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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका                       ददसम्फय- 2012




                           NON PROFIT PUBLICATION
FREE
        E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका                       ई- जन्भ ऩत्रिका
ददसम्फय 2012

                                    अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
सॊऩादक
सचॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग               उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ
                                                              े
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
                                           १००+ ऩेज भं प्रस्तुत
(ORISSA) INDIA

पोन
91+9338213418,
91+9238328785,                            E HOROSCOPE
ईभेर
gurutva.karyalay@gmail.com,
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
                                         Excellent Prediction
सचॊतन जोशी,                                  100+ Pages
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
पोटो ग्रादपक्स
                                         दहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-
सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी                           GURUTVA KARYALAY
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
                                        BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
                                       Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
सोफ्टे क इस्न्डमा सर)                     Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
                                                gurutva.karyalay@gmail.com
स्जस प्रकाय शयीय आत्भा क सरए औय तेर दीऩक क सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु
                                                   े                 े
                           होते हं ।   सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं । मॊि प्रमोग
                           का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते …4

                           …4
                          श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन क आगभन हे तु
                                                                                                   े
                          सवाश्रद्ष मॊि भाना गमा हं । त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं व चभत्कायी
                                े
                          शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख कन्र त्रफन्दु है । …6
                                                                      े
                                                          मॊि त्रवशेष भं ऩढे ़
                                        त्रवशेष भं                                   दीऩावरी त्रवशेष 
 सवा कामा ससत्रद्ध        मन्िं क प्रभुख प्रकाय
                                 े                                           7      काभनाऩूसता हे तु दरब साधना (बाग:1)
                                                                                                      ु ा                       27
                          मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव                  9      हरयरा गणऩसत मन्ि साधना                      27
   कवच … 45               अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब                   11     त्रवजम गणऩसत मन्ि साधना                     28
                          श्रीमॊि की भदहभा                                          कल्माणकायी गणऩसत मन्ि साधना
                                                                             13                                                 29

                          त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवच औय मॊि         25
                          मन्ि का चमन कयने भं यखं सावधासनमाॊ।                26             हभाये उत्ऩाद 
                          त्रवसबन्न मॊि क राब
                                         े                                          बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी
  गणेश रक्ष्भी मॊि.                                                          30                                                 8
                          नवदगाा मन्ि
                             ु                                               41     भॊिससद्ध स्पदटक श्री मॊि                    15
                          मॊि द्राया वास्तु दोष सनवायण                       43     भॊि ससद्ध दरब साभग्री
                                                                                               ु ा                              39
                          जन्भ रग्न से योग सनवायण हे तु उऩमुि मॊि            46     भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश                        43
                          मॊि साधना हे तु उऩमुि भारा चमन                     49     सवा कामा ससत्रद्ध कवच                       45
                          त्रवसबन्न भारा से काभना ऩूसता                      50     हभाये त्रवशेष मॊि                           55
नवयत्न जदित श्रीमॊि..63
                          भारा क 108 भनकं का यहस्म
                                े                                            51     सवाससत्रद्धदामक भुदरका                      58
                          भारा से सॊफॊसधत शास्त्रोि भत                       53     द्रादश भहा मॊि                              60
  त्रवसबन्न रक्ष्भी       धन प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ परदामी हं स्पदटक श्रीमॊि   56     ऩुरुषाकाय शसन मॊि एवॊ शसन तैसतसा मॊि        62
       मॊि …                                                                        श्री हनुभान मॊि                             64
                                                                                    त्रवसबन्न दे वता एवॊ काभना ऩूसता मॊि सूसच   65

                             स्थामी औय अन्म रेख                               त्रवसबन्न दे वी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसच        66
                          सॊऩादकीम                                               4 भॊि ससद्ध रूराऺ                              68
                          भाससक यासश पर                                      74 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवच                       69
    यासश यत्न…67          ददसम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग                          78 याभ यऺा मॊि                                     70
                          ददसम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय                80 जैन धभाक त्रवसशद्श मॊि
                                                                                        े                                       71
                          ददसम्फय 2102 -त्रवशेष मोग                          85 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि              72
                          दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका                 85 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच                         73
                          ददन-यात क चौघदडमे
                                   े                                         86 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न                            73
 भॊि ससद्ध रूराऺ …68
                          ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक            87 सवा योगनाशक मॊि/                                89
                          ग्रह चरन ददसम्फय -2012                                    भॊि ससद्ध कवच
अभोद्य भहाभृत्मुजम
                ॊ                                                            88                                                 91
                          सूचना                                              96 YANTRA LIST                                     92
    कवच … 73              हभाया उद्दे श्म                                    98 GEM STONE                                       94
त्रप्रम आस्त्भम

            फॊध/ फदहन
               ु

                        जम गुरुदे व
मॊि शब्दद "मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं )

                                      मन्िसभत्माहुयेतस्स्भन ् दे व्प्रीणासत ऩूस्जत्।
                                      शयीयसभव जीवस्म दीऩस्म स्नेहवत ् त्रप्रमे॥
अथाात ्: स्जस प्रकाय शयीय आत्भा क सरए औय तेर दीऩक क सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु
                                 े                 े
होते हं ।
            सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं ।
मॊि प्रमोग का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते हं औय उसके
द्ख, दबााग्म, असपरता को दय कयने हे तु सहामक होते हं । मॊि प्रत्मऺ रूऩ से भनुष्म की कामाऺभता की नकायात्भक
 ु    ु                  ू
उजाा को दय कय सकायात्भक उजाा भं ऩरयवसतात कय दे ते हं ।
         ू
            आज क आधुसनक मुग भं त्रवद्रानं ने अऩने शोध एवॊ अनुसॊधान से मह मह ऩामा है दक आध्मास्त्भक स्थर,
                े
ऩूजा-ऩाठ इत्मादद स्थर, भानव शयीय भं स्स्थत कडसरनी क चि, ऩत्रवि सॊकत सचन्ह, कछ त्रवसशद्श आकृ सतमाॊ आदद भं
                                            ुॊ     े              े         ु
एक त्रवशेष प्रकाय की सूक्ष्भ ऊजाा सनयॊ तय प्रवादहत होती यहती हं , स्जस का ऺेि त्रवशार औय सकायात्भक होता है । मह
उजाा उसी प्रकाय से कामा कयती हं स्जस प्रकाय दकसी वस्तु ऩय त्रवद्युत चुम्फकीम ऺेि का प्रबाव होता हं ।
            आजक आधुसनक मुग भं वैऻासनक ऻान प्राद्ऱ भनुष्म, अॊतय भन से दरयर मा अनुसचत भागादशान से त्रवसबन्न
               े
प्रकाय क मॊि-भॊि-तॊि टोने-टोटक मा उऩामो को कयक हाय चुका व्मत्रि मह सोचता हं , की.... बाग्म भं जो सरखा हं
        े                     े               े
वहीॊ होगा!...., नसीफ भं जो होगा वहीॊ सभरेगा हं !...., बगवान दक इच्छा क आगे दकस दक चरती हं !...., बगवान ने
                                                                      े
द्ख सरखा हं तो क्मा कये !...., हभाये तो अभुख ग्रह दह खयफ चर यहे हं ...., हभाया तो नसीफ ही खयाफ हं ..............
 ु
इत्मादी से हभ सफ अच्छी तयह वाकीफ़ हं ।
            कछ रोग धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय त्रवद्वास नहीॊ होता, मा कछ रोग ऩहरे त्रवद्वास कयते थे रेदकन
             ु                                                           ु
अनुसचत भागादशान मा प्रमोग भं यहजाने वारी दकसी तृदट क कायण उनकी इच्छा ऩूसता का अऩूणा यह जाना इन त्रवषमो
                                                    े
ऩय अत्रवद्वास को जन्भ दे ता हं ।
            एसी स्स्थसत भं अनेक रोगं का धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय अत्रवद्वास हो जाना स्वाबात्रवक हं ? ईद्वय नं
सबी भनुष्मं को एक सभान फनामा हं , इस सरए इस सॊसाय भं व्माद्ऱ सबी प्रकाय क सुख बोगने का सबी भनुष्मं को
                                                                         े
फयाफय का असधकाय ददमा हं । क्मोदक सबी जीव ईद्वय क अॊश हं , इस सरए ईद्वय सफ को एक ही बाव से दे खता हं ।
                                                े
व्मत्रि आज दरयर हं , सनधान हं तो वह उसक सनजी कभो का पर भाि हं ।
                                       े
            उसकी दरयरता दकसी ग्रह क कायण नहीॊ ग्रह तो कवर व्मत्रि क कभो का पर प्रदान कयने हे तु त्रवधाताक
                                   े                   े           े                                     े
सहमोगी हं । दरयर व्मत्रि अऩनी गरतीमाॊ अऩने नसीफ औय बगवान ऩय राद दे ते हं । व्मत्रि को आवश्मिा हं , उसचत
भागादशान दक मदद व्मत्रि को उसचत भागादशान प्राद्ऱ हो जामे तो इस सॊसाय का दरयर से दरयर कगार से कगार व्मत्रि
                                                                                      ॊ       ॊ
बी धनवान फन सकता हं । व्मत्रि उसचत भागादशान, भॊि-मॊि-तॊि, एवॊ दरब वस्तुओॊ क त्रवसध-वत प्रमोगं क भाध्मभ से
                                                               ु ा         े                   े
अऩनी इच्छाओॊ को ऩूणा कयने भं सभथा फन सकता हं , इसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं ।
        धन प्रासद्ऱ हे तु दकमे गमे भॊि-मॊि-तॊि की साधना एवॊ त्रवसबन्न साभग्रीमं क प्रमोग का परदामी नहीॊ होना, मह
                                                                                 े
दकसी साधना मा भॊि-मॊि-तॊि की उऩासना का कोई दोष नहीॊ फरदक व्मत्रि क श्राद्धाहीन अॊतय भन का ही दोष होता
                                                                  े
हं ।
        क्मोदक हभाये त्रवद्रान कषी-भुनी ने हजायो वषा ऩूवा अऩने तऩोफर से मह ऻात कय सरमा था की भनुष्म दक
शत्रिमाॊ अऩाय औय अनॊत हं । जीसे आज का आधुसनक त्रवऻान बी भान चुका हं की एक व्मत्रि अऩनी वास्तवीक शत्रि
का भाि ३(तीन) प्रसतशत दहस्सा ही इस्तेभार कयता हं । दठक इसी प्रकाय आऩक बीतय बी ऩयभात्भा की अऩाय शत्रिमाॊ
                                                                     े
भौजुद हं फस उन शत्रिओॊ को उजागय कयने की जरुयत भाि हं , आऩ अऩने अॊदय उठनेवारी इन तयॊ गो क कायण
                                                                                        े
आऩक आस-ऩास का वातावतण सकायात्भक उजाा से बय जामेगा एवॊ मह उजाा आऩक अॊतय भन दक गहयाई तक प्रवेश
   े                                                             े
कय गई तो इन शत्रिमो से आऩको आत्भ फर की प्रासद्ऱ होगी स्जससे आऩक धनवान फनने औय इस ददशा भं अग्रस्त
                                                               े
होने का भागा स्वत् दह खूरने रगेगा। दपय आऩकी भॊस्झर आऩसे दय नहीॊ यह जामेगी। व्मत्रि मदद एक फाय चाहरे तो
                                                         ू
वह अऩनी स्स्थती भं ऩरयवतान रासकता हं फस जरुयत हं एक रढ सॊकल्ऩ दक।
इस सरए तो शास्तं भं कहाॊ गमा हं की
                                           उद्यभे नास्स्त दारयरमभ ् ।
अथाात:उद्यभ कयने से दरयरता की नहीॊ यह जाती ।
        इसी सरए सैकडो़ त्रवद्रान ऋषी-भुसनमं ने भनुष्म को उद्यभी फनाने क सरए दिमाशीर फनाने क सरए अऩने मोग
                                                                       े                   े
फर एवॊ ऩरयश्रभ से मॊि क गूढ़ यहस्म को जार सरमा था औय उन्हं ने हभाये भागादशान हे तु मॊि क प्रबावं का सूक्ष्भ
                       े                                                               े
अध्ममन कय उसक प्रबावं से हभं अवगत कयाने हे तु त्रवसबन्न ग्रॊथो एवॊ शास्त्रं की यचना की हं ।
             े
        मॊि का सॊसाय असत त्रवशार हं , क्मोकी सभग्र त्रवद्व भं सैकिं धभा, सॊप्रदाम, सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सतमा हं हय एक
धभा मा सॊप्रदाम भं प्रत्मऺ मा अप्रत्मऺ रुऩ से मॊिं का उऩमोग प्रासचन कार से होता आमा हं । अबी तक हजायं राखं
तयह क मॊि अरग-अरग बाषा एवॊ सॊस्कृ सतमं भं सनसभात दकमे गमे हं , स्जसक प्रभाण त्रवसबन्न ग्रॊथ-शास्त्र आदद भं
     े                                                              े
उऩरब्दध हं । रेदकन सभग्र सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सत भं मॊि क सनभााण का भुख्म उद्दे श्म भनुष्म भाि का कल्माण ही है ।
                                                      े


इस अॊक भं प्रकासशत त्रवसबन्न उऩाम, मॊि-भॊि-तॊि, साधना व ऩूजा ऩद्धसत क त्रवषम भं साधक एवॊ
                                                                     े
त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मदद दशाामे गए मॊि, भॊि, स्तोि इत्मादी क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं,
                                                                      े
दडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊदटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुदट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा दकसी मोग्म
गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोदक त्रवद्रान गुरुजनो एवॊ साधको क सनजी अनुबव त्रवसबन्न अनुद्षा
                                                                              े
भं बेद होने ऩय मॊि की ऩूजन त्रवसध एवॊ जऩ त्रवसध भं, प्रबावं क अध्ममन भं सबन्नता सॊबव हं ।
                                                             े

   आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो भाॊ रक्ष्भी की कृ ऩा आऩक ऩरयवाय ऩय
                                                      े
                         फनी यहे । भाॊ भहारक्ष्भी से मही प्राथना हं …

                                                                                                सचॊतन जोशी
6                                 ददसम्फय 2012




              *****         मॊि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवशेष सूचना *****
 ऩत्रिका भं प्रकासशत मॊि सम्फस्न्धत सबी जानकायीमाॊ गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही आयस्ऺत हं ।
                                                                     े         े
 ऩौयास्णक ग्रॊथो ऩय अत्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि इस अॊक भं उऩरब्दध सबी त्रवषम को भाि ऩठन साभग्री
   सभझ सकते हं ।
 धासभाक त्रवषम आस्था एवॊ त्रवद्वास ऩय आधारयत होने क कायण इस अॊकभं वस्णात सबी जानकायीमा
                                                    े
   बायसतम ग्रॊथो से प्रेरयत होकय सरखी गई हं ।
 धभा से सॊफॊसधत त्रवषमो दक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय दकसी बी प्रकाय दक स्जन्भेदायी कामाारम मा
   सॊऩादक दक नहीॊ हं ।
 इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत सबी रेख भं वस्णात भॊि, मॊि व प्रमोग दक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक
   स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी क फाये भं
                                                                                              े
   जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक दकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।
 धभा से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष का दकसी बी
   प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम उनका स्वमॊ का होगा।
 शास्त्रोि त्रवषमं से सॊफॊसधत जानकायी ऩय ऩाठक द्राया दकसी बी प्रकाय दक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 धभा से सॊफॊसधत रेख प्राभास्णक ग्रॊथो, हभाये वषो क अनुबव एव अनुशधान क आधाय ऩय ददमे गमे हं ।
                                                   े             ॊ    े
 हभ दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया धभा से सॊफॊसधत त्रवषमं ऩय त्रवद्वास दकए जाने ऩय उसक राब मा नुक्शान की
                                                                                       े
   स्जन्भेदायी नदहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी धासभाक त्रवषमो ऩय त्रवद्वास कयने वारे मा उसका प्रमोग कयने वारे
   व्मत्रि दक स्वमॊ दक होगी।
 क्मोदक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मदद नीजी स्वाथा
                                                               े
   ऩूसता हे तु महाॊ वस्णात जानकायी क आधाय ऩय प्रमोग कताा हं अथवा धासभाक त्रवषमो क उऩमोग कयने भे
                                    े                                            े
   िुदट यखता हं मा उससे िुदट होती हं तो इस कायण से प्रसतकर अथवा त्रवऩरयत ऩरयणाभ सभरने बी सॊबव हं ।
                                                         ू
 धासभाक त्रवषमो से सॊफॊसधत जानकायी को भानकय उससे प्राद्ऱ होने वारे राब, हानी दक स्जन्भेदायी कामाारम मा
   सॊऩादक दक नहीॊ हं ।
 हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे धासभाक त्रवषमो ऩय आधारयत रेखं भं वस्णात जानकायी को हभने कई फाय स्वमॊ
   ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधगण ने बी अऩने नीजी जीवन भं अनुबव दकमा हं । स्जस्से हभ कई फाय धासभाक
                        ु
   इनसे त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं ।
                                                                              ा
                         (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।
                                        े     े
7                                     ददसम्फय 2012




                                          मन्िं क प्रभुख प्रकाय
                                                 े
                                                                                                   स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
       मॊि कई रुऩं भं सनसभात दकम जाते हं । प्राचीन                भेरुप्रस्ताय मन्ि:
ग्रॊथं भं त्रवसबन्न प्रकाय क मन्िं का उल्रेख सभरते हं ।
                            े                                             भेरुप्रस्ताय मन्ि, भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान होता हं ,
                                                                                                             े
महाॊ हभ ऩाठकं क भागादशान हे तु मन्िं की प्रभुख
               े                                                  रेदकन भेरुऩृद्ष मन्ि भं ये खाॊकन की दिमा को उबायकय
श्रेणीमं का वणान कय यहे हं ।                                      मा उत्कीणा कयक ऩूणा की जाती हं , वहीॊ भेरुप्रस्ताय मन्ि
                                                                                े
                                                                  भं ये खाॊकन मन्िाकाय होता हं । इस तयह क मन्ि को
                                                                                                         े
बूऩद्ष मन्ि:
   ृ                                                              दे खने ऩय रगता हं की सॊऩूणा मन्ि को टु किं भं काटकय
       सभतर आकाय         वारे मन्ि अथाात      वह       मन्ि       एक-दसये ऩय आसश्रत दकमा गमा है ।
                                                                      ू
स्जनका आधाय सभरत मा धयातर ऩय हो उसे बूऩद्ष
                                       ृ
मन्ि कहाॊ जाता हं । मन्ि ि इसी सभतर आधाय ऩय                       कभाऩद्ष मन्ि:
                                                                   ू  ृ
मन्ि की ये खामे, वगा, त्रफन्द, त्रिबुज, चतुबज, कभर दर,
                             ु              ुा                            कभाऩद्ष मन्ि भं भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान सशखय
                                                                           ू  ृ                           े
अॊक, फीज भॊि आदद को उत्कीणा दकमा जाता हं । कहने                   नहीॊ होता। मह नीचे से चौकोय औय उऩय से गोराई सरमे
का भतरफ हं की सभतर आधाय वारे मन्ि को बूऩद्ष
                                        ृ                         होता हं । रेदकन इसभं भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान सशखय नहीॊ
                                                                                                       े
मन्ि कहाॊ जाता    हं ।                                            होता।                      ु
                                                                              दे खने भं मह कछएॊ की ऊची ऩीठ क सभान
                                                                                                            े
                                                                  नझय आता हं । इस प्रकाय क मन्ि को कभाऩद्ष मन्ि
                                                                                          े         ू  ृ
भेरुऩृद्ष मन्ि:                                                   कहते हं ।
       भेरुऩृद्ष आगाय वारे मन्ि की आकृ सत भेरु की
तयह उऩय की ओय िभश् उठी हुई होती हं जो दे खने भं
                                                                  मन्िं का वगॉकयण
ऩवाताकाय ददखती हं । मॊि का अॊसतभ बाग अथाात सशखय                   1. ये खात्भक मॊि, 2. आकृ सतभूरक मन्ि
उऩय से नुकीरा होता हं , व नीचे का दहस्सा चौिा अथाात
परा हुवा होता हं , इस प्रकाय क मॊिं भं नीचे से उऩय
 ै                            े                                   1.ये खात्भक मॊि
का दहस्सा िभश् छोटा होता जाता हं औय आस्खय भं                      ये खात्भक मॊि भं कवर ये खाओॊ का प्रमोग दकमा जाता हं ,
                                                                                    े
सशखय वारा दहस्सा नुकीरा होता हं । इस तयह क मन्िं
                                          े                       जो भुख्मत् त्रिकोण, चतुबज, वि, कभराकाय, आमुध,
                                                                                          ुा
भं ये खाएॊ उबयी हुई मा उत्कीणा मा खुदी हुई होती हं ।              वरम आदद को मथाथाऩूणा दशाामा जाता हं ।


ऩातार मन्ि:                                                       2. आकृ सतभूरक मन्ि
       ऩातार मन्ि को भेरुऩृद्ष मन्ि से त्रवऩयीत सनसभात            आकृ सतभूरक मन्ि भं ये खाओॊ को ज्मासभसतक आकाय भं
दकमा जाता हं जहाॊ भेरुऩृद्ष मन्ि भं मन्ि का सशखय होता             प्रमोग नहीॊ कयक स्ऩद्श रुऩ से सचिाॊकन दकमा जाता हं ।
                                                                                 े
हं वहीॊ ऩातार मन्ि भं मन्ि का भध्म दहस्सा कटोयी के                मन्ि क सनभााण भं कामा उद्दे श्म क अनुशाय त्रवसबन्न
                                                                        े                          े
साभान अॊदय की औय से िभश् गहया होता जाता हं हं ।                   प्रकाय क दे व-दे वी, भानव, ऩशु-ऩस्ऺ, वृऺ आदद क स्वरुऩ
                                                                          े                                     े
                                                                  का सचिाॊकन दकमा जाता हं ।
8                                        ददसम्फय 2012



ये खात्भक मॊि क सनम्न चाय वगा होते हं ।
               े                                               अॊकगसबात मॊि:
                                                                        अॊकगसबात मॊि भं अॊकात्भक दे वताओॊ का सनवास
   1. फीजभॊिमुि मॊि ।
                                                               होता हं । दहन्द ू धभा भं एसा भाना जाता हं की प्रत्मेक
   2. भॊिवणामुि मॊि ।
                                                               अॊक दकसी-न-दकसी दे वता का प्रसतक होता हं । इस सरए
   3. अॊकगसबात मॊि ।
                                                               अॊकं को दे वता क प्रसतसनसध क रुऩ भं त्रवसबन्न उद्दे श्म
                                                                               े           े
   4. सभश्र मॊि ।
                                                               से मन्िं क सनभााण क सरए अॊकं का प्रमोग दकमा जाता
                                                                         े        े
                                                               हं । इस प्रकाय क मन्िं को अॊकगसबात मॊि कहते हं ।
                                                                               े
फीजभॊिमुि मॊि:
       फीजभॊिमुि मॊि को दकसी दे वी-दे वता क सॊस्ऺद्ऱ
                                           े
                                                               सभश्र मॊि:
रुऩ क भन्ि का प्रमोग दकमा जाता हं । अथाात दे वी-
     े
                                                                        सभश्र मॊि भं उऩय दशाामे गमे तीनं श्रेणीमं का
दे वताओॊ क शत्रिशारी फीज भॊिं का प्रमोग दकमा जाता
          े
                                                               प्रमोग एक साथ (अथाात फीजभॊिमुि मॊि, भॊिवणामुि
हं । जो सॊफॊसधत दे वी-दे वताओॊ का सस्ऺद्ऱ रुऩ होता हं
                                                               मॊि, अॊकगसबात मॊि) हुवा हो मा एक क साथ दसयी श्रेणी
                                                                                                 े     ू
अथाात स्जसभं उस दे वी-दे वता की गुद्ऱ शत्रिमाॊ सनदहत
                                                               का प्रमोग होने ऩय उसे सभश्र मॊि कहते हं ।
होती हं । स्जससे उस फीज भन्ि क स्भयण मा उच्चायण
                              े
से ही साधक की सभग्र काभनाएॊ ऩूणा होने रगती हं ।
फीजभॊिमुि मॊि को सवाासधक शत्रिशारी मन्ि भाना
                                                               शास्त्रं भं मॊि क भुख्म सात प्रकाय फतामे गम
                                                                                े
जाता हं ।                                                      हं ।
                                                               शास्त्रं भं मन्िं का वगॉकयण उसकी उऩमोसगता के

भॊिवणामि मॊि:
       ु                                                       आधाय ऩय दकमा गमा हं । स्जसक अनुशाय उसक िभ इस
                                                                                          े          े
                                                               प्रकाय हं ..
       भॊिवणामुि मॊि भं त्रवशेद्श वणं को िभ भं
                                                                        1. शयीय मन्ि            2. धायण मन्ि
सजाकय भन्ि को दशाामा जाता हं । भॊिवणामुि मॊि भं
                                                                        3. आसन मन्ि             4. भण्डर मन्ि
प्रमुि वणं द्राय ही भन्िं का सनभााण दकमा गमा होता हं
                                                                        5. ऩूजा मन्ि            6. छि मन्ि
इस सरए भॊिवणामुि मॊि भं भन्ि शत्रि त्रवशेष रुऩ से
                                                                        7. दशान मन्ि
सभादहत होती हं ।


                                           बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी
                          सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ क सरमे बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग,
                                                             े
                          व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा कचेयी क कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक
                                                                े
                          फाधा, शिु बम, चोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध
                          दक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय
                          ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़द-रार गुॊजा, इन्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी
                                                             े
                          जेसी अनेक दरब साभग्री होती है ।
                                     ु ा
                                                     भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्दद्ध
                                 गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785
                                                     ा
                                                             c
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                                                   मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव
                                                                                                                   स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, श्रेमा.ऐस.जोशी

        स्जस प्रकाय हभाया शयीय ऩाॉच तत्त्ववं से फना हं ।                            मन्िं भं सनदहत ऩाॉच तत्त्ववं क प्रबाव
                                                                                                                  े
उसी प्रकाय कछ मन्िं भं बी ऩाॉच तत्त्वव बी सनदहत होते
            ु
                                                                                    कछ जानकायं ने ऩाॉच तत्त्वव का प्रबाव भनुष्मं ऩय इस
                                                                                     ु
हं । मॊि भं सनदहत ऩाॉच तत्त्वव भानव शयीय क तत्त्ववं क
                                          े          े
                                                                                    प्रकाय भाना हं ।
सभान ही हं ।
                                                                                    1. ऩृथ्वी तत्त्वव:
       1. ऩृथ्वी तत्त्वव,                  2. जर तत्त्वव,
                                                                                            ऩृथ्वी तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को स्स्थयता, धैमा,
                                                                                                            े
       3. अस्ग्न तत्त्वव,                  4. वामु तत्त्वव औय
                                                                                    उत्साह, उत्तभ त्रवचायधाया, शास्न्त, बौसतक सुख तथा
       5. आकाश तत्त्वव।
                                                                                    सपरता की प्रासद्ऱ होती हं ।
        त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं से ऻात दकमा हं की
                                                                                    2. जर तत्त्वव:
मॊिं क ऩाॉच तत्त्ववं की उऩस्स्थती ही भुख्म रुऩ से साधक
      े
                                                                                            जर तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को भान, सम्भान,
                                                                                                        े
को वाॊस्च्छत ससत्रद्ध प्रासद्ऱ हे तु सहामक होती हं । इस सरए
                                                                                    प्रेभ, भाधुम, सन्तोष, ऻान औय चॊचरता को सनमॊत्रित
                                                                                                ा
मन्िं क ऩाॉच तत्त्वव की भहत्वता को जानना अत्मॊत
       े
                                                                                    कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ होती हं ।
आवश्मक        हं ।   क्मोदक        महीॊ     ऩाॉच    तत्त्वव   ब्रह्माण्ड   की
यहस्मभम शत्रिमं एवॊ साधक क सबतय सछऩी हुई शत्रिमं
                          े                                                         3. अस्ग्न तत्त्वव:
की जाग्रत औय सनमस्न्ित कयने हे तु सहामक हं ।                                                अस्ग्न तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को िोध,
                                                                                                            े

        ये खामुि मन्ि औय अॊकात्भक मन्िं भं ऩृथ्वी                                   उत्तेजना, तीव्रता, क्रेश, त्रवध्न, त्रवनाश, अशाॊसत, हासन,

तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव, वामु तत्त्वव औय आकाश                           कद्श-श्रभसाध्मता, उग्रकभा आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु

तत्त्वव का सभावेश दकमा जाता हं । स्जस प्रकाय ऩृथ्वी                                 सहामता प्राद्ऱ होती हं ।

तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव की ये खामं तो सयरता से
ऻात की जा सकती हं , ऩृथ्वी तत्त्वव का आकाय चौकोय                                    4. वामु तत्त्वव:
अथाात     चतुष्कोण          होता    हं ,     जर     तत्त्वव   का      आकाय                  वामु तत्त्वव का प्रबाव भनुष्म ऩय उसचत भाि भं हो
भण्डराकाय अथाात गोर वृत्ताकाय होता हं , अस्ग्न तत्त्वव का                           तो उत्तभ हं अन्मथा मह त्रवऩयीत ऩरयणाभ प्रदान कयता
आकाय त्रिकोण स्वरुऩ होता हं ।                 मदद त्रिकोण का आकाय                   हं । वामु तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को फुत्रद्ध, त्रवस्ऺद्ऱता,
                                                                                                       े
मन्ि भं उध्वाभुखी औय अधोभुखी दशाामा गमा हो तो वह                                    अत्रववेकी आचयण, भान-सम्भान की हासन, अऩमश, द्ख,
                                                                                                                               ु
सशव औय शत्रि का प्रसतक भाना जाता हं ।                                               अऻानता,      आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ
                                                                                    होती हं ।
        शास्त्रं भं ऩॊचदशी मन्ि भं तत्वं का वणान कयते
                                                                                    5. आकाश तत्त्वव:
हुवे उल्रेख सभरता हं , की इन मन्िं भं तत्त्ववं क आकाय
                                                े
                                                                                            आकाश          तत्त्वव    के   प्रबाव    ऩय   ही   भनुष्म   को
नहीॊ होते है , रेदकन अॊकं की मोजना ही उसभं तत्वं का
                                                                                    आध्मात्भ     प्रेभ,       त्रवयि      बाव,      गहनसचन्तन,     भनन,
प्रसतनीसधत्त्वव दशााती हं ।
10                                         ददसम्फय 2012



अध्ममन औय एकान्त को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामक हं ।            मन्ि क अॊक एवॊ दे वता
                                                                     े
मदद आकाश तत्त्वव क सुपर भं न्मूनासधकता हो जाती हं
                  े                                            महाॊ हभ एक से नौ तक की सॊख्माओॊ की दे वाता एवॊ
औय कभा रत्रद्श से इसका उऩमोग दकमा जाता हं ।                    उनकी सॊफॊसधत ददशाओॊ को दशाायहे हं ।

       स्जस मन्ि भं इन तत्वं की आकृ सतमं का सनदे श                           अॊक दे वता                  ददशा
हो उसभं बी सम्फस्न्धत तत्वं क अऺय वारे फीजाऺय हो
                             े                                          १. सूमा                ऩूवा

तो मन्ि शीघ्र ससद्ध हो जाता हं ।                                        २. बुवनेद्वयी          नैऋत्म
                                                                        ३. गणऩसत               उत्तय
       ऩाठकं क ऻानवधान क उद्दे श्म से स्वय औय
              े         े
                                                                        ४. हनुभान              वामव्म
व्मॊजनं को ऩाॉच तत्त्ववं की श्रेणी भं दशाामा गमा हं ।
                                                                        ५. त्रवष्णु            ऩस्द्ळभ
1. ऩृथ्वी तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् उ, ऊ, ओ,
                   े                                                    ६. कातावीमा            आग्नेम
   ग, ज, ि, द, फ, र ।                                                   ७. कारी                दस्ऺण
2. जर तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् औ, घ, झ,
               े                                                        ८. बैयव                ईशान
   द, ध, ब, व, स ।                                                      ९. बैयवी               ऩस्द्ळभ
3. अस्ग्न तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् इ, ई, ऐ,
                   े
                                                               नोट: उि वणान को कवर ऩाठकं क भागादशान हे तु
                                                                                े         े
   ख, छ, ठ, थ, प, य ।
                                                               प्रदान दकमा गमा हं । कोई बी व्मत्रि जो मन्ि द्राया राब
4. वामु तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ, आ, ए,
                 े
                                                               प्राद्ऱ कयना चाहते हो उन्हं शास्त्र सम्भत सनमभं एवॊ
   क, च, ट, त, ऩ, म, ष ।
                                                               त्रवसध-त्रवधान का ऩारन कयते हुवे गुरु आऻा प्राद्ऱ कय के
5. आकाश तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ्, अॊ,
                 े
                                                               ही मन्ि साधना कयनी चादहए।
   ड, न्म, ण, न, भ, श, ह ।



                                                        भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश
                 भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक क रूऩ भं जाना जाता हं । इस क ऩूजन से जीवन भं सुख
                                                                  े                          े
                 सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं ।यि सॊचाय को सॊतुसरत कयता हं । भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को चतुय
                 फनाता हं । फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फचाव होता हं । भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय चेचक
                 जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं ।                                 भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक

                                             भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि
       भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद क त्रववादो को हर कयने क काभ भं राब दे ता हं , इस क असतरयि व्मत्रि को
                                े                     े                          े
ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं ।       त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं क कल्माण क सरए
                                                                                                े        े
भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि क ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की
                                                                                    े
कभी, गबाऩात से फचाव, फुखाय, चेचक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि क दद्श प्रबा, बूत-प्रेत
                                                                                                   े ु
बम, वाहन दघटनाओॊ, हभरा, चोयी इत्मादी से फचाव होता हं ।
          ु ा                                                                                भूल्म भाि Rs- 730
11                                      ददसम्फय 2012




                                  अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब
                                                                                       स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, ददऩक.ऐस.जोशी

                                                              10) छत्तीसा मन्ि (36) को आसथाक राब हे तु प्रमोग
     अॊक मन्ि अऩने आऩभं त्रवशेष यहस्म सभामे होते                   दकमा जाता हं ।
हं । मन्ि क जानकायं का अनुबव हं की त्रवशेष अॊकं क
           े                                     े            11) चारीसा मन्ि (40) को भान-सम्भान की वृत्रद्ध, शिु
भाध्म से कदठन कामं को बी सयरता से ससद्ध दकमे जा                    को नतभस्तक कयने एवॊ ससयददा दय कयने हे तु
                                                                                               ू
सकते हं । अफ तक अॊक मन्िं भं प्राम् ऩन्रह से रेकय                  प्रमोग दकमा जाता हं ।
दस राख तक की सॊख्माओॊ वारं अॊकं का प्रमोग होते                12) ऩच्चासवाॊ मन्ि (40) को छोटे फारकं का योना
दे खा गमा हं । ऩौयास्णक गॊथं भं त्रवसबन्न कामं की ससत्रद्ध         फन्द कयाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
क सरए अॊकं का भहत्व त्रवशेष रुऩ से दशाामा गमा हं ।
 े                                                            13) छप्ऩनवा मन्ि (56) को भोहन आदद कामो क सरए
                                                                                                      े
                                                                   प्रमोग दकमा जाता हं ।
1)   ऩॊदयीमा (15) मन्ि सबी प्रकाय की ससत्रद्धमं को            14) फासदठमाॊ मन्ि (62) को फॊध्मा स्त्री को गबा
     प्रदान कयने वारा भाना गमा हं ।                                ठहयवाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
2)   सोडष मन्ि (16) अथाात सोरह अॊक वारे मन्ि को               15) चौसदठमाॊ मन्ि (62) को सवा प्रकाय क बमं क
                                                                                                    े     े
     चोय आदद फाधाओॊ को दय कयने हे तु प्रमोग दकमा
                        ू                                          सनवायण क सरए त्रवशेष रुऩ से प्रमोग दकमा जाता
                                                                           े
     जाता हं ।                                                     हं । चौसदठमाॊ मन्ि का प्रमोग बूत-प्रेत, शादकनी-
3)   उन्नीसाॊ मन्ि (19) खेत एवॊ धान को कीिं से                     डादकनी आदद ऩीडाओॊ से यऺा हे तु दकमा जाता हं ।
     फचाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।                        16) सत्तयीमाॊ मन्ि (70) क प्रमोग से भान-सम्भान की
                                                                                       े
4)   फीसा मन्ि (20) को सोरह कोद्शक भं सरखकय ऩास                    वृत्रद्ध होती हं ।
     भं यखने से सबी तयह क बम का नाश होता हं ।
                         े                                    17) फहत्तयीमाॊ मन्ि (72) को बूत-प्रेत आदद बमं को
5)   चौफीसा मन्ि (24) सवा प्रकाय से ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध               नद्श कयने औय जॊग भं त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग
     प्रदाता हं ।                                                  दकमा जाता हं ।
6)   अठाईसा मन्ि (28) से योग अबम नद्श होता हं ।               18) अठोत्तयीमाॊ मन्ि (78) को सवा प्रकायक कद्श से
                                                                                                      े
7)   तीस मन्ि (30) से शादकनी बम का नाश होता हं ।                   भुत्रि हे तु हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
8)   फत्तीसा मन्ि (32) को गसबाणी को सुकऩूवक प्रसव
                                          ा                   19) अस्सीमाॊ मन्ि (80) को अऩने द्राया दकमे गमे कभा
     हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । (फत्तीसा मन्ि क अनेक
                                                े                  परं की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
     प्रमोग एवॊ राब त्रवसबन्न ग्रॊथंभं दे खनेको सभरते हं ।    20) त्रऩच्चाससमाॊ मन्ि (85) को भागा अथाात मािा बम
9)   चौतीसा मन्ि (34) को भुख्म रुऩ से दे व ध्वजा ऩय                क सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
                                                                    े
     सरखने से शुब पर प्राद्ऱ होते हं । चौतीसा मन्ि            21) नब्दफेमाॊ मन्ि (90) को चोय से यऺा हे तु प्रमोग
     ऩयकभा अथाात दकसी क द्राया बम की प्रासद्ऱ होने से
                       े                                           दकमा जाता हं ।
     ऩूवा उसे दय कयता हं । बवन की भुख्म दीवाय ऩय
               ू                                              22) सौवाॊ मन्ि (100) को सवा कामा ससत्रद्ध हे तु प्रमोग
     इसे रेखने ऩय ऩयाबाव नहीॊ होता, शिुद्राया दकमे                 दकमा जाता हं ।
     गमे काभण-टु भण आदद का प्रबाव नद्श हो जाता हं ।
12                                   ददसम्फय 2012



23) एक सौ फीस मन्ि (120) को गसबाणी की प्रसव                  33) सात सौ का मन्ि (700) को वाद-त्रववाद भं त्रवजऩ
     ऩीडा़-कद्श को कभ कयने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।             प्रासद्ऱ क सरए प्रमोग दकमा जाता हं ।
                                                                             े
24) एक सौ छब्दफीसाॊ मन्ि (126) को फॊधे हुवे गबा को           34) नौ सौ का मन्ि (900) को भागा बम एवॊ मािा
     खोने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।                              बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
25) एक सौ फावनमाॊ मन्ि (152) को बाई-फहन भे                   35) एक हजाय का मन्ि (1000) को त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु
     आऩसी प्रेभ की वृत्रद्ध हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।            प्रमोग दकमा जाता हं ।
26) एक सौ सत्तयीमाॊ मन्ि (170) ऻान वृत्रद्ध हे तु त्रवशेष    36) ग्मायह सौ का मन्ि (1100) को दद्शात्भाओॊ, बम
                                                                                              ु
     प्रबावकायी भाना गमा हं ।                                      एवॊ क्रेश से से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
27) एक सौ फहत्तयीमाॊ मन्ि (172) को सॊतान राब एवॊ             37) फायह सं का मन्ि (1200) को फॊधन भुत्रि हे तु
     बम सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।                         प्रमोग दकमा जाता हं ।
28) दौ सौ का मन्ि (200) को व्मवसाम वृत्रद्ध हे तु            38) ऩचास हजाय का मन्ि (50000) को याज सम्भान
     प्रमोग दकमा जाता हं ।                                         की प्रासद्ऱ एवॊ सबी प्रकाय क कद्शं से भुत्रि हे तु
                                                                                               े
29) तीन सौ का मन्ि (300) को ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी                      प्रमोग दकमा जाता हं ।
     स्नेह फढा़ने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।                39) दस राख दस हजाय का मन्ि (1010000) को भागा
30) चाय सौ का मन्ि (400) को बवन भं सरखने से                        भं चोय बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं ।
     बम से यऺा हे तु एवॊ खेतं भं सरखने से धान्म की           इस प्रकाय से दकसी बी मन्ि का प्रमोग कयने से ऩूवा
     उऩज अस्च्छ हो इस सरए दकमा जाता हं ।                     उसक ऩूणा प्रबावं को जान रेना असत आवश्मक हं उऩय
                                                                े
31) ऩाॊच सौ का मन्ि (500) स्त्री को गबा धायण हे तु           दशाामे गमे अॊक मन्िं की सूसच महाॊ भाि भागादशान के
     एवॊ ऩुरुष को उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग       उद्दे श्म से दी गई हं । त्रवद्रजनं एवॊ साधको क अनुबवं भं
                                                                                                           े
     दकमा जाता हं ।                                          अॊतय होने से उऩय भं जो पर दशाामे गमे हं उसभं अॊतय
32) छ् सौ का मन्ि (600) को सुख-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ        सॊबव हं , अत् इस त्रवषम भं दकसी मोग्म गुरु मा साधक
     क सरए प्रमोग दकमा जाता हं ।
      े                                                      से ऩयाभशा कय रेना असत आवश्मक हं ।



                                            नवयत्न जदित श्री मॊि
  शास्त्र वचन क अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि क चायं औय मदद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न
               े                                              े
  जदित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसक सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकट क रूऩ भं धायण कयने से
                                            े                           े  े
  व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसक साथ
                                                                                                           े
  हं । नवग्रह को श्री मॊि क साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता
                           े
  हं । गरे भं होने क कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय
                    े
  को रगते हं , वह गॊगा जर क सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे
                           े
  अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ क सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं
                                                            े
  एसा शास्त्रोि वचन हं । इस प्रकाय क नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत
                                    े
  कयक फनावाए जाते हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 से असधक
     े
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                                                श्रीमॊि की भदहभा
                                                                                       सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी

         दहन्द ु धभा भं श्रीमॊि सवाासधक रोकत्रप्रम एवॊ          ऩूछे गमे प्रद्ल ऩय बगवान बोरेनाथ ने स्वमॊ शॊकयाचामा
प्राचीन मॊि है , श्रीमॊि की आयाध्मा दे वी स्वमॊ श्रीत्रवद्या    को साऺात रक्ष्भी स्वरूऩ श्री मॊि की त्रवस्तृत भदहभा
अथाात त्रिऩुय सुन्दयी दे वी हं , श्रीमॊि को दे वीक ही रूऩ भं
                                                  े             फताई औय कहा मह श्री मॊि भनुष्मं का सबी प्रकाय से
भान्मता ददगई है ।                                               कल्माण कये गा।
         श्रीमॊि को अत्मासधक शत्रिशारी व रसरतादे वी का                 श्री मॊि ऩयभ ब्रह्म स्वरूऩी आदद दे वी बगवती
ऩूजन चि भाना जाता है , श्रीमॊि को िैरोक्म भोहन                  भहात्रिऩुय सुदॊयी की उऩासना का सवाश्रद्ष मॊि है क्मंदक
                                                                                                     े
अथाात तीनं रोकं का भोहन कयने वारा मन्ि बी कहाॊ                  श्री चि ही दे वीका सनवास स्थर है । श्री मॊि भं दे वी स्वमॊ
जाता है ।                                                       त्रवयाजभान होती हं इसीसरए श्री मॊि त्रवद्व का कल्माण
         श्रीमॊि भं सवा यऺाकायी, सवाकद्शनाशक, सवाव्मासध-        कयने वारा है ।
सनवायक त्रवशेष गुण होने क कायण श्रीमॊि को सवा
                         े                                             आज क आधुसनक मुग भं भनुष्म त्रवसबन्न प्रकाय
                                                                           े
ससत्रद्धप्रद एवॊ सवा सौबाग्म दामक भाना जाता है ।                की सभस्माओॊ से ग्रस्त है , एसी स्स्थसत भं मदद भनुष्म
         श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा               ऩूणा श्रद्धाबाव औय त्रवद्वास से श्रीमॊि की स्थाऩना कयं तो

जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन क आगभन हे तु
                                े                               मह मॊि उसक सरए चभत्कायी ससद्र हो सकता है ।
                                                                          े
                                                                       भॊि ससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत श्री मॊि को कोई बी
सवाश्रद्ष मॊि भाना गमा हं ।
      े
                                                                भनुष्म चाहे वह धनवान हो मा सनधान वहॉ अऩने घय,
         त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं
                                                                दकान, ऑदपस इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय स्थात्रऩत
                                                                 ु
व चभत्कायी शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख
                                                                कय सकता हं । त्रवद्रानो का अनुबव हं की श्रीमॊि का
कन्र त्रफन्द ु है ।
 े
                                                                प्रसतदन ऩूजन कयने से दे वी रक्ष्भी प्रसन्न होती है औय
         श्रीमॊि को सबी दे वी-दे वताओॊ क मॊिं भं सवाश्रद्ष
                                        े              े
                                                                भनुष्म का सबी प्रकाय से भॊगर कयती हं । भाॊ भहारक्ष्भी
मॊि कहा गमा है । महीॊ कायण हं , दक श्रीमॊि को मॊियाज,
                                                                की कृ ऩा से भनुष्म ददन प्रसतददन सुख-सभृत्रद्ध एवॊ ऐद्वमा
मॊि सशयोभस्ण बी कहा जाता है ।
                                                                को प्राद्ऱ कय आनॊदभम जीवन व्मतीत कयता हं ।
                                                                       ऩौयास्णक धभाग्रॊथं भं वस्णात हं की श्री मॊि
श्रीमॊि से जुडी़ ऩौयास्णक कथा
                                                                आददकारीन त्रवद्या का द्योतक हं , बायतवषा भं प्राचीनकार
         धभाग्रॊथं भं श्री मॊि क सॊदबा भं एक प्रचसरत
                                े                               भं बी वास्तुकरा अत्मन्त सभृद्र थी। औय आज के
कथा का वणान सभरता है ।                                          आधुसनक मुग भं प्राम् हय भनुष्म वास्तु क भाध्मभ से
                                                                                                       े
कथाक अनुसाय एक फाय आददगुरु शॊकयाचामाजी ने कराश
    े                                      ै                    बी प्रकाय क सुख प्राद्ऱ कयना चाहता है । उनक सरए
                                                                           े                               े
ऩय बगवान सशवजी को कदठन तऩस्मा द्राया प्रसन्न कय                 श्रीमॊि की स्थाऩना अत्मॊत भहत्वऩूणा है ।
सरमा।                                                                  क्मोदक जानकायं का भानना हं की श्री मॊि भं
बगवान बोरेनाथ ने प्रसन्न होकय शॊकयाचामाजी से वय                 ब्रह्माण्ड की उत्ऩत्रत्त औय त्रवकास का यहस्म सछऩा हं ।
भाॊगने क सरए कहा। आददगुरु शॊकयाचामाजी ने सशवजी से
        े                                                              त्रवद्रानो क भतानुशाय श्रीमॊि भं श्री शब्दद की
                                                                                   े
त्रवद्व कल्माण का उऩाम ऩूछा।                                    व्माख्मा इस प्रकाय से की गई हं "श्रमत मा सा श्री"
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  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ई- जन्भ ऩत्रिका ददसम्फय 2012 अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया सॊऩादक सचॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ े गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, १००+ ऩेज भं प्रस्तुत (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785, E HOROSCOPE ईभेर gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Create By Advanced वेफ www.gurutvakaryalay.com http://gk.yolasite.com/ Astrology www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत Excellent Prediction सचॊतन जोशी, 100+ Pages स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्रादपक्स दहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/- सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 सोफ्टे क इस्न्डमा सर) Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. स्जस प्रकाय शयीय आत्भा क सरए औय तेर दीऩक क सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु े े होते हं । सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं । मॊि प्रमोग का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते …4 …4 श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन क आगभन हे तु े सवाश्रद्ष मॊि भाना गमा हं । त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं व चभत्कायी े शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख कन्र त्रफन्दु है । …6 े मॊि त्रवशेष भं ऩढे ़  त्रवशेष भं   दीऩावरी त्रवशेष  सवा कामा ससत्रद्ध मन्िं क प्रभुख प्रकाय े 7 काभनाऩूसता हे तु दरब साधना (बाग:1) ु ा 27 मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव 9 हरयरा गणऩसत मन्ि साधना 27 कवच … 45 अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब 11 त्रवजम गणऩसत मन्ि साधना 28 श्रीमॊि की भदहभा कल्माणकायी गणऩसत मन्ि साधना 13 29 त्रवद्या प्रासद्ऱ हे तु सयस्वती कवच औय मॊि 25 मन्ि का चमन कयने भं यखं सावधासनमाॊ। 26  हभाये उत्ऩाद  त्रवसबन्न मॊि क राब े बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी गणेश रक्ष्भी मॊि. 30 8 नवदगाा मन्ि ु 41 भॊिससद्ध स्पदटक श्री मॊि 15 मॊि द्राया वास्तु दोष सनवायण 43 भॊि ससद्ध दरब साभग्री ु ा 39 जन्भ रग्न से योग सनवायण हे तु उऩमुि मॊि 46 भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश 43 मॊि साधना हे तु उऩमुि भारा चमन 49 सवा कामा ससत्रद्ध कवच 45 त्रवसबन्न भारा से काभना ऩूसता 50 हभाये त्रवशेष मॊि 55 नवयत्न जदित श्रीमॊि..63 भारा क 108 भनकं का यहस्म े 51 सवाससत्रद्धदामक भुदरका 58 भारा से सॊफॊसधत शास्त्रोि भत 53 द्रादश भहा मॊि 60 त्रवसबन्न रक्ष्भी धन प्रासद्ऱ हे तु उत्तभ परदामी हं स्पदटक श्रीमॊि 56 ऩुरुषाकाय शसन मॊि एवॊ शसन तैसतसा मॊि 62 मॊि … श्री हनुभान मॊि 64 त्रवसबन्न दे वता एवॊ काभना ऩूसता मॊि सूसच 65  स्थामी औय अन्म रेख  त्रवसबन्न दे वी एवॊ रक्ष्भी मॊि सूसच 66 सॊऩादकीम 4 भॊि ससद्ध रूराऺ 68 भाससक यासश पर 74 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊि / कवच 69 यासश यत्न…67 ददसम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग 78 याभ यऺा मॊि 70 ददसम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 80 जैन धभाक त्रवसशद्श मॊि े 71 ददसम्फय 2102 -त्रवशेष मोग 85 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 72 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 85 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच 73 ददन-यात क चौघदडमे े 86 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 73 भॊि ससद्ध रूराऺ …68 ददन-यात दक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 87 सवा योगनाशक मॊि/ 89 ग्रह चरन ददसम्फय -2012 भॊि ससद्ध कवच अभोद्य भहाभृत्मुजम ॊ 88 91 सूचना 96 YANTRA LIST 92 कवच … 73 हभाया उद्दे श्म 98 GEM STONE 94
  • 4. त्रप्रम आस्त्भम फॊध/ फदहन ु जम गुरुदे व मॊि शब्दद "मभ" धातु का घोतक हं । (मभ धातु से फना हं ) मन्िसभत्माहुयेतस्स्भन ् दे व्प्रीणासत ऩूस्जत्। शयीयसभव जीवस्म दीऩस्म स्नेहवत ् त्रप्रमे॥ अथाात ्: स्जस प्रकाय शयीय आत्भा क सरए औय तेर दीऩक क सरए हं , उसी प्रकाय मन्ि इद्शदे वी-दे वता की प्रसन्नता हे तु े े होते हं । सयर बाषा भं सभझे तो मॊि शब्दद का अथा दकसी औजाय मा साधन से दकमा जाता हं । मॊि प्रमोग का भुख्म उद्दे श्म होता हं भनुष्म को दिमाशीर, उद्यभी मा प्रमत्नशीर कयने की प्रेयणा दे ते हं औय उसके द्ख, दबााग्म, असपरता को दय कयने हे तु सहामक होते हं । मॊि प्रत्मऺ रूऩ से भनुष्म की कामाऺभता की नकायात्भक ु ु ू उजाा को दय कय सकायात्भक उजाा भं ऩरयवसतात कय दे ते हं । ू आज क आधुसनक मुग भं त्रवद्रानं ने अऩने शोध एवॊ अनुसॊधान से मह मह ऩामा है दक आध्मास्त्भक स्थर, े ऩूजा-ऩाठ इत्मादद स्थर, भानव शयीय भं स्स्थत कडसरनी क चि, ऩत्रवि सॊकत सचन्ह, कछ त्रवसशद्श आकृ सतमाॊ आदद भं ुॊ े े ु एक त्रवशेष प्रकाय की सूक्ष्भ ऊजाा सनयॊ तय प्रवादहत होती यहती हं , स्जस का ऺेि त्रवशार औय सकायात्भक होता है । मह उजाा उसी प्रकाय से कामा कयती हं स्जस प्रकाय दकसी वस्तु ऩय त्रवद्युत चुम्फकीम ऺेि का प्रबाव होता हं । आजक आधुसनक मुग भं वैऻासनक ऻान प्राद्ऱ भनुष्म, अॊतय भन से दरयर मा अनुसचत भागादशान से त्रवसबन्न े प्रकाय क मॊि-भॊि-तॊि टोने-टोटक मा उऩामो को कयक हाय चुका व्मत्रि मह सोचता हं , की.... बाग्म भं जो सरखा हं े े े वहीॊ होगा!...., नसीफ भं जो होगा वहीॊ सभरेगा हं !...., बगवान दक इच्छा क आगे दकस दक चरती हं !...., बगवान ने े द्ख सरखा हं तो क्मा कये !...., हभाये तो अभुख ग्रह दह खयफ चर यहे हं ...., हभाया तो नसीफ ही खयाफ हं .............. ु इत्मादी से हभ सफ अच्छी तयह वाकीफ़ हं । कछ रोग धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय त्रवद्वास नहीॊ होता, मा कछ रोग ऩहरे त्रवद्वास कयते थे रेदकन ु ु अनुसचत भागादशान मा प्रमोग भं यहजाने वारी दकसी तृदट क कायण उनकी इच्छा ऩूसता का अऩूणा यह जाना इन त्रवषमो े ऩय अत्रवद्वास को जन्भ दे ता हं । एसी स्स्थसत भं अनेक रोगं का धभाशास्त्र, बगवान इत्मादद ऩय अत्रवद्वास हो जाना स्वाबात्रवक हं ? ईद्वय नं सबी भनुष्मं को एक सभान फनामा हं , इस सरए इस सॊसाय भं व्माद्ऱ सबी प्रकाय क सुख बोगने का सबी भनुष्मं को े फयाफय का असधकाय ददमा हं । क्मोदक सबी जीव ईद्वय क अॊश हं , इस सरए ईद्वय सफ को एक ही बाव से दे खता हं । े व्मत्रि आज दरयर हं , सनधान हं तो वह उसक सनजी कभो का पर भाि हं । े उसकी दरयरता दकसी ग्रह क कायण नहीॊ ग्रह तो कवर व्मत्रि क कभो का पर प्रदान कयने हे तु त्रवधाताक े े े े सहमोगी हं । दरयर व्मत्रि अऩनी गरतीमाॊ अऩने नसीफ औय बगवान ऩय राद दे ते हं । व्मत्रि को आवश्मिा हं , उसचत भागादशान दक मदद व्मत्रि को उसचत भागादशान प्राद्ऱ हो जामे तो इस सॊसाय का दरयर से दरयर कगार से कगार व्मत्रि ॊ ॊ बी धनवान फन सकता हं । व्मत्रि उसचत भागादशान, भॊि-मॊि-तॊि, एवॊ दरब वस्तुओॊ क त्रवसध-वत प्रमोगं क भाध्मभ से ु ा े े
  • 5. अऩनी इच्छाओॊ को ऩूणा कयने भं सभथा फन सकता हं , इसभं जया बी सॊदेह नहीॊ हं । धन प्रासद्ऱ हे तु दकमे गमे भॊि-मॊि-तॊि की साधना एवॊ त्रवसबन्न साभग्रीमं क प्रमोग का परदामी नहीॊ होना, मह े दकसी साधना मा भॊि-मॊि-तॊि की उऩासना का कोई दोष नहीॊ फरदक व्मत्रि क श्राद्धाहीन अॊतय भन का ही दोष होता े हं । क्मोदक हभाये त्रवद्रान कषी-भुनी ने हजायो वषा ऩूवा अऩने तऩोफर से मह ऻात कय सरमा था की भनुष्म दक शत्रिमाॊ अऩाय औय अनॊत हं । जीसे आज का आधुसनक त्रवऻान बी भान चुका हं की एक व्मत्रि अऩनी वास्तवीक शत्रि का भाि ३(तीन) प्रसतशत दहस्सा ही इस्तेभार कयता हं । दठक इसी प्रकाय आऩक बीतय बी ऩयभात्भा की अऩाय शत्रिमाॊ े भौजुद हं फस उन शत्रिओॊ को उजागय कयने की जरुयत भाि हं , आऩ अऩने अॊदय उठनेवारी इन तयॊ गो क कायण े आऩक आस-ऩास का वातावतण सकायात्भक उजाा से बय जामेगा एवॊ मह उजाा आऩक अॊतय भन दक गहयाई तक प्रवेश े े कय गई तो इन शत्रिमो से आऩको आत्भ फर की प्रासद्ऱ होगी स्जससे आऩक धनवान फनने औय इस ददशा भं अग्रस्त े होने का भागा स्वत् दह खूरने रगेगा। दपय आऩकी भॊस्झर आऩसे दय नहीॊ यह जामेगी। व्मत्रि मदद एक फाय चाहरे तो ू वह अऩनी स्स्थती भं ऩरयवतान रासकता हं फस जरुयत हं एक रढ सॊकल्ऩ दक। इस सरए तो शास्तं भं कहाॊ गमा हं की उद्यभे नास्स्त दारयरमभ ् । अथाात:उद्यभ कयने से दरयरता की नहीॊ यह जाती । इसी सरए सैकडो़ त्रवद्रान ऋषी-भुसनमं ने भनुष्म को उद्यभी फनाने क सरए दिमाशीर फनाने क सरए अऩने मोग े े फर एवॊ ऩरयश्रभ से मॊि क गूढ़ यहस्म को जार सरमा था औय उन्हं ने हभाये भागादशान हे तु मॊि क प्रबावं का सूक्ष्भ े े अध्ममन कय उसक प्रबावं से हभं अवगत कयाने हे तु त्रवसबन्न ग्रॊथो एवॊ शास्त्रं की यचना की हं । े मॊि का सॊसाय असत त्रवशार हं , क्मोकी सभग्र त्रवद्व भं सैकिं धभा, सॊप्रदाम, सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सतमा हं हय एक धभा मा सॊप्रदाम भं प्रत्मऺ मा अप्रत्मऺ रुऩ से मॊिं का उऩमोग प्रासचन कार से होता आमा हं । अबी तक हजायं राखं तयह क मॊि अरग-अरग बाषा एवॊ सॊस्कृ सतमं भं सनसभात दकमे गमे हं , स्जसक प्रभाण त्रवसबन्न ग्रॊथ-शास्त्र आदद भं े े उऩरब्दध हं । रेदकन सभग्र सभ्मता एवॊ सॊस्कृ सत भं मॊि क सनभााण का भुख्म उद्दे श्म भनुष्म भाि का कल्माण ही है । े इस अॊक भं प्रकासशत त्रवसबन्न उऩाम, मॊि-भॊि-तॊि, साधना व ऩूजा ऩद्धसत क त्रवषम भं साधक एवॊ े त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मदद दशाामे गए मॊि, भॊि, स्तोि इत्मादी क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, े दडजाईन भं, टाईऩीॊग भं, त्रप्रॊदटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुदट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा दकसी मोग्म गुरु मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे । क्मोदक त्रवद्रान गुरुजनो एवॊ साधको क सनजी अनुबव त्रवसबन्न अनुद्षा े भं बेद होने ऩय मॊि की ऩूजन त्रवसध एवॊ जऩ त्रवसध भं, प्रबावं क अध्ममन भं सबन्नता सॊबव हं । े आऩका जीवन सुखभम, भॊगरभम हो भाॊ रक्ष्भी की कृ ऩा आऩक ऩरयवाय ऩय े फनी यहे । भाॊ भहारक्ष्भी से मही प्राथना हं … सचॊतन जोशी
  • 6. 6 ददसम्फय 2012 ***** मॊि त्रवशेषाॊक से सॊफॊसधत त्रवशेष सूचना *****  ऩत्रिका भं प्रकासशत मॊि सम्फस्न्धत सबी जानकायीमाॊ गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही आयस्ऺत हं । े े  ऩौयास्णक ग्रॊथो ऩय अत्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि इस अॊक भं उऩरब्दध सबी त्रवषम को भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।  धासभाक त्रवषम आस्था एवॊ त्रवद्वास ऩय आधारयत होने क कायण इस अॊकभं वस्णात सबी जानकायीमा े बायसतम ग्रॊथो से प्रेरयत होकय सरखी गई हं ।  धभा से सॊफॊसधत त्रवषमो दक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय दकसी बी प्रकाय दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं ।  इस अॊक भं वस्णात सॊफॊसधत सबी रेख भं वस्णात भॊि, मॊि व प्रमोग दक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव दक स्जन्भेदायी क फाये भं े जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक दकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।  धभा से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष का दकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम उनका स्वमॊ का होगा।  शास्त्रोि त्रवषमं से सॊफॊसधत जानकायी ऩय ऩाठक द्राया दकसी बी प्रकाय दक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  धभा से सॊफॊसधत रेख प्राभास्णक ग्रॊथो, हभाये वषो क अनुबव एव अनुशधान क आधाय ऩय ददमे गमे हं । े ॊ े  हभ दकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया धभा से सॊफॊसधत त्रवषमं ऩय त्रवद्वास दकए जाने ऩय उसक राब मा नुक्शान की े स्जन्भेदायी नदहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी धासभाक त्रवषमो ऩय त्रवद्वास कयने वारे मा उसका प्रमोग कयने वारे व्मत्रि दक स्वमॊ दक होगी।  क्मोदक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मदद नीजी स्वाथा े ऩूसता हे तु महाॊ वस्णात जानकायी क आधाय ऩय प्रमोग कताा हं अथवा धासभाक त्रवषमो क उऩमोग कयने भे े े िुदट यखता हं मा उससे िुदट होती हं तो इस कायण से प्रसतकर अथवा त्रवऩरयत ऩरयणाभ सभरने बी सॊबव हं । ू  धासभाक त्रवषमो से सॊफॊसधत जानकायी को भानकय उससे प्राद्ऱ होने वारे राब, हानी दक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक दक नहीॊ हं ।  हभाये द्राया ऩोस्ट दकमे गमे धासभाक त्रवषमो ऩय आधारयत रेखं भं वस्णात जानकायी को हभने कई फाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधगण ने बी अऩने नीजी जीवन भं अनुबव दकमा हं । स्जस्से हभ कई फाय धासभाक ु इनसे त्रवशेष राब की प्रासद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं । ा (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा। े े
  • 7. 7 ददसम्फय 2012 मन्िं क प्रभुख प्रकाय े  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी मॊि कई रुऩं भं सनसभात दकम जाते हं । प्राचीन भेरुप्रस्ताय मन्ि: ग्रॊथं भं त्रवसबन्न प्रकाय क मन्िं का उल्रेख सभरते हं । े भेरुप्रस्ताय मन्ि, भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान होता हं , े महाॊ हभ ऩाठकं क भागादशान हे तु मन्िं की प्रभुख े रेदकन भेरुऩृद्ष मन्ि भं ये खाॊकन की दिमा को उबायकय श्रेणीमं का वणान कय यहे हं । मा उत्कीणा कयक ऩूणा की जाती हं , वहीॊ भेरुप्रस्ताय मन्ि े भं ये खाॊकन मन्िाकाय होता हं । इस तयह क मन्ि को े बूऩद्ष मन्ि: ृ दे खने ऩय रगता हं की सॊऩूणा मन्ि को टु किं भं काटकय सभतर आकाय वारे मन्ि अथाात वह मन्ि एक-दसये ऩय आसश्रत दकमा गमा है । ू स्जनका आधाय सभरत मा धयातर ऩय हो उसे बूऩद्ष ृ मन्ि कहाॊ जाता हं । मन्ि ि इसी सभतर आधाय ऩय कभाऩद्ष मन्ि: ू ृ मन्ि की ये खामे, वगा, त्रफन्द, त्रिबुज, चतुबज, कभर दर, ु ुा कभाऩद्ष मन्ि भं भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान सशखय ू ृ े अॊक, फीज भॊि आदद को उत्कीणा दकमा जाता हं । कहने नहीॊ होता। मह नीचे से चौकोय औय उऩय से गोराई सरमे का भतरफ हं की सभतर आधाय वारे मन्ि को बूऩद्ष ृ होता हं । रेदकन इसभं भेरुऩृद्ष मन्ि क सभान सशखय नहीॊ े मन्ि कहाॊ जाता हं । होता। ु दे खने भं मह कछएॊ की ऊची ऩीठ क सभान े नझय आता हं । इस प्रकाय क मन्ि को कभाऩद्ष मन्ि े ू ृ भेरुऩृद्ष मन्ि: कहते हं । भेरुऩृद्ष आगाय वारे मन्ि की आकृ सत भेरु की तयह उऩय की ओय िभश् उठी हुई होती हं जो दे खने भं मन्िं का वगॉकयण ऩवाताकाय ददखती हं । मॊि का अॊसतभ बाग अथाात सशखय 1. ये खात्भक मॊि, 2. आकृ सतभूरक मन्ि उऩय से नुकीरा होता हं , व नीचे का दहस्सा चौिा अथाात परा हुवा होता हं , इस प्रकाय क मॊिं भं नीचे से उऩय ै े 1.ये खात्भक मॊि का दहस्सा िभश् छोटा होता जाता हं औय आस्खय भं ये खात्भक मॊि भं कवर ये खाओॊ का प्रमोग दकमा जाता हं , े सशखय वारा दहस्सा नुकीरा होता हं । इस तयह क मन्िं े जो भुख्मत् त्रिकोण, चतुबज, वि, कभराकाय, आमुध, ुा भं ये खाएॊ उबयी हुई मा उत्कीणा मा खुदी हुई होती हं । वरम आदद को मथाथाऩूणा दशाामा जाता हं । ऩातार मन्ि: 2. आकृ सतभूरक मन्ि ऩातार मन्ि को भेरुऩृद्ष मन्ि से त्रवऩयीत सनसभात आकृ सतभूरक मन्ि भं ये खाओॊ को ज्मासभसतक आकाय भं दकमा जाता हं जहाॊ भेरुऩृद्ष मन्ि भं मन्ि का सशखय होता प्रमोग नहीॊ कयक स्ऩद्श रुऩ से सचिाॊकन दकमा जाता हं । े हं वहीॊ ऩातार मन्ि भं मन्ि का भध्म दहस्सा कटोयी के मन्ि क सनभााण भं कामा उद्दे श्म क अनुशाय त्रवसबन्न े े साभान अॊदय की औय से िभश् गहया होता जाता हं हं । प्रकाय क दे व-दे वी, भानव, ऩशु-ऩस्ऺ, वृऺ आदद क स्वरुऩ े े का सचिाॊकन दकमा जाता हं ।
  • 8. 8 ददसम्फय 2012 ये खात्भक मॊि क सनम्न चाय वगा होते हं । े अॊकगसबात मॊि: अॊकगसबात मॊि भं अॊकात्भक दे वताओॊ का सनवास 1. फीजभॊिमुि मॊि । होता हं । दहन्द ू धभा भं एसा भाना जाता हं की प्रत्मेक 2. भॊिवणामुि मॊि । अॊक दकसी-न-दकसी दे वता का प्रसतक होता हं । इस सरए 3. अॊकगसबात मॊि । अॊकं को दे वता क प्रसतसनसध क रुऩ भं त्रवसबन्न उद्दे श्म े े 4. सभश्र मॊि । से मन्िं क सनभााण क सरए अॊकं का प्रमोग दकमा जाता े े हं । इस प्रकाय क मन्िं को अॊकगसबात मॊि कहते हं । े फीजभॊिमुि मॊि: फीजभॊिमुि मॊि को दकसी दे वी-दे वता क सॊस्ऺद्ऱ े सभश्र मॊि: रुऩ क भन्ि का प्रमोग दकमा जाता हं । अथाात दे वी- े सभश्र मॊि भं उऩय दशाामे गमे तीनं श्रेणीमं का दे वताओॊ क शत्रिशारी फीज भॊिं का प्रमोग दकमा जाता े प्रमोग एक साथ (अथाात फीजभॊिमुि मॊि, भॊिवणामुि हं । जो सॊफॊसधत दे वी-दे वताओॊ का सस्ऺद्ऱ रुऩ होता हं मॊि, अॊकगसबात मॊि) हुवा हो मा एक क साथ दसयी श्रेणी े ू अथाात स्जसभं उस दे वी-दे वता की गुद्ऱ शत्रिमाॊ सनदहत का प्रमोग होने ऩय उसे सभश्र मॊि कहते हं । होती हं । स्जससे उस फीज भन्ि क स्भयण मा उच्चायण े से ही साधक की सभग्र काभनाएॊ ऩूणा होने रगती हं । फीजभॊिमुि मॊि को सवाासधक शत्रिशारी मन्ि भाना शास्त्रं भं मॊि क भुख्म सात प्रकाय फतामे गम े जाता हं । हं । शास्त्रं भं मन्िं का वगॉकयण उसकी उऩमोसगता के भॊिवणामि मॊि: ु आधाय ऩय दकमा गमा हं । स्जसक अनुशाय उसक िभ इस े े प्रकाय हं .. भॊिवणामुि मॊि भं त्रवशेद्श वणं को िभ भं 1. शयीय मन्ि 2. धायण मन्ि सजाकय भन्ि को दशाामा जाता हं । भॊिवणामुि मॊि भं 3. आसन मन्ि 4. भण्डर मन्ि प्रमुि वणं द्राय ही भन्िं का सनभााण दकमा गमा होता हं 5. ऩूजा मन्ि 6. छि मन्ि इस सरए भॊिवणामुि मॊि भं भन्ि शत्रि त्रवशेष रुऩ से 7. दशान मन्ि सभादहत होती हं । बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी सुख-शास्न्त-सभृत्रद्ध की प्रासद्ऱ क सरमे बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी :- स्जस्से धन प्रसद्ऱ, त्रववाह मोग, े व्माऩाय वृत्रद्ध, वशीकयण, कोटा कचेयी क कामा, बूतप्रेत फाधा, भायण, सम्भोहन, तास्न्िक े फाधा, शिु बम, चोय बम जेसी अनेक ऩये शासनमो से यऺा होसत है औय घय भे सुख सभृत्रद्ध दक प्रासद्ऱ होसत है , बाग्म रक्ष्भी ददब्दफी भे रघु श्री फ़र, हस्तजोडी (हाथा जोडी), ससमाय ससन्गी, त्रफस्ल्र नार, शॊख, कारी-सफ़द-रार गुॊजा, इन्र जार, भाम जार, ऩातार तुभडी े जेसी अनेक दरब साभग्री होती है । ु ा भूल्म:- Rs. 1250, 1900, 2800, 5500, 7300, 10900 भं उप्रब्दद्ध गुरुत्व कामाारम सॊऩक : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785 ा c
  • 9. 9 ददसम्फय 2012 मन्िं भं ऩॊच तत्त्ववं का भहत्त्वव  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, श्रेमा.ऐस.जोशी स्जस प्रकाय हभाया शयीय ऩाॉच तत्त्ववं से फना हं । मन्िं भं सनदहत ऩाॉच तत्त्ववं क प्रबाव े उसी प्रकाय कछ मन्िं भं बी ऩाॉच तत्त्वव बी सनदहत होते ु कछ जानकायं ने ऩाॉच तत्त्वव का प्रबाव भनुष्मं ऩय इस ु हं । मॊि भं सनदहत ऩाॉच तत्त्वव भानव शयीय क तत्त्ववं क े े प्रकाय भाना हं । सभान ही हं । 1. ऩृथ्वी तत्त्वव: 1. ऩृथ्वी तत्त्वव, 2. जर तत्त्वव, ऩृथ्वी तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को स्स्थयता, धैमा, े 3. अस्ग्न तत्त्वव, 4. वामु तत्त्वव औय उत्साह, उत्तभ त्रवचायधाया, शास्न्त, बौसतक सुख तथा 5. आकाश तत्त्वव। सपरता की प्रासद्ऱ होती हं । त्रवद्रानं ने अऩने अनुबवं से ऻात दकमा हं की 2. जर तत्त्वव: मॊिं क ऩाॉच तत्त्ववं की उऩस्स्थती ही भुख्म रुऩ से साधक े जर तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को भान, सम्भान, े को वाॊस्च्छत ससत्रद्ध प्रासद्ऱ हे तु सहामक होती हं । इस सरए प्रेभ, भाधुम, सन्तोष, ऻान औय चॊचरता को सनमॊत्रित ा मन्िं क ऩाॉच तत्त्वव की भहत्वता को जानना अत्मॊत े कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ होती हं । आवश्मक हं । क्मोदक महीॊ ऩाॉच तत्त्वव ब्रह्माण्ड की यहस्मभम शत्रिमं एवॊ साधक क सबतय सछऩी हुई शत्रिमं े 3. अस्ग्न तत्त्वव: की जाग्रत औय सनमस्न्ित कयने हे तु सहामक हं । अस्ग्न तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को िोध, े ये खामुि मन्ि औय अॊकात्भक मन्िं भं ऩृथ्वी उत्तेजना, तीव्रता, क्रेश, त्रवध्न, त्रवनाश, अशाॊसत, हासन, तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव, वामु तत्त्वव औय आकाश कद्श-श्रभसाध्मता, उग्रकभा आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु तत्त्वव का सभावेश दकमा जाता हं । स्जस प्रकाय ऩृथ्वी सहामता प्राद्ऱ होती हं । तत्त्वव, जर तत्त्वव, अस्ग्न तत्त्वव की ये खामं तो सयरता से ऻात की जा सकती हं , ऩृथ्वी तत्त्वव का आकाय चौकोय 4. वामु तत्त्वव: अथाात चतुष्कोण होता हं , जर तत्त्वव का आकाय वामु तत्त्वव का प्रबाव भनुष्म ऩय उसचत भाि भं हो भण्डराकाय अथाात गोर वृत्ताकाय होता हं , अस्ग्न तत्त्वव का तो उत्तभ हं अन्मथा मह त्रवऩयीत ऩरयणाभ प्रदान कयता आकाय त्रिकोण स्वरुऩ होता हं । मदद त्रिकोण का आकाय हं । वामु तत्त्वव क प्रबाव से भनुष्म को फुत्रद्ध, त्रवस्ऺद्ऱता, े मन्ि भं उध्वाभुखी औय अधोभुखी दशाामा गमा हो तो वह अत्रववेकी आचयण, भान-सम्भान की हासन, अऩमश, द्ख, ु सशव औय शत्रि का प्रसतक भाना जाता हं । अऻानता, आदद को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामता प्राद्ऱ होती हं । शास्त्रं भं ऩॊचदशी मन्ि भं तत्वं का वणान कयते 5. आकाश तत्त्वव: हुवे उल्रेख सभरता हं , की इन मन्िं भं तत्त्ववं क आकाय े आकाश तत्त्वव के प्रबाव ऩय ही भनुष्म को नहीॊ होते है , रेदकन अॊकं की मोजना ही उसभं तत्वं का आध्मात्भ प्रेभ, त्रवयि बाव, गहनसचन्तन, भनन, प्रसतनीसधत्त्वव दशााती हं ।
  • 10. 10 ददसम्फय 2012 अध्ममन औय एकान्त को सनमॊत्रित कयने हे तु सहामक हं । मन्ि क अॊक एवॊ दे वता े मदद आकाश तत्त्वव क सुपर भं न्मूनासधकता हो जाती हं े महाॊ हभ एक से नौ तक की सॊख्माओॊ की दे वाता एवॊ औय कभा रत्रद्श से इसका उऩमोग दकमा जाता हं । उनकी सॊफॊसधत ददशाओॊ को दशाायहे हं । स्जस मन्ि भं इन तत्वं की आकृ सतमं का सनदे श अॊक दे वता ददशा हो उसभं बी सम्फस्न्धत तत्वं क अऺय वारे फीजाऺय हो े १. सूमा ऩूवा तो मन्ि शीघ्र ससद्ध हो जाता हं । २. बुवनेद्वयी नैऋत्म ३. गणऩसत उत्तय ऩाठकं क ऻानवधान क उद्दे श्म से स्वय औय े े ४. हनुभान वामव्म व्मॊजनं को ऩाॉच तत्त्ववं की श्रेणी भं दशाामा गमा हं । ५. त्रवष्णु ऩस्द्ळभ 1. ऩृथ्वी तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् उ, ऊ, ओ, े ६. कातावीमा आग्नेम ग, ज, ि, द, फ, र । ७. कारी दस्ऺण 2. जर तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् औ, घ, झ, े ८. बैयव ईशान द, ध, ब, व, स । ९. बैयवी ऩस्द्ळभ 3. अस्ग्न तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् इ, ई, ऐ, े नोट: उि वणान को कवर ऩाठकं क भागादशान हे तु े े ख, छ, ठ, थ, प, य । प्रदान दकमा गमा हं । कोई बी व्मत्रि जो मन्ि द्राया राब 4. वामु तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ, आ, ए, े प्राद्ऱ कयना चाहते हो उन्हं शास्त्र सम्भत सनमभं एवॊ क, च, ट, त, ऩ, म, ष । त्रवसध-त्रवधान का ऩारन कयते हुवे गुरु आऻा प्राद्ऱ कय के 5. आकाश तत्त्वव क सम्फस्न्धत वणााऺाय िभश् अ्, अॊ, े ही मन्ि साधना कयनी चादहए। ड, न्म, ण, न, भ, श, ह । भॊि ससद्ध भूॊगा गणेश भूॊगा गणेश को त्रवध्नेद्वय औय ससत्रद्ध त्रवनामक क रूऩ भं जाना जाता हं । इस क ऩूजन से जीवन भं सुख े े सौबाग्म भं वृत्रद्ध होती हं ।यि सॊचाय को सॊतुसरत कयता हं । भस्स्तष्क को तीव्रता प्रदान कय व्मत्रि को चतुय फनाता हं । फाय-फाय होने वारे गबाऩात से फचाव होता हं । भूॊगा गणेश से फुखाय, नऩुॊसकता , सस्न्नऩात औय चेचक जेसे योग भं राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म Rs: 550 से Rs: 8200 तक भॊगर मॊि से ऋण भुत्रि भॊगर मॊि को जभीन-जामदाद क त्रववादो को हर कयने क काभ भं राब दे ता हं , इस क असतरयि व्मत्रि को े े े ऋण भुत्रि हे तु भॊगर साधना से असत शीध्र राब प्राद्ऱ होता हं । त्रववाह आदद भं भॊगरी जातकं क कल्माण क सरए े े भॊगर मॊि की ऩूजा कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । प्राण प्रसतत्रद्षत भॊगर मॊि क ऩूजन से बाग्मोदम, शयीय भं खून की े कभी, गबाऩात से फचाव, फुखाय, चेचक, ऩागरऩन, सूजन औय घाव, मौन शत्रि भं वृत्रद्ध, शिु त्रवजम, तॊि भॊि क दद्श प्रबा, बूत-प्रेत े ु बम, वाहन दघटनाओॊ, हभरा, चोयी इत्मादी से फचाव होता हं । ु ा भूल्म भाि Rs- 730
  • 11. 11 ददसम्फय 2012 अॊक मन्िं की त्रवसशद्शता एवॊ राब  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी, ददऩक.ऐस.जोशी 10) छत्तीसा मन्ि (36) को आसथाक राब हे तु प्रमोग अॊक मन्ि अऩने आऩभं त्रवशेष यहस्म सभामे होते दकमा जाता हं । हं । मन्ि क जानकायं का अनुबव हं की त्रवशेष अॊकं क े े 11) चारीसा मन्ि (40) को भान-सम्भान की वृत्रद्ध, शिु भाध्म से कदठन कामं को बी सयरता से ससद्ध दकमे जा को नतभस्तक कयने एवॊ ससयददा दय कयने हे तु ू सकते हं । अफ तक अॊक मन्िं भं प्राम् ऩन्रह से रेकय प्रमोग दकमा जाता हं । दस राख तक की सॊख्माओॊ वारं अॊकं का प्रमोग होते 12) ऩच्चासवाॊ मन्ि (40) को छोटे फारकं का योना दे खा गमा हं । ऩौयास्णक गॊथं भं त्रवसबन्न कामं की ससत्रद्ध फन्द कयाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । क सरए अॊकं का भहत्व त्रवशेष रुऩ से दशाामा गमा हं । े 13) छप्ऩनवा मन्ि (56) को भोहन आदद कामो क सरए े प्रमोग दकमा जाता हं । 1) ऩॊदयीमा (15) मन्ि सबी प्रकाय की ससत्रद्धमं को 14) फासदठमाॊ मन्ि (62) को फॊध्मा स्त्री को गबा प्रदान कयने वारा भाना गमा हं । ठहयवाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 2) सोडष मन्ि (16) अथाात सोरह अॊक वारे मन्ि को 15) चौसदठमाॊ मन्ि (62) को सवा प्रकाय क बमं क े े चोय आदद फाधाओॊ को दय कयने हे तु प्रमोग दकमा ू सनवायण क सरए त्रवशेष रुऩ से प्रमोग दकमा जाता े जाता हं । हं । चौसदठमाॊ मन्ि का प्रमोग बूत-प्रेत, शादकनी- 3) उन्नीसाॊ मन्ि (19) खेत एवॊ धान को कीिं से डादकनी आदद ऩीडाओॊ से यऺा हे तु दकमा जाता हं । फचाने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 16) सत्तयीमाॊ मन्ि (70) क प्रमोग से भान-सम्भान की े 4) फीसा मन्ि (20) को सोरह कोद्शक भं सरखकय ऩास वृत्रद्ध होती हं । भं यखने से सबी तयह क बम का नाश होता हं । े 17) फहत्तयीमाॊ मन्ि (72) को बूत-प्रेत आदद बमं को 5) चौफीसा मन्ि (24) सवा प्रकाय से ऋत्रद्ध-ससत्रद्ध नद्श कयने औय जॊग भं त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग प्रदाता हं । दकमा जाता हं । 6) अठाईसा मन्ि (28) से योग अबम नद्श होता हं । 18) अठोत्तयीमाॊ मन्ि (78) को सवा प्रकायक कद्श से े 7) तीस मन्ि (30) से शादकनी बम का नाश होता हं । भुत्रि हे तु हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 8) फत्तीसा मन्ि (32) को गसबाणी को सुकऩूवक प्रसव ा 19) अस्सीमाॊ मन्ि (80) को अऩने द्राया दकमे गमे कभा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । (फत्तीसा मन्ि क अनेक े परं की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग एवॊ राब त्रवसबन्न ग्रॊथंभं दे खनेको सभरते हं । 20) त्रऩच्चाससमाॊ मन्ि (85) को भागा अथाात मािा बम 9) चौतीसा मन्ि (34) को भुख्म रुऩ से दे व ध्वजा ऩय क सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । े सरखने से शुब पर प्राद्ऱ होते हं । चौतीसा मन्ि 21) नब्दफेमाॊ मन्ि (90) को चोय से यऺा हे तु प्रमोग ऩयकभा अथाात दकसी क द्राया बम की प्रासद्ऱ होने से े दकमा जाता हं । ऩूवा उसे दय कयता हं । बवन की भुख्म दीवाय ऩय ू 22) सौवाॊ मन्ि (100) को सवा कामा ससत्रद्ध हे तु प्रमोग इसे रेखने ऩय ऩयाबाव नहीॊ होता, शिुद्राया दकमे दकमा जाता हं । गमे काभण-टु भण आदद का प्रबाव नद्श हो जाता हं ।
  • 12. 12 ददसम्फय 2012 23) एक सौ फीस मन्ि (120) को गसबाणी की प्रसव 33) सात सौ का मन्ि (700) को वाद-त्रववाद भं त्रवजऩ ऩीडा़-कद्श को कभ कयने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रासद्ऱ क सरए प्रमोग दकमा जाता हं । े 24) एक सौ छब्दफीसाॊ मन्ि (126) को फॊधे हुवे गबा को 34) नौ सौ का मन्ि (900) को भागा बम एवॊ मािा खोने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 25) एक सौ फावनमाॊ मन्ि (152) को बाई-फहन भे 35) एक हजाय का मन्ि (1000) को त्रवजम प्रासद्ऱ हे तु आऩसी प्रेभ की वृत्रद्ध हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं । 26) एक सौ सत्तयीमाॊ मन्ि (170) ऻान वृत्रद्ध हे तु त्रवशेष 36) ग्मायह सौ का मन्ि (1100) को दद्शात्भाओॊ, बम ु प्रबावकायी भाना गमा हं । एवॊ क्रेश से से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 27) एक सौ फहत्तयीमाॊ मन्ि (172) को सॊतान राब एवॊ 37) फायह सं का मन्ि (1200) को फॊधन भुत्रि हे तु बम सनवायण हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । प्रमोग दकमा जाता हं । 28) दौ सौ का मन्ि (200) को व्मवसाम वृत्रद्ध हे तु 38) ऩचास हजाय का मन्ि (50000) को याज सम्भान प्रमोग दकमा जाता हं । की प्रासद्ऱ एवॊ सबी प्रकाय क कद्शं से भुत्रि हे तु े 29) तीन सौ का मन्ि (300) को ऩसत-ऩत्नी भं आऩसी प्रमोग दकमा जाता हं । स्नेह फढा़ने हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । 39) दस राख दस हजाय का मन्ि (1010000) को भागा 30) चाय सौ का मन्ि (400) को बवन भं सरखने से भं चोय बम से यऺा हे तु प्रमोग दकमा जाता हं । बम से यऺा हे तु एवॊ खेतं भं सरखने से धान्म की इस प्रकाय से दकसी बी मन्ि का प्रमोग कयने से ऩूवा उऩज अस्च्छ हो इस सरए दकमा जाता हं । उसक ऩूणा प्रबावं को जान रेना असत आवश्मक हं उऩय े 31) ऩाॊच सौ का मन्ि (500) स्त्री को गबा धायण हे तु दशाामे गमे अॊक मन्िं की सूसच महाॊ भाि भागादशान के एवॊ ऩुरुष को उत्तभ सॊतान की प्रासद्ऱ हे तु प्रमोग उद्दे श्म से दी गई हं । त्रवद्रजनं एवॊ साधको क अनुबवं भं े दकमा जाता हं । अॊतय होने से उऩय भं जो पर दशाामे गमे हं उसभं अॊतय 32) छ् सौ का मन्ि (600) को सुख-सम्ऩत्रत्त की प्रासद्ऱ सॊबव हं , अत् इस त्रवषम भं दकसी मोग्म गुरु मा साधक क सरए प्रमोग दकमा जाता हं । े से ऩयाभशा कय रेना असत आवश्मक हं । नवयत्न जदित श्री मॊि शास्त्र वचन क अनुसाय शुद्ध सुवणा मा यजत भं सनसभात श्री मॊि क चायं औय मदद नवयत्न जिवा ने ऩय मह नवयत्न े े जदित श्री मॊि कहराता हं । सबी यत्नो को उसक सनस्द्ळत स्थान ऩय जि कय रॉकट क रूऩ भं धायण कयने से े े े व्मत्रि को अनॊत एद्वमा एवॊ रक्ष्भी की प्रासद्ऱ होती हं । व्मत्रि को एसा आबास होता हं जैसे भाॊ रक्ष्भी उसक साथ े हं । नवग्रह को श्री मॊि क साथ रगाने से ग्रहं की अशुब दशा का धायण कयने वारे व्मत्रि ऩय प्रबाव नहीॊ होता े हं । गरे भं होने क कायण मॊि ऩत्रवि यहता हं एवॊ स्नान कयते सभम इस मॊि ऩय स्ऩशा कय जो जर त्रफॊद ु शयीय े को रगते हं , वह गॊगा जर क सभान ऩत्रवि होता हं । इस सरमे इसे सफसे तेजस्वी एवॊ परदासम कहजाता हं । जैसे े अभृत से उत्तभ कोई औषसध नहीॊ, उसी प्रकाय रक्ष्भी प्रासद्ऱ क सरमे श्री मॊि से उत्तभ कोई मॊि सॊसाय भं नहीॊ हं े एसा शास्त्रोि वचन हं । इस प्रकाय क नवयत्न जदित श्री मॊि गुरूत्व कामाारम द्राया शुब भुहूता भं प्राण प्रसतत्रद्षत े कयक फनावाए जाते हं । Rs: 2350, 2800, 3250, 3700, 4600, 5500 से 10,900 से असधक े
  • 13. 13 ददसम्फय 2012 श्रीमॊि की भदहभा  सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी दहन्द ु धभा भं श्रीमॊि सवाासधक रोकत्रप्रम एवॊ ऩूछे गमे प्रद्ल ऩय बगवान बोरेनाथ ने स्वमॊ शॊकयाचामा प्राचीन मॊि है , श्रीमॊि की आयाध्मा दे वी स्वमॊ श्रीत्रवद्या को साऺात रक्ष्भी स्वरूऩ श्री मॊि की त्रवस्तृत भदहभा अथाात त्रिऩुय सुन्दयी दे वी हं , श्रीमॊि को दे वीक ही रूऩ भं े फताई औय कहा मह श्री मॊि भनुष्मं का सबी प्रकाय से भान्मता ददगई है । कल्माण कये गा। श्रीमॊि को अत्मासधक शत्रिशारी व रसरतादे वी का श्री मॊि ऩयभ ब्रह्म स्वरूऩी आदद दे वी बगवती ऩूजन चि भाना जाता है , श्रीमॊि को िैरोक्म भोहन भहात्रिऩुय सुदॊयी की उऩासना का सवाश्रद्ष मॊि है क्मंदक े अथाात तीनं रोकं का भोहन कयने वारा मन्ि बी कहाॊ श्री चि ही दे वीका सनवास स्थर है । श्री मॊि भं दे वी स्वमॊ जाता है । त्रवयाजभान होती हं इसीसरए श्री मॊि त्रवद्व का कल्माण श्रीमॊि भं सवा यऺाकायी, सवाकद्शनाशक, सवाव्मासध- कयने वारा है । सनवायक त्रवशेष गुण होने क कायण श्रीमॊि को सवा े आज क आधुसनक मुग भं भनुष्म त्रवसबन्न प्रकाय े ससत्रद्धप्रद एवॊ सवा सौबाग्म दामक भाना जाता है । की सभस्माओॊ से ग्रस्त है , एसी स्स्थसत भं मदद भनुष्म श्रीमॊि को सयर शब्ददं भं रक्ष्भी मॊि कहा ऩूणा श्रद्धाबाव औय त्रवद्वास से श्रीमॊि की स्थाऩना कयं तो जाता हं , क्मोदक श्रीमॊि को धन क आगभन हे तु े मह मॊि उसक सरए चभत्कायी ससद्र हो सकता है । े भॊि ससद्ध एवॊ प्राण-प्रसतत्रद्षत श्री मॊि को कोई बी सवाश्रद्ष मॊि भाना गमा हं । े भनुष्म चाहे वह धनवान हो मा सनधान वहॉ अऩने घय, त्रवद्रानं का कथन हं की श्रीमॊि अरौदकक शत्रिमं दकान, ऑदपस इत्मादद व्मवसामीक स्थानं ऩय स्थात्रऩत ु व चभत्कायी शत्रिमं से ऩरयऩूणा गुद्ऱ शत्रिमं का प्रभुख कय सकता हं । त्रवद्रानो का अनुबव हं की श्रीमॊि का कन्र त्रफन्द ु है । े प्रसतदन ऩूजन कयने से दे वी रक्ष्भी प्रसन्न होती है औय श्रीमॊि को सबी दे वी-दे वताओॊ क मॊिं भं सवाश्रद्ष े े भनुष्म का सबी प्रकाय से भॊगर कयती हं । भाॊ भहारक्ष्भी मॊि कहा गमा है । महीॊ कायण हं , दक श्रीमॊि को मॊियाज, की कृ ऩा से भनुष्म ददन प्रसतददन सुख-सभृत्रद्ध एवॊ ऐद्वमा मॊि सशयोभस्ण बी कहा जाता है । को प्राद्ऱ कय आनॊदभम जीवन व्मतीत कयता हं । ऩौयास्णक धभाग्रॊथं भं वस्णात हं की श्री मॊि श्रीमॊि से जुडी़ ऩौयास्णक कथा आददकारीन त्रवद्या का द्योतक हं , बायतवषा भं प्राचीनकार धभाग्रॊथं भं श्री मॊि क सॊदबा भं एक प्रचसरत े भं बी वास्तुकरा अत्मन्त सभृद्र थी। औय आज के कथा का वणान सभरता है । आधुसनक मुग भं प्राम् हय भनुष्म वास्तु क भाध्मभ से े कथाक अनुसाय एक फाय आददगुरु शॊकयाचामाजी ने कराश े ै बी प्रकाय क सुख प्राद्ऱ कयना चाहता है । उनक सरए े े ऩय बगवान सशवजी को कदठन तऩस्मा द्राया प्रसन्न कय श्रीमॊि की स्थाऩना अत्मॊत भहत्वऩूणा है । सरमा। क्मोदक जानकायं का भानना हं की श्री मॊि भं बगवान बोरेनाथ ने प्रसन्न होकय शॊकयाचामाजी से वय ब्रह्माण्ड की उत्ऩत्रत्त औय त्रवकास का यहस्म सछऩा हं । भाॊगने क सरए कहा। आददगुरु शॊकयाचामाजी ने सशवजी से े त्रवद्रानो क भतानुशाय श्रीमॊि भं श्री शब्दद की े त्रवद्व कल्माण का उऩाम ऩूछा। व्माख्मा इस प्रकाय से की गई हं "श्रमत मा सा श्री"