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प रचय
िकताब का नाम------------------------वतन से मोह बत इमान का िह सा है
लेखक का नाम ----क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात मसीहे िम लत मुह म...
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Watan Se Mohabbat Hindi

  1. 1. 1
  2. 2. 2
  3. 3. 3 प रचय िकताब का नाम------------------------वतन से मोह बत इमान का िह सा है लेखक का नाम ----क़ाज़ी-उल-क़ुज़ात मसीहे िम लत मुह मद अनवर आलम वािलद का नाम----------------------------मुह मद अ बास आलम (मरहम) खािलफत ------------------------------------------------ सलािसले अरबा मु कमल िडज़ाइन ----सूफ शमशाद आलम (जानशीन हज़ूर मसीहे िम लत) रहाइश-------------------------------- मीरा रोड मुंबई ठाणे महारा भारत िहंदी टाइिपंग----------------------------- -- -- सूफ अली अकबर सु तानपुरी काशक------- दा ल उलूम फैज़ाने मु तफा एजूके ल ट , मीरा रोड मुंबई तबाअत------ फै ज़ाने मु तफा अकेडमी,मकज़ुल मराक ज़ बाबुल इ म जनरल लाइ ेरी सहायक -------------- --------------------मुह मद मुिनम (किटहार िबहार)
  4. 4. 4 मुक़ मा वतन से मोह बत एक िफतरी अ है | बहत सी अहादीस से वतन क मोह बत पर रहनुमाई िमलती है िहजरत के व त रसूल लाह स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने म का मुकरमा को मुखाितब करते हए फरमाया था :- " ‫ﻗﻮﱊ‬‫ان‬‫وﻟﻮ‬‫اﱄ‬‫واﺣﺒﮏ‬‫ﺑﻠﺪ‬ ‫اﻃﯿﺒﮏ‬‫ﻣﺎ‬ ‫ﻏﲑک‬‫ﻣﺎﺳﮑﻨﺖ‬‫ﻣﻨﮏ‬‫اﺧﺮﺟﻮﱏ‬ " तजुमा :- तु िकतना पाक ज़ा शहर है और मुझे िकतना महबूब है | अगर मेरी क़ौम तुझसे िनकले पर मुझे मजबूर करती तो म तेरे िसवा कह और सुकूनत इि तयार ना करता |
  5. 5. 5 इस हदीस म नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने अपने आबाई वतन म का मुकरमा से मोह बत का िज़ फरमाया है | इसी तरह रवायत है िक :- " ‫اوﻻدە‬‫و‬‫ﻟﻪ‬ ‫و‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫ﺗﻌﲇ‬‫ﷲ‬‫ﺻﲇ‬‫اﻟﻨﱮ‬‫ان‬ ‫اذ‬‫ﰷن‬‫وﺳﻠﻢ‬ ‫ﻓﻨﻈﺮاﱄ‬‫ﺳﻔﺮ‬ ‫اﻗﺪم‬ ‫ﰷن‬‫وان‬‫راﺣﻠﺘﻪ‬‫اوﺿﻊ‬‫اﻟﻤﺪﯾﻨﺔ‬‫ﺟﺪرات‬ ‫ﺣﺒﻪ‬ ‫ﺣﺮﮐﻬﺎ‬‫داﺑﺔ‬ " ) ‫ﺑﺧﺎری‬ ( तजुमा :- नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम जब सफ़र से वापस तशरीफ़ लाते हए मदीना मुन वरा क दीवार को देखते तो अपनी ऊ ं टनी क र तार
  6. 6. 6 तेज़ कर देते और अगर दुसरे जानवर पर सवार होते तो मदीना मुन वरा क मुह बत म उसे एड़ी मार कर तेज़ भगाते थे | इस हदीस मुबारक से भी वतन से मोह बत क म ूइ यत सािबत होती है | हािफ़ज़ इ ने हजर अ क़लानी ने इस शरह करते हए िलखा है :- " ‫و‬‫اﻟﻤﺪﯾﻨﺔ‬‫ﻓﻀﻞ‬ ‫دﻻﻟﺔ‬‫اﳊﺪﯾﺚ‬‫وﰲ‬ ‫اﻟﯿﻪ‬‫واﳊﻨﲔ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬‫ﻣﴩوﻋﯿﺔ‬ " ) ‫اﻟﺑﺎری‬ ‫ﻓﺗﺢ‬ ( तजुमा :- यह हदीस मुबारक मदीना मुन वरा क फ़ज़ीलत वतन से मोह बत क म ूइ यतो जवाज़ पर दलालत करती है ||
  7. 7. 7 इसी पर कुछ तहक़ क़ तहरीर सरवक़ जमा िकया और िकताबी शकल देकर इस िकताब का नाम............................“वतन से मोह बत ईमान का िह सा है” रखा तािक हर इंसान आसानी के साथ अपने वतन अज़ीज़ से मोह बत करे और स चा बािशंदा बने और आने वाली न ल को एक अ छे माहौल हमवार करके दे सके अ लाह हम सबको वतन से मोह बत करने क तौफ क़ अता फरमाएं | आमीन िबजाहे सै यदुल मुरसलीन व आिलिह ैि यबीन व ाहेरीन || तािलबे दुआ..........मोह मद अनवर आलम ||
  8. 8. 8 वतन से मोह बत का बयान इंसान या हैवान भी िजस सर ज़मीन म पैदा होता है | उससे मोह बत और उंस उनक िफतरत म होती है | च रंद-प र द, द रंद ह ा िक चूंटी जैसी छोटी बड़ी िकसी चीज़ को ले लीिजये हर एक के िदल म अपने मसकन और वतन से बे पनाह उंस होता है | हर जानदार सुबह सवेरे उठकर रोज़ी पानी क तलाश म ज़मीन म घूम िफरकर शाम ढलते ही अपने िठकाने पर वापस आ जाता है | उन बेअ ल हैवानात को िकस ने बताया िक उनका एक घर है मां-बाप और औलाद है कोई खानदान है | अपने घर के दरो दीवार ज़मीन और माहौल से िसफ इंसानात को ही नह बि क हैवानात को भी उ फतो मोह बत हो जाती है |
  9. 9. 9 कुराने करीम और सु नते मुक़ सा म इस हक़ क़त को शरहो िब त से बयान िकया गया है | ज़ेल म हम इस हवाले से चंद नज़ाएर पेश करते ह तािक न से मसला बखूबी वाज़ह हो सके ||
  10. 10. 10 वतन से मोह बत क़ु रान क रौशनी म (1) हज़रत मूसा अलैिह सलाम अपनी कौम बनी इ ाईल को अपनी मकबूज़ा सर ज़मीन म दािखल होने और क़ािबज़ ज़ािलम से अपना वतन आज़ाद करवाने का ह म देते हए फरमाते ह || " ‫اﻟﻤﻘﺪﺳ‬‫اﻻرض‬‫ادﺧﻠﻮا‬‫ﯾﻘﻮم‬ ‫ﮐﺘﺐ‬‫اﻟﱴ‬‫ﺔ‬ ‫ﻓﺘﻨﻘﻠﺒﻮ‬‫ﮐﻢ‬‫ر‬ ‫اد‬ ‫ﺗﺪوا‬ ‫وﻻ‬‫ﻟﮑﻢ‬‫ﷲ‬ ‫ﺧﴪ‬ " ) ‫اﻟﻣﺎﺋدة‬ ( तजुमा :- ऐ मेरी कौम (मु के शाम या बैतुल मुक़ स क ) उस मुक़ स सर ज़मीन म दािखल हो जाओ जो अ लाह ने तु हारे िलए िलख दी है और
  11. 11. 11 अपनी पु त पर (पीछे) ना पलटना वरना तुम नुक़सान उठाने वाले बनकर पलटोगे | (2) हज़रत इ ाहीम अलैिह सलाम का शहरे म का को अमन का गहवारा बनाने क दुआ करना दर हक़ क़त उस हरमत वाले शहर से मोह बत क अलामत है | " ‫ا‬ ‫ا‬‫واذﻗﺎل‬ ‫اﻟﺒﻠﺪ‬‫ﮬﺬا‬‫اﺟﻌﻞ‬‫رب‬‫ﮬﯿﻢ‬ ‫اﻣ‬ ‫اﻻﺻﻨﺎم‬‫ﻧﻌﺒﺪ‬‫ان‬‫وﺑﲎ‬‫ﲎ‬ ‫ﻨﺎواﺟﻨ‬ " तजुमा :- (इ ाहीम) और (याद क िजए) जब इ ाहीम अलैिह सलाम ने अज़ िकया : ऐ मेरे रब इस शहर (म का) को जाए अमन बना दे और मुझे
  12. 12. 12 और मेरे ब च को इस (बात) से बचा ले िक हम बुत क परि तश कर | (3) अपनी औलाद को म का मुकरमा म छोड़ने का मक़सद भी अपने महबूब के शहर क आबादकारी था | उ ह ने बारगाहे इलाह म अज़ िकया :- " ‫ذ‬ ‫اﺳﮑﻨﺖ‬‫اﱏ‬ ‫رﺑﻨ‬ ‫ذی‬‫ﻏﲑ‬‫اد‬ ‫رﯾﱴ‬ ‫رﺑﻨﺎ‬‫اﻟﻤﺤﺮﻣﻼ‬‫ﺘﮏ‬ ‫ﺑ‬‫ﻋﻨﺪک‬‫زرع‬ ‫اﻓ‬‫ﻓﺎﺟﻌﻞ‬‫ﻟﯿﻘﯿﻤﻮاﻟﺼﻠﻮۃ‬ ‫اﻟﻨﺎس‬ ‫ﺌﺪۃ‬ ‫ﻟﻌﻠﯿﻢ‬‫اﻟﺜﻤﺮت‬ ‫وارزﻗﯿﻢ‬‫اﻟﳱﻢ‬‫ﲥﻮی‬ ‫ﺸﮑﺮون‬ " ) ‫اﺑراھﯾم‬ ( तजुमा :- ऐ हमारे रब ! बेशक मने अपनी औलाद (इ माईल अलैिह सलाम) को (म का क ) बे
  13. 13. 13 आबो याहवादी म तेरे हरमत वाले घर के पास बसा िदया है | ऐ हमारे रब ! तािक वह नमाज़ काएम रख पस तू लोग के िदल को ऐसा करदे िक वह शौको मोह बत के साथ उनक तरफ माएल रह और उ ह (हर तरह के) फल का र क़ अता फरमा तािक वह शु बजा लाते रह |
  14. 14. 14 (4) सूरह तौबा क दज ज़ेल आयत म मसािकन से मुराद मकानात भी ह और वतन भी है :- " ‫ؤﮐﻢ‬ ‫واﺑﻨ‬‫ؤﮐﻢ‬ ‫اﺑ‬‫ﰷن‬‫ان‬‫ﻗﻞ‬ ‫وا‬ ‫وﻋﺸﲑﺗﮑﻢ‬‫وازواﺟﮑﻢ‬‫ﺧﻮاﻧﮑﻢ‬ ‫واﻣﻮال‬ ‫ن‬ ‫ﲣﺸﻮن‬ ‫وﲡﺎرۃ‬‫اﻗﱰﻓﺘﻤﻮﮬﺎ‬ ‫اﻟﯿﮑﻢ‬‫اﺣﺐ‬ ‫ﺿﻮﳖ‬ ‫وﻣﺴﮑﻦ‬‫ﮐﺴﺎدﮬﺎ‬ ‫ﻓﱰﺑﺼﻮا‬‫ﯿﻠﻪ‬ ‫ﺳ‬‫ﰲ‬‫وﺟﻬﺎد‬‫ورﺳﻮﻟﻪ‬‫ﷲ‬ ‫ﻣﺮ‬ ‫ﷲ‬‫ﯾﱴ‬ ‫اﻟﻘﻮم‬‫ﳞﺪی‬‫ﻻ‬‫وﷲ‬‫ﮬﻂ‬ ‫اﻟﻔﺴﻘﲔ‬ " ) ‫اﻟﺘﻮﺑﺔ‬ ( तजुमा :- (ऐ नबी-ए-मुकरम) आप फरमा द :- अगर तु हारे बाप-दादा और तु हारे बेटे-बेिटयां और तु हारे भाई-बहन और तु हारी बीिवयां
  15. 15. 15 और तु हारे (दीगर) र तेदार और तु हारे अमवाल जो तुमने (मेहनत से) कमाए और ितजारत और कारोबार िजसके नुक़सान से तुम डरते रहते हो और वह मकानात िज ह तुम पसंद करते हो तु हारे नज़दीक अ लाह और उसके रसूल स ल लाह ताला अलैिह व आिलिह व औलािदही वस लम और उसक राह म िजहाद से यादा वह महबूब तो िफर इंतज़ार करो यहाँ तक िक अ लाह अपना ह म (अज़ाब) ले आए और अ लाह नाफ़रमान लोग को िहदायत नह फरमाता | अ लाह ताला ने यहाँ मोह बते वतन क नफ नह फरमाई िसफ वतन क मोह बत को अ लाह और अ लाह के हबीब स ल लाह ताला अलैिह व आिलिह व औलािदही
  16. 16. 16 वस लम और िजहाद पर तरजीह देने से मना फरमाया है | िलहाज़ा इस आयात से भी वतन से मोह बत का शरई जवाज़ िमलता है | (5) इसी तरह दज ज़ेल आयत मुबारका म वतन से ना हक़ िनकाले जाने वाल को िदफाई जंग लड़ने क इजाज़त मरहमत फरमाई गई है : " ‫ﷲ‬‫وان‬‫ﻇﻠﻤﻮا‬‫ﳖﻢ‬ ‫ﯾﻘﺘﻠﻮن‬ ‫ﻠﺬ‬ ‫اذن‬ ‫اﺧﺮﺟﻮا‬ ‫اﻟﺬ‬ ‫ﻟﻘﺪ‬‫ﻧﴫﮬﻢ‬ ‫ﺣﻖ‬‫ﺑﻐﲑ‬‫رﮬﻢ‬ ‫د‬ ‫رﺑﻨﺎﷲ‬‫ﻗﻮﻟﻮا‬‫اﱏ‬ ‫ا‬ " ) ‫اﻟﺣﺞ‬ ( तजुमा :- उन लोग को (िफतना-ओ-फसाद और इ तेहसाल के िखलाफ िदफाई जंग क ) इजाज़त दे दी गई है िजनसे (ना हक़) जंग क जा रही है इस
  17. 17. 17 वजह से िक उन पर ज़ु म िकया गया | और बेशक अ लाह उन (मज़लूम ) क मदद पर बड़ा क़ािदर है | (यह) वह लोग ह जो अपने घर से ना हक़ िनकाले गए िसफ इस िबना पर िक वह कहते थे िक हमारा रब अ लाह है (यानी उ ह ने फरमा रवाई तसलीम करने से इनकार िकया था |) (6) इसी तरह हज़रत मूसा अलैिह सलाम के बाद बनी इ ाईल जब अपनी करतूत के बाईस िज़ लतो गुलामी तौक़ पहने बेवतन हए तो ठोकर खाने के बाद अपने नबी यूशु या शमून या समूइल अलैिह सलाम से कहने लगे िक हमारे िलए कोई हािकम या कमांडर मुक़रर कर द िजसके मातहत होके अपने दु मन से िजहाद कर
  18. 18. 18 और अपना वतन आज़ाद करवाएं | नबी अलैिह सलाम ने फरमाया :- ऐसा तो नह होगा िक तुम पर िजहाद फ़ज़ कर िदया जाए और तुम ना लड़ो ? उस पर वह कहने लगे :- " ‫وﻗﺪ‬‫ﷲ‬‫ﯿﻞ‬ ‫ﺳ‬‫ﰲ‬‫ﻧﻘﺎﺗﻞ‬‫اﻻ‬ ‫ﻣﺎﻟﻨ‬ ‫ﻓﻠﻤﺎ‬‫ﺋﻨﺎ‬ ‫واﺑﻨ‬ ‫ر‬ ‫د‬ ‫اﺧﺮﺟﻨﺎ‬ ‫ﻟﻮاﻻﻗﻠﯿﻼ‬ ‫اﻟﻘﺘﺎل‬‫ﻋﻠﳱﻢ‬‫ﮐﺘﺐ‬ ‫ﻣﳯﻤ‬ ‫ﻟﻈﻠﻤﲔ‬ ‫ﻋﻠﯿﻤﻢ‬‫وﷲ‬‫ﻂ‬ " ) ‫اﻟﺑﻘرة‬ ( तजुमा :- हम या हआ है िक हम अ लाह क राह म जंग ना कर हालांिक हम अपने वतन और औलाद से जुदा कर िदया गया है, सो जब उन पर (ज़ु मो ज रयत के िख़लाफ़) िक़ताल फ़ज़ कर
  19. 19. 19 िदया गया तो उनम से चंद एक के सवासब िफर गए और अ लाह जािलम को खूब जानने वाला है | मज़कूरा बाला आयत म वतन और औलाद क जुदाई कारवाने वाल के िखलाफ िजहाद का ह म िदया गया है |
  20. 20. 20 (7) इसी तरह दज ज़ेल आयत मुबारका म अ लाह ताला ने दीगर नेमत के साथ मुसलमान को आज़ाद वतन िमलने पर शु बजा लाने क तरगीब िदलाई है :- " ‫ﻗﻠﯿﻞ‬‫واذﮐﺮواذاﻧﺘﻢ‬ ‫ان‬‫ﲣﺎﻓﻮن‬‫اﻻرض‬‫ﰲ‬‫ﻀﻌﻔﻮن‬ ‫ﻣﺴ‬ ‫واﯾﺪﮐﻢ‬‫ﻓﺎوﮐﻢ‬‫اﻟﻨﺎس‬‫ﯾﺘﺨﻄﻔﮑﻢ‬ ‫ﺖ‬ ‫اﻟﻄﯿ‬ ‫ورزﻗﮑﻢ‬‫ﺑﻨﴫە‬ ‫ﺸﮑﺮون‬ ‫ﻟﻌﻠﮑﻢ‬ " ) ‫اﻻﻧﻔﺎل‬ ( तजुमा :- और (वह व याद करो) जब तुम (म क िज़ दगी म अदादन) थोड़े (यानी अि लयत म) थे मु क म दबे हए थे | (यानी मआशी तौर पर कमज़ोर और तेहसालज़दा थे)
  21. 21. 21 तुम इस बात से (भी) खौफज़दा रहते थे िक (ताक़तवर) लोग तु ह उचक लगे (यानी समाजी तौर पर भी तु हे आज़ादी और तह फुज़ हािसल ना था) पस (िहजरत मदीने के बाद) उस (अ लाह) ने तु हे (आज़ाद और महफूज़) िठकाना (वतन) अता फरमा िदया और (इ लामी हकूमत और ए े दार क सूरत म) तु ह अपनी मु त से क़ु वत ब श दी और (मवाखात, अमवाले ग़नीमत और आज़ाद रहने के ज़ रए) तु ह पाक ज़ा चीज़ से रोज़ी अता फरमा दी तािक तुम (अ लाह क भरपूर बंदगी के ज़ रए उसका) शु बजा ला सकूँ | दज बाला म मज़कूर सात आयाते क़ुरआिनया से वतन के साथ मोह बत करने, वतन क खाितर
  22. 22. 22 िहजरत करने और वतन क खाितर क़ुबान होने का शरई जवाज़ सािबत होता है |
  23. 23. 23 वतन से मोह बत अहादीसे मुबारका क रौशनी म अहदीसे मुबारका म भी अपने वतन से मोह बत क वाज़ह नज़ाएर िमलती ह िजनसे मोह बते वतन क म ूइ यत और जवाज़ क मज़ीद वज़ाहत होती है | हदीसे तफसीर, सीरत और तारीख क तक़रीबन हर िकताब म यह वािकया मज़कूर है जब हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम पर नुज़ूले वही का िसलिसला शु हआ तो सै यदा बीबी खदीजा सलामु लाह अलैहा आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को अपने चाचाज़ाद भाई वका िबन नौिफल के पास
  24. 24. 24 ले गई ं| वका िबन नौिफ़ल ने हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम से नुज़ूले वही क त सीलात सुनकर तीन बात अज़ क : आपक तकज़ीब क जाएगी यानी आपक कौम आपको झुठलाएगी, आपको अज़ी यत दी जाएगी और आपको अपने वतन से िनकाल िदया जाएगा | इस तरह वका िबन नौिफ़ल ने बताया िक एलाने नबू वत के बाद हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को अपनी कौम क तरफ से िकन िकन मसाएल का सामना करना पड़ेगा | इमाम सुहैली ने अल-रोज़ इल-अनफ म बक़ाएदा यह उनवान बाँधा है |
  25. 25. 25 " ‫و‬‫ﻟﻪ‬ ‫و‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫ﷲ‬‫ﺻﲇ‬‫اﻟﺮﺳﻮل‬‫ﺣﺐ‬ ‫اوﻻدە‬ ‫و‬‫رک‬ ‫و‬ ‫وﻃﻨﻪ‬‫ﺳﻠﻢ‬ " ताजुमा :- रसूल स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क अपने वतन के िलए मोह बत || इस उनवान के तहत इमाम सुहैली िलखते ह िक जब वका िबन नौिफ़ल ने आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को बताया िक आपक कौम क आपक तकज़ीब करेगी तो आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने खामोशी फ़रमाई | सिनयन जब उसने बताया िक आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क कौम आप
  26. 26. 26 स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को तकलीफ और अज़ी यत म मुि तला करेगी तब भी आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने कुछ ना कहा | तीसरी बात जब उसने अज़ क िक आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को अपने वतन से िनकाल िदया जाएगा तो आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने फ़ौरन फरमाया :- " ‫اوﳐﺮ‬ ‫؟‬ " तजुमा :- या वह मेरे वतन से मुझे िनकाल दगे ? यह बयान करने के बाद इमाम सुहैली िलखते ह :-
  27. 27. 27 " ‫ﮬﺬا‬ ‫ﻓ‬ ‫وﺷﺪۃ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬ ‫دﻟﯿﻞ‬ ‫اﻟﻨﻔﺲ‬ ‫ﻣﻔﺎرﻗﺘﻪ‬ " तजुमा :- इसम आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क अपने वतन से शदीद मोह बत पर दलील है और यह िक अपने वतन से जुदाई आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम पर िकतनी शाक़ थी | और वतन भी वह मुताबरक मक़ाम िक अ लाह ताला का हरम और उसका घर पड़ोस है जो आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम के मोहतरम वािलद हज़रत इ माईल अलैिह सलाम का शहर है | आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व
  28. 28. 28 बा रक वसि लम ने पहली दोन बात पर कोई र े अमल ज़ािहर नह फ़रमाया लेिकन जब वतन से िनकाले जाने का तज़िकरा आया तो फ़ौरन फरमाया िक मेरे दु मन मुझे यहाँ से िनकाल दगे || हज़ूर नबी-ए-करीम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम का सवाल भी बहत बालीग़ है | आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने अिलफ़ इ ते हािमया के बाद “वाओ” को िज़ फरमाया और िफर िनकाले जाने को मु तस फरमाया | उसक वजह यह है िक यह “वाओ” साबक़ा कलाम को रद करने के िलए आती है और मुखाितब को शऊर िदलाती है िक यह इ ते हाम इनकार क जहत से है या इस वजह से है िक उसे दुःख और तकलीफ का सामना
  29. 29. 29 करना पड़ा है गोया अपने वतन से िनकाले जाने क खबर ख़ुसूसी नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम पर सब से यादा शाक़ गुज़री थी | इमाम जैनु ीन ईराक़ ने भी यह सारा वािक़या अपनी िकताब तह सरीब फ शह क़रीब (4:185) म बयान करते हए वतन से मोह बत क म ूइ यत को सािबत िकया है | यही वजह है िक िहजरत करते व त रसूल लाह स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने म का मुकरमा को मुखाितब करते हए फरमाया था :-
  30. 30. 30 " ‫ﻗﻮﱊ‬‫ان‬‫وﻟﻮﻻ‬‫اﱄ‬‫واﺣﺒﮏ‬‫ﺑﻠﺪ‬ ‫اﻃﯿﺒﮏ‬‫ﻣﺎ‬ ‫ﻣﺎﺳﮑﻨﺖ‬‫ﻣﻨﮏ‬‫اﺧﺮﺟﻮﱏ‬ ‫ﻏﲑک‬ " तजुमा :- तू िकतना पाक ज़ा शहर है और मुझे िकतना महबूब है अगर मेरी कौम तुझसे िनकलने पर मुझे मजबूर ना करती तो म तेरे िसवा कह और सुकूनत इि तयार ना करता || यहाँ हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने सराहतन अपने आबाई वतन म का मुकरमा से मोह बत का िज़ फरमाया है || इसी तरह सफ़र से वापसी पर हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम का अपने वतन म दािखल होने के िलए सवारी को तेज़ करना भी वतन से
  31. 31. 31 मोह बत क एक उ दा िमसाल है | गोया हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम वतन क मोह बत म इतने सरशार होते िक उसमे दािखल होने के िलए ज दी फरमाते जैसा िक हज़रत अनस रज़ी अ लाह अ ह बयान फरमाते ह :- " ‫وﺳﻠﻢ‬‫واوﻻدە‬‫ﻟﻪ‬ ‫و‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫ﷲ‬‫ﺻﲇ‬‫اﻟﻨﱮ‬‫ان‬ ‫ﺟﺪرات‬‫اﱄ‬‫ﻓﻨﻈﺮ‬‫ﺳﻔﺮ‬ ‫ﻗﺪم‬‫اذا‬‫ﰷن‬ ‫داﺑﺔ‬ ‫ﰷن‬‫وان‬‫راﺣﻠﺘﻪ‬‫اوﺿﻊ‬‫اﻟﻤﺪﯾﻨﺔ‬ ‫ﺣﳢﺎ‬ ‫ﺣﺮﮐﻬﺎ‬ " तजुमा :- हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम जब सफर से वापस तशरीफ़ लाते हए मदीना मुन वरा क दीवार को देखते तो अपनी
  32. 32. 32 ऊ ं टनी क र तार तेज़ कर देते और अगर दूसरे जानवर पर सवार होते तो मदीना मुन वरा क मोह बत म उसे एड़ी मरकर तेज़ भगाते थे | इस हदीस मुबारक म सराहतन मजकूर है िक अपने वतन मदीना मुन वरा क मोह बत म हज़ूर नबी- ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम अपने सवारी क र तार तेज़ कर देते थे | हािफज़ इ ने हजर अ क़लानी ने उसक शरह करते हए िलखा :- " ‫و‬‫اﻟﻤﺪﯾﻨﺔ‬‫ﻓﻀﻞ‬ ‫دﻻﻟﺔ‬‫اﳊﺪﯾﺚ‬‫وﰲ‬ ‫اﻟﯿﻪ‬‫واﳊﻨﲔ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬‫ﻣﴩوﻋﯿﺔ‬ " यह हदीस मुबारक मदीना मुन वरा क फज़ीलत, वतन से मोह बत क म ूइ यत और जवाज़ और उसके िलए मु ताक़ होने पर दलालत करती है |
  33. 33. 33 एक और रवायत म हज़रत अनस िबन मािलक रज़ी अ लाह अ ह फरमाते ह :- म रसूल लाह स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम के हमराह खैबर क तरफ िनकाला तािक आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क िखदमत करता रहँ | जब हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम खैबर से वापस लोटे और आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम को उहद पहाड़ नज़र आया तो आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने फरमाया :-
  34. 34. 34 " ‫ﳛﺒﻨﺎوﳓﺒﻪ‬‫ﺟﺒﻞ‬‫ﮬﺬا‬ " तजुमा :- यह पहाड़ हमसे मोह बत करता है और हम भी इससे मोह बत रखते ह | उसके बाद अपने द ते मुबारक से मदीना मुन वरा क जािनब इशारा करके फरमाया :- " ‫ﮐﺘﺤﺮﯾﻢ‬‫ﻻﺑﺘﳱﺎ‬‫ﻣﺎﺑﲔ‬‫اﺣﺮم‬‫اﱏ‬‫ﻠﻬﻢ‬ ‫ا‬ ‫ﻟﻨﺎﰲ‬‫رک‬ ‫ﻠﻬﻢ‬ ‫ا‬‫ﻣﮑﺔ۔‬‫اﮬﯿﻢ‬ ‫اا‬ ‫ﺻﺎﻋﻨﺎوﻣﺪ‬ " तजुमा :- ऐ अ लाह म उसक दोन पहािड़य के दरिमयान वाली जगह को हरम बनाता हँ जैसे इ ाहीम अलैिह सलाम ने म का मुकरमा को हरम बनाया था | ऐ अ लाह हम हमारे साअ और मुद म बरकत अता फरमा |
  35. 35. 35 यह और इस जैसी मुताअि द अहादीस मुबारका म हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम अपने वतन मदीना मुन वरा क खैरो बरकत के िलए दुआ करते जो अपने वतन से मोह बत क वाज़ह दलील है | रवायत म है िक जब लोग पहला फल देखते तो हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क िखदमत म लेकर हािज़र होते | हज़ूर नबी-ए- अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम उसे क़ुबूल करने के बाद दुआ करते :- ऐ अ लाह हमारे फल म बरकत अता फरमा | हमारे वतन मदीना म बरकत
  36. 36. 36 अता फरमा | हमारे साअ म और हमारे मुद म बरकत अता फरमा | और मजीद अज़ करते :- " ‫ﯿﮏ‬ ‫وﻧ‬‫وﺧﻠﯿﻠﮏ‬‫ﻋﺒﺪک‬‫اﮬﯿﻢ‬ ‫ا‬‫ان‬‫ﻠﻬﻢ‬ ‫ا‬ ‫واﱏ‬‫ﻟﻤﮑﺔ‬‫دﻋﺎک‬‫واﻧﻪ‬‫ﯿﮏ‬ ‫وﻧ‬‫ﻋﺒﺪک‬‫واﱏ‬ ‫وﻣﺜﻠﻪ‬‫ﻟﻤﮑﺔ‬‫ﻣﺎدﻋﺎک‬‫ﲟﺜﻞ‬‫ﻠﻤﺪﯾﻨﺔ‬ ‫ادﻋﻮک‬ ‫ﻣﻊ‬ " तजुमा :- ऐ अ लाह इ ाहीम अलैिह सलाम तेरे बंदे तेरे खलील और तेरे नबी थे और म भी तेरा बंदा और तेरा नबी हँ | उ ह ने म का मुकरमा के िलए दुआ क थी | म उनक दुआओं के बराबर और उससे एक िम ल ज़ाएद मदीना के िलए दुआ करता हँ | (यानी मदीना म म का से दूंगा बरकत नािज़ल फरमा ||)
  37. 37. 37 वतन से मोह बत का एक और अंदाज़ यह भी है िक हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने फरमाया िक वतन क िम ी बुज़ुग के लुआब और रब ताला के ह म से बीमार को िशफा देती है | हज़रत आइशा िस ीक़ा रज़ी अ लाह अ हा रवायत करती ह :- " ‫رک‬ ‫و‬‫واوﻻدە‬‫ﻟﻪ‬ ‫و‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫ﷲ‬‫ﺻﲇ‬‫اﻟﻨﱮ‬‫ان‬ ‫ﻠﻤﺮﯾﺾ‬ ‫ﯾﻘﻮل‬‫ﰷن‬‫وﺳﻠﻢ‬ : ‫ﺑﻪ‬ ‫ﷲ‬‫ﺴﻢ‬ ‫ر‬‫ذن‬ ‫ﺳﻘﯿﻤﻨﺎ‬ ‫ﺸ‬ ‫ﺑﻌﻀﻨﺎ‬‫ﯾﻘﺔ‬ ‫ارﺿﻨﺎ‬ " तजुमा :- हज़ूर नबी-ए-अकरम स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम मरीज़ फरमाया करते थे : अ लाह के
  38. 38. 38 नाम से शु हमारी ज़मीन (वतन) क िम ी हम म से बाज़ के लोआब से हमारे बीमार को रब के ह म से िशफा देती है | सै यदा आइशा रज़ी अ लाह अ हा रवायत करती ह िक एक मतबा कोई श स म का मुकरमा से आया और बारगाहे रेसालाते माब स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम म हािज़र हआ ! सै यदा आइशा रज़ी अ लाह अ हा ने उससे पूछा िक म का के हालात कैसे ह ? जवाब म उस श स ने म का मुकरमा के फज़ाएल बयान करना शु िकये तो रसूल लाह स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क च माने मुक़ सा आंसुओंसे तर-बतर हो गई ं|
  39. 39. 39 आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने फरमाया:- " ‫ﻓﻼن‬ ‫ﺸﻮﻗﻨﺎ‬ ‫ﻻ‬ " तजुमा :- ऐ फलां ! हमारा इि तयाक़ ना बढ़ा | जबिक एक रवायत म है िक आप स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम ने उसे फ़रमाया :- " ‫ﺗﻘﺮ‬‫اﻟﻘﻠﻮب‬‫دع‬ " तजुमा :- िदल को इ ते ार पकड़ने दो (यानी इ ह दोबारा म का क याद लाकर मु त रब ना करो) ||
  40. 40. 40 इज़ाला इ काल वतन से मोह बत के हवाले से एक इ काल का इज़ाला भी अज़ ह े ज़ री है | इस ज़मन म िबलअमूल एक रवायत नक़ल क जाती है िजस के अ फाज़ कुछ यूं ह :- " ‫اﻻ‬ ‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬ ‫ﳝﺎن‬ " तजुमा :- वतन क मोह बत ईमान का िह सा है | हालांिक यह हदीसे नबवी नह है बि क मन गढ़त है (मौज़ू) रवायत है | 1. इमाम सगानी ने उसे अल-मौज़ूआत (सफा न०-53, रक़म-81) म दज िकया है | 2. इमाम सखावी ने अल-मुक़िसद अल- ह ना (सफा न०-297) म िलखा है |
  41. 41. 41 " ‫ﲱﯿﺢ‬‫وﻣﻌﻨﺎە‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫اﻗﻒ‬‫ﱂ‬ " तजुमा :- मने उस पर कोई इ ेला नह पाई अगरच: मअनन यह कलाम दु त है (िक वतन से मोह बत रखना जाएज़ है)  मु ला अली-उल-क़ारी ने अल-मसनूअ (सफा न०-91, रक़म-106) म िलखा है िक ह फाज़े हदीस के हाँ इस कौल क कोई अ ल नह है |  मु ला अली-उल-क़ारी ने ही अपनी दूसरी िकताब-उल-असरार अल-मफूआ फ -अख़बार-उल-मौज़ूआ (सफा न०- 180, रक़म-164)|
  42. 42. 42 " ‫اﻟﺰرﮐﴙ‬‫ﻗﺎل‬ : ‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫اﻗﻒ‬‫ﱂ‬ " तजुमा :- इमाम ज़ुकुशी कहते ह :- मने इस पर कोई इ ेला नह पाई है | " ‫اﻟﺼﻔﻮی‬ ‫اﻟﺪ‬‫ﻣﻌﲔ‬‫ﺪ‬ ‫اﻟﺴ‬‫وﻗﺎل‬ : ‫ﺑﺜﺎﺑﺖ‬‫ﺲ‬ ‫ﻟ‬ " तजुमा :- सै यद मुईनु ीन सफ़वी कहते ह यह सािबत नह है (यानी बे बुिनयाद है) " ‫وﻗﯿﻞ‬ : ‫اﻟﺴﻠﻒ‬‫ﺑﻌﺪ‬‫م‬ ‫اﻧﻪ‬ " तजुमा :- यह भी कहा गया है िक यह स फ़ वािलहीन म से बाज़ का क़ौल है |
  43. 43. 43 इसीिलए मु ला अली क़ारी ने िलखा है :- " ‫اﻻﳝﺎن‬‫ﻻﯾﻨﺎﰲ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬‫ان‬ " तजुमा :- (इला असरार अल-मफ़ूआ फ अखबा ल मौज़ूआ) वतन से मोह बत नफ नह करती (यानी अपने वतन के साथ मोह बत रखने से बंदा दारए ईमान से खा रज नह हो जाता है)|| अ लामा ज़कानी अल-मूता क शरह म िलखते ह :- " ‫اﻟﺰﮬﺮی‬ ‫اﲮﺎق‬ ‫ا‬‫واﺧﺮج‬ ‫ﻗﺎل‬،‫اﻟﻌﺎص‬ ‫ﲻﺮو‬ ‫ﻋﺒﺪﷲ‬ : ‫اﺻﺎﺑﺖ‬ ‫ﺟﻬﺪواﻣﺮﺿﺎ‬ ‫اﻟﺼﺤﺎﺑﺔ‬‫اﳊﻤﻲ‬ " तजुमा :- इ ने इसहाक़ ने ज़ोहरी से रवायत क है, उ ह ने हज़रत अ दु लाह िबन अम िबन अल- आस रज़ी अ लाह अ ह से रवायत क िक बुखार
  44. 44. 44 ने सहबा-ए-कराम रज़वानु लाही ताला अलैिह अजमईन को दबोच िलया यहाँ तक िक वह बीमारी के सबब बहत लागर हो गए | इस कौल क तफ़सील बयान करते हए ज़ुकानी रक़म तराज़ ह :- " ‫وﻣﺎذﮐﺮ‬‫اﳋﱪ‬‫ﮬﺬا‬‫وﰲ‬‫اﻟﺴﻬﯿﲇ‬‫ﻗﺎل‬ ‫اﻟﻨﻔﻮس‬‫ﻋﻠﯿﻪ‬‫ﻣﺎﺟﺒﻠﺖ‬‫ﻣﮑﺔ‬‫اﱄ‬‫ﺣﻨﯿﳯﻢ‬ ‫اﻟﯿﻪ‬‫واﳊﻨﲔ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﺣﺐ‬ " (शरहल ज़ुकानी अली अल-मूता) तजुमा :- इमाम सुहैली फरमाते ह : इस बयान म सहबा-ए-कराम रज़वानुलाही ताला अलैिहम अजमईन के म का मुकरमा से वािलहाना मोह बत इि तयाक़ क ख़बर है िक वतन क मोह बत और उसक जािनब इि तयाक़ इंसानी तबाए और िफतरत म विद यत कर िदया गया है |
  45. 45. 45 (और इसी जुदाई के सबब सहाबा-ए-कराम रज़वानु लाही ताला अलैिहम अजमईन बीमार हए थे |) क़ुराने हक म क सबसे मा फ़ और मु नाितद लुगत यानी अल-मुि दात के मुसि नफ़ इमाम रािगब अ फ़हानी ने अपनी िकताब मुह ातुल अदबा म वतन क मोह बत के हवाले से बहत कुछ िलखा है | उनक गु तुगू का ख़ुलासा ज़ेल म दज िकया जाता है | वह िलखते ह :- " ‫وﻗﯿﻞ‬‫ﺑﻼداﻟﺴﻮء۔‬‫ﳋﺮﺑﺖ‬‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﻟﻮﻻﺣﺐ‬ : ‫اﻟﺒﻠﺪان‬‫ﲻﺎرۃ‬‫اﻻوﻃﺎن‬‫ﲝﺐ‬ " तजुमा :- अगर वतन क मोह बत ना होती तो पसमांदा मुमािलक तबाह और बबाद हो जाते (िक लोग उ ह छोड़कर दीगर अ छे मुमािलक म जा बसते और नतीजतन वह मुमािलक वीरािनय क
  46. 46. 46 त वीर बन जाते) इसीिलए कहा गया है िक अपने वतन क मोह बत से ही मुमािलक और कौम क तामीर और तर क़ होती है | उसके बाद इमाम रािगब अ फानी हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ हमा का नक़ल करते हए िलखते ह िक जब एक श स ने अपना र क़ कम होने क िशकायत िकया तो हज़रत अ दु लाह िबन अ बास रज़ी अ लाह अ हमा ने उसे फरमाया :- " ‫ﻟ‬ ‫ﻗﻨﻮﻋﯿﻢ‬‫رزاﻗﻬﻢ‬ ‫اﻟﻨﺎس‬‫ﻮﻗﻨﻊ‬ ‫وﻃ‬ ‫ﺎ‬ ‫ﳖﻢ‬ " तजुमा :- काश ! लोग अपने र क़ पर भी ऐसे ही क़ानेअ होते जैसे अपने औतान (यानी आबाई मु क ) पर िक़नाअत एि तयार िकए रखते ह |
  47. 47. 47 इसी तरह जब एक देहाती श स से पूछा गया िक वह िकस तरह देहात क स त कोष और जफा कशी और र क़ क तंगी वाली िज़ दगी पर स कर लेते ह तो उसने जवाब िदया :- " ‫اﻟﻌﺒﺎد‬‫ﺑﻌﺾ‬‫اﻗﻨﻊ‬‫ﺗﻌﲇ‬‫ﷲ‬‫ﻟﻮﻻان‬ ‫اﻟﻌﺒﺎد‬‫ﲨﯿﻊ‬‫ﺧﲑاﻟﺒﻼد‬‫ﻣﺎوﺳﻊ‬‫ﴩاﻟﺒﻼد‬ " तजुमा :- अगर अ लाह ताला बाज़ लोग को पसमांदा मक़ामात पर क़ाएल ना फरमाए तो तर क या ता मक़ामात तमाम लोग के िलए तंग पड़ जाएं | यानी अगर सारे मक़ामी बािशंदे अपने आबाई इलाक़ क पसमा दगी और िजहालत और और गुबत मह िमय के बाईस तर क या ता इलाक़ क तरफ िहजरत करते रहे तो एक व त आएगा िक तर क या ता इलाक़े भी गोना गो मसाइल का िशकार हो जाएंगे और अपने रहाइश के िलए तंग पड़ जाएंगे |
  48. 48. 48 इसके बाद इमाम रािगब असफहानी ने “फज़लु मह बितल वतन” (वतन से मोह बत क फज़ीलत) के उनवान से एक अलग फ़ ल काएम करते हए िलखा है :- " ‫ﺣﺐ‬ ‫اﻟﻤﻮﻟﺪ‬‫ﻃﯿﺐ‬ ‫اﻟﻮﻃﻦ‬ " तजुमा :- वतन क मोह बत अ छी िफतरतो िजिब लत (आदत) क िनशानी है | इस हदीसे मुबारका से मुराद यह है िक उ दा िफतरत वाले लोग ही अपने वतन से मोह बत करते और उसक िखदमत करते ह | ऐसे लोग अपने वतन क नेक नामी और अक़वामे आलम म उ ज और तर क़ का बाईस बनते ह ना नी मु क के िलए बदनामी खरीदकर उस पर ध बा लगाते ह |अबु-अम िबन उला ने कहा है :-
  49. 49. 49 " ‫ﺗﻪ‬ ‫ﻏﺮ‬‫وﻃﯿﺐ‬‫اﻟﺮﺟﻞ‬‫ﮐﺮم‬ ‫ﯾﺪل‬‫ﳑﺎ‬ ‫اﺧﻮاﻧﻪ‬‫ﻣﺘﻘﺪﱊ‬‫وﺣﺒﻪ‬‫اوﻃﺎﻧﻪ‬‫اﱄ‬‫ﻨﻪ‬ ‫ﺣﻨ‬ ‫زﻣﺎﻧﻪ‬ ‫ﻣﴤ‬‫ﻣﺎ‬ ‫وﺑﲀوە‬ " तजुमा :- आदमी के मोअि ज़ज़ होने और उसक िजिब लत (आदत) के पाक ज़ा होने पर जोशे दलालत करती है वह उसका अपने वतन के िलए मु ताक़ होना और अपने दीरीिनया ता लुक़ दार (यानी आज़ाओ अक़रबा, रो क़ा-ओ-दो त अहबाब और पड़ोसी वगैरह) से मोह बत करना और अपने सािबक़ा ज़माने (के गुनाह और मािसयात) पर आह-ज़ारी करना (और उनक मग़िफरत तलब करना) है |
  50. 50. 50 " ‫اﻟﻮﻃﻦ‬‫ﲝﺐ‬‫ﻣﻌﺠﻮﻧﺔ‬‫اﻟﺮﺟﻞ‬‫ﻓﻄﺮۃ‬ " (मुहािज़रात अल-अदबा िलल-रािगब अल-अ फहानी) तजुमा :- िफतरते इंसान को वतन क मोह बत से ग धा गया है (यानी वतन क मोह बत इंसानी खमीर म रख दी गई है) |
  51. 51. 51 ख़ुलासा-ए-कलाम क़ुरान-ओ-हदीस और तारीखे इ लाम के दज िबला सरीह दलाएल से मालूम हआ िक वतन से मोह बत एक म ्रो और जाएज़ अमल है य िक यह एक िफतरी और लािज़म अ है | डा० मोह मद तािह ल क़ादरी सूरह अल-तौबा क आयत नंबर 24 क शरह करते ह :- इस आयत मुबारका म छ: (6) तरह क दुिनयावी मोह बत का बयान है || (1) औलाद क वािलदैन से मोह बत (2) वािलदैन क औलाद से मोह बत (3) बीवी क मोह बत (4) र तेदार क मोह बत (5) नौकरी, कारोबार और ितजारत क मोह बत (6) घर और वतन क मोह बत
  52. 52. 52 अगर यह सारी मोह बत िमलकर यानी इन मोह बत का और सब िश त िमलकर अ लाह और उसके रसूल स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम और िजहाद क मोह बत से बढ़ जाए | अ लाह के दीन क मोह बत से बढ़ जाए तो िफर अपने अंजाम का इनकार करना चािहए | यह एक categorical declaration है | लेिकन अगर यह तमाम दुिनयावी मोह बत अपनी limit म ह और ग़ािलब मोह बतु लाह और उसके रसूल स ल लाह अलैिह व आिलिह व औलािदही व बा रक वसि लम क ही तो यह सारी मोह बत भी उसी लाफ़ानी मोह बत के ताबेअ हो जाती है | (मोह बत के हवाले से मोह मद तािह ल क़ादरी का त सीली मज़मून अग त 2017 इसवी के दु तराने इ लाम म मुलािहज़ा िकया जा सकता है|
  53. 53. 53 िलहाज़ा हम जान लेना चाहना चािहए िक वतन से मोह बत के बगैर कोई कौम आज़ादाना तौर पर इ ज़तो वक़ार क िज़ दगी गुज़ार सकती है ना अपने वतन को दु मनी क़ु वत से महफूज़ रख सकती है | िजस कौम के िदल म वतन क मोह बत नह रहती िफर उसका मु तक़िबल तारीक हो जाता है | और वह कौम और मु क पारा पारा हो जाता है | वतन से मोह बत हरिगज़ िखलाफे इ लाम नह है | और ना ही यह िम लते वािहदा के तस वुर के मनाफ़ है य िक िम लते वािहदा का तस वुर सर हदे सारह धुन का काओं का पाब द नह है | बि क यह अ कारो ख़यालात क यक जहित और इ ेहाद का तक़ाज़ा करता है | हम अपने वतने अज़ीज़ से टूटकर मोह बत करनी चािहए और उसक तामीर और तर क़ म अपना भरपूर िकरदार अदा करना चािहए | वतन से मोह बत िसफ ज बात और नार क हद तक ही
  54. 54. 54 नह होनी चािहए बि क हमारे गु तार और िकरदार म भी उसक झलक नज़र आनी चािहए | हम ऐसे अनािसर क भी शना त और सर कोबी के अक़दामात करने चािहए | जो वतने अज़ीज़ क बदनामी और ज़वाल का बाइस बनते ह | ऐसे ह मरान से भी छुटकारे के िलए ज ो जहद करनी चािहए जो वतने अज़ीज़ को लौटने के दर पे ह और आए रोज़ उसक बदनामी का बाइस बन रहे ह | ऐसे ह मरान से िनजात िदलाने क सर-गरम अमल होना चािहए जो अपने वतन से यादा दूसर क वफादारी का दम भरते ह और वतने अज़ीज़ क सलामती के दर पे रहते ह | माशरे के अमन को गारत करने वाले अनािसर को सूर समझ कर कै फरे िकरदार तक पहंचाने म अपना भरपूर कौमी िकरदार अदा करना चािहए | वतन का वक़ार, तह फुज़े सलामती और बक़ा इसी म है िक लोग िक जानो माल और इ ज़तो आब महफूज़
  55. 55. 55 ह | वतन क तर क़ और खुशहाली इसी म है िक हमेशा मु क मुफादात को जाती मुफादात पर तरजीह दी जाए और हर सतह पर हर तरह क कर शन और बद-उनवानी का िक़ला क़मा क जाए | माशरे म अमन और अमान का राज हो हर तरह क ज़ु मो यादती से खुद को बचाएं और दूसर को भी महफूज़ रख | खुद ए तेसाबी क आशद ज़ रत है िक हम अपना जाएज़ा ल िक हमने अब तक अपने वतन अज़ीज़ के िलए या िकया है ? इसक तर क म इतना िह सा िलया है ? वतने अज़ीज़ के के गैर मुि लम शह रय क खाितर या काम िकया है ? उनके तह फुज़ और तर क के िलए कौन से इक़दामात उठाए गए ह ? अवामी बेदारी क मुहीम म िकस हद तक िह सा िलया है ? कौम का शऊर बेदार करने क खाितर या क़ुबािनया दी ह ? इस मु क को लोटने वाल के िखलाफ िकस हद तक ज ो
  56. 56. 56 जहद क है ? पूरी दुिनया म वतने अज़ीज़ क जग हसाई कराने वाले िसयासत दान और ह मरान के िखलाफ अवाम म िकस हद तक शऊर बेदार िकया है ? कहाँ कहाँ अपने जाती मुफादात को कौमी मुफादात क खाितर क़ुबान िकया है ? सारे जहाँ से अ छा िह दु ताँ हमारा हम बुलबुले ह इसक यह गुलिसता हमारा (डा० अ लामा इक़बाल) तािलबे दुआ......................सूफ शमशाद आलम
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