2. 2
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दो शब्द…
कविता मन के भािों को व्यक्त करने का सिोत्तम तरीका है. यह
छॊदबद्ध या छॊदमुक्त हो सकता है. मेरी शुरूआती कविताओॊ का
यह सॊग्रह उन भारतिाससयों को समवपित है , जो आज भी रोटी
और कपडा जैसी जरूरतों से जूझ रहे हैं. इस सॊकऱन में आप
उनका ददि महसूस भी करेंगे. कई बार स्ि उत्पन्न या
पररस्स्थसतजन्य पीड़ा देखकर यह समझ ही नहीॊ आता है कक उन
भािों को व्यक्त कै से करें , पर मैंने प्रस्तुत कविताओॊ में अपनी
तरफ से भरपूर कोसशश की है. इस सॊकऱन में यकद कोई त्रुकट
हो तो पहऱा काव्य-सॊकऱन होने के कारण मैं पहऱे ही ऺमा
माॊग ऱेता हूॉ, बाकक आप सभी के स्नेह से समऱी ऊजाि मेरे भािों
को और भी प्रखर ढॊग से व्यक्त करेगी, ऐसी कामना करता हूॉ.
जय हहन्द !!
3. 3
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हिषय - सूची
ट्रेन क ट इम … (Page 5)
द दी तुम रहती क्यों दूर … (Page 7)
स थ स थ हमें चऱन होग .... (Page 9)
ध्य नचॊद को ‘भ रत-रत्न’... (Page 11)
सड़क ह दस ... (Page 13)
मन को अऩने क्य समझ ऊॉ ... (Page 15)
मच्छरों से ‘सह नुभूतत’... (Page 17)
देश-गौरव की ख ततर खुतशय ॉ ऱुट उॉग ... (Page 21)
न बुर कोई है हर ‘सदी’ के तऱए... (Page 23)
एक ब र जग गौरव है ... (Page 25)
ददश भ्रम... (Page 27)
प्र णों से प्रप्रय गणतॊत्र... (Page 30)
ददल्ऱी चुन व ऩर तमतथऱेश की कु ण्डतऱय ... (Page 32)
4. 4
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तमतथऱेश की कु छ अन्य कु ण्डतऱय ... (Page 35)
जऱस्रोत बन य मरूभूतम में... (Page 38)
सभ्यत क ज्ञ न ... (Page 40)
ऱे ऩुनजजन्म आओ ऩुण्य त्म ... (Page 42)
के श तुम्हें खुऱ रखन होग … (Page 46)
क्रोध, प्रेम, घृण , दय , म नवत की तमस ऱ है मेट्रो... (Page 61)
‘न्यू ईयर’ क ‘रतजग ’... (Page 65)
अटऱ प्रबह री ब जऩेयी के जन्मददवस ऩर... (Page 67)
स्कू ऱ ज ते एक बच्चे की भ वन ... (Page 68)
…खून से ऱथऩथ है आज कु र न!... (Page 69)
र ष्ट्र-दकॊ कर ... (Page 71)
भय... (Page 72)
न म जजसक है ‘जट यु’... (Page 73)
हऱ ढूॊढ ऱो ‘कु टुॊब’ भ रतीय आस्थ में... (Page 75)
'अनतभज्ञ' के अऱग-अऱग मूड में 'शेर'... (Page 77)
5. 5
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ट्रेन का टाइम
बेटा, आज तो रुक जा
अिी तो आया है, अब जा रहा है
िााँ बोलीं
मिछली बार िी तू न रुका था
तब िेरा िन खूब दुखा था
उन्हें लगा, बुरा न लग जाए
बोलीं-
तुझे िी मकतना काि है,
एक िल ना आराि है
और मिर बहु िी शहर िें अके ली है
िोता बदिाश, िोती अलबेली है
अरे सुन-
उसको िी तो गााँि ले आ
उसकी जड़ों से उसको मिला
उसके दादा उसकी फ़ोटो सहलाते हैं
मिलने को उससे रोज तड़ि जाते हैं
6. 6
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कहते हैं-
छोटी बहु िी घर नहीं आयी
िायके से ही िािसी की मटकट कटिाई
देख न िाया छोटे िोते को
कहते हुए, आाँखें डबडबाई
थोड़े अिरुद ले जा,
मनम्बू के आचार बहू बना देगी
ये सरसों का शुद्ध तेल है,
िोते की िामलश िह करेगी
सूरज ढल रहा था
िैं िााँ को सुन रहा था,
जी मकया सुनता जाऊं
लेमकन-
ट्रेन का टाइि हो रहा था।
ट्रेन का टाइि हो रहा था।
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
7. 7
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दादी तुम रहती क्यों दूर
दादी – दादी िुझे िढ़ाओ,
ढेरों मिर तुि बात बताओ
खेलो मदन और रात िेरे संग
कराँ गा तुिको जी िर तंग
िम्िी सुबह जगाती है,
मिर िुझको नहलाती है,
रोता हूाँ िैं जी िर लेमकन
दया उसे नहीं आती है.
छोटा हूाँ िैं घर िें सबसे
बड़ी बड़ी मकताबें हैं
करना चाहूाँ बात िैं सबसे
ढेरों िास िें बातें हैं
िम्िी, काकी करतीं काि,
खाना िही बनाती हैं
8. 8
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कं प्यूटर िर करतीं मखट-मिट
टीिी मदखा, सुलाती हैं
काका, िािा के आने िर
िास िें उनके जाता हूाँ
कहते हैं िह थके बहुत हैं
िन िसोस रह जाता हूाँ
दादी तुि रहती क्यों दूर
सिझ नहीं यह िाता हूाँ
गिी की छु ट्टी िें ही क्यों
गााँि तुम्हारे आता हूाँ.
िहां थे आयुष और अनुकल्ि
मदल्ली िें नहीं कोई मिकल्ि
साथ रहो या साथ ले चलो
दादी िानो यह संकल्ि.
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
9. 9
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साथ साथ हमें चलना होगा
चलना होगा,
साथ साथ हिें चलना होगा
स्ि-अहि को छलना होगा
रठों के िााँि को धरना होगा
ऊाँ च-नीच, िेद-िाि,
जात-िात को तजना होगा
जगना होगा
सुबह सुबह हिें जगना होगा
सूरज का स्िागत करना होगा
िन की, तन की, जीिन की
प्रकृ मत सिझना होगा
अंमधयारा होने से िहले
अिनों के साथ िें होना होगा
जीिन की अंधी दौड़ है क्या
िरख उसे सजगना होगा
10. 10
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बूढी आाँखों के अनुिि को
हिें िास बैठ कर लेना होगा
मिकृ त होने से बचना होगा
‘रहे िास िें तेरे धिम सदा’
इस हेतु ‘ससंगत’ करना होगा.
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(िुत्र ‘आयाांश’ के तीसरे जन्िमदिस की सुबह िर आशीष स्िरुि दो िंमियााँ)
11. 11
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ध्यानचंद को ‘भारत-रत्न’
आत्िगौरि तब जगाया उस शख्स ने,
मिन्दगी जब िौत के िहलू िें थी.
कहने को कहती रहे कु छ िी ये दुमनया,
हर जीत उसकी ‘स्िगम’ से कु छ कि न थी
दुमनया का तानाशाह उसका ‘िै न’ था
िहचान उसकी थी यही िह ‘सैन्य’ था
जो ले ‘छड़ी’ िैदान िें िह आता था,
उल्टी तरि का हर कोई छक जाता था
रुकता न था, थकता न था िााँ िारती का लाल िह
िैदान िें बन जाता था प्रमतिक्ष का मिर काल िह
‘जज्बे’ का सौदा करने की कोमशश हुई
िेजर मडगा नहीं, िह न था छु ई-िुई
अनदेखा कर सरकारों ने बड़ी िूल की
13. 13
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सड़क हादसा
सड़क के मकनारे
बैठा िैं
देख रहा था बरसात की िु हारें
लोग िाग रहे थे
िानो िीग कर िछता रहे थे
रुकने का नाि नहीं था
शायद, जल्दी कोई काि िहीाँथा
…एक व्यमि तेजी से दौड़ा,
सड़क के उस िार जा रहा था
जल्दबाजी िें उसकी जेब से िेन मगरी
मगरी क्या, सड़क िर िरी!
गामड़यााँ दौड़ती रहीं,
िेन िमहयों से दबकर उछलती रही
िैं देखता रहा
बरसात का िजा जाता रहा
मकतना मनदमयी था िह िमथक
छोड़ गया बीच राह उसे
14. 14
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कु चल जाने के मलए, दबने के मलए
िरने के मलए
आह मनकली उस मनजीि के मलए
सोचता रहा, बस सोचता रहा…
सड़क हादसों िें जाने िाले के मलए।
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
15. 15
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मन को अपने क्या समझाऊँ
िह कु छ कहता, उससे िहले
मचल्ला उठी िेरी ईिानदारी
सही खुद को, गलत उसे बताऊाँ
िह कु छ िांगता, उससे िहले
खुसर-िु सर करने लगी सच्चाई
झूठ सब कहते, िैं क्यों शरिाऊाँ
जुल्ि हो जाय, उससे िहले
मसकु ड़ गयी िेरी तरुणाई
िट्टे िें टांग क्यों अड़ाऊाँ
रुक ित, और डाल किीने
रंगीन िानी िी तन ने ली अंगड़ाई
खुद को अब क्या कहलाऊं
देखते ही उसे, िहले िहल
16. 16
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िन नाचा, िचली तन्हाई
इस सोच िर क्यों न डूब िर जाऊं
बगुलों की देख चहल िहल
िेहनत की टांग लड़खड़ाई
िन को अिने क्या सिझाऊाँ
दुमनया के दोहरेिन को देख
िानिता है शरिाई
देख, सोच यही घबराऊाँ
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
17. 17
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मच्छरों से ‘सहानुभूहत’
डर लगता है
िुझे ही नहीं
सबको
क्योंमक, ऐसा कोई बचा नहीं
‘िच्छर’ ने मजसको डंसा नहीं
जी हााँ!
एक ऐसा प्राणी
जो किी िेदिाि नहीं करता
अिीर-गरीब, युिा-बुजुगम, ज्ञानी-िूखम िर
डंक का एक सिान प्रहार करता है
शाि होते ही इनसे बचने की जुगत िें
लग जाते हैं सब
दरिाजे, मखड़मकयााँ बंद
क्िायल, महट, इंसेक्ट मकलर, ओडोिॉस
और जाने क्या-क्या उिाय
करते हैं सब
िई! िैं तो िच्छरदानी लगाता हूाँ
18. 18
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कु छ हद तक ही सही
सुकू न की नींद फ़रिाता हूाँ
िर घुस जाते हैं उसिें िी
झुण्ड िें,
जैसे िागल िीड़ खुद ही सजा देने
सड़कों िर आती हो
जैसे, हिारे जेलों िें हत्याएं हो जाती हैं
िैसे, िच्छरदानी िी बचाि िें सक्षि नहीं है
घुस ही जाते हैं दो-चार, या दस-बारह
रात के िररयल िच्छर
हो जाते हैं सुबह तक ‘िुटल्ले’
नींद खुलते ही क्रोध से आाँखें
हो जाती हैं ‘लाल’
उनका िध करता हूाँ रोज
लेमकन, आज सुबह उन िच्छरों से
‘सहानुिूमत’ हो आयी,
सोचा, इस ब्रह्माण्ड के ‘साइमक्लक’ प्रोसेस िें
उनका कु छ तो योगदान होगा
19. 19
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जीि-मिज्ञान िढ़ी ित्नी ने बताया
िच्छरों के अण्डों को ‘िछमलयााँ’ खाती हैं
इंमजमनयर िाई ने बताया
िच्छरों के ऊिर तिाि उद्योगिमत, डॉक्टर और
मनगि के किमचारी रोजगार िाते हैं
िर िन कु छ और ढूंढ रहा था
िच्छरों के इतने योगदान िर से संतुष्ट नहीं हो रहा था
तिी ित्नी मचल्लाई
िह देमखये, िैर िर िच्छर बैठा है
िाररये,
हि ‘डर’ गए
डेंगू, मचकन गुमनया और ढेरों ख्याल
िानस-िटल िर तैर गए
हााँ! यही है इस ब्रह्माण्ड के साइमक्लक प्रोसेस िें
िच्छरों का ‘असली योगदान’
‘डर’
यूं तो मकसी से िी डरता नहीं है ‘इंसान’
जी हााँ! िगिान से िी नहीं
21. 21
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देश-गौरि की खाहतर खुहशयाँ लुटाउँगा
मलखना तो बहुत चाहता हूाँ,
िर आज नहीं!
आज िारत की जीत की दुआ कराँ गा
फ़ररयाद कराँ गा
यूं तो रहता हूाँ दूर हर ‘टोटके ’ से
िर आज नहीं!
आज रात िर टूटते तारे को देखूाँगा
आाँखें बंद करके बुद-बुदाऊाँ गा
नािसंद करता हूाँ इन मिज्ञािनी मक्रके टरों को
िर आज नहीं!
आज इन्हें असली ‘सैमनक’ सोचूंगा
बल्ले से बारद मनकलते देखूाँगा
भ्रष्ट होते खेल से निरत करने लगा था
िर आज नहीं!
22. 22
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आज आईिीएल, सट्टेबाजी िूल जाऊं गा
इनकी जीत िर इतराऊं गा
यूं तस्िीरों को ‘लड् डू’ मखलाता नहीं िैं
िर आज नहीं!
देश-गौरि की खामतर खुमशयााँ लुटाउाँगा
नारे लगाउाँगा
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(िल्डम-कि 2015 सेिीिाइनल से िहले)
23. 23
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ना बुरा कोई है हर ‘सदी’ के हलए
होली आयी इस बार कु छ खास
मदया मिलन का अनूठा ‘अहसास’
मझझकते थे मजन्हें गले लगाने िें
मदखे उनके िही कोिल ‘जज्बात’
िो हिसे जाने कब से रठे बैठे थे
अकड़ िें हि िी तनकर ‘ऐंठे’ थे
गुजरे कै से ‘मबखरे’ िो िल न िूछो
डाली से टूटे ित्ते हों, अहसास िैसे थे
बढ़ने लगी हद से जब उलझनें
नीर िरकर आाँखें लगी तड़िने
छोड़ कर तब बढे हाथ ‘यादें’ बुरीं
‘होली’ ने दूर कर दी िह अड़चनें
24. 24
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सच कहूाँ, तो त्यौहार हैं इसमलए
िास आएं, करें दूर मशकिे मगले
‘अनमिज्ञ’ कहें साफ़ िन से यही
ना बुरा कोई है हर ‘सदी’ के मलए
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
25. 25
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एक बार जगा गौरि है
एक बार जगा गौरि है
चहुंओर मदखा सौरि है
सिझो िमहिा िारत की
मिर आज खड़ा ‘कौरि’ है
मिक्रिामदत्य के ‘तेज’ तुम्हीं
हे िरत! न्याय के िुंज तुम्हीं
राणा, मशिा, आिाद, िगत
हो राष्ट्ट्र ध्येय के ‘अंग’ तुम्हीं
‘संत्रास’ झेलती िारत िााँ
कातर िुकारती िरती ‘आह’
आया कहााँ से बोलो ये ‘िेद’
है नष्ट हो रहा सकल ‘स्नेह’
बढ़ता है धन िर मिकल िन
26. 26
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ना मदख रहा कोई ‘प्रसन्न’
मिछड़े बने िररिार – गााँि
सड़ जाए िर मिलता न ‘अन्न’
कई छोर िर बड़े काि हैं
आिात िें ना ‘आराि’ है
एक आस अब बस तुि ही हो
संकल्ि लो तुम्हें ‘ध्यान’ है
है नीमत िी तकनीक िी
है कु शल िाि प्रिाि िी
मनिमय सदा से हो तुम्हीं
रक्षाथम ‘राष्ट्ट्र’ खड़े हो अिी
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
27. 27
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हदशा भ्रम
होता है अक्सर
जी हााँ!
बस िें, ट्रेन िें
िैदल िी
मदशा भ्रि
सही रास्ते िर होने के बािजूद
लगता है उल्टी मदशा के
यात्री हैं हि
िढ़ने जाता हूाँ
साइन बोड्मस, लेमकन
िटक जाता है िन
देख चिकीले मिज्ञािन
रुकता हूाँ तब
और िूछता हूाँ
साथ खड़े सहयामत्रयों से
उनकी बातें सुनकर
28. 28
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आाँखों के नेह स्िर
देखता हूाँ मस्थर िन से
इतने िर िी जब
िन नहीं िानता
झटक देता हूाँ
मिचार, मिकार
और चल िड़ता हूाँ एक ओर
या तो लौट जाता हूाँ
थोड़ी दूरी से ही
या बढ़ते जाता हूाँ
यह सोचकर मक
मगरते िड़ते चलना
संिलना
ही तो जीिन है
चलते ही जाता हूाँ
और तब आि ही
30. 30
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प्राणों से हप्रय गणतंत्र
गणतंत्र देश की शान िें, िारत आये श्रीिान
स्िागत को तैयार इधर, थे िारत के प्रधान
थे िारत के प्रधान, चाय हाथों से मिलाई
बातों ही बातों िें, डील कई साइन कराई
उठ खड़ा हुआ उत्साह से, देश का लोकतंत्र
अंत्योदय तक िहुंचे, यही अब लक्ष्य गणतंत्र
देखी दुमनया ने अब, मिराट ताकत िारत की
राजनीमत, कू टनीमत िें, आाँखें झुकीं शत्रु की
आाँखें झुकीं शत्रु की, कु छ िी सिझ न िाया
राग अलािा बेसूरा, खूब शोर िचाया
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, अिी मिर िचे न शेखी
गुटबाजी से रहें दूर, चलें नहीं देखा देखी
रश्िें थीं ख़ुशी की कई, सजी िहमफ़ल अनोखी
सूट िे अंमकत नाि, छिा नरेंदर िोदी
छिा नरेंदर िोदी, िचा नहीं िायी जनता
31. 31
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लेमकन आि-ओ-ख़ास, जनता की कौन है सुनता
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, झूठी हैं तब तक कसिें
रोटी किड़े की बात मबन, अधूरी हर एक रश्िें
ऊाँ चे हों िहल िले, और हों लम्बी कई कार
िर ध्यान रहे इतना, ना िनिे और बेगार
ना िनिे और बेगार, रोजी-रोजगार हो सबको
न्याय व्यिस्था चुस्त हो, दंड दे तुरत िािी को
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, देश का गााँि न रठे
शहर के जैसे ही, उनके सिने हों ऊाँ चे
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
32. 32
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हदल्ली चुनाि पर हमहथलेश की कु ण्डहलया
आया चुनाि नजदीक है, बन लोकतंत्र की लाज
देखो, सुनो िरखो जरा, यह है िररी काज।
यह है िररी काज, नाच नेता की देखो।
छल किट दंश प्रिंच, िि िर तुि िी सिझो।
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, दूर हो िोह ि िाया
शांत बुमद्ध से िोट दो, मदन तुम्हारा आया।
साठ साल तक राज िें, ना उिरा दूजा और |
कांग्रेस की दुगममत िें, यही िूल बात करो गौर ||
यही िूल बात करो गौर, योग्यता को न दबाओ |
मिट जाओगे जड़ से, इमतहास को ना दुहराओ ||
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, राहुल को दो यह िाठ |
गृहस्थ बनें शादी करें , उिर आयी अब साठ ||
जीत-जीत अमििान ने, ला िटका मिर िैदान |
मिज्ञािन जारी करे, ियामदा का नहीं ध्यान ||
33. 33
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ियामदा का नहीं ध्यान, िोदी बेदी सब उतरे |
कायमकत्ताम िूल उिेमक्षत, नेता सब मबखरे मबखरे ||
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, बदल दो अिनी रीत |
सम्िान अिने को दो, मिलेगी तब मिर जीत ||
आि आि कहते रहे, अब बन गए िह ख़ास |
चार आदिी टीि ने, जनता को मकया मनराश ||
जनता को मकया मनराश, जोर से गाल बजािें |
िूल सोच यही इनकी, सिी कु छ जल्दी िािें ||
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, मदल्ली को बहुत है काि |
ना करो तंग हिें रोज, आदिी हि हैं आि ||
दािा ध्िस्त मिकास का, िे ल हुआ सब ज्ञान |
अहं छोड़ के ‘श्रेष्ठ’ का, जन िन को दे सम्िान ||
जन िन को दे सम्िान, काि कर के मदखलाओ |
जामत- धिम के नाि िर, अब ना बहकाओ ||
35. 35
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तमतथऱेश की कु छ अन्य कु ण्डतऱय
िारत देश की आन, है अिना राजस्थान।
लोक लाज िनुहार और, राजिुताना शान।
राजिुताना शान, ऊं ट िर चढ़कर देखो।
देश प्रेि धिामथम दान, इमतहास से सीखो।
‘अनमिज्ञ’ कहत हरषाय, प्यार हैं िह बरसाित।
कमठन िररमस्थमत िें, दुगम िजबूत है िारत।
(राजस्थान यात्रा के दौरान रमचत)
राजनीमत की दुमनया से, खबर बड़ी है यार |
दोस्त बनें दुश्िन यहााँ, ररश्ते जोड़ें सामधकार ||
ररश्ते जोड़ें सामधकार, देख सोचे यह जनता |
हिें लड़ायें रोज और, कु मटल चाल है चलता ||
‘सैिई’ िें मदग्गज जुटे, मनजी ररश्ते की नीमत |
धारा, मिचार सब ताक िर, यही तो है राजनीमत ||
(ऱ ऱू की बेटी और मुऱ यम के ऩोते के ररश्ते ऩर रतचत)
36. 36
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प्यार बढ़ाओ खूब तुि, बस इतना रहे ध्यान |
रहे सुरमक्षत िान और, िााँ बाि का सम्िान ||
िााँ बाि का सम्िान, नहीं िटकाि हो तुि िें |
देश प्रेि, कत्तमव्य बोध, बड़े िाि हो िन िें |
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, सुरमक्षत तब अमधकार |
लक्ष्य मिले श्रि साध से, संस्कार से मिले प्यार ||
(वैऱेंट इन डे ऩर प्रेमी-जोड़ों के तऱए रतचत)
िारत देश के शूरिीर, हामसल करते हैं जीत |
िैदान खेल का चाहे हो, या युद्धिूमि िनिीत ||
या युद्धिूमि िनिीत, मदए बमलदान हैं हरदि |
होती ‘मिराट’ हर जीत, नहीं क्षण िर का गि ||
कहते ‘अनमिज्ञ’ सही, है िास िें हर िह ताकत |
घर लाओ मिर ‘िल्डम कि’, चाहता है यही िारत ||
(दक्रके ट प्रवश्व-कऩ 2015 में भ रतीय टीम हेतु)
37. 37
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रोज मििोचन हो रहे, िुस्तक िेला द्वार |
नाि याद िी ना रहे, िमहिा अिरम्िार ||
िमहिा अिरम्िार, मलखीं सैकड़ों मकताबें |
सिझ आए न जाय, िें कते लम्बी बातें ||
‘अनमिज्ञ’ कहे सकु चाय, िोटो िें िले हो िोज |
िाठक का सिय अिोल, छलो तुि उसे न रोज ||
(अगम्भीर ऩुस्तकों के रोज हो रहे प्रवमोचन ऩर)
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
38. 38
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जलस्रोत बनाया मरूभूहम में
प्रथि िूज्य गणिमत मिनायक
उनका नाि ही शुि िलदायक
मिघ्नों का िल िें करते नाश
होते ििों के सदा सहायक
था राष्ट्ट्र हिारा तब िहान
गुरुकु ल िें मिलता था जो ज्ञान
स्िामििान की थी जब संस्कृ मत
नारी का होता था सम्िान
मिकृ मत नहीं थी प्रकृ मत िें
सुंदरता थी हर आकृ मत िें
िन, हृदय हिारा स्िच्छ बने
िै ले सुगंध देि संस्कृ मत िें
मिद्यािीठ के प्रांगण की हिा
गुरुजनों की सीख है और दुआ
39. 39
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हैं िंमदर, कोिल िुष्ट्ि यहीं
िानि-चररत्र की यही दिा
हैं किमिीर अमििान शून्य
सींचा है नींि और मलया है िुण्य
जलस्रोत बनाया िरिूमि िें
अमधष्ठाता योगदान अिूल्य
हे देि मिनायक! अमिमत तन-िन
मिद्या हिें दो, हि हैं मििन्न
इस संस्थान से लें गुण अिार
बन राष्ट्ट्र-िि सच करें सिन
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(मिनायक मिद्यािीठ, िीलिाड़ा, राजस्थान के शैक्षमणक योगदान के प्रमत सिमिमत चंद
िंमियााँ)
40. 40
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सभ्यता का ज्ञान
कु त्ते लड़ रहे थे
रात को
शहर के कु त्ते
दूर से दौड़ कर आये
िे गमलयों के कु त्ते
और हो गए गुत्थिगुत्था
गुट बनाकर
कु छ दुबले थे
कु छ िोटे
कु छ िररष्ठ थे
तो कु छ छोटे
कु छ िौंक कर
कु छ मिमियाकर
नोच रहे थे एक दुसरे को
मखमसया कर, गुराम कर
41. 41
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िुझे लगा इनिें से कोई
लगाएगा कॉल
बुलाएगा िीसीआर
तब सुलझेगा बिाल
िर ऐसा कु छ न हुआ
उनका झिेला आि सलट गया
रात के अाँधेरे िें शोर मसिट गया
अिनी गमलयों िें
लौटने लगे सब
िैंने सोचा तब
ये कु त्ते सभ्य नहीं बने अिी
जैसे हैं इंसान
आमखर कु त्ते की टेढ़ी दूि हैं
उन्हें क्यों होगा िला
सभ्यता का ज्ञान ।।
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
42. 42
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ले पुनजजन्म आओ पुण्यात्मा
बातें करते हैं लोग यहााँ
जीते-िरते रहे लोग यहााँ
मनज प्राण मदया िरिारथ िें
है धिमिीर कोई और कहााँ
गुरुओंका िान रखा मजसने
इस महन्द की शान रखी मजसने
मनज िोह के छोह को त्याग मदया
स्िामििान का ज्ञान मदया मजसने
बालक के िुख िर तेि अिार
दुश्िन िी बैठे थे तैयार
िर गुरु-मिता की सीख थी संग
और तेज बड़ी उसकी तलिार
सिय के साथ बढ़ा बालक
ली मिद्या और बना िालक
43. 43
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सहृदय, प्रेि, त्याग बमलदान
थे गुण उसिें ये मिद्यिान
तब देश िें था बड़ा अत्याचार
िािी ने िचाई थी हाहाकार
कहता था बदल लो ईिान अगर
जीने का मिलेगा तब अमधकार
इससे बढ़कर िी थे कई दुुःख
थे लोग िी धिम से बड़े मििुख
थी नशाखोरी, दुखी था सिाज
गुरु-ज्ञान से राह मदखी सम्िुख
बढ़ने लगा हद से जो दुराचार
सृमष्ट िें मनकट थी प्रलय साकार
मचंमतत सिाज िहुंचा गुरुधाि
िुख से मनकला मिर त्रामह-िाि
44. 44
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ज्ञानिान, व्यिहार कु शल
देख कष्ट जनों के िह थे मिकल
बमलदान की ठानी उन ऋमष ने
देख अत्याचार हुए मिह्वल
बालक उनका िी िीर ही था
देख धिम दशा िो अधीर िी था
कहा, राष्ट्ट्र को देखो मितृिेरे
तब आाँख िें सबके नीर ही था.
मिधिी को गढ़ िें चुनौती मदया
मदया ‘शीश’ ि धिम की रक्षा मकया
जगे लोग तिी, बने िीर सिी
बमलदान के अथम को साध मलया
हो रहा है धिम का आज अनादर
आते हो याद मिर राष्ट्ट्र को सादर
46. 46
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के श तुम्हें खुला रखना होगा
ठसाठस िरी हुई िेट्रो िें
लोग खड़े थे
सीट िर बैठी लड़मकयां
बातें करती हुई मखलमखला रही थीं
एक बुजुगम दंिमत्त था सािने,
थका था
खड़ा था इस उम्िीद िें
मक िढ़ी-मलखी लड़मकयों िें से कोई कहेगी उठकर
अंकल – आंटी बैठ जाओ िेरी सीट िर
लेमकन िित्ि नहीं जागा
आह! नारीत्ि इतना अिागा
मकसी िुरुष ने िौके को लिक मलया
नारी के महस्से का आशीिामद
सोचा, दोष मकसका है
इसका अगला दृश्य िी सुमनए
िेट्रो से लोग उतरते जा रहे थे
47. 47
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खाली होती सीटों िर थी ‘मगद्ध-दृमष्ट’
हााँ! चालाक िुरुष ही थे िह सारे
एक युिा नारी, कं धे िर लैिटॉि लटकाये
देख रही थी उन सिी को कातर नजरों से
मक कोई उस िर दया मदखाए
कहे उससे, िेरी सीट िर बैठ जाओ
कु छ िूखी नजरें अिनी सीट देने को थीं आतुर
िह नौजिान, सशि नारी बैठ िी गयी
बैठ गया िेरा िन िी
याद आ गए उन आाँखों के दृश्य िी,
बस-ड्राइिर, कॉलेज का अिीर लड़का, आमिस का बॉस
जो करते हैं स्िामििान का नाश, लेमकन सहिमत से
प्रश्न यहााँ िी, दोष मकसका है!
घर िें टीिी चल रहा था
बच्चा कोने िें मबलख रहा
कमथत हाउस-िाइि दुखी थी
क्योंमक उसके िसंदीदा
48. 48
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टीिी एक्ट्रेस की आाँखों िें निी थी
दाई बच्चे को उसके सािने िुचकार रही थी
लेमकन िीछे दुत्कार रही थी
किी उसका दूध िी िी जाती थी
दो-चार थप्िड़ लगा कर उसको
बचिन से ही ‘घरेलु महंसा’ मसखाती थी
िमत के आते ही ‘हाउस-िाइि’ उससे मिड़ गयी
गााँि से उसकी सास आने िालीं थी,
उसे लेकर अड़ गयी
आमखर लड़-मिड़कर और बच्चे को अनाथ
जैसे मतरस्कृ त करके िह आधुमनक ‘िााँ’ सो गयी
प्रश्न रह गया िौन,
दोषी कौन!
िन छटिटा उठा
िजबूत नारी, स्िामििानी नारी जैसे
दािों को झुठला उठा
क्या आज की नारी जो
49. 49
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िेरी िााँ है, बहन है, ित्नी है, सहकिी है
िैसी ही है जैसी तब थी, जब
औरतों को औरतों द्वारा ही सताया गया
िातृत्ि, सतीत्ि, बमलदान के नाि िर
उसके जीिन को जलाया गया
या शायद तब से िी बुरी हालत अब है
क्योंमक तब नारी थी तो सही
अिनी, दूसरों की नजर िें
कु छ ही सही, इज्जत की हक़दार िी थी
तिी तो रािण िी उससे डरा था,
दुयोधन, दुुःशासन की छाती का लहू
उसी की खामतर ही बहा था
अब तो िह िात्र एक मजस्ि है
‘प्रोडक्ट‘ िर है, िहंगे और सस्ते लेबल के साथ
मजसके साथ खुद उसको िी सहानुिूमत नहीं
स्त्रीत्ि की जरा िी अनुिूमत नहीं
उसके साथ हो कु छ िी, अब आि है
मनलमज्जता सरेआि है
50. 50
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िर दोष मकसका है!
यूं तो औरतों का िगीकरण िुझे सिझ नहीं आता
िर आधुमनकता का
‘िमकां ग -िीिेन’ शब्द से है गहरा नाता
कई बार तो िजबूरी है
आमथमक स्ितंत्रता िी जररी है
लेमकन नारीत्ि को ठु कराकर
अिने अमस्तत्ि को झुठलाकर
कहााँ की स्ितंत्रता, कै सा मिकास
एक चिकीली िाइल की तरह
बॉस के िीछे-िीछे, उसके हाथों िें
िड़े िहंगे मसगरेट या शैम्िेन की तरह
िह खुद िी जानती है अिनी उियोमगता
मिर िी उसे िाती है स्िच्छंदता
िररणाि से मनमिन्त
काश! िह देख िाती िात्र 10 साल बाद
उसकी झूठी िहचान कै से खोने िाली है
51. 51
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क्योंमक अिनी स्थायी िहचान नारी होने से
तो उसने कबका िुंह िोड़ मलया है
िर दोष मकसका है!
अिनी जड़ से हो मििुख कोई िेड़
कै से लेगा श्वास
कै से देगा िह िीठे िल
िह मनमित रि से िर जायेगा
या मिर ठूंठ बन मबन ित्तों के
खड़ा रहेगा मबयािान िें
होगा िह मनुःशब्द, मनजमन
ियािह शिशान
तुि क्यों ऐसा ही बनना चाहती हो
तुम्हारे आदशम क्या िही ‘िमकां ग िीिेन’ हैं
जो ररश्ते-नातों को खेल सिझती हैं
मलि-इन, शादी, तलाक िें ही उलझती रहती हैं
िैसों के जोर िर ड्रग, सेक्स, सत्ता का नशा है उन्हें
नाि नहीं लूंगा इनिें से मकसी का,
52. 52
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िर देखो यहीं हैं तुम्हारे आस-िास
हे नारी,
उन चंद िमहलाओंकी तरह िी देख लो
जो उतनी चिकती तो नहीं हैं,
िर िजबूत हैं
आधुमनक िी हैं
सजग हैं, जागरक, सहयोग, नेतृत्ि
की मिसाल हैं
उनका नाि जरर लूंगा
मकरण, कल्िना, इंमदरा, सुषिा
और तुम्हारी अिनी िााँ
तुम्हारी दादी िी शायद
िर िह आराि को हराि सिझती हैं,
किम को ही धिम कहती हैं
मदन-रात, सुबह-शाि एक करती हैं
तब दुमनया, और खुद की नजरों िें नेक बनी हैं
िैं जानता हूाँ मक यह बातें
नहीं हैं आसान इतनी िी यह राहें
53. 53
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िर राहें तो यहीं हैं
थोड़ी इधर, थोड़ी उधर
अथम-प्रधानता बढ़ गई है,
सिी जानते हैं
िर िूछता हूाँ मक यह अथम कब
प्रधान नहीं था
और कब नाररयां कि थीं िुरुषों से
धुंधले िड़ चुके ज्ञान को
इमतहास की मकताब िें मिगो लो
धिम, अथम, काि, िोक्ष
की िररिाषा को जोड़ लो
आज सिय जरर बदला है,
िर सिय के बदलाि को गीता ने िाना है
हिेशा बदला है
नहीं बदली है तो िह है प्रकृ मत
और तुम्हारे शरीर की बनािट िी
िााँ तुम्हें ही बनना है
54. 54
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इसे तुि िूलना चाह रही हो
और सच्चाई को टाल रही हो
अिने अंतिमन को टटोलो
और कहो हृदय से
क्रे च, डे-बोमडांग हैं क्या
उन छोटे नन्हों-िुन्नों के मलए
मिकृ मत या संस्कृ मत
ना! इसे िजबूरी न कहना
क्योंमक संयुि आकृ मत को
तोड़ा है तुिने िी
ठु कराया है मनष्ठु रता से
िह ररश्ते खलल थे
तुम्हारी आिादी िें शायद
िर अब क्या है
अब िााँ बनना िी है िही !
दोष मकसका है
इन बातों को
55. 55
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सामजश न कहना
िुरुष िानमसकता की
आहट न सुनना
यह िी न कहना मक
चचाम िुरुष िर हो यहााँ
यही तो िह चाहता है
मक कें द्र िह बने, इसमलए
शब्दों के िायाजाल से दूर हटकर
सोचो िरा
आज तो तुि मशमक्षत हो
तुम्हारे िास हर िो साधन है
जो है मकसी िुरुष के िास
इंटरनेट, एंड्राइड, िााँ-बाि का साथ
और उसी स्तर का मििेक
सिाज को िगैर ‘बुके ’ के
देखती हो, सिझती हो
घूिती हो, मिरती हो
िर तुम्हारे मिता से िूछो
56. 56
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क्या िह मनमिन्त होते हैं
सूयामस्त के बाद
लि-जेहाद, हॉनर-मकमलंग
िें हो जाते हैं िह बबामद
क्यों ??
अब तुि िी तो जिाब दो
न्यायाधीश तुि िी हो अब
थोड़ा और कष्ट उठाओ
उाँगमलयों को कं प्यूटर िर खड़काओ
गूगल से आंकड़े लो
देखो, दुमनया के सबसे बड़े उद्योग
आईटी िें तुि िुरुषों से आगे हो
लेमकन बस शुरआती स्तर िर ही,
मिर एक-दो सालों िें प्रयास छोड़ देती हो
घर िर बैठकर आिादी का रोना रोती हो
टीिी, मकट्टी िें गि िुलाती हो
लेमकन यह िूल जाती हो
मक काि घर से िी होते हैं इस आईटी िें
57. 57
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अिनी तिाि मजम्िेदाररयों के साथ
घरेलु मबिाररयों के साथ
घर िें तुम्हारे इंटरनेट, कम्प्यूटर सब है
दुमनया से जुड़ सकती हो,
अिनी प्रमतिा से लोहा ले सकती हो
आईटी के साथ, कं सल्टेंसी, लेखन
प्रशासन, राजनीमत को सिझ सकती हो
नए युग िें बच्चों के िालन िर
एक नया ररसचम कर
दुमनया को राह दे सकती हो
कु छ नहीं तो एक मकताब तो िढ़ ही सकती हो
लेमकन सच बताना खुद को
मिछले सालों िें एक िी गंिीर मकताब िढ़ी है
और मनकाला है उसका मनष्ट्कषम
उस लेखक से सहित या असहित हुई हो
साथ या मििरीत अिनी मिचारधारा
मिकमसत की है
यमद नहीं! तो छोड़ दो ढोंग
58. 58
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और नारी िर हो रहे अत्याचार
उसकी गुलािी िें
खुद का िी योगदान िान लो
मिर तुम्हें िता जरर चलेगा
दोष मकसका है.
द्रोिदी की बात िी कह दूाँ
बड़ा हुआ था अन्याय उसके संग
उसके अिनों ने ही उस को लुटाया
दांि लगाया
िर देखो उसकी बुमद्ध
सीखो
उसने अिने के श खुले रक्खे
िर नहीं की अिनों से बगाित
कायदन तो उसे अिने िााँचों को ही
दंड देना था
िही दोषी िहले थे, बाकी बाद िें
लेमकन यमद िह अिने िााँचों से ही बगाित करती
59. 59
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सिाज को अिराध िुि कै से करती
कौन बनता उसका हमथयार
िीष्ट्ि, द्रोण, कणम का व्यूह
िह मकस प्रकार नष्ट करती
यह सिाज िी कु छ ऐसा ही व्यूह है
दुयोधन, दुशासन का चक्रव्यूह है
उसे तोड़ने के मलए अिने मकले को िजबूत करो
देखो अिने आस-िास
तुम्हारा िररिार तुम्हारा सहयोगी है
शुिमचंतक है
तुम्हारी आिादी िें बाधक नहीं
तुम्हारा किच है
तुम्हारी सास, तुम्हारा देिर, तुम्हारी जेठानी,
देिरानी और तुम्हारे ससुर
तुम्हारे मदव्यास्त्र हैं
िर ध्यान रहे
मदव्यास्त्र-प्रयोग हेतु
िंत्र तुम्हें रटना होगा
60. 60
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ज्ञानाजमन करना होगा
असीि धैयम धरना होगा
और
द्रोिदी ही की िांमत
के श तुम्हें खुला रखना होगा
के श तुम्हें खुला रखना होगा.
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
61. 61
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क्रोध, प्रेि, घृणा, दया, िानिता की मिसाल है िेट्रो
बैठ गया ब्लू लाइन िेट्रो िर
सुबह-सुबह जाना था आगे
िहुंचे स्टेशन िर िागे-िागे
लम्बी लाइन लगी थी
सबको ही जल्दी थी
टोकन के मलए आगे मखसके
लाइन िें खड़े लोग िड़के
िजबूरी िें दस मिनट लगाया
मिर चेमकं ग के बाद एंट्री िाया
सोचा मलफ्ट िें घुस जाता हूाँ
मबना िेहनत प्लेटिॉिम िर चढ़ जाता हूाँ
मलफ्ट िें कु छ बुजुगम आये
िुझे दो-चार जुिले सुनाये
कहा, तुि तो हो अिी जिान
सीमढ़यों से जाओ और हिें न करो िरेशान
ओिरलोड थी मलफ्ट, िन िसोस उतर गया
62. 62
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सीमढ़यों से जाकर िीली लाइन िर अकड़ गया
बेमिसाल टेक्नोलॉजी और थी साफ़-सिाई
मदल्ली िें सबकी तरह िेट्रो िुझे िी िाई
ट्रेन आयी, िैंने िहले ही डब्बे िें छलांग लगाई
ये लेडीज डब्बा है, औरतें मचल्लाई
िैंने दरिाजे िर खड़े जोड़ों के बीच से राह बनाई
मिर धक्कि-धुक्की के बीच हो गया खड़ा
इधर उधर, महलते डु लते गाड़ी आगे बढ़ी
एक-एक स्टेशनों िर िीड़ और िी चढ़ी
बीच-बीच िें आती रही आटोिेमटक आिाज
लोग आते रहे, जाते रहे जैसे िंछी करें िरिाज
तिी िेरा िसम – िेरा िसम, कोई जोरों से मचल्लाया
मकसी जेबकतरे ने उसका बटुआ उड़ाया
कोई दांि चलते न देखकर उसने गुहार लगाई
िसम के िैसे रख लो, उसिें िड़े डॉक्युिेंट्स दे दो िाई
63. 63
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िर िह मबलमबलाता रहा लगातार
आस-िास के चेहरों को घूरता रहा बार – बार
लेमकन, िेट्रो अिनी रफ़्तार से चलती रही
एक के बाद दुसरे िड़ािों को िार करती रही
िैं िी अिने स्टेशन िर उतर गया
काि मनबटाते-मनबटाते शाि का िहर गुजर गया
लौटने की बारी थी
मिर िेट्रो की सिारी थी
ऑमिस से थके लौटते लोग
बात-बेबात िर मिड़ते लोग
िुंह की बदबू िै लाते लोग
सुख-दुुःख की बमतयाते लोग
कु छ कि िीड़ होने िर एक कोने िें नजर गई
खुलेआि दृश्य, इिरान हाशिी की याद तािा कर गई
एक दूसरी सीट िर प्रेमिका का थािे हाथ
64. 64
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िनुहार कर रहे प्रेिी के चेहरे िर थे कई िाि साथ-साथ
अगले स्टेशन की आई अनाउंसिेंट, िैं उतर गया
उतरते ही हाथ अिने िसम और िोबाइल की तरि गया
सब सलाित था! लाखों की तरह िंमजल िर लाइ िेट्रो
ऐसा लगा िानो हर सुख दुुःख की गिाह है िेट्रो
क्रोध, प्रेि, घृणा, दया, िानिता की मिसाल है िेट्रो
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
65. 65
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‘न्यू ईयर’ का ‘रतजगा’
सुबह-सुबह जब आज जगा था
सदी से सूरज िी डरा था
कल की रात न सोये हि सब
‘न्यू ईयर’ का रतजगा था
ठंडी िें खूब शोर िचाकर
बेसुरा गाना गा गाकर
‘बीजी’ थे सब िोन िें ऐसे
जैसे ‘एप्स’ हों ज्ञान का सागर
जाने कौन-कौन थे लोग
िास्ट- िू ड, मिज्जा का डोज
इंमग्लश, िंजाबी, िोजिुरी
‘िीके ’ मिल्ि के जैसा रोग
िुझे सिझ तो कु छ न आया
67. 67
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अटल हबहारी बाजपेयी के जन्महदिस पर
हे युगिुरुष! तुिको निन
सींचा है तुिने नि चिन
मदया तंत्र सच िें लोक को
जन जन के तुि आलोक हो
सद्भािना के किम िल
अनेकता िें िी सिल
सिरसता के प्रयत्न हो
तुि सच िें ‘िारत रत्न‘ हो
-हमहथलेश 'अनहभज्ञ', नई हदल्ली.
68. 68
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स्कू ल जाते एक बच्चे की भािना
ना डरें हैं, ना डरेंगे
तुि जो िी कर लो
आतंक से लड़ते रहेंगे
बंदूकें अिनी िूरी िर लो
ना सिझो हिको छोटी जान
ितन हिारा महन्दुस्तान
नािो मनशां मिटायेंगे
होने दो हिको तुि जिान
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(िेशािर िें स्कू ली बच्चों िर हिले के बाद)
69. 69
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…खून से लथपथ है आज कु रान!
ऐ मजहामदयों, दूर रहो हिसे
हि जानते हैं तुम्हें तबसे
जब िामकस्तान बना था
तब िी िह खून से सना था
रोते-मबलखते िासूिों िर
तुि सबने कहर ढाया था
धिम, शरीयत, जेहाद का नाि
सडकों िर कर मदया नीलाि
थे तो तुि िहले से बदनाि
अब तो बन बैठे शैतान
बच्चों को िेज कर कमब्रस्तान
अल्लाह देगा तुम्हें कौन सा इनाि
लेमकन दोष मसिम नहीं है तुम्हारा
दोषी हैं िो िी मजन्होंने बनाया आिारा
िारत की िीठ िर छू रा िारना मसखाया
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िर उस छू रे से िह खुद न बच िाया
अिेररका, चीन ने मदए तुम्हें हमथयार
िासूि कब्रों िर िाये उन्हें िानि अमधकार
उन सिी का मडगा होगा ईिान
जो खुद को कहते हैं िुसलिान
शिम उन्हें खुद िर आयी होगी
कायरता से 72 हूरें िी शरिाई होंगी
खून से लथिथ है आज कु रान
अब तो बन जाओ इंसान.
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(िेशािर िें स्कू ली बच्चों िर हिले के बाद)
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राष्ट्ट्र-हकं कर
राष्ट्ट्रिमि ले कर चला, मकं कर का अमियान
कायम हो रहा अनिरत, रखा सिी का िान
रखा सिी का िान, साधना कर मदखलाया
ग्यारह सालों से, संस्कृ मत-अलख जगाया
हि नन्हें-िुन्नों को, मिलती रहे यूं शमि
िाषा-जामत मििेद िुला, हि करें राष्ट्ट्रिमि.
सीख मदया हिको, डंटे रहना तुि हरदि
ना तजना िह राह, जहााँ हो सच का दि
जहााँ हो सच का दि, िला हो जन-जन का
श्रिेि जयते िन्त्र हो, िोह नहीं हो तन का
बड़े-बुजुगों की सुनें, सिझें िारत की रीत
‘राष्ट्ट्र-मकं कर’ िमत्रका से, मिले सिी को सीख.
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(-मिमथलेश की कु ण्डमलया)
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… नाम हजसका है ‘जटायु’
बूढा, मनुःशब्द घायल,
कु छ कर न िाने की बेबशी िें आहत सा
िर कट गए, िह मगर गया
उस घाि िर गाढ़ा रुमधर जि गया
क्षत-मिक्षत हो गए अंग
िड़ गए मशमथल प्रत्यंग
घुटने झुके , कं धे झुके
िर गिम से सीना औ िाथा तन गया
दुनीमत से िह ना डरा
सािर्थयम संग िह मिड़ गया
नारी की रक्षा करने को
िह प्राण अिने तज गया
िह किमयोगी, नीमत ज्ञानी
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धिम-रक्षक, स्िामििानी
बन शूर हो गया युग-युगों तक दीघामयु
िन िें बसाओ, नाि मजसका है ‘जटायु’
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(िहाराणा प्रताि के िंशज, ितमिान िहाराणा मशिदान मसंह जी को सिमिमत)
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हल ढूंढ लो ‘कु टुंब’ भारतीय आस्था में
कु छ तो हुआ होगा
जो ‘संकल्ि’ टूट गया
कु छ तो छु टा होगा
जो ‘स्नेह’ लुट गया
मितृउसके नािचीन गीतकार हैं,
मिर िी उसके ये िला संस्कार हैं
रह गयी किी कहााँ ये िी सोचो तुि जरा
सूखने िर साख के ‘जड़’ को तुि देखो जरा
कर लो मिर चाहे ‘इस और उस’ की ‘लाख’ बातें,
लेमकन बताना हल्के हुए क्यों ररश्ते-नाते.
आमखर िला ये सोच आयी है कहााँ से,
संघषम मबन सब िागने लगे इस जहााँ से
आमखर िढ़ाई आ रही मकस काि िें,
बन ‘भ्रष्ट’ िो िं स जाए जब जंजाल िें
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हााँ! कहता हूाँ मक दोष है व्यिस्था िें
हल ढूंढ लो ‘कु टुंब’ िारतीय आस्था िें
-तमतथऱेश 'अनतभज्ञ', नई ददल्ऱी.
(एक िशहूर गीतकार के बेटे द्वारा आत्िहत्या की खबर िर)
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'अनहभज्ञ' के अलग-अलग मूड में 'शेर'
अच्छा नहीं लगता तुम्हारा उदास चेहरा
‘दिा’ नहीं ली या ‘दुआ’ िें किी रह गयी
अिनी ‘अनमिज्ञता’ तो जगजामहर है
उन्हें ढूाँमढये जो हर तरह से ‘िामहर’ हैं
खीर का स्िाद फ़ीका हो गया ‘बरबस’ ही
चौराहे से देखती छोटी आाँखें जब याद आईं
िूछ मलया होता बुला कर एक बार उनसे
सजा िुकरम र करता तो अफ़सोस न होता
लड़ाई बुरी नहीं होती हिेशा, िेरे हिराह
िर मबना िजह लड़ना सबसे बड़ा गुनाह
मिल गयी हो ‘राह’ गर तुझे अंमधयारे िें
िकड़ हाथ और ले चल िुझे ‘उमजयारे’ िें
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बहुत आसां हैं िुझे बद्तिीज कहना,
िरा लबों से मनकले अलफ़ाि सुन लो
शहर िें तुिसे ऊाँ ची कई अदालतें हैं,
और दरख्िास्त मलखने की सिझ भी है.
सही है मक हिारे बाल सफ़े द नहीं हुए
िर हिें ‘इश्क़’ करना तो ना मसखाओ
तेरे ‘गुनाह’ का तुझे इल्ि तो होगा,
तिाशा सारी ‘दुमनया’ ने देखा है.
तुम्हारा ‘दोस्त’ तो िैं आज बन जाऊं
िर बुरा सोचने िें ‘किअक्ल’ हूाँ िरा
-हमहथलेश 'अनहभज्ञ', नई हदल्ली.