3. 3
बफक्षस्भल्राहहयमहभाननयमहीभ
भैं अनत भेहयफान औय दमाऱु अल्राह के नाभ से आयम्ब कयता हॉ।
م باهلل وًعِذ ،ونستغفره ٌٍونستعي حنىده هلل احلىد إنن
ووي ،هل مضل فال اهلل يُده وي ،أعىانلا وسيئات ،أًفسٌا رشور
وبع ،هل َادي فال يضنلد:
हय प्रकाय की हम्द व सना (प्रशॊसा औय ग़ुणगान) के वर
अल्राह के नरए मोग्म है, हभ उसी की प्रशॊसा कयते हैं, उसी
से भदद भाॊगते औय उसी से ऺभा माचना कयते हैं, तथा हभ
अऩने नफ्स की फ़ुयाई औय अऩने फ़ुये काभों से अल्राह की
ऩनाह भें आते हैं, क्षजसे अल्राह तआरा हहदामत प्रदान कय
दे उसे कोई ऩथभ्रष्ट (ग़ुभयाह) कयने वारा नहीॊ, औय क्षजसे
4. 4
ग़ुभयाह कय दे उसे कोई हहदामत देने वारा नहीॊ। हम्द व
सना के फाद :
़़ु यआन का सॊक्षऺप्त ऩरयचम
◌ शाक्षददक अथम — ़़ु यआन का शाक्षददक अथम है
―ऩढ़ी जाने वारी ची़ि‖।
◌ ऩारयबाबषक अथम — इस्राभ की ऩरयबाषा भें
़़ु यआन उस ईशग्रॊथ को कहते हैं जो ईशग्रॊथों की
दीघमकारीन श्रॊखरा की अक्षन्तभ कड़ी के रूऩ भें
अवतरयत ह़ुआ। इसका अवतयण क्षजस शदद से श़ुरू
ह़ुआ, वह था – ―इ़या‖, मानी ――ऩढ़ो!‖‖। रगबग
1400 वषम से अनधक कार फीता , एक हदन के बी
5. 5
अन्तय बफना मह ग्रॊथ रगाताय ऩढ़ा जाता यहा है।
वतमभान म़ुग भें हकसी हदन- यात एक ऺण बी ऐसा
नहीॊ फीतता जफ बवश्व के हकसी न हकसी बाग भें
मह ऩढ़ा न जा यहा हो। इस धयातर ऩय हय सभम-
बफन्द़ु ऩय कहीॊ न कहीॊ नभा़ि अवश्म ऩढ़ी जा यही
होती है, औय नभा़ि भें ़़ु यआन का कोई अॊश ,
कोई बाग मा कोई छोटा- फड़ा अध्माम ऩढ़ना
अननवामम होता है। इसी प्रकाय कहीॊ न कहीॊ
़़ु यआन-ऩाठ (अथामत् इसका ऩठन- ऩाठन, नतरावत)
हय ऺण होता यहता है। मॉ मह ग्रॊथ ऩये बवश्व भें
सफसे अनधक ―ऩढ़ी जाने वारी ची़ि‖ है।
6. 6
◌ ऩरयचम— ईशग्रॊथ ़़ु यआन, फ़रयश्ता ―क्षजफयीर‖
के भाध्मभ से ऩैाम्फय भ़ुहम्भद (सल्रल्राह़ु अरैहह
व सल्रभ ) ऩय अयफ प्रामद्वीऩ के शहय भक्का से
नभरे ह़ुए ऩहाड़ी नसरनसरे के एक ऩहाड़ की ―हहया‖
नाभक ग़ुफ़ा भें अवतरयत होना आयॊब ह़ुआ क्षजसभें
आऩ (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) कई-कई हदन-
यात ध्मान-ऻान, नचन्तन-भनन (तहन्ऩुस) के नरए
वास हकमा कयते थे। ऩरयक्षस्थनत औय
आवश्मकताऩुसाय थोड़ा-थोड़ा कयके ह़ियत भ़ुहम्भद
(सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ) के ऩैाम्फयीम जीवन
भें, आऩ (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) के ननधन
से आठ हदन ऩहरे 31 भई 632 तक अवतरयत
7. 7
होता यहा। इसका ऩया अवतयणकार 7,95 9 हदन
(21 सार 7 भास सौय-वषम 22, वषम 5 भास चान्र-
वषम) है। ़़ु यआन की बाषा अयफी है जो डेढ़ ह़िाय
सार फीतने ऩय बी फड़ी उन्नत , उत्कर ष्ट, धनी,
सजीव, सशक्त औय आध़ुननक शैरी व व्माक्रण
यखती है। इसभें छोटे- फड़े 114 अध्माम (सय्) है
रेहकन इसका अध्मामीकयण भानव- यनचत ऩ़ुस्त कों
की बाॉनत, हकसी बवशेष बवषम , तथा हकसी ननक्षित
शीषमक से सॊफॊनधत व्माख्मा ऩय ही आधारयत नहीॊ है
फक्षल्क अनधकतय अध्मामों भें फह़ुत साये बवषमों ऩय
वाताम की गई , आदेश-ननदेश, ननमभ, ़ानन हदए
गए, नशऺाएॉ दी गईं , बऩछरी ़ौभों का वरत्ाॊत
8. 8
फमान हकए गए , एके श्वयत्व के ऩऺ भें तथा
अनेके श्वयत्व के खॊडन भें तकम हदए गए हैं। स्वगम
औय नयक के प्रबावशारी नचत्रण हकए गए ,
भानवजानत की अन्तयात्भा , फ़ुबि-बववेक एवॊ नचॊतन-
शबक्त को फाय-फाय आवा़ि देकय उसे एके श्वयवाद का
आह्वान हदमा गमा है। भऩुष्म के व्मबक्तत्व के दोनों
अबाज्म ऩऺों — आध्माक्षत्भकता व बौनतकता — भें
अनत-उत्भ, अनत-स़ुन्दय साभॊजस्म व सॊत़ुरन को
सभाहहत कयने वारा जीवन- बवधान स़ुझामा गमा
तथा उसे स्वीकाय व ग्रहण कयने ऩय उबाया गमा
है।
9. 9
़़ु यआन भें क़ु र 6,233 आमतें (वाक्म) हैं। अयफी
वणमभारा के क़ु र 30 अऺय 3,81,278 फाय आए हैं।
़िेय (इ की भात्राएॉ ) 39,582 फाय, ़िफय (अ की
भात्राएॉ) 53,242 फाय, ऩेश (उ की भात्राएॉ ) 8,804
फाय, भद (दोहये, नतहये ―अ‖ की भात्राएॉ) 1771 फाय,
तशदीद (दोहये अऺय के प्रतीक ) 1252 फाय औय
ऩु़ते (बफन्द़ु) 1,05,684 हैं। इसके 114 भें से 113
अध्मामों का आयॊब ――बफक्षस्भल्राहहयमहभाननयमहीभ‖‖ से
ह़ुआ है, अथामत् ――श़ुरू अनत कर ऩाशीर, अनत दमावान
अल्राह के नाभ से। ‖‖ ऩठन-ऩाठन औय कॊ ठस्थ भें
आसानी के नरए ऩये ग्रॊथ को 30 बागों भें फाॊट कय
10. 10
हय बाग का नाभाॊकयण कय हदमा गमा है। हय बाग
―ऩाया‖ (Par t ) कहराता है।
◌ अवतयण— ऩबवत्र ़़ु यआन , ऩैाम्फय भ़ु हम्भद
(सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) के हृदम ऩय , ईश-
वाणी की हैनसमत से ईशप्रकाशना (वह्य, Di vi ne
Revel at i on) के रूऩ भें अवतरयत ह़ुआ। मह
अवतयण 17, अगस्त, 610 ई॰ को श़ुरू ह़ुआ।
इसका कोई अॊश आऩ (सल्रल्राह़ु अरैहह व
सल्रभ) ऩय अवतरयत होता तो आऩकी क्षस्थनत
फदर जाती ; कबी फह़ु त अनधक ऩसीना आ जाता ,
कबी आऩका वज़्न फढ़ जाता , इतना अनधक हक
महद आऩ सवायी (ऊॊ टनी) ऩय होते तो मॉ हदखता
11. 11
हक वह फह़ुत अनधक बाय से दफी जा यही है ;
अक्सय वह ऊॉ टनी फैठ जाती। वह्य ऩयी हो जाने ऩय
आऩ, औय सवायी की क्षस्थनत साभान्म हो जाती।
◌ रेखन— ह़ियत भ़ुहम्भद (सल्रल्राह़ु अरैहह व
सल्रभ) स्वमॊ ऩढ़े-नरखे न थे। ़़ु यआन का जो बी
अॊश अवतरयत होता वह बवशेष ईश्वयीम प्रावधान से
आऩको कॊ ठस्थ (माद) हो जाता [सय् ह़माभ्
(75 ) आमत 17-19] आऩ त़ुयॊत मा शीघ्रताशीघ्र
अऩने सानथमों को फोर कय उसे नरखवा देते।
इनतहास भें प्रभाक्षणत तौय ऩय ऐसे नरखने वा रों
(वह्य-नरबऩकों) की सॊख्मा 41 उक्षल्रक्षखत है। उन
12. 12
सफ के नाभ, बऩता के नाभ, ़फीरे (वॊश, क़ु र) के
नाभ बी इनतहास के रयकाडम ऩय हैं।
◌ सॊकरन— ह़ियत भ़ुहम्भद (सल्रल्राह़ु अरैहह व
सल्रभ) ़़ु यआन के नरबऩकों को मह आदेश बी
त़ुयन्त ही दे देते हक इस आमत /अॊश को (ईश-
ननदेनशत क्र भ के अऩुसाय ) अभ़ुक आमत /अॊश के
फाद/ऩहरे यख रो। इस प्रकाय ऩया ़़ु यआन ईश-
अऩेक्षऺत क्रभाऩुसाय , ऩैाम्फय भ़ुहम्भद (सल्रल्राह़ु
अरैहह व सल्रभ ) के जीवन भें ही क्रभफि औय
सॊकनरत हो गमा। अॊत भें फ़रयश्ता ―क्षजफयीर‖ ने
ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) को, औय
ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) ने क्षजफयीर
13. 13
को ऩया ़़ु यआन स़ुनामा। इस तयह ―अक्षन्तभ जाॉच‖
की इस बवनशष्ट प्रणारी व प्रमोजन से ग़ु़िय कय ,
ईश्वयीम स्वीकर नत के तहत ईश- ग्रॊथ ़़ु यआन
प्राभाक्षणकता व बवश्वसनीमता के उच्चतभ भाऩदॊड
ऩय भानवजानत के शाश्वत भागमदशमन के नरए तैमाय
हो गमा।
◌ सॊयऺण— ़़ु यआन को चॉहक यहती द़ुननमा तक
के नरए , सभस्त सॊसाय भें भानव- जानत का
भागमदशमन कयना था औय इस फात को बी ननक्षित
फनाना था हक ईश- वाणी ऩयी की ऩयी स़ुयक्षऺत हो
जाए, एक शदद बी न कभ हो न ज़्मादा , इसभें
14. 14
हकसी भानव- वाणी की नभरावट , कोई फाह्य
हस्तऺेऩ, सॊशोधन-ऩरयवतमन होना सॊबव न यह जाए
इसनरए ईश्वयीम स्तय ऩय तथा भानवीम स्तय ऩय
इसके कई बवशेष प्रमोजन हकए गए:
एक : चॉहक इससे ऩहरे के ईशग्रॊथों भें भानवीम
हस्तऺेऩ से फह़ुत क़ु छ कभी- फेशी हो च़ुकी थी
इसनरए ़़ु यआन के सॊयऺण की क्ष़िम्भेदायी स्वमॊ
ईश्वय ने अऩने ऊऩय रे री। ऽ़ुद ़़ु यआन भें
उक्षल्रक्षखत है —――हभने इसे अवतरयत हकमा औय
हभ ही इसकी हहफ़ा़ित कयेंगे ‖‖ (सय् हहज्र 15,
आमत 9)।
ईश्वय ने इसके नरए ननम्ननरक्षखत प्रावधान हकए—
15. 15
दो : प्राथनभक स्तय ऩय ईश्वय ने ऩैाम्फय को ऩया
ग्रॊथ कॊ ठस्थ (Memor i se) कया हदमा , ़़ु यआन भें
इसकी ऩ़ुबष्ट बी कय दी (सय: 75 , आमत 17-19)
तीन : ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) के
कई सानथमों ने ़़ु यआन को ऩणम श़ुिता के साथ
कॊ ठस्थ (हहफ़़्ि) कय नरमा।
चाय : ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) के
जीवन-कार भें ही ़़ु यआन का सॊकरन- कामम ऩया
कय नरमा गमा।
ऩाॉच : ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ ) के
ननधन (632 ई॰) के फाद आऩके दो उत्यानधकारयमों
(ऽरीफ़ाओॊ ह़ियत अफफक्र (यक्ष़िमल्राह़ु अन्ह़ु) औय
16. 16
ह़ियत उभय (यक्ष़िमल्राह़ु अन्ह़ु ) के शासन- कार
(632-644 ई॰) भें उनकी व्मबक्तगत ननगयानी भें
साये नरबऩकों की नर क्षखत साभग्री को एक- दसये से
जाॉच कय तथा ग्रॊथ के कॊ ठस्थकायों से ऩ़ुन्- ऩ़ुन्
जाॉच कय , ऩैाम्फय (सल्रल्राह़ु अरैहह व सल्रभ )
के ननदेनशत क्रभ भें ऩ़ुस्तक- रूऩ भें रे आमा गमा।
हपय तीसये ऽरीफ़ा ह़ियत उस्भान (यक्ष़िमल्राह़ु
अन्ह़ु) के शासनकार (644-656 ई॰) भें इस ग्रॊथ
की सात प्रनतमाॉ तैमाय की गईं। एक- एक प्रनत
इस्राभी याज्म के बवनबन्न बागों (मभन, सीरयमा,
हफ़नरस्तीन, आयभेननमा, नभस्र, ईया़ औय ईयान )
भें सयकायी प्रनत के तौय बी बेज दी गई। उनभें से
17. 17
क़ु छ भर-प्रनतमाॉ आज बी ताशकन्द, इस्तॊफर आहद
के सॊग्रहारमों भें भौजद हैं।
छ् : ईश्वय ने ईशदत ह़ियत भ़ुहम्भद (सल्रल्राह़ु
अरैहह व सल्रभ ) को आदेश देकय चौ फीस घॊटों भें
प्रनतहदन ऩाॉच फाय की अननवामम नभा़िों भें ़़ु यआन
के क़ु छ अॊश ऩढ़ना अननवामम कय हदमा। इसके
अरावा स्वैक्षच्छक नभा़िों भें बी इसे अननवामम
हकमा गमा। यभ़िान के भहीने भें यात की नभा़ि
(तयावीह) भें ऩया ़़ु यआन ऩढ़े जाने औय स़ुने जाने
को ―भहाऩ़ुण्म‖ कहकय ऩये बवश्व भें प्रचनरत हकमा
गमा। ऩये ़़ु यआन को (मा क़ु छ अध्मामों को )
18. 18
कॊ ठस्थ कयना ―भहान ऩ़ुण्म कामम ‖ कहा गमा, औय
राखों-कयोड़ों रोगों ने ऩणम ग्रॊथ को , तथा सॊसाय के
सबी भ़ुसरभानों ने ग्रॊथ के क़ु छ अध्मामों को
कॊ ठस्थ कय नरमा। (मह क्रभ 1400 वषम से जायी है
औय बबवष्म भें बी जायी यहेगा )। इस प्रकाय
़़ु यआन अऩने भररूऩ भें (ऩयी श़ुिता , ऩणमता व
बवश्वसनीमता के साथ) स़ुयक्षऺत हो गमा।
◌ प्रसायण— छाऩाऽानों (बप्रॊहटॊग प्रेस) के आबवष्काय
से ऩहरे द़ुननमा बय के भ़ुसरभानों भें ़़ु यआन को
हाथ से नरखने की प्रथा व्माऩक रूऩ से प्रचनरत
ह़ुई औय ग्रॊथ का प्रसायण कामम जायी यखा गमा।
19. 19
इसे अऩने जीवन का भहान सौबाग्म सभझने की
भाननसकता अत्मनधक फढ़ी। भनतमकरा व नचत्रकरा
के , इस्राभ भें वक्षजमत होने के कायण , भ़ुसरभानों
की करा- वरबत् ़़ु यआन की ―रेखन-करा‖ ऩय
के क्षन्रत हो गई। बवनों औय भक्षस्जदों ऩय ़़ु यआन
की आमतें नरखी जाने का प्रचरन आभ हो गमा।
हपय भ़ुरण- प्रणारी का आबवष्काय हो जाने ऩय
़़ु यआन के भ़ुरण प्रकाशन के ह़िायों- राखों के न्र
स्थाबऩत हो गए। वतमभान भें बवश्व बय भें प्रनतहदन
़़ु यआन की राखों प्रनत माॉ छऩती तथा एक बवशार
वैश्वीम बवतयण प्रणारी द्वाया सॊसाय के कोने- कोने भें
प्रसारयत हो यही हैं। इस सभम ़़ु यआन , बवश्व भें
20. 20
भात्र एक ही ऐसा ईशग्रॊथ है जो सायी ऩ़ुस्तकों- ग्रॊथों
से ज़्मादा छऩता, प्रकानशत व प्रसारयत होता, उऩहाय
भें हदमा जाता, ऽयीदा जाता, ऩढ़ा जाता औय आदय
व सम्भान हकमा जाता है। द़ुननमा के रगबग 100
प्रनतशत भ़ुक्षस्रभ घयों भें , रगबग 10 प्रनतशत ाैय-
भ़ुक्षस्रभ घयों भें तथा रगबग 60 प्रनतशत
ऩ़ुस्तकारमों भें ़़ु यआन की कभ- से-कभ एक प्रनत
भौजद है। साथ ही कई वेफसाइट्स व इन्टयनेट ऩय
़़ु यआन अऩनी भर- नरबऩ भें उऩरदध कया हद मा
गमा है।
◌ अऩुवाद औय बाष्म — ़़ु यआन चॉहक बवश़ुि
ईशवाणी है , अत् कोई भऩुष्म इसका अऩुवाद नहीॊ
21. 21
कय सकता क्मोंहक भानव- वाणी भें इसकी ऩणम
ऺभता व साभर्थमम नहीॊ है। रेहकन चॉहक मह ग्रॊथ
सॊऩणम भानवजानत के ऩथ- प्रदशमन के नरए है औय
सॊसाय का हय व्मबक्त ़़ु यआनी (अयफी) बाषा भें
ननऩ़ुण नहीॊ हो सकता , इसनरए बवद्वानों औय
़़ु यआनी अयफी बाषा के ऻाननमों ने ़़ु यआन के
―अथम‖ का ―अऩुवाद‖ औय ़़ु यआन के बावाथम का
―बाष्म‖ नरखा। हहन्दी , उदम, अॊग्रे़िी सहहत , द़ुननमा
की सैकड़ों बाषाओॊ भें ऐसे अऩुवाद व बाष्म हो
च़ुके हैं। बवशेष रूऩ से बायत की सायी प्रभ़ुख
(ऺेत्रीम) बाषाओॊ— भनीऩ़ुयी, असनभमा, फॊगरा,
उहड़मा, ग़ुजयाती, कन्नड़, भयाठी, तेऱुग, भरमारी,
22. 22
तनभर, ग़ुयभ़ुखी आहद बाषाओॊ भें देशवानसमों को
उऩरदध कयामा गमा है। साथ ही हहन्दी व अॊग्रे़िी
तथा उदम भें वेफसाइट्स ऩय बी ़़ु यआन के अथों के
अऩुवाद औय बाष्म उऩरदध हैं।
◌ ़़ु यआन का बवषम— ़़ु यआन का बवषम प्रभ़ुखत्
―इन्सान औय ईश्वय ‖ है। अथामत् , इन्सान की
ह़ी़त, ईश्वय की ह़ी़त औय इन्सान व ईश्वय के
फीच सॊफॊध की ह़ी़त । ऩया ़़ु यआन इन ही तीन
ह़ी़तों की व्माख्मा है।
मद्यबऩ ़़ु यआन भें ऻान- बवऻान के अने कानेक ऺेत्रों
से सॊफॊनधत अनेक बवषमों ऩय चचाम ह़ुई है ऩयन्त़ु
चचाम का भर उद्देश्म बवद्यारमों के नशऺानथममों की
23. 23
तयह, भऩुष्मों को तत्सॊफॊनधत बवषमों की साॊसारयक
नशऺा व ऻान देना नहीॊ , फक्षल्क उस ऻान- बवऻान
द्वाया भानवजानत को ईश्वय व उसके ईश्वयत्व की
सही ऩहचान कयाना है क्षजसे ऩहचान रेने , क्षजसे
सभझ रेने औय क्षजस ऩय ऩया बवश्वास कय रेने के
ऩरयणाभस्वरूऩ भऩुष्म स्वमॊ अऩने को , अऩनी
वास्तबवकता को , अऩने ऩैदा हकए जाने के उद्देश्म
को, अऩने व ईश्वय के फीच मथाथम सॊफॊध को , उसके
प्रनत अऩने कतमव्मों को, ईश्वय के अनधकायों को तथा
उसकी भहानता , शबक्त, साभर्थमम को बी ऩहचान
रेता है ; नेकी व फदी ; बराई व फ़ुयाई ; ऩ़ुण्म व
ऩाऩ; वास्तबवक राब व वास्तबवक हानन के फीच
24. 24
फ़़म कयने भें उतना सऺभ व क़ु शर हो जाता है
क्षजतना, भात्र अऩनी सीनभत फ़ुबि से , अऩनी
ऩन्चेंहरमों द्वाया अक्षजमत ऻान औय स्वमॊ अऩने
तज़ुफों से नहीॊ हो सकता।
़़ु यआन भें जीव-बवऻान (Zool ogy), खगोर-बवऻान
(Ast r onomy), वनस्ऩनत-बवऻान (Bot any), प्रजनन
(Repr oduct i on), शयीय-सॊयचना (Anat omy),
सभ़ुर-बवऻान (Oceanol ogy) ऩमामवयण (Ecol ogy),
बगोर-शास्त्रा (Geogr aphy), भ्रण-बवऻान
(Embr yol ogy), इनतहास (Hi st or y), सभाजशास्त्र
(Soci ol ogy), अथमशास्त्र (Economi cs), भानव-
बवऻान (Humani t i es), सरबष्ट-यचना (Cr eat i on of
25. 25
Uni ver se) आहद बवषमों ऩय काफ़ी चचाम ह़ुई है।
मह चचाम हभायी बवषमफि ऩ़ुस्तकों की तयह एकत्र
नहीॊ फक्षल्क ऩये ़़ु यआन भें
जगह-जगह बफखयी ह़ुई है तथा फाय- फाय उक्षल्रक्षखत
ह़ुई है।
इसके द्वाया—
● ईश्वय के अक्षस्तत्व के प्रभाण हदए गए हैं।
● सतकम ऩणम शैरी भें ―बवश़ुि एके श्वयवाद ‖ ऩय ऩणम
बवश्वास की साभग्री प्रस्त़ुत की गई है।
● ―एक ईश्वय ‖ के अनतरयक्त ―अनेक-ईश्वय‖—अथामत्
ईश्वय की शबक्त, सत्ा, ऺभता भें ―क़ु छ दसयों‖ के बी
साझी, शयीक होने का फ़ुबिसॊगत खॊडन हकमा गमा
26. 26
है। इसके नरए भानव- सॊयचना एवॊ सरबष्ट सॊयचना
तथा अन्म बवऻानों से तकम हदए गए हैं।
● ―भात्र ए क ही ईश्वय ‖ के स्रष्टा , प्रब़ु, स्वाभी एवॊ
ऩारक-ऩोषक होने के तकम ऩय के वर उसी के ही
ऩज्म-उऩास्म होने के तकम ज़ुटाए गए हैं , औय
बवश़ुि एके श्वयवादी जीवन बफताने का आह्वा न हकमा
गमा है।
● ईश्वय की इन्कायी , फााी, उत्ऩाती, अवऻाकायी
़ौभों के वरत्ाॊत फमान कयके उनके साॊसारयक
द़ुष्ऩरयणाभ, औय तफाह कय हदए जाने के ईश्वयीम
प्रकोऩ का इनतहास फतामा गमा औय भानवजानत
को चेतावनी दी गई है हक ईश्वय के प्रनत उद्दॊडता
27. 27
कयते ह़ुए ―बवन-ननभामण‖ औय ―सभ्मता‖ भें अस्थाई
रूऩ से चाहे क्षजतनी बौनतक ―उन्ननत‖ कय रो ,
त़ुम्हाया नैनतक व आध्माक्षत्भक ऩतन एक हदन
त़ुम्हें रे डफेगा। बवन ध्वस्त कय हदए जाएॉगे ,
फक्षस्तमाॉ तरऩट कय दी जाएॉगी , नगय के नगय
फसी-फसाई हारत भें उरट हदए जाएॉगे , मा ़िभीन
भें नीचे तक धॉसा हदए जाएॉगे। ईश्वय , त़ुम्हें स़ुधयने
के अवसय औय ढीर तो फह़ुत देता है ऩयन्त़ु ़िभीन
ऩय चर हपय कय (खण्डहयों को तथा ऽोदाई भें
ननकरे नगयों के ऩ़ुयातत्व अवशेषों को ) देखो, मह
ढीर हभेशा के नरए नहीॊ दी जाती क्मोंहक हभेशा
28. 28
की ढीर देना ईश्वयीम ग़ुण व तत्वदनशमता के
प्रनतकर है।
● फौबिक व वैऻाननक आधाय ऩय इस फात के तकम
प्रस्त़ुत हकए गए हैं हक (ऩयरोक भें , भऩुष्मों के
इहरौहकक अच्छे मा फ़ुये कभों का रेखा- जोखा,
हहसाफ-हकताफ कयके उन्हें स्वगम का ऩ़ुयस्काय मा
नयक का दॊड देने के नरए ) भानव को साॊसारयक
शयीय के साथ ऩ़ुन् अक्षस्तत्व व जीवन दे देना
ईश्वय के नरए फह़ुत ही आसान होगा। वह ननजीव
से जीव को तथा जीव से ननजीव को उत्ऩन्न तो
इस सॊसाय भें बी फयाफय कयता यहता है। उसका
मह साभर्थमम सवमऻात, सवमबवहदत है।