3. हमें प ांचो ज्ञ नेन्द्रियों से जो ज्ञ न न्द्मलत है उसमे से ८०%
ज्ञ न आँखों से होत है | आँखों से जो अच्छे और बुरे दृश्य हम
देखते है उससे मन अश ांत और अन्द्थिर होत है | मन को श ांत
और न्द्थिर करने के न्द्लए नजर न्द्थिर होनी आवश्यक है | नजर
न्द्थिर करने के न्द्लए त्र टक न्द्िय अत्यांत उपयुक्त है | उससे
प्रत्य ह रसहज स ध्य होकर ध्य न की पूवव तैय री अच्छी तरह
से होती है |
4. योग श स्त्र में न न्द्ियों के न्द्लए ६ शुन्द्ि न्द्िय न्द्द है | उनमें से त्र टक
यह एक शुन्द्िन्द्िय है | अपने शरीर की ७२००० योन्द्गक न न्द्ियों में
से ग ांध री और हन्द्थतन्द्जव्ह यह दो प्रमुख न न्द्िय ँ आँखों में है |
त्र टक द्व र नेत्र शुन्द्ि होती है स ि स ि यह न न्द्िय ँ भी शुि होती
है और क यवदक्ष बनती है |
5. त्राटक की व्याख्या
• अट त् त्र यते ईन्द्त त्र टकां ।
अिव : भ्रमण करने व ले मन की रक्ष करन य ने त्र टक
• न्द्नरीक्षेन्द्रनश्चलदृश सूक्ष्मलक्ष्यां सम न्द्हत: ।
अश्रुसांप तपयवरतम् आच यैस्त्र टकां थमृतम् ।। ह.प्र.।। २.३१
अिव : न्द्नश्चल नजर से स मने रखे लक्ष तरफ आँखों से अश्रु सांप दन होने
तक देखते रहन उसे आच यव त्र टक कहते है |
6. त्राटक की व्याख्या
• मोचनां नेत्र-रोग ण ां तरद दीन ां कप टकम् |
यत्नतस्त्र टकां गोप्यां यि ह टकपेटकम् || २.३२ ||
त्र टक से आांखों के रोगों दूर होते है और सुथती आन्द्द दूर होत है । इसे
गहने की सांदूक की तरह गुप्त रूप से बहुत स वध नी से रख ज न
च न्द्हए |
7. त्राटक के प्रकार
I. सुदूर त्र टक
१) जैसे की उदय होत हुआ सूयव, २) पूनम क चांि, ३) मांन्द्दर क
कलश, ४. पह ि की चोटी, ५) दूर के ग्रह, त रे नक्षत्र
II. समीप त्र टक
१) जैसे की ज्योत, २) ॐ, ३) न्द्बरदु, ४) मून्द्तव
8. त्राटक के उप प्रकार
I. बन्द्हत्र वटक (खुली आांखो से)
ध्येय न्द्वषय अपलक देखने की न्द्िय को बन्द्हत्र वटक कहते है
II. आांतरत्र टक (बांद आांखो से)
ध्येय न्द्वषय की प्रन्द्तम भ्रूमध्य में देखने की न्द्िय को
आांतत्र वटक कहते है
III.त्र टक करते समय मन इष्ट न्द्वषय के स ि सहजत से बि
होने से एक ग्रत बढ़ने लगती है | आँखे न्द्थिर होने पर म रुत
सांबांन्द्धत कें ि भी (Vision Center) न्द्थिर होत है |
9. समीप त्राटक करने के ननयम
न्द्थिर और सुख वह बैठक ।
लक्ष आँखों से 1ii से २ न्द्फट पर होन च न्द्हए ।
लक्ष आँखों के कक्ष में (लेव्हल) होन च न्द्हए ।
खुली आँखों से लक्ष तरफ देखते समय आँखे ज्य द त ननी नहीं ।
आँखों से लक्ष तरफ देखते समय कप ल पर झुर्रवय नही होनी च न्द्हए ।
आँखों में से अश्रु आने तक यह न्द्िय करनी होगी ।
सरददव, आँखों में न्द्वक र हो तो यह न्द्िय नहीं करनी ।
चश्म न्द्नक लकर करन बहेतर होग । अगर चश्म अन्द्नव यव हो तो िॉक्टर की सल ह लेकर यह
न्द्िय करनी होगी ।
यह न्द्िय करने के पहले आँखों क व्य य म करन उपयुक्त है ।
10. ज्योति त्राटक की तिया
1. न्द्थिर और सुख वह बैठक ।
2. मेरुदांि सम अवथि में ।
3. ज्योन्द्त त्र टक करने के पहले आँखों क सूक्ष्म व्य य म करन उपयुक्त है ।
4. एक प्रणवोच्च र करन होग ।
5. आँखे बांद करके त्र टक मांत्र पठन करन होग ।
6. ज्योन्द्त त्र टक के न्द्तन आवतवन करने होगे (बन्द्हत्र वटक और आरतत्र वटक) ।
7. पहले आवतवन में ज्योत को थिूल रूप में देखन होग ।
8. दुसरे आवतवन में ज्योत को सूक्ष्म रूप में देखन होग (ज्योत के अांदर की नीली व ट और
उसके उपर क अन्द्ननकण देखन होग ।
9. तीसरे आवतवन में ज्योत से न्द्नकलने व ली और दूर तक फै लने व ली न्द्करणे ति ज्योत के
आसप स क तेजोवलय देखन होग ।
11. अांतज्योन्द्तबवन्द्हज्योन्द्त: प्रत्यक् ज्योन्द्त: पर त्परम् ।
ज्योन्द्तज्योन्द्त: थवयांज्योन्द्त: आत्मज्योन्द्त न्द्शवोऽन्द्थमहम् ।।
अिव – अांदर की ज्योत य ब हर की ज्योत दोनों भी परब्रह्म थवरूप
है | इन सभी में थवयांज्योत आत्ममांगल है, पन्द्वत्र है, न्द्शवथवरूप है |
देवत्व क दशवन देकर न्द्दव्यत्व भी ले ज ने व ली है |
12. ज्योनत त्राटक के लाभ
1. आँखों के न्द्वक र दूर होते है ।
2. नेत्र शुन्द्ि होती है ।
3. ग ांध री और श ांभवी – आँखों की योन्द्गक न न्द्िय ँ शुि और क यवक्षम बनती है ।
4. आलथय और न्द्नि न श दूर होत है ।
5. मन की चांचलत दूर होती है | मन एक ग्र और प्रसरन होत है ।
6. श रीर्रक और म नन्द्सक थव थ्य प्र प्त होकर कोई भी क म कु शलत से कर सकते है ।
7. न्द्वद्य न्द्िवयों की थमरणशन्द्क्त बढती है ।
8. िोध, सांत प, सांशय, जल्दी न्द्चढन , म नन्द्सक क्षोभ, नैर श्य, वगैरे लक्षण कम होते है ।
9. मन्द्थतक के आल्फ तरांग बढ़ते है ।
10. आज्ञ चि सचेत होकर ध्य न की पूवव तय री होती है ।
13. ज्योनत त्राटक के तीनो आवततनो से नमलने वाले सदेे
1. पहले आवतवन में ज्योत थिूल रूप से देखते है | इससे सांदेश न्द्मलत है की अष्ट ांगयोग की
य त्र शुरुव त में थिूल से सूक्ष्म की तरफ ज ती है | आसन द्व र हम थिूल शरीर को
न्द्नयांन्द्त्रत करते है ।
2. दुसरे आवतवन में हम ज्योत को सूक्ष्म रूप में देखते है | इससे सांदेश न्द्मलत है की हम
प्र ण य म करके सूक्ष्म मन को न्द्नयांन्द्त्रत करते है | उसी समय हमें अपने व्यन्द्क्तचैतरय क
स क्ष त्क र होत है ।
3. तीसरे आवतवन में हम ज्योत से न्द्नकलनेव ली ति दूर तक फै लने व ली न्द्करणे देखते है |
ज्योत के आसप स क तेजोवलय देखते है | इससे मन न्द्वश ल बनत है | इससे सांदेश
न्द्मलत है की प्रत्य ह र, ध रण और ध्य न द्व र हम रे अांदर क व्यन्द्क्तचैतरय क न्द्वथत र
होकर हम न्द्दव्यचैतरय की ओर बढ़ते है ।
14. 1. न्द्कसे नहीं करन च न्द्हए
2. चश्म न्द्नक लकर त्र टक क अभ्य स ऊत्तम है ।
न्द्िर भी ि ँक्टर की सल ह लेन उन्द्चत है,
3. कमजोर नेत्र ज्योन्द्त व लों को इस स धन को धीरे
धीरे वृन्द्ििम में करन च न्द्हए.
सुचना