3. तीनों दोषों से दूध के दूवषत होने पर
इस रोग को क्षीरालसक और अत्यय नाम से आचायग कहते हैं,
यह रोग अनतकर्िन एिं दुच्श्चककत्स्य है।
बच्चे का मल दुगगन्धयुक्त बच्चे को िमन
मल आमयुक्त बच्चे को सूखा िमन
जल की िााँनत द्रि रुक-रुककर बच्चे को जभमाई
विच्च्छन्न और झागदार अङ्गों का टूटना
लिन्न-लिन्न रंग का अङ्गों में विक्षेप
लिन्न-लिन्न प्रकार की पीडा िाला आंतों में गडगडाहट
मूि पीला और श्िेत होता है कभपन
बच्चे को ज्िर चक्कर आना
बच्चे को अरोचक नालसका, ऑ ाँख, मुख का पाक
बच्चे को प्यास अनेक दूसरे िी रोग हो जाते हैं
4. क्षीरालसक की चचककत्सा-
तिाशु धािी बालं च िमनेनोपपादयेत ्।। २३ ।।
विर्हतायां च संसग्या िचार्दं योजयेद्िणम्।
ननशार्दं िाऽथिा माद्रीपािानतक्ताधनामयान ्।। २४।।
पािाशुण्ठ्यमृतानतक्तनतक्तादेिाह्नसाररिााः ।
समुस्तपूिे ्गद्रयिााः स्तन्यदोषहरााः परम्।। २५ ।।
अनुबन्धे यथाव्याचध प्रनतकु िीत कालवित ्।
5. • धािी और बालक को शीघ्र िमन कराये ।
• पेयार्द क्रम करने के उपरान्त िचार्द या ननशार्द गण का क्िाथ रूप में
वपलाये।
• अथिा अतीस (या वपप्पली), पािा, कु टकी, मोथा, कू ि, इनका क्िाथ देिे।
• पािा, सोंि, चगलोय, चचरायता, कु टकी, देिदारु, साररिा, मोथा, मूिाग और
इन्द्रजौ का क्िाथ प्रशस्त स्तन्यदोषनाशक है।
उपद्रि होने पर रोग के अनुसार िैद्य चचककत्सा करे।