5. के दारनाथ ससं
जन्म 1934 को उत्तरप्रदेश के बसलया जजला के
चकया गााँव में ुआ
• वे तीसरा सप्तक के कषव ैं।
• भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन् ें विष 2013 का 49
वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हदया गया।
• प्रमुख रचनाएाँ: अभी बबल्कु ल अभी,ज़मीन पक
र ी ै,बाघ,ताना-बाना।
6. समस्या
आज मानव के दूषित करतूतों के कारण प्रकृ नत का षवनाश ो
र ा ै।
षवनासशत प्रकृ नत के दारुण चचत्र सारसों के माध्य्म से ककया
गया ै।
“बरसों बीते बादलों को इधर बरसते ुए” य ााँ पानी का अभाव
दशाषया ै।
7. आशय
कषवता में सारसों को प्रकृ नत का ी ह स्सा
बनाकर चचबत्रत ककया ै।
आज मानव की दुजरिया के कारण प्रकृ नत का ी
न ीं बजल्क य ााँ र ने वाले अन्य जीषवयों का भी
नाश ो र ा ै।
सारस पक्षियां श र की पररिमा पानी की तलाश
मैं कर र े ैं।
8. एक बुहिया ने इन सारस पक्षियों को देखा और पानी
से भरा कटोरा लाकर रख हदया। मगर ना सारस पिी
बुहिया को देख ना ी जल भरा कटोरा।
सारस पिीयों को तो पता तक न ीं था कक नीचे र ते
ै लोग,जो उन् ें सारस क ते ैं।
दूर देश से पानी की तलाश कर र े थे ये सारसें।
9. जाते-जाते सारस पिीयों ने श र की ओर एक बार मुड़ककर देखा।
उन सारस पक्षियों के मन में जरूर श र के प्रनत गृणा र ी ोगी।
मनुरय ससफष अपनी जरूरतों को पूरा करने के सलए अन्य जीषवयों
को भूल जाते ैं।
इसी का फलस्वरूप प्रकृ नत और उसमें आचित जीवजंतु नरट ो
र ी ै।