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मधुमक्खी: रोग एवं जैववक प्रबंधन
श्रद्धा कर्चो
सहायक प्राध्यापक, पादप रोग ववज्ञान ववभाग
राजाभोज क
ृ वि महाववद्यालय, बालाघाट
मधुमक्खिय ों का मानव जाति से घतनष्ठ सम्बन्ध है। यह कीट मानव जाति क
े कल्याण में हमेशा ित्पर रहिा है।
अन्य प्रातणय ों क
े समान मधुमिी क्ल तनय ों क भी तवतभन्न र ग ों िथा शत्रुओों से बहुि क्षति ह िी है।
मधुमिी र ग ों से उनक
े झुण्ड या वयस्क मधुमक्खियाों सोंक्रतमि ह सकिे हैं। इसी प्रकार, मधुमक्खिय ों क
े क
ु छ शत्रु
उनक
े झुण्ड ों पर आक्रमण करिे हैं जबतक अन्य वयस्क मधुमक्खिय ों क सोंक्रतमि करिे हैं। मधुमक्खिय ों क
े इन शत्रुओों
से न क
े वल मधुमक्खिय ों की क्ल तनय ों की सोंख्या में कमी आिी है बक्खि इन क्ल तनय ों की उत्पादकिा व लाभप्रदिा भी
कम ह जािी है।
मधुमक्खियाों एक समुदाय में रहिी हैं, इसतलए इनमें र ग फ
ै लाने वाले सूक्ष्मजीव ों एवों शत्रुओों का सोंक्रमण अत्यतधक ह िा
है दू तिि जल व भ जन द्वारा प्रायः मधुमक्खियााँ भारी सोंख्या में मरिी है समय रहिे इनका उपचार न ह ने की क्खथथति में
क्षति ह िी है।
मधुमिी में जीवाणुजतनि, तविाणुजतनि, फफ
ूों दी एवों प्र ट ज आ जतनि, पेतचश िथा माइट जतनि र ग ों क
े ह ने की
सोंभावना रहिी है। इन र ग ों क
े प्रक प से पूरा का पूरा मौनवोंश समाप्त ह जािा है। मधुमक्खिय ों क तक्रयाशील बनाये
रखने क
े तलए उनका तनर गी ह ना अत्यन्त आवश्यक है ।
मधुमक्खी रोगों तथा शत्रुओं की उवर्चत पहर्चान
मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खक्खयों क
े वववभन्न रोगों तथा उन पर आक्रमण करने वाले वववभन्न
नाशकजीवों क
े लक्षणों क
े बारे में सीखना र्चावहए।
इस उद्देश्य से मधुमक्खी रोगों क
े प्रत्येक लक्षण जैसे पहर्चान की अवस्था, आरंवभक लक्षण, संक्रवमत
झुण्ड तथा मधुमक्खी क
े रंग व बनावट में होने वाले प्रगामी पररवततन, सवातवधक संवेदनशील क्लोवनयों
की दशा, अन्य रोगों और नाशकजीवों द्वारा उत्पन्न होने वाले समान वदखाई देने वाले लक्षणों आवद क
े
बारे में ववस्तृत जानकारी होनी र्चावहए।
पुष्टीकरण या वकसी प्रकार का भ्रम होने पर ववश्वववद्यालय क
े वैज्ञावनकों या वनकट क
े क
ृ वि ववज्ञान क
े न्द्र
से सम्पक
त करना र्चावहए और यवद आवश्यक हो तो मधुमक्खी पालकों को ववशेिज्ञों क
े समक्ष वनरीक्षण
क
े वलए मधुमक्खक्खयों या उनक
े झुण्ड क
े रोगों का नमूना प्रस्तुत करना र्चावहए।
अतः मधुमक्खी पालकों को पहले से ही ववशेिज्ञ से यह ज्ञात कर लेना र्चावहए वक उसे उनक
े समक्ष
वकस प्रकार क
े नमूने भेजने हैं, क
ै से एकत्र करना है, संक्रवमत मक्खी झुण्ड या मक्खक्खयों क
े नमूनों को
क
ै से पैक बंद करक
े उन तक ले जाना है आवद ।
मधुमक्खक्खयों क
े रोग
मधुमक्खियाों अक्सर तवतभन्न र ग ों से ग्रस्त रहिी हैं।
उनमें से क
ु छ मामूली ह िे हैं तजन्हें फ
ै लने क
े बाद भी तनयोंतत्रि तकया जा सकिा है। इसतलए वे
काल नी क
े जीवन क
े तलए खिरा नहीों ह िे।
लेतकन क
ु छ बीमाररयाों भयानक ह िी हैं और यतद इनपर ध्यान नहीों तदया गया ि ये क्षेत्र की
सैकड़ ों काल तनय ों क िबाह कर सकिी हैं।
एतपस मैतलफ
े रा मधुमिी 1964 में भारिविष में लाई गई थी। तपछले 30 साल ों में इसमें बीमारी
का क ई भी प्रक प नहीों देखा गया।
परन्तु तपछले 3-4 साल ों से मधुमिी वोंश ों में द ब्रुड बीमारी (सैक ब्रुड एवों यूर तपयन फाउल
ब्रुड) का प्रक प कई प्रान्त ों में तदखाई देने लगा है।
यूरोपीय फाउल ब्रूड (ईएफबी)
यह बीमारी आजकल मधुमिी वोंश ों में पोंजाब, हररयाणा, तहमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवों तबहार में काफी नुकसान कर रही है।
यह एक बैक्टीररया जतनि र ग है।
इसमें मधुमिी क
े लारवे अण्डे से तनकलने क
े पश्चाि् 1-3 तदन क
े अन्दर
ग्रतसि ह जािे हैं। यह मेतलस क कस प्लूटॉन नामक जीवाणु से ह िा है
और अक्सर भारि में ए. मेतलफ
े रा की क्ल तनय ों में पाया जािा है। सोंक्रतमि
युवा तडम्भक अपनी क तशकाओों से हट जािे हैं, आरोंभ में उनक
े शरीर पर हिी
पीली आभा तदखाई देिी है ज बाद में हिी भूरी ह जािी है।
यह तडम्भक क तशका बोंद ह ने क
े पूवष ही मर जािे हैं। मृि तडम्भक मुलायम
और जलीय ह जािे हैं िथा उनकी श्वास नतलकाएों सुस्पष्ट तदखाई देिी हैं।
अोंििः मृि तडम्भक सूखकर भूरे रोंग क
े हटाए जाने य ग्य रबड़ जैसे शि क तशका की िली में बन जािे हैं। झुण्ड का पैटनष अतनयतमि ह
जािा है। इस बीमारी की पहचान क
े तलए एक मातचस की तिल्ली क लेकर मरे हुए तडम्भक क
े शरीर में चुभ कर बहर की ओर खीोंचने पर
एक धान्गनुमा सोंरचना बनिी है। तजसक
े आधर पर इस बीमारी की पहचान की जा सकिी है ।
यूरोपीय फाउल ब्रूड (ईएफबी)
रोकथाम:
प्रभातवि वोंश क मधु वातटका से अलग कर देना चातहए प्रभातवि वोंश ों क
े फ्र
े म और अन्य समान का सोंपक
ष तकसी
दुसरे स्वथथ वोंश से नही ह ने देना चातहए।
प्रभातवि मौन वोंश क रानी तवहीन कर देना चातहये। िथा क
ु छ महीन बाद रानी देना चातहये।
सोंक्रतमि छत्त ों का इस्तेमाल नही करना चातहये।
बक्खि उन्हें तपघलाकर म म बना देना चातहए सोंक्रतमि वोंश क टेरामईतसन की २४० तम.तल.ग्रा. मात्रा प्रति ५ तलटर
चीनी क
े घ ल क
े साथ ओक्सीटेटरासईक्खक्लन ३..२५ तम.ग्रा. प्रति गैलन क
े तहसाब से देना चातहये।
अमेररकन फाउल ब्रूड
यह भी एक जीवाणु बैतसलस लारवी क
े द्वारा ह ने वाला एक सोंक्रामक र ग है।
ज यूर तपयन फाउल ब्रूड क
े समान ह िा है यह बीमारी क ष्ठक बोंद ह ने क
े
पहले ही लगिी है तजसे क ष्ठक बोंद ही नही ह िे यतद बोंद भी ह जािे है ि उनक
े
ढक्कन में तछद्र देखे जा सकिे है। इसक
े अोंदर मर हुआ डीम्भक भी देखा जा
सकिा है। तजससे सडी हुई मछली जैसी दुगषन्ध आिी है इनका आक्रमण गतमषय ों
में या उसक
े बाद ह िा है।
रोकथाम :
प्रभातवि वोंश क मधु वातटका से अलग कर देना चातहए प्रभातवि वोंश ों क
े फ्र
े म और अन्य समान का सोंपक
ष तकसी दुसरे स्वथथ वोंश से
नही ह ने देना चातहए।
प्रभातवि मौन वोंश क रानी तवहीन कर देना चातहये। िथा क
ु छ महीन बाद रानी देना चातहये। सोंक्रतमि छत्त ों का इस्तेमाल नही करना
चातहय। बक्खि उन्हें तपघलाकर म म बना देना चातहए सोंक्रतमि वोंश क टेरामईतसन की २४० तम.तल.ग्रा. मात्रा प्रति ५ तलटर चीनी क
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घ ल क
े साथ ओक्सीटेटरासईक्खक्लन ३..२५ तम.ग्रा. प्रति गैलन क
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नोसेमा रोग
आतदजीव न सेमा एतपस अाँडर, द्वारा ह ने वाला यह र ग वयस्क मधुमक्खिय ों की
िीन ों जातिय ों क सोंक्रतमि करिा है। सोंक्रतमि मधुमक्खियाों कम आयु पर ही उड़ना
शुरू कर देिी हैं। सोंक्रतमि मधुमक्खिय ों की उड़ने की क्षमिा इससे प्रभातवि ह िी हैं
और वे छत्ते में वापस लौटिे समय नीचे तगर जािी हैं।
ये मधुमक्खियाों घास की पतत्तय ों पर रेंगिे हुए ऊपर चढ़ने की क तशश करिी हैं
और अोंििः जमीन पर तगर जािी हैं। इस प्रकार की प्रभातवि मधुमक्खिय ों क छ टे
गड् ों में एकत्र तकया जा सकिा है।
ऐसी मधुमक्खिय ों का उदर तवष्ठा सामग्री से भरकर फ
ू ल जािा है। काया क
े र म नष्ट ह जािे हैं िथा मधुमक्खियाों चमकदार तदखाई देिी हैं।
मध्य आोंि फ
ू ल जािी है और यतद इसे काटा जाए ि इसमें स्वथथ मधमक्खिय ों क
े लातलमा या भूरे रोंग क
े आहारनाल की िुलना में द हरी
धूसर सफ
े द अोंश तदखाई देिे हैं। मधुमक्खियाों छत्ते क
े प्रवेश द्वार पर िथा छत्ते क
े अगले भाग में जमीन पर मल त्याग करिी हैं।
रोकथाम:
फ्युतमतजतलन-बी का ०-५ से ३ तम.ग्रा. मात्रा प्रति १०० तम.तल. घ ल क
े साथ तमला कर देना चातहए। वाईसईकल हेक्साईल अम तनयम
प्युतमतजल भी प्रभावकारी औिध है।
सैकब्रूड
यह र ग भारिीय मौन प्रजातिय ों में बहुिायाि में पाया जािा है।
यह एक तविाणु जतनि र ग है ज सोंक्रमण से फ
ै लिा है। सोंक्रतमि वोंश ों क
े क ष्ठक में तडम्भक खुले अवथथा में ही मर जािे ह या बोंद
क ष्ठक में द तछद्र बने ह िे है इससे ग्रतसि तडम्भक का रोंग हिा तपला ह िा है अोंि में इसमें थैतलनुमा आक
ृ ति बन जािी है।
रोकथाम:
एक बार इस तबमरी का सोंक्रमण ह ने क
े बाद इसकी र कथाम बहुि कतिन ह जािी है।
इसका क ई कारगर उप य नही है सोंक्रमण ह ने पर प्रभातवि वोंश ों क मधु वातटका से
हटा देना चातहए। िथा सोंक्रतमि वोंश में प्रयुक्त औजार या मौक्खन्ग्रः का क ई भी भाग दुसरे
वोंश िक नही ले जाने देना चातहए। वोंश क क
ु छ समय रानी तवहीन कर देना चातहए।
टेरामईतसन की २५० तम. ग्रा. मात्रा प्रति ४ तलटर चीनी क
े
घ ल में तमलकर क्खखलाया जाये ि र ग का तनयोंत्रण ह जािा है। गोंभीर रूप से प्रभातवि
वोंश क नष्ट कर देना चातहए।
मधुमक्खक्खयों क
े रोग का जैववक प्रबंधन
मधुमक्खिय ों क
े र ग ों क जैतवक िरीक
े से भी िीक तकया जा सकिा है। जैतवक का मिलब है तक देसी इलाज। आसानी से तमलने वाली
अजवाइन, नीम और ग मूत्र से भी इलाज ह सकिा है और ज तक तबि
ु ल कारगर है। अगर मक्खिय ों क क ई बीमारी ह जािी है ि
जानकारी क
े अभाव में पालक रासायतनक दवाओों का उपय ग करिे हैं यह मक्खिय ों क
े तलए जानलेवा भी ह सकिी हैं। फॉलवेक्स पट्टी,
तमथाइल सेलीतसलेट, थाईम ल, फ्यूतमजैतलन नामक दवाओों का मधुमक्खिय ों पर पड़िा है बुरा असर। र गग्रस्त मक्खिय ों से गोंजे तशशु पैदे
ह िे हैं ज एक िरह का तवकार है। इसक
े साथ जहाों म मी पिोंगे से पूरा छत्ता प्रभातवि ह िा है वहीों वैर रा माइट भी मक्खिय ों क
े तलए घािक
है।
अजवाइन का रस रुई क
े बड़े टुकड़े में डुब कर पालक बक्से क
े प्रवेश द्वार पर ही रख सकिे हैं। इसकी िेज गोंध से तकसी भी िरह
का कीट बक्से में नहीों आ पाएगा और बक्से क
े अोंदर क
े कीट भी खत्म ह जाएों गे।
इसी िरह औिधीय गुण ों वाली नीम की पतत्तय ों क
े रस का भी उपय ग तकया जा सकिा है।
ग मूत्र में भी औिधीय गुण मौजूद ह िे हैं ज कई िरह क
े तवकार और र ग ों क
े तलए
कारगर हैं। इसक
े तछड़काव से मक्खियाों ज्यादा फ
ु िी में तदखाई देिी हैं।
ये देसी उपचार मक्खिय ों क सूक्ष्मजीतवय ों से ह ने वाली बीमाररय ों से बचाएगा और
उपचार करेगा। इसक
े साथ ही अगर समय पर इनका उपय ग तकया जाए ि बीमाररय ों
से मक्खिय ों क बचाया जा सकिा है।
धन्यवाद

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  • 2. मधुमक्खिय ों का मानव जाति से घतनष्ठ सम्बन्ध है। यह कीट मानव जाति क े कल्याण में हमेशा ित्पर रहिा है। अन्य प्रातणय ों क े समान मधुमिी क्ल तनय ों क भी तवतभन्न र ग ों िथा शत्रुओों से बहुि क्षति ह िी है। मधुमिी र ग ों से उनक े झुण्ड या वयस्क मधुमक्खियाों सोंक्रतमि ह सकिे हैं। इसी प्रकार, मधुमक्खिय ों क े क ु छ शत्रु उनक े झुण्ड ों पर आक्रमण करिे हैं जबतक अन्य वयस्क मधुमक्खिय ों क सोंक्रतमि करिे हैं। मधुमक्खिय ों क े इन शत्रुओों से न क े वल मधुमक्खिय ों की क्ल तनय ों की सोंख्या में कमी आिी है बक्खि इन क्ल तनय ों की उत्पादकिा व लाभप्रदिा भी कम ह जािी है। मधुमक्खियाों एक समुदाय में रहिी हैं, इसतलए इनमें र ग फ ै लाने वाले सूक्ष्मजीव ों एवों शत्रुओों का सोंक्रमण अत्यतधक ह िा है दू तिि जल व भ जन द्वारा प्रायः मधुमक्खियााँ भारी सोंख्या में मरिी है समय रहिे इनका उपचार न ह ने की क्खथथति में क्षति ह िी है। मधुमिी में जीवाणुजतनि, तविाणुजतनि, फफ ूों दी एवों प्र ट ज आ जतनि, पेतचश िथा माइट जतनि र ग ों क े ह ने की सोंभावना रहिी है। इन र ग ों क े प्रक प से पूरा का पूरा मौनवोंश समाप्त ह जािा है। मधुमक्खिय ों क तक्रयाशील बनाये रखने क े तलए उनका तनर गी ह ना अत्यन्त आवश्यक है ।
  • 3. मधुमक्खी रोगों तथा शत्रुओं की उवर्चत पहर्चान मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खक्खयों क े वववभन्न रोगों तथा उन पर आक्रमण करने वाले वववभन्न नाशकजीवों क े लक्षणों क े बारे में सीखना र्चावहए। इस उद्देश्य से मधुमक्खी रोगों क े प्रत्येक लक्षण जैसे पहर्चान की अवस्था, आरंवभक लक्षण, संक्रवमत झुण्ड तथा मधुमक्खी क े रंग व बनावट में होने वाले प्रगामी पररवततन, सवातवधक संवेदनशील क्लोवनयों की दशा, अन्य रोगों और नाशकजीवों द्वारा उत्पन्न होने वाले समान वदखाई देने वाले लक्षणों आवद क े बारे में ववस्तृत जानकारी होनी र्चावहए। पुष्टीकरण या वकसी प्रकार का भ्रम होने पर ववश्वववद्यालय क े वैज्ञावनकों या वनकट क े क ृ वि ववज्ञान क े न्द्र से सम्पक त करना र्चावहए और यवद आवश्यक हो तो मधुमक्खी पालकों को ववशेिज्ञों क े समक्ष वनरीक्षण क े वलए मधुमक्खक्खयों या उनक े झुण्ड क े रोगों का नमूना प्रस्तुत करना र्चावहए। अतः मधुमक्खी पालकों को पहले से ही ववशेिज्ञ से यह ज्ञात कर लेना र्चावहए वक उसे उनक े समक्ष वकस प्रकार क े नमूने भेजने हैं, क ै से एकत्र करना है, संक्रवमत मक्खी झुण्ड या मक्खक्खयों क े नमूनों को क ै से पैक बंद करक े उन तक ले जाना है आवद ।
  • 4. मधुमक्खक्खयों क े रोग मधुमक्खियाों अक्सर तवतभन्न र ग ों से ग्रस्त रहिी हैं। उनमें से क ु छ मामूली ह िे हैं तजन्हें फ ै लने क े बाद भी तनयोंतत्रि तकया जा सकिा है। इसतलए वे काल नी क े जीवन क े तलए खिरा नहीों ह िे। लेतकन क ु छ बीमाररयाों भयानक ह िी हैं और यतद इनपर ध्यान नहीों तदया गया ि ये क्षेत्र की सैकड़ ों काल तनय ों क िबाह कर सकिी हैं। एतपस मैतलफ े रा मधुमिी 1964 में भारिविष में लाई गई थी। तपछले 30 साल ों में इसमें बीमारी का क ई भी प्रक प नहीों देखा गया। परन्तु तपछले 3-4 साल ों से मधुमिी वोंश ों में द ब्रुड बीमारी (सैक ब्रुड एवों यूर तपयन फाउल ब्रुड) का प्रक प कई प्रान्त ों में तदखाई देने लगा है।
  • 5. यूरोपीय फाउल ब्रूड (ईएफबी) यह बीमारी आजकल मधुमिी वोंश ों में पोंजाब, हररयाणा, तहमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवों तबहार में काफी नुकसान कर रही है। यह एक बैक्टीररया जतनि र ग है। इसमें मधुमिी क े लारवे अण्डे से तनकलने क े पश्चाि् 1-3 तदन क े अन्दर ग्रतसि ह जािे हैं। यह मेतलस क कस प्लूटॉन नामक जीवाणु से ह िा है और अक्सर भारि में ए. मेतलफ े रा की क्ल तनय ों में पाया जािा है। सोंक्रतमि युवा तडम्भक अपनी क तशकाओों से हट जािे हैं, आरोंभ में उनक े शरीर पर हिी पीली आभा तदखाई देिी है ज बाद में हिी भूरी ह जािी है। यह तडम्भक क तशका बोंद ह ने क े पूवष ही मर जािे हैं। मृि तडम्भक मुलायम और जलीय ह जािे हैं िथा उनकी श्वास नतलकाएों सुस्पष्ट तदखाई देिी हैं। अोंििः मृि तडम्भक सूखकर भूरे रोंग क े हटाए जाने य ग्य रबड़ जैसे शि क तशका की िली में बन जािे हैं। झुण्ड का पैटनष अतनयतमि ह जािा है। इस बीमारी की पहचान क े तलए एक मातचस की तिल्ली क लेकर मरे हुए तडम्भक क े शरीर में चुभ कर बहर की ओर खीोंचने पर एक धान्गनुमा सोंरचना बनिी है। तजसक े आधर पर इस बीमारी की पहचान की जा सकिी है ।
  • 6. यूरोपीय फाउल ब्रूड (ईएफबी) रोकथाम: प्रभातवि वोंश क मधु वातटका से अलग कर देना चातहए प्रभातवि वोंश ों क े फ्र े म और अन्य समान का सोंपक ष तकसी दुसरे स्वथथ वोंश से नही ह ने देना चातहए। प्रभातवि मौन वोंश क रानी तवहीन कर देना चातहये। िथा क ु छ महीन बाद रानी देना चातहये। सोंक्रतमि छत्त ों का इस्तेमाल नही करना चातहये। बक्खि उन्हें तपघलाकर म म बना देना चातहए सोंक्रतमि वोंश क टेरामईतसन की २४० तम.तल.ग्रा. मात्रा प्रति ५ तलटर चीनी क े घ ल क े साथ ओक्सीटेटरासईक्खक्लन ३..२५ तम.ग्रा. प्रति गैलन क े तहसाब से देना चातहये।
  • 7. अमेररकन फाउल ब्रूड यह भी एक जीवाणु बैतसलस लारवी क े द्वारा ह ने वाला एक सोंक्रामक र ग है। ज यूर तपयन फाउल ब्रूड क े समान ह िा है यह बीमारी क ष्ठक बोंद ह ने क े पहले ही लगिी है तजसे क ष्ठक बोंद ही नही ह िे यतद बोंद भी ह जािे है ि उनक े ढक्कन में तछद्र देखे जा सकिे है। इसक े अोंदर मर हुआ डीम्भक भी देखा जा सकिा है। तजससे सडी हुई मछली जैसी दुगषन्ध आिी है इनका आक्रमण गतमषय ों में या उसक े बाद ह िा है। रोकथाम : प्रभातवि वोंश क मधु वातटका से अलग कर देना चातहए प्रभातवि वोंश ों क े फ्र े म और अन्य समान का सोंपक ष तकसी दुसरे स्वथथ वोंश से नही ह ने देना चातहए। प्रभातवि मौन वोंश क रानी तवहीन कर देना चातहये। िथा क ु छ महीन बाद रानी देना चातहये। सोंक्रतमि छत्त ों का इस्तेमाल नही करना चातहय। बक्खि उन्हें तपघलाकर म म बना देना चातहए सोंक्रतमि वोंश क टेरामईतसन की २४० तम.तल.ग्रा. मात्रा प्रति ५ तलटर चीनी क े घ ल क े साथ ओक्सीटेटरासईक्खक्लन ३..२५ तम.ग्रा. प्रति गैलन क े तहसाब से देना चातहये।
  • 8. नोसेमा रोग आतदजीव न सेमा एतपस अाँडर, द्वारा ह ने वाला यह र ग वयस्क मधुमक्खिय ों की िीन ों जातिय ों क सोंक्रतमि करिा है। सोंक्रतमि मधुमक्खियाों कम आयु पर ही उड़ना शुरू कर देिी हैं। सोंक्रतमि मधुमक्खिय ों की उड़ने की क्षमिा इससे प्रभातवि ह िी हैं और वे छत्ते में वापस लौटिे समय नीचे तगर जािी हैं। ये मधुमक्खियाों घास की पतत्तय ों पर रेंगिे हुए ऊपर चढ़ने की क तशश करिी हैं और अोंििः जमीन पर तगर जािी हैं। इस प्रकार की प्रभातवि मधुमक्खिय ों क छ टे गड् ों में एकत्र तकया जा सकिा है। ऐसी मधुमक्खिय ों का उदर तवष्ठा सामग्री से भरकर फ ू ल जािा है। काया क े र म नष्ट ह जािे हैं िथा मधुमक्खियाों चमकदार तदखाई देिी हैं। मध्य आोंि फ ू ल जािी है और यतद इसे काटा जाए ि इसमें स्वथथ मधमक्खिय ों क े लातलमा या भूरे रोंग क े आहारनाल की िुलना में द हरी धूसर सफ े द अोंश तदखाई देिे हैं। मधुमक्खियाों छत्ते क े प्रवेश द्वार पर िथा छत्ते क े अगले भाग में जमीन पर मल त्याग करिी हैं। रोकथाम: फ्युतमतजतलन-बी का ०-५ से ३ तम.ग्रा. मात्रा प्रति १०० तम.तल. घ ल क े साथ तमला कर देना चातहए। वाईसईकल हेक्साईल अम तनयम प्युतमतजल भी प्रभावकारी औिध है।
  • 9. सैकब्रूड यह र ग भारिीय मौन प्रजातिय ों में बहुिायाि में पाया जािा है। यह एक तविाणु जतनि र ग है ज सोंक्रमण से फ ै लिा है। सोंक्रतमि वोंश ों क े क ष्ठक में तडम्भक खुले अवथथा में ही मर जािे ह या बोंद क ष्ठक में द तछद्र बने ह िे है इससे ग्रतसि तडम्भक का रोंग हिा तपला ह िा है अोंि में इसमें थैतलनुमा आक ृ ति बन जािी है। रोकथाम: एक बार इस तबमरी का सोंक्रमण ह ने क े बाद इसकी र कथाम बहुि कतिन ह जािी है। इसका क ई कारगर उप य नही है सोंक्रमण ह ने पर प्रभातवि वोंश ों क मधु वातटका से हटा देना चातहए। िथा सोंक्रतमि वोंश में प्रयुक्त औजार या मौक्खन्ग्रः का क ई भी भाग दुसरे वोंश िक नही ले जाने देना चातहए। वोंश क क ु छ समय रानी तवहीन कर देना चातहए। टेरामईतसन की २५० तम. ग्रा. मात्रा प्रति ४ तलटर चीनी क े घ ल में तमलकर क्खखलाया जाये ि र ग का तनयोंत्रण ह जािा है। गोंभीर रूप से प्रभातवि वोंश क नष्ट कर देना चातहए।
  • 10. मधुमक्खक्खयों क े रोग का जैववक प्रबंधन मधुमक्खिय ों क े र ग ों क जैतवक िरीक े से भी िीक तकया जा सकिा है। जैतवक का मिलब है तक देसी इलाज। आसानी से तमलने वाली अजवाइन, नीम और ग मूत्र से भी इलाज ह सकिा है और ज तक तबि ु ल कारगर है। अगर मक्खिय ों क क ई बीमारी ह जािी है ि जानकारी क े अभाव में पालक रासायतनक दवाओों का उपय ग करिे हैं यह मक्खिय ों क े तलए जानलेवा भी ह सकिी हैं। फॉलवेक्स पट्टी, तमथाइल सेलीतसलेट, थाईम ल, फ्यूतमजैतलन नामक दवाओों का मधुमक्खिय ों पर पड़िा है बुरा असर। र गग्रस्त मक्खिय ों से गोंजे तशशु पैदे ह िे हैं ज एक िरह का तवकार है। इसक े साथ जहाों म मी पिोंगे से पूरा छत्ता प्रभातवि ह िा है वहीों वैर रा माइट भी मक्खिय ों क े तलए घािक है।
  • 11. अजवाइन का रस रुई क े बड़े टुकड़े में डुब कर पालक बक्से क े प्रवेश द्वार पर ही रख सकिे हैं। इसकी िेज गोंध से तकसी भी िरह का कीट बक्से में नहीों आ पाएगा और बक्से क े अोंदर क े कीट भी खत्म ह जाएों गे। इसी िरह औिधीय गुण ों वाली नीम की पतत्तय ों क े रस का भी उपय ग तकया जा सकिा है। ग मूत्र में भी औिधीय गुण मौजूद ह िे हैं ज कई िरह क े तवकार और र ग ों क े तलए कारगर हैं। इसक े तछड़काव से मक्खियाों ज्यादा फ ु िी में तदखाई देिी हैं। ये देसी उपचार मक्खिय ों क सूक्ष्मजीतवय ों से ह ने वाली बीमाररय ों से बचाएगा और उपचार करेगा। इसक े साथ ही अगर समय पर इनका उपय ग तकया जाए ि बीमाररय ों से मक्खिय ों क बचाया जा सकिा है।