1. अावयक िनवेदन
तत अययन सामी, तालकाए एव च
अाद ीमती सारका वकास छाबड़ा ारा
तैयार कये गए है |
इनका अय एव अय भाषा मे उपयाेग करने
के पूव उनसे अिनवायत: सपक कर ले |
गाेटसार
जीवकाड
अाचाय नेमीच सात-चवती ारा रचत
Presentation Developed By:
Smt Sarika Vikas Chhabra
थ ार करने के पूव जानने याेय 6 बाते
• गाेटसार जीवकाड अपरनाम पसहथ का नाम
• 1. मूलकता, 2.अथकता, 3. उरकताकता
• 22 अधकार, गाथा सया - 734माण
•अथात् याेजनहेत
• भय जीवाे के िनम, चामुडराय राजा के के उर हेतिनम
• नेमनाथ भगवान काे नमकार तथा
• थ के कहने क िता
मगलाचरण
हेत
य
अान का वनाश
सयान पी सूय क उप
देव-मनुयाद ारा पूजा ाि
कम िनजरा
पराे
अयुदय सख
माे सख
2. गाथा 1 : मगलाचरण
जाे स, श एव अकलक है एव
जनके सदा गुणपी राे के भूषणाे का उदय रहता है,
एेसे ी जनेवर नेमच वामी काे नमकार करके
जीव क पणा काे कगा
स स पणमय जणदवरणेमचदमकलक
गुणरयणभूसणुदय जीवस पवण वाेछ
गुण जीवा पी पाणा सणा य मगणाअाे य
उवअाेगाे व य कमसाे वीस त पवणा भणदा 2
गुणथान, जीवसमास, पयाि, ाण, सा, चाैदह मागणा अाैर उपयाेग
इस कार ये बीस पणा पूवाचायाे ने कही है 2
थ का वषय
20 पणाये
गुणथानगुणथान
जीव समासजीव समास
पयािपयाि
ाणाण
सासा
14 मागणा14 मागणा
उपयाेगउपयाेग
14 मागणाये
गित
इय
काय
याेग
वेद
कषाय
ान
सयम
दशन
लेया
भय
सयव
सी
अाहार
3. सखेअाे अाेघाे य, गुणसणा सा च माेहजाेगभवा
वथारादेसाे य, मगणसणा सकवा 3
सेप अाैर अाेघ यह गुणथान क सा है अाैर वह माेह तथा याेग के
िनम से उप हाेती है
इसी तरह वतार तथा अादेश यह मागणा क सा है अाैर वह भी
अपने-अपने याेय कमाे के उदयाद से उप हाेती है तथा
चकार से गुणथान क सामाय एव मागणा क वशेष सा भी हाेती है
3
गुणथान
सेप, अाेघ, सामाय
माेह अाैर याेग
मागणा
वतार, अादेश, वशेष
अपना-अपना कम उदयाद
अय
नाम
कारण
अादेसे सलणा, जीवा प-पाण-सणाअाे
उवअाेगाे व य भेदे, वीस त पवणा भणदा 4
अथ - जीवसमास, पयाि, ाण, सा अाैर उपयाेग इन सब
भेदाे का मागणाअाे मे ही भले कार अतभाव हाे जाता है
इसलये अभेद ववा से गुणथान अाैर मागणा ये दाे पणा
ही माननी चाहये कत बीस पणा जाे कही है वे भेद ववा
से है 4
20 पणाअाे का अतभाव
गुणथान मागणा मे गभत
जीवसमास पयाि ाण सा उपयाेग
पणा
4. इदयकाये लणा, जीवा प-अाण-भास-मणाे
जाेगे काअाे णाणे, अखा गदमगणे अाऊ 5
अथ – जीव-समास एव पयाि का इय तथा काय-
मागणा मे
ासाेास, वचन-बल एव मनाे-बल ाणाे का पयाि मे
कायबल ाण का याेग-मागणा मे,
इय ाणाे का ान-मागणा मे एव
अायु-ाण का गित-मागणा मे अतभाव हाेता है 5
अथ - अाहार सा का माया तथा लाेभ कषाय मे,
भय सा का ाेध तथा मान कषाय मे,
मैथुन सा का वेद कषाय मे एव
परह सा का लाेभ कषाय मे अतभाव हाेता है 6
मायालाेहे रदपुाहार, काेहमाणगह भय
वेदे मेणसणा, लाेहह परगहे सणा 6
सागाराे उवजाेगाे, णाणे मगह दसणे मगे
अणगाराे उवअाेगाे, लणाे जणेह ण 7
अथ - साकार उपयाेग का ानमागणा मे एव
अनाकार उपयाेग का दशन मागणा मे अतभाव हाेता है,
एेसा जने भगवान ने िनद कया है 7
पणा मागणा सबध कस कार
जीवसमास इय एव काय
वप-वपवान्
सामाय-वशेष
इय,काय - वप
जीवसमास – वपवान्
जीवसमास - सामाय इय,काय -
वशेष
पयाि इय एव काय धम-धमी पयाि-धम इय,काय - धमी
ाण
- इय
-काय-बल
-वचन-बल
-मनाे-बल
-ासाेास
-अायु
ान कारण-काय इय - कारण ान - काय
याेग सामाय-वशेष याेग –सामाय काय बल-वशेष
पयाि मे
इय एव काय
कारण-काय
धम-धमी
पयाि -कारण ३ ाण -काय
पयाि - धम
इय,काय - धमी
गित साहचय
अायु एव गित का उदय
साथ-साथ ही हाेता है
5. पणा मागणा सबध कस कार
सा
अाहार
माया एव लाेभ कषाय वप-वपवान्
अाहार (राग) - वप
कषाय (राग) - वपवान्
भय
ाेध एव मान कषाय
वप-वपवान्
भय (ेष) - वप
कषाय (ेष) - वपवान्
मैथुन वेद कषाय काय-कारण वेद कषाय –कारण मैथुन -काय
परह लाेभ कषाय काय-कारण
लाेभ कषाय - कारण
परह - काय
उपयाेग
ान
दशन
ान काय-कारण ानाेपयाेग -कारण ान -काय
दशन काय-कारण दशनाेपयाेग -कारण दशन -काय
अथ - दशनमाेहनीय अाद कमाे क उदय, उपशम, य,
याेपशम अाद अवथा के हाेने पर उप हाेनेवाले जन
परणामाे से यु जीव देखे जाते है, जीवाे के उन परणामाे
काे गुणथान कहा है 8
गुणथान का लण
जेह दु लखते, उदयादस सभवेह भावेह
जीवा ते गुणसणा, णा सदरसीह 8
गुणथान लण
माेहनीय अाद कमाे के
उदय, उपशम, य अाैर याेपशम अवथा के
हाेने पर
जीव के ा अाैर चार गुण क
तारतय-प अवथा काे
गुणथान कहते है
उन परणामाे या पयायाे से
यु जीव
उस-उस गुणथान
वाला कहलाता है
6. माेहनीय
दशन माेहनीय
ा गुण के वपरत
परणमन मे िनम
चार माेहनीय
चार गुण के वपरत
परणमन मे िनम
मछाे सासण मसाे, अवरदसाे य देसवरदाे य
वरदा पम इदराे, अपु अणय सहमाे य 9
उवसत खीणमाेहाे, सजाेगके वलजणाे अजाेगी य
चाेस जीवसमासा, कमेण सा य णादा 10
मयाव, सासन, म, अवरत सय, देशवरत,
मवरत, अमवरत, अपूवकरण, अिनवृकरण,
सू सापराय, उपशात माेह, ीण माेह, सयाेगके वल
जन अाैर अयाेगके वल जन – ये चाैदह जीवसमास
(गुणथान) है अाैर स इन जीवसमासाे-गुणथानाे से
रहत है
14 गुणथान
. गुणथान नाम सामाय वप
१ मयाव अतवान
२ सासादन सयव क वराधना सहत
३ सयियाव (म) सयव भी, मयाव भी
४ अवरत सयव सयव, पर साथ मे असयम
देशवरत (सयमासयम) एकदेश सयमी
६ म-वरत माद के साथ मे पूण सयम
७ अम-वरत माद के बना पूण सयम
. गुणथान नाम सामाय वप
८ अपूवकरण जसके अपूव-अपूव परणाम है
९ अिनवृकरण जसके परणामाे मे भेद नही है
१० सू सापराय जसके कषाय सू है
११ उपशात माेह जसका माेह उपशात अा है
१२ ीण माेह जसका माेह ीण अा है
१३ सयाेग के वल याेगसहत के वलानी
१४ अयाेग के वल याेगरहत के वलानी
7. अाद दपक
अथात् यहा से लेकर अागे के सभी गुणथानाे मे ये भाव पाया
जाता है
जैसे अवरत सयव मे सयव शद अाद दपक है
4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 स
ाेक चतथ गुणथान से सभी जीव सय ही है
अाद दपक
6 7 8 9 10 11 12 13 14
6 से सभी जीव वरत है
छठे मे वरत शद
अाद दपक
7 8 9 10 11 12 13 14
7 से सभी जीव माद-रहत है
सातवे मे अम शद
अाद दपक
14 स
14 से सभी जीव याेग-रहत है
चाैदहवे मे अयाेग शद
8. मय दपक
अथात् इसके अागे व पीछे दाेनाे तरफ के गुणथानाे मे यह
भाव पाया जाता है
तेरहवे मे जन शद
मय दपक
4...........13...........14
चाैथे से चाैदहवे तक सभी काे जन सा है
अय दपक
अथात् यहा से लेकर पहले के सभी गुणथानाे मे यह भाव
पाया जाता है, परत इससे अागे नही पाया जाता
जैसे चाैथे मे अवरत शद अत दपक
1 2 3 4
4 तक के सभी जीव अवरत है
अत दपक
1 2 3 4 5 6
6 तक के सभी जीव म है
छठे मे म शद
9. अत दपक
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13
13 तक के सभी जीव याेगसहत है
तेरहवे मे सयाेग शद
मछे खल अाेदइअाे, वदये पुण पारणामअाे भावाे
मसे खअाेवसमअाे, अवरदसह ितणेव 11
अथ - थम गुणथान मे अाैदयक भाव हाेते है अाैर
तीय गुणथान मे पारणामक भाव हाेते है
म मे ायाेपशमक भाव हाेते है अाैर
चतथ गुणथान मे अाैपशमक, ायक,
ायाेपशमक इसकार तीनाे ही भाव हाेते है 11
गुणथानाे मे भाव
एदे भावा णयमा, दसणमाेह पड भणदा
चार णथ जदाे, अवरदअतेस ठाणेस 12
अथ - मया अाद गुणथानाे मे जाे िनयमप से
अाैदयकादक भाव कहे है वे दशन माेहनीय कम क अपेा
से है ाेक चतथ गुणथान पयत चार नही पाया जाता
12
जीव के असाधारणभाव
जीव के अितर अय याे मे न पाये जाने
वाले अथात् मा जीव मे ही पाये जाने वाले
भावाे काे जीव के असाधारणभाव कहते है
10. अाैपशमक भाव
माेहनीय कम के
अतरकरणप उपशम के
िनम से हाेनेवाले जीव
के भावाे काे अाैपशमक
भाव कहते है
ायक भाव
कमय के समय मे
हाेनेवाले एव भवय मे
अनत काल पयत
रहनेवाले जीव के
शभावाे काे ायक
भाव कहते है
ायाेपशमक भाव
कम के याेपशम के िनम से हाेनेवालेकम के याेपशम के िनम से हाेनेवाले
जीव के भावाे काेजीव के भावाे काे
ायाेपशमक भाव कहते हैायाेपशमक भाव कहते है
अाैदयक भाव
कमाेदय के िनम
से हाेनेवाले जीव के
भावाे काे अाैदयक
भाव कहते है
11. पारणामक भाव
पूणत: कमिनरपे अथात्
कम के उपशम, य, याेपशम अाैर उदय से िनरपे
जीव के परणामाे काे पारणामक भाव कहते है
गुणथान भाव अपेा
१ अाैदयक
दशन माेहनीय
२ पारणामक
३ ायाेपशमक
४
अाैपशमक,
ायाेपशमक, ायक
गुणथानाे मे भाव
देसवरदे पमे, इदरे व खअाेवसमयभावाे दु
साे खल चरमाेह, पड भणय तहा उवर 13
अथ - देशवरत, म, अम - इन गुणथानाे मे
चार माेहनीय क अपेा ायाेपशमक भाव हाेते है तथा
इनके अागे अपूवकरण अाद गुणथानाे मे भी चार
माेहनीय क अपेा से ही भावाे काे कहेगे 13
ताे उवर उवसमभावाे, उवसामगेस खवगेस
खइअाे भावाे णयमा, अजाेगचरमाे से य 14
अथ - सातवे गुणथान से ऊपर उपशम-ेणीवाले अाठवे,
नाैवे, दशवे गुणथान मे तथा यारहवे उपशात-माेह मे
अाैपशमक भाव ही हाेते है
इसीकार पकेणीवाले उ तीनाे ही गुणथानाे मे तथा
ीणमाेह, सयाेगके वल, अयाेगके वल इन तीन गुणथानाे
मे अाैर गुणथानातीत साे के िनयम से ायकभाव ही
पाया जाता है 14
12. गुणथान भाव अपेा
5 ायाेपशमक
चार
माेहनीय
6 - 7 ायाेपशमक
8, 9, 10, 11
(उपशम ेणी)
अाैपशमक
8, 9, 10, 12
(पक ेणी)
ायक
13, 14, स ायक
गुणथानाे मे भाव
अथ - मयाव कृ ित के उदय से हाेने वाले तवाथ के
अान काे मयाव कहते है
इसके पाच भेद है - एकात, वपरत, वनय, सशयत अाैर
अान 15
मयाव गुणथान
मछाेदयेण मछमसहण त त-अथाण
एयत ववरय, वणय ससयदमणाण 15
मयाी
मया
अतव काे वषय
करने वाल
ी
ा जसके है
मयाव नामक दशन माेहनीय कम के
उदय के िनम से
हाेने वाले जीव के अतवानप भाव
काे
मयाव गुणथान कहते है
परभाषा
13. परभाषा
िनम
दशन माेहनीय मयाव
कम का उदय
परणाम
जीव के अतव
ान प भाव
दशन
माेहनीय
कम
मयाव
सयक् मयाव
सयव कृ ित
मयाव के भेद
एकात वपरत वनय सशयत अान
• वत के एक अश काे सपूण वत मानना
• जैसे - वत िनय ही है या वत अिनय ही है
एकात
• वपरतप मानना
• जैसे - हसाद य से वग सख मानना, ी काे
माे ाि मानना
वपरत
• समत देव व मताे मे समदशीपना
• जैसे - गुचरण पूजनप वनय ही से मु मानना
वनय
14. •देशातर व कालातर मे अयथा भाव हाेने से
मित ैवय
•जैसे - धम रागमय है या वीतरागमय है
सशयत
• वत के सामाय-वशेष भाव के वषय मे अान से
उप ान
• जैसे - अनेकात वप वत के सामाय का अाैर
जीव का लण उपयाेग है एेसे वशेष के बारे मे
अान
अान
एकाताद मयाव के ात
अथ - बाैाद मतवाले एकात मया है याक
ाणाद वपरत मया है तापसाद वनय मया
है इ नामक ेताबर गु अाद सशय मया है अाैर
मकर (मुसलमान) सयासी अादक अान मया है
16
एयत बुदरसी, ववरअाे ब तावसाे वणअाे
इदाे व य ससइयाे, मडयाे चेव अणाणी 16
मयाव ात
एकात बाै
वपरत बाण
वनय तापसी
सशयत इ नाम के ेताबर गु
अान मकर(मुसलमान)
एकाताद के ात मछत वेदताे, जीवाे ववरयदसणाे हाेद
ण य ध राेचेद , मर ख रस जहा जरदाे 17
अथ - मयाव कृ ित के उदय से उप
हाेने वाले मया परणामाे का अनुभव
करनेवाला जीव वपरत ानवाला
(अतवान सयु) हाे जाता है उसकाे
जस कार प वर से यु जीव काे
मीठा रस भी अछा मालूम नही हाेता उसी
कार यथाथ धम अछा नही मालूम हाेता
- चकर नही हाेता 17
15. उदाहरण
जैसे
लगता है
जैसे
पवर से यु
जीव काे
मीठा रस भी कट
लगता है
सात
वैसे
धम नही चता है
वैसे
मयाव से यु
जीव काे
धम नही चता है
अथ - मया जीव समीचीन अहत अादक के पूवापर
वराेधाद दाेषाे से रहत अाैर हत के करने वाले भी वचनाे का
यथाथ ान नही करता कत इसके वपरत अाचायाभासाे के
ारा उपद या अनुपद असाव का अथात् पदाथ के वपरत
वप का इछानुसार ान करता है 18
मया के बा चह
मछाइ जीवाे, उवइ पवयण ण सहद
सहद असाव, उवइ या अणुवइ 18
मया के बा चह
उपद (उपदेशत)
• अरहत के वचनाे पर ा नही
करता है
• कु देवाद के मया वचनाे पर ा
करता है
अनुपद (बना उपदेशत)
•मया वचनाे पर ा करता
है
मयाव के कार
मयाव
अगृहीत
दशन ान चार
गृहीत
दशन ान चार
16. अगृहीत मयाव
अ+गृहीत= नया नही हण कया
अथात् - इस भव मे जाे वपरत मायता नयी
हण नही क,
अनाद से बना हण कये चल अा रही वपरत मायता
गृहीत मयाव
गृहीत= नया हण कया
अथात् जाे अय के उपदेश से हण कया है
सासादन सयव गुणथान
अथ - थमाेपशम सयव के अथवा ‘वा’ शद से तीयाेपशम सयव के
अतमुत मा काल मे से
जब जघय एक समय तथा उकृ छह अावल माण काल शेष रहे
उतने काल मे अनतानुबधी ाेध, मान, माया, लाेभ मे से कसी एक के उदय मे
अाने से
सयव क वराधना हाेने पर सयदशन गुण क जाे अय अतवानप
परणित हाेती है, उसकाे सासन या सासादन गुणथान कहते है 19
अादमसा, समयादाे छावल वा सेसे
अणअणददयादाे, णासयसाे सासणखाे साे 19
सासादन
स + अासादना
स = सहत; अासादना = वराधना
सयव क वराधना के साथ जाे रहे
17. सासादन सयव
परणाम
अय अतवान
िनम
अनतानुबधी ाेध,
मान, माया, लाेभ मे से
कसी एक का उदय
दूसरे गुणथान क ाि कब हाेती है ?
अाैपशमक सयव के काल मे
कम से कम 1 समय
यादा से यादा 6 अावल शेष रहने पर
4, 5 या 6 कसी भी 1 गुणथान से गरने पर
कम थित
उपशम सयव का काल
1 समय से 6 अावल काल
= सासादन सयव
अनतानुबधी का उदय
मयाव का अनुदय
o o
o o
o o
o o
o o
o o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x x
मयाव अनतानुबधी
अाैपशमक सयव
o o
o o
o o
o o
o o
o o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x x
मयाव अनतानुबधी
अाैपशमक सयव
o o
o o
o o
o o
o o
o o
x o
x o
x o
x o
x o
x x
x x
x x
x x
x x
x x
x x
x x
x x
x x
मयाव अनतानुबधी
सासादन अवथा
o o
o o
o o
o o
o o
o o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x o
x x
मयाव अनतानुबधी
अाैपशमक सयव
18. सरयणपयसहरादाे मछभूमसमभमुहाे
णासयसाे साे, सासणणामाे मुणेयाे 20
अथ - सयवपी रपवत के शखर से गरकर जाे जीव
मयावपी भूम के सुख हाे चुका है, अतएव जसने
सयव क वराधना (नाश) कर द है, अाैर मयाव काे
ा नही कया है, उसकाे सासन या सासादन गुणथानवती
कहते है 20
जैसे रपवत पी शखर से
पितत भूम क अाेर नीचे गरने
वाला
वैसे सयव पी शखर से
पितत मयाव-पी भूम क
अाेर नीचे गरने वाला
सासादन के साथ सयव शद ाे है?
भूत-नैगम नय से सयव सा कहलाती है
काल भी अभी सयव का ही है
दशन माेहनीय कम का अभी उपशम ही है
जैसे-
भूखा मनुय
शर क खीर खा वमन
कर
बाद मे कचत् वाद लेता है
भूखा मनुय
शर क खीर खा वमन
कर
बाद मे कचत् वाद लेता है
वैसे-
उपशम सय गरने पर
मयाव मे पचने के पहले
बगड़े ये सयव का
कचत् वाद लेता है
उपशम सय गरने पर
मयाव मे पचने के पहले
बगड़े ये सयव का
कचत् वाद लेता है
19. : ताे ा यहा सयव पाया जा रहा है?
उर: नही पाया जा रहा यहा सयव क वराधना है
परत यहा पर ताे मयाव का उदय ही नही है मा
अनतानुबधी का ही उदय है अाैर अनतानुबधी चार
माेहनीय क कृ ित है फर सयव का नाश कै से ?
अनतानुबधी वभावी है
सयव अाैर चार
दाेनाे का नाश कराती है
सयव के नाश मे िनम दाेनाे है
मयाव अनतानुबधी
मयाचार
ाे?
ाेक ा
मया है
सासादन
गुणथान
मे चार
काैन-सा
है?
20. सासादन गुणथान सबधी तय
इस गुणथान का काल समा हाेने पर जीव िनयम से मयाव मे जाता है
ये ऊपर से गरने का ही गुणथान है
थम गुणथान से तीय गुणथान कभी ा नही हाेता है
मा उपशम सय ही सासादन काे ा हाेते है, शेष नही
Reference : गाेटसार जीवकाड, सयान चका,
गाेटसार जीवकाड रेखाच एव तालकाअाे मे
Presentation created by : Smt. Sarika Vikas
Chhabra
For updates / feedback / suggestions, please
contact
Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com
: 0731-2410880 , 94066-82889
www.jainkosh.org