2. वास्तुशास्रके प्रकार
•ह िंदु वास्तुशास्र
•मुघल वास्तुशास्र
•रोमन या गोथिक वास्तुशास्र
•इस्लाममक वास्तुशास्र
•बुध्दकालीन वास्तुशास्र
3. ह िंदु वास्तुशास्र का उगमस्िान
• वैहदक वािंग्मय –वेद,पुराण,उपतनषद इ.
• मशल्पसिंह ता-भृगु,कश्यप,मय, ववश्वाममर इ.
प्रत्यक्ष प्रमाण- मो ेंजोदारो, डप्पा, भारतीय मिंहदरे,
राजम ल,राजस्तान के ककले, अजिंठा,एलोरो के मशल्प,
अशोक स्तिंभ, कोणाकक सुयकमिंहदर इत्याहद
4. वास्तुशास्र के अिंग
तनवास, मशल्प और थिरकमक
वास्तुशास्र - प्रािीन भारतीय मशल्पशास्रका
सातवा उपशास्र जजसमे ४ ववद्याए और ११
कलाए समाववष्ठ ै
5. • वास्तु शब्दका उगम वस इस सिंस्कृ त
धातुसे ुवा े.
• वास्तु शब्द का सरल अिक ै –घ, र ने का
हठकान, आसरा.
• मनुष्यप्राणी घर बनाता ै सिंरक्षणके मलये,कडी
घुप,तेज बाररश,ििंडसे,िोर और ह स्रपशु पक्षी
इनसे बिाब करनेके मलये .
6. वास्तु शास्र एक वैज्ञातनक शास्र ै जजसका
आधार ै समाजशास्र, वस्तुववज्ञान,
पयाकवरणशास्र , वामान शास्र इत्याहद.
वास्तु ज्योततष्य अवैज्ञातनक शास्र ै और
कालबाह्य शास्र ै
7. प्रािीन भारतमे इस ववषयपर ५०० से
अथधक ग्रिंिोंकी रिाना ुयी,इनमे सबसे
प्रािीन मानसार (ख्रि.पूवक. ५०० वषक) और
अवाकथिन मयमत (ख्रि.पश्िात. ५०० वषक)
माना जाता ै.
8. मत्स्य पुराणमे १८ मशल्पशास्रोपदेशकोंके नाम
बताये ै.वास्तववक रुपसे व भारतकी १८ ववमभन्न
वास्तु कलाके प्रणेते िे. जैसे उत्तर भारतमे
मानसार, मध्य भारतमे भृगु और दक्षक्षणमे मय
शैलीका ववकास ुवा.
9. म षी भृगुने वास्तुशास्रके अिंतगकत
४ ववद्याए बतायी ै.
१ वासोववद्या –कनात बनाना
२-कु टटीववद्या –झोपडी बनाना
३-मिंहदरववद्या -मकान बनाना
४-प्रासादववद्या- राजवाडे बनाना
10. वास्तुशास्रके अिंतगकत ११ कलाए बतायी
ै.
• िमकपटबिंधन- िमडे आहदसे कनात(टेंट) बनाना.
• मृद् कमक- अनुकु ल ममट्टी बनाना.
• िूणककमक- सफे दीका काम.
• वणककमक – रिंग बनना और लगाना
• दारुकमक- लकडीका ियन और बढाई काम
11. • मृद् साधनम्- आवश्यक ऐसी ममट्टी का सिंग्र करना
• तृणाच्छदन- घास पत्तेसे घरका छत बनाना
• थिराहदलेखनम्-थिर बनाना.
• प्रततमाकरण-लकडी,पथ्िर,धातु आहदकी मूततकया बनाना
• तलक्रीया- वास्तुकी नीव रखना
• मशखरकमक- मिंहदरोंके मशखर/गोपूर बनाना.
12. वास्तुके तीन अत्यावशक गुण
नैसथगकक आपदा- भूकिं प,बाढ तुफान अतत वषाक आहदसे
सिंरिंक्षण ो इस मलये गृ का स्वामी प्रािकना करते िे,
13. राजाकी िूनौती
दक्षक्षण भारतके एक राजाने सारे वास्तुशास्रज्ञोंको
िूनौती दी कक एक स स्र साल हटका र े ऐसा
मिंहदर बनाके हदखाये. एक स्िपतीने य िूनौती
स्वीकार करके एक मिंहदर बनाया और शीला
लेखमे य अक्षर खुदवाये,
अिाकत- इस वास्तुमे इट,िूना. लो ेका या लकडीका
उपयोग न ी ककया गया ै. इसमलये य शाश्वत ै.
14. वास्तुशास्रके ग्रिंिोका ववषयक्रम
कररब कररब सभी उपलब्ध ग्रिंिोका ववषयक्रम एक जैसा ी ै.
• मानक पररिय-लिंबाई,क्षेरफल, घनफल भार आहदके मानक.
उनके परस्पर सिंबिंध आहद.
• वास्तुयोग्य भूममका ियन, भूममकी पररक्षा आहद
• भूममपर िार हदशा तनजश्ित कर के उसके थिन् लगाना.
• वास्तु तनममकतीके तनयमोका अभ्यास (अथधकतम उिाई ,बाह्य
पररक्रमा के तनदेश,मलजल तनष्कासन, पानीका प्रबिंधन आहद).
30. ४ प्रासाद ववद्या
वास्तु की प्रततमा एक गढ्ढेमे , जो मुख्य स्तिंभ
के तनिे ो, उसमे रखनी िाह ये. प्रततमाके साि
८ प्रकारके रत्न धान्योंके ,बीज,बनौषधी,और
मसक्के ,र ने िाह ये. –सिंदभक मयमत अध्याय१८
31. उपपीठ की (प्लीिंि) आवश्यकाता
उपपीठ-वास्तुका सिंरक्षण (साप,बबच्छु आहदसे). वास्तुकी
शोभा या म त्व बढानेके मलये. आवश्यक ोता ै
32. लकडीका ियन
मकानके खिंभे (कॉलम) पुरुषवगक वृक्षकी लकडी
और तुलाए(बीम) स्रीवगक वृक्षकी लकडी से
बनाना िाह ये,ऐसे वृक्षोंका वणकन भी हदया ै
33. वास्तुतनमाणक साह त्यका वणकन
पथ्िर, ईट और लकडी य मुख्य सामान ै. इन
वस्तुओिंके मलये जो आवश्यक गुण ोने िाह ये
इसका वणकन मयमतमे हदया ै
35. ववभाजक हदवाल
ववभाजक हदवाल ईट,लकडी बािंस आहदसे बनाते िे
उनके नाम इस प्रकारसे;
जालक-जालीनुमा –बािंससे बनी ुवी.
फलक- लकडीके तख्तों से बनी ुवी.
ऐष्टक –ईटोसे बनी ुवी.
36. ईटोंकी सिंधीकमक
हदवाल बनाते समय ईटोंके जोड
एक रेखामे न आये इसमलये
ववमशष्ठ जोड(बॉ िंड्स)का प्रयोग
करते ै, उनमेसे कु छ ै,
मल्ललील, ब्रम् राज, वेणुपवक,
पुगपवक, देवसिंधी, दिंडक इत्यादी.
42. प्रािीन भारतीय धरो र
वास्तुओिंके शाश्वत आयुके र स्य
युनेस्को इस जागततक सिंस्िाने दूतनयाके १२५
वास्तुओिंको जागततक धरो र वास्तु घोवषत
ककया ै,उनमेसे कु ल १६ भारतमे जस्ित ै.
कु छ वास्तुओिंकी आयु जार सालसे अथधक ै
43. शाश्वत वास्तुके दीघाकयुके ३ र स्य
सवकश्रेष्ठ भूममका ियन
सवकश्रेष्ठ वास्तु सामुग्रीका ियन
सेकडो सालसे प्रामाख्रणत वास्तु तनमाकण
पध्दती
44. १ सवकतोत्तम जमीन
सभी वास्तु ग्रिंिोंमे उपयुक्त जमीन का
ियन कै से करना िाह ये इसका वणकन कीया
ै,उस काल अनेक तर की जमीन उपलब्ध
िी.
45. 13 De.2020 45
वास्तु उपयुक्त जमीन का ियन
भूतानामाहदभूत्त्वादधारत्वाज्जगजत्स्िते: ।
पूवं भूममिं पररक्षेत साधनिं तदनिंतरि ॥
भृगुसिंह ता अ.४
पे ले भूमम की परीक्षा करे उसके बाद
वास्तुका वविार करे
46. भूममपरीक्षा
ब ुतािंश भारतीय पुराणोंमे भूममपरीक्षा या
देशतनणकय इस मशषकक का एक स्विंतर अध्याय
हदया ै. इनका सार ै ’कक प्रिम भूममकी
परीक्षा करे बादमे वास्तुका तनयोजन करे'
47. वास्तु तनमाकणके मलये अयोग्य भूमम
• जो स्मशानके पास ो,
• जो खोकली या दरारवाली ो,
• जजस जमीन पर बािंबीया ो,
• या जमीन अस्िी,कोयला के श आहदसे युक्त ो.
48. मयमत सिंह तामे भूमम परीक्षाके शिंकु परीक्षाका
वणकन आता जो आधुतनक शास्र जैसा ी ै. इस
परीक्षामे एक काष्ठ शिंकू ववमशष्ठ वजनके तोडेसे
१० बार ठोका जाता िा.जमीनमे व शिंकू जजतना
कम घुसेगा उतनी जमीनकी भार स न करनेकी
क्षमता अथधक ऐसा तनत्कषक तनकालते िे.
49. नीवकी ग राई
वास्तुकी उिाईके अनुसार, नीवकी ग राई देड से
सात ममटरतक ो. नीव पथ्िरपर या
जलस्ररपर (वॉटर टेबल) रखे.
51. वास्तु तनममकती का सामानका ियन करते समय उसका
वगक ,वय, मलिंग, अवस्िा, सामथ्यक इन पािंि बातोका
वविार करना िाह ये.
भृगु के अनुसार सवक वस्तु, पथ्िर, वृक्ष, इटे, िूना
आहदके ३ मलिंग (जेंडर) ोते ै, जैसे पुरुष, स्री, और
नपिंसक. य सिंकल्पना ककसी भी वास्तुशास्र मे
बतायी न ी गयी ै.
52. वणकमलिंगवयोवस्िा: परीक्ष ि बलाबलिं ।
यिायोग्यिं यिाशजक्त सिंस्कारािंकारयेत्सुधी ॥
भृगुसिंह ता अ.४
वस्तूकी पररक्षा: वणक (रिंग) , गिंध , रस ,
आकार (आकृ ती), हदक् (ढलान) ,शब्द (आवाज)
व स्पशक इनके व्दारा करनी िाह ये
53. वास्तु की नीव ककस सत रखे इसके मलये
सिंह ता मे मलखा ै- जलस्िरपर ,पथ्िरपर
या मजबुत भूमीपर.
मभत्तेमूकलिं स्िापनीयिं जलािंते।
पाषाणे वा सुजस्िरायािं धररत्रयािं ॥
54. पिथ्िरों का ियन
प्रािीन ग्रिंिों मे पथ्िरोंका वणक,मलिंग आयुष्यपर आधाररत
वगीकरण हदया ै.
• खिंभों के मलये-पुरुषवगक
• तुला के मलये(बीम)-स्रीवगक
बाल्य और वृध्द अवस्िाके पथ्िर तनरुपयोगी. पथ्िरोंकी
,सुक्ष्म दरार, छेद दाग -धब्बे आहद की पररक्षा ववधीयाभी
बतायी ै.
55. पथ्िोंसे बने मशल्प, मूततकया इनके सिंरक्षण ेतु वज्रलेप
िढाया जाता िा.िार प्रकारके वज्रलेपका वणकन
मयमत और वरा सिंह तामे हदया ै
56. इजष्टका
• ऋग्वेदमे इटोंका वणकन आता ै.
• मो ेंजो-दारो, डप्पा मे उत्कृ ष्ट श्रेणीकी इटे पायी गयी.
• प्रािीन कालमे कु छ खास सेंहद्रय घटक (घास,धानके
तछलके ,शैवाल, जानवरोंके बाल,धातुके कण आहद वस्तुए
ममट्टीमे ममलाये जाती िी.
57. पेडोंकी लकडी (काष्ठ)
• मयमतमे मकानके उपयोग मे आनेवाले ८४
वृक्षोंके नाम बताये ै.
• अनेक वास्तुग्रिंिोंमे लकडी के ियनके तनयम
बताये ै.
• लकडी का सिंरक्षण का वणकन आता ै.
• ववमभन्न सिंथधकमक (जॉइिंट्स) के प्रकारभी बताये
ै.
58. सुधा और सुधाकमक
(लाइम अॅंड लाइम मॉटकर)
प्रािेन कालमे सुधाकमक य एक ी ववकल्प
उपलब्ध िा.िूना िूनेके पथ्िर उष्ण करके
बनता िा. िूनेके ममश्रणमे, के ले,गुड,अिंडेका
सफे द भाग,कु छ वनौषधीया ममलायी जाती िी.
य ममश्रण िूनेकी िक्कीव्दारा वपसा जाता िा.
59. रिंग और रिंगद्रव्य (कलसक अॅंड वपगमेंट्स)
• रिंगकी आवश्यकता-सौंदयक के मलये और धुप और
पानीसे बिाव के मलये. रिंग प्राकृ ततक घटकोंसे
बनते िे.
• पािंि मुख्य रिंग- सफे द. लाल, पीला, रा और काला
बनाते िे. उनके ममश्रणसे सोला रिंग बनते िे.
ववष्णुधमोत्तर पुराण इस ववषयका ववश्वका सबसे
पे ला और प्रमाण ग्रिंि ै
60. • रिंगद्रव्य खतनज (गेरु, मसिंदूर, िूना,रिंथगन
पथ्िर आहद) से बनते िे.
• र रिंगके ९पुततका (ब्रश) ोती िी.
• िौडा,मध्यम और छोटा.
• सख्त (सुवरके बाल),मध्यम(बछडेके
कानके बाल), और मुदु (थगल रीकी
पुछके बाल) से बनाते िे.
61. वनस्पतीजन्य रिंग
• वपला- ल्दू पेडकी लकडी, पलाशके फु ल
• नीला-नीलीके फु ल
• लाल- ल्दी और िूना ममलाकर, बनाते िे.
• काला रिंग काजलसे बनाते िे.
अजिंठाके थिर ऐसे ी रिंगोंसे बनाये गये, और स स्र
साल बादभी कफके पडे न ी
62. वास्तु तनममकतीकी ववशेष पध्दती
• प्रािीन कालमे ववमशष्ठ कामके मलये
कोई समय सीमा न िी.
• गुणवत्ताके मलये कोई हढलाइ न ी िी .
• ममट्टी ३० हदनतक रोज रोंदी जाती
िी.नई पकी ुई ईटे उपयोगमे लानेके
पे ले ६० हदन पानीमे रखी जाती िी.
63. भूमम का दृढीकरण
• नीवके तनिेकी भूमम दृढ ोनेसे वास्तु
हदघाकयु ोती िी.
• दृढीकरण के मलये पथ्िरके तुकडे,िूना
रेत आहदका ममश्रण धुम्मससे ठोका
जाता िा.
• धुम्मसका आकार ािीके पाव समान
ोता िा.
64. ववमभन्न स्तरोंका समतल
तनयिंरण
(लेव् ल किं ट्रोल )
इसके मलये ववशेष उपकरणोंकी स ायता मलयी
जाती िी. हदवाले काटकोनमे ो और उध्वकता
स ी ो इसकी सावधानी मलयी जाती िी.इस
कामके मलये अलग अलग सूर(टुल्स) ोते िे.
65. भूममपर पडने वाले वास्तुभार का सिंतुलन
प्रािीन वास्तु रिनामे इस बातका वविार ोता िा
की वास्तुभार का सिंतुलन बना र े.इसके मलये
स्तिंभोंकी रिना ोती िी. व्दार या ख्रखडकीकी
िौडाईके अनुसार अधकवतुकलाकर कमान ोती िी.
67. १- के वल ईटोंसे बना मसरपूर (छवत्तसगढ) का
लक्ष्मण मिंहदर
तनममकतीकाल सन ५९५ से ६२५
68. • िीनी यारी ह्यु-एन-सिंग के सातवी शताब्दी के
याराग्रिंिमे उसका उल्लेख आता ै
• १८७२ मे लॉडक कतनिंग ॅमने खोजा ुआ य
मिंहदर रायपूर श रसे ७८ कक.मम.दूरीपर
म ानदीके तटके तनकट ै.
• एक ववशाल िबुतरेपर य मिंहदर खडा ै.
• ईटे तराश कर अनेक प्रेक्षख्रणय मशल्प
बनाये ै
69. • मसरपूर (श्रीपूर) की रानी वासोटाने य मिंहदर
अपने हदविंगत पती के स्मृतीमे बनवाया िा.
• अनेक प्राकृ ततक आपदा,जैसे भूकिं प, म ानदीकी
बाढ के बादभी य मिंहदर बबना क्षतत खडा ै.
• इसका नाम ववश्वके सािंस्कृ ततक धरो रमे
समाववष्ट ै.
70. २ - नामशकका कालाराम शैल मिंहदर
नामशक य ा तीन मभन्न वास्तु शैलीके प्रततक
तीन मिंहदर जस्ित ै.
71. • कश्यप सिंह ता अनुसार बना- नारोशिंकर मिंहदर
• भृगु सिंह ता अनुसार बना- सुिंदरनारायण मिंहदर
• मय सिंह ता अनुसार बना-
72. काळाराम मिंहदर-
• २४ ममटर उिंिा य मिंहदर सन१७९० मे
काले पथ्िर तराश कर बनाया गया.
• गुणवत्ता तनयिंरणके मलये र पथ्िर उबलते
तेलमे रखकर परखा गया िा.
• मिंहदरमे ९६ पथ्िरके स्तिंभ (खिंबे) ै.
• २००० मजदूरोंने १२ सालमे य मिंहदर बनाया
जजसकी लागत िी २३ लाख .
73. ३ -ममट्टी िूनेसे बना अनुठा फशक
के रळमे सन१६०१ मे बनाया गया पद्मनाभपूर
राजम ालका फशक िूना, अिंडेकी सफे दी, तनरा,जले
ुवे नररयलके कवि और कु छ वनौषधीसे बनाया
गया िा.पर फशककी आयने जैसी िमक आजभी
कायम ै
74. प्रािेन भारतीय वास्तुओिंके श्वावत
आयुष्यके र स्य
१-उपयुक्त भूमम का ियन
२-सवोत्तम वास्तु तनमाकण सामुग्री
३- अनुभव आधाररत तनमाकण प्रक्रीया