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1. व्रत एवं दान
डॉ. ववराग सोनटक्क
े
सहायक प्राध्यापक
प्राचीन भारतीय इततहास, संस्कृ तत और पुरातत्व ववभाग
बनारस हहंदू ववद्यापीठ, वाराणसी
B.A. Sem III
Unit : IV
Sr. No. 10
4. व्रत
• व्रत: वृ= वरन करना, चुनना
• व्रत: वृत= प्रवृत्त रहना, प्रारम्भ करना
• ऋग्वेद में व्रत शब्द २०० बार आया है
• वैहदक साहहत्य, ब्राह्मण एवं उपतनषद में व्रत ॰॰॰॰॰
1. धार्मिक कायि, ववर्शष्ट भोजन
5. व्रत
• पुराणों में व्रत की अवधारणा ववस्तृत रूपों में वर्णित है।
• व्रत का महत्व।
1. शरीर एवं मन का शुद्दीकरण
2. व्रत करने से शरीर एवं मन तपस्या की प्रक्रिया से गुज़रता है।
3. व्रत करने से लौक्रकक एवं पर लौक्रकक सुख-समृद्धध की प्राप्तत
होती है।
4. व्रत पुण्यशीलता, धार्मिकता, शील एवं ववश्वास का प्रतीक है।
5. व्रत से धमि क
े प्रतत दृढ़ ववश्वास एवं एकजुटता तनमािण होती है।
6. व्रत क
े तनयम एवं तत्व
• प्रत्येक व्रत की क
ु छ सार्िकता होती है।
• व्रत क
े तनयम
1. पववत्रता
2. नैततकता
3. उपवास
• व्रत में समाववष्ट
1. सत्संग
2. धार्मिक कर्ाएँ
3. पूजा-उपासना
4. भजन-कीतिन
5. दान
• व्रत की तरलता:
1. कोई भेद नही
2. स्त्री-पुरुष समानता
3. ववर्शष्ट पररप्स्र्तीयों में पररत्यक्त
7. व्रत क
े प्रकार
• उद्देश्य क
े अनुसार व्रत क
े तीन प्रकार है
1. तनत्य: दैतनक व्रत, ववर्शष्ट ततधर् क
े बबना भी सम्भव,
उदा॰ एकादशी आहद॰
1. नैर्मवत्तक: क्रकसी देवी-देवता क
े र्लए व्रत।
उदा॰ शतन: शतनवार, सूयि: रवववार, र्शव: सोमवार
1. कामना: ववर्शष्ट कामना पूतति क
े र्लए क्रकया जाने वाला व्रत,
उदा॰ करवा चौर्, ज्युततया आहद।
8. व्रत क
े प्रकार
अन्न/भोजन ग्रहण क
े आधार पर
1. अयाधचत व्रत: बबना पूछे जो र्मले
2. र्मतभुक्त : क
ु छ वप्जित भोज्य पदार्ों क
े सार् उपवास
10. दान का उल्लेख एवं महत्ता
• ऋग्वेद : ववर्भन्न दानों की स्तुतत , गोदान की महत्ता
• शतपर् ब्राह्मण: यज्ञ की आहुतत देवताओं क
े र्लए तो दान
पुरोहहतों क
े र्लए।
• महाभारत: दान की प्रशंसा
• बृहदारण्यक उपतनषद: तीन ववशेष कायि दम, दान और दया
• एतरेय ब्राह्मण: सुवणि, पशु एवं भूर्म दान का उल्लेख
• पुराण: दानों की स्तुतत एवं ववस्तृत प्रसंशा
• दान को कर्लयुग का धमि कहा गया है।
11. दान क
े अर्ि एवं स्वरूप
• दान का अर्ि क्रकसी दूसरे को अपनी वस्तु का स्वामी बनाना ।
• दान की पररभाषा: शास्त्र द्वारा उधचत माने गए व्यप्क्त क
े र्लए
शास्त्रानुमोहदत ववधध से प्रदत्त धन को दान कहा जाता है।
• दान हदए जाने एवं स्वीकार करने की शास्त्रसंगत ववधध एवं तनयम है।
• दान क
े तनयम
1. दान दी जाने वस्तु स्वामी की ववधधवत सम्पतत होनी चाहहए।
2. दान स्वीकार करने वाला व्यप्क्त शास्त्रों क
े अनुसार इच्छ
ु क हो
3. दान ववर्शष्ट स्र्ल, ववर्शष्ट समयानुसार हदया जाए।
4. दान तभी सम्पन्न होगा जब दानी अपनी स्वीकृ तत से उसकी वस्तु
दान करेगा एवं दान स्वीकृ त करनेवाला उस वस्तु क
े स्वीकार
करेगा।
12. दान क
े तत्व
• दान क
े ६ तत्व है।
1. दाता : दान देनेवाला
2. प्रततग्रहहता : दान स्वीकार करने वाला
3. श्रद्धा: उधचत प्रयोजन
4. देय: वस्तु
5. काल: समय
6. देश: क्षेत्र, स्र्ल
13. दान क
े पात्र एवं अपात्र
पात्र
1. ववशेष लक्षण से युक्त व्यप्क्त
2. पववत्र और गुणी व्यप्क्त
अपात्र
1. शराबी ना हो , धूति, चोर, मल्ल, लोभी, दुष्ट, व्यसनी,
2. जुआरी ना हो।
14. देय क
े प्रकार
• देय :दान क
े पदार्ि एवं उपकरण
• धमिशास्त्र क
े अनुसार
1. उत्तम: अन्न, गाय, भूर्म, सुवणि, अश्व, हार्ी आहद।
2. मध्यम : ववद्या, घर, घर का सामान
3. तनकृ ष्ट: जुतें, वाहन, छत्री, बतिन, लकडी आहद।
4. अदेय: माता, पुत्र, राज्य, जो स्वत: का ना हो,
5. ब्राह्मण को शस्त्र और
6. अयोग्य को सुवणि और भूर्म का दान अयोग्य है।
15. अस्वीकार योग्य दान
क
ु छ पदार्ि वप्जित
1. ब्राह्मणों को अस्त्र
2. ववषैले पदार्ि
3. उन्मतकारी पदार्ों
4. मृगचयि
5. ततल
मनु क
े अनुसार: अववद्वान ब्राह्मणों को
1. सोना
2. भूर्म
3. अश्व
4. गाय
5. भोजन
6. वस्त्र आहद
18. दान क
े अदेय पदार्ि
1. प्जन वस्तुओं पर अपना सत्व नही
2. जो अपनी वस्तु ना हो
3. माता-वपता, पुत्रों,अन्य व्यप्क्त
4. राजा अपने राज्य का
5. संयुक्त सम्पवत्त
6. उधार ली गयी सामग्री
7. क्रकसी का जमा क्रकया हुआ धन
8. संतान क
े रहते अपनी पूणि सम्पवत्त
9. दूसरों को पहले ही हदया हुआ पदार्ि
10. र्मत्र का धन
11. भय से दान
19. दान की वैधता
• प्राचीन भारतीय ग्रंर्ो में दान की वैधता पर वववेचन र्मलता है,
क्योंक्रक इसमें स्वार्मत्व और सम्पवत्त का हस्तांतरण है।
a) दान कभी भी भावुक (Emotional) होक
े नही देना चाहहए।
b) सुरापान क
े पश्च्यात दान नही देना चाहहए।
c) जो आपकी वस्तु/सम्पवत्त नही उसका दान नही देना चाहहए।
d) अन्य की वस्तु/सम्पवत्त का दान नही देना चाहहए।
20. दान क
े स्र्ान
1. घर: १० गुना फल देनेवाला
2. गौशाला: १०० गुना फल देनेवाला
3. तीर्ि: १००० गुना फल देनेवाला
4. र्शव मूतति (र्लंग) समक्ष: अनंत फल देनेवाला