2. Lakshan of Jaatharni
REFERENCE:- KASHYAP SAMHITA REVATIKALP
प्रम्लायतस्तनोस्तस्या रूपाणीमानन, हीयते ।। २५ ।।
दृष्टिव्वव्वयाकु लताां यानत यथाकालां न पुटयनत । भ्रटिसत्त्वा ननरुत्साहा कु क्षिशूलननपीितता ।। २६।।
भवत्यप्रप्रयरूपा च तैस्तै िोगैरुपद्बता ।। प्रवपिीतसमािम्भा प्रवपिीतननषेप्रवणी ।। २७।।
उष्छिटिा प्रवकृ ता धृटिा सवााथेषु प्रवताते । अथाससद्धधना भवनत सांपछचास्यााः प्रलुयतयते ।। २८।।
गोजाप्रवमहहषीटवस्या न जीवष्तत च वत्सकााः । अयशाः प्रयतनुते घोिां वैधव्वयां वा ननगछिनत ।। २९ ।।
कु लियां वा कु रुते प्रसक्ता जातहारिणी ।
उसकी दृष्टि व्वयाकु लता हो जाती है ठीक समय पि पोषण नहीां होता
उसका मन पनतत हो जाता है काया में उत्साह नहीां होता है
कु क्षिशूल से पीितत िहती है उसका रूप अप्रप्रय हो जाता है तथा
अनेक प्रकाि के िोगों से व्वयायतत हो उसके सब कायों के प्रािम्भ प्रवपिीत होते हैं
वह प्रवपिीत ही आचिण किती है वह उष्छिटि, प्रवकृ त होती है
उसे अथा (धन) की प्राष्यतत नहीां होती उसकी गुण लुयतत हो जाती है
इसकी गौ, बकिी, भेड़ तथा भैंस आहि के बछचे जीप्रवत नहीां िहते उसे भयांकि अपयश होता है
वह प्रवधवा हो जाती है प्रसक्त हुई जातहारिणी उसके कु ल का नाश कि िेती है
4. साधय जातहारिणी
शुटक िेवती
आषोतशवषाप्रायतता या स्री पुटपां न पश्यनत ।। ३१।।
प्रम्लानबाहुिकु चा तामाहुाः शुटकिेवतीम्।।
सोलह वषा की अवस्था तक भी ष्जस स्री को िजोिशान नहीां होता
ष्जसके बाहु एवां ननतम्ब पतले होते हैं
किम्भिा
प्रवना पुटपां तु या नािी यथाकालां प्रणश्यनत ।। ३२।।
कृ शा हीनबला क्रु द्धा साऽप्रप चोक्ता किम्भिा ।।
बबना िजोिशान के ही जो स्री उधचत काल में नटि हो जाती है
जो कृ श, हीनबल वाली होती हैं उसे किम्भिा कहते हैं
पुटपधनी
वृथा पुटपां तु या नािी यथाकालां प्रपश्यनत ।। ३३।।
स्थूललोमशगण्ता वा पुटयतनी साऽप्रप िेवती ।।
ष्जस स्री को यथासमय िजोिशान व्वयथा होता है
ष्जसके कपोल स्थूल एवां लोम युक्त होते हैं उस िेवती को पुटपघ्नी कहते हैं
5. प्रवकु िा
कालवणाप्रमाणैयाा प्रवषमां पुटपमृछिनत ।। ३४।।
अननसमत्तबलग्लाननप्रवाकु िा नाम सा स्मृता ।।
ष्जस स्री का ऋतुस्राव काल वणा एवां प्रमाण से प्रवषम हो
बबना कािण के ही ष्जसे ग्लानन हो जाती हो उसे प्रवकु िा कहते है
परिस्रुता
अभीक्ष्णां स्रवते यस्या नायाा योननाः कृ शात्मनाः । । ३५|।
परिस्रुतेनत सा ज्ञेया नािीणाां जातहारिणी ।।
ष्जस कृ श स्री की योनन से ननितति स्राव बहता िहता है
अण्तघ्नो
यस्यास्त्वालक्ष्यमालग्रमण्तां प्रपतनत ष्स्रयााः । । ३६।।
अण्तघ्नीसमनत ह्याहुस्ताां िारुणाां जातहारिणीम ्।।
ष्जस स्री का लक्ष्ययुक्त तथा धचपका हआ अण्त (गभा) धगि जाता है
6. िुधािा
नानतननवृात्तिेहाङ्गो यस्या गभों प्रवनश्यनत ।। ३७ । ।
िुघािा नाम सा ज्ञेया सुघोिा जातहारिणी ।।
ष्जसके िेह अङ्ग अधधक प्रकि नहीां हुए हैं ऐसा गभा का नटि हो जाना
कालिाबर
सांपूणााङ्गां यिा गभा हिते जातहारिणी ।। ३८। ।
कालिारीनत सा प्रोक्ता िुाःखात्स्री र जीवनतत ।।
सम्पूणा अङ्गों वाले पूणा रूप से बने हुए गभा का नाश होना इसमें स्री बड़े िुाःख से जीप्रवत िहती है
मोहहनी
यया प्रवषज्जते गभा: प्रतीतो वाऽथ मुछयते ।। ३९ ।।
स्रीप्रवनाशाय सा प्रोक्ता मोहहनी जातहारिणी ।।
ष्जसके द्वािा गभा अपने स्थान से मुक्त हुआ प्रतीत होता है
7. स्तम्भनी
यस्या नस्पतिते गमााः स्तम्भनी नाम सा स्मृता ।।४० ।।
ष्जसका गभा स्पतिन नहीां किता
क्रोशना
उििस्थो यया क्रोशेत्क्रोशना नाम सा स्मृता ।।
उिि में ष्स्थत हुआ गभा आक्रोश किता है (धचल्लाता) है उसे क्रोशना कहते हैं।
िशैता जातहारिण्यो जीवमानासु मातृषु ।।४१।।
असाधयााः पुटपघानततयाः साधया गभोपघानतका: ।।
ये िस जातहारिणणयाां कही गई हैं अथाात्इनमें माताओां की मृत्यु नहीां होती।
इनमें आताव को नटि किनेवाली असाधय होती है तथा गभा को नटि किने वाली साधय होती हैं।
8. यायतय जातहारिणी
नाककनी
जायते तु मृतां ननत्यां यस्या नायाााः सवे सवे ।। ४ २।।
नाककनीसमनत ताां प्रवद्याद्िारुणाां जातहारिणीम ्।।
ष्जस स्री का गभा ननत्य मृत उत्पतन है उस िारुण जातहारिणी को नाककनी कहते हैं
प्रपशाची
जातां जातमपत्यां तु यस्यााः सद्यो प्रवनश्यनत ।।४३।।
प्रपशाची नाम सा घोिा माांसािी जातहारिणी ।।
ष्जस स्री के पुर उत्पतन होते ही नटि हो जाते हैं
9. जातहारिणी साध्यता असाध्यता लक्षण
यिी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के द्प्रवतीय हिवस नटि हो जाते हैं
आसुिी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 3 हिवस नटि हो जाते हैं
कसल यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 4 हिवस नटि हो जाते हैं
वारुणी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 5 हिवस नटि हो जाते हैं
षटिी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 6 हिवस नटि हो जाते हैं
भीरुका यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 7 हिवस नटि हो जाते हैं
याम्या यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 8 हिवस नटि हो जाते हैं
मातङ्गी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 9 हिवस नटि हो जाते हैं
भद्रकाली यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 10 हिवस नटि हो जाते हैं
िौद्री यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 11 हिवस नटि हो जाते हैं
वधधाका यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 12 हिवस नटि हो जाते हैं
चष्ण्तका यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 13 हिवस नटि हो जाते हैं
कपालमासलनी यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के 14 हिवस नटि हो जाते हैं
प्रपसलप्रपष्छिका यायतय ष्जसमे स्री के पुर जतम के एक पि बाि नटि हो जाते हैं
10. असाधय जातहारिणी
वश्या
बस्यास्तु गभारूपाणण पञ्च षट् सयतत वा मुने! । प्रप्रयततेऽनततिां वश्या असाधया
जातहारिणी।।४९।।
ष्जस स्री के गभारूप बालक ५, ६ या ७ मास की अवस्था में नटि हो जाते हैं
कु लक्षयकिी
प्रप्रयतते िािका यस्यााः कतया जीवतत्ययत्नताः । कु लियकिी नाम साऽसाधया जातहारिणी
।।५।।
ष्जसके पुर मि जाते हैं तथा कतयाएँ बबना यत्न के भी जीप्रवत िहती हैं
पुण्यजनी
जातां जातमपत्यां तु यस्याश्च प्रप्रयते ष्स्रयााः । घोिा पुण्यजनी नाम साऽसाधया जातहारिणी
।।५१।।
ष्जस स्री की सततान उत्पतन होते ही मि जाती है
पौरुषादिनी
11. सांिांशी
बबभत्यातयां यिा गभा तिा पूवााः प्रमीयते । सांिांशीनत वितत्येनामसाधयाां जात(हारिणीम्) ।।५३।।
जब स्री िूसिे गभा को धािण किती है तब उसका पहला गभा (पुर) नटि हो जाता है
ककोंिकी
गभेणैकां ग्रहेणैकां मृत्युनैके न युज्यते । एषा ककोिकीत्युक्ता िारुणा जातहारिणी ।।५४।।
कभी िोगी गभा, कभी ग्रह तथा कभी मृत्यु से युक्त हो जाता है
इतद्रवतवा
यमजां प्रप्रयते यस्या एकां वोभयमेव वा । तामाहुरितद्रवतवामसाधयाां जातहारिणीम् ।।५५।।
ष्जसके एक या िोनों यमज मि जाते हैं
बतवामुखी
एकनासभप्रभवयोिेकश्चेष्तप्रयते पुिा। सियते तद्वियतयेकस्तामाहुबातवामुखीम् ।। ५६।।
यमज में से यहि एक की पहले मृत्यु हो जाय िूसिे की भी मृत्यु हो जाती है