्धच्छ्न्न एवं झागदार, नाना प्रकार क े रंग एं व वेदना से युक्त होता है। ◦ ◦ मूत्र:- पीला, श्वेत एवं घन होता है। ज्वर, अरोचक, तृष्णा, वमन, शुष्कोद्गार, जृिा, अङ्गभङ्ग, धवक्षेप, आंत्र क ू जन, कम्पन्न, र्भ्म, नाधसका, अधक्ष, मुख पाक आधद अनेक रोग ◦ > दृधष्ट उपप्लव, स्वरसाद
  • 18. सणाध्यणासणाध्यतणा: आत्यपयक, दणारुर्, अपतकपिन एर्ं दुपिपक्स्य ◦धचधकत्सा : ◦ तत्राशु िात्रींबालं च वमनेनोपपादयेत् ॥ धवधहतायां च संसर्ग्यो वचाधदं योजयेद्गणम् । धनशाधदं वाऽथवा माद्रीपाठाधतक्ताघनामयान् । पाठा शुण्ठ्यमृताधतक्तधतक्तादेवाह्वसाररवााः। समुस्तमूवेन्द्रयवााः स्तन्यदोिहरााः परम् ॥ अनुबन्धे यथाव्याधि प्रधतक ु वीतं कालधवत् । ◦ (अ.हृ. उ. 2/23-26) ◦ सोिन धचधकत्सा = ◦ िात्री एवं बालक को शीघ्र वमन कराने तथा पेयाधद क्रम से संसजवन कमव कराने का धनदेश है।
  • 19. ◦ शमन धचधकत्सा ◦ 1. वचाधदगण तथा धनशाधदगण हररद्राद ◦ 2. हररद्राधद गण की औिधियों का किाय ◦ 3. पाठाधद गण की औिधियों का किाय 4. जम्बु, आम्र, धतन्दुक, कधपत्थपत्र क्वाथ ◦ 5. अधतधविा (पाठ भेद से धपपप्ली), पाठा, क ु टकी, ◦ मुस्ता, एवं क ु ष्ठ का क्वाथ ◦ 6. धबल्वमज्जा (धबल्वभङ्गस्य) ◦ लक्षणों क े अनुसार धचधकत्सा ◦ अनुिन्धे च यथणाव्यणापधं प्रपतक ु र्ीत ◦ स्तन्यदोिहर क्वाथ:- ◦ 1. िणािणा, शुण्ठी, र्ुड ू ची, पकरणातपतक्त, क ु टकी, देर्दणारु, सणाररर्णा, मोथणा, मूर्णाव और इन्द्रयर् ◦ 2. रणास्नणा, पप्रयङ् र्ु, यर्णानी, िणािणा, तेजिल, िुननवर्णा, एर्ं र्षपिकणाली क्वणाथ, जम्बु, आम्र, पतन्दुक एर्ं कपित्थित्र क्वणाथ ◦ क्षीरालसक नाशक प्रमुख योगाः ◦ 1. क ु मार कल्याण रस ◦ 2. बालाक व रस ◦ 3. बालचतुभवद्र चूणव ◦ 4. बालरोगान्तक 5. क ु टज धबल्व पानक ◦ 6. मुस्ताधद चूणव ◦ 7. बालयक ृ दरर लौह ◦ 8. मण्ड ू रभस्म ◦ 9. प्रवालभस्म ◦ 10. वसन्तमालती रस
  • 20. Gastroenteritis ◦ The inflammation of gastrointestinal tract manifested combination of diarrhea, as vomiting, abdominal pain and cramping. ◦ Etiology: ◦ > Route : Feco-oral ◦ CausativeOrganism: Enteropathogens Shiegella, Enterohemorrhagic E.coli, Campylobacter jejuni, Rota virus ,Giardia lamblia , cryptosporidium parum, entamoeba histolytica
  • 21. Clinical features ◦ Acute onset:Nausea, Vomiting with Fever ◦ (within 6 hours) ◦ Abdominal cramps ◦ Watery diarrhea (within 8-72hrs) ◦ Weight loss ◦ Malaise ◦ Lethargy ◦ Irritability ◦ Altered frequency of feeding and thirst. ◦ Extra intestinal Manifestation – ◦ > Urinary tract infection & Vulvovaginitis ◦ > Endocarditis, Osteomyelitis, Meningitis ◦ Pneumonia, Hepatitis, Peritonitis, IgA nephropathy, Reactive arthritis, Septic thrombophlebitis
  • 22. ◦ Complications: ◦ ➤ Dehydration ◦ Malnutrition ◦ Secondary infection ◦ ▷ Micronutrient (Fe & Zn) deficiencies ◦Prevention ◦ Maintenance of proper hygiene ◦ Vaccination: Vaccine against Rotavirus ◦ Treatment ◦ Oral rehydration therapy ◦ Zinc supplementation ◦ Probiotics ◦ Antimicrobial therapy
  • 23. क ु क ू णक: ◦ क ु क ू णक नेत्रगत व्याधि है परन्तु धनधमत्त क े दृधष्ट से धवधभन्न आचायों क े मत धनम्न प्रकार से है- ◦ आचायव सुश्रुत क े अनुसार ◦ > स्तन्य प्रकोप, धत्रदोि, रक्तजन्य एवं वर्त्वगत व्याधि ◦ स्तन्यप्रकोपकफमारुतधपत्तरक्तैबावलाधक्षवर्त्वभव एव क ु क ू णकोऽन्याः । ◦ (सु.उ.19/9) ◦ > आचायव वाग्भटद्वय क े अनुसार दन्तोत्पधत्त धनधमत्त ◦ क ु क ू णकाः धशशोरेव दन्तोत्पधत्तधनधमत्तजाः । ◦ (अ.सं.उ. 11/24) (अ.हृ. उ. 8/19) ◦ > आचणायव हणारीत क े अनुसणार ◦ क्षणारदुग्ध िणानजन्य ◦ चक्षुरोर्ि कण्ड ू ि क्षतश्लेष्मणार्स्त्रणापर्तणा । संक्लेदयुक्तं नणासणास्यं जणायते क्षणारदुग्धक े
  • 24. पनदणान ◦ यदा माता क ु मारस्य मिुराधण धनिेवते। मत्स्यं मांसं पयाः शाक ं नवनीतं तथा दधि ॥ ◦ सुरासवं धपष्टमयं धतलधपष्टाम्लकाधिकम् । अधभष्यन्दीधन सवावधण काले काले धनिेवते ॥ भुक्त्वा भुक्त्वा धदवा शेते धवसंज्ञा च धवबुध्यते । (का.द्धख) ◦ माता क े द्वारा सेधवत धनदानाः मिुर द्रव्य, मछली, मांस, दुग्ध, शाक, नवनीत, दधि, सुरा, आसव, माि एवं धतल धपष्ट पदाथव, अम्ल कांजी, अधभष्यन्दी द्रव्य का धनत्य सेवन तथा भोजनोपरान्त धदवास्वप्न, लवण एवं अम्ल रस आधद क े अधिक सेवन से स्तन्य दू धित हो जाता है। ◦ संप्राद्धि ◦ माता क े द्वारा धनदान सेवन ¥ दोि प्रकोप ¥ क्षीरवाधह स्रोतसों में द्धस्त्न्थत ¥ दोिों द्वारा मागाववरण ¥ स्तन्य दुधष्ट ¥ धशशु द्वारा क े वल दुग्धपान (अन्न सेवन क े अभाव में) ¥ आक्षेप तथा उष्णता से कफ, रक्त प्रकोप ¥ क ु क ू णक (नेत्ररोग)
  • 25. लक्षण : ◦ अभीक्ष्णमत्रं स्रवते (आाँखों से धनरन्तर अश्रुस्राव) ◦ न च क्षीवधत (छींक न आना) ◦ > दुमवनााः (मन अप्रसन्न रहना) ◦ > नाधसकां पररमृद्नाधत कणं वा (कष्टपूववक नाधसका अथवा कणव को क ु रेदना) ◦ > ललाटमधक्षक ू टं च नासां च पररमदवधत (ललाट, अधक्षक ू ट तथा नासा का मदवन) ◦ नेत्रे कण्ड ू यतेऽभीक्ष्णं पाधणना चाप्यतीव (अत्यधिक नेत्र कण्ड ू तथा हाथों से रगड़ना) ◦ > प्रकाशं न सहते (प्रकाश सहन न कर पाना ) ◦ > अश्रुचास्य प्रवतवते (अश्रु प्रवृधत्त) ◦ वर्त्वधनश्वयथुश्चास्य (वर्त्वगत शोथ )
  • 26. पचपकत्सणा : ◦ आचणायव कणाश्यि क े अनुसणार : ◦ िात्रीं तु तस्य वामयेद् युक्तं चैव धवपाचयेत् ॥ तस्या वान्तधवररक्ताया धनदुवह्य च स्तनावुभौ । भोजनाधन च सवावधण यथायुक्तं प्रदापयेत् ॥ पथ्यं भुिीत खादेत धवपरीतं च वजवयेत्। प्रयता शुिवत्रा स्यादद्धिष्टाऽमधलना तथा ॥ (का. द्धख. 13/12-14) ◦ िात्रीाः युद्धक्तपूववक शोिन (वमन धवरेचन), दोिों का पाचन, स्तन्य धनहवरण, पथ्य सेवन, अपथ्य त्याग, धनमवल वत्र िारण, स्वच्छ् तथा िेश रधहत धनवास। ◦ ◦ → धशशुाः स्त्न्थाधनक धक्रया (जलौका अवचारण, अिन, वधतव आधद)
  • 27. ◦ तं वामयेत्तु मिुसैन्धवसम्प्रयुक्तैाः पीतं पयाः खलु फलैाः खरमिरीणाम्॥ स्याद्धत्पप्पलीललीलवणमाधक्षकसंयुतैवाव नैनं वमन्तमधप ◦ वामधयतुं यतेत। ◦ दत्त्वा वचामशनदुग्धभुजे प्रयोज्यमूर्ध्वं तताः फलयुतं वमनं धवधिज्ञैाः ॥(सु.उ. 19/11-12) ◦ िात्री का वमन एवं धवरेचनाः अजा दुग्ध, मिु, सैन्धव, अपामागव चूणव अथवा धपप्पलीलली तदोपरान्त धवरेचन ◦ > दोिों का पाचन तदोपरान्त स्तन्य धनहवरण, पथ्य सेवन तथा अपथ्य त्याग, धनमवल वत्र िारण, स्वच्छ् एवं िेश रधहत धनवास । ◦ > धशशु में वमन (आचायव सुश्रुत क े अनुसार) : संशोिन में मात्र वमन कमव कहा है। ◦ धशशु को प्रथम माता (िात्री) अथवा अजा दुग्ध धपलाकर शहद क े साथ सैन्धव लवण चूणव और अपामागव बीज का चूणव चटाकर वमन कराना चाधहए अथवा धपप्पलीलली, सैन्धव लवण का चूणव और शहद में अपामागव चूणव धमलाकर वमन करायें। ◦ यधद वमन धशशु को स्वयं हो रहा हो तो वमन कराना आवश्यक नहीं है। ◦ क्षीरान्नाद में वचा चूणव दू ि या जल से वमन करायें ◦ अन्नाद में मदनफल चूणव क े द्वारा वमन करायें। * रक्त मोक्षण (जलौका) अथवा लेखन ( पत्र) क े उपरान्त प्रधतसारण (धत्रकटु चूणव एवं मिु )
  • 28. ◦ > पररिेकाः एरण्ड, रोपहि, त्वक्क्क्षीरी तथणा र्रुर् क्वणाथ से। ◦ आश्च्योतनः ◦ 1. पनम्ब एर्ं र्ुड ू ची कल्क / क्वणाथ अथर्णा पत्रफलणा कल्क/क्वणाथ पसद्ध घषत ◦ 2. फपर्ज्झक तथणा तुलसी ित्र रस, जणातीित्र रस, प्रसन्नणा, मण्ड तथणा मधुयष्टी युक्त अथर्णा शीतल जल से, भषङ्गरणाजित्र तथणा पिल्व पनयणावस एर्ं ित्र स्वरस एर्ं सुरणामण्ड पिष्ट से 2 यणा 3 पदन तक आश्च्योतन करणाएँ । ◦अिनाःक ु क ू र्क में प्रयुक्त होने र्णाले अञ्जन कणा पनमणार्व- ◦ 1. समभणार् मनःपशलणा, मररच, शङ ् खनणापभ, रसणाञ्जणान, सैन्धर्, र्ुड़, मधु से । ◦ 2. मधुरसणा (मूर्णाव), मधुक (मुलेिी) एर्ं आम्रत्वक जलणाकर अञ्जन िनणायें ◦ 5. पनम्बित्र, मधुयष्टी, दणारूहररद्रणा, तणाम्रचूर्व यणा भस्म एर्ं लोध्र एकत्र कर, चूर्वकर समणान भणार् अञ्जन पमलणाकर जल क े सणाथ खरल कर र्ुपटकणाञ्जन िनणायें। ◦ > र्पतवः हररद्रणाद्वय, लोध्र, मधुयष्टी, क ु टकी, पनम्बित्र, एर्ं तणाम्र भस्म समभणार् को जलपिष्ट कर र्पतव िनणायें ।
  • 29. : अपहिूतनणा : ◦ अपहिूतनणा कणा र्र्वन आचणायव सुिुत ने पचपकत्सणास्थणान क े क्षुद्ररोर्पचपकत्सणा में तथणा आचणायव र्णाग्भटद्वय (अष्टणाङ्गहृदयकणार एर्ं अष्टणाङ्गसङ् रहकणार) ने उिरस्थणानम् क े िणालणामयप्रपतिेधणाध्यणाय में पकयणा है। ◦ इसकी र्र्नणा क्षुद्ररोर् क े अन्तर्वत की र्यी है तथणा यह र्ुदप्रदेश में होने र्णाली व्यणापध है । ◦ धनदान- सम्प्राद्धि – लक्षण ◦ र्ुदणा में मल क े उिलेि अथर्णा स्वेद क े रह जणाने से, रक्त एर्ं कफजन्य तणाम्र र्र्व कणा कण्ड ू युक्त व्रर् हो जणातणा है। यह उिद्रर् िहुल होतणा है। क ु छ आचणायव इसे मणातषकणा दोि और क ु छ अन्य इसे अपहिूतनणा िषष्टणारु, र्ुदक ु ट्ट एर्ं अनणामक कहते हैं। ◦ मणाधर् पनदणान ने भी मल एर्ं मूत्र से पलप्त र्ुदणा, अथर्णा स्वेदयुक्त होने िर भी प्रक्षणालन क े अभणार् में रक्त एर्ं कफजन्य कण्ड ू स्रणार् एर्ं स्फोट युक्त व्रर् क े उत्पपत को अपहिूतनणा कहणा है। .‘मधुकोश एर्ं भोज ने दुष्टस्तन्य क े िणान एर्ं मल क े अप्रक्षणालन से दोिों क े अनुसणार कण्ड ू , दणाह, एर्ं रुजणा युक्त िीपडकणाओं की उत्पपि को अपहिूतनणा कहणा है।
  • 30. पचपकत्सणा : ◦ तत्र संशोिनैाः पूवं िात्रीस्तन्यं धवशोियेत् । धत्रफलाखधदरक्वाथैव्रणवणानां क्षालनं धहतम् ॥ (यो.र.क्षु.रो. पृ. 285) ◦ सववप्रथम औिधियों द्वारा िात्री क े स्तन्य का शोिन, तदुपरान्त समभाग हरीतकी, धवभीतकी, आमलकी एव खधदर से धनधमवत क्वाथ द्वारा व्रणण का प्रक्षालन करना चाधहए। ◦ 1. िात्री स्तन्य का धपत्त – श्लेष्महर द्रव्यों से शोिन एवं किाय पान। ◦ 2. पटोल पत्र, धत्रफला, रसािन में धसि घृत का पान क ृ च्छ् र साध्य अधहपूतना को भी नष्ट करता है। ◦ 3 मिु, रसांजन युक्त अधतशीतल द्रव्य का पान एवं लेपन । ◦ 4. धत्रफला, बेर, खधदर क े त्वक ् क े क्वाथ से पररिेक ◦ 5. कासीस, गोरोचन, तुत्थ, हरताल, रसािान को कांजी में (सैन्धव लवण क े साथ) पीसकर लेपन अथवा बारीक चूणव का व्रणण पर अवचूणवन ।
  • 31. Napkin Rashes :: ◦ Diaper Rashes ◦ Diaper Rashes are most commonly caused by Candida (fungus, yeast). It is very common in infants and is more likely to occur when not kept clean and dry .. ◦ Intake of antibiotics frequently, frequent stool, acidic stool, ammonia in the urine, too tight diaper, reaction to soaps and other products are the other causes. ◦ ➤ Bright red rash with scaly areas on the scrotum & penis in boys and labia & vagina in girls. ◦ Pimples, blisters, ulcers, large bumps, or sores filled with pus ◦ KOH test confirms Candida. ◦ The best treatment is to keep the diaper area clean and dry. ◦ Zinc oxide or petroleum jelly based products can be applied topically. ◦ Nystatin, Miconazole, Clotrimazole, and Ketoconazole can be applied.
  • 32.