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चमचा युग
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर क
े बाद अगर बहुजन क
े सबसे बड़े मसीहा अगर मा यवर
कांशीराम को कहा जाए तो कोई अ तशयोि त नह ं होगी, उ ह ने हा शये पर पड़े वं चत वग को
मु यधारा म लाने क
े लए अपनी पूर िज़ंदगी लगा द । उ ह ने बहुजन वग क
े राज न तक
एक करण और उ थान क
े लए अपना सव व याग दया, मा यवर कांशीराम साहब ने 1982 म
चमचा युग नामक बुक लखी।
इस पु तक को लखने का उनका उ दे य यह था क द लत-शो षत समाज और इसक
े कायकताओं
और नेताओं को हमारे द लत और शो षत समाज म चमच क
े इस त व क बड़े पैमाने पर
मौजूदगी क
े बारे म अवगत , जाग क , और सावधान कया जाए, इस पु तक को तैयार करने का
एक उ दे य यह भी था क जन साधारण, वशेषकर कायकताओं को इस यो य बनाया जाए क वे
असल और नकल नेतृ व म भेद कर सक।
चमचा युग
चमचा युग म चमच क
े मु य क म इस कार ह :-
चमच क व भ न क म
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर क
े जीवनकाल म उनको क
े वल कां ेस और अनुसू चत जा तय क
े
चमच से ह नपटना पड़ा था। बाबासाहब क
े प र नवाण क
े बाद अनेक नई-नई क म क
े चमच
क
े उभर आने से ि थ त और खराब हो गई। उनक
े जाने क
े बाद, कां ेस क
े अलावा अ य दल को
भी, क
े वल अनुसू चत जा तय से नह ं बि क अ य समुदाय क
े बीच से भी, अपने चमचे बनाने क
ज रत महसूस हुई। इस तरह, भार पैमाने पर चमच क व भ न क म उभर कर सामने आ ।
(क) व भ न जा तय और समुदाय क
े चमचे
भारत क क
ु ल जनसं या म लगभग 85% पी ड़त और शो षतलोग ह, और उनका कोई नेता नह ं है।
वा तव म ऊ
ं ची जा तय क
े हंदू उनम नेतृ वह नता क ि थ त पैदा करने म सफल हुए ह। यह
ि थ त इन जा तय और समुदाय म चमचे बनाने क ि ट से अ यंत सहायक है। व भ न
जा तय और समुदाय क
े अनुसार चमच क न न ल खत े णयाँ गनाई जा सकती ह।
1.अनुसू चत जा तयां-अ न छ
ु क चमचे
बीसवीं शता द क
े दौरान अनुसू चत जा तय का समूचा संघष यह इं गत करता है क वे उ जवल
युग म वेश का यास कर रहे थे कं तु गांधी जी और कां ेस ने उ ह चमचा युग म धक
े ल दया
। वे उस दबाव म अभी भी कराह रहे ह, वे वतमान ि थ त को वीकार नह ं कर पाए ह और उस
से नकल ह नह ं पा रहे ह इस लए उ ह अ न छ
ु क चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसू चत जनजा तयां - नव द त चमचे
अनुसू चत जनजा तयां भारत क
े संवैधा नक और आधु नक वकास क
े दौरान संघष क
े लए नह ं
जानी जातीं। 1940 क
े दशक म उ हे भी अनुसू चत जा तय क
े साथ मा यता और अ धकार मलने
लगे। भारत क
े सं वधान क
े अनुसार 26 जनवर 1950 क
े बाद उ ह अनुसू चत जा तय क
े समान
ह मा यता और अ धकार मले। यह सब उ ह अनुसू चत जा तय क
े संघष क
े प रणाम व प
मला, िजसक
े चलते रा य और अंतररा य मत उ पी ड़त और शो षत भारतीय क
े प म हो
गया था।
आज तक उ ह भारत क
े क य मं मंडल म कभी त न ध व नह ं मलता। फर भी उ ह जो
क
ु छ मल पाता है, वे उसी से संतु ट दखाई पड़ते ह, इससे भी खराब बात यह है क वह अभी भी
कसी मुगालते म ह क उनका उ पीड़क और शोषक ह उनका हतैषी है। इस तरह उ ह
नवद त चमचे कहा जा सकता है य क उ ह सीधे - सीधे चमचा युग म द त कया गया
है।
3.अ य पछड़ी जा तयां - मह वाकां ी चमचे
लंबे समय तक चले संघष क
े बाद अनुसू चत जा तय क
े साथ अनुसू चत जनजा तय को मा यता
और अ धकार मले। इसक
े प रणाम व प उन लोग ने अपनी साम य और मताओं से भी
बहुत आगे नकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लया है। यह बेहतर श ा, सरकार
नौक रय और राजनी त क
े े म सबसे अ धक दखाई देती है।
अनुसू चत जा तय और जनजा तय म इस तरह क बेहतर ने अ य पछड़ी जा तय क
मह वाकां ाओं को जगा दया है। अभी तक तो वे इस मह वाकां ा को पूरा करने म सफल नह ं
हुए ह। पछले क
ु छ वष म उ ह ने हर दरवाजे पर द तक द उनक
े लए कोई दरवाजा नह ं
खुला। अभी जून 1982 म ह रयाणा म हुए चुनाव म हम उ ह नकट से देखने का मौका मला।
अ य पछड़ी जा तय क
े तथाक थत छोटे नेता टकट क
े लए हर एक दरवाजा रहे थे अंत म हमने
देखा क वे ह रयाणा क 90 सीट म से एक टकट कां ेस(आई) से और एक टकट लोक दल से
ले पाये। आज ह रयाणा वधानसभा म अ य पछड़ी जा त का क
े वल एक वधायक है। क
ु छ
थान वशेषकर द ण क
े क
ु छ थान को छोड़ कर हम उ ह अनेक थान और अनेक तर पर
संघष करने क
े बावजूद अपने अ धकार पाने से वं चत देखते ह।
जैसा क ह रयाणा म है वा तव म उनक एक बड़ी सं या म सब पाना चाहती है जो अनुसू चत
जा तय और अनुसू चत जनजा तय को पहले ह मला हुआ है। 3700 से अ धक अ य पछड़ी
जा तय म से लगभग 1000 जा तयां ना क
े वल अनुसू चत जा त /अनुसू चत जनजा त क सूची म
सि म लत कए जाने क मह वाकां ा कर रह ह। बि क उसक
े लए संघष कर रह ह। इस
कार अ य पछड़ी जा तय का क
ु ल यवहार हम इस ओर ले जाता है क वह मह वाकां ी चमचे
ह।
4. अ पसं यक - असहाय चमचे
सन 1971 क जनगणना क
े अनुसार भारत क क
ु ल जनसं या म धा मक अ पसं यक का तशत
17.28 है। 15 अग त 1947 को भारत क
े अं ेज क
े भारत छोड़ने से पहले उ ह उनक आबाद क
े
अनुसार उनका अ धकार मल रहा था। उसक
े बाद तो वह पूरे तौर पर भारत क शासक जा तय
क दया पर नभर हो गए। सां दा यक दंग क बहुतायत होने क
े कारण मुसलमान चौक ने रहते
ह।
ईसाई बेबस घसट रहे ह। सख स मानजनक जीवन क
े लए संघष कर रहे ह। बौ ध तो संभाल
भी नह ं पाये ह। इस सबसे यह मा णत होता है क भारत क
े अ पसं यक असहाय चमचे ह।
(ख) व भ न दल क
े चमचे
"कां ेस का दूसरा दु कृ य था अछ
ू त काँ े सय से कठोर पाट अनुशासन का पालन करवाना। वे पूरे
तौर पर कां ेस कायका रणी क
े नयं ण म थे । वे ऐसा कोई सवाल नह ं पुछ सकते थे जो
कायका रणी को पसंद न हो। वे ऐसा कोई ताव नह ं रख सकते थे िजसम उसक अनुम त न हो।
वे ऐसा वधान नह ं ला सकते थे िजस पर उसे आप हो।
वे अपनी इ छानुसार मतदान नह ं कर सकते थे और जो सोचते थे वह बोल भी नह ं सकते थे। वे
वहाँ हाँक
े हुए म व शय क तरह थे। अछ
ू त क
े लए वधा यका म त न ध व ा त करने का
एक उ दे य उ ह इस यो य बनाना है क वे अपनी शकायत को य त कर सक और अपनी
गल तय को सुधार सक। कां ेस ऐसा न होने देने क
े अपने यास म सफल और कारगर रह ।"
“इस लंबी और दुखद कहानी का अंत करने क
े लए कां ेस ने पूना समझौते का रस चूस लया
और छलका अछ
ू त क
े मुह पर फक दया।" - डॉ. भीमराव आंबेडकर
अनुसू चत जा तय क
े वधायक क असहायता का वणन डॉ. आंबेडकर ने अपनी पु तक 'काँ ेस
और गांधी ने अछ
ू त क
े लए या कया' म कया है। यह ि थ त 1945 म थी। आने वाले वष म,
हम और भी खराब हालत और भी बड़े पैमाने पर देखने को मले।
उस समय इस तरह का यवहार करने और अनुसू चत जा तय म से चमचे बनाने वाल ऊ
ं ची
जा तय क
े हंदुओं क रा य तर पर 7 पा टयां और रा य तथा े ीय तर क अनेक पा टयां
ह जो क
े वल अनुसू चत जा तय से ह नह ं बि क भारत क
े सभी उ पी ड़त और शो षत समुदाय से
चमचे पैदा कर रह ं ह।
आज ऊ
ं ची जा तय क
े हंदुओं क ये सभी पा टयां रस चूस रह ह और छलका उन 85% उ पी ड़त
और शो षत भारतीय क
े मुंह पर फक रह ह।
इस कार , व भ न दल म चमच क
े इस नमाण ने हमारे लए हालत और भी बदतर कर दए
ह। जो लोग सम या से नपटना चाहते ह वे अपने सामने खड़ी और भी बड़ी सम या क
े इस पहलू
को अनदेखा नह ं कर सकते।
(ग) अ ानी चमचे
भारत क
े उ पी ड़त लोग, वशेषकर द लत वग, लगभग पूरे भारत म अ याय क
े खलाफ जूझ रहे
थे। उनक
े अ धकांश संघष थानीय और े ीय रहे। देश क जनसं या और आकार को यान म
रखते हुए, हम कह सकते ह क वे संघष लगभग अलग थलग रहकर कए गए क वे समूह का
संघष तीत होते ह।
उन समूहगत संघष म,  लोग क
े वल अपने ह संघष क
े बारे म जानते थे और अ य चल रहे
अपने बंधुओं क
े अ य संघष क
े बारे म अनजान रहते थे। द लत वग क इस अ मता क
क पना इस त य से क जा सकती है क द लत वग क एक बड़ी जमात उनक
े ह लए, कए
गए डॉ.  आंबेडकर क
े आजीवन संघष क
े बारे म ब क
ु ल अनजान बनी रह ।
आज भी भारत म अनुसू चत जा तय क
े लगभग 50% लोग डॉ. आंबेडकर क
े जीवन और मकसद
क
े बारे म अनजान ह। अनुसू चत जा तय , अनुसू चत जनजा तय और अ य पछड़ी जा तय क
इस यापक तर क अ ानता का ऊ
ं ची जा तय क
े हंदुओं ने लाभ उठाया। उनक अ ानता
और अ य कमजो रय का लाभ उठाते हुए ऊ
ं ची जा तय क
े हंदुओं ने उनम आसानी से चमचे
बना लये। इस क म क
े चमच को अ ानी चमचे कहा जा सकता है।
यह अ ानी चमचे डॉ.  आंबेडकर क
े जीवन काल म उनक
े लए बड़ा सरदद बने रहे। अपनी
स ध पु तक 'काँ ेस और गांधी ने अछ
ू त क
े लए या कया'  म उ ह ने इसक
े क
ु छ उदाहरण
दए ह। अ ानी त व का एक ऐसा उदाहरण इस कार है :-
ेस जनल,  दनांक 14 . 4. 45 क
े अनुसार रायबहादुर मेहरचंद ख ना नाम क
े एक स जन ने
ड े ड लासेस ल ग क
े त वाधान म 12 अ ैल 1945 को पेशावर म आयोिजत अछ
ू त क सभा म
क थत तौर पर कहा था ---
आप क
े सबसे अ छे म महा मा गांधी ह, उ ह ने आप क खा तर अनशन तक कया और पूना
समझौता कया िजसक
े तहत आप को वोट डालने का हक मला और थानीय नकाय और
वधा यका म नुमाइंदगी द गई।
मुझे पता है क आप म से क
ु छ लोग डॉ.  आंबेडकर क
े पीछे भाग रहे ह, जो महज अं ेज सा ा य
वा दय क देन है और जो अं ेजी हुक
ू मत क
े हाथ मजबूत करने क
े लए आप का इ तेमाल करते
ह।
ता क भारत का वभाजन हो जाए और स ा उनक
े हाथ म बनी रहे। म आपक
े हत म आप से
अपील करता हूं क आप वयंभू नेताओं और अपने स चे दो त म फक कर।
द लत वग क इसी अ ान क
े चलते ऊ
ं ची जा तय क
े ह दू उ ह आसानी से गुमराह कर लेते
थे।
वे उ ह व वास दला देते थे क उनक
े अ धकार को हड़पने वाला ह उनका उ धारक है। इस
तरह बड़ी सं या म द लत को गुमराह कया गया और उ ह आसानी से अ ानी चमचे बना लया
गया।
(घ) बु ध चमचे अथवा अंबेडकरवाद चमचे
हमने अ ानी लोग पर गौर कया और इस बात पर भी क उनम से चमचे क
ै से बनाए गए।
कं तु चमचा युग म सबसे दुखद ह सा है बु ध चमचे अथवा अंबेडकरवाद चमचे । डॉ. आंबेडकर
ने वयं यह बताया था क अ ानी जनसमूह को अछ
ू त क
े संघष म गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर
क भू मका क
े बारे म क
ै से गुमराह कया गया।
हम अ ानी जनसमूह क
े आचरण को समझ सकते ह। कं तु बु ध लोग ,  वशेषकर वयं डॉ
आंबेडकर वारा बु ध कए गए लोग क
े आचरण का या कर। इन बु ध लोग को गांधी जी
और डॉ.  आंबेडकर क भू मका क
े बारे म पता होना ह चा हए। हम यह जानकर त ध रह गए
क इन बु ध चमच ने लगभग 1 वष पहले 24 सतंबर 1982 को पूना समझौते क वण जयंती
मनाने क
े लए पुणे म एक स म त बनाई।
1 वष पहले ह बना ल गई इस स म त म आर. पी . आई क
े महास चव,  द लत पथस क
े
पदा धकार और डॉ.  अंबेडकर क
े ह बु ध समुदाय क
े क
ु छ व र ठ अ धकार शा मल थे। अब
पूना समझौते को प रण त तक पहुंचाने म गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर क भू मका को अ छे से
जानते हुए,  पेशावर क
े अपने अ ानी बंधुओं क
े वपर त पूना क
े बु ध लोग पूना समझौते क
वण जयंती मनाने क
े बारे म सोच भी नह ं सकते थे।
कं तु ये आंबेडकरवाद चमचे वण जयंती क
े बारे म क
े वल सोच ह नह ं रहे थे , बि क 1 साल
पहले से ह उसक जोर शोर से तैयार भी कर रहे थे ।
इससे भी अ धक बुर बात यह है क इन लोग ने डॉ. आंबेडकर क सलाह पर और म टर आर
आर भोले क
े नेतृ व म 1946 म पुणे समझौते क नंदा क थी,  वे भी वण जयंती मनाने क
े
लए वयं को तैयार कर रहे थे।
क
े वल इसी को नह ं बि क उनक
े सवागीण आचरण को भी और पछले कई साल से टुकड़खोर
पर उनक त परता को यान म रखते हुए , हमने इस क म क
े बु ध चमच अथवा
अंबेडकरवाद चमच का नाम देने का फ
ै सला कया है।
(च) चमच क
े चमचे
वय क मता धकार पर आधा रत लोकतां क यव था क राजनी तक अ नवायताओं ने उ ह भारत
क शासक जा तय को बा य कर दया क वे भारत क उ पी ड़त और शो षत जा तय और
समुदाय म से चमचे बनाएं। इस कार हम राजनी तक ग त व धय क
े व भ न तर पर चमच
क बहुतायत दखाई देती है।
इन राजनी तक चमच क यो यता क परख उनक अपनी अपनी जा तय म उनक
े अनुया यय
क सं या से होती है । ऊ
ं चे और बड़े तर पर स य चमचे अपने बूते पर बड़े काम नह ं संभाल
सकते।
इस तरह,  शासक जा तय क पूर तौर पर और न ठा से सेवा करने क
े लए उ ह चमचे बनाने
क ज रत होती है इसक
े अ त र त अनुसू चत जा तय और अनुसू चत जनजा तय क
े श त
कमचा रय क बढ़ती ह जा रह सं या से ऐसे चमचे बनाने क
े लए एक उपजाऊ भू म तैयार
होती है।
श त कमचा रय क
े इस वग म मौजूद चालाक लोग राजनी तक चमच से अनु चत अनु ह और
लाभ ा त करने क
े लए उनक चमचा गर करते ह । समय क
े साथ ऐसे यि तय क सं या
बढ़ती जा रह है। इस वग क
े प ठूओं को चमच क
े चमचे कहा जा सकता है।
(छ) वदेश ि थत चमचे
भारत म य क उ पी ड़त का कोई वतं आंदोलन नह ं है,  इस लए वगत वष क
े पसंद दा और
अघाए चमचे शांत है । भारत म चमच का यह न न तर 1980 क
े लोकसभा और वधानसभा
चुनाव क
े बाद ब क
ु ल न नतम तर पर पहुंच गया। भारत म अघाए चमच क
े इस न न तर
क
े चलते वदेश म रह रहे अनेक अछ
ू त अवसर वा दय ने गलती से यह समझ लया क भारत
म चमच का अभाव है।
मानो इस र त थान को भरने क
े लए अनेक वाथ और अवसरवाद चमचे भारत क ओर दौड़
पड़े। अमे रका से आए ऐसे ह एक यो य यि त को द ल म और उसक
े आसपास अपने
आपको शासक दल क
े चमचे क
े तौर पर जमा लेने क फ
ू हड़ को शश करते हुए देखा गया । भारत
म लंबे समय तक ठहरने क
े दौरान उसका मोहभंग हो गया और वह वापस अमे रका जाकर वहां
यूयॉक सट क कां ेस (आई) म शा मल हो गया।
ऐसे तमाम वाथ अछ
ू त को लगभग मोहभंग क ि थ त म अपने-अपने वदेश म लौटना पड़ा।
मने इन अधपक को शश क ओर गौर करने का फ
ै सला इस लए कया है य क वदेश म
चमचे ह जो पास म छप रहे ह। जब भारत म उ पी ड़त भारतीय का आंदोलन मजबूत हो
जाएगा तो वह फर से खुले म आ जाएंगे।
 

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चमचा युग.pdf

  • 1. चमचा युग बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर क े बाद अगर बहुजन क े सबसे बड़े मसीहा अगर मा यवर कांशीराम को कहा जाए तो कोई अ तशयोि त नह ं होगी, उ ह ने हा शये पर पड़े वं चत वग को मु यधारा म लाने क े लए अपनी पूर िज़ंदगी लगा द । उ ह ने बहुजन वग क े राज न तक एक करण और उ थान क े लए अपना सव व याग दया, मा यवर कांशीराम साहब ने 1982 म चमचा युग नामक बुक लखी। इस पु तक को लखने का उनका उ दे य यह था क द लत-शो षत समाज और इसक े कायकताओं और नेताओं को हमारे द लत और शो षत समाज म चमच क े इस त व क बड़े पैमाने पर मौजूदगी क े बारे म अवगत , जाग क , और सावधान कया जाए, इस पु तक को तैयार करने का एक उ दे य यह भी था क जन साधारण, वशेषकर कायकताओं को इस यो य बनाया जाए क वे असल और नकल नेतृ व म भेद कर सक।
  • 3. चमचा युग म चमच क े मु य क म इस कार ह :- चमच क व भ न क म बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर क े जीवनकाल म उनको क े वल कां ेस और अनुसू चत जा तय क े चमच से ह नपटना पड़ा था। बाबासाहब क े प र नवाण क े बाद अनेक नई-नई क म क े चमच क े उभर आने से ि थ त और खराब हो गई। उनक े जाने क े बाद, कां ेस क े अलावा अ य दल को भी, क े वल अनुसू चत जा तय से नह ं बि क अ य समुदाय क े बीच से भी, अपने चमचे बनाने क ज रत महसूस हुई। इस तरह, भार पैमाने पर चमच क व भ न क म उभर कर सामने आ । (क) व भ न जा तय और समुदाय क े चमचे भारत क क ु ल जनसं या म लगभग 85% पी ड़त और शो षतलोग ह, और उनका कोई नेता नह ं है। वा तव म ऊ ं ची जा तय क े हंदू उनम नेतृ वह नता क ि थ त पैदा करने म सफल हुए ह। यह ि थ त इन जा तय और समुदाय म चमचे बनाने क ि ट से अ यंत सहायक है। व भ न जा तय और समुदाय क े अनुसार चमच क न न ल खत े णयाँ गनाई जा सकती ह। 1.अनुसू चत जा तयां-अ न छ ु क चमचे बीसवीं शता द क े दौरान अनुसू चत जा तय का समूचा संघष यह इं गत करता है क वे उ जवल युग म वेश का यास कर रहे थे कं तु गांधी जी और कां ेस ने उ ह चमचा युग म धक े ल दया । वे उस दबाव म अभी भी कराह रहे ह, वे वतमान ि थ त को वीकार नह ं कर पाए ह और उस से नकल ह नह ं पा रहे ह इस लए उ ह अ न छ ु क चमचे कहा जा सकता है। 2.अनुसू चत जनजा तयां - नव द त चमचे अनुसू चत जनजा तयां भारत क े संवैधा नक और आधु नक वकास क े दौरान संघष क े लए नह ं जानी जातीं। 1940 क े दशक म उ हे भी अनुसू चत जा तय क े साथ मा यता और अ धकार मलने लगे। भारत क े सं वधान क े अनुसार 26 जनवर 1950 क े बाद उ ह अनुसू चत जा तय क े समान ह मा यता और अ धकार मले। यह सब उ ह अनुसू चत जा तय क े संघष क े प रणाम व प मला, िजसक े चलते रा य और अंतररा य मत उ पी ड़त और शो षत भारतीय क े प म हो गया था। आज तक उ ह भारत क े क य मं मंडल म कभी त न ध व नह ं मलता। फर भी उ ह जो क ु छ मल पाता है, वे उसी से संतु ट दखाई पड़ते ह, इससे भी खराब बात यह है क वह अभी भी
  • 4. कसी मुगालते म ह क उनका उ पीड़क और शोषक ह उनका हतैषी है। इस तरह उ ह नवद त चमचे कहा जा सकता है य क उ ह सीधे - सीधे चमचा युग म द त कया गया है। 3.अ य पछड़ी जा तयां - मह वाकां ी चमचे लंबे समय तक चले संघष क े बाद अनुसू चत जा तय क े साथ अनुसू चत जनजा तय को मा यता और अ धकार मले। इसक े प रणाम व प उन लोग ने अपनी साम य और मताओं से भी बहुत आगे नकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लया है। यह बेहतर श ा, सरकार नौक रय और राजनी त क े े म सबसे अ धक दखाई देती है। अनुसू चत जा तय और जनजा तय म इस तरह क बेहतर ने अ य पछड़ी जा तय क मह वाकां ाओं को जगा दया है। अभी तक तो वे इस मह वाकां ा को पूरा करने म सफल नह ं हुए ह। पछले क ु छ वष म उ ह ने हर दरवाजे पर द तक द उनक े लए कोई दरवाजा नह ं खुला। अभी जून 1982 म ह रयाणा म हुए चुनाव म हम उ ह नकट से देखने का मौका मला। अ य पछड़ी जा तय क े तथाक थत छोटे नेता टकट क े लए हर एक दरवाजा रहे थे अंत म हमने देखा क वे ह रयाणा क 90 सीट म से एक टकट कां ेस(आई) से और एक टकट लोक दल से ले पाये। आज ह रयाणा वधानसभा म अ य पछड़ी जा त का क े वल एक वधायक है। क ु छ थान वशेषकर द ण क े क ु छ थान को छोड़ कर हम उ ह अनेक थान और अनेक तर पर संघष करने क े बावजूद अपने अ धकार पाने से वं चत देखते ह। जैसा क ह रयाणा म है वा तव म उनक एक बड़ी सं या म सब पाना चाहती है जो अनुसू चत जा तय और अनुसू चत जनजा तय को पहले ह मला हुआ है। 3700 से अ धक अ य पछड़ी जा तय म से लगभग 1000 जा तयां ना क े वल अनुसू चत जा त /अनुसू चत जनजा त क सूची म सि म लत कए जाने क मह वाकां ा कर रह ह। बि क उसक े लए संघष कर रह ह। इस कार अ य पछड़ी जा तय का क ु ल यवहार हम इस ओर ले जाता है क वह मह वाकां ी चमचे ह। 4. अ पसं यक - असहाय चमचे सन 1971 क जनगणना क े अनुसार भारत क क ु ल जनसं या म धा मक अ पसं यक का तशत 17.28 है। 15 अग त 1947 को भारत क े अं ेज क े भारत छोड़ने से पहले उ ह उनक आबाद क े अनुसार उनका अ धकार मल रहा था। उसक े बाद तो वह पूरे तौर पर भारत क शासक जा तय
  • 5. क दया पर नभर हो गए। सां दा यक दंग क बहुतायत होने क े कारण मुसलमान चौक ने रहते ह। ईसाई बेबस घसट रहे ह। सख स मानजनक जीवन क े लए संघष कर रहे ह। बौ ध तो संभाल भी नह ं पाये ह। इस सबसे यह मा णत होता है क भारत क े अ पसं यक असहाय चमचे ह। (ख) व भ न दल क े चमचे "कां ेस का दूसरा दु कृ य था अछ ू त काँ े सय से कठोर पाट अनुशासन का पालन करवाना। वे पूरे तौर पर कां ेस कायका रणी क े नयं ण म थे । वे ऐसा कोई सवाल नह ं पुछ सकते थे जो कायका रणी को पसंद न हो। वे ऐसा कोई ताव नह ं रख सकते थे िजसम उसक अनुम त न हो। वे ऐसा वधान नह ं ला सकते थे िजस पर उसे आप हो। वे अपनी इ छानुसार मतदान नह ं कर सकते थे और जो सोचते थे वह बोल भी नह ं सकते थे। वे वहाँ हाँक े हुए म व शय क तरह थे। अछ ू त क े लए वधा यका म त न ध व ा त करने का एक उ दे य उ ह इस यो य बनाना है क वे अपनी शकायत को य त कर सक और अपनी गल तय को सुधार सक। कां ेस ऐसा न होने देने क े अपने यास म सफल और कारगर रह ।" “इस लंबी और दुखद कहानी का अंत करने क े लए कां ेस ने पूना समझौते का रस चूस लया और छलका अछ ू त क े मुह पर फक दया।" - डॉ. भीमराव आंबेडकर अनुसू चत जा तय क े वधायक क असहायता का वणन डॉ. आंबेडकर ने अपनी पु तक 'काँ ेस और गांधी ने अछ ू त क े लए या कया' म कया है। यह ि थ त 1945 म थी। आने वाले वष म, हम और भी खराब हालत और भी बड़े पैमाने पर देखने को मले। उस समय इस तरह का यवहार करने और अनुसू चत जा तय म से चमचे बनाने वाल ऊ ं ची जा तय क े हंदुओं क रा य तर पर 7 पा टयां और रा य तथा े ीय तर क अनेक पा टयां ह जो क े वल अनुसू चत जा तय से ह नह ं बि क भारत क े सभी उ पी ड़त और शो षत समुदाय से चमचे पैदा कर रह ं ह। आज ऊ ं ची जा तय क े हंदुओं क ये सभी पा टयां रस चूस रह ह और छलका उन 85% उ पी ड़त और शो षत भारतीय क े मुंह पर फक रह ह। इस कार , व भ न दल म चमच क े इस नमाण ने हमारे लए हालत और भी बदतर कर दए ह। जो लोग सम या से नपटना चाहते ह वे अपने सामने खड़ी और भी बड़ी सम या क े इस पहलू को अनदेखा नह ं कर सकते।
  • 6. (ग) अ ानी चमचे भारत क े उ पी ड़त लोग, वशेषकर द लत वग, लगभग पूरे भारत म अ याय क े खलाफ जूझ रहे थे। उनक े अ धकांश संघष थानीय और े ीय रहे। देश क जनसं या और आकार को यान म रखते हुए, हम कह सकते ह क वे संघष लगभग अलग थलग रहकर कए गए क वे समूह का संघष तीत होते ह। उन समूहगत संघष म,  लोग क े वल अपने ह संघष क े बारे म जानते थे और अ य चल रहे अपने बंधुओं क े अ य संघष क े बारे म अनजान रहते थे। द लत वग क इस अ मता क क पना इस त य से क जा सकती है क द लत वग क एक बड़ी जमात उनक े ह लए, कए गए डॉ.  आंबेडकर क े आजीवन संघष क े बारे म ब क ु ल अनजान बनी रह । आज भी भारत म अनुसू चत जा तय क े लगभग 50% लोग डॉ. आंबेडकर क े जीवन और मकसद क े बारे म अनजान ह। अनुसू चत जा तय , अनुसू चत जनजा तय और अ य पछड़ी जा तय क इस यापक तर क अ ानता का ऊ ं ची जा तय क े हंदुओं ने लाभ उठाया। उनक अ ानता और अ य कमजो रय का लाभ उठाते हुए ऊ ं ची जा तय क े हंदुओं ने उनम आसानी से चमचे बना लये। इस क म क े चमच को अ ानी चमचे कहा जा सकता है। यह अ ानी चमचे डॉ.  आंबेडकर क े जीवन काल म उनक े लए बड़ा सरदद बने रहे। अपनी स ध पु तक 'काँ ेस और गांधी ने अछ ू त क े लए या कया'  म उ ह ने इसक े क ु छ उदाहरण दए ह। अ ानी त व का एक ऐसा उदाहरण इस कार है :- ेस जनल,  दनांक 14 . 4. 45 क े अनुसार रायबहादुर मेहरचंद ख ना नाम क े एक स जन ने ड े ड लासेस ल ग क े त वाधान म 12 अ ैल 1945 को पेशावर म आयोिजत अछ ू त क सभा म क थत तौर पर कहा था --- आप क े सबसे अ छे म महा मा गांधी ह, उ ह ने आप क खा तर अनशन तक कया और पूना समझौता कया िजसक े तहत आप को वोट डालने का हक मला और थानीय नकाय और वधा यका म नुमाइंदगी द गई। मुझे पता है क आप म से क ु छ लोग डॉ.  आंबेडकर क े पीछे भाग रहे ह, जो महज अं ेज सा ा य वा दय क देन है और जो अं ेजी हुक ू मत क े हाथ मजबूत करने क े लए आप का इ तेमाल करते ह। ता क भारत का वभाजन हो जाए और स ा उनक े हाथ म बनी रहे। म आपक े हत म आप से अपील करता हूं क आप वयंभू नेताओं और अपने स चे दो त म फक कर।
  • 7. द लत वग क इसी अ ान क े चलते ऊ ं ची जा तय क े ह दू उ ह आसानी से गुमराह कर लेते थे। वे उ ह व वास दला देते थे क उनक े अ धकार को हड़पने वाला ह उनका उ धारक है। इस तरह बड़ी सं या म द लत को गुमराह कया गया और उ ह आसानी से अ ानी चमचे बना लया गया। (घ) बु ध चमचे अथवा अंबेडकरवाद चमचे हमने अ ानी लोग पर गौर कया और इस बात पर भी क उनम से चमचे क ै से बनाए गए। कं तु चमचा युग म सबसे दुखद ह सा है बु ध चमचे अथवा अंबेडकरवाद चमचे । डॉ. आंबेडकर ने वयं यह बताया था क अ ानी जनसमूह को अछ ू त क े संघष म गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर क भू मका क े बारे म क ै से गुमराह कया गया। हम अ ानी जनसमूह क े आचरण को समझ सकते ह। कं तु बु ध लोग ,  वशेषकर वयं डॉ आंबेडकर वारा बु ध कए गए लोग क े आचरण का या कर। इन बु ध लोग को गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर क भू मका क े बारे म पता होना ह चा हए। हम यह जानकर त ध रह गए क इन बु ध चमच ने लगभग 1 वष पहले 24 सतंबर 1982 को पूना समझौते क वण जयंती मनाने क े लए पुणे म एक स म त बनाई। 1 वष पहले ह बना ल गई इस स म त म आर. पी . आई क े महास चव,  द लत पथस क े पदा धकार और डॉ.  अंबेडकर क े ह बु ध समुदाय क े क ु छ व र ठ अ धकार शा मल थे। अब पूना समझौते को प रण त तक पहुंचाने म गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर क भू मका को अ छे से जानते हुए,  पेशावर क े अपने अ ानी बंधुओं क े वपर त पूना क े बु ध लोग पूना समझौते क वण जयंती मनाने क े बारे म सोच भी नह ं सकते थे। कं तु ये आंबेडकरवाद चमचे वण जयंती क े बारे म क े वल सोच ह नह ं रहे थे , बि क 1 साल पहले से ह उसक जोर शोर से तैयार भी कर रहे थे । इससे भी अ धक बुर बात यह है क इन लोग ने डॉ. आंबेडकर क सलाह पर और म टर आर आर भोले क े नेतृ व म 1946 म पुणे समझौते क नंदा क थी,  वे भी वण जयंती मनाने क े लए वयं को तैयार कर रहे थे। क े वल इसी को नह ं बि क उनक े सवागीण आचरण को भी और पछले कई साल से टुकड़खोर पर उनक त परता को यान म रखते हुए , हमने इस क म क े बु ध चमच अथवा अंबेडकरवाद चमच का नाम देने का फ ै सला कया है।
  • 8. (च) चमच क े चमचे वय क मता धकार पर आधा रत लोकतां क यव था क राजनी तक अ नवायताओं ने उ ह भारत क शासक जा तय को बा य कर दया क वे भारत क उ पी ड़त और शो षत जा तय और समुदाय म से चमचे बनाएं। इस कार हम राजनी तक ग त व धय क े व भ न तर पर चमच क बहुतायत दखाई देती है। इन राजनी तक चमच क यो यता क परख उनक अपनी अपनी जा तय म उनक े अनुया यय क सं या से होती है । ऊ ं चे और बड़े तर पर स य चमचे अपने बूते पर बड़े काम नह ं संभाल सकते। इस तरह,  शासक जा तय क पूर तौर पर और न ठा से सेवा करने क े लए उ ह चमचे बनाने क ज रत होती है इसक े अ त र त अनुसू चत जा तय और अनुसू चत जनजा तय क े श त कमचा रय क बढ़ती ह जा रह सं या से ऐसे चमचे बनाने क े लए एक उपजाऊ भू म तैयार होती है। श त कमचा रय क े इस वग म मौजूद चालाक लोग राजनी तक चमच से अनु चत अनु ह और लाभ ा त करने क े लए उनक चमचा गर करते ह । समय क े साथ ऐसे यि तय क सं या बढ़ती जा रह है। इस वग क े प ठूओं को चमच क े चमचे कहा जा सकता है। (छ) वदेश ि थत चमचे भारत म य क उ पी ड़त का कोई वतं आंदोलन नह ं है,  इस लए वगत वष क े पसंद दा और अघाए चमचे शांत है । भारत म चमच का यह न न तर 1980 क े लोकसभा और वधानसभा चुनाव क े बाद ब क ु ल न नतम तर पर पहुंच गया। भारत म अघाए चमच क े इस न न तर क े चलते वदेश म रह रहे अनेक अछ ू त अवसर वा दय ने गलती से यह समझ लया क भारत म चमच का अभाव है। मानो इस र त थान को भरने क े लए अनेक वाथ और अवसरवाद चमचे भारत क ओर दौड़ पड़े। अमे रका से आए ऐसे ह एक यो य यि त को द ल म और उसक े आसपास अपने आपको शासक दल क े चमचे क े तौर पर जमा लेने क फ ू हड़ को शश करते हुए देखा गया । भारत म लंबे समय तक ठहरने क े दौरान उसका मोहभंग हो गया और वह वापस अमे रका जाकर वहां यूयॉक सट क कां ेस (आई) म शा मल हो गया। ऐसे तमाम वाथ अछ ू त को लगभग मोहभंग क ि थ त म अपने-अपने वदेश म लौटना पड़ा। मने इन अधपक को शश क ओर गौर करने का फ ै सला इस लए कया है य क वदेश म
  • 9. चमचे ह जो पास म छप रहे ह। जब भारत म उ पी ड़त भारतीय का आंदोलन मजबूत हो जाएगा तो वह फर से खुले म आ जाएंगे।