11. डरबन न्यायालय में यूरोपीय मजिस्रेट ने उन्हें पगडी उतारने के
ललए कहा, उन्होंने इन्कार कर दिया और न्यायालय से बाहर
चले गए। कु छ दिनों के बाि प्रप्रटोररया िाते समय उन्हें रेलवे के
प्रथम श्रेणी के डडब्बे से बाहर फें क दिया गया और उन्होंने स्टेशन
पर दििु रते हुए रात बबताई। यात्रा के अगले चरण में उन्हें एक
घोडागाडी के चालक से प्रपटना पडा, क्योंकक यूरोपीय यात्री को
िगह िेकर पायिान पर यात्रा करने से उन्होंने इन्कार कर दिया
था, और अन्ततः 'लसर्फ़ यूरोपीय लोगों के ललए' सुर्षित होटलों
में उनके िाने पर रोक लगा िी गई।
सत्याग्रह आन्िोलन, महात्मा गााँधी
13. प्रतििोध औि परिणाम
गाांधी मनमुटाव पालने वाले व्यजक्त नहीां थे। 1899 में ि्षिण अफ़्रीका
(बोअर) युद्ध तछडने पर उन्होंने नटाल के बिदटश उपतनवेश में
नागररकता के सम्पूण़ अधधकारों का िावा करने वाले भारतीयों से
कहा कक उपतनवेश की रषिा करना उनका कत़व्य है। उन्होंने 1100
स्वयां सेवकों की 'एांबुलेन्स कोर' की स्थापना की, जिसमें 300 स्वतांत्र
भारतीय और बाकी बांधुआ मज़िूर थे। यह एक पांचमेल समूह था--
बैररस्टर और लेखाकार, कारीगर और मज़िूर। युद्ध की समाजतत से
ि्षिण अफ़्रीका के भारतीयों को शायि ही कोई राहत लमली। गाांधी ने
िेखा कक कु छ ईसाई लमशनररयों और युवा आिश़वादियों के अलावा
ि्षिण अफ़्रीका में रहने वाले यूरोप्रपयों पर आशानुरूप छाप छोडने में
वह असफल रहे हैं।
14. प्रतििोध औि परिणाम
महात्मा गााँधी, सरिार वल्लभ भाई पटेल और िवाहरलाल नेहरू
गाांधी मनमुटाव पालने वाले व्यजक्त नहीां थे। 1899 में ि्षिण अफ़्रीका
(बोअर) युद्ध तछडने पर उन्होंने नटाल के बिदटश उपतनवेश में
नागररकता के सम्पूण़ अधधकारों का िावा करने वाले भारतीयों से
कहा कक उपतनवेश की रषिा करना उनका कत़व्य है। उन्होंने 1100
स्वयां सेवकों की 'एांबुलेन्स कोर' की स्थापना की, जिसमें 300 स्वतांत्र
भारतीय और बाकी बांधुआ मज़िूर थे। यह एक पांचमेल समूह था--
बैररस्टर और लेखाकार, कारीगर और मज़िूर। युद्ध की समाजतत से
ि्षिण अफ़्रीका के भारतीयों को शायि ही कोई राहत लमली। गाांधी ने
िेखा कक कु छ ईसाई लमशनररयों और युवा आिश़वादियों के अलावा
ि्षिण अफ़्रीका में रहने वाले यूरोप्रपयों पर आशानुरूप छाप छोडने में
वह असफल रहे हैं।
महात्मा गााँधी, सरिार वल्लभ भाई पटेल और िवाहरलाल नेहरू
16. कादियावाड रािकीय पररषि में अब्बास तैयब िी, महात्मा
गााँधी, महारािा नटवरलसांह िी, िक्कर बापा- 1928
18. िॉलेक्ट एक्ट कानून
गाांधी िी के इस आह्वान पर रॉलेक्ट एक्ट कानून के प्रवरोध में बम्बई
तथा िेश के सभी प्रमुख नगरों में 30 माच़ 1919 को और 6 अप्रैल 1919
को हडताल हुई। हडताल के दिन सभी शहरों का िीवन ितप हो गया।
व्यापार बांि रहा और अांग्रेज़ अर्फसर असहाय से िेखते रहे। इस हडताल
ने असहयोग के हधथयार की शजक्त पूरी तरह प्रकट कर िी। सन्1920
में गाांधी िी काांग्रेस के नेता बन गये और उनके तनिेश और उनकी
प्रेरणा से हज़ारों भारतीयों ने बिदटश सरकार के साथ पूण़ सम्बन्ध-
प्रवच्छेि कर ललया। हज़ारों असहयोधगयों को बिदटश िेलों में िूाँस दिया
गया और लाखों लोगों पर सरकारी अधधकाररयों ने बब़र अत्याचार
ककये। बिदटश सरकार के इस िमनचक्र के कारण लोग अदहांसक न रह
सके और कई स्थानों पर दहांसा भडक उिी। दहांसा का इस तरह भडक
उिना गाांधी िी को अच्छा नहीां लगा। उन्होंने स्वीकार ककया कक
अदहांसा के अनुशासन में बााँधे बबना लोगों को असहयोग आांिोलन के
ललए प्रेररत कर उन्होंने 'दहमालय िैसी भूल की है' और यह सोचकर
उन्होंने असहयोग आांिोलन वापस ले ललया। अदहांसक असहयोग
आांिोलन के फलस्वरूप जिस स्वराज्य को गाांधी िी ने एक वष़ के अांिर
लाने का वािा ककया था वह नहीां आ सका।
20. भािि में सत्याग्रह
गाांधी िी के इस आह्वान पर रॉलेक्ट एक्ट कानून के प्रवरोध में बम्बई तथा िेश के
सभी प्रमुख नगरों में 30 माच़ 1919 को और 6 अप्रैल 1919 को हडताल हुई।
हडताल के दिन सभी शहरों का िीवन ितप हो गया। व्यापार बांि रहा और अांग्रेज़
अर्फसर असहाय से िेखते रहे। इस हडताल ने असहयोग के हधथयार की शजक्त पूरी
तरह प्रकट कर िी। सन ्1920 में गाांधी िी काांग्रेस के नेता बन गये और उनके
तनिेश और उनकी प्रेरणा से हज़ारों भारतीयों ने बिदटश सरकार के साथ पूण़
सम्बन्ध-प्रवच्छेि कर ललया। हज़ारों असहयोधगयों को बिदटश िेलों में िूाँस दिया
गया और लाखों लोगों पर सरकारी अधधकाररयों ने बब़र अत्याचार ककये। बिदटश
सरकार के इस िमनचक्र के कारण लोग अदहांसक न रह सके और कई स्थानों पर
दहांसा भडक उिी। दहांसा का इस तरह भडक उिना गाांधी िी को अच्छा नहीां लगा।
उन्होंने स्वीकार ककया कक अदहांसा के अनुशासन में बााँधे बबना लोगों को असहयोग
आांिोलन के ललए प्रेररत कर उन्होंने 'दहमालय िैसी भूल की है' और यह सोचकर
उन्होंने असहयोग आांिोलन वापस ले ललया। अदहांसक असहयोग आांिोलन के
फलस्वरूप जिस स्वराज्य को गाांधी िी ने एक वष़ के अांिर लाने का वािा ककया था
वह नहीां आ सका। कफर भी लोग आांिोलन की प्रवफलता की ओर ध्यान नहीां िेना
चाहते थे, क्योंकक असललयत में िेखा िाए तो इस अदहांसक असहयोग आांिोलन को
िबरिस्त सफलता हालसल हुई।
22. िचनात्मक काययक्रम
सन्1925 में िब अधधकाांश काांग्रेसिनों ने 1919 के भारतीय शासन
प्रवधान द्वारा स्थाप्रपत कौंलसल में प्रवेश करने की इच्छा प्रकट की तो गाांधी
िी ने कु छ समय के ललए सकक्रय रािनीतत से सन्यास ले ललया और
उन्होंने अपने आगामी तीन वष़ ग्रामोंत्थान कायों में लगाय। उन्होंने गााँवों
की भयांकर तनध़नता को िूर करने के ललए चरखे पर सूत कातने का प्रचार
ककया और दहन्िुओां में व्यातत छु आछू त को लमटाने की कोलशश की। अपने
इस काय़क्रम को गाांधी िी 'रचनात्मक काय़क्रम' कहते थे। इस काय़क्रम के
ज़ररये वे अन्य भारतीय नेताओां के मुकाबले, गााँवों में तनवास करने वाली
िेश की 90 प्रततशत िनता के बहुत अधधक तनकट आ गये। उन्होंने सारे
िेश में गााँव-गााँव की यात्रा की, गााँव वालों की पोशाक अपना ली और उनकी
भाषा में उनसे बातचीत की। इस प्रकार उन्होंने गााँवों में रहने वाली करोडों
की आबािी में रािनीततक िागृतत पैिा कर िी और स्वराज्य की मााँग को
मध्यमवगीय आांिोलन के स्तर से उिाकर िेशव्यापी अिम्य िन-
आांिोलन का रूप िे दिया।
25. महात्मा गााँधी औि ववश्व
प्रवश्व पटल पर महात्मा गााँधी लसर्फ़ एक नाम नहीां अप्रपतु शाजन्त
और अदहांसा का प्रतीक है। महात्मा गााँधी के पूव़ भी शाजन्त और
अदहांसा की अवधारणा फललत थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार
सत्याग्रह, शाजन्त व अदहांसा के रास्तों पर चलते हुये अांग्रेिों को
भारत छोडने पर मिबूर कर दिया, उसका कोई िूसरा उिाहरण
प्रवश्व इततहास में िेखने को नहीां लमलता। तभी तो प्रख्यात
वैज्ञातनक आइांस्टीन ने कहा था कक -‘‘हज़ार साल बाि आने वाली
नस्लें इस बात पर मुजश्कल से प्रवश्वास करेंगी कक हाड-माांस से
बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था।’’ सांयुक्त राष्ट्र
सांघ ने भी वष़ 2007 से गााँधी ियन्ती को ‘प्रवश्व अदहांसा दिवस’ के
रूप में मनाये िाने की घोषणा की।