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गंदे चित्र लगाओ मत, नारी को लजाओ मत
डॉ. अजय पाल
सहायक आचायय
हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय
हरियाणा, भाित।
या देिी सियभूतेषु मातृरूपेण संवथिता। नमथतथयै नमथतथयै नमथतथयै नमो नम:॥
जो देिी सब प्रावणयों में मातारूप में वथित हैं, उनको नमथकाि, उनको नमथकाि, उनको
बािम्बाि नमथकाि है।
योग विक्षा को िािीरिक, मानवसक, सामावजक, नैवतक, बौविक, अध्यावममक औि
मूल्यपिक विक्षा के रूप में देखा जाता है। जहां मूल्यों की बात होती हो, तनाि प्रबंधन
की बात होती हो या थिाथ्य को अक्षुण्ण बनाए िखने की बात होती हो तो, हम सब
को एक थिि में योग के प्रयोग थमिण में आते हैं, इसवलए योग के आचायों, विद्वानों
औि इसके ध्िजिाहकों की यह नैवतक वजम्मेदािी भी है वक िे योग के सही थिरूप को
पढें, पढाएं औि आगे बढाएं। आपने देखा होगा वक योग के जो भी लेख, समाचाि, या
पुथतकें, चाहे िह वकसी भी भाषा में प्रकावित होते हों, ज्ञान बढाने के वलए,
जागरूकता फैलाने के वलए, योग के वनष्णात विद्वानों द्वािा वलखे जाते हैं। उनकी
विषयिथतु तो बहुत अच्छा होती है, उसमें बहुत जानकारियां भी होती हैं, इसमें कोई
दो िाय नहीं। िह बडे विद्वान भी हैं औि उनके योग पि लेख पत्र-पवत्रकाओं, समाचाि-
पत्रों में लगाताि प्रकावित भी होते िहते हैं। लोग उनसे अपना मागयदियन किते हैं। अपने
योग के ज्ञान को बढाते हैं औि अपने अभ्यास में सुधाि भी लाते हैं, लेवकन जो बात
लगाताि देखने में आती है, िह यह है वक योग के लेख प्रकावित किते समय उस लेख
से संबंवधत अभ्यास के वलए मवहलाओं के जो वचत्र अंवकत वकए जाते हैं, उन पि
ध्यान देने की आिश्यकता है। योग अभ्यास किते हुए जो वचत्र मवहलाओंके प्रदवियत
वकए जाते हैं, िह भाितीय संथकृवत से ओतप्रोत होने चावहए न वक पाश्चामय संथकृवत
को बढाने िाले औि कामनीय। आपका लेख तो बहुत सािगवभयत होता है, लेवकन उस
लेख के साि में अंवकत वचत्र आपके लेख की गरिमा के अनुकूल नहीं, क्योंवक वजस
कायय के वलए हम सब ने योग को चुना है, उसी कायय को आगे बढाने के वलए हमें इस
बात पि भी ध्यान देना होगा वक नािी के वचत्र अंवकत किते समय हमें उसके िेिभूषा
पि भी ध्यान देना होगा, अन्द्यिा हमािा योग औि योग के आचायय दोनों के वलए िुभ
नहीं होगा।
मवहला योगाभ्यावसयों के द्वािा उनसे अभर व्यिहाि की विकायतें योग से सम्बवन्द्धत
व्यवियों को अक्सि सुनने औि पढने को वमलती िहती हैं, खासकि यह पाश्चामय जगत
में गए योग गुरुओं के संबंध में। अक्सि ऐसे समाचाि िहां के पत्र-पवत्रकाओं में
प्रकावित होते िहे हैं। मैं यहां पि वकसी व्यवि वििेष का नाम न लेकि केिल यह
वनिेदन किना चाहंगा वक योग को उसके सही थिरूप में आगे बढाने के वलए हमें थियं
में यह जागरूकता लानी होगी। जो आचिण हम अपनी िाणी के माध्यम से, लेखनी के
माध्यम से, अभ्यास के माध्यम से कि िहे हैं, उस पि हमें ध्यान देना होगा औि पूिी
सजगता के साि अपने आप को इस कायय में लगाना होगा। अन्द्यिा जो परिणत पहले
के योगाचायों की हो चुकी है िहीं परिणत आज के योगाचायों की भी हो सकती है,
इसीवलए हमें अपने वचंतन, चरित्र, व्यिहाि, विचाि से, पूिी तिह इस बात को समझना
होगा वक हमािे लेख में वकसी भी प्रकाि से अमयायवदत व्यिहाि की कोई गुंजाइि ही न
िहे। हम इसके वलए वकसी को भी दोषी ठहिा सकते हैं लेवकन अगि हम इस मामले में
पूिी तिह वनष्पक्षता के साि लग जाएंगे तो, िह वदन दूि नहीं जब योग के लेख इस
गंदगी से पूिी तिह मुि होंगे। उनमें लोगों के वलए सीखने, समझने औि उसे अभ्यास में
लाने का बहुत कुछ होगा। वजससे उनका न केिल वचंतन, चरित्र, व्यिहाि में बदलाि
होगा बवल्क उनके दृविकोण में हि तिीके से सकािाममक परिितयन परिलवक्षत होगा।
आचायय िही है वजसके आचिण से लोग सीखें, आचायय सदैि अपने आचिण से
विक्षा देता है, औि आचिण से दी गई विक्षा ही थिाई होती है। जो विक्षा केिल िब्दों
के माध्यम से प्रदान की जाती है उसका प्रभाि बहुत अवधक नहीं होता ऐसा हम सब
जानते हैं।
कश्मीि से कन्द्याकुमािी तक औि गुजिात से अरुणाचल प्रदेि तक भाित के पहनािे
को देखा जाए औि उसके अनुरूप योग के वचत्र अपने लेख में प्रयोग वकए जाएं, तो
हम भाितीय संथकृवत को समेटे हुए योग को प्रदवियत किने में सहयोग कि सकेंगे
अन्द्यिा ितयमान में प्रयोग में लाये जा िहे वचत्रों का प्रयोग योग के लेखों में हम जाने-
अनजाने में कि िहे हैं, उससे योग एक वििेष िगय से संबंवधत होकि िह जाएगा।
सामान्द्य जन के मन में यह प्रश्न घि कि जाएगा वक योग किने के वलए यही िेि-भूषा
सबसे उपयुि जान पडती है, तभी तो योग के आचायय ऐसे वचत्रों का प्रयोग अपने
लेखों में कि िहे हैं। जाने-अनजाने हम योग के थिरूप को बदलने का प्रयास कि िहे
होंगे। पंवडत श्रीिाम िमाय आचायय जी ने वलखा है 'गंदे वचत्र लगाओ मत, नािी को
लजाओ मत' इसवलए यह अपेक्षा मैं सभी योग के वनष्णात विद्वानों, आचायों औि
योग के ध्िजिाहकों से किता हं वक िह आने िाले लेखों में, पुथतकों में, जो वचत्र
प्रयोग में लाएंगे िह योग के साि-साि हमािी भाितीय पािंपरिक िेिभूषा औि
संथकृवत को सवम्मवलत वकये हुए होंगे। नािी का सम्मान जहााँ है संथकृवत का उमिान
िहााँ है।

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  • 2. ध्यान देने की आिश्यकता है। योग अभ्यास किते हुए जो वचत्र मवहलाओंके प्रदवियत वकए जाते हैं, िह भाितीय संथकृवत से ओतप्रोत होने चावहए न वक पाश्चामय संथकृवत को बढाने िाले औि कामनीय। आपका लेख तो बहुत सािगवभयत होता है, लेवकन उस लेख के साि में अंवकत वचत्र आपके लेख की गरिमा के अनुकूल नहीं, क्योंवक वजस कायय के वलए हम सब ने योग को चुना है, उसी कायय को आगे बढाने के वलए हमें इस बात पि भी ध्यान देना होगा वक नािी के वचत्र अंवकत किते समय हमें उसके िेिभूषा पि भी ध्यान देना होगा, अन्द्यिा हमािा योग औि योग के आचायय दोनों के वलए िुभ नहीं होगा। मवहला योगाभ्यावसयों के द्वािा उनसे अभर व्यिहाि की विकायतें योग से सम्बवन्द्धत व्यवियों को अक्सि सुनने औि पढने को वमलती िहती हैं, खासकि यह पाश्चामय जगत में गए योग गुरुओं के संबंध में। अक्सि ऐसे समाचाि िहां के पत्र-पवत्रकाओं में प्रकावित होते िहे हैं। मैं यहां पि वकसी व्यवि वििेष का नाम न लेकि केिल यह वनिेदन किना चाहंगा वक योग को उसके सही थिरूप में आगे बढाने के वलए हमें थियं में यह जागरूकता लानी होगी। जो आचिण हम अपनी िाणी के माध्यम से, लेखनी के माध्यम से, अभ्यास के माध्यम से कि िहे हैं, उस पि हमें ध्यान देना होगा औि पूिी सजगता के साि अपने आप को इस कायय में लगाना होगा। अन्द्यिा जो परिणत पहले के योगाचायों की हो चुकी है िहीं परिणत आज के योगाचायों की भी हो सकती है, इसीवलए हमें अपने वचंतन, चरित्र, व्यिहाि, विचाि से, पूिी तिह इस बात को समझना होगा वक हमािे लेख में वकसी भी प्रकाि से अमयायवदत व्यिहाि की कोई गुंजाइि ही न िहे। हम इसके वलए वकसी को भी दोषी ठहिा सकते हैं लेवकन अगि हम इस मामले में पूिी तिह वनष्पक्षता के साि लग जाएंगे तो, िह वदन दूि नहीं जब योग के लेख इस गंदगी से पूिी तिह मुि होंगे। उनमें लोगों के वलए सीखने, समझने औि उसे अभ्यास में
  • 3. लाने का बहुत कुछ होगा। वजससे उनका न केिल वचंतन, चरित्र, व्यिहाि में बदलाि होगा बवल्क उनके दृविकोण में हि तिीके से सकािाममक परिितयन परिलवक्षत होगा। आचायय िही है वजसके आचिण से लोग सीखें, आचायय सदैि अपने आचिण से विक्षा देता है, औि आचिण से दी गई विक्षा ही थिाई होती है। जो विक्षा केिल िब्दों के माध्यम से प्रदान की जाती है उसका प्रभाि बहुत अवधक नहीं होता ऐसा हम सब जानते हैं। कश्मीि से कन्द्याकुमािी तक औि गुजिात से अरुणाचल प्रदेि तक भाित के पहनािे को देखा जाए औि उसके अनुरूप योग के वचत्र अपने लेख में प्रयोग वकए जाएं, तो हम भाितीय संथकृवत को समेटे हुए योग को प्रदवियत किने में सहयोग कि सकेंगे अन्द्यिा ितयमान में प्रयोग में लाये जा िहे वचत्रों का प्रयोग योग के लेखों में हम जाने- अनजाने में कि िहे हैं, उससे योग एक वििेष िगय से संबंवधत होकि िह जाएगा। सामान्द्य जन के मन में यह प्रश्न घि कि जाएगा वक योग किने के वलए यही िेि-भूषा सबसे उपयुि जान पडती है, तभी तो योग के आचायय ऐसे वचत्रों का प्रयोग अपने लेखों में कि िहे हैं। जाने-अनजाने हम योग के थिरूप को बदलने का प्रयास कि िहे होंगे। पंवडत श्रीिाम िमाय आचायय जी ने वलखा है 'गंदे वचत्र लगाओ मत, नािी को लजाओ मत' इसवलए यह अपेक्षा मैं सभी योग के वनष्णात विद्वानों, आचायों औि योग के ध्िजिाहकों से किता हं वक िह आने िाले लेखों में, पुथतकों में, जो वचत्र प्रयोग में लाएंगे िह योग के साि-साि हमािी भाितीय पािंपरिक िेिभूषा औि संथकृवत को सवम्मवलत वकये हुए होंगे। नािी का सम्मान जहााँ है संथकृवत का उमिान िहााँ है।