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संबंध म भाव (मू य)
समाज मू य
( था पत एवं श ट मू य)
इससे पूव क
े लेखन म हमलोग ने मानव-मानव स बंध को पहचानने का यास कया था। मानव-मानव संबंध ह
प रवार एवं समाज का आधार है, इस बात क तरफ इशारा कया था। इस ृंखला म अब हम प रवार-समाज
मू य पर काश डालते ह, जो स बंध नवाह अथात यायपूण मानवीय यवहार क बु नयाद ह। इस लए इनको
समाज मू य भी कहा जाता है। समाज म प रवार समा हत रहता ह है।
यवहार का आधार भाव-मू य
संबंध म आपसी यवहार को देख, तो यवहार क
े मूल म हमारा भाव (मू य) होता है। अगर हमारा भाव सह
होता है, तो आपस म यवहार करते हुए हम उसे ठ क-ठ क य त कर पाते ह। अगर हमारा भाव ठ क नह ं होता
है, तो इसक
े आधार पर हमारा यवहार भी ग़लत हो जाता है। साथ ह यह भी दखाई देता है क अगर हमारा
भाव ठ क नह ं हो और भले ह हम यवहार म श टाचार पूवक उसे य त नह ं कर; फर भी वह हमारे अंदर
‘ वयं म परेशानी’ का कारण बनता है। अतः संबंध म जो सहज प म वीकृ त भाव ह उनका अभाव होने पर हम
पर परता म उस अभाव को य त ना भी कर, तो भी वो हमारे दुःख का कारण बनता ह है; य क िजतनी देर
तक हम अ यथा (संबंध म सहज वीकृ त भाव क
े वपर त) भाव और वचार म जी रहे होते ह, हम सम या त
होते ह।
न कष क
े प म दो बात समझ म आती ह-
1. पर परता म अपने यवहार क
े ठ क होने क
े लए अपने भाव और वचार का ठ क होना ज र है।
2. पर परता म हम यवहार क
े प म य त न भी हो रहे ह , तो भी अपनी तृि त क नरंतरता को
सु नि चत करने क
े लये, अपने अंदर तालमेल (संगीतमयता) को सु नि चत करने क
े लये सह भाव और
वचार का होना ज र है।
भाव क सूची
अब अगला न यह बनता है क पर परता म कौन-कौन से भाव ह, जो हमको वयं म वीकृ त होते ह और
िजनक
े आधार पर ‘म’ (self) क याओं म संगीतमयता सु नि चत होती ह? ये भाव मशः व वास-सौज यता,
स मान-मू यांकन, नेह- न ठा, ममता-उदारता, वा स य-सहजता, ा-पू यता, गौरव-वंदना/सरलता, कृ त ता-
सौ यता और ेम-अन यता ह। संबंध म इन भाव क वीकृ त और पहचान ये दोन ह ‘म’ म होने वाल याएँ
ह। अतः ये भाव मूलतः ‘म’ म सु नि चत होने वाल या ह। साथ ह पर परता म जब हम इन भाव को य त
करते ह, तो सामने दूसरा ‘म’ ह है, जो इन भाव को पहचानता है, आंकलन करता है और इस क
े आधार पर
अपने म सुख या दुख को महसूस करता है। हम एक-एक करक
े इन भाव क
े बारे म सं ेप म बात करगे। इन
भाव क
े नाम ता लका प म नीचे दये गये ह।
लोकवाता एवं मै ी संवाद ृंखला- 8
समाज मू य
था पत मू य श ट मू य
(ि थ त मू य) (ग त मू य)
व वास सौज यता
स मान मू यांकन (अरह यता)
नेह न ठा
ममता उदारता
वा स य सहजता ( प टता)
ा पू यता
गौरव वंदना (सरलता)
कृ त ता सौ यता
ेम अन यता
था पत एवं श ट मू य
ये सभी भाव दो-दो क
े समूह म लखे हुए ह। इनम पहले को था पत मू य नाम दया गया है तथा दूसरे को
श ट मू य। अतः व वास से लेकर ेम तक ये नौ भाव था पत मू य ह, जब क सौज यता से लेकर अन यता
तक क
े 9 भाव को श ट मू य कहा गया है। व वास से लेकर ेम को था पत मू य क
े प म पहचाना गया
है, य क ये भाव वयं म बने रहते ह। था पत होने का ता पय समझ क
े अनंतर, वयं म इन भाव क
े
वीकृ त होने से है; इनक
े नरंतर बने रहने से है। ये भाव वयं म नरंतर बने रहते ह, इस लए हमार अपनी
तृि त क
े आधार होते ह, वयं म तृि त क नरंतरता को सु नि चत करने क
े ोत होते ह।
इन था पत मू य को जब आपस म हम य त करने जाते ह, तो ये श ट मू य क
े प म अ भ य त होते ह।
इन मू य को श ट मू य क
े प म इस लए पहचाना जाता है य क इन मू य क
े आधार पर जीते हुए हमार
अ भ यि त श टतापूवक हो पाती है; पर परता म हमारे यवहार म श टता आ पाती है। दूसरे श द म कह तो,
था पत मू य जब अपने जीने म बहने लगते ह, तो वतः ह श ट मू य का उदय होता है। ये श ट मू य पुनः
यवहार एवं आचरण म दखते ह। इन सभी श ट मू य क
े आधार क
े प म था पत मू य ह ह। ये था पत
मू य वयं म होते ह, तो अ भ यि त म श ट मू य का कटन होता है। था पत मू य क
े वयं म अभाव
होने से श ट मू य का भी अभाव हो जाता है।
ि थ त-ग त
इन मू य को मशः ि थ त या और ग त या क
े नाम से भी जाना जाता है। सभी था पत मू य हमारे
अंदर वयं क ि थ त क
े , वयं क
े होने क
े अ वभा य भाग बन जाते ह- इस प म इ ह ि थ त या भी कहा
जाता है। पर परता म इनक अ भ यि त श ट मू य क
े प म दखती है, इस लए सभी श ट मू य को ग त
या क
े प म पहचानते ह। ग त या का ता पय ि थ त या को अ भ य त करने से है, पर परता म
सं े षत करने से है, कट करने से है। सभी था पत मू य क
े साथ (corresponding) एक-एक श ट मू य ह।
अब हम इन भाव (मू य ) को एक-एक कर समझने का यास करगे।
व वास – व वास का ता पय दूसरे मनु य क सहज प म वीकृ त चाहना/मंशा (intention) क
े उपर लगातार
( नरंतर) भरोसा/आ वि त क
े बने रहने से है। इसक
े संदभ म अ ययन करने क
े लए मानव क ‘चाहना
(intention)’ और ‘यो यता (competence)’ को अलग-अलग करक
े देखने क ज रत है। सामा य प से जब हम
अपने को देखते ह, अपना आँकलन करते ह, तो हम अपनी चाहना को देखते ह। चाहना म वयं को सुखी करने
क चाहना, पर परता म दूसरे को सुखी करने क चाहना को देखने एवं इस पर आ वि त बने रहने क
े आधार पर
यह न कष नकालते ह क ’
म
‘ ठ क हूँ’; ‘म अ छा आदमी हूँ’। वह ं जब हम दूसरे मनु य का आंकलन करने
जाते ह, तब हम उस क ‘चाहना’ पर यान न देकर, उसक
े ‘करने’ को देखते ह और ‘करने’ म जहाँ कह ं भी कमी
दखाई देती है, उसका आंकलन करक
े यह न कष नकाल लेते ह क उसक चाहना/मंशा (intention) ठ क नह ं
है। अगर हम इस ‘चाहना (intention)’ और ‘करना (competence)’ (या ‘यो यता’) को अलग अलग कर देखने
जाएँ तो यह समझ म आता है क यो यता क
े तर पर कमी हमम भी है और दूसरे म भी। अपनी यो यता क
े
तर पर कमी को देखकर भी हम कभी अपनी चाहना पर शंका नह ं होती, बि क नरंतर आ वि त बनी रहती है।
बाक लोग क ि थ त को देखकर यह भी समझ म आता है क हम सभी लोग को अपनी चाहना पर आ वि त
बनी रहती है, कं तु दूसरे क चाहना पर शंका होती रहती है। इनक
े न कष क
े प म एक सामा य स ांत यह
समझ म आता है क अगर चाहना और यो यता को अलग कर क
े देख, तो मूलतः हर मानव वयं सुखी होना
और दूसर को सुखी करना चाहता है- यह हम सबक मूल चाहना है। समझ क
े अभाव म सह भाव को वयं म
सु नि चत नह ं करने या संबंध म हर ि थ त-प रि थ त म भाव को क
ै से सु नि चत कर इस बात क प टता न
होने क
े कारण, इन भाव को अपने सुख क
े ोत क
े प म नह ं देख पाने क
े कारण हम अ यथा भाव क
े साथ
जी रहे होते ह और एक दूसरे क चाहना पर शंका करते रहते ह। दूसरे क चाहना क
े ऊपर यह शंका अ व वास
है। अतः व वास का ता पय हम िजन मनु य क
े साथ जी रहे ह, उसक चाहना क
े उपर आ वि त क
े सतत बने
रहने से है। स बंधी (दूसरे मनु य) क चाहना क
े उपर य द हमार सतत आ वि त बनी रहती है और यो यता क
े
तर पर कमी दखाई देती है, तो हम उनक गल तय क
े उपर ोध नह ं आता, खीज नह ं होती; बि क पर पर-
पूरकता क
े अथ म भागीदार क
े , सहयोग क
े बारे म हम सोच पाते है।
सौज यता - व वास क
े श ट मू य (ग त या) को सौज यता क
े प म पहचाना गया है। सौज यता, सुजन
श द से बना हुआ है, िजसका ता पय है- अ छा आदमी। सौज यता का ता पय एक-दूसरे को ज रत क
े अनुसार
सहयोग कर पाने से है। हम अपने लये इस बात को देख सकते ह क पर परता म जब हमार एक दूसरे क
चाहना क
े उपर आ वि त होती है, तो हम पर पर पूरकता क
े अथ म, सहयोग कर पाने क
े अथ म, सहभागी हो
पाने क
े अथ म, साथ-साथ मलकर क
ु छ कर पाने को सोच पाते ह।
वह ं दूसर ओर अगर व वास क
े बदले हमारे अंदर अ व वास हो, शंका हो तो एक दूसरे का सहयोगी होने क
े
बदले, एक दूसरे क
े त वरोध म ह हमारा अ धकांश समय चला जाता है। सहयोगी हो पाना, सहभागी हो पाना;
इनको व तार करक
े देख तो यवहार म सहयोग करने, काय म सहयोग करने, यव था म भागीदार म सहयोग
करने, वचार म सहयोग करने, भाव और समझ क
े तर पर सहयोग करने क
े अथ म इसका फ
ै लाव है। सहयोग
क
े भाव क
े साथ जब हम पर परता म जीते ह, तो अपने-पराये क द वार टूटने लगती है और समाज अखंडता क
ओर अ सर हो पाता है।
स मान – इस भाव का ता पय आपस म जीते हुए एक दूसरे का सट क आंकलन कर पाने से है, स यक आंकलन
कर पाने से है। इसक
े तहत हम मनु य का आंकलन ‘म’ क
े आधार पर करते ह, न क शर र क
े आधार पर। ‘म’
क
े आंकलन म म हम ‘म’ क मता (संभावना) और यो यता इन दोन का ह आँकलन करते ह। मता क
े
तर पर यह दखता है क जैसा म नरंतर सुख-समृ पूवक जीना चाहता हूँ, वैसा ह दूसरा मनु य भी जीना
चाहता है। जैसे सह-अि त व क यव था को समझना या चारो तर (मानव, प रवार, समाज एवं कृ त) क
यव था को समझना और यव था पूवक जीना मेरे सुखी होने का काय म है, वह दूसरे क
े सुखी होने का भी
काय म है। इ छा, वचार, आशा क या जैसे मुझम सतत चल रह है, वैसे ह दूसरे म भी चल रह है; इस
प म सह समझने क मता हर मानव म है। अतः ल य क जगह पर, काय म क जगह पर, एवं याओं
क नरंतरता (potential) क
े तर पर हम एक समान ह। पर परता म िजस मनु य क
े साथ हम जी रहे होते ह,
उसक
े साथ इन तीन जगह पर एक पता, समता को देख पाने क
े आधार पर उसको अपने जैसा (समान) वीकार
पाते ह। दूसरे को अपने जैसा वीकार पाना स मान क यूनतम जगह है।
इन तीन क
े साथ जब हम यो यता का आँकलन करने जाते ह, तब पाते ह क हमार यो यता या तो दूसरे से
अ धक होती है, या दूसरे से कम होती है। इन दोन ह ि थ त म पर परता म पूरकता का नवाह हो सकता है।
हमार यो यता दूसरे से कम होने पर हम सीखने–समझने को त पर होते ह- इस प म हमार पूरकता सु नि चत
होती है। य द दूसरे क यो यता हम कम दखाई देती है तो सबसे पहले हम अपनी ओर से उसक
े साथ िज मेदार
पूवक जीते ह। हमारे िज मेदार पूवक जीने से दूसरे म संबंध क
े त आ वि त बनती है, हमारे त आ वि त
बनती है। इससे उस यि त म हमसे सीखने-समझने क
े लये त परता बनती है। इस आधार पर हम दूसरे मनु य
को क
ु छ सीखने–समझने म सहयोग कर पाते ह।
अतः ल य, काय म और मता क जगह पर हम एक समान ह, इस आधार पर दूसरे मनु य को हम अपने
जैसा वीकार पाते ह। यो यता क जगह पर हममे थोड़ा अंतर है, पर वह आपसी पूरकता क
े अथ म है। ये बात
भी यहाँ ठ क-ठ क समझ म आती है क व वास क जगह पर चाहना म आ वि त होने क
े आधार पर ह एक
दूसरे क
े सट क आंकलन क संभावना बनती है। अगर हमारा एक दूसरे क चाहना पर ह आ वि त न हो, व वास
क जगह अ व वास का भाव हो, तो जाने–अनजाने हम अपना अ धमू यन (over evaluation) करते ह और दूसरे
का अवमू यन (under evaluation) करते ह। यह काम दूसरा भी करता है। इस प म पर परता म स यक
आंकलन अथात ् स मान का अभाव होता है। ऐसी ि थ त म हम आपस म वरोध, संघष म जीते ह।
मू यांकन (अरह यता) – स मान क
े श ट मू य को मू यांकन (अरह यता) क
े प म पहचाना गया है। इसका
ता पय पर परता म एक-दूसरे का सट क आंकलन होने से है; दूसरे श द म सभी कार क
े रह य का अभाव होने
से है। स मान पूवक जब हम एक दूसरे का ठ क-ठ क आंकलन कर पाते ह, तो उसक अ भ यि त सह मू यांकन
क
े प म होती है। सामा य भाषा म कह, तो पर परता म जीते हुए हमारा अपने बारे म और दूसरे क
े बारे म
क
ु छ आंकलन होता है। इसी तरह दूसरे का अपने बारे म और हमारे बारे म क
ु छ आंकलन होता ह। सह आँकलन
(अरह यता) वो ि थ त है, जहाँ मेरा अपने बारे म जो आंकलन होता है और दूसरे का मेरे बारे म जो आंकलन
होता है- वो दोनो एक प होते है, समान होते ह। इसी तरह से, मेरा दूसरे क
े बारे म आंकलन और उसका वयं क
े
बारे म आंकलन समान होता है, एक जैसा होता है। साथ-साथ दोन को यह भी पता होता है क हम दोन क
े पास
एक दूसरे का आंकलन है। इस ि थ त को अरह यता क
े प म पहचाने ह।
सट क अथ म देख तो पर परता म पूरकता क
े अथ म काय म को ठ क से बना पाने क
े लये इस तरह का
आंकलन होना (हमारा वयं क
े त जो आंकलन है, वह दूसरे का मेरे बारे म आंकलन होना और अगले का जो
आंकलन मने कया है, वह उसका वयं क
े त आंकलन होना) आव यक है। तभी हम पर परता म नि चत
काय म को बना सकते ह और एक दूसरे क
े लए पर पर-पूरकता क
े अथ म नि चत भू मकाओं का नवाह कर
सकते ह। य द कसी कारण से हमारे आपसी आँकलन म समानता नह ं होती है, तो हम वयं का तथा दूसरे का
फर से जाँच-परख करते ह, अपने न कष पर पुन वचार करते ह तथा अपने आँकलन को चचा एवं संवाद पूवक
और बेहतर बनाने क
े लए यास करते ह।
नेह - व वास और स मान क
े साथ हम जीते ह तो हमार एक दूसरे क चाहना क
े उपर आ वि त बनी रहती
है। हम एक-दूसरे क मता को समान देख पाते ह, यो यता क जगह पर पर परता म पूरकता को देख पाते ह।
इतनी समझ (background) क
े साथ, अब हर दूसरा मनु य िजसक
े साथ हम जी रहे होते ह, वह हम अपने
संबंधी क
े प म दखाई पड़ता है, उसक
े साथ हम अपना जुडाव देख पाते ह। सामा य प से भी देख तो आज क
े
दन यावहा रक धरातल पर भी मानव जा त काफ जुड गई है। हमारा जीना एक दूसरे क पर परता म काफ
घुल मल सा गया है, जहाँ हम अनेक याकलाप क
े लये एक दूसरे पर नभर ह। आज क
े समाज म तो यह
नभरता पूरे व व तक फ
ै ल गयी है।
पर परता म दूसरे को संबंधी क
े प म वीकार पाने को नेह क
े भाव क
े प म पहचाना है। व वास और
स मान क
े वयं म सु नि चत होने क
े आधार पर हम दूसरे मनु य को अपने से जुडा हुआ देख पाते ह- इस प
म नेह का भाव हमारे अंदर ि थर होता है। नेह क
े भाव क
े साथ हम आपस म कसी-न- कसी काय म से जुड़
जाते ह। अतः एक-दूसरे क
े सहयोगी होने क शु आत हो जाती है।
न ठा - नेह क
े श ट मू य को न ठा क
े प म पहचाना गया है। दूसरे को संबंधी क
े प म वीकारने क
पहचान इस प म दखाई देती है क उस संबंध म िजन कत य का हमको नवाह करना होता है, िजन दा य व
का नवाह करना होता है, िजन िज मेदा रय का, िजन अपे ाओं का नवाह करना होता है, उन सभी अपे ाओं का
हम स नता पूवक, उ सव क
े साथ नवाह करते ह। अपनी उन िज मेदा रय को नवाह करने क
े लये हम
न ठाि वत होते ह। इस प म नेह क ग त या को न ठा क
े प म पहचाना गया है।
दूसरा जब हमको संबंधी क
े प म दखता है, तब उस संबंध म अपनी ओर से िज मेदा रय का नवाह करक
े हम
स न होते ह और इस िज मेदार - नवाह को हम वयं फ
ू त ढ़ंग से करना ह चाहते ह। अतः न ठा क ये दो
मूलभूत पहचान दखाई देती है–
1. हम िज मेदा रय का नवाह वयं फ
ू त ढंग से करना चाहते ह, न क कसी दबाव या भाव क
े कारण
2. उन िज मेदा रय का नवाह करक
े हमे वयं म तृि त महसूस होती है, स नता महसूस होती है।
इसक
े वपर त जब भी नेह का भाव नह ं होता है, तब संबंध म हमको िजन छोट -छोट िज मेदा रय का भी
नवाह करना होता है वो हम बोझ जैसा लगता है और उसम हम हर ण यह हसाब मलाते रहते ह क दूसरा
मेरे लये कतना करता है, और म दूसर क
े लये कतना करता हूँ।
ममता और वा स य – संबंध क वीकृ त क
े साथ, नेह क
े भाव क
े साथ अपनी िज मेदा रय क समझ पूवक
वीकृ त ममता और वा स य क
े भाव क
े प म दखाई देता है।
ममता क
े भाव का ता पय अपने संबंधी क
े शर र क
े पोषण-संर ण क वीकृ त होने से है; जब क वा स य क
े
भाव का ता पय अपने संबंधी क
े ‘म’ को समझदार, िज मेदार बनाने क वीकृ त होने से है। पर परता म जीने म
ममता और वा स य इन दोन भाव क ह आव यकता दखाई देती है, य क मानव ‘म’ और ‘शर र’ क
े संयु त
साकार प (सह-अि त व) म है। इस प म, शर र क आव यकता पू त क
े अथ म ममता का भाव है और म क
आव यकता क पू त क
े अथ म वा स य का भाव है। ममता और वा स य क
े भाव क सु नि चतता क
े साथ हम
अपने संबंधी क
े लये सहयोगी हो पाते ह, पूरक हो पाते ह। इन दोन म भी वा स य क
े भाव क धानता है
य क सह समझ और सह भाव क
े आधार पर ह कसी मानव क
े तृ त होने क संभावना होती है। सफ सु वधा
क
े आधार पर कये गये सहयोग से, सफ शर र क
े पोषण-संर ण क
े लये कये गये सहयोग से मानव क
े तृि त
क नरंतरता नह ं है। अतः ममता क
े साथ-साथ वा स य को सु नि चत करना अ नवाय है। अपने स बंधी क
े साथ
जीते हुए मु य मु ा उसे सह समझने एवं जीने क
े लए अनुक
ू लता दान करना है, ता क वह भी समझदार एवं
िज मेदार होकर नरंतर तृि त पूवक जी सक
े तथा दूसर को इस अथ म ेरणा दे सक
े ।
उदारता – ममता क
े श ट मू य को उदारता क
े प म पहचाना गया है। संबंधी क
े शर र क
े पोषण-संर ण क
वीकृ त होने पर आव यकतानुसार सु वधा (भौ तक-रासाय नक व तु) या सेवा क
े प म जो भी सहयोग करना
होता है, उसको करने क
े लये हम सतत त पर होते ह और उसको सु नि चत भी करते ह। तफल क अपे ा
कये बना सु वधा या सेवा को अपनी ओर से उपल ध कराने को उदारता नाम दया गया है। साथ ह ऐसी
उदारता क
े नवाह म हम उ सव का अनुभव करते ह। उदाहरण क
े प म हम अपने घर म देख तो ब च क
े
लये, माता- पता, बुजुग , बूढ क
े लये इस भाव क
े तहत आव यकतानुसार व तु या सेवा को उपल ध करा पाते
ह। इसी आधार पर हमारा अगल और पछल पीढ क
े साथ िज मेदा रय का ठ क ठ क नवाह हो पाता है।
सहजता - वा स य क
े श ट मू य को सहजता क
े प म पहचाना गया है। जब संबंधी क
े प म हम दूसरे क
े ‘म’
को समझदार िज मेदार बनाने म सहयोग करने क सोचते ह तो मह वपूण बात यह समझ म आती है क दूसरा
हमार बात को बाद म देखता है; हमारे आचरण, हमारे यवहार, हमारे जीने को पहले देखता है। इस प म, दूसरे
तक अगर समझ को सं े षत करना है, तो उसक पहल ज रत यह है क म खुद उस समझ क
े साथ, उस भाव
क
े साथ, उस वचार क
े साथ जीऊ
ँ । वयं क
े सह समझ और भाव, वचार क
े साथ जीने को सहजता नाम दया
गया है।
वा स य क ि थ त म जीते हुए हमारे अंदर सहजता होती है। इसको दूसरे अथ म ऐसे भी देख सकते ह क इस
पर परता म, इस संबंध म वा स य क
े साथ जीते हुए हमारे अंदर यह अ भमान या अहंकार नह ं होता क ‘ये
मुझे आता है और तुमको नह ं आता’; ‘हम को पता है और तुमको नह ं पता। बि क, संबंध म वीकृ त क
े तहत,
जो-जो हम को पता होता है, उसे हम दूसर को सखाना ह चाहते ह, समझाना ह चाहते ह, बताना ह चाहते ह।
इस ि थ त को सहजता क
े प म पहचाना है।
वा स य क यह अ भ यि त तब सु नि चत हो पाती है, जब दूसरा समझदार क
े िजस तर पर खड़ा है, उसी
तर पर आकर हम संवाद याकलाप को करते ह। अतः सहजता का ता पय अपनी समझ क
े आधार पर वयं
वैसा जीने से है, दूसरे को अपने जैसा वीकार पाने से है और सामने वाले क मनःि थ त को पहचान कर, उसक
ि थ त-प रि थ त और यो यता का आंकलन कर वहां से उसको आगे बढने म सहयोग कर पाने से है।
सामा यतः य द हमारा आचरण एवं यवहार सह होता है, तो हमारे स बंधी म हमसे सीखने, समझने क
िज ासा होती ह है। वह समझने क
े लए इ छ
ु क होता ह है। क
ु छ जगह पर हम धीरे-धीरे उनम इस ओर यान
दलाकर इ छा बनानी भी पड़ती है।
इनक
े साथ हमने तीन अ य भाव को ा, गौरव और कृ त ता क
े प म पहचाना था।
ा – इस भाव का ता पय े ठता क वीकृ त होने से है। जहाँ कह ं भी हम दूसरे मनु य म े ठता दखाई
देती है, उसक वीकृ त क
े भाव को ा क
े प म पहचाना गया है। े ठता का ता पय वयं से लेकर प रवार,
समाज, पूर कृ त, अि त व क यव था को ठ क-ठ क समझने और इन सभी तर पर यव था पूवक जी पाने
क यो यता होना है। य क यव था को समझ कर, यव था पूवक जीने क
े आधार पर हम वयं म भी तृ त
होते ह और पर परता म पूरकता क
े अथ म, सहयोग क
े अथ म, सवशुभ क
े अथ म ठ क-ठ क भागीदार कर पाते
ह। े ठता को दूसरे म देख पाने क
े आधार पर वयं म जो भाव उभरता है, उसे ा क
े प म पहचानते ह।
ा का भाव होने पर हमार दूसरे से सीखने–समझने क न ठा और त परता बनती है।
पू यता (पूजा) – ा क
े श ट मू य को पू यता क
े प म पहचाना गया है। जहाँ कह ं भी दूसरे म हम को
े ठता दखाई देती है, दूसरा सह समझा हुआ, सह जीता हुआ, वयं म तृ त दखाई देता है; तो उस तृि त को
वयं म पाने क
े लए हम दूसरे से सीखना–समझना और उस े ठता को वयं म वक सत करना चाहते ह ह।
दूसरे से सीखने–समझने क
े लये स य होने, याशील होने को पू यता श द से इं गत कया गया है। अतः
पू यता का ता पय दूसर से समझदार क
े अथ म सहयोग लेकर वयं वक सत होने क
े लए यास करने से है,
जो मशः अनुशरण, अनुकरण से शु होकर आ ापालन, अनुशासन से होते हुए वानुशासन तक पहुंचता है।
गौरव – ा क
े साथ ह हमने गौरव को समझने का यास कया था। िजन अंशो म भी कसी ने े ठता क
े लये
यास कया है, उस म िजतनी सफलता हा सल हुई है- उस अथ म हमारे अंदर उस क
े त गौरव का भाव
सु नि चत होता है। यह गौरव का भाव आज क
े लोग क
े लए भी होता है और पहले भी समाज म िजन लोग ने
े ठता क
े लए काम कया है, उनक
े लए भी होता है। आज क
े लोग या पूवज , बुजुग म से िज ह ने भी
लोकक याण, याय, यव था को सु नि चत करने क
े संदभ म मह वपूण योगदान दया है, उनक
े त वाभा वक
प से गौरव का भाव उमड़ता है। संबंध को नह ं देख पाने क
े कारण, संबंध म इस े ठता क
े लये यास क
वीकृ त नह ं हो पाने क
े कारण आज क
े दन समाज म ऐसे लोग क
े लए गौरव का भाव होने क
े बदले कई बार
ई या और मा सय का भाव दखाई देता है। गौरव क
े भाव क
े तहत जहाँ कह ं भी े ठता क
े लये यास हो पाता
है, हम उसको वीकार पाते ह, उसक शंसा कर पाते ह।
वंदना (सरलता) – गौरव क
े श ट मू य को सरलता क
े प म पहचाना गया है। जब कभी भी हमको दूसरे म
कसी भी अंश म े ठता दखाई देती है, दूसरा े ठता क
े लये यास करता हुआ दखाई देता है, तो उसक
वीकृ त को हमने गौरव क
े प म पहचाना था। दूसरे म इस े ठता को देख पाने क
े आधार पर हमारे अंदर
अ भमान का, अहंकार का अभाव होता है य क अ भमान या अहंकार का ता पय ह है– ‘म े ठ हूँ, दूसरा ने ट
है’; ‘म अ धक हूँ, दूसरा कम है’। यह भाव/ वीकृ त ह हमारे अंदर अ भमान या अहंकार को उ प न करती है।
दूसरे म े ठता को देख पाने क
े आधार पर हमारा वयं का अ भमान/ अहंकार समा त होने लगता है। ऐसी
ि थ त को सरलता क
े प म पहचाना गया है। सरलता क इस ि थ त म हमार भाषा, भं गमा, मु ा, अंगहार
आ द वतः ह यवि थत एवं संतु लत होने लगते ह। साथ ह इस गौरव क
े भाव को जब हम य त करते ह, तो
वह अगले यि त क वंदना क
े प म य त होता है। यह वंदना गीत, संगीत, कहानी, नाटक आ द व वध प
म हो सकती है। यहाँ वंदना का ता पय झूठ चापलूसी करने से नह ं है; बि क जो स गुण उनम ह, उसका सह -
सह वणन करने से है। इससे हमारा भी उन स गुण पर यान जाता है तथा हम भी उन गुण को वयं म
धारण करने क ेरणा मलती है। साथ ह इससे समाज म भी े ठता क
े लए ेरणा मलती है।
कृ त ता – इस भाव का ता पय दूसरे से मलने वाले सहयोग को देख पाने से है, पहचान पाने से है। अभी
सामा य प से जब हम जी रहे होते ह, तो दूसर से जहाँ कह ं भी सहयोग नह ं मलता है- उन बंदुओं पर ह
हमारा यादा यान जाता है। तथा जहाँ कह ं भी दूसरे से सहयोग मलता है, उन बंदुओं पर हम सामा य प से
कम यान देते ह। कृ त ता का भाव होने क
े लये यह आव यक है क पर परता म मलने वाले सहयोग को हम
पहचान सक। इस सहयोग को ठ क-ठ क पहचानने क
े आधार पर ह अगले मनु य का सट क आँकलन होता है क
पर परता म जीते हुए उसने हमारे साथ संबंध का कतना नवाह कया और कतना नह ं कर पाया। जब हम
‘ कये हुए’ भाग को न देख कर सफ ‘नह ं कये हुए’ भाग को ह देखते ह, तो हमारे पास एक दूसरे क शकायत
क एक लंबी सूची (list) इक ी हो जाती है। अतः कृ त ता क
े भाव का ता पय पर परता म मलने वाले सहयोग
को देख पाने से है, वीकार पाने से है।
सौ यता – कृ त ता क
े श ट मू य को सौ यता क
े प म पहचाना गया है। सौ यता का ता पय है, वे छा से
वयं को नयं त, यवि थत प म तुत करने का यास करना। जहाँ कह ं भी हमको दूसरे से सहयोग मलता
हुआ दखाई देता है, िजन संबंधो म भी दूसरा हमको हमारे सहयोगी क
े प म दखाई देता है, उन संबंध म हम
वयं भी अपनी ओर से यवि थत होकर जीने का यास करते ह ह। िजन-िजन स बंध म हमारे अंदर कृ त ता
का भाव वक सत होने लगता है, कम से कम उन-उन लोग क
े साथ जीते हुए हम अपनी ओर से यवि थत होने
का यास करते ह ह, भले ह अ य संबंध म नह ं कर पा रहे ह । यह सौ यता है। सौ य आचरण क शु आत,
कृ त ता क अ भ यि त क
े प म वाभा वक प से हो पाती है।
इस क
े साथ हम लोग ने अंत म ेम मू य को समझने का यास कया था।
ेम – इस भाव का ता पय हर कसी क
े साथ वंय को जुडा हुआ देख पाने से है। अि त व को सह-अि त व क
े
प म देख पाने क
े आधार पर, मनु य को सह-अि त व क
े एक अ वभा य भाग क
े प म देख पाने क
े आधार
पर हर कसी का वयं क
े साथ जुड़ाव समझ म आता है। पूर मानव-जा त क
े साथ अपने को जुड़ा हुआ देख
पाना, हर मनु य क
े साथ अपने संबंध को वीकार पाना, वयं म महसूस कर पाना; इस को ेममयता क
े भाव क
े
प म पहचाना है। ेममयता क ि थ त म हम हर कसी क
े साथ सतत जुड़ाव महसूस होता है, और हर संबंध म
ि थ त-प रि थ त वश िजन िज मेदा रय का, िजन अपे ाओं का नवाह करना होता है, हम उस नवाह को
सट कता क
े साथ कर पाते ह।
ेम क
े भाव/ मू य को पूण मू य क
े प म पहचाना गया है, य क यहाँ भाव क पूणता हो पाती है। ेम क
े
वयं म सु नि चत होने क
े आधार पर हम शेष सभी मू य का आव यकता अनुसार नवाह कर पाते ह। इस प
म देख तो शेष सभी मू य, ेम क ह कारा तर से या न अलग-अलग ि थ त-प रि थ त म, अलग-अलग कार
से क गई अ भ यि त है।
अन यता – ेम क
े श ट मू य को अन यता क
े प म पहचाना गया है। अन यता का ता पय है ‘न अ य’ या न,
कोई दूसरा नह ं ह- ऐसा वयं म वीकृ त होने से है। इस को अगर दूसर भाषा म कह तो, ‘सभी अपने ह, सभी
हम से जुडे हुए ह’ इस भाव को अन यता क
े प म पहचाना है। ेम क अ भ यि त अन यता क
े प म दखाई
देती है। अन यता क
े भाव क
े तहत हम अपने-पराये क
े द वार से मु त हो पाते ह। अभी जा त क
े आधार पर,
भाषा क
े आधार पर, धम क
े आधार पर, रंग और न ल क
े आधार पर, धन एवं पद क
े आधार पर हमने जो
समुदाय बना रखे ह, ये सभी भेद ेम क अनुभू त पूवक अन यता क
े भाव म ि थर होने क
े आधार पर हमार
मान सकता म ख म हो जाते ह।
ेम और अन यता ह अख ड समाज का आधार
ेम और अन यता का भाव अखंड समाज का आधार है। समाज म हर कसी क
े साथ जुड़ पाने क
े लये ेम और
अन यता का वयं क मान सकता म होना आव यक है। इसम मह वपूण बात समझने क यह है क ेम और
अन यता क
े भाव म होने क
े बावजूद भी हमारा जीना तो क
ु छ लोग क
े साथ ह होता है। य द हमम ेम और
अन यता का भाव सवमानव क
े लये ि थर है, तो िजस मानव क
े साथ हम जी रहे ह, िजस देश, काल,
प रि थ त म जी रहे ह, उन सभी मानव क
े साथ हम संबंध का ठ क-ठ क नवाह कर पाते ह, उस संबंध म
अपनी ओर से अपे ाओं, दा य व और कत य को पूरा कर पाते ह।
स बंध (पर परता) म यूनतम अपे ा
व वास, स मान एवं नेह मू य को सा य मू य क
े प म पहचाना गया है, य क हर संबंध म यूनतम
इनक अपे ा होती ह है। इन तीन मू य क वीकृ त क आव यकता हर संबंध म, हर संपक म, हर पर परता
म, हर समय महसूस होती ह है। इस प म इ ह हर संबंध म अपे त सा य मू य क
े प म पहचाना गया है।
व वास से लेकर ेम तक इन मू य को देख, तो इन मू य क
े अपने म सु नि चत होने क
े आधार पर हमारे
आचरण क ि थरता हो पाती है, नि चतता हो पाती है; न क सफ इसको दूसर से पाने क अपे ा रखने क
े
आधार पर। इन मू य क
े वयं म सु नि चत होने क
े आधार पर ह हमारे भाव- वचार म भी संगीतमयता क
ि थ त बनी रहती है, जो हमारे वयं क
े सुख का कारण बनती है।
कृ त ता- ब च म मू य का अंक
ु रण
इसक
े साथ यह भी समझ लेने क ज रत है क सामा य प से जब हम संबंध म एक ब चे क
े प म अपनी
शर र-या ा क शु आत करते ह, तो कृ त ता का भाव ह वह मुख भाव है, जो हमको संबंध म दूसरे से जुड़ने म
सहयोग करता है। एक ब चे क
े प म जीते हुए जब हमको यह दखता है क माता- पता से, गु से, बड़े भाई-
बहन से, प रवार और समाज से हम को बहुत सारा सहयोग मल रहा है, तो दूसरे से मलने वाले सहयोग को
देखकर उस ब चे म उनक
े त संबंध क वीकृ त होती है, संबंध म आ वि त होती है, एक भरोसा बनता है।
संबंध म दूसर से मलने वाले इस सहयोग को देख पाने क
े आधार पर कृ त ता का भाव ब चे म वतः ह
वक सत होता है, जहाँ से संबंध म जुड़ने क शु आत हो पाती है। परंपरा क
े प म देख, तो एक ब चे क
े लये
या अगल पीढ क
े लये कृ त ता वह मू य है, िजसक
े आधार पर वह पछल पीढ क
े साथ अपने को जुड़ा हुआ
महसूस कर पाता है; उनक
े साथ अपने संबंध को वीकार पाता है, उस संबंध म आ वि त को महसूस कर पाता
है।
समापन
पर परता म व वास से ले कर ेम तक इन मू य क
े आधार पर जी पाना ह हमारे यवहार क
े ि थर होने का,
नि चत होने का, यवि थत होने का आधार है। सभी नौ था पत मू य क अ भ यि त मशः उपरो त नौ
श ट मू य क
े प म दखाई देती है और इन अठारह मू य क
े साथ जीने से संबंध म तृि त क नरंतरता बनी
रहती है। आप लौट कर देख सकते ह क इन अठारह मू य क
े अभाव से ह संबंध म कह ं न कह ं सम या होती
है, शकायत होती है। प रवार तथा समाज म स बंध का आधार होने क
े कारण इन मू य को सि म लत प से
समाज-मू य भी कहा जाता है। इन अठारह मू य म जो नौ श ट मू य ह, इनक
े आधार म मशः नौ था पत
मू य ह। था पत मू य जब श ट मू य क
े साथ कट होते ह, तो पर परता म दूसर तक पहुंच पाते ह,
सं े षत (communicate) हो पाते ह। इस प म श ट मू य का मह व है। वयं म था पत मू य क
े प म
भाव होना और दूसरे क
े वारा उसक पहचान हो पाना; इन दोन क
े बीच क
े सेतु क
े प म श ट मू य दखाई
देते ह। दूसरे श द म, अपने म भाव होना और दूसरे का उसको पहचान पाना- इन दो ुव को जोड़ने वाल कड़ी
क
े प म श ट मू य ह।
मानवीय यवहार
था पत मू य और श ट मू य पूवक पर परता म अ भ य त होना ह मानवीय यवहार है तथा इससे अ यथा
अ भ यि त ह अमानवीय यवहार है। मानव का मानव क
े साथ सह-अि त व को देख पाना, जुड़ाव को देख पाना,
पूरकता को देख पाना ह संबंध क पहचान का ता पय है। संबंध क पहचान क
े अनंतर हम संबंध म अपे त
मू य का नवाह कर पाते ह। इस नवाह को अपनी ओर से कर पाना ह मानवीय यवहार है। ऐसे मानवीय
यवहार क
े नवाह से पर परता म पूरकता सु नि चत हो पाती ह।
इन मू य क
े नवाह का ता पय था पत मू य (जो व वास से लेकर ेम तक ह) को अपने म सु नि चत करना
है और श ट मू य (जो सौज यता से ले कर अन यता तक ह) को पर परता म जीते हुए अ भ य त करना है।
संबंध म अपनी ओर से याय को सु नि चत करने का ता पय है- था पत मू य को वयं म सु नि चत करते
हुए श ट मू य पूवक जीना। हमारे ऐसे जीने को पर परता म दूसरा मनु य भी मू यांकन कर पाता है और हम
खुद भी मू यांकन कर पाते ह। वयं क
े मू यांकन म जब ये बात दखती है क म मू य का ठ क-ठ क नवाह
कर पाया तो यह वयं क तृि त का आधार बनता है। इसी तरह पर परता म दूसरा मनु य जब उसका ठ क-ठ क
मू यांकन कर पाता है, तो यह दूसरे क तृि त म भी सहायक होता है। इस प म हम दोन क तृि त अथात ्
उभय तृि त सु नि चत हो पाती है। था पत मू य वयं म बने रहते ह, श ट मू य पर परता म अ भ य त होते
समय दखाई देते ह। था पत मू य और श ट मू य को अपनी ओर से सु नि चत कर पाना ह याय का
अपनी ओर से नवाह करना है।
हम सभी इन भाव को समझ कर वयं म सु नि चत कर सक, पर परता म जीते हुए इसे अपनी ओर से य त
कर सक तथा दूसर को भी ऐसा समझने एवं जीने क ेरणा दे सक, इसी मंगलकामना क
े साथ-
13 अ ैल 2020 जीवन व या त ठान, गो वंदपुर (खार )- बजनौर, उ. .

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  • 1. संबंध म भाव (मू य) समाज मू य ( था पत एवं श ट मू य) इससे पूव क े लेखन म हमलोग ने मानव-मानव स बंध को पहचानने का यास कया था। मानव-मानव संबंध ह प रवार एवं समाज का आधार है, इस बात क तरफ इशारा कया था। इस ृंखला म अब हम प रवार-समाज मू य पर काश डालते ह, जो स बंध नवाह अथात यायपूण मानवीय यवहार क बु नयाद ह। इस लए इनको समाज मू य भी कहा जाता है। समाज म प रवार समा हत रहता ह है। यवहार का आधार भाव-मू य संबंध म आपसी यवहार को देख, तो यवहार क े मूल म हमारा भाव (मू य) होता है। अगर हमारा भाव सह होता है, तो आपस म यवहार करते हुए हम उसे ठ क-ठ क य त कर पाते ह। अगर हमारा भाव ठ क नह ं होता है, तो इसक े आधार पर हमारा यवहार भी ग़लत हो जाता है। साथ ह यह भी दखाई देता है क अगर हमारा भाव ठ क नह ं हो और भले ह हम यवहार म श टाचार पूवक उसे य त नह ं कर; फर भी वह हमारे अंदर ‘ वयं म परेशानी’ का कारण बनता है। अतः संबंध म जो सहज प म वीकृ त भाव ह उनका अभाव होने पर हम पर परता म उस अभाव को य त ना भी कर, तो भी वो हमारे दुःख का कारण बनता ह है; य क िजतनी देर तक हम अ यथा (संबंध म सहज वीकृ त भाव क े वपर त) भाव और वचार म जी रहे होते ह, हम सम या त होते ह। न कष क े प म दो बात समझ म आती ह- 1. पर परता म अपने यवहार क े ठ क होने क े लए अपने भाव और वचार का ठ क होना ज र है। 2. पर परता म हम यवहार क े प म य त न भी हो रहे ह , तो भी अपनी तृि त क नरंतरता को सु नि चत करने क े लये, अपने अंदर तालमेल (संगीतमयता) को सु नि चत करने क े लये सह भाव और वचार का होना ज र है। भाव क सूची अब अगला न यह बनता है क पर परता म कौन-कौन से भाव ह, जो हमको वयं म वीकृ त होते ह और िजनक े आधार पर ‘म’ (self) क याओं म संगीतमयता सु नि चत होती ह? ये भाव मशः व वास-सौज यता, स मान-मू यांकन, नेह- न ठा, ममता-उदारता, वा स य-सहजता, ा-पू यता, गौरव-वंदना/सरलता, कृ त ता- सौ यता और ेम-अन यता ह। संबंध म इन भाव क वीकृ त और पहचान ये दोन ह ‘म’ म होने वाल याएँ ह। अतः ये भाव मूलतः ‘म’ म सु नि चत होने वाल या ह। साथ ह पर परता म जब हम इन भाव को य त करते ह, तो सामने दूसरा ‘म’ ह है, जो इन भाव को पहचानता है, आंकलन करता है और इस क े आधार पर अपने म सुख या दुख को महसूस करता है। हम एक-एक करक े इन भाव क े बारे म सं ेप म बात करगे। इन भाव क े नाम ता लका प म नीचे दये गये ह। लोकवाता एवं मै ी संवाद ृंखला- 8
  • 2. समाज मू य था पत मू य श ट मू य (ि थ त मू य) (ग त मू य) व वास सौज यता स मान मू यांकन (अरह यता) नेह न ठा ममता उदारता वा स य सहजता ( प टता) ा पू यता गौरव वंदना (सरलता) कृ त ता सौ यता ेम अन यता था पत एवं श ट मू य ये सभी भाव दो-दो क े समूह म लखे हुए ह। इनम पहले को था पत मू य नाम दया गया है तथा दूसरे को श ट मू य। अतः व वास से लेकर ेम तक ये नौ भाव था पत मू य ह, जब क सौज यता से लेकर अन यता तक क े 9 भाव को श ट मू य कहा गया है। व वास से लेकर ेम को था पत मू य क े प म पहचाना गया है, य क ये भाव वयं म बने रहते ह। था पत होने का ता पय समझ क े अनंतर, वयं म इन भाव क े वीकृ त होने से है; इनक े नरंतर बने रहने से है। ये भाव वयं म नरंतर बने रहते ह, इस लए हमार अपनी तृि त क े आधार होते ह, वयं म तृि त क नरंतरता को सु नि चत करने क े ोत होते ह। इन था पत मू य को जब आपस म हम य त करने जाते ह, तो ये श ट मू य क े प म अ भ य त होते ह। इन मू य को श ट मू य क े प म इस लए पहचाना जाता है य क इन मू य क े आधार पर जीते हुए हमार अ भ यि त श टतापूवक हो पाती है; पर परता म हमारे यवहार म श टता आ पाती है। दूसरे श द म कह तो, था पत मू य जब अपने जीने म बहने लगते ह, तो वतः ह श ट मू य का उदय होता है। ये श ट मू य पुनः यवहार एवं आचरण म दखते ह। इन सभी श ट मू य क े आधार क े प म था पत मू य ह ह। ये था पत मू य वयं म होते ह, तो अ भ यि त म श ट मू य का कटन होता है। था पत मू य क े वयं म अभाव होने से श ट मू य का भी अभाव हो जाता है। ि थ त-ग त इन मू य को मशः ि थ त या और ग त या क े नाम से भी जाना जाता है। सभी था पत मू य हमारे अंदर वयं क ि थ त क े , वयं क े होने क े अ वभा य भाग बन जाते ह- इस प म इ ह ि थ त या भी कहा जाता है। पर परता म इनक अ भ यि त श ट मू य क े प म दखती है, इस लए सभी श ट मू य को ग त या क े प म पहचानते ह। ग त या का ता पय ि थ त या को अ भ य त करने से है, पर परता म सं े षत करने से है, कट करने से है। सभी था पत मू य क े साथ (corresponding) एक-एक श ट मू य ह।
  • 3. अब हम इन भाव (मू य ) को एक-एक कर समझने का यास करगे। व वास – व वास का ता पय दूसरे मनु य क सहज प म वीकृ त चाहना/मंशा (intention) क े उपर लगातार ( नरंतर) भरोसा/आ वि त क े बने रहने से है। इसक े संदभ म अ ययन करने क े लए मानव क ‘चाहना (intention)’ और ‘यो यता (competence)’ को अलग-अलग करक े देखने क ज रत है। सामा य प से जब हम अपने को देखते ह, अपना आँकलन करते ह, तो हम अपनी चाहना को देखते ह। चाहना म वयं को सुखी करने क चाहना, पर परता म दूसरे को सुखी करने क चाहना को देखने एवं इस पर आ वि त बने रहने क े आधार पर यह न कष नकालते ह क ’ म ‘ ठ क हूँ’; ‘म अ छा आदमी हूँ’। वह ं जब हम दूसरे मनु य का आंकलन करने जाते ह, तब हम उस क ‘चाहना’ पर यान न देकर, उसक े ‘करने’ को देखते ह और ‘करने’ म जहाँ कह ं भी कमी दखाई देती है, उसका आंकलन करक े यह न कष नकाल लेते ह क उसक चाहना/मंशा (intention) ठ क नह ं है। अगर हम इस ‘चाहना (intention)’ और ‘करना (competence)’ (या ‘यो यता’) को अलग अलग कर देखने जाएँ तो यह समझ म आता है क यो यता क े तर पर कमी हमम भी है और दूसरे म भी। अपनी यो यता क े तर पर कमी को देखकर भी हम कभी अपनी चाहना पर शंका नह ं होती, बि क नरंतर आ वि त बनी रहती है। बाक लोग क ि थ त को देखकर यह भी समझ म आता है क हम सभी लोग को अपनी चाहना पर आ वि त बनी रहती है, कं तु दूसरे क चाहना पर शंका होती रहती है। इनक े न कष क े प म एक सामा य स ांत यह समझ म आता है क अगर चाहना और यो यता को अलग कर क े देख, तो मूलतः हर मानव वयं सुखी होना और दूसर को सुखी करना चाहता है- यह हम सबक मूल चाहना है। समझ क े अभाव म सह भाव को वयं म सु नि चत नह ं करने या संबंध म हर ि थ त-प रि थ त म भाव को क ै से सु नि चत कर इस बात क प टता न होने क े कारण, इन भाव को अपने सुख क े ोत क े प म नह ं देख पाने क े कारण हम अ यथा भाव क े साथ जी रहे होते ह और एक दूसरे क चाहना पर शंका करते रहते ह। दूसरे क चाहना क े ऊपर यह शंका अ व वास है। अतः व वास का ता पय हम िजन मनु य क े साथ जी रहे ह, उसक चाहना क े उपर आ वि त क े सतत बने रहने से है। स बंधी (दूसरे मनु य) क चाहना क े उपर य द हमार सतत आ वि त बनी रहती है और यो यता क े तर पर कमी दखाई देती है, तो हम उनक गल तय क े उपर ोध नह ं आता, खीज नह ं होती; बि क पर पर- पूरकता क े अथ म भागीदार क े , सहयोग क े बारे म हम सोच पाते है। सौज यता - व वास क े श ट मू य (ग त या) को सौज यता क े प म पहचाना गया है। सौज यता, सुजन श द से बना हुआ है, िजसका ता पय है- अ छा आदमी। सौज यता का ता पय एक-दूसरे को ज रत क े अनुसार सहयोग कर पाने से है। हम अपने लये इस बात को देख सकते ह क पर परता म जब हमार एक दूसरे क चाहना क े उपर आ वि त होती है, तो हम पर पर पूरकता क े अथ म, सहयोग कर पाने क े अथ म, सहभागी हो पाने क े अथ म, साथ-साथ मलकर क ु छ कर पाने को सोच पाते ह। वह ं दूसर ओर अगर व वास क े बदले हमारे अंदर अ व वास हो, शंका हो तो एक दूसरे का सहयोगी होने क े बदले, एक दूसरे क े त वरोध म ह हमारा अ धकांश समय चला जाता है। सहयोगी हो पाना, सहभागी हो पाना; इनको व तार करक े देख तो यवहार म सहयोग करने, काय म सहयोग करने, यव था म भागीदार म सहयोग करने, वचार म सहयोग करने, भाव और समझ क े तर पर सहयोग करने क े अथ म इसका फ ै लाव है। सहयोग क े भाव क े साथ जब हम पर परता म जीते ह, तो अपने-पराये क द वार टूटने लगती है और समाज अखंडता क ओर अ सर हो पाता है।
  • 4. स मान – इस भाव का ता पय आपस म जीते हुए एक दूसरे का सट क आंकलन कर पाने से है, स यक आंकलन कर पाने से है। इसक े तहत हम मनु य का आंकलन ‘म’ क े आधार पर करते ह, न क शर र क े आधार पर। ‘म’ क े आंकलन म म हम ‘म’ क मता (संभावना) और यो यता इन दोन का ह आँकलन करते ह। मता क े तर पर यह दखता है क जैसा म नरंतर सुख-समृ पूवक जीना चाहता हूँ, वैसा ह दूसरा मनु य भी जीना चाहता है। जैसे सह-अि त व क यव था को समझना या चारो तर (मानव, प रवार, समाज एवं कृ त) क यव था को समझना और यव था पूवक जीना मेरे सुखी होने का काय म है, वह दूसरे क े सुखी होने का भी काय म है। इ छा, वचार, आशा क या जैसे मुझम सतत चल रह है, वैसे ह दूसरे म भी चल रह है; इस प म सह समझने क मता हर मानव म है। अतः ल य क जगह पर, काय म क जगह पर, एवं याओं क नरंतरता (potential) क े तर पर हम एक समान ह। पर परता म िजस मनु य क े साथ हम जी रहे होते ह, उसक े साथ इन तीन जगह पर एक पता, समता को देख पाने क े आधार पर उसको अपने जैसा (समान) वीकार पाते ह। दूसरे को अपने जैसा वीकार पाना स मान क यूनतम जगह है। इन तीन क े साथ जब हम यो यता का आँकलन करने जाते ह, तब पाते ह क हमार यो यता या तो दूसरे से अ धक होती है, या दूसरे से कम होती है। इन दोन ह ि थ त म पर परता म पूरकता का नवाह हो सकता है। हमार यो यता दूसरे से कम होने पर हम सीखने–समझने को त पर होते ह- इस प म हमार पूरकता सु नि चत होती है। य द दूसरे क यो यता हम कम दखाई देती है तो सबसे पहले हम अपनी ओर से उसक े साथ िज मेदार पूवक जीते ह। हमारे िज मेदार पूवक जीने से दूसरे म संबंध क े त आ वि त बनती है, हमारे त आ वि त बनती है। इससे उस यि त म हमसे सीखने-समझने क े लये त परता बनती है। इस आधार पर हम दूसरे मनु य को क ु छ सीखने–समझने म सहयोग कर पाते ह। अतः ल य, काय म और मता क जगह पर हम एक समान ह, इस आधार पर दूसरे मनु य को हम अपने जैसा वीकार पाते ह। यो यता क जगह पर हममे थोड़ा अंतर है, पर वह आपसी पूरकता क े अथ म है। ये बात भी यहाँ ठ क-ठ क समझ म आती है क व वास क जगह पर चाहना म आ वि त होने क े आधार पर ह एक दूसरे क े सट क आंकलन क संभावना बनती है। अगर हमारा एक दूसरे क चाहना पर ह आ वि त न हो, व वास क जगह अ व वास का भाव हो, तो जाने–अनजाने हम अपना अ धमू यन (over evaluation) करते ह और दूसरे का अवमू यन (under evaluation) करते ह। यह काम दूसरा भी करता है। इस प म पर परता म स यक आंकलन अथात ् स मान का अभाव होता है। ऐसी ि थ त म हम आपस म वरोध, संघष म जीते ह। मू यांकन (अरह यता) – स मान क े श ट मू य को मू यांकन (अरह यता) क े प म पहचाना गया है। इसका ता पय पर परता म एक-दूसरे का सट क आंकलन होने से है; दूसरे श द म सभी कार क े रह य का अभाव होने से है। स मान पूवक जब हम एक दूसरे का ठ क-ठ क आंकलन कर पाते ह, तो उसक अ भ यि त सह मू यांकन क े प म होती है। सामा य भाषा म कह, तो पर परता म जीते हुए हमारा अपने बारे म और दूसरे क े बारे म क ु छ आंकलन होता है। इसी तरह दूसरे का अपने बारे म और हमारे बारे म क ु छ आंकलन होता ह। सह आँकलन (अरह यता) वो ि थ त है, जहाँ मेरा अपने बारे म जो आंकलन होता है और दूसरे का मेरे बारे म जो आंकलन होता है- वो दोनो एक प होते है, समान होते ह। इसी तरह से, मेरा दूसरे क े बारे म आंकलन और उसका वयं क े बारे म आंकलन समान होता है, एक जैसा होता है। साथ-साथ दोन को यह भी पता होता है क हम दोन क े पास एक दूसरे का आंकलन है। इस ि थ त को अरह यता क े प म पहचाने ह।
  • 5. सट क अथ म देख तो पर परता म पूरकता क े अथ म काय म को ठ क से बना पाने क े लये इस तरह का आंकलन होना (हमारा वयं क े त जो आंकलन है, वह दूसरे का मेरे बारे म आंकलन होना और अगले का जो आंकलन मने कया है, वह उसका वयं क े त आंकलन होना) आव यक है। तभी हम पर परता म नि चत काय म को बना सकते ह और एक दूसरे क े लए पर पर-पूरकता क े अथ म नि चत भू मकाओं का नवाह कर सकते ह। य द कसी कारण से हमारे आपसी आँकलन म समानता नह ं होती है, तो हम वयं का तथा दूसरे का फर से जाँच-परख करते ह, अपने न कष पर पुन वचार करते ह तथा अपने आँकलन को चचा एवं संवाद पूवक और बेहतर बनाने क े लए यास करते ह। नेह - व वास और स मान क े साथ हम जीते ह तो हमार एक दूसरे क चाहना क े उपर आ वि त बनी रहती है। हम एक-दूसरे क मता को समान देख पाते ह, यो यता क जगह पर पर परता म पूरकता को देख पाते ह। इतनी समझ (background) क े साथ, अब हर दूसरा मनु य िजसक े साथ हम जी रहे होते ह, वह हम अपने संबंधी क े प म दखाई पड़ता है, उसक े साथ हम अपना जुडाव देख पाते ह। सामा य प से भी देख तो आज क े दन यावहा रक धरातल पर भी मानव जा त काफ जुड गई है। हमारा जीना एक दूसरे क पर परता म काफ घुल मल सा गया है, जहाँ हम अनेक याकलाप क े लये एक दूसरे पर नभर ह। आज क े समाज म तो यह नभरता पूरे व व तक फ ै ल गयी है। पर परता म दूसरे को संबंधी क े प म वीकार पाने को नेह क े भाव क े प म पहचाना है। व वास और स मान क े वयं म सु नि चत होने क े आधार पर हम दूसरे मनु य को अपने से जुडा हुआ देख पाते ह- इस प म नेह का भाव हमारे अंदर ि थर होता है। नेह क े भाव क े साथ हम आपस म कसी-न- कसी काय म से जुड़ जाते ह। अतः एक-दूसरे क े सहयोगी होने क शु आत हो जाती है। न ठा - नेह क े श ट मू य को न ठा क े प म पहचाना गया है। दूसरे को संबंधी क े प म वीकारने क पहचान इस प म दखाई देती है क उस संबंध म िजन कत य का हमको नवाह करना होता है, िजन दा य व का नवाह करना होता है, िजन िज मेदा रय का, िजन अपे ाओं का नवाह करना होता है, उन सभी अपे ाओं का हम स नता पूवक, उ सव क े साथ नवाह करते ह। अपनी उन िज मेदा रय को नवाह करने क े लये हम न ठाि वत होते ह। इस प म नेह क ग त या को न ठा क े प म पहचाना गया है। दूसरा जब हमको संबंधी क े प म दखता है, तब उस संबंध म अपनी ओर से िज मेदा रय का नवाह करक े हम स न होते ह और इस िज मेदार - नवाह को हम वयं फ ू त ढ़ंग से करना ह चाहते ह। अतः न ठा क ये दो मूलभूत पहचान दखाई देती है– 1. हम िज मेदा रय का नवाह वयं फ ू त ढंग से करना चाहते ह, न क कसी दबाव या भाव क े कारण 2. उन िज मेदा रय का नवाह करक े हमे वयं म तृि त महसूस होती है, स नता महसूस होती है। इसक े वपर त जब भी नेह का भाव नह ं होता है, तब संबंध म हमको िजन छोट -छोट िज मेदा रय का भी नवाह करना होता है वो हम बोझ जैसा लगता है और उसम हम हर ण यह हसाब मलाते रहते ह क दूसरा मेरे लये कतना करता है, और म दूसर क े लये कतना करता हूँ। ममता और वा स य – संबंध क वीकृ त क े साथ, नेह क े भाव क े साथ अपनी िज मेदा रय क समझ पूवक वीकृ त ममता और वा स य क े भाव क े प म दखाई देता है।
  • 6. ममता क े भाव का ता पय अपने संबंधी क े शर र क े पोषण-संर ण क वीकृ त होने से है; जब क वा स य क े भाव का ता पय अपने संबंधी क े ‘म’ को समझदार, िज मेदार बनाने क वीकृ त होने से है। पर परता म जीने म ममता और वा स य इन दोन भाव क ह आव यकता दखाई देती है, य क मानव ‘म’ और ‘शर र’ क े संयु त साकार प (सह-अि त व) म है। इस प म, शर र क आव यकता पू त क े अथ म ममता का भाव है और म क आव यकता क पू त क े अथ म वा स य का भाव है। ममता और वा स य क े भाव क सु नि चतता क े साथ हम अपने संबंधी क े लये सहयोगी हो पाते ह, पूरक हो पाते ह। इन दोन म भी वा स य क े भाव क धानता है य क सह समझ और सह भाव क े आधार पर ह कसी मानव क े तृ त होने क संभावना होती है। सफ सु वधा क े आधार पर कये गये सहयोग से, सफ शर र क े पोषण-संर ण क े लये कये गये सहयोग से मानव क े तृि त क नरंतरता नह ं है। अतः ममता क े साथ-साथ वा स य को सु नि चत करना अ नवाय है। अपने स बंधी क े साथ जीते हुए मु य मु ा उसे सह समझने एवं जीने क े लए अनुक ू लता दान करना है, ता क वह भी समझदार एवं िज मेदार होकर नरंतर तृि त पूवक जी सक े तथा दूसर को इस अथ म ेरणा दे सक े । उदारता – ममता क े श ट मू य को उदारता क े प म पहचाना गया है। संबंधी क े शर र क े पोषण-संर ण क वीकृ त होने पर आव यकतानुसार सु वधा (भौ तक-रासाय नक व तु) या सेवा क े प म जो भी सहयोग करना होता है, उसको करने क े लये हम सतत त पर होते ह और उसको सु नि चत भी करते ह। तफल क अपे ा कये बना सु वधा या सेवा को अपनी ओर से उपल ध कराने को उदारता नाम दया गया है। साथ ह ऐसी उदारता क े नवाह म हम उ सव का अनुभव करते ह। उदाहरण क े प म हम अपने घर म देख तो ब च क े लये, माता- पता, बुजुग , बूढ क े लये इस भाव क े तहत आव यकतानुसार व तु या सेवा को उपल ध करा पाते ह। इसी आधार पर हमारा अगल और पछल पीढ क े साथ िज मेदा रय का ठ क ठ क नवाह हो पाता है। सहजता - वा स य क े श ट मू य को सहजता क े प म पहचाना गया है। जब संबंधी क े प म हम दूसरे क े ‘म’ को समझदार िज मेदार बनाने म सहयोग करने क सोचते ह तो मह वपूण बात यह समझ म आती है क दूसरा हमार बात को बाद म देखता है; हमारे आचरण, हमारे यवहार, हमारे जीने को पहले देखता है। इस प म, दूसरे तक अगर समझ को सं े षत करना है, तो उसक पहल ज रत यह है क म खुद उस समझ क े साथ, उस भाव क े साथ, उस वचार क े साथ जीऊ ँ । वयं क े सह समझ और भाव, वचार क े साथ जीने को सहजता नाम दया गया है। वा स य क ि थ त म जीते हुए हमारे अंदर सहजता होती है। इसको दूसरे अथ म ऐसे भी देख सकते ह क इस पर परता म, इस संबंध म वा स य क े साथ जीते हुए हमारे अंदर यह अ भमान या अहंकार नह ं होता क ‘ये मुझे आता है और तुमको नह ं आता’; ‘हम को पता है और तुमको नह ं पता। बि क, संबंध म वीकृ त क े तहत, जो-जो हम को पता होता है, उसे हम दूसर को सखाना ह चाहते ह, समझाना ह चाहते ह, बताना ह चाहते ह। इस ि थ त को सहजता क े प म पहचाना है। वा स य क यह अ भ यि त तब सु नि चत हो पाती है, जब दूसरा समझदार क े िजस तर पर खड़ा है, उसी तर पर आकर हम संवाद याकलाप को करते ह। अतः सहजता का ता पय अपनी समझ क े आधार पर वयं वैसा जीने से है, दूसरे को अपने जैसा वीकार पाने से है और सामने वाले क मनःि थ त को पहचान कर, उसक ि थ त-प रि थ त और यो यता का आंकलन कर वहां से उसको आगे बढने म सहयोग कर पाने से है।
  • 7. सामा यतः य द हमारा आचरण एवं यवहार सह होता है, तो हमारे स बंधी म हमसे सीखने, समझने क िज ासा होती ह है। वह समझने क े लए इ छ ु क होता ह है। क ु छ जगह पर हम धीरे-धीरे उनम इस ओर यान दलाकर इ छा बनानी भी पड़ती है। इनक े साथ हमने तीन अ य भाव को ा, गौरव और कृ त ता क े प म पहचाना था। ा – इस भाव का ता पय े ठता क वीकृ त होने से है। जहाँ कह ं भी हम दूसरे मनु य म े ठता दखाई देती है, उसक वीकृ त क े भाव को ा क े प म पहचाना गया है। े ठता का ता पय वयं से लेकर प रवार, समाज, पूर कृ त, अि त व क यव था को ठ क-ठ क समझने और इन सभी तर पर यव था पूवक जी पाने क यो यता होना है। य क यव था को समझ कर, यव था पूवक जीने क े आधार पर हम वयं म भी तृ त होते ह और पर परता म पूरकता क े अथ म, सहयोग क े अथ म, सवशुभ क े अथ म ठ क-ठ क भागीदार कर पाते ह। े ठता को दूसरे म देख पाने क े आधार पर वयं म जो भाव उभरता है, उसे ा क े प म पहचानते ह। ा का भाव होने पर हमार दूसरे से सीखने–समझने क न ठा और त परता बनती है। पू यता (पूजा) – ा क े श ट मू य को पू यता क े प म पहचाना गया है। जहाँ कह ं भी दूसरे म हम को े ठता दखाई देती है, दूसरा सह समझा हुआ, सह जीता हुआ, वयं म तृ त दखाई देता है; तो उस तृि त को वयं म पाने क े लए हम दूसरे से सीखना–समझना और उस े ठता को वयं म वक सत करना चाहते ह ह। दूसरे से सीखने–समझने क े लये स य होने, याशील होने को पू यता श द से इं गत कया गया है। अतः पू यता का ता पय दूसर से समझदार क े अथ म सहयोग लेकर वयं वक सत होने क े लए यास करने से है, जो मशः अनुशरण, अनुकरण से शु होकर आ ापालन, अनुशासन से होते हुए वानुशासन तक पहुंचता है। गौरव – ा क े साथ ह हमने गौरव को समझने का यास कया था। िजन अंशो म भी कसी ने े ठता क े लये यास कया है, उस म िजतनी सफलता हा सल हुई है- उस अथ म हमारे अंदर उस क े त गौरव का भाव सु नि चत होता है। यह गौरव का भाव आज क े लोग क े लए भी होता है और पहले भी समाज म िजन लोग ने े ठता क े लए काम कया है, उनक े लए भी होता है। आज क े लोग या पूवज , बुजुग म से िज ह ने भी लोकक याण, याय, यव था को सु नि चत करने क े संदभ म मह वपूण योगदान दया है, उनक े त वाभा वक प से गौरव का भाव उमड़ता है। संबंध को नह ं देख पाने क े कारण, संबंध म इस े ठता क े लये यास क वीकृ त नह ं हो पाने क े कारण आज क े दन समाज म ऐसे लोग क े लए गौरव का भाव होने क े बदले कई बार ई या और मा सय का भाव दखाई देता है। गौरव क े भाव क े तहत जहाँ कह ं भी े ठता क े लये यास हो पाता है, हम उसको वीकार पाते ह, उसक शंसा कर पाते ह। वंदना (सरलता) – गौरव क े श ट मू य को सरलता क े प म पहचाना गया है। जब कभी भी हमको दूसरे म कसी भी अंश म े ठता दखाई देती है, दूसरा े ठता क े लये यास करता हुआ दखाई देता है, तो उसक वीकृ त को हमने गौरव क े प म पहचाना था। दूसरे म इस े ठता को देख पाने क े आधार पर हमारे अंदर अ भमान का, अहंकार का अभाव होता है य क अ भमान या अहंकार का ता पय ह है– ‘म े ठ हूँ, दूसरा ने ट है’; ‘म अ धक हूँ, दूसरा कम है’। यह भाव/ वीकृ त ह हमारे अंदर अ भमान या अहंकार को उ प न करती है। दूसरे म े ठता को देख पाने क े आधार पर हमारा वयं का अ भमान/ अहंकार समा त होने लगता है। ऐसी ि थ त को सरलता क े प म पहचाना गया है। सरलता क इस ि थ त म हमार भाषा, भं गमा, मु ा, अंगहार
  • 8. आ द वतः ह यवि थत एवं संतु लत होने लगते ह। साथ ह इस गौरव क े भाव को जब हम य त करते ह, तो वह अगले यि त क वंदना क े प म य त होता है। यह वंदना गीत, संगीत, कहानी, नाटक आ द व वध प म हो सकती है। यहाँ वंदना का ता पय झूठ चापलूसी करने से नह ं है; बि क जो स गुण उनम ह, उसका सह - सह वणन करने से है। इससे हमारा भी उन स गुण पर यान जाता है तथा हम भी उन गुण को वयं म धारण करने क ेरणा मलती है। साथ ह इससे समाज म भी े ठता क े लए ेरणा मलती है। कृ त ता – इस भाव का ता पय दूसरे से मलने वाले सहयोग को देख पाने से है, पहचान पाने से है। अभी सामा य प से जब हम जी रहे होते ह, तो दूसर से जहाँ कह ं भी सहयोग नह ं मलता है- उन बंदुओं पर ह हमारा यादा यान जाता है। तथा जहाँ कह ं भी दूसरे से सहयोग मलता है, उन बंदुओं पर हम सामा य प से कम यान देते ह। कृ त ता का भाव होने क े लये यह आव यक है क पर परता म मलने वाले सहयोग को हम पहचान सक। इस सहयोग को ठ क-ठ क पहचानने क े आधार पर ह अगले मनु य का सट क आँकलन होता है क पर परता म जीते हुए उसने हमारे साथ संबंध का कतना नवाह कया और कतना नह ं कर पाया। जब हम ‘ कये हुए’ भाग को न देख कर सफ ‘नह ं कये हुए’ भाग को ह देखते ह, तो हमारे पास एक दूसरे क शकायत क एक लंबी सूची (list) इक ी हो जाती है। अतः कृ त ता क े भाव का ता पय पर परता म मलने वाले सहयोग को देख पाने से है, वीकार पाने से है। सौ यता – कृ त ता क े श ट मू य को सौ यता क े प म पहचाना गया है। सौ यता का ता पय है, वे छा से वयं को नयं त, यवि थत प म तुत करने का यास करना। जहाँ कह ं भी हमको दूसरे से सहयोग मलता हुआ दखाई देता है, िजन संबंधो म भी दूसरा हमको हमारे सहयोगी क े प म दखाई देता है, उन संबंध म हम वयं भी अपनी ओर से यवि थत होकर जीने का यास करते ह ह। िजन-िजन स बंध म हमारे अंदर कृ त ता का भाव वक सत होने लगता है, कम से कम उन-उन लोग क े साथ जीते हुए हम अपनी ओर से यवि थत होने का यास करते ह ह, भले ह अ य संबंध म नह ं कर पा रहे ह । यह सौ यता है। सौ य आचरण क शु आत, कृ त ता क अ भ यि त क े प म वाभा वक प से हो पाती है। इस क े साथ हम लोग ने अंत म ेम मू य को समझने का यास कया था। ेम – इस भाव का ता पय हर कसी क े साथ वंय को जुडा हुआ देख पाने से है। अि त व को सह-अि त व क े प म देख पाने क े आधार पर, मनु य को सह-अि त व क े एक अ वभा य भाग क े प म देख पाने क े आधार पर हर कसी का वयं क े साथ जुड़ाव समझ म आता है। पूर मानव-जा त क े साथ अपने को जुड़ा हुआ देख पाना, हर मनु य क े साथ अपने संबंध को वीकार पाना, वयं म महसूस कर पाना; इस को ेममयता क े भाव क े प म पहचाना है। ेममयता क ि थ त म हम हर कसी क े साथ सतत जुड़ाव महसूस होता है, और हर संबंध म ि थ त-प रि थ त वश िजन िज मेदा रय का, िजन अपे ाओं का नवाह करना होता है, हम उस नवाह को सट कता क े साथ कर पाते ह। ेम क े भाव/ मू य को पूण मू य क े प म पहचाना गया है, य क यहाँ भाव क पूणता हो पाती है। ेम क े वयं म सु नि चत होने क े आधार पर हम शेष सभी मू य का आव यकता अनुसार नवाह कर पाते ह। इस प म देख तो शेष सभी मू य, ेम क ह कारा तर से या न अलग-अलग ि थ त-प रि थ त म, अलग-अलग कार से क गई अ भ यि त है।
  • 9. अन यता – ेम क े श ट मू य को अन यता क े प म पहचाना गया है। अन यता का ता पय है ‘न अ य’ या न, कोई दूसरा नह ं ह- ऐसा वयं म वीकृ त होने से है। इस को अगर दूसर भाषा म कह तो, ‘सभी अपने ह, सभी हम से जुडे हुए ह’ इस भाव को अन यता क े प म पहचाना है। ेम क अ भ यि त अन यता क े प म दखाई देती है। अन यता क े भाव क े तहत हम अपने-पराये क े द वार से मु त हो पाते ह। अभी जा त क े आधार पर, भाषा क े आधार पर, धम क े आधार पर, रंग और न ल क े आधार पर, धन एवं पद क े आधार पर हमने जो समुदाय बना रखे ह, ये सभी भेद ेम क अनुभू त पूवक अन यता क े भाव म ि थर होने क े आधार पर हमार मान सकता म ख म हो जाते ह। ेम और अन यता ह अख ड समाज का आधार ेम और अन यता का भाव अखंड समाज का आधार है। समाज म हर कसी क े साथ जुड़ पाने क े लये ेम और अन यता का वयं क मान सकता म होना आव यक है। इसम मह वपूण बात समझने क यह है क ेम और अन यता क े भाव म होने क े बावजूद भी हमारा जीना तो क ु छ लोग क े साथ ह होता है। य द हमम ेम और अन यता का भाव सवमानव क े लये ि थर है, तो िजस मानव क े साथ हम जी रहे ह, िजस देश, काल, प रि थ त म जी रहे ह, उन सभी मानव क े साथ हम संबंध का ठ क-ठ क नवाह कर पाते ह, उस संबंध म अपनी ओर से अपे ाओं, दा य व और कत य को पूरा कर पाते ह। स बंध (पर परता) म यूनतम अपे ा व वास, स मान एवं नेह मू य को सा य मू य क े प म पहचाना गया है, य क हर संबंध म यूनतम इनक अपे ा होती ह है। इन तीन मू य क वीकृ त क आव यकता हर संबंध म, हर संपक म, हर पर परता म, हर समय महसूस होती ह है। इस प म इ ह हर संबंध म अपे त सा य मू य क े प म पहचाना गया है। व वास से लेकर ेम तक इन मू य को देख, तो इन मू य क े अपने म सु नि चत होने क े आधार पर हमारे आचरण क ि थरता हो पाती है, नि चतता हो पाती है; न क सफ इसको दूसर से पाने क अपे ा रखने क े आधार पर। इन मू य क े वयं म सु नि चत होने क े आधार पर ह हमारे भाव- वचार म भी संगीतमयता क ि थ त बनी रहती है, जो हमारे वयं क े सुख का कारण बनती है। कृ त ता- ब च म मू य का अंक ु रण इसक े साथ यह भी समझ लेने क ज रत है क सामा य प से जब हम संबंध म एक ब चे क े प म अपनी शर र-या ा क शु आत करते ह, तो कृ त ता का भाव ह वह मुख भाव है, जो हमको संबंध म दूसरे से जुड़ने म सहयोग करता है। एक ब चे क े प म जीते हुए जब हमको यह दखता है क माता- पता से, गु से, बड़े भाई- बहन से, प रवार और समाज से हम को बहुत सारा सहयोग मल रहा है, तो दूसरे से मलने वाले सहयोग को देखकर उस ब चे म उनक े त संबंध क वीकृ त होती है, संबंध म आ वि त होती है, एक भरोसा बनता है। संबंध म दूसर से मलने वाले इस सहयोग को देख पाने क े आधार पर कृ त ता का भाव ब चे म वतः ह वक सत होता है, जहाँ से संबंध म जुड़ने क शु आत हो पाती है। परंपरा क े प म देख, तो एक ब चे क े लये या अगल पीढ क े लये कृ त ता वह मू य है, िजसक े आधार पर वह पछल पीढ क े साथ अपने को जुड़ा हुआ महसूस कर पाता है; उनक े साथ अपने संबंध को वीकार पाता है, उस संबंध म आ वि त को महसूस कर पाता है।
  • 10. समापन पर परता म व वास से ले कर ेम तक इन मू य क े आधार पर जी पाना ह हमारे यवहार क े ि थर होने का, नि चत होने का, यवि थत होने का आधार है। सभी नौ था पत मू य क अ भ यि त मशः उपरो त नौ श ट मू य क े प म दखाई देती है और इन अठारह मू य क े साथ जीने से संबंध म तृि त क नरंतरता बनी रहती है। आप लौट कर देख सकते ह क इन अठारह मू य क े अभाव से ह संबंध म कह ं न कह ं सम या होती है, शकायत होती है। प रवार तथा समाज म स बंध का आधार होने क े कारण इन मू य को सि म लत प से समाज-मू य भी कहा जाता है। इन अठारह मू य म जो नौ श ट मू य ह, इनक े आधार म मशः नौ था पत मू य ह। था पत मू य जब श ट मू य क े साथ कट होते ह, तो पर परता म दूसर तक पहुंच पाते ह, सं े षत (communicate) हो पाते ह। इस प म श ट मू य का मह व है। वयं म था पत मू य क े प म भाव होना और दूसरे क े वारा उसक पहचान हो पाना; इन दोन क े बीच क े सेतु क े प म श ट मू य दखाई देते ह। दूसरे श द म, अपने म भाव होना और दूसरे का उसको पहचान पाना- इन दो ुव को जोड़ने वाल कड़ी क े प म श ट मू य ह। मानवीय यवहार था पत मू य और श ट मू य पूवक पर परता म अ भ य त होना ह मानवीय यवहार है तथा इससे अ यथा अ भ यि त ह अमानवीय यवहार है। मानव का मानव क े साथ सह-अि त व को देख पाना, जुड़ाव को देख पाना, पूरकता को देख पाना ह संबंध क पहचान का ता पय है। संबंध क पहचान क े अनंतर हम संबंध म अपे त मू य का नवाह कर पाते ह। इस नवाह को अपनी ओर से कर पाना ह मानवीय यवहार है। ऐसे मानवीय यवहार क े नवाह से पर परता म पूरकता सु नि चत हो पाती ह। इन मू य क े नवाह का ता पय था पत मू य (जो व वास से लेकर ेम तक ह) को अपने म सु नि चत करना है और श ट मू य (जो सौज यता से ले कर अन यता तक ह) को पर परता म जीते हुए अ भ य त करना है। संबंध म अपनी ओर से याय को सु नि चत करने का ता पय है- था पत मू य को वयं म सु नि चत करते हुए श ट मू य पूवक जीना। हमारे ऐसे जीने को पर परता म दूसरा मनु य भी मू यांकन कर पाता है और हम खुद भी मू यांकन कर पाते ह। वयं क े मू यांकन म जब ये बात दखती है क म मू य का ठ क-ठ क नवाह कर पाया तो यह वयं क तृि त का आधार बनता है। इसी तरह पर परता म दूसरा मनु य जब उसका ठ क-ठ क मू यांकन कर पाता है, तो यह दूसरे क तृि त म भी सहायक होता है। इस प म हम दोन क तृि त अथात ् उभय तृि त सु नि चत हो पाती है। था पत मू य वयं म बने रहते ह, श ट मू य पर परता म अ भ य त होते समय दखाई देते ह। था पत मू य और श ट मू य को अपनी ओर से सु नि चत कर पाना ह याय का अपनी ओर से नवाह करना है। हम सभी इन भाव को समझ कर वयं म सु नि चत कर सक, पर परता म जीते हुए इसे अपनी ओर से य त कर सक तथा दूसर को भी ऐसा समझने एवं जीने क ेरणा दे सक, इसी मंगलकामना क े साथ- 13 अ ैल 2020 जीवन व या त ठान, गो वंदपुर (खार )- बजनौर, उ. .