महानगर ‘लण्ड़न’
युनाइटेड़ क िं ग्ड़म ी राजधानी – स िंहावलो न
लण्ड़न ो महा (तथा श्रेष्ठ) नगर हना मेरे ख्याल े अत्युक्तत
/ अततशयोक्तत नह िं है | उ ा ौन्दयय स्वच्छता े ारण ई
गुना बढ़ गया है | हााँ, धूम्रपान रनेवाल क्स्ियों और पुरुषों ी
खा ी िंख्या े ारण इधर-उधर स गरेट े टु ड़े बबखरे नज़र
आते हैं, स वा उन े और ोई चडा ह िं देखने ो नह िं
समलता | ड़ ों े दोनों ओर लगे वृक्ष, इमारतों े आगे और
वारजों (छज्जों) में लगे, हवा ी छेड़खानी े हहल रहे रिंग-बबरिंगे
फू लों े पौधे, ड़ ी बक्त्तयों े खिंभों े दोनों ओर लट ते
हुए गमलों में खखले खूब ूरत, मनमोह ुमन-क्जन्हें देख लगता
है क रिंगों े छ िंटे पवन िंग होल खेल रहे हैं – अनाया हमें
आ र्षयत रते हैं
यूरोपीय देशों मे ‘अगस्त’ ग्रीष्माव ाश ा मह ना होता है |
इ वषय (2016) मैं भी अपने बेटे े ाथ लण्ड़न ा रौन
देखने गई थी | अब ी बार हम लोग वेस््समन्स्टर े
इन्वने टेरे में ठहरे थे |
मैंने देखा क हर इमारत में भूतल े
नीचे आवा स्थान बना हुआ है | ार
इमारतें खूब बड़ी-लम्बी ए - ी लगती हैं
| हमारे ामने ी ओर था मलेसशयायी
“बरजाया” होटल तथा आवा स्थान -
क्ज में लगे ई पौधे अपने फू लों े
लोगों ो अपनी ओर खीिंच रहे थे | मुझे
आश्चयय हुआ – (धन-दौलत ी तो चोर
होती ह है) – पौधों ी भी चोर होती है
तयोंक वहााँ सलखा हुआ था ‘For your
notice, please don’t steal our
plants’
रास्ते में लोग ु छ –न- ु छ खाते हुए
चलते हैं, भोजनालयों े बाहर पटररयों
पर बबछ ु स ययों पर बैठे खाते हुए
नज़र आते हैं, इ सलए नीचे बबखरे
अन्न-गण चुगने हर ह िं बूतर चलते
हदखाई देते हैं जै े उन े दोस्त हों,
भी- भी तो पीछे पड़ जाते हैं |
लोग चाव े उन्हें खखलाते भी हैं , बच्चों े बारे में तो हने
ी ज़रूरत ह नह िं, अपनी हथेल में खाद्य ामग्री ले अन्हें
खखलाते हैं | हमारे आवा े द् समनट बाएाँ चल र ड़
पार रने पर वनस्पतत ाम्राज्य े क्न् ङ्टन गाड़यन’ हमारा
आह्वान रता है जो बहुत ह र्वस्िुत 270 ए ड़ अथायत् 111
हेतटर भूभाग ो मेटे हुए है| तरह- तरह े ऊाँ चे-घने पेड़,
ज़मीन पर हमारे पााँवों ो हलाती नरम घा , उनपर बबखरे
रिंगीन ु ुम, शाम े ात या ाढ़े ात बजे त वृक्षों ी
हररयाल े सलपट धूप जो मानो उ े
बबछु ड़ ूरज- िंग अस्त न होना चाहती
हो – हमें क ी अन्य खूब ूरत लो में
पहुाँचा देते हैं | थोड़ी-थोड़ी दूर पर ऐ े
ई बगीचे देखने ो समलते हैं |
बीच-बीच में ड़ ें बनी हैं, ाइक ल
चलाने े सलए भी अलग पथ हैं, बच्चों
ो बहलाने े ई ाधन हैं, आइ -क्रीम चप्पे-चप्पे पर
बब ता है | दौड़ते-लुढ़ ते-फााँदते पालतू ु त्ते चमत् ार
प्रदसशयत रते हैं |
पक्षक्षयों ा लानाद- मानो मधुर िंगीत हो – ानों ो दावत
देता है, गगलहररयााँ पेड़ों े उतरते, कफर रय े ऊपर चढ़ते
हदखाई देते हैं क्जन्हें प्यार े लोग म ई, चने आहद दाने
खखलाते हैं | हमारे भारत ी गगलहररयों ी पीठ पर तीन
अाँगुसलयों ी रेखाएाँ हैं, पर उन ी पीठ पर वे नह िं हैं तयोंक
उन्हें श्री रामचन्रजी े ृ पा पाि बनने ा भाग्य नह िं समला
है |
दक्षक्षणी इिंग्लैंड़ े हो र बहनेवाल बहुत बड़ी नद है थेम् जो
215 मील लम्बी ( 346 क .मी.) और ई शहरों तथा
बक्स्तयों ी शोभा बढ़ाती है | पूरे युनाइटेड़ क ङ्ग्ड़म ी वह
दू र लम्बी नद है | इ े इतना मुख्यत्व हदया गया है क –
वहााँ ा र्वश्वर्वद्यालय थेम् वैल यूतनवस यट , थेम् वॉटर,
थेम् टेसलर्वज़न प्रोड़ेतशन, थेम् & हड़् न पक्ललसशिंग
म्पनी – इत्याहद, इत्याहद – इ े नाम े ाथ जुड़े हैं
क्ज ी लम्बी ूची बन ती है | मैंने अपनी पावन नद
गिंगा ी तुलना इ े ी – हम लोग हते हैं गिंगाजी ो
माता, उ ी पूजा रते हैं, आरती रते हैं, भजन गाते हैं,
पर उ ी स्वच्छता पर ततन भी ध्यान नह िं देते हैं | पर
थेम् बहुत ह ाफ़ है | जॉन बन् य ने इ ा यों उल्लेख
क या है – ‘तरल बिहटश इततहा ’ | थेम् ा इततहा 58
समक्ल्लयन वषय पुराना है | इ ी हानी बहुत लम्बी ह नह िं
पुरानी भी है| िंक्षेप में हा जाए तो यह नाम लतीन े
तमस , िंस् ृ त े तम ् (अिंधेरा) े आगे चल र तघ ते
र्पटते थेम् बन गया है |
थेम् पर बना है लण्ड़न आइ
(London Eye), यह नाम बबल् ु ल
ाथय है, इ में े पूरा लण्ड़न देखा
जा ता है | 135 मी. ऊाँ चा तथा
120 मी. व्या वाला इ में ााँच े
वृहद् र्पिंजड़े हैं जो धीमी गतत े
घूमते चत र लगाते हैं | उन ी िंख्या है 32 |
वहााँ े बबग-बेन हदखाई देता है जो
दशयनीय है |
उ े पा ए और आश्चयय हमारे
सलए बना है- खम्भे- े-आ ार पर
गोल-गोल घूमते भोजनालय – मरे हैं
जो नीचे े देखने पर बहुत छोटे पक्षी
– े लगते हैं | थोड़ी दूर चलने पर ड़ े दोनों ओर िं द
भवन क्स्थत हदखाई देते हैं | मिंबियों तथा ािं दों ी गाड़ड़यााँ
चलती हैं क्ज े लोगों े आवागमन में ोई बाधा नह िं पड़ती
|
बक िं गाम पैल (राजमहल) क्ज में
महारानी एसलज़बेत रहती हैं – बहुत
बड़ा है | क ी ो अन्दर जाने ी
अनुमतत नह िं है | बाहर दशय ों ी
खा ी भीड़ रहती है |
म्यूक्ज़यम ऑफ़ लण्डन ( िंग्रहालय) दशयनीय स्थान है जो
लण्ड़न े बारे में जान ार देता है – आयरलैण्ड़, स् ाटलैण्ड़
और इिंग्लैण्ड़ यूरोप े ाथ समला हुआ था | भी ऐ ा
जलजला आया क मुन्दर ने उन्हें अलग र हदया | इतना
ह नह िं उ भूभाग पर रोम ा शा न था | रोमवालों ने
लण्ड़तनयों ी जीवन शैल , तौर-तर े आहद बदल हदए | खैर
हमें इन बातों ी गहराई में जाना नह िं है | वहााँ भी लोगों ी
खा ी भीड़ रहती है | भी ऐ ा मय रहा जब उन े राज्य
में ूयायस्त होता ह न था | इ सलए हर देश े लाई गई
चीज़ों ी प्रदशयनी वहााँ ी खास यत है | देखने में ई घिंटों
ा मय लगता है |
टावर ऑफ लण्ड़न देखना
ारे भारतीयों े सलए
आवश्य है | धूसमल रोशनी
में आाँखों ो चौंगधयाते
जवाहरात देख हमारा स र
च रा जाता है | क तने
प्र ार े मु ु ट ... ! उन े
बीच ए में जड़ा हमारा
ोहहनूर भी हमें देख हमार लाचार और स्वाथय े पररणाम
पर व्यिंग्य र रहा है | इतना ह नह िं अने स्वणय-पाि हैं –
ु छ बहुत ह बड़े और ु छ छोटे | यहााँ त क लतछयााँ भी
ोने ी हैं | मैं ोचने पर मज़बूर हुई क क तने देशों ा
‘ वयस्व’ उनमें माया हुआ है | ाश ! “अब पछताते होत
तया जब गचड़डया चुग गई खेत |”
उ धरा पर भी हम भारतीयों ने अपना भक्तत-भाव ा गचह्न
अिंक त क या है मिंहदरों े रूप में | दो स्वामी नारायण मिंहदर
हैं ए नी ड़न में और दू रा िेण्टफ्ह ल्ड़ में | दो सशव-पुि
ाततय े य (मुरुगन) े मिंहदर – ईस्ट हेम तथा लण्डन े चचय
स्र ट - द्क्षक्षण भारत े लोगों ने बनवा रखे हैं और तनयसमत
रूप े पूजन- अचयन ा प्रबिंध भी र रखा है क्जनमें सशवजी,
पावयतीजी, चक्ण्ड़ े श्वर, नवग्रह आहद स्थार्पत हैं | ए सशव-
मिंहदर है – लेर्वशेम में - क्ज में दाक्षक्षणात्य प्धततत े पूजन-
अचयन क या जाता है | पूजन े बाद श्र्धतालुओिं ो भोजन भी
परो ा जाता है |
इस् ान मिंहदर – मेयफ़े र - जहााँ
ओड़डशी शैल – जगन्नाथ मिंहदर – ी
ृ ष्णजी, बलरामजी और ुभरा ी
मूततययााँ तथा (व्रज जै ी) राधा- ृ ष्ण
ी जी मूततययााँ हैं | अिंग्रेज़ तथा
अन्य पाश्चात्य देश े स्िी-पुरुष स्व ुगध खो र रताल
बजाते हुए “हरे राम, हरे ृ ष्ण, ृ ष्ण- ृ ष्ण हरे-हरे” ा
भजन गाते हैं – ाथ में ढ़ोल , हारमोतनयम आहद वाद्य,
ुर-ताल समलाते हैं तब श्र्धतालु तथा श्रोता भक्तत-लो में
पहुाँच जाते है | वे ब शु्धत शा ाहार भोजन रते हैं | मिंहदर
े नीचे उन ा भोजनालय है क्ज ा भोजन अत्यन्त
स्वाहदष्ट है शायद ृ ष्णार्पयत होने े ारण |
वै े तो बहुत ार बातें हैं -- आप लोगों ो ऊब ा अनुभव
न हो, इ सलए पूणय-र्वराम लगा देती हूाँ अब | पाठ ों े
तनवेदन है क मेरा धन्यवाद स्वी ारें !