Chapter 1 part -2 philosophy of the consitution XI Political Science
1
अध्याय -1 (भाग -2)
संविधान का राजनीविक दर्शन
संविधान का राजनीविक दर्शन
संविधान के दर्शन से अवभप्राय संविधान की बुवनयादी अिधारणाओं से हैं जैसे अवधकार
नागररकिा लोकिन्त्र आवद । संविधान में वनवहि आदर्श जैसे समानिा स्विन्त्रिा हमें संविधान
के दर्शन करिािे हैं । हमारा संविधान इस बाि पर ज़ोर देिा हैं की उसके दर्शन पर र्ांविपूणश ि
लोकिान्त्रन्त्रक िरीके से अमल वकया जाए िथा उन मूल्ों को वजन पर नीवियां बनी हैं , इन नैविक
बुवनयादी अिधारणाओं पर चल कर उद्देश्य प्राप्त करें ।
संविधान का मुख्य सार – संविधान की प्रस्तािना
प्रस्तािना हमारे संविधान की आत्मा हैं । जिाहर लाल नेहरू के अनुसार – भारिीय संविधान का
वनमाशण परंपरागि सामावजक ऊं च नीच के बंधनों को िोड़ने और स्विन्त्रिा , समानिा िथा न्याय
के नए युग में प्रिेर् के वलए हुआ । यह कमजोर लोगों को उनका िावजब हक सामुदावयक रूप में
हावसल करने की िाकि देिा हैं ।
संविधान की कु छ विर्ेषिाओं का िणशन
स्विंत्रिा
संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 में स्विन्त्रिा से संबंवधि प्रािधान इसके अंिगशि भारि के सभी
नागररकों को विचार – विमर्श अवभव्यन्त्रि , सभा ि सम्मेलन करने की स्विंत्रिा हैं ।
सामावजक न्याय
भारि के सभी नागररकों को सामावजक आवथशक और राजनीविक न्याय प्राप्त हो । उदाहरण – अनु
सूवचि जावि और अपनी इच्छानुसार र्ैविक संस्थाओं को स्थावपि करने का भी अवधकार हैं ।
धमश –वनरपेििा
धमशवनरपेििा का अथश हैं स्वधमश समभाि अथाशि सभी धमों को समान मानना । हमारा संविधान
धमश के आधार पर भेद नहीं करिा । राज्य धमश में और धमश राज्य में हस्तिेप नहीं करिा परंिु धमश
के नाम पर वकसी व्यन्त्रि के आत्म सम्मान को ठे स पहुंचाने पर राज्य हस्तिेप करिा हैं । राज्य
वकसी धावमशक वर्िा संस्था को आवथशक सहायिा भी दे सकिा हैं ।
सािशभौवमक ियस्क मिावधकार
2
देर् के सभी ियस्क नागररकों (18 िषश ) को अपने प्रविवनवधयों की चयन प्रविया में भाग लेने का
अवधकार हैं । यह अवधकार वबना जावि वलंग भेदभाि के सभी नागररकों को प्राप्त हैं ।
संघिाद
भारिीय संविधान में र्न्त्रियों का विकें द्रीकरण हैं । इसमें दो सरकारों की बाि की गई हैं ।
एक कें द्रीय सरकार – सम्पूणश राष्ट्र के वलए
दू सरी राज्य सरकार – प्रत्येक राज्य के वलए अपनी सरकार
दो सरकारों के बाद भी अवधक र्न्त्रियां कें द्र सरकार के पास हैं । राज्यों की वजम्मेदाररयां अवधक
हैं ।
प्रविया गि उपलन्त्रि
संविधान का विश्वास राजनीविक विचार विमर्श से हैं । संविधान सभा असहमवि को भी
सकारात्मक रूप से देखिी हैं । संविधान सभा वकसी भी महत्वपूणश मुद्दे पर फै सला बहुमि से
नहीं, सबकी अनुमवि से लेना चाहिी थी । िे समझौिों को महत्व देिे थे । संविधान सभा वजन
बािों पर अविग रही िही हमारे संविधान को विर्ेष बनािी हैं ।
संविधान की आलोचना के वबन्दु
बहुि लंबा िथा विस्तृि हैं इसमें 448 अनुच्छेद, 25 भाग 12 अनु सूवचयााँ हैं । पविम देर्ों के
संविधानों से इसके प्रािधान वलए गए हैं । संविधान के वनमाशण में सभी समूहों के प्रविवनवध
उपन्त्रस्थि नहीं थे ।
संविधान में वदखने िाली मुख्य सीमाएं
राष्ट्रीय एकता
की धारणा
बहुत कें द्रीकृ त
हैं ।