3. जीवन मैं आने के बाद
इन्सान बचपन की
अवस्था से कौमार्य
अवस्था की तरफ
बढता है तो उसकी
उजाय एवं मन ववचलित
होने िगते है |उसका
ददमाग अनेकों प्रश्न
करता है |वह समझ
मैं न आने के कारण
असंतुलित व्र्व्हार एवं
कार्ों की तरफ बढता
है |
4. • हर एक वगय के प्राणी अपने
ही वगय मैं रहते हैं | ववलिन्न
प्रकार के पशु/पक्षी अपने
प्रकार के वगय मैं साफ साफ
ददखाई देते हैं | जैसे कक हाथी
का अिग समाज होता है,
दहरण का अिग वगय होता है,
चचड़िर्ों का अिग, तोते का
अिग इत्र्ादद |
• इसी के अनुसार मनुष्र् का
एक अिग समाज है/वगय है
,अथायत मनुष्र् एक सामाजजक
प्राणी है |
5. • ववलिन्न पशु/पक्षी की
आवश्र्कता सीलमत होती है
अतः प्रकर्तय उन आवश्र्कताओं
की पूर्तय करती है | परन्तु
मनुष्र् एक प्रगर्त शीि प्राणी है
अतः उसे स्वर्ं की
आवश्र्कताओं को पूरा करने
हेतु ववलिन्न प्रकार के कार्ों को
प्रारंि करना होता है | जैसे
खेती करना, ववलिन्न प्रकार की
वस्तुओं का अववष्कार करना,
कारखाने चिाना, बाजार
स्थावपत कर उसका प्रबंध करना
इत्र्ादद|
6. • आइर्े इस ववषर् पर मंथन करें
कक मुझे जीवन मैं क्र्ा करना
है ?
• उपरोक्त वाक्र् में "मुझे" शब्द
स्वं के स्विाव के बारे में अध्र्न
की ओर र्नदेलशत करता है | जैसे
कक "मुझे फोटोग्राफी का काम
पसंद है" ,"मुझे कं प्र्ूटर का
सॉफ्टवेर्र का काम पसंद है"
,"मुझे घूमने का काम पसंद है"
इत्र्ादद ,| हमें वही काम करना
चादहए जो हमारे स्विाव की पसंद
है| अन्र्था हमें जजन्दगी मैं
प्रसन्नता कम और मुजश्किें ज्र्ादा
लमिती हैं |
7. • जब हम कमय का चर्न करके
उसको करने की बात करते हैं,
तो र्नम्न लिखखत मुख्र् बातों
की तरफ ध्र्ान देना होगा :
• (प) िक्ष्र्
• (फ) प्रर्ास
• (ब) सहर्ोग
• (ि) र्नर्म
• (म) पैसा
•
• जब तक िक्ष्र् और र्नर्म
र्नदहत नहीं होते हैं तब तक
प्रर्ास सहर्ोग और पैसा व्र्थय
जाता है |
8. • उपरोक्त ददशाओं की ओर फ़क़ीर
कबीर ने िी ददशा दी है :
• लक्ष्य के बारे मैं कहा गया है :
• बिा हुआ तो क्र्ा हुआ जैसे पेि
खजूर पंथी को छार्ा नहीं फि िागे
अर्त दूर
• प्रयास के बारे में कहा गया है :
• करत करत अभ्र्ास ते जिमर्त
होए सुजान,चकिी आवत जात के
सि पर पित र्नसान
9. • सहयोग के बारे मैं कहा गया है ;
• र्नदक र्नअरे राखखर्े आंगन कु टी
छबाए, बबन पानी साबुन बबना र्नमयि
करे सुहाए
• नियम के बारे में कहा गया है ;
• काि कररन सो आज कर, आज करे
सो अब पि में प्रिर् होएगी बहुरर
करेगो कब
• पैसे के बारे में कहा गया है ;
• माखी गुड में लिपटी रहे पंख रह्र्ो
लिपटार्े, हाथ मिे सर धुनें िािच
बुरी बिाए
10. • ववषर् का सार है मनुष्र्
एक सामाजजक प्राणी है ओर
उसे हर वही बात करना
चादहए जजससे स्वर्ं
की,पररवार की,समाज की
प्रगर्त हो क्र्ोंकक सब एक
दूसरे पर र्नदहत होते हैं|