Kashay Margna

Jainkosh
JainkoshJainkosh
अगला
भव
आाचार्य नेमिचंद्र सिद्ांत-चक्रवरततय िवरचमचत
Presentation Developed By: श्रतितत िारचका छाबड़ा
गाथा 1 : िंगलाचचण
❀जाे सिद्, शुद् एवरं आकलंक हं एवरं
❀जजनके िदा गुणरूपत चताें के भूषणाें का उदर् चहता ह,
❀एेिे श्रत जजनेन्द्द्रवरच नेमिचंद्र स्वराित काे निस्काच कचके
❀जतवर की प्ररूपणा काे कहंगा ।
सिद्ं िुद्ं पणमिर् जजणणंदवरचणेमिचंदिकलंकं ।
गुणचर्णभूिणुदर्ं जतवरस्ि परूवरणं वराेच्छं॥
िुहदुक्खिुबहुिस्िं, कम्मक्खेत्तं किेदद जतवरस्ि।
िंिाचदूचिेचं, तेण किाआाे त्तत्त णं वरेंतत॥282॥
❀आथय - जतवर के िुख-दु:खरूप आनेक प्रकाच
के धान्द्र् काे उत्पन्न कचनेवराले तथा जजिकी
िंिाचरूप िर्ायदा आत्र्न्द्त दूच ह एेिे
कियरूपत क्षेत्र (खेत) का र्ह कषयण कचता ह,
इिमलर्े इिकाे कषार् कहते हं ॥282॥
कषार् जिे ―
िकिान
हलाददक िे
खेत काे
िंवराचता ह
वरिे हत ―
जतवर
क्राेधाददक कषार् िे
कियक्षेत्र काे
आनेक प्रकाच के िुख-दुुःखरूप फल
उत्पन्द्न कचने र्ाेग्र् कचता ह
किा ह कियक्षेत्र ?
जजििें इंदद्रर् िुख, शाचीरचक-िानसिक
दुुःखरूप आनेक प्रकाच का आन्द्न उपजता ह ।
जजिकी आनादद-आनन्द्त पंच पचावरतयनरूप
िर्ायदा ह ।
िम्मत्तदेििर्लचरचत्तजहक्खादचचणपरचणािे।
घादंतत वरा किार्ा, चउ िाेल आिंखलाेगमिदा॥283॥
❀आथय - िम्र्क्त्वर, देशचारचत्र, िकलचारचत्र,
र्थाख्र्ातचारचत्ररूपत परचणािाें काे जाे कषे, घाते, न हाेने
दे, उिकाे कषार् कहते हं।
❀इिके आनंतानुबंधत, आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण, प्रत्र्ाख्र्ानावरचण,
िंज्वरलन - इि प्रकाच चाच भेद हं।
❀आनंतानुबंधत आादद चाचाें के क्राेध, िान, िार्ा, लाेभ —
इि तचह चाच-चाच भेद हाेने िे कषार् के उत्तच भेद िाेलह
हाेते हं, िकन्द्तु कषार् के उदर्स्थानाें की आपेक्षा िे
आिंख्र्ात लाेकप्रिाण भेद हं ॥283॥
कषार् के भेद
िािान्द्र् िे 1
िवरशेष िे 4 (आनन्द्तानुबंधत आादद)
क्राेधादद चाकड़ी आपेक्षा 16
नाेकषार् िहहत चाकड़ी 25
उदर्स्थान के िवरशेष की
आपेक्षा
आिंख्र्ात लाेकप्रिाण
कषार् (25)
कषार् (16) नाेकषार् (9)
कषार्(16)
क्राेध
आनंतानुबंधत
आप्रत्र्ाख्र्ान
प्रत्र्ाख्र्ान
िंज्वरलन
िान
आनंतानुबंधत
आप्रत्र्ाख्र्ान
प्रत्र्ाख्र्ान
िंज्वरलन
िार्ा
आनंतानुबंधत
आप्रत्र्ाख्र्ान
प्रत्र्ाख्र्ान
िंज्वरलन
लाेभ
आनंतानुबंधत
आप्रत्र्ाख्र्ान
प्रत्र्ाख्र्ान
िंज्वरलन
नाेकषार् (9)
हास्र्
चतत
आचतत
शाेक
भर्
जुगुप्िा
स्त्रतवरेद
पुरुषवरेद
नपुंिकवरेद
आनन्द्तानुबंधत कषार्
आनन्द्त + आनुबन्द्ध
आनन्द्त = आनन्द्त िंिाच का काचण मिथ्र्ात्वर; एेिे मिथ्र्ात्वर के
िाथ िंबंधरूप कचे आथवरा
आनन्द्त = आनन्द्त िंिाच आवरस्थारूप काल ; एेिे िंिाच के िाथ
िंबंधरूप कचे
वरह आनन्द्तानुबंधत कषार् ह ।
आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार्
आ + प्रत्र्ाख्र्ान + आावरचण
ईषत् / िकं मचत् + त्र्ाग = िकं मचत् त्र्ाग र्ाने आणु्त
उि पच आावरचण कचे, नष्ट कचे, उिे आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण
कषार् कहते हं ।
प्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार्
प्रत्र्ाख्र्ान + आावरचण
िहा्तरूप िकल त्र्ाग काे + आावरच, नष्ट कचे
उिे प्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार् कहते हं ।
िंज्वरलन कषार्
िं + ज्वरलन
िितचतन, तनियल र्थाख्र्ात चारचत्र काे + दहन कचे
उिे िंज्वरलन कषार् कहते हं ।
आनंतानुबंधत
तत्त्वराथयश्रद्ानरूप
िम्र्क्त्वर का
घात हाे
आनंत िंिाच
(मिथ्र्ात्वर) के
िाथ िंबंध कचार्े
आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण
देशचारचत्र का
घात हाे
िकं मचत् त्र्ाग न
हाेने दे
प्रत्र्ाख्र्ानावरचण
िकलचारचत्र
का घात हाे
पूणय त्र्ाग न
हाेने दे
िंज्वरलन
र्थाख्र्ातचारचत्र
का घात हाे
जाे िंर्ि के
िाथ प्रज्वरमलत
चहे
कषार्ाें
की
शमि
आनन्द्तानुबन्द्धत तत्तच
आप्रत्र्ाख्र्ान तत्
प्रत्र्ाख्र्ान िंद
िंज्वरलन िन्द्दतच
सिलपुढिवरभेदधूली-जलचाइििाणआाे हवरे काेहाे।
णाचर्ततरचर्णचािच-गईिु उप्पार्आाे कििाे॥284॥
❀आथय - शशलाभेद, पृथ्वरतभेद, धूमलचेखा आाच
जलचेखा के ििान उत्कृ ष्ट, आनुत्कृ ष्ट,
आजघन्द्र् आाच जघन्द्र् शमि िे िवरशशष्ट क्राेध
कषार् जतवर काे क्रि िे नचकगतत,
ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न
कचातत ह ॥284॥
कषार्ाें के उत्कृ ष्ट-जघन्द्र् स्थान के दृष्टांत
उत्कृ ष्ट आनुत्कृ ष्ट आजघन्द्र् जघन्द्र्
क्राेध शशला भेद पृथ्वरत भेद धूमल चेखा जल चेखा
िान शल आस्स्थ काष्ठ बेंत
िार्ा बांि की जड़ िेढे की ितंग गाेिूत्र खुचपा
लाेभ िकचमिचत चंग चक्रिल शचीच का िल हल्दी का चंग
िकि गतत िें
उत्पन्द्न कचतत
ह
नचक ततर्ंच िनुष्र् देवर
क्राेध कषार्
शशला भेद (उत्कृ ष्ट)
जिे पाषाण के खण्ड़ हाेने
पच बहुत घनाकाल बतते िबना
मिलता नहतं
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत घना
काल बतते िबना क्षिारूप मिलन
काे प्राप्त नहतं हाेता एेिा क्राेध
पृथ्वरत भेद (आनुत्कृ ष्ट)
जिे पृथ्वरत के खण्ड़ हाेने पच बहुत
काल बतते िबना मिलतत नहतं ह,
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत काल
बतते िबना क्षिारूप मिलन काे
प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
धूमल चेखा (आजघन्द्र्)
जिे धूमल िें की गई चेखा
थाेड़ा काल बतते िबना मिलतत
नहतं
वरिे क्राेध हाेने पच थाेड़ा काल
गए िबना क्षिारूप मिलन काे
प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
जल चेखा (जघन्द्र्)
जिे जल िें की गई चेखा
बहुत आल्प काल बतते िबना
मिलतत नहतं,
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत थाेड़ा
काल बतते िबना क्षिारूप मिलन
काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
क्राेध कषार्
एेिा क्राेध
हाेने पच उि-
उि क्राेध
िंबंधत गतत,
शचीच आादद
काे जतवर
बांधता ह ।
िेलट्ठिकठिवरेत्ते, णणर्भेएणणुहचंतआाे िाणाे।
णाचर्ततरचर्णचािच-गईिु उप्पार्आाे कििाे॥285॥
❀आथय - िान भत चाच प्रकाच का हाेता ह।
❀पत्थच के ििान, हड्डी के ििान, काठ के
ििान तथा बेंत के ििान - र्े चाच प्रकाच के
िान भत क्रि िे नचक, ततर्ंच, िनुष्र् तथा
देवरगतत के उत्पादक हं॥285॥
शल
जिे पाषाण बहुत घना काल
िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेता
वरिे बहुत घने काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान ।
आस्स्थ
जिे आस्स्थ (हड़्ड़ी) घना
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेतत
वरिे घना काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
िान कषार्
काष्ठ
जिे काष्ठ (लकड़ी) थाेड़े
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेता
वरिे थाेड़े काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
बेंत
जिे बेंत की लकड़ी बहुत थाेड़े
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेतत
वरिे बहुत थाेड़े काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
िान कषार्
एेिा िान हाेने
पच उि-उि
िान िंबंधत
गतत, शचीच
आादद किाें काे
बांधता ह ।
वरेणुवरिूलाेचब्भर्-सिंगे गाेिुत्तए र् खाेचप्पे।
िरचित िार्ा णाचर्-ततरचर्णचािचगईिु खखवरदद जजर्ं॥286॥
❀आथय - बााँि की जड़, िेढे के ितंग, गाेिूत्र
तथा खुचपा के ििान उत्कृ ष्ट आादद शमि िे
र्ुि िार्ा जतवर काे र्थाक्रि नचकगतत,
ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न
कचातत ह ॥286॥
वरेणुिूल
जिे बााँि की जड़ की गााँठ
बहुत घना काल िबना िचल
नहतं हाेतत
वरिे बहुत घना काल िबना जाे
िचल नहतं हाेतत, एेित िार्ा
कषार्
उचभ्रक श्रृंग
जिे िेढे का ितंग घना काल
िबना िचल (ितधा) नहतं हाेता
वरिे घना काल िबना जाे िचल
नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार्
िार्ा कषार्
गाेिूत्र
जिे गार्िूत्र की धाचा थाेड़े
काल िबना िचल नहतं हाेतत
वरिे थाेड़े काल िबना िचल नहतं
हाेतत, एेित िार्ा कषार्
खुच
जिे जितन पच बल आादद का
खुच बहुत थाेड़े काल िबना
िचल नहतं हाेता,
वरिे बहुत थाेड़े काल िबना जाे िचल
नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार्
िार्ा कषार्
एेित िार्ा
हाेने पच उि-
उि िार्ा
िंबंधत गतत,
शचीच आादद
किाें काे
बांधता ह ।
िकमिचार्चक्कतणुिल-हरचद्दचाएण िरचिआाे लाेहाे।
णाचर्ततरचक्खिाणुि-देवरेिुप्पार्आाे कििाे॥287॥
❀आथय - कृ मिचाग, चक्रिल, शचीचिल आाच
हल्दी के चंग के ििान उत्कृ ष्ट आादद शमि
िे र्ुि िवरषर्ाें की आमभलाषारूप लाेभ
कषार् क्रि िे जतवर काे नचकगतत,
ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न
कचातत ह ॥287॥
िक्रमिचाग
जिे िक्रमि कीड़े के िल का
चंग बहुत घना काल िबना नष्ट
नहतं हाेता
वरिे जाे बहुत घना काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
चक्रिल
जिे पहहर्े का िल (ग्रति) घना
काल िबना नष्ट नहतं हाेता
वरिे जाे घना काल िबना नष्ट
नहतं हाेता, एेिा लाेभ
लाेभ कषार्
तनुिल
जिे शचीच का िल थाेड़े
काल िबना नष्ट नहतं हाेता
वरिे जाे थाेड़े काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
हरचद्रा-चाग
जिे हल्दी का चंग बहुत थाेड़े
काल िबना नष्ट नहतं हाेता,
वरिे जाे बहुत थाेड़े काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
लाेभ कषार्
एेिा लाेभ
हाेने पच उि-
उि लाेभ
िंबंधत गतत,
शचीच आादद
किाें काे
बांधता ह ।
णाचर्ततरचक्खणचिुच-गईिु उप्पण्णपढिकालखम्ह।
काेहाे िार्ा िाणाे, लाेहुदआाे आणणर्िाे वरािप॥288॥
❀आथय - नचक, ततर्ंच, िनुष्र् तथा देवरगतत िें
उत्पन्न हाेने के प्रथि ििर् िें क्रि िे क्राेध,
िार्ा, िान आाच लाेभ का उदर् हाेता ह।
❀आथवरा र्ह तनर्ि नहतं भत ह॥288॥
4 गतत िें उत्पत्तत्त के प्रथि ििर् िें कषार्
नचक ततर्ंच िनुष्र् देवर
हिततर् सिद्ांत ―
कषार्प्राभृत के व्र्ाख्र्ाता
र्ततवरृषभाचार्य आनुिाच
क्राेध िार्ा िान लाेभ
प्रथि सिद्ांत ―
िहाकियप्रकृ ततप्राभृत के कताय
भूतबमल आाचार्य आनुिाच
तनर्ि नहतं ― काेई भत कषार् का
उदर् िंभवर ह
आप्पपचाेभर्बाधण-बंधािंजिणणमित्तकाेहादी।
जेसिं णस्त्थ किार्ा, आिला आकिाइणाे जतवरा॥289॥
❀आथय - जजनके स्वरर्ं काे, दूिचे काे तथा दाेनाें
काे हत बाधा देने आाच बन्द्धन कचने तथा आिंर्ि
कचने िें तनमित्तभूत क्राेधाददक कषार् नहतं ह तथा
❀जाे बाह्य आाच आभ्र्न्द्तच िल िे चहहत हं
❀एेिे सिद् पचिेष्ठत आकषार्त जानना॥289॥
स्वरर्ं काे पच काे स्वर-पच काे
बंधन बाधा (घात) आिंर्ि
जाे कषार् (िल) ह उििे चहहत हं तथा
बाह्य आाच आभ्र्ंतच िल िे चहहत हं
वरे आकषार्त जतवर हं
िें तनमित्तभूत
काेहाददकिार्ाणं, चउ चउदि वरति हाेंतत पद िंखा।
ित्ततलेस्िाआाउग-बंधाबंधगदभेदेहहं॥290॥
❀आथय - शमि, लेश्र्ा तथा आार्ु के बंधाबंधगत
भेदाें की आपेक्षा िे क्राेधादद कषार्ाें के क्रि िे
चाच, चादह आाच बति स्थान हाेते हं॥290॥
क्राेधादद कषार्ाें के स्थान
शमि आपेक्षा 4
लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14
आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20
सिलिेलवरेणुिूलहक्कमिचार्ादी किेण चत्तारच।
काेहाददकिार्ाणं, ित्तत्तं पदड़ हाेंतत णणर्िेण॥291॥
❀आथय - शशलाभेद आादद के ििान चाच प्रकाच का
क्राेध, शल आादद के ििान चाच प्रकाच का िान,
वरेणु (बााँि) िूल आादद के ििान चाच तचह की
िार्ा, िक्रमिचाग आादद के ििान चाच प्रकाच का
लाेभ, इि तचह क्राेधाददक कषार्ाें के उि तनर्ि
के आनुिाच क्रि िे शमि की आपेक्षा चाच-चाच
स्थान हं॥291॥
शमि आपेक्षा 4 स्थान
उत्कृ ष्ट तत्तच
शशलाभेद, शशला, वरेणुिूल,
िक्रमिचाग
आनुत्कृ ष्ट तत्
पृथ्वरतभेद, आस्स्थ, िेढे के सिंग,
चक्रिल
आजघन्द्र् िंद
धूमल चेखा, काष्ठ, गाेिूत्र,
तनुिल
जघन्द्र् िंदतच जल चेखा, बेंत, खुचपा, हरचद्रा
िकण्हं सिलाििाणे, िकण्हादी छक्किेण भूमिखम्ह।
छक्कादी िुक्काे त्तत्त र्, धूमलखम्म जलखम्म िुक्के क्का॥292॥
❀आथय - शशलाििान क्राेध िें के वरल कृ ष्ण लेश्र्ा की
आपेक्षा िे एक हत स्थान हाेता ह।
❀पृथ्वरतििान क्राेध िें कृ ष्ण आाददक लेश्र्ा की आपेक्षा
छह स्थान हं।
❀धूमलििान क्राेध िें छह लेश्र्ाआाें िे लेकच
शुक्ललेश्र्ा पर्ंत छह स्थान हाेते हं आाच
❀जलििान क्राेध िें के वरल एक शुक्ललेश्र्ा हत हाेतत
ह॥292॥
कषार्ाें के लेश्र्ा-स्थान
शमि स्थान शशलाभेद भूमिभेद
लेश्र्ा स्थान कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ
नत नत नत नत नत
का का का का
पत पत पत
प प
शु
कषार्ाें के लेश्र्ा-स्थान
शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा
लेश्र्ा स्थान
कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत का पत प शु
का पत प शु
पत प शु
प शु
शु
शमि
स्थान
शशला
भेद
भूमिभेद धूमलचेखा
जल
चेखा
लेश्र्ा
स्थान
कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत नत नत नत नत नत का पत प शु
का का काकाका पत प शु
पत पत पत पत प शु
प प प शु
शु शु
िंक्लेश हातन स्थान िवरशुणद् वरृणद् स्थान
िेलगिकण्हे िुण्णं, णणचर्ं च र् भूगएगिवरठिाणे।
णणचर्ं इगगिवरततआाऊ, ततठिाणे चारच िेिपदे॥293॥
❀आथय - शलगत कृ ष्णलेश्र्ा िें कु छ स्थान ताे एेिे हं िक जहााँ पच आार्ुबंध
नहतं हाेता। इिके आनन्द्तच कु छ स्थान एेिे हं िक जजनिें नचक आार्ु का
बंध हाेता ह।
❀इिके बाद पृथ्वरतभेदगत पहले आाच दूिचे स्थान िें नचक आार्ु का हत बंध
हाेता ह। इिके भत बाद कृ ष्ण, नतल, कापाेत लेश्र्ा के ततिचे भेद िें
(स्थान िें) कु छ स्थान एेिे हं जहााँ नचक आार्ु का हत बंध हाेता ह आाच
कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच दाे आार्ु का बंध हाे िकता ह
तथा कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच तथा िनुष्र् ततनाें हत आार्ु
का बंध हाे िकता ह। शेष के ततन स्थानाें िें चाचाें आार्ु का बंध हाे िकता
ह॥293॥
धूमलगछक्कठिाणे, चउचाऊततगदुगं च उवररचल्लं।
पणचदुठाणे देवरं, देवरं िुण्णं च ततठिाणे॥294॥
❀आथय - धूमलभेदगत छह लेश्र्ावराले प्रथि भेद के कु छ स्थानाें िें
चाचाें आार्ु का बंध हाेता ह। इिके आनन्द्तच कु छ स्थानाें िें नचक
आार्ु काे छाेड़कच शेष ततन आार्ु का आाच कु छ स्थानाें िें नचक,
ततर्ंच काे छाेड़कच शेष दाे आार्ु का बंध हाेता ह।
❀कृ ष्णलेश्र्ा काे छाेड़कच पााँच लेश्र्ा वराले दूिचे स्थान िें तथा कृ ष्ण,
नतल लेश्र्ा काे छाेड़कच शेष चाच लेश्र्ावराले तृततर्स्थान िें के वरल
देवर आार्ु का बंध हाेता ह। आंत की ततन लेश्र्ावराले चाथे भेद के
कु छ स्थानाें िें देवरार्ु का बंध हाेता ह आाच कु छ स्थानाें िें आार्ु का
आबंध ह॥294॥
िुण्णं दुगइगगठाणे, जलखम्ह िुण्णं आिंखभजजदकिा।
चउचाेदिवरतिपदा, आिंखलाेगा हु पत्तेर्ं॥295॥
❀आथय - इित के (धूमलभेदगत के हत) पद्म आाच शुक्ललेश्र्ा वराले पााँचवरें
स्थान िें आाच के वरल शुक्ललेश्र्ा वराले छठे स्थान िें आार्ु का आबंध ह
तथा जलभेदगत के वरल शुक्ललेश्र्ावराले एक स्थान िें भत आार्ु का
आबंध ह।
❀इिप्रकाच कषार्ाें के शमि की आपेक्षा चाच भेद, लेश्र्ाआाें की आपेक्षा
चादह भेद, आार्ु के बंधाबंध की आपेक्षा बति भेद हाेते हं।
❀इनिें प्रत्र्ेक के आवरान्द्तच भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण हं तथा आपने-
आपने उत्कृ ष्ट िे आपने-आपने जघन्द्र् पर्यन्द्त क्रि िे आिंख्र्ातगुणे-
आिंख्र्ातगुणे हतन हं॥295॥
शमि स्थान शशलाभेद भूमिभेद
लेश्र्ा स्थान
कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ
नत नत नत नत नत
का का का का
पत पत पत
प प
शु
आार्ु बंध-आबंध
स्थान
0 1 1 1 1 2 3 4 4 4
न न न न
न,
तत
न,
तत,
ि
चाचाें
आार्ु
चाचाें
आार्ु
चाचाें आार्ु
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा
लेश्र्ा स्थान
कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत का पत प शु
का पत प शु
पत प शु
प शु
शु
आार्ु बंध-
आबंध स्थान
4 3 2 1 1 1 0 0 0 0
चाचाें
आार्ु
तत,
ि,
दे
ि, दे दे दे दे
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
शमि
स्थान
शशला
भेद
भूमिभेद
लेश्र्ा
स्थान
कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ
नत नत नत नत नत
का का का का
पत पत पत
प प
शु
आार्ु बंध-
आबंध
स्थान
0 1 1 1 1 2 3 4 4 4
न न न न
न
तत
न
तत
ि
चाचाें
आा
र्ु
चा
चाें
आा
र्ु
चाचाें
आा
र्ु
शमि
स्थान
धूमलचेखा जल
चेखा
लेश्र्ा
स्थान
कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत का पत प शु
का पत प शु
पत प शु
प शु
शु
आार्ु बंध-
आबंध
स्थान
4 3 2 1 1 1 0 0 0 0
चा
चाें
आा
र्ु
तत
ि
दे
ि,
दे
दे दे दे
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
= 15आार्ु बंध स्थान
= 5आार्ु आबंध स्थान
= 10नचकार्ु बंध स्थान
= 7ततर्ंच आार्ु बंध स्थान
= 7िनुष्र् आार्ु बंध स्थान
= 9देवर आार्ु बंध स्थान
क्राेधादद कषार्ाें के स्थान
शमि आपेक्षा 4
लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14
आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20
इन िभत शमि-स्थान, लेश्र्ा-स्थान, आार्ुबंध-आबंध स्थानाें के आवरान्द्तच
भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण (≡ 𝝏) हं । पचन्द्तु उत्तचाेत्तच घटते-घटतेहं ।
उदर्स्थान र्ाने कषार् का आनुभाग का स्थान । इतना
आनुभाग उदर् हाेने पच इतनत िंक्लेशता र्ा िवरशुणद् के
आंश हं ।
उनिें जतवर जिा उपर्ाेग कचे, वरित लेश्र्ा शुभ र्ा
आशुभ बन जातत ह ।
िंद उदर् िें भत कृ ष्ण लेश्र्ा पार्त जातत ह । आत:
िंद उदर् िें िंतुष्ट नहतं हाेना ।
िवरशेष
एक उदर्स्थान एक हत शमिरूप ह ।
एक हत उदर्स्थान िें छहाें लेश्र्ा हाे िकतत ह ।
एक हत उदर्स्थान िें चाचाें आार्ु का बंध हाे िकता ह ।
कषार् िागयणा िें जतवराें की
िंख्र्ा
पुह पुह किार्कालाे, णणचर्े आंताेिुहुत्तपरचणािाे।
लाेहादी िंखगुणाे, देवरेिु र् काेहपहुदीदाे॥296॥
❀आथय - नचक िें नाचिकर्ाें के लाेभादद कषार् का
काल िािान्द्र् िे आन्द्तिुयहतय िात्र हाेने पच भत
पूवरय-पूवरय की आपेक्षा उत्तचाेत्तच कषार् का काल
पृथक् -पृथक् िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा ह आाच
देवराें िें क्राेधादद कषार् का उत्तचाेत्तच
िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा काल ह॥296॥
नचक आाच देवर गतत िें कषार् काल
नरक गति देवगति काल
लोभ क्रोध 1 अंिर्मुहूिु
र्ाया र्ान 1 अंि × ४
र्ान र्ाया 1 अंि × ४ × ४
क्रोध लोभ 1 अंि × ४ × ४ × ४
िव्वििािेणवरहहदिगिगचाित पुणाे िवर िंगुणणदे।
िगिगगुणगाचेहहं र् िगिगचाितण परचिाणं॥297॥
❀आथय - आपनत-आपनत गतत िें िम्भवर
जतवरचाशश िें ििस्त कषार्ाें के उदर्काल के
जाेड़ का भाग देने िे जाे लब्ध आावरे उिका
आपने-आपने गुणाकाच िे गुणन कचने पच
आपनत-आपनत चाशश का परचिाण तनकलता
ह॥297॥
आंक िंदृष्टष्ट िे उदाहचण:
नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा
लाेभ का काल = 1 आंत.
िार्ा का काल = 4 आंत.
िान का काल = 16 आंत.
क्राेध का काल = 64 आंत.
कु ल काल 85 आंत.
िानािक िंख्र्ात का प्रिाण 4 ह
उदाहचण: नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा
❀िाना िक नाचकी जतवर = 1700
❀एक शलाका =
िवरय नाचकी
कु ल कषार् काल
❀ =
1700
85 आंत.
= 20
उदाहचण: नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा
लाेभत नाचकी 1×20 = 20
िार्ावरत नाचकी 4×20 = 80
िानत नाचकी 16×20 = 320
क्राेधत नाचकी 64×20 = 1280
इित प्रकाच देवराें िें भत तनकालना । पचन्द्तु क्राेध िे लाेभ तक बढता काल लेना ।
देवरगतत िें ―
िाना िंख्र्ात = 4
कषार् काल जतवराें की िंख्र्ा
क्राेध
* िािान्द्र् िे िभत का
काल आंतिुयहतय ह
* आागे-आागे
िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा
ह
1 आंतिुयहतय
कु ल देव
𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु
× 𝟏 अंतर्ुुहूतु
िान 1 आंत. × 4 = 4 आंत.
कु ल देव
𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु
× 𝟒 अंतर्ुुहूतु
िार्ा 4 आंत. × 4 = 16 आंत.
कु ल देव
𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु
× 𝟏𝟔 अंतर्ुुहूतु
लाेभ 16 आंत. × 4 = 64 आंत.
कु ल देव
𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु
× 𝟔𝟒 अंतर्ुुहूतु
कु ल काल 85 आंत.
णचततरचर् लाेहिार्ा-काेहाे िाणाे िवरइंददर्ाददव्व।
आावरमलआिंखभज्जा, िगकालं वरा ििािेज्ज॥298॥
❀आथय - िनुष्र्-ततर्ंचाें िें लाेभ, िार्ा, क्राेध आाच
िानवराले जतवराें की िंख्र्ा जजि प्रकाच इखन्द्द्रर् िागयणा
िें िीखन्द्द्रर्ादद जतवराें की िंख्र्ा आावरली के आिंख्र्ातवरें
भाग का भाग दे-देकच ‘बहुभागे ििभागे' इत्र्ादद गाथा
िाचा तनकाली थत, उित प्रकाच र्हााँ भत तनकालना
चाहहर्े। आथवरा
❀आपने-आपने काल की आपेक्षा िे उि कषार्वराले जतवराें
का प्रिाण तनकालना चाहहर्े॥298॥
प्रततभाग िें बााँटने का तचीका
❀उदाहचण—िाना िक िवरय िनुष्र् चाशश = 256; एवरं
आावरली
आिंख्र्ात
= 4
❀
िनुष्र् जतवर
आावरली
आिंख्र्ात
=
256
4
= 64 (एक भाग)
❀बहुभाग = िवरय चाशश – एक भाग
192 = 256 − 64
❀बहुभाग के चाच ििान भाग कचाे ।
192
4
= 48
❀ इिे प्रत्र्ेक कषार् िें बााँट दाे
❀शेष चहे एकभाग (64) काे पुन: प्रततभाग िे भाग दाे ।
❀
64
4
= 16
❀एकभाग आलग चखकच बहुभाग लाेभ कषार् काे दाे ।
❀ 64 – 16 = 48 (लाेभ कषार् का प्रततभाग)
❀शेष एकभाग काे पुन: प्रततभाग िे भाग लगाआाे ।
लाेभ िार्ा क्राेध िान
ििभाग 48 48 48 48
❀
16
4
= 4
❀बहुभाग काे िार्ा कषार् िें दाे ।
❀16 – 4 = 12 (िार्ा कषार् का प्रततभाग)
❀शेष एकभाग काे पुन: प्रततभाग िे भाग दाे ।
❀
4
4
= 1
❀बहुभाग काे क्राेध कषार् काे दाे । 4 – 1 = 3
❀शेष एकभाग काे िान कषार् काे दाे । 1
िनुष्र्ाें िें कषार्त जतवराें की िंख्र्ा
लाेभ िार्ा क्राेध िान
ििभाग 48 48 48 48
प्रततभाग 48 12 3 1
कु ल िंख्र्ा 96 60 51 49
इित प्रकाच वरास्तिवरक गणणत िें कचना चाहहए ।
•
जगत् श्रेणत
िूच्र्ंगुल ×
𝟑
िूच्र्ंगुल
− 1
कु ल िनुष्र्
•
िनुष्र् चाशश
4
+
लाेभत िनुष्र् कु ल िनुष्र्ाें के चतुथय भाग िे कु छ
आष्टधक हं ।
•
िनुष्र् चाशश
4
−िार्ावरत िनुष्र् चतुथय भाग िे कु छ कि हं र्ाने
•
िनुष्र् चाशश
4
=क्राेधत िनुष्र् कु छ आाच कि हं —
•
िनुष्र् चाशश
4
≡िानत िनुष्र् कु छ आाच कि हं —
लाेभत ततर्ंच िवरायष्टधक ततर्ंच चाशश
4
+
िार्ावरत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश
4
−
क्राेधत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश
4
=
िानत ततर्ंच िबिे कि ततर्ंच चाशश
4
≡
इित प्रकाच ततर्ंचाें िें भत ििझना चाहहए । आथायत्
िनुष्र् आाच ततर्ंच गतत िें कषार्ाें का काल
लाेभ का काल िवरायष्टधक
िार्ा का काल कु छ कि
क्राेध का काल कु छ कि
िान का काल िबिे कि
इि काल के आाधाच िे भत जतवराें की िंख्र्ा तनकाली जा िकतत ह जाे पूवराेयि हत
आाएगत ।
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  • 6. िम्मत्तदेििर्लचरचत्तजहक्खादचचणपरचणािे। घादंतत वरा किार्ा, चउ िाेल आिंखलाेगमिदा॥283॥ ❀आथय - िम्र्क्त्वर, देशचारचत्र, िकलचारचत्र, र्थाख्र्ातचारचत्ररूपत परचणािाें काे जाे कषे, घाते, न हाेने दे, उिकाे कषार् कहते हं। ❀इिके आनंतानुबंधत, आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण, प्रत्र्ाख्र्ानावरचण, िंज्वरलन - इि प्रकाच चाच भेद हं। ❀आनंतानुबंधत आादद चाचाें के क्राेध, िान, िार्ा, लाेभ — इि तचह चाच-चाच भेद हाेने िे कषार् के उत्तच भेद िाेलह हाेते हं, िकन्द्तु कषार् के उदर्स्थानाें की आपेक्षा िे आिंख्र्ात लाेकप्रिाण भेद हं ॥283॥
  • 7. कषार् के भेद िािान्द्र् िे 1 िवरशेष िे 4 (आनन्द्तानुबंधत आादद) क्राेधादद चाकड़ी आपेक्षा 16 नाेकषार् िहहत चाकड़ी 25 उदर्स्थान के िवरशेष की आपेक्षा आिंख्र्ात लाेकप्रिाण
  • 8. कषार् (25) कषार् (16) नाेकषार् (9)
  • 11. आनन्द्तानुबंधत कषार् आनन्द्त + आनुबन्द्ध आनन्द्त = आनन्द्त िंिाच का काचण मिथ्र्ात्वर; एेिे मिथ्र्ात्वर के िाथ िंबंधरूप कचे आथवरा आनन्द्त = आनन्द्त िंिाच आवरस्थारूप काल ; एेिे िंिाच के िाथ िंबंधरूप कचे वरह आनन्द्तानुबंधत कषार् ह ।
  • 12. आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार् आ + प्रत्र्ाख्र्ान + आावरचण ईषत् / िकं मचत् + त्र्ाग = िकं मचत् त्र्ाग र्ाने आणु्त उि पच आावरचण कचे, नष्ट कचे, उिे आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार् कहते हं ।
  • 13. प्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार् प्रत्र्ाख्र्ान + आावरचण िहा्तरूप िकल त्र्ाग काे + आावरच, नष्ट कचे उिे प्रत्र्ाख्र्ानावरचण कषार् कहते हं ।
  • 14. िंज्वरलन कषार् िं + ज्वरलन िितचतन, तनियल र्थाख्र्ात चारचत्र काे + दहन कचे उिे िंज्वरलन कषार् कहते हं ।
  • 15. आनंतानुबंधत तत्त्वराथयश्रद्ानरूप िम्र्क्त्वर का घात हाे आनंत िंिाच (मिथ्र्ात्वर) के िाथ िंबंध कचार्े आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण देशचारचत्र का घात हाे िकं मचत् त्र्ाग न हाेने दे प्रत्र्ाख्र्ानावरचण िकलचारचत्र का घात हाे पूणय त्र्ाग न हाेने दे िंज्वरलन र्थाख्र्ातचारचत्र का घात हाे जाे िंर्ि के िाथ प्रज्वरमलत चहे
  • 17. सिलपुढिवरभेदधूली-जलचाइििाणआाे हवरे काेहाे। णाचर्ततरचर्णचािच-गईिु उप्पार्आाे कििाे॥284॥ ❀आथय - शशलाभेद, पृथ्वरतभेद, धूमलचेखा आाच जलचेखा के ििान उत्कृ ष्ट, आनुत्कृ ष्ट, आजघन्द्र् आाच जघन्द्र् शमि िे िवरशशष्ट क्राेध कषार् जतवर काे क्रि िे नचकगतत, ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न कचातत ह ॥284॥
  • 18. कषार्ाें के उत्कृ ष्ट-जघन्द्र् स्थान के दृष्टांत उत्कृ ष्ट आनुत्कृ ष्ट आजघन्द्र् जघन्द्र् क्राेध शशला भेद पृथ्वरत भेद धूमल चेखा जल चेखा िान शल आस्स्थ काष्ठ बेंत िार्ा बांि की जड़ िेढे की ितंग गाेिूत्र खुचपा लाेभ िकचमिचत चंग चक्रिल शचीच का िल हल्दी का चंग िकि गतत िें उत्पन्द्न कचतत ह नचक ततर्ंच िनुष्र् देवर
  • 19. क्राेध कषार् शशला भेद (उत्कृ ष्ट) जिे पाषाण के खण्ड़ हाेने पच बहुत घनाकाल बतते िबना मिलता नहतं वरिे क्राेध हाेने पच बहुत घना काल बतते िबना क्षिारूप मिलन काे प्राप्त नहतं हाेता एेिा क्राेध पृथ्वरत भेद (आनुत्कृ ष्ट) जिे पृथ्वरत के खण्ड़ हाेने पच बहुत काल बतते िबना मिलतत नहतं ह, वरिे क्राेध हाेने पच बहुत काल बतते िबना क्षिारूप मिलन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
  • 20. धूमल चेखा (आजघन्द्र्) जिे धूमल िें की गई चेखा थाेड़ा काल बतते िबना मिलतत नहतं वरिे क्राेध हाेने पच थाेड़ा काल गए िबना क्षिारूप मिलन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध जल चेखा (जघन्द्र्) जिे जल िें की गई चेखा बहुत आल्प काल बतते िबना मिलतत नहतं, वरिे क्राेध हाेने पच बहुत थाेड़ा काल बतते िबना क्षिारूप मिलन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध क्राेध कषार्
  • 21. एेिा क्राेध हाेने पच उि- उि क्राेध िंबंधत गतत, शचीच आादद काे जतवर बांधता ह ।
  • 22. िेलट्ठिकठिवरेत्ते, णणर्भेएणणुहचंतआाे िाणाे। णाचर्ततरचर्णचािच-गईिु उप्पार्आाे कििाे॥285॥ ❀आथय - िान भत चाच प्रकाच का हाेता ह। ❀पत्थच के ििान, हड्डी के ििान, काठ के ििान तथा बेंत के ििान - र्े चाच प्रकाच के िान भत क्रि िे नचक, ततर्ंच, िनुष्र् तथा देवरगतत के उत्पादक हं॥285॥
  • 23. शल जिे पाषाण बहुत घना काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेता वरिे बहुत घने काल िबना जाे िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा िान । आस्स्थ जिे आस्स्थ (हड़्ड़ी) घना काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेतत वरिे घना काल िबना जाे िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा िान िान कषार्
  • 24. काष्ठ जिे काष्ठ (लकड़ी) थाेड़े काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेता वरिे थाेड़े काल िबना जाे िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा िान बेंत जिे बेंत की लकड़ी बहुत थाेड़े काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेतत वरिे बहुत थाेड़े काल िबना जाे िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा िान िान कषार्
  • 25. एेिा िान हाेने पच उि-उि िान िंबंधत गतत, शचीच आादद किाें काे बांधता ह ।
  • 26. वरेणुवरिूलाेचब्भर्-सिंगे गाेिुत्तए र् खाेचप्पे। िरचित िार्ा णाचर्-ततरचर्णचािचगईिु खखवरदद जजर्ं॥286॥ ❀आथय - बााँि की जड़, िेढे के ितंग, गाेिूत्र तथा खुचपा के ििान उत्कृ ष्ट आादद शमि िे र्ुि िार्ा जतवर काे र्थाक्रि नचकगतत, ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न कचातत ह ॥286॥
  • 27. वरेणुिूल जिे बााँि की जड़ की गााँठ बहुत घना काल िबना िचल नहतं हाेतत वरिे बहुत घना काल िबना जाे िचल नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार् उचभ्रक श्रृंग जिे िेढे का ितंग घना काल िबना िचल (ितधा) नहतं हाेता वरिे घना काल िबना जाे िचल नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार् िार्ा कषार्
  • 28. गाेिूत्र जिे गार्िूत्र की धाचा थाेड़े काल िबना िचल नहतं हाेतत वरिे थाेड़े काल िबना िचल नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार् खुच जिे जितन पच बल आादद का खुच बहुत थाेड़े काल िबना िचल नहतं हाेता, वरिे बहुत थाेड़े काल िबना जाे िचल नहतं हाेतत, एेित िार्ा कषार् िार्ा कषार्
  • 29. एेित िार्ा हाेने पच उि- उि िार्ा िंबंधत गतत, शचीच आादद किाें काे बांधता ह ।
  • 30. िकमिचार्चक्कतणुिल-हरचद्दचाएण िरचिआाे लाेहाे। णाचर्ततरचक्खिाणुि-देवरेिुप्पार्आाे कििाे॥287॥ ❀आथय - कृ मिचाग, चक्रिल, शचीचिल आाच हल्दी के चंग के ििान उत्कृ ष्ट आादद शमि िे र्ुि िवरषर्ाें की आमभलाषारूप लाेभ कषार् क्रि िे जतवर काे नचकगतत, ततर्ंचगतत, िनुष्र्गतत आाच देवरगतत िें उत्पन्न कचातत ह ॥287॥
  • 31. िक्रमिचाग जिे िक्रमि कीड़े के िल का चंग बहुत घना काल िबना नष्ट नहतं हाेता वरिे जाे बहुत घना काल िबना नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ चक्रिल जिे पहहर्े का िल (ग्रति) घना काल िबना नष्ट नहतं हाेता वरिे जाे घना काल िबना नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ लाेभ कषार्
  • 32. तनुिल जिे शचीच का िल थाेड़े काल िबना नष्ट नहतं हाेता वरिे जाे थाेड़े काल िबना नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ हरचद्रा-चाग जिे हल्दी का चंग बहुत थाेड़े काल िबना नष्ट नहतं हाेता, वरिे जाे बहुत थाेड़े काल िबना नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ लाेभ कषार्
  • 33. एेिा लाेभ हाेने पच उि- उि लाेभ िंबंधत गतत, शचीच आादद किाें काे बांधता ह ।
  • 34. णाचर्ततरचक्खणचिुच-गईिु उप्पण्णपढिकालखम्ह। काेहाे िार्ा िाणाे, लाेहुदआाे आणणर्िाे वरािप॥288॥ ❀आथय - नचक, ततर्ंच, िनुष्र् तथा देवरगतत िें उत्पन्न हाेने के प्रथि ििर् िें क्रि िे क्राेध, िार्ा, िान आाच लाेभ का उदर् हाेता ह। ❀आथवरा र्ह तनर्ि नहतं भत ह॥288॥
  • 35. 4 गतत िें उत्पत्तत्त के प्रथि ििर् िें कषार् नचक ततर्ंच िनुष्र् देवर हिततर् सिद्ांत ― कषार्प्राभृत के व्र्ाख्र्ाता र्ततवरृषभाचार्य आनुिाच क्राेध िार्ा िान लाेभ प्रथि सिद्ांत ― िहाकियप्रकृ ततप्राभृत के कताय भूतबमल आाचार्य आनुिाच तनर्ि नहतं ― काेई भत कषार् का उदर् िंभवर ह
  • 36. आप्पपचाेभर्बाधण-बंधािंजिणणमित्तकाेहादी। जेसिं णस्त्थ किार्ा, आिला आकिाइणाे जतवरा॥289॥ ❀आथय - जजनके स्वरर्ं काे, दूिचे काे तथा दाेनाें काे हत बाधा देने आाच बन्द्धन कचने तथा आिंर्ि कचने िें तनमित्तभूत क्राेधाददक कषार् नहतं ह तथा ❀जाे बाह्य आाच आभ्र्न्द्तच िल िे चहहत हं ❀एेिे सिद् पचिेष्ठत आकषार्त जानना॥289॥
  • 37. स्वरर्ं काे पच काे स्वर-पच काे बंधन बाधा (घात) आिंर्ि जाे कषार् (िल) ह उििे चहहत हं तथा बाह्य आाच आभ्र्ंतच िल िे चहहत हं वरे आकषार्त जतवर हं िें तनमित्तभूत
  • 38. काेहाददकिार्ाणं, चउ चउदि वरति हाेंतत पद िंखा। ित्ततलेस्िाआाउग-बंधाबंधगदभेदेहहं॥290॥ ❀आथय - शमि, लेश्र्ा तथा आार्ु के बंधाबंधगत भेदाें की आपेक्षा िे क्राेधादद कषार्ाें के क्रि िे चाच, चादह आाच बति स्थान हाेते हं॥290॥ क्राेधादद कषार्ाें के स्थान शमि आपेक्षा 4 लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14 आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20
  • 39. सिलिेलवरेणुिूलहक्कमिचार्ादी किेण चत्तारच। काेहाददकिार्ाणं, ित्तत्तं पदड़ हाेंतत णणर्िेण॥291॥ ❀आथय - शशलाभेद आादद के ििान चाच प्रकाच का क्राेध, शल आादद के ििान चाच प्रकाच का िान, वरेणु (बााँि) िूल आादद के ििान चाच तचह की िार्ा, िक्रमिचाग आादद के ििान चाच प्रकाच का लाेभ, इि तचह क्राेधाददक कषार्ाें के उि तनर्ि के आनुिाच क्रि िे शमि की आपेक्षा चाच-चाच स्थान हं॥291॥
  • 40. शमि आपेक्षा 4 स्थान उत्कृ ष्ट तत्तच शशलाभेद, शशला, वरेणुिूल, िक्रमिचाग आनुत्कृ ष्ट तत् पृथ्वरतभेद, आस्स्थ, िेढे के सिंग, चक्रिल आजघन्द्र् िंद धूमल चेखा, काष्ठ, गाेिूत्र, तनुिल जघन्द्र् िंदतच जल चेखा, बेंत, खुचपा, हरचद्रा
  • 41. िकण्हं सिलाििाणे, िकण्हादी छक्किेण भूमिखम्ह। छक्कादी िुक्काे त्तत्त र्, धूमलखम्म जलखम्म िुक्के क्का॥292॥ ❀आथय - शशलाििान क्राेध िें के वरल कृ ष्ण लेश्र्ा की आपेक्षा िे एक हत स्थान हाेता ह। ❀पृथ्वरतििान क्राेध िें कृ ष्ण आाददक लेश्र्ा की आपेक्षा छह स्थान हं। ❀धूमलििान क्राेध िें छह लेश्र्ाआाें िे लेकच शुक्ललेश्र्ा पर्ंत छह स्थान हाेते हं आाच ❀जलििान क्राेध िें के वरल एक शुक्ललेश्र्ा हत हाेतत ह॥292॥
  • 42. कषार्ाें के लेश्र्ा-स्थान शमि स्थान शशलाभेद भूमिभेद लेश्र्ा स्थान कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ नत नत नत नत नत का का का का पत पत पत प प शु
  • 43. कषार्ाें के लेश्र्ा-स्थान शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा लेश्र्ा स्थान कृ नत का पत प शु शुक्ल नत का पत प शु का पत प शु पत प शु प शु शु
  • 44. शमि स्थान शशला भेद भूमिभेद धूमलचेखा जल चेखा लेश्र्ा स्थान कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ कृ नत का पत प शु शुक्ल नत नत नत नत नत नत का पत प शु का का काकाका पत प शु पत पत पत पत प शु प प प शु शु शु िंक्लेश हातन स्थान िवरशुणद् वरृणद् स्थान
  • 45. िेलगिकण्हे िुण्णं, णणचर्ं च र् भूगएगिवरठिाणे। णणचर्ं इगगिवरततआाऊ, ततठिाणे चारच िेिपदे॥293॥ ❀आथय - शलगत कृ ष्णलेश्र्ा िें कु छ स्थान ताे एेिे हं िक जहााँ पच आार्ुबंध नहतं हाेता। इिके आनन्द्तच कु छ स्थान एेिे हं िक जजनिें नचक आार्ु का बंध हाेता ह। ❀इिके बाद पृथ्वरतभेदगत पहले आाच दूिचे स्थान िें नचक आार्ु का हत बंध हाेता ह। इिके भत बाद कृ ष्ण, नतल, कापाेत लेश्र्ा के ततिचे भेद िें (स्थान िें) कु छ स्थान एेिे हं जहााँ नचक आार्ु का हत बंध हाेता ह आाच कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच दाे आार्ु का बंध हाे िकता ह तथा कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच तथा िनुष्र् ततनाें हत आार्ु का बंध हाे िकता ह। शेष के ततन स्थानाें िें चाचाें आार्ु का बंध हाे िकता ह॥293॥
  • 46. धूमलगछक्कठिाणे, चउचाऊततगदुगं च उवररचल्लं। पणचदुठाणे देवरं, देवरं िुण्णं च ततठिाणे॥294॥ ❀आथय - धूमलभेदगत छह लेश्र्ावराले प्रथि भेद के कु छ स्थानाें िें चाचाें आार्ु का बंध हाेता ह। इिके आनन्द्तच कु छ स्थानाें िें नचक आार्ु काे छाेड़कच शेष ततन आार्ु का आाच कु छ स्थानाें िें नचक, ततर्ंच काे छाेड़कच शेष दाे आार्ु का बंध हाेता ह। ❀कृ ष्णलेश्र्ा काे छाेड़कच पााँच लेश्र्ा वराले दूिचे स्थान िें तथा कृ ष्ण, नतल लेश्र्ा काे छाेड़कच शेष चाच लेश्र्ावराले तृततर्स्थान िें के वरल देवर आार्ु का बंध हाेता ह। आंत की ततन लेश्र्ावराले चाथे भेद के कु छ स्थानाें िें देवरार्ु का बंध हाेता ह आाच कु छ स्थानाें िें आार्ु का आबंध ह॥294॥
  • 47. िुण्णं दुगइगगठाणे, जलखम्ह िुण्णं आिंखभजजदकिा। चउचाेदिवरतिपदा, आिंखलाेगा हु पत्तेर्ं॥295॥ ❀आथय - इित के (धूमलभेदगत के हत) पद्म आाच शुक्ललेश्र्ा वराले पााँचवरें स्थान िें आाच के वरल शुक्ललेश्र्ा वराले छठे स्थान िें आार्ु का आबंध ह तथा जलभेदगत के वरल शुक्ललेश्र्ावराले एक स्थान िें भत आार्ु का आबंध ह। ❀इिप्रकाच कषार्ाें के शमि की आपेक्षा चाच भेद, लेश्र्ाआाें की आपेक्षा चादह भेद, आार्ु के बंधाबंध की आपेक्षा बति भेद हाेते हं। ❀इनिें प्रत्र्ेक के आवरान्द्तच भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण हं तथा आपने- आपने उत्कृ ष्ट िे आपने-आपने जघन्द्र् पर्यन्द्त क्रि िे आिंख्र्ातगुणे- आिंख्र्ातगुणे हतन हं॥295॥
  • 48. शमि स्थान शशलाभेद भूमिभेद लेश्र्ा स्थान कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ नत नत नत नत नत का का का का पत पत पत प प शु आार्ु बंध-आबंध स्थान 0 1 1 1 1 2 3 4 4 4 न न न न न, तत न, तत, ि चाचाें आार्ु चाचाें आार्ु चाचाें आार्ु आार्ु के बंध-आबंध स्थान
  • 49. शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा लेश्र्ा स्थान कृ नत का पत प शु शुक्ल नत का पत प शु का पत प शु पत प शु प शु शु आार्ु बंध- आबंध स्थान 4 3 2 1 1 1 0 0 0 0 चाचाें आार्ु तत, ि, दे ि, दे दे दे दे आार्ु के बंध-आबंध स्थान
  • 50. शमि स्थान शशला भेद भूमिभेद लेश्र्ा स्थान कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ नत नत नत नत नत का का का का पत पत पत प प शु आार्ु बंध- आबंध स्थान 0 1 1 1 1 2 3 4 4 4 न न न न न तत न तत ि चाचाें आा र्ु चा चाें आा र्ु चाचाें आा र्ु शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा लेश्र्ा स्थान कृ नत का पत प शु शुक्ल नत का पत प शु का पत प शु पत प शु प शु शु आार्ु बंध- आबंध स्थान 4 3 2 1 1 1 0 0 0 0 चा चाें आा र्ु तत ि दे ि, दे दे दे दे आार्ु के बंध-आबंध स्थान
  • 51. = 15आार्ु बंध स्थान = 5आार्ु आबंध स्थान = 10नचकार्ु बंध स्थान = 7ततर्ंच आार्ु बंध स्थान = 7िनुष्र् आार्ु बंध स्थान = 9देवर आार्ु बंध स्थान
  • 52. क्राेधादद कषार्ाें के स्थान शमि आपेक्षा 4 लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14 आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20 इन िभत शमि-स्थान, लेश्र्ा-स्थान, आार्ुबंध-आबंध स्थानाें के आवरान्द्तच भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण (≡ 𝝏) हं । पचन्द्तु उत्तचाेत्तच घटते-घटतेहं ।
  • 53. उदर्स्थान र्ाने कषार् का आनुभाग का स्थान । इतना आनुभाग उदर् हाेने पच इतनत िंक्लेशता र्ा िवरशुणद् के आंश हं । उनिें जतवर जिा उपर्ाेग कचे, वरित लेश्र्ा शुभ र्ा आशुभ बन जातत ह । िंद उदर् िें भत कृ ष्ण लेश्र्ा पार्त जातत ह । आत: िंद उदर् िें िंतुष्ट नहतं हाेना ।
  • 54. िवरशेष एक उदर्स्थान एक हत शमिरूप ह । एक हत उदर्स्थान िें छहाें लेश्र्ा हाे िकतत ह । एक हत उदर्स्थान िें चाचाें आार्ु का बंध हाे िकता ह ।
  • 55. कषार् िागयणा िें जतवराें की िंख्र्ा
  • 56. पुह पुह किार्कालाे, णणचर्े आंताेिुहुत्तपरचणािाे। लाेहादी िंखगुणाे, देवरेिु र् काेहपहुदीदाे॥296॥ ❀आथय - नचक िें नाचिकर्ाें के लाेभादद कषार् का काल िािान्द्र् िे आन्द्तिुयहतय िात्र हाेने पच भत पूवरय-पूवरय की आपेक्षा उत्तचाेत्तच कषार् का काल पृथक् -पृथक् िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा ह आाच देवराें िें क्राेधादद कषार् का उत्तचाेत्तच िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा काल ह॥296॥
  • 57. नचक आाच देवर गतत िें कषार् काल नरक गति देवगति काल लोभ क्रोध 1 अंिर्मुहूिु र्ाया र्ान 1 अंि × ४ र्ान र्ाया 1 अंि × ४ × ४ क्रोध लोभ 1 अंि × ४ × ४ × ४
  • 58. िव्वििािेणवरहहदिगिगचाित पुणाे िवर िंगुणणदे। िगिगगुणगाचेहहं र् िगिगचाितण परचिाणं॥297॥ ❀आथय - आपनत-आपनत गतत िें िम्भवर जतवरचाशश िें ििस्त कषार्ाें के उदर्काल के जाेड़ का भाग देने िे जाे लब्ध आावरे उिका आपने-आपने गुणाकाच िे गुणन कचने पच आपनत-आपनत चाशश का परचिाण तनकलता ह॥297॥
  • 59. आंक िंदृष्टष्ट िे उदाहचण: नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा लाेभ का काल = 1 आंत. िार्ा का काल = 4 आंत. िान का काल = 16 आंत. क्राेध का काल = 64 आंत. कु ल काल 85 आंत. िानािक िंख्र्ात का प्रिाण 4 ह
  • 60. उदाहचण: नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा ❀िाना िक नाचकी जतवर = 1700 ❀एक शलाका = िवरय नाचकी कु ल कषार् काल ❀ = 1700 85 आंत. = 20
  • 61. उदाहचण: नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा लाेभत नाचकी 1×20 = 20 िार्ावरत नाचकी 4×20 = 80 िानत नाचकी 16×20 = 320 क्राेधत नाचकी 64×20 = 1280 इित प्रकाच देवराें िें भत तनकालना । पचन्द्तु क्राेध िे लाेभ तक बढता काल लेना ।
  • 62. देवरगतत िें ― िाना िंख्र्ात = 4 कषार् काल जतवराें की िंख्र्ा क्राेध * िािान्द्र् िे िभत का काल आंतिुयहतय ह * आागे-आागे िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा ह 1 आंतिुयहतय कु ल देव 𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु × 𝟏 अंतर्ुुहूतु िान 1 आंत. × 4 = 4 आंत. कु ल देव 𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु × 𝟒 अंतर्ुुहूतु िार्ा 4 आंत. × 4 = 16 आंत. कु ल देव 𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु × 𝟏𝟔 अंतर्ुुहूतु लाेभ 16 आंत. × 4 = 64 आंत. कु ल देव 𝟖𝟓 अंतर्ुुहूतु × 𝟔𝟒 अंतर्ुुहूतु कु ल काल 85 आंत.
  • 63. णचततरचर् लाेहिार्ा-काेहाे िाणाे िवरइंददर्ाददव्व। आावरमलआिंखभज्जा, िगकालं वरा ििािेज्ज॥298॥ ❀आथय - िनुष्र्-ततर्ंचाें िें लाेभ, िार्ा, क्राेध आाच िानवराले जतवराें की िंख्र्ा जजि प्रकाच इखन्द्द्रर् िागयणा िें िीखन्द्द्रर्ादद जतवराें की िंख्र्ा आावरली के आिंख्र्ातवरें भाग का भाग दे-देकच ‘बहुभागे ििभागे' इत्र्ादद गाथा िाचा तनकाली थत, उित प्रकाच र्हााँ भत तनकालना चाहहर्े। आथवरा ❀आपने-आपने काल की आपेक्षा िे उि कषार्वराले जतवराें का प्रिाण तनकालना चाहहर्े॥298॥
  • 64. प्रततभाग िें बााँटने का तचीका ❀उदाहचण—िाना िक िवरय िनुष्र् चाशश = 256; एवरं आावरली आिंख्र्ात = 4 ❀ िनुष्र् जतवर आावरली आिंख्र्ात = 256 4 = 64 (एक भाग) ❀बहुभाग = िवरय चाशश – एक भाग 192 = 256 − 64 ❀बहुभाग के चाच ििान भाग कचाे । 192 4 = 48
  • 65. ❀ इिे प्रत्र्ेक कषार् िें बााँट दाे ❀शेष चहे एकभाग (64) काे पुन: प्रततभाग िे भाग दाे । ❀ 64 4 = 16 ❀एकभाग आलग चखकच बहुभाग लाेभ कषार् काे दाे । ❀ 64 – 16 = 48 (लाेभ कषार् का प्रततभाग) ❀शेष एकभाग काे पुन: प्रततभाग िे भाग लगाआाे । लाेभ िार्ा क्राेध िान ििभाग 48 48 48 48
  • 66. ❀ 16 4 = 4 ❀बहुभाग काे िार्ा कषार् िें दाे । ❀16 – 4 = 12 (िार्ा कषार् का प्रततभाग) ❀शेष एकभाग काे पुन: प्रततभाग िे भाग दाे । ❀ 4 4 = 1 ❀बहुभाग काे क्राेध कषार् काे दाे । 4 – 1 = 3 ❀शेष एकभाग काे िान कषार् काे दाे । 1
  • 67. िनुष्र्ाें िें कषार्त जतवराें की िंख्र्ा लाेभ िार्ा क्राेध िान ििभाग 48 48 48 48 प्रततभाग 48 12 3 1 कु ल िंख्र्ा 96 60 51 49
  • 68. इित प्रकाच वरास्तिवरक गणणत िें कचना चाहहए । • जगत् श्रेणत िूच्र्ंगुल × 𝟑 िूच्र्ंगुल − 1 कु ल िनुष्र् • िनुष्र् चाशश 4 + लाेभत िनुष्र् कु ल िनुष्र्ाें के चतुथय भाग िे कु छ आष्टधक हं । • िनुष्र् चाशश 4 −िार्ावरत िनुष्र् चतुथय भाग िे कु छ कि हं र्ाने • िनुष्र् चाशश 4 =क्राेधत िनुष्र् कु छ आाच कि हं — • िनुष्र् चाशश 4 ≡िानत िनुष्र् कु छ आाच कि हं —
  • 69. लाेभत ततर्ंच िवरायष्टधक ततर्ंच चाशश 4 + िार्ावरत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश 4 − क्राेधत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश 4 = िानत ततर्ंच िबिे कि ततर्ंच चाशश 4 ≡ इित प्रकाच ततर्ंचाें िें भत ििझना चाहहए । आथायत्
  • 70. िनुष्र् आाच ततर्ंच गतत िें कषार्ाें का काल लाेभ का काल िवरायष्टधक िार्ा का काल कु छ कि क्राेध का काल कु छ कि िान का काल िबिे कि इि काल के आाधाच िे भत जतवराें की िंख्र्ा तनकाली जा िकतत ह जाे पूवराेयि हत आाएगत ।