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विसर्प चिकित्सा
 निरुक्ती-
 विविधं सर्पनत यतो विसर्पस्तेि स स्मृत:।
र्रिसर्ोऽथिा िाम्िा सिपत: र्रिसर्पणात ॥
ि.चि.21/11
 विसर्प भेद-
 िातज, वर्त्तज, िफज, सन्निर्ातज,
िातवर्त्तज (आग्िेय) ,िातिफज (ग्रन्नथविसर्प) ,
वर्त्तिफज (िदपमविसर्प).
 दोष-दूष्य -
िक्तं लसीिा त्िङमांसं दूष्यं दोषास्रयो मला: ।
विसर्ापणां समुत्र्त्तौ विज्ञेया: सप्त धाति: ॥
ि.चि.21/15
निदाि
आहारज विहारज इतर
लिण,अम्ल ,िटु,
उष्ण आहाि
अनतसेिि,अम्ल
दही,मस्तु,ससििा,मद्य,
िाग ,सौविि,शाडि
अनतसेिि,हरित शाि,
विदाही आहाि
अनतसेिि,िु चिपिा,
किलाट,मंदि दही,
संडािी,नतल,उडीद,
िु लथी,तीळ तेल,ग्राम्य,
आिुर्, औदि मांस,
लशूि,प्रन्क्लनि आहाि
अनतसेिि,असात्म्य
आहाि सेिि
अध्यशि ,
ददिास्िार्,
अजीणप असतािा
आहाि
सेिि, अध्यशि,
आघातात, क्षत बंध
र्डल्यािि,हीि िमप
अनतसेिि,विषदोष,
िात दोष, अन्ग्िदोष
मुळे
 संप्रान्प्त-
एतैनिपदािैर्वयापसमश्रै: िु वर्ता मारुतादय: ।
दूष्याि सनदूष्य िक्तादीि विसर्पनत्यदहतासशिाम ॥
ि.चि.21/22
 विसर्प आश्रय-भेद बदह:चश्रत, अंत:चश्रत, उभयसंचश्रत
 साध्यासाध्यत्ि- बदह:चश्रत- साध्य
 अंत:चश्रत- अत्यंत िष्टसाध्य
 उभयसंचश्रत- असाध्य
 सु.नि.10/8
िात,वर्त्त,िफज- साध्य,
सन्निर्ातज- असाध्य
िातवर्त्तज, ममापचश्रत- िष्टसाध्य
 दोष प्रसर्पण प्रिाि- िातादद दोष-
आभ्यंति बाह्य, उभय मागप विसर्पण
 आभ्यन्तराश्रित विसर्प लक्षण- ममोर्घात, सम्मोह, श्िास-
आहाि मागप- विघट्टि, तृष्णा अनतयोग,िेग विषम प्रिृत्त,
क्षीण अन्ग्िबल
 बाह्याश्रित विसर्प लक्षण- त्ििास्थािी शोथ, र्ाि, िातादद
दोषािुसाि लक्षणे
 विसर्प असाध्यत्ि- उभयाचश्रत विसर्प, बलिाि हेतु,
िष्टिािि उर्द्रि उर्न्स्थती, ममपस्थािी प्रसि
 मा.नि.52/24-
 ज्िि, अनतसाि, िमि,त्िि-मांस दिण,क्लम,
अिोिि,अविर्ाि
 िातज विसर्प- निदाि-संप्रान्प्त
रुक्ष,उष्ण आहाि-विहाि सेिि/ अध्यशि
िातिु वर्त तथा आिृत्त होऊि
िक्तादद दुष्य दुवषत िरुि
िातज विसर्प
 लक्षणे-
 भ्रम, दिथु, वर्र्ासा, निस्तोद, शूल, अंगमदप, उद्िेष्टि,
िं र्,ज्िि, तमिश्िास, िास, अन्स्थसंधी भेद- विश्लेषण,
िेर्ि, अरुिी, अविर्ाि, िेरासमोि ििािी ददसणे,
अश्रुस्राि,सिाांग स्थािी चिमचिमायि,
 विसर्प प्रसिण स्थािी शोथ,अरुण- श्याि वििणपता, तथा
निस्तोद ,भेद,शूल,आयास,संिोि,हषप,स्फु िण, र्ीडा
 उचित चिकित्सा ि िे ल्यास- शीघ्र भेदी, तिु, अरुण
िर्णपय-श्याि िर्णपय, तिु,विशद अरुण स्राियुक्त वर्डडिा
उत्र्त्ती, मलमूरादद विबद्धता.
 वर्त्तज विसर्प निदाि-संप्रान्प्त
उष्ण तथा उष्ण िीयप आहाि विहाि सेिि,विदादह,
अम्लिस सेिि,
वर्त्तदुन्ष्ट
दूष्य़- िक्त,लससिा,त्ििा, मांस दुवषत िरुि
धमनयांिा र्ुिण िरुि
वर्त्तज विसर्प
 लक्षणे-
तीव्रज्िि, तृष्णा,मूर्च्ाप,मोह,्ददप,अरुिी,अंगभेद,
अनतस्िेद, अंतदापहप्रलार्, शीिोरुजा,अश्रुर्ुणपिेर,अनिद्रा,
अिनत,भ्रम,शीत जल, िायु सेिि इर्च्ा,िेर,मल,मूर
हरित, र्ीत िर्णपय तथा हरित र्ीत ददसणे,
 विसर्प स्थाि- हरित,ताम्र,र्ीत,लाल,िील िर्णपय़ तथा
उत्सेध युक्त असतो,सदाह,र्ीडायुक्त,ततिर्णपय वर्दटिा
उत्र्त्ती,तत्तिर्णपय स्राि, श्रिरर्ाकी असतात
 सु.नि.10/5 ,अ.सं.नि.13/39 अचििर्ािी
 िफज विसर्प- निदाि,संप्रान्प्त
मधुि,अम्ल,लिण,न्स्िग्ध,गुरु,आहाि तथा अनत
ददिास्िार्
िफसंचिती
विसर्प दूष्य दुवषत िरुि
सिप शरििामध्ये र्सरुि
िफज विसर्प उत्र्त्ती
 लक्षणे-
 शीति( प्रनतश्याय), शीतज्िि,,
निद्रा,तंद्रा,अरुिी,मधुिास्यता,मुख िफसलप्तता,िफ
निष्ठीिि,्दी,आलस्य,स्तैसमत्य,अन्ग्ििाश,दौबपल्य,
 विसर्प स्थानि
शोथ,र्ीतता,िक्तिणीय,न्स्िग्धता,सुप्ती,स्तंभ,गौिि,अल्र्
िेदिायुक्त,िृ र्च्र्ािी,चिििािी,त्ििजाड्य,र्ूययुक्त,श्िेत-
र्ीत वर्दटिा, श्िेत,वर्न्र्च्ल,तंतुयुक्त,घट्ट,र्ुयस्राि.
 वर्दटिािे िि गुरु,न्स्थि जासलिा उत्र्न्त्त,
 सतत वर्न्र्च्ल,गुरु,व्रण असतात
 िख ,िेर ,मुख,त्िि, मल,मुर-श्िेताभ
 िातवर्त्तज विसर्प (अन्ग्ि विसर्प)लक्षणे-
सिाांग उर्तप्तित,्दी,अनतसाि,मूर्च्ाप,दाह,मोह,
तमिश्िास ,अन्स्थसंधी भेद,तृष्णा,अविर्ाि,अंगभेद
 विसर्प स्थाि-
शांत अंगाि ित / अनतिक्तिणीय,स्फोटयुक्त,
शीघ्रगामी,ममपस्थािी प्रसिण,अनतिष्टता, र्ीडायुक्त,
संज्ञािाश,दहक्िा श्िास उत्र्त्ती, त्िरित
निद्रा,बैिेि,अिनत,
अन्ग्िविसर्प- चिकित्सा अयोग्य
 िफवर्त्तज विसर्प लक्षणे-
 शीत ज्िि, सशिोगुरुत्ि, दाह, स्तैसमत्य, अंगािसाद, निद्रा, तंद्रा, मोह,
अनिद्िेष, प्रलार्,अन्ग्ििाश,दौबपल्य, अन्स्थभेद, मू्ाप, वर्र्ासा, स्रोतसांमध्ये
िफसलप्त आभास,इंदद्रय अिायपक्षमता,
प्रायोर्िेषि,अंगविक्षेर्,अंगमदप,अिनत,औत्सुक्य,विसर्प स्थािी- िक्त,र्ीत,र्ांडुि
िणीय र्ीडडिा उत्र्त्ती,ििािी,मलीिता,न्स्िग्धता,गुरुता,अनतउष्णता,
मंदिेदिा,शोथ,गंभीि र्ाि,स्रािहीिता.शीघ्र र्िि,क्लेद,र्ूती
मांसत्िि, मांसदिण र्श्िात ससिास्िायुसंदशीतता.िु णर्गंधी,
र्श्िात संज्ञा,स्मृती िाश.
िदपम विसर्प- अचिकित्स्य
विसर्प स्थाि- प्राय: आमाशय.
 िफ़ िातज विसर्प निदाि, संप्रान्प्त-
न्स्िग्ध,गुरु,िठीि,मधुि,शीत आहाि सेिि,अर्वयायाम,ि
निहपिनत दोषाणां,चिकित्सा ि ििोनत
िफ,िात प्रिोर्,बलिाि
िायुमागप िफार्वदािे अिरुध्द
िायु िफस्थािी –उिोभागी आचश्रत
ग्रंथीित माला उत्र्त्ती ि िक्त, मांस, लससिा,त्ििा दुष्टी
िफिातज विसर्प
 िफ िातज (ग्रंथीविसर्प) विसर्प लक्षणे-
 उिोभागी िृ र्चरर्ािी िृ र्चरसाध्य र्ीटीिा
उत्र्त्ती,ससिा,स्िायु,त्ििा आचश्रत ग्रंथीमध्ये
अनतिेदिा,ज्िि,अनतसाि,िस,दहक्िा,श्िास,शोष,प्र्मोह,िैिर्णयप,
अरुिी,अविर्ाि,प्रसेि,्ददप,मूर्च्ाप,अंगभंग,अनतनिद्रा,अिनत,क्लम,
आदद उर्द्रि उत्र्त्ती.
ग्रंथीविसर्प- प्रत्याख्येय
 उर्द्रि लक्षण-
“ उर्द्रिस्तु खलु िोगोत्तििालजो िोगाश्रयो िोग एि स्थूलोऽणुिाप,
िोगात र्श्िाज्जायत इत्युर्द्रिसंज्ञ: ।
तर प्रधािो र्वयाचध:, र्वयाधेगुपणभूत उर्द्रि:, तस्य प्राय: प्रधािप्रशमे
प्रशमो भिनत॥” ि.चि.21/40
सन्निर्ातज विसर्प- अचिकित्स्य
त्ररदोष प्रिोर्,त्ररदोषात्मि लक्षणे, सिप शरििर्वयाप्ती,धातुर्वयाप्त,
शीघ्रप्राणहि, वििाशिािी.
 विसर्प साध्यासाध्यता-
 िातज, वर्त्तज , िफज विसर्प – साध्य
 अन्ग्िविसर्प, िदपम विसर्प-साध्य (उर्द्रििदहत)
 ग्रंथीविसर्प- चिकित्स्य (उर्द्रि िदहत)
 सन्निर्ातज- अचिकित्स्य
 विसर्प चिकित्सा
“लङघिोल्लेखिे शस्ते नतक्तिािां ि सेििम ।
िफस्थािगते सामे रुक्षशीतै: प्रलेर्येत॥ ि.चि.21/44
“वर्त्तस्थािगतेऽप्येतत सामे िु यापन्र्चिकिन्त्सतम।
शोर्णतस्यािसेिं ि वििेिं ि विशेष्त: ॥ ि.चि.21/45
“मारुताशयसम्भूतेऽप्याददत: स्याददरुक्षर्णम ।
िक्तवर्त्तानियेऽप्यादौ स्िेहिं ि दहतं मतम ॥ ि.चि.21/46
 िफ वर्त्तज विसर्प मध्ये िमि-
 1.मुस्ता+निंब+र्टोल
 2.िंदि+िीलिमल
 3.अिंता+उशीि+आमलिी+मुस्ता.
योग- कििातनतक्तादद क्िाथ
प्रर्ौर्णडिीिादद क्िाथ
द्राक्षादद शीतिषाय
र्टोलादद शीतिषाय
मसूिविदल क्िाथ
र्टोलादद क्िाथ
रायमाण घृत
महानतक्त घृत
 िोष्ठगत विसर्प चिकित्सा-
 निशोत्ति िूणप+घृत/दूग्ध/उष्ण जल/मिुिा क्िाथ
 रायमाण िूणप क्षीिर्ाि
 त्ररफला क्िाथ+निशोत्ति िूणप प्रक्षेर्+घृत- विसर्पजनय ज्िि
 आमलिी स्ििस/क्िाथ+घृत, रुग्ण क्रु ििोष्ठी-प्रक्षेर्-निशोत्ति
िूणप
शाखागत विसर्प चिकित्सा- िक्तमोक्षण चिकित्सा
िातदुष्ट िक्त- शींगार्वदािे( विषाणेि निहपिेत )
वर्त्तदुष्ट िक्त-जलौिार्वदािे
िफदुष्ट िक्त- अलाबु (तुंबी )
ससिािेध
 विसर्प बाह्य उर्िाि-
 उदुम्बिादद प्रदेह
 नयग्रोधर्ादादद लेर्
 िालीयादद प्रलेर्
 शार्वदलादद प्रलेर्
 सारििादद प्रलेर्
 िलदादद प्रलेर्
 यािि प्रदेह, मधुि प्रदेह
 बलादद आलेर्ि, मृणाल लेर्
 िफज विसर्पिाशि प्रदेह-
 त्ररफलादद प्रदेह
 खददिादद प्रलेर्
 अमलतास र्र+श्लेष्मांति त्िि प्रलेर्
 निगुपर्णडी शाि+मिोय+सशरिष फ़ु ल लेर्
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Visarp chikitsa

  • 2.  निरुक्ती-  विविधं सर्पनत यतो विसर्पस्तेि स स्मृत:। र्रिसर्ोऽथिा िाम्िा सिपत: र्रिसर्पणात ॥ ि.चि.21/11  विसर्प भेद-  िातज, वर्त्तज, िफज, सन्निर्ातज, िातवर्त्तज (आग्िेय) ,िातिफज (ग्रन्नथविसर्प) , वर्त्तिफज (िदपमविसर्प).  दोष-दूष्य - िक्तं लसीिा त्िङमांसं दूष्यं दोषास्रयो मला: । विसर्ापणां समुत्र्त्तौ विज्ञेया: सप्त धाति: ॥ ि.चि.21/15
  • 3. निदाि आहारज विहारज इतर लिण,अम्ल ,िटु, उष्ण आहाि अनतसेिि,अम्ल दही,मस्तु,ससििा,मद्य, िाग ,सौविि,शाडि अनतसेिि,हरित शाि, विदाही आहाि अनतसेिि,िु चिपिा, किलाट,मंदि दही, संडािी,नतल,उडीद, िु लथी,तीळ तेल,ग्राम्य, आिुर्, औदि मांस, लशूि,प्रन्क्लनि आहाि अनतसेिि,असात्म्य आहाि सेिि अध्यशि , ददिास्िार्, अजीणप असतािा आहाि सेिि, अध्यशि, आघातात, क्षत बंध र्डल्यािि,हीि िमप अनतसेिि,विषदोष, िात दोष, अन्ग्िदोष मुळे
  • 4.  संप्रान्प्त- एतैनिपदािैर्वयापसमश्रै: िु वर्ता मारुतादय: । दूष्याि सनदूष्य िक्तादीि विसर्पनत्यदहतासशिाम ॥ ि.चि.21/22
  • 5.  विसर्प आश्रय-भेद बदह:चश्रत, अंत:चश्रत, उभयसंचश्रत  साध्यासाध्यत्ि- बदह:चश्रत- साध्य  अंत:चश्रत- अत्यंत िष्टसाध्य  उभयसंचश्रत- असाध्य  सु.नि.10/8 िात,वर्त्त,िफज- साध्य, सन्निर्ातज- असाध्य िातवर्त्तज, ममापचश्रत- िष्टसाध्य
  • 6.  दोष प्रसर्पण प्रिाि- िातादद दोष- आभ्यंति बाह्य, उभय मागप विसर्पण  आभ्यन्तराश्रित विसर्प लक्षण- ममोर्घात, सम्मोह, श्िास- आहाि मागप- विघट्टि, तृष्णा अनतयोग,िेग विषम प्रिृत्त, क्षीण अन्ग्िबल  बाह्याश्रित विसर्प लक्षण- त्ििास्थािी शोथ, र्ाि, िातादद दोषािुसाि लक्षणे  विसर्प असाध्यत्ि- उभयाचश्रत विसर्प, बलिाि हेतु, िष्टिािि उर्द्रि उर्न्स्थती, ममपस्थािी प्रसि  मा.नि.52/24-  ज्िि, अनतसाि, िमि,त्िि-मांस दिण,क्लम, अिोिि,अविर्ाि
  • 7.  िातज विसर्प- निदाि-संप्रान्प्त रुक्ष,उष्ण आहाि-विहाि सेिि/ अध्यशि िातिु वर्त तथा आिृत्त होऊि िक्तादद दुष्य दुवषत िरुि िातज विसर्प
  • 8.  लक्षणे-  भ्रम, दिथु, वर्र्ासा, निस्तोद, शूल, अंगमदप, उद्िेष्टि, िं र्,ज्िि, तमिश्िास, िास, अन्स्थसंधी भेद- विश्लेषण, िेर्ि, अरुिी, अविर्ाि, िेरासमोि ििािी ददसणे, अश्रुस्राि,सिाांग स्थािी चिमचिमायि,  विसर्प प्रसिण स्थािी शोथ,अरुण- श्याि वििणपता, तथा निस्तोद ,भेद,शूल,आयास,संिोि,हषप,स्फु िण, र्ीडा  उचित चिकित्सा ि िे ल्यास- शीघ्र भेदी, तिु, अरुण िर्णपय-श्याि िर्णपय, तिु,विशद अरुण स्राियुक्त वर्डडिा उत्र्त्ती, मलमूरादद विबद्धता.
  • 9.  वर्त्तज विसर्प निदाि-संप्रान्प्त उष्ण तथा उष्ण िीयप आहाि विहाि सेिि,विदादह, अम्लिस सेिि, वर्त्तदुन्ष्ट दूष्य़- िक्त,लससिा,त्ििा, मांस दुवषत िरुि धमनयांिा र्ुिण िरुि वर्त्तज विसर्प
  • 10.  लक्षणे- तीव्रज्िि, तृष्णा,मूर्च्ाप,मोह,्ददप,अरुिी,अंगभेद, अनतस्िेद, अंतदापहप्रलार्, शीिोरुजा,अश्रुर्ुणपिेर,अनिद्रा, अिनत,भ्रम,शीत जल, िायु सेिि इर्च्ा,िेर,मल,मूर हरित, र्ीत िर्णपय तथा हरित र्ीत ददसणे,  विसर्प स्थाि- हरित,ताम्र,र्ीत,लाल,िील िर्णपय़ तथा उत्सेध युक्त असतो,सदाह,र्ीडायुक्त,ततिर्णपय वर्दटिा उत्र्त्ती,तत्तिर्णपय स्राि, श्रिरर्ाकी असतात  सु.नि.10/5 ,अ.सं.नि.13/39 अचििर्ािी
  • 11.  िफज विसर्प- निदाि,संप्रान्प्त मधुि,अम्ल,लिण,न्स्िग्ध,गुरु,आहाि तथा अनत ददिास्िार् िफसंचिती विसर्प दूष्य दुवषत िरुि सिप शरििामध्ये र्सरुि िफज विसर्प उत्र्त्ती
  • 12.  लक्षणे-  शीति( प्रनतश्याय), शीतज्िि,, निद्रा,तंद्रा,अरुिी,मधुिास्यता,मुख िफसलप्तता,िफ निष्ठीिि,्दी,आलस्य,स्तैसमत्य,अन्ग्ििाश,दौबपल्य,  विसर्प स्थानि शोथ,र्ीतता,िक्तिणीय,न्स्िग्धता,सुप्ती,स्तंभ,गौिि,अल्र् िेदिायुक्त,िृ र्च्र्ािी,चिििािी,त्ििजाड्य,र्ूययुक्त,श्िेत- र्ीत वर्दटिा, श्िेत,वर्न्र्च्ल,तंतुयुक्त,घट्ट,र्ुयस्राि.  वर्दटिािे िि गुरु,न्स्थि जासलिा उत्र्न्त्त,  सतत वर्न्र्च्ल,गुरु,व्रण असतात  िख ,िेर ,मुख,त्िि, मल,मुर-श्िेताभ
  • 13.  िातवर्त्तज विसर्प (अन्ग्ि विसर्प)लक्षणे- सिाांग उर्तप्तित,्दी,अनतसाि,मूर्च्ाप,दाह,मोह, तमिश्िास ,अन्स्थसंधी भेद,तृष्णा,अविर्ाि,अंगभेद  विसर्प स्थाि- शांत अंगाि ित / अनतिक्तिणीय,स्फोटयुक्त, शीघ्रगामी,ममपस्थािी प्रसिण,अनतिष्टता, र्ीडायुक्त, संज्ञािाश,दहक्िा श्िास उत्र्त्ती, त्िरित निद्रा,बैिेि,अिनत, अन्ग्िविसर्प- चिकित्सा अयोग्य
  • 14.  िफवर्त्तज विसर्प लक्षणे-  शीत ज्िि, सशिोगुरुत्ि, दाह, स्तैसमत्य, अंगािसाद, निद्रा, तंद्रा, मोह, अनिद्िेष, प्रलार्,अन्ग्ििाश,दौबपल्य, अन्स्थभेद, मू्ाप, वर्र्ासा, स्रोतसांमध्ये िफसलप्त आभास,इंदद्रय अिायपक्षमता, प्रायोर्िेषि,अंगविक्षेर्,अंगमदप,अिनत,औत्सुक्य,विसर्प स्थािी- िक्त,र्ीत,र्ांडुि िणीय र्ीडडिा उत्र्त्ती,ििािी,मलीिता,न्स्िग्धता,गुरुता,अनतउष्णता, मंदिेदिा,शोथ,गंभीि र्ाि,स्रािहीिता.शीघ्र र्िि,क्लेद,र्ूती मांसत्िि, मांसदिण र्श्िात ससिास्िायुसंदशीतता.िु णर्गंधी, र्श्िात संज्ञा,स्मृती िाश. िदपम विसर्प- अचिकित्स्य विसर्प स्थाि- प्राय: आमाशय.
  • 15.  िफ़ िातज विसर्प निदाि, संप्रान्प्त- न्स्िग्ध,गुरु,िठीि,मधुि,शीत आहाि सेिि,अर्वयायाम,ि निहपिनत दोषाणां,चिकित्सा ि ििोनत िफ,िात प्रिोर्,बलिाि िायुमागप िफार्वदािे अिरुध्द िायु िफस्थािी –उिोभागी आचश्रत ग्रंथीित माला उत्र्त्ती ि िक्त, मांस, लससिा,त्ििा दुष्टी िफिातज विसर्प
  • 16.  िफ िातज (ग्रंथीविसर्प) विसर्प लक्षणे-  उिोभागी िृ र्चरर्ािी िृ र्चरसाध्य र्ीटीिा उत्र्त्ती,ससिा,स्िायु,त्ििा आचश्रत ग्रंथीमध्ये अनतिेदिा,ज्िि,अनतसाि,िस,दहक्िा,श्िास,शोष,प्र्मोह,िैिर्णयप, अरुिी,अविर्ाि,प्रसेि,्ददप,मूर्च्ाप,अंगभंग,अनतनिद्रा,अिनत,क्लम, आदद उर्द्रि उत्र्त्ती. ग्रंथीविसर्प- प्रत्याख्येय
  • 17.  उर्द्रि लक्षण- “ उर्द्रिस्तु खलु िोगोत्तििालजो िोगाश्रयो िोग एि स्थूलोऽणुिाप, िोगात र्श्िाज्जायत इत्युर्द्रिसंज्ञ: । तर प्रधािो र्वयाचध:, र्वयाधेगुपणभूत उर्द्रि:, तस्य प्राय: प्रधािप्रशमे प्रशमो भिनत॥” ि.चि.21/40 सन्निर्ातज विसर्प- अचिकित्स्य त्ररदोष प्रिोर्,त्ररदोषात्मि लक्षणे, सिप शरििर्वयाप्ती,धातुर्वयाप्त, शीघ्रप्राणहि, वििाशिािी.
  • 18.  विसर्प साध्यासाध्यता-  िातज, वर्त्तज , िफज विसर्प – साध्य  अन्ग्िविसर्प, िदपम विसर्प-साध्य (उर्द्रििदहत)  ग्रंथीविसर्प- चिकित्स्य (उर्द्रि िदहत)  सन्निर्ातज- अचिकित्स्य
  • 19.  विसर्प चिकित्सा “लङघिोल्लेखिे शस्ते नतक्तिािां ि सेििम । िफस्थािगते सामे रुक्षशीतै: प्रलेर्येत॥ ि.चि.21/44 “वर्त्तस्थािगतेऽप्येतत सामे िु यापन्र्चिकिन्त्सतम। शोर्णतस्यािसेिं ि वििेिं ि विशेष्त: ॥ ि.चि.21/45 “मारुताशयसम्भूतेऽप्याददत: स्याददरुक्षर्णम । िक्तवर्त्तानियेऽप्यादौ स्िेहिं ि दहतं मतम ॥ ि.चि.21/46
  • 20.  िफ वर्त्तज विसर्प मध्ये िमि-  1.मुस्ता+निंब+र्टोल  2.िंदि+िीलिमल  3.अिंता+उशीि+आमलिी+मुस्ता. योग- कििातनतक्तादद क्िाथ प्रर्ौर्णडिीिादद क्िाथ द्राक्षादद शीतिषाय र्टोलादद शीतिषाय मसूिविदल क्िाथ र्टोलादद क्िाथ रायमाण घृत महानतक्त घृत
  • 21.  िोष्ठगत विसर्प चिकित्सा-  निशोत्ति िूणप+घृत/दूग्ध/उष्ण जल/मिुिा क्िाथ  रायमाण िूणप क्षीिर्ाि  त्ररफला क्िाथ+निशोत्ति िूणप प्रक्षेर्+घृत- विसर्पजनय ज्िि  आमलिी स्ििस/क्िाथ+घृत, रुग्ण क्रु ििोष्ठी-प्रक्षेर्-निशोत्ति िूणप शाखागत विसर्प चिकित्सा- िक्तमोक्षण चिकित्सा िातदुष्ट िक्त- शींगार्वदािे( विषाणेि निहपिेत ) वर्त्तदुष्ट िक्त-जलौिार्वदािे िफदुष्ट िक्त- अलाबु (तुंबी ) ससिािेध
  • 22.  विसर्प बाह्य उर्िाि-  उदुम्बिादद प्रदेह  नयग्रोधर्ादादद लेर्  िालीयादद प्रलेर्  शार्वदलादद प्रलेर्  सारििादद प्रलेर्  िलदादद प्रलेर्  यािि प्रदेह, मधुि प्रदेह  बलादद आलेर्ि, मृणाल लेर्  िफज विसर्पिाशि प्रदेह-  त्ररफलादद प्रदेह  खददिादद प्रलेर्  अमलतास र्र+श्लेष्मांति त्िि प्रलेर्  निगुपर्णडी शाि+मिोय+सशरिष फ़ु ल लेर्  त्ररफला+यष्टी+विदािी+सशरिष फू ल