1. आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र
आ दद श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि
तैय ि वकये गए हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे
के पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
9. संखेआ े आ ेघ े त्तत्त य, गणसण्ण स ि म ेहज ेगभव ।
ववत्थ ि देस े त्तत्त य, मग्गणसण्ण सकम्म्भव ॥3॥
☸संक्षेप आ ैि आ ेघ यह गणस्थ ि की संज्ञ है आ ैि वह म ेह तथ य ेग के
निलमत्त से उत्पन्न ह ेती है ।
☸इसी तिह ववस्त ि तथ आ देश यह म गवण की संज्ञ है आ ैि वह भी
आपिे-आपिे य ेग्य कम ेों के उदय दद से उत्पन्न ह ेती है तथ
☸िक ि से गणस्थ ि की स म न्य एवं म गवण की ववशेष संज्ञ भी ह ेती है
॥3॥
10. गणस्थ ि
संक्षेप, आ ेघ, स म न्य
म ेह आ ैि य ेग
म गवण
ववस्त ि, आ देश, ववशेष
आपि -आपि कमव उदय दद
आन्य
ि म
क िण
11. आ देसे संिीण , जीव पज्जत्तत्त-प ण-सण्ण आ े।
उवआ ेग े वव य भेदे, वीसं तु परूवण भणणद ॥4॥
आथव - जीवसम स, पय वनि, प्र ण, संज्ञ आ ैि उपय ेग इि सब
भेद ें क म गवण आ ें में ही भिे प्रक ि आन्तभ वव ह े ज त है।
इसलिये आभेद वववक्ष से गणस्थ ि आ ैि म गवण ये द े प्ररूपण
ही म ििी ि हहये। वकन्तु बीस प्ररूपण ज े कही हैं वे भेद वववक्ष
से हैं ॥4॥
20 प्ररूपण आ ें क आंतभ वव
12. गणस्थ ि म गवण में गलभवत
जीवसम स पय वनि प्र ण संज्ञ उपय ेग
प्ररूपण
13. इंददयक ये िीण , जीव पज्जत्तत्त-आ ण-भ स-मण े।
ज ेगे क आ े ण णे, आक्ख गददमग्गणे आ ऊ॥5॥
☸आथव – जीव-सम स एवं पय वनि क इन्द्न्रय तथ क य-
म गवण में
☸श्व स ेच््वस, विि-बि एवं मि े-बि प्र ण ें क पय वनि में
☸क यबि प्र ण क य ेग-म गवण में,
☸इन्द्न्रय प्र ण ें क ज्ञ ि-म गवण में एवं
☸आ य-प्र ण क गनत-म गवण में आंतभ वव ह ेत है ॥5॥
14. ☸आथव - आ ह ि संज्ञ क म य तथ ि ेभ कष य में,
भय संज्ञ क क्र ेि तथ म ि कष य में,
मैथि संज्ञ क वेद कष य में एवं
परिग्रह संज्ञ क ि ेभ कष य में आंतभ वव ह ेत है ॥6॥
म य ि ेहे िददपव्व ह िं, क ेहम णगन्द्म्ह भयं।
वेदे मेहुणसण्ण , ि ेहन्द्म्ह परिग्गहे सण्ण ॥6॥
15. स ग ि े उवज ेग े, ण णे मग्गन्द्म्ह दंसणे मग्गे।
आणग ि े उवआ ेग े, िीण े त्तत्त जजणेहहं णणदट्ठं॥7॥
☸आथव - स क ि उपय ेग क ज्ञ िम गवण में एवं
☸आि क ि उपय ेग क दशवि म गवण में आंतभ वव ह ेत है,
☸एेस जजिेन्र भगव ि िे निददवष्ट वकय है ॥7॥
16. प्ररूपण म गवण संबन्ि वकस प्रक ि
जीवसम स इन्द्न्रय एवं क य
स्वरूप-स्वरूपव ि्
स म न्य-ववशेष
इन्द्न्रय,क य - स्वरूप ।
जीवसम स – स्वरूपव ि् ।
जीवसम स - स म न्य । इन्द्न्रय,क य -
ववशेष
पय वनि इन्द्न्रय एवं क य िमव-िमीव पय वनि-िमव । इन्द्न्रय,क य - िमीव
प्र ण
-५ इन्द्न्रय
-क य-बि
-विि-बि
-मि े-बि
-श्व स ेच््वस
-आ य
ज्ञ ि क िण-क यव इन्द्न्रय - क िण । ज्ञ ि - क यव
य ेग स म न्य-ववशेष य ेग –स म न्य । क य बि-ववशेष
पय वनि में
इन्द्न्रय एवं क य
क िण-क यव
िमव-िमीव
पय वनि -क िण । ३ प्र ण -क यव
पय वनि - िमव ।
इन्द्न्रय,क य - िमीव
गनत स हियव
आ य एवं गनत क उदय
स थ-स थ ही ह ेत है
18. आथव - दशविम ेहिीय आ दद कम ेों की उदय, उपशम, क्षय,
क्षय ेपशम आ दद आवस्थ के ह ेिे पि उत्पन्न ह ेिेव िे जजि
परिण म ें से यक्त जीव देखे ज ते हैं, जीव ें के उि परिण म ें
क े गणस्थ ि कह है ॥8॥
गणस्थ ि क िक्षण
जेहहं द िन्द्क्खज्जंते, उदय ददसु संभवेहहं भ वेहहं ।
जीव ते गणसण्ण , णणदट्ठ सव्वदिसीहहं ॥8॥
19. गणस्थ ि िक्षण
म ेहिीय आ दद कम ेों के
उदय, उपशम, क्षय आ ैि क्षय ेपशम आवस्थ के
ह ेिे पि
जीव के श्रद् आ ैि ि रित्र गण की
त ितम्य-रूप आवस्थ क े
गणस्थ ि कहते हैं
20. उि परिण म ें य पय वय ें से
यक्त जीव
उस-उस गणस्थ ि
व ि कहि त है।
21. म ेहिीय
दशवि म ेहिीय
श्रद् गण के ववपिीत
परिणमि में निलमत्त
ि रित्र म ेहिीय
ि रित्र गण के ववपिीत
परिणमि में निलमत्त
22. लमच्छ े स सण लमस्स े, आवविदसम्म े य देसवविद े य ।
वविद पमत्त इदि े, आपव्व आणणयट््ि सुहम े य ॥ 9 ॥
उवसंत खीणम ेह े, सज ेगके वलिजजण े आज ेगी य ।
ि ेटस जीवसम स , कमेण ससद् य ण दव्व ॥ 10 ॥
☸लमथ्य त्व, स सि, लमश्र, आववित सम्यग्ृधष्ट, देशववित,
प्रमत्तववित, आप्रमत्तववित, आपूववकिण, आनिवृत्तत्तकिण,
सूक्ष्म स म्पि य, उपश ंत म ेह, क्षीण म ेह, सय ेगके विी
जजि आ ैि आय ेगके विी जजि – ये ि ैदह जीवसम स
(गणस्थ ि) हैं । आ ैि ससद् इि जीवसम स ें-गणस्थ ि ें से
िहहत हैं ।
23. 14 गणस्थ ि
क्र. गणस्थ ि ि म स म न्य स्वरूप
१ लमथ्य त्व आतत्त्वश्रद् ि
२ स स दि सम्यक्त्व की ववि िि सहहत
३ सम्यनिथ्य त्व (लमश्र) सम्यक्त्व भी, लमथ्य त्व भी
४ आववित सम्यक्त्व सम्यक्त्व, पि स थ में आसंयम
५ देशववित (संयम संयम) एकदेश संयमी
६ प्रमत्त-ववित प्रम द के स थ में पूणव संयम
७ आप्रमत्त-ववित प्रम द के वबि पूणव संयम
24. क्र. गणस्थ ि ि म स म न्य स्वरूप
८ आपूववकिण जजसके आपूवव-आपूवव परिण म हैं
९ आनिवृत्तत्तकिण जजसके परिण म ें में भेद िहीं है
१० सूक्ष्म स म्पि य जजसके कष य सूक्ष्म है
११ उपश ंत म ेह जजसक म ेह उपश ंत हुआ है
१२ क्षीण म ेह जजसक म ेह क्षीण हुआ है
१३ सय ेग के विी य ेगसहहत के विज्ञ िी
१४ आय ेग के विी य ेगिहहत के विज्ञ िी
25. आ दद दीपक
आथ वत् यह ँ से िेकि आ गे के सभी गणस्थ ि ें में ये भ व प य
ज त है
जैसे आववित सम्यक्त्व में सम्यक्त्व शब्द आ दद दीपक है
4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 ससद्
क ेंवक ितुथव गणस्थ ि से सभी जीव सम्यक्त्वी ही हैं
26. आ दद दीपक
6 7 8 9 10 11 12 13 14
6 से सभी जीव ववित हैं
छठे में ववित शब्द
27. आ दद दीपक
7 8 9 10 11 12 13 14
7 से सभी जीव प्रम द-िहहत हैं
स तवें में आप्रमत्त शब्द
28. आ दद दीपक
14 ससद्
14 से सभी जीव य ेग-िहहत हैं
ि ैदहवें में आय ेग शब्द
29. मध्य दीपक
☸आथ वत् इसके आ गे व पीछे द ेि ें तिफ के गणस्थ ि ें में यह
भ व प य ज त है
30. तेिहवें में जजि शब्द
मध्य दीपक
4...........13...........14
ि ैथे से ि ैदहवें तक सभी क े जजि संज्ञ है
31. आन्त्य दीपक
☸आथ वत् यह ँ से िेकि पहिे के सभी गणस्थ ि े में यह भ व
प य ज त है, पिन्तु इससे आ गे िहीं प य ज त
जैसे ि ैथे में आववित शब्द आंत दीपक
1 2 3 4
4 तक के सभी जीव आववित हैं
32. आंत दीपक
1 2 3 4 5 6
6 तक के सभी जीव प्रमत्त हैं
छठे में प्रमत्त शब्द
33. आंत दीपक
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13
13 तक के सभी जीव य ेगसहहत हैं
तेिहवें में सय ेग शब्द
34. लमच्छे खिु आ ेदइआ े, ववददये पण प िण लमआ े भ व े।
लमस्से खआ ेवसलमआ े, आवविदसम्मन्द्म्ह नतण्णेव॥11॥
☸आथव - प्रथम गणस्थ ि में आ ैदययक भ व ह ेते हैं आ ैि
☸हद्वतीय गणस्थ ि में प रिण लमक भ व ह ेते हैं।
☸लमश्र में क्ष य ेपशलमक भ व ह ेते हैं आ ैि
☸ितुथव गणस्थ ि में आ ैपशलमक, क्ष ययक,
क्ष य ेपशलमक इसप्रक ि तीि ें ही भ व ह ेते हैं ॥11॥
गणस्थ ि ें में भ व
35. एदे भ व णणयम , दंसणम ेहं पड़ुच्च भणणद हु।
ि रित्तं णत्त्थ जद े, आवविदआंतेसु ठ णेसु॥12॥
आथव - लमथ्य ृधष्ट आ दद गणस्थ ि ें में ज े नियमरूप से
आ ैदययक ददक भ व कहे हैं वे दशवि म ेहिीय कमव की आपेक्ष
से हैं क ेंवक ितुथव गणस्थ ि पयवन्त ि रित्र िहीं प य ज त
॥12॥
36. जीव के आस ि िणभ व
जीव के आनतरिक्त आन्य रव्य ें में ि प ये ज िे
व िे आथ वत् म त्र जीव में ही प ये ज िे व िे
भ व ें क े जीव के आस ि िणभ व कहते हैं ।
37. आ ैपशलमक भ व
☸म ेहिीय कमव के
आंतिकिणरूप उपशम के
निलमत्त से ह ेिेव िे जीव
के भ व ें क े आ ैपशलमक
भ व कहते हैं ।
38. क्ष ययक भ व
☸ कमवक्षय के समय में
ह ेिेव िे एवं भववष्य में
आिंत क ि पयोंत
िहिेव िे जीव के
शुद्भ व ें क े क्ष ययक
भ व कहते हैं ।
39. क्ष य ेपशलमक भ व
कमव के क्षय ेपशम के निलमत्त से ह ेिेव िे
जीव के भ व ें क े
क्ष य ेपशलमक भ व कहते हैं
40. आ ैदययक भ व
कम ेवदय के निलमत्त
से ह ेिेव िे जीव के
भ व ें क े आ ैदययक
भ व कहते हैं ।
41. प रिण लमक भ व
पूणवत: कमवनििपेक्ष आथ वत्
कमव के उपशम, क्षय, क्षय ेपशम आ ैि उदय से नििपेक्ष
जीव के परिण म ें क े प रिण लमक भ व कहते हैं ।
42. गणस्थ ि भ व आपेक्ष
१ आ ैदययक
दशवि म ेहिीय
२ प रिण लमक
३ क्ष य ेपशलमक
४
आ ैपशलमक,
क्ष य ेपशलमक, क्ष ययक
गणस्थ ि ें में भ व
43. देसवविदे पमत्ते, इदिे व खआ ेवसलमयभ व े द।
स े खिु िरित्तम ेहं, पड़ुच्च भणणयं तह उवरिं॥13॥
☸आथव - देशववित, प्रमत्त, आप्रमत्त - इि गणस्थ ि ें में
ि रित्र म ेहिीय की आपेक्ष क्ष य ेपशलमक भ व ह ेते हैं तथ
☸इिके आ गे आपूववकिण आ दद गणस्थ ि ें में भी ि रित्र
म ेहिीय की आपेक्ष से ही भ व ें क े कहेंगे ॥13॥
44. तत्त े उवरिं उवसमभ व े, उवस मगेसु खवगेसु।
खइआ े भ व े णणयम , आज ेयगिरिम े त्तत्त ससद्े य॥14॥
☸आथव - स तवें गणस्थ ि से ऊपि उपशम-श्रेणीव िे आ ठवें,
ि ैवें, दशवें गणस्थ ि में तथ ग्य िहवें उपश ंत-म ेह में
आ ैपशलमक भ व ही ह ेते हैं।
☸इसीप्रक ि क्षपकश्रेणीव िे उक्त तीि ें ही गणस्थ ि ें में तथ
क्षीणम ेह, सय ेगके विी, आय ेगके विी इि तीि गणस्थ ि ें
में आ ैि गणस्थ ि तीत ससद् ें के नियम से क्ष ययकभ व ही
प य ज त है ॥14॥
45. गणस्थ ि भ व आपेक्ष
5 क्ष य ेपशलमक
ि रित्र
म ेहिीय
6 - 7 क्ष य ेपशलमक
8, 9, 10, 11
(उपशम श्रेणी)
आ ैपशलमक
8, 9, 10, 12
(क्षपक श्रेणी)
क्ष ययक
13, 14, ससद् क्ष ययक
गणस्थ ि ें में भ व
46. आथव - लमथ्य त्व प्रकृ नत के उदय से ह ेिे व िे तत्त्व थव के
आश्रद् ि क े लमथ्य त्व कहते हैं।
इसके प ँि भेद हैं - एक न्त, ववपिीत, वविय, संशययत आ ैि
आज्ञ ि ॥15॥
लमथ्य त्व गणस्थ ि
लमच्छ ेदयेण लमच्छत्तमसटहणं तु तच्च-आत्थ णं।
एयंतं ववविीयं, ववणयं संसययदमण्ण णं॥15॥
51. लमथ्य त्व के भेद
एक ंत ववपिीत वविय संशययत आज्ञ ि
52. • वस्तु के एक आंश क े सम्पूणव वस्तु म िि
• जैसे - वस्तु नित्य ही है य वस्तु आनित्य ही है
एक ंत
• ववपिीतरूप म िि
• जैसे - हहंस दद यज्ञ से स्वगव सुख म िि , स्त्री क े
म ेक्ष प्र नि म िि
ववपिीत
• समस्त देव व मत ें मे समदशीवपि
• जैसे - गरुििण पूजिरूप वविय ही से मलक्त म िि
वविय
53. •देश ंति व क ि ंति में आन्यथ भ व ह ेिे से
मनत द्वैववध्य
•जैसे - िमव ि गमय है य वीति गमय है
संशययत
• वस्तु के स म न्य-ववशेष भ व के ववषय में आज्ञ ि से
उत्पन्न श्रद् ि
• जैसे - आिेक ंत स्वरूप वस्तु के स म न्य क आ ैि
जीव क िक्षण उपय ेग है एेसे ववशेष के ब िे में
आज्ञ ि
आज्ञ ि
54. एक ंत दद लमथ्य त्व के ृष्ट ंत
आथव - ब ैद् दद मतव िे एक न्त लमथ्य ृधष्ट हैं। य णज्ञक
ब्र ह्मण दद ववपिीत लमथ्य ृधष्ट हैं। त पस दद वविय लमथ्य ृधष्ट
हैं। इन्र ि मक श्वेत म्बि गरु आ दद संशय लमथ्य ृधष्ट हैं आ ैि
मस्किी (मसिम ि) सन्य सी आ ददक आज्ञ ि लमथ्य ृधष्ट हैं
॥16॥
एयंत बद्दिसी, ववविीआ े बह्म त वस े ववणआ े।
इंद े वव य संसइय े, मक्कदड़य े िेव आण्ण णी॥16॥
55. लमथ्य त्व ृष्ट ंत
एक ंत ब ैद्
ववपिीत ब ह्मण
वविय त पसी
संशययत इंर ि म के श्वेत म्बि गरु
आज्ञ ि मस्किी(मसिम ि)
एक ंत दद के ृष्ट ंत
56. लमच्छंतं वेदंत े, जीव े ववविीयदंसण े ह ेदद।
ण य िम्मं ि ेिेदद हु, महुिं खु िसं जह जरिद े॥17॥
आथव - लमथ्य त्व प्रकृ नत के उदय से उत्पन्न
ह ेिे व िे लमथ्य परिण म ें क आिभव
कििेव ि जीव ववपिीत श्रद् िव ि
(आतत्त्वश्रद् ि संयक्त) ह े ज त है। उसक े
जजस प्रक ि वपत्त ज्वि से यक्त जीव क े
मीठ िस भी आच्छ म िूम िहीं ह ेत उसी
प्रक ि यथ थव िमव आच्छ िहीं म िूम ह ेत
- रुलिकि िहीं ह ेत ॥17॥
57. उद हिण
जैसे
वपत्तज्वि से यक्त
जीव क े
मीठ िस भी कटु
िगत है
ससद् ंत
वैसे
लमथ्य त्व से यक्त
जीव क े
िमव िहीं रुित है
58. आथव - लमथ्य ृधष्ट जीव समीिीि आहवन्त आ ददक के पूव वपि
ववि ेि दद द ेष ें से िहहत आ ैि हहत के कििे व िे भी विि ें क
यथ थव श्रद् ि िहीं कित । वकन्तु इसके ववपिीत आ ि य वभ स ें के
द्व ि उपददष्ट य आिपददष्ट आसद्भ व क आथ वत् पद थव के ववपिीत
स्वरूप क इच्छ िस ि श्रद् ि कित है ॥18॥
लमथ्य ृधष्ट के ब ह्य लिन्ह
लमच्छ इ्ठी जीव े, उवइ्ठं पवयणं ण सटहदद।
सटहदद आसब्भ वं, उवइ्ठं य आणवइ्ठं॥18॥
59. लमथ्य ृधष्ट के ब ह्य लिन्ह
उपददष्ट (उपदेशशत)
• आिहंत के विि ें पि श्रद् िहीं
कित है
• कदेव दद के लमथ्य विि ें पि श्रद्
कित है
आिपददष्ट (वबि उपदेशशत)
•लमथ्य विि ें पि श्रद् कित
है
61. आगृहीत लमथ्य त्व
आ+गृहीत= िय िहीं ग्रहण वकय
आथ वत् - इस भव में ज े ववपिीत म न्यत ियी
ग्रहण िहीं की,
आि दद से वबि ग्रहण वकये ििी आ िही ववपिीत म न्यत
63. स स दि सम्यक्त्व गणस्थ ि
आथव - प्रथम ेपशम सम्यक्त्व के आथव ‘व ’ शब्द से हद्वतीय ेपशम सम्यक्त्व के
आन्तमवहतव म त्र क ि में से
जब जघन्य एक समय तथ उत्कृ ष्ट छह आ विी प्रम ण क ि शेष िहे
उतिे क ि में आिंत िबन्िी क्र ेि, म ि, म य , ि ेभ में से वकसी एक के उदय में
आ िे से
सम्यक्त्व की ववि िि ह ेिे पि सम्यग्दशवि गण की ज े आव्यक्त आतत्त्वश्रद् िरूप
परिणनत ह ेती है, उसक े स सि य स स दि गणस्थ ि कहते हैं ॥19॥
आ ददमसम्मत्तद् , समय द े छ वलि त्तत्त व सेसे।
आणआण्णदरुदय द े, ण ससयसम्म े त्तत्त स सणक्ख े स े॥19॥
64. स स दि
स + आ स दि
स = सहहत; आ स दि = ववि िि
सम्यक्त्व की ववि िि के स थ ज े िहे
65. स स दि सम्यक्त्व
परिण म
आव्यक्त आतत्त्वश्रद् ि
निलमत्त
आिंत िबंिी क्र ेि,
म ि, म य , ि ेभ में से
वकसी एक क उदय
66. दूसिे गणस्थ ि की प्र नि कब ह ेती है ?
☸आ ैपशलमक सम्यक्त्व के क ि में
☸कम से कम 1 समय
☸ज्य द से ज्य द 6 आ वलि शेष िहिे पि
☸4, 5 य 6 वकसी भी 1 गणस्थ ि से यगििे पि
67. कमव त्स्थनत
उपशम सम्यक्त्व क क ि
1 समय से 6 आ विी क ि
= स स दि सम्यक्त्व
आिंत िबंिी क उदय
लमथ्य त्व क आिदय
68. o o
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लमथ्य त्व आिंत िबंिी
आ ैपशलमक सम्यक्त्व
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लमथ्य त्व आिंत िबंिी
आ ैपशलमक सम्यक्त्व
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लमथ्य त्व आिंत िबंिी
स स दि आवस्थ
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लमथ्य त्व आिंत िबंिी
आ ैपशलमक सम्यक्त्व
69. सम्मत्तियणपव्वयससहि द े लमच्छभूलमसमलभमह े।
ण ससयसम्मत्त े स े, स सणण म े मणेयव्व े॥20॥
आथव - सम्यक्त्वरूपी ितपववत के शशखि से यगिकि ज े जीव
लमथ्य त्वरूपी भूलम के सम्मख ह े िक है, आतएव जजसिे
सम्यक्त्व की ववि िि (ि श) कि दी है, आ ैि लमथ्य त्व क े
प्र ि िहीं वकय है, उसक े स सि य स स दि गणस्थ िवतीव
कहते हैं ॥20॥
70. जैसे ितपववत रूपी शशखि से
पनतत भूलम की आ ेि िीिे यगििे
व ि
वैसे सम्यक्त्व रूपी शशखि से
पनतत लमथ्य त्व-रूपी भूलम की
आ ेि िीिे यगििे व ि
71. स स दि के स थ सम्यक्त्व शब्द क ें है?
भूत-िैगम िय से सम्यक्त्व संज्ञ कहि ती है
क ि भी आभी सम्यक्त्व क ही है
दशवि म ेहिीय कमव क आभी उपशम ही है
72. जैसे-
भूख मिष्य
शक्कि की खीि ख वमि
कि
ब द में वकं लित् स्व द िेत है
वैसे-
उपशम सम्यक्त्वी यगििे पि
लमथ्य त्व में पहुँििे के पहिे
वबगड़े हुये सम्यक्त्व क
वकं लित् स्व द िेत है
73. ☸प्रश्न: त े क यह ँ सम्यक्त्व प य ज िह है?
☸उत्ति: िहीं प य ज िह । यह ँ सम्यक्त्व की ववि िि है ।
☸पिन्तु यह ँ पि त े लमथ्य त्व क उदय ही िहीं है । म त्र
आिंत िबंिी क ही उदय है । आ ैि आिंत िबंिी ि रित्र
म ेहिीय की प्रकृ नत है। वफि सम्यक्त्व क ि श कै से ?
75. सम्यक्त्व के ि श में निलमत्त द ेि ें हैं
लमथ्य त्व आिंत िबंिी
76. लमथ्य ि रित्र
क ें?
क ेंवक श्रद्
लमथ्य है
स स दि
गणस्थ ि
में ि रित्र
क ैि-स
हैं?
77. स स दि गणस्थ ि सम्बन्िी तथ्य
इस गणस्थ ि क क ि सम ि ह ेिे पि जीव नियम से लमथ्य त्व में ज त है ।
ये ऊपि से यगििे क ही गणस्थ ि है ।
प्रथम गणस्थ ि से हद्वतीय गणस्थ ि कभी प्र ि िहीं ह ेत है ।
म त्र उपशम सम्यक्त्वी ही स स दि क े प्र ि ह ेते हैं, शेष िहीं ।
78. Reference : ग ेम्मटस ि जीवक ण्ड़, सम्यग्ज्ञ ि िंदरक ,
ग ेम्मटस ि जीवक ंड़ िेख लित्र एवं त लिक आ ें में
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