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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
1. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
कि क धा का ड
।।राम।।
ीगणेशाय नमः
ीजानक व लभो वजयते
ीरामच रतमानस
चतु थ सोपान
( कि क धाका ड)
लोक
क दे द वरसु दराव तबलौ व ानधामावु भौ
ु
शोभा यौ वरधि वनौ ु तनु तौ गो व वृ द यौ।
मायामानु ष पणौ रघु वरौ स मवम हतौ
सीता वेषणत परौ प थगतौ भि त दौ तौ ह नः।।1।।
मा भो धसमु वं क लमल
वंसनं चा ययं
ीम छ भु मु खे दुसु दरवरे संशो भतं सवदा।
संसारामयभेषजं सु खकरं ीजानक जीवनं
ध या ते कृ तनः पबि त सततं ीरामनामामृतम ्।। 2।।
सो0-मु ि त ज म म ह जा न यान खा न अघ हा न कर
जहँ बस संभु भवा न सो कासी सेइअ कस न।।
जरत सकल सु र बृंद बषम गरल जे हं पान कय।
ते ह न भज स मन मंद को कृ पाल संकर स रस।।
आग चले बहु र रघु राया। र यमू क परवत नअराया।।
तहँ रह स चव स हत सु ीवा। आवत दे ख अतु ल बल सींवा।।
अ त सभीत कह सु नु हनु माना। पु ष जु गल बल प नधाना।।
ध र बटु
प दे खु त जाई। कहे सु जा न िजयँ सयन बु झाई।।
पठए बा ल हो हं मन मैला। भाग तु रत तज यह सैला।।
ब
प ध र क प तहँ गयऊ। माथ नाइ पू छत अस भयऊ।।
को तु ह यामल गौर सर रा। छ ी प फरहु बन बीरा।।
2. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
क ठन भू म कोमल पद गामी। कवन हे तु बचरहु बन वामी।।
मृदुल मनोहर सु ंदर गाता। सहत दुसह बन आतप बाता।।
क तु ह ती न दे व महँ कोऊ। नर नारायन क तु ह दोऊ।।
दो0-जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार।
क तु ह अ कल भु वन प त ल ह मनु ज अवतार।।1।।
–*–*–
कोसलेस दसरथ क जाए । हम पतु बचन मा न बन आए।।
े
नाम राम ल छमन दौउ भाई। संग ना र सु क मा र सु हाई।।
ु
इहाँ ह र न सचर बैदेह । ब
फर हं हम खोजत तेह ।।
आपन च रत कहा हम गाई। कहहु ब
नज कथा बु झाई।।
भु प हचा न परे उ ग ह चरना। सो सु ख उमा न हं बरना।।
पु ल कत तन मु ख आव न बचना। दे खत
चर बेष क रचना।।
ै
पु न धीरजु ध र अ तु त क ह । हरष दयँ नज नाथ ह ची ह ।।
मोर याउ म पू छा सा । तु ह पू छहु कस नर क ना ।।
तव माया बस फरउँ भु लाना। ता ते म न हं भु प हचाना।।
दो0-एक म मंद मोहबस क टल दय अ यान।
ु
ु
पु न भु मो ह बसारे उ द नबंधु भगवान।।2।।
–*–*–
जद प नाथ बहु अवगु न मोर। सेवक भु ह परै ज न भोर।।
नाथ जीव तव मायाँ मोहा। सो न तरइ तु हारे हं छोहा।।
ता पर म रघु बीर दोहाई। जानउँ न हं कछ भजन उपाई।।
ु
सेवक सु त प त मातु भरोस। रहइ असोच बनइ भु पोस।।
अस क ह परे उ चरन अक लाई। नज तनु ग ट ी त उर छाई।।
ु
तब रघु प त उठाइ उर लावा। नज लोचन जल सीं च जु ड़ावा।।
सु नु क प िजयँ मान स ज न ऊना। त मम
समदरसी मो ह कह सब कोऊ। सेवक
य ल छमन ते दूना।।
य अन यग त सोऊ।।
दो0-सो अन य जाक अ स म त न टरइ हनु मंत।
म सेवक सचराचर प वा म भगवंत।।3।।
–*–*–
3. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दे ख पवन सु त प त अनु क ला। दयँ हरष बीती सब सू ला।।
ू
नाथ सैल पर क पप त रहई। सो सु ीव दास तव अहई।।
ते ह सन नाथ मय ी क जे। द न जा न ते ह अभय कर जे।।
सो सीता कर खोज कराइ ह। जहँ तहँ मरकट को ट पठाइ ह।।
ए ह ब ध सकल कथा समु झाई। लए दुऔ जन पी ठ चढ़ाई।।
जब सु ीवँ राम कहु ँ दे खा। अ तसय ज म ध य क र लेखा।।
सादर मलेउ नाइ पद माथा। भटे उ अनु ज स हत रघु नाथा।।
क प कर मन बचार ए ह र ती। क रह हं ब ध मो सन ए ीती।।
दो0-तब हनु मंत उभय द स क सब कथा सु नाइ।।
क ह
पावक साखी दे इ क र जोर ीती ढ़ाइ।।4।।
–*–*–
ी त कछ बीच न राखा। लछ मन राम च रत सब भाषा।।
ु
कह सु ीव नयन भ र बार । म ल ह नाथ म थलेसक मार ।।
ु
मं
ह स हत इहाँ एक बारा। बैठ रहे उँ म करत बचारा।।
गगन पंथ दे खी म जाता। परबस पर बहु त बलपाता।।
राम राम हा राम पु कार । हम ह दे ख द हे उ पट डार ।।
मागा राम तु रत ते हं द हा। पट उर लाइ सोच अ त क हा।।
कह सु ीव सु नहु रघु बीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा।।
सब कार क रहउँ सेवकाई। जे ह ब ध म ल ह जानक आई।।
दो0-सखा बचन सु न हरषे कृ पा सधु बलसींव।
कारन कवन बसहु बन मो ह कहहु सु ीव ।।5।।
–*–*–
नात बा ल अ म वौ भाई। ी त रह कछ बर न न जाई।।
ु
मय सु त मायावी ते ह नाऊ। आवा सो भु हमर गाऊ।।
ँ
ँ
अध रा त पु र वार पु कारा। बाल रपु बल सहै न पारा।।
धावा बा ल दे ख सो भागा। म पु न गयउँ बंधु सँग लागा।।
ग रबर गु हाँ पैठ सो जाई। तब बाल ं मो ह कहा बु झाई।।
प रखेसु मो ह एक पखवारा। न हं आव तब जानेसु मारा।।
मास दवस तहँ रहे उँ खरार । नसर
धर धार तहँ भार ।।
4. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
बा ल हते स मो ह मा र ह आई। सला दे इ तहँ चलेउँ पराई।।
मं
ह पु र दे खा बनु सा । द हे उ मो ह राज ब रआई।।
बा ल ता ह मा र गृह आवा। दे ख मो ह िजयँ भेद बढ़ावा।।
रपु सम मो ह मारे स अ त भार । ह र ल हे स सबसु अ नार ।।
ताक भय रघु बीर कृ पाला। सकल भु वन म फरे उँ बहाला।।
इहाँ साप बस आवत नाह ं। तद प सभीत रहउँ मन माह ।।
सु न सेवक दुख द नदयाला। फर क उठ ं वै भु जा बसाला।।
दो0- सु नु सु ीव मा रहउँ बा ल ह एक हं बान।
ह
सरनागत गएँ न उब र हं ान।।6।।
–*–*–
जे न म दुख हो हं दुखार । त ह ह बलोकत पातक भार ।।
नज दुख ग र सम रज क र जाना। म क दुख रज मे समाना।।
िज ह क अ स म त सहज न आई। ते सठ कत ह ठ करत मताई।।
कपथ नवा र सु पंथ चलावा। गु न गटे अवगु नि ह दुरावा।।
ु
दे त लेत मन संक न धरई। बल अनु मान सदा हत करई।।
बप त काल कर सतगु न नेहा। ु त कह संत म गु न एहा।।
आग कह मृदु बचन बनाई। पाछ अन हत मन क टलाई।।
ु
जा कर चत अ ह ग त सम भाई। अस क म प रहरे ह भलाई।।
ु
सेवक सठ नृप कृ पन कनार । कपट म सू ल सम चार ।।
ु
सखा सोच यागहु बल मोर। सब ब ध घटब काज म तोर।।
कह सु ीव सु नहु रघु बीरा। बा ल महाबल अ त रनधीरा।।
दुं दभी अि थ ताल दे खराए। बनु यास रघु नाथ ढहाए।।
ु
दे ख अ मत बल बाढ़
ीती। बा ल बधब इ ह भइ परतीती।।
बार बार नावइ पद सीसा। भु ह जा न मन हरष कपीसा।।
उपजा यान बचन तब बोला। नाथ कृ पाँ मन भयउ अलोला।।
सु ख संप त प रवार बड़ाई। सब प रह र क रहउँ सेवकाई।।
ए सब रामभग त क बाधक। कह हं संत तब पद अवराधक।।
े
स ु म सु ख दुख जग माह ं। माया कृ त परमारथ नाह ं।।
बा ल परम हत जासु सादा। मलेहु राम तु ह समन बषादा।।
5. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सपन जे ह सन होइ लराई। जाग समु झत मन सकचाई।।
ु
अब भु कृ पा करहु ए ह भाँती। सब तिज भजनु कर दन राती।।
सु न बराग संजु त क प बानी। बोले बहँ स रामु धनु पानी।।
जो कछ कहे हु स य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई।।
ु
नट मरकट इव सब ह नचावत। रामु खगेस बेद अस गावत।।
लै सु ीव संग रघु नाथा। चले चाप सायक ग ह हाथा।।
तब रघु प त सु ीव पठावा। गज स जाइ नकट बल पावा।।
सु नत बा ल
ोधातु र धावा। ग ह कर चरन ना र समु झावा।।
सु नु प त िज ह ह मलेउ सु ीवा। ते वौ बंधु तेज बल सींवा।।
कोसलेस सु त ल छमन रामा। कालहु जी त सक हं सं ामा।।
दो0-कह बा ल सु नु भी
य समदरसी रघु नाथ।
ज कदा च मो ह मार हं तौ पु न होउँ सनाथ।।7।।
–*–*–
अस क ह चला महा अ भमानी। तृन समान सु ीव ह जानी।।
भरे उभौ बाल अ त तजा । मु ठका मा र महाधु न गजा।।
तब सु ीव बकल होइ भागा। मु ि ट हार ब
सम लागा।।
म जो कहा रघु बीर कृ पाला। बंधु न होइ मोर यह काला।।
एक प तु ह ाता दोऊ। ते ह म त न हं मारे उँ सोऊ।।
कर परसा सु ीव सर रा। तनु भा क लस गई सब पीरा।।
ु
मेल कठ सु मन क माला। पठवा पु न बल दे इ बसाला।।
ं
ै
पु न नाना ब ध भई लराई। बटप ओट दे ख हं रघु राई।।
दो0-बहु छल बल सु ीव कर हयँ हारा भय मा न।
मारा बा ल राम तब दय माझ सर ता न।।8।।
–*–*–
परा बकल म ह सर क लाग। पु न उ ठ बैठ दे ख भु आग।।
े
याम गात सर जटा बनाएँ। अ न नयन सर चाप चढ़ाएँ।।
पु न पु न चतइ चरन चत द हा। सु फल ज म माना भु ची हा।।
दयँ ी त मु ख बचन कठोरा। बोला चतइ राम क ओरा।।
धम हे तु अवतरे हु गोसाई। मारे हु मो ह याध क नाई।।
6. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
म बैर सु ीव पआरा। अवगु न कबन नाथ मो ह मारा।।
अनु ज बधू भ गनी सु त नार । सु नु सठ क या सम ए चार ।।
इ ह ह क ि ट बलोकइ जोई। ता ह बध कछ पाप न होई।।
ु
ु
मु ढ़ तो ह अ तसय अ भमाना। ना र सखावन कर स न काना।।
मम भु ज बल आ
त ते ह जानी। मारा चह स अधम अ भमानी।।
दो0-सु नहु राम वामी सन चल न चातु र मो र।
भु अजहू ँ म पापी अंतकाल ग त तो र।।9।।
–*–*–
सु नत राम अ त कोमल बानी। बा ल सीस परसेउ नज पानी।।
अचल कर तनु राखहु ाना। बा ल कहा सु नु कृ पा नधाना।।
ज म ज म मु न जतनु कराह ं। अंत राम क ह आवत नाह ं।।
जासु नाम बल संकर कासी। दे त सब ह सम ग त अ वनासी।।
मम लोचन गोचर सोइ आवा। बहु र क भु अस ब न ह बनावा।।
छं 0-सो नयन गोचर जासु गु न नत ने त क ह ु त गावह ं।
िज त पवन मन गो नरस क र मु न यान कबहु ँ क पावह ं।।
मो ह जा न अ त अ भमान बस भु कहे उ राखु सर रह ।
अस कवन सठ ह ठ का ट सु रत बा र क र ह बबू रह ।।1।।
अब नाथ क र क ना बलोकहु दे हु जो बर मागऊ।
ँ
जे हं जो न ज म कम बस तहँ राम पद अनु रागऊ।।
ँ
यह तनय मम सम बनय बल क यान द भु ल िजऐ।
ग ह बाहँ सु र नर नाह आपन दास अंगद क िजऐ।।2।।
दो0-राम चरन ढ़ ी त क र बा ल क ह तनु याग।
सु मन माल िज म कठ ते गरत न जानइ नाग।।10।।
ं
–*–*–
राम बा ल नज धाम पठावा। नगर लोग सब याक ल धावा।।
ु
नाना ब ध बलाप कर तारा। छटे कस न दे ह सँभारा।।
ू
े
तारा बकल दे ख रघु राया । द ह यान ह र ल ह माया।।
छ त जल पावक गगन समीरा। पंच र चत अ त अधम सर रा।।
गट सो तनु तव आग सोवा। जीव न य क ह ल ग तु ह रोवा।।
े
7. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
उपजा यान चरन तब लागी। ल हे स परम भग त बर मागी।।
उमा दा जो षत क नाई। सब ह नचावत रामु गोसाई।।
तब सु ीव ह आयसु द हा। मृतक कम ब धबत सब क हा।।
राम कहा अनु ज ह समु झाई। राज दे हु सु ीव ह जाई।।
रघु प त चरन नाइ क र माथा। चले सकल े रत रघु नाथा।।
दो0-ल छमन तु रत बोलाए पु रजन ब समाज।
राजु द ह सु ीव कहँ अंगद कहँ जु बराज।।11।।
–*–*–
उमा राम सम हत जग माह ं। गु पतु मातु बंधु भु नाह ं।।
सु र नर मु न सब क यह र ती। वारथ ला ग कर हं सब ीती।।
ै
बा ल ास याकल दन राती। तन बहु न चंताँ जर छाती।।
ु
सोइ सु ीव क ह क पराऊ। अ त कृ पाल रघु बीर सु भाऊ।।
जानतहु ँ अस भु प रहरह ं। काहे न बप त जाल नर परह ं।।
पु न सु ीव ह ल ह बोलाई। बहु कार नृपनी त सखाई।।
कह भु सु नु सु ीव हर सा। पु र न जाउँ दस चा र बर सा।।
गत ीषम बरषा रतु आई। र हहउँ नकट सैल पर छाई।।
अंगद स हत करहु तु ह राजू । संतत दय धरे हु मम काजू ।।
जब सु ीव भवन फ र आए। रामु बरषन ग र पर छाए।।
दो0- थम हं दे व ह ग र गु हा राखेउ
चर बनाइ।
राम कृ पा न ध कछ दन बास कर हंगे आइ।।12।।
ु
–*–*–
सु ंदर बन कसु मत अ त सोभा। गु ंजत मधु प नकर मधु लोभा।।
ु
कद मू ल फल प सु हाए। भए बहु त जब ते भु आए ।।
ं
दे ख मनोहर सैल अनू पा। रहे तहँ अनु ज स हत सु रभू पा।।
मधु कर खग मृग तनु ध र दे वा। कर हं स मु न भु क सेवा।।
ै
मंगल प भयउ बन तब ते । क ह नवास रमाप त जब ते।।
फ टक सला अ त सु सु हाई। सु ख आसीन तहाँ वौ भाई।।
कहत अनु ज सन कथा अनेका। भग त बर त नृपनी त बबेका।।
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सु हाए।।
8. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दो0- ल छमन दे खु मोर गन नाचत बा रद पै ख।
गृह बर त रत हरष जस ब नु भगत कहु ँ दे ख।।13।।
–*–*–
घन घमंड नभ गरजत घोरा। या ह न डरपत मन मोरा।।
दा म न दमक रह न घन माह ं। खल क ी त जथा थर नाह ं।।
ै
बरष हं जलद भू म नअराएँ । जथा नव हं बु ध ब या पाएँ।।
बूँद अघात सह हं ग र कस । खल क बचन संत सह जैस।।
े
छ नद ं भ र चल ं तोराई। जस थोरे हु ँ धन खल इतराई।।
ु
भू म परत भा ढाबर पानी। जनु जीव ह माया लपटानी।।
स म ट स म ट जल भर हं तलावा। िज म सदगु न स जन प हं आवा।।
स रता जल जल न ध महु ँ जाई। होई अचल िज म िजव ह र पाई।।
दो0- ह रत भू म तृन संकल समु झ पर हं न हं पंथ।
ु
िज म पाखंड बाद त गु त हो हं सद ंथ।।14।।
–*–*–
दादुर धु न चहु दसा सु हाई। बेद पढ़ हं जनु बटु समु दाई।।
नव प लव भए बटप अनेका। साधक मन जस मल बबेका।।
अक जबास पात बनु भयऊ। जस सु राज खल उ यम गयऊ।।
खोजत कतहु ँ मलइ न हं धू र । करइ
ोध िज म धरम ह दूर ।।
स स संप न सोह म ह कसी। उपकार क संप त जैसी।।
ै
ै
न स तम घन ख योत बराजा। जनु दं भ ह कर मला समाजा।।
महाबृि ट च ल फ ट कआर ं । िज म सु तं भएँ बगर हं नार ं।।
ू
कृ षी नराव हं चतु र कसाना। िज म बु ध तज हं मोह मद माना।।
दे खअत च बाक खग नाह ं। क ल ह पाइ िज म धम पराह ं।।
ऊषर बरषइ तृन न हं जामा। िज म ह रजन हयँ उपज न कामा।।
ब बध जंतु संक ल म ह
ु
ाजा। जा बाढ़ िज म पाइ सु राजा।।
जहँ तहँ रहे प थक थ क नाना। िज म इं य गन उपज याना।।
दो0-कबहु ँ बल बह मा त जहँ तहँ मेघ बला हं।
िज म कपू त क उपज कल स म नसा हं।।15(क)।।
े
ु
कबहु ँ दवस महँ न बड़ तम कबहु ँ क गट पतंग।
9. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
बनसइ उपजइ यान िज म पाइ कसंग सु संग।।15(ख)।।
ु
–*–*–
बरषा बगत सरद रतु आई। ल छमन दे खहु परम सु हाई।।
फल कास सकल म ह छाई। जनु बरषाँ कृ त गट बु ढ़ाई।।
ू
उ दत अगि त पंथ जल सोषा। िज म लोभ ह सोषइ संतोषा।।
स रता सर नमल जल सोहा। संत दय जस गत मद मोहा।।
रस रस सू ख स रत सर पानी। ममता याग कर हं िज म यानी।।
जा न सरद रतु खंजन आए। पाइ समय िज म सु कृ त सु हाए।।
पंक न रे नु सोह अ स धरनी। नी त नपु न नृप क ज स करनी।।
ै
जल संकोच बकल भइँ मीना। अबु ध कटु ं बी िज म धनह ना।।
ु
बनु धन नमल सोह अकासा। ह रजन इव प रह र सब आसा।।
कहु ँ कहु ँ बृि ट सारद थोर । कोउ एक पाव भग त िज म मोर ।।
दो0-चले हर ष तिज नगर नृप तापस ब नक भखा र।
िज म ह रभगत पाइ म तज ह आ मी चा र।।16।।
–*–*–
सु खी मीन जे नीर अगाधा। िज म ह र सरन न एकउ बाधा।।
फल कमल सोह सर कसा। नगु न
ू
ै
ह सगु न भएँ जैसा।।
गु ंजत मधु कर मु खर अनू पा। सु ंदर खग रव नाना पा।।
च बाक मन दुख न स पैखी। िज म दुजन पर संप त दे खी।।
चातक रटत तृषा अ त ओह । िज म सु ख लहइ न संकर ोह ।।
सरदातप न स स स अपहरई। संत दरस िज म पातक टरई।।
दे ख इंद ु चकोर समु दाई। चतवत हं िज म ह रजन ह र पाई।।
मसक दं स बीते हम ासा। िज म
वज ोह कएँ कल नासा।।
ु
दो0-भू म जीव संक ल रहे गए सरद रतु पाइ।
ु
सदगु र मले जा हं िज म संसय म समु दाइ।।17।।
–*–*–
बरषा गत नमल रतु आई। सु ध न तात सीता क पाई।।
ै
एक बार कसेहु ँ सु ध जान । कालहु जीत न मष महु ँ आन ।।
ै
कतहु ँ रहउ ज जीव त होई। तात जतन क र आनेउँ सोई।।
10. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु ीवहु ँ सु ध मो र बसार । पावा राज कोस पु र नार ।।
जे हं सायक मारा म बाल । ते हं सर हत मू ढ़ कहँ काल ।।
जासु कृ पाँ छ टह ं मद मोहा। ता कहु ँ उमा क सपनेहु ँ कोहा।।
ू
जान हं यह च र मु न यानी। िज ह रघु बीर चरन र त मानी।।
ल छमन
ोधवंत भु जाना। धनु ष चढ़ाइ गहे कर बाना।।
दो0-तब अनु ज ह समु झावा रघु प त क ना सींव।।
भय दे खाइ लै आवहु तात सखा सु ीव।।18।।
–*–*–
इहाँ पवनसु त दयँ बचारा। राम काजु सु ीवँ बसारा।।
नकट जाइ चरनि ह स नावा। चा रहु ब ध ते ह क ह समु झावा।।
सु न सु ीवँ परम भय माना। बषयँ मोर ह र ल हे उ याना।।
अब मा तसु त दूत समू हा। पठवहु जहँ तहँ बानर जू हा।।
कहहु पाख महु ँ आव न जोई। मोर कर ता कर बध होई।।
तब हनु मंत बोलाए दूता। सब कर क र सनमान बहू ता।।
भय अ
ी त नी त दे खाई। चले सकल चरनि ह सर नाई।।
ए ह अवसर ल छमन पु र आए।
ोध दे ख जहँ तहँ क प धाए।।
दो0-धनु ष चढ़ाइ कहा तब जा र करउँ पु र छार।
याक ल नगर दे ख तब आयउ बा लक मार।।19।।
ु
ु
–*–*–
चरन नाइ स बनती क ह । ल छमन अभय बाँह ते ह द ह ।।
ोधवंत ल छमन सु न काना। कह कपीस अ त भयँ अकलाना।।
ु
सु नु हनु मंत संग लै तारा। क र बनती समु झाउ कमारा।।
ु
तारा स हत जाइ हनु माना। चरन बं द भु सु जस बखाना।।
क र बनती मं दर लै आए। चरन पखा र पलँ ग बैठाए।।
तब कपीस चरनि ह स नावा। ग ह भु ज ल छमन कठ लगावा।।
ं
नाथ बषय सम मद कछ नाह ं। मु न मन मोह करइ छन माह ं।।
ु
सु नत बनीत बचन सु ख पावा। ल छमन ते ह बहु ब ध समु झावा।।
पवन तनय सब कथा सु नाई। जे ह ब ध गए दूत समु दाई।।
दो0-हर ष चले सु ीव तब अंगदा द क प साथ।
11. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
रामानु ज आग क र आए जहँ रघु नाथ।।20।।
–*–*–
नाइ चरन स कह कर जोर । नाथ मो ह कछ ना हन खोर ।।
ु
अ तसय बल दे व तब माया। छटइ राम करहु ज दाया।।
ू
बषय ब य सु र नर मु न वामी। म पावँर पसु क प अ त कामी।।
ना र नयन सर जा ह न लागा। घोर
ोध तम न स जो जागा।।
लोभ पाँस जे हं गर न बँधाया। सो नर तु ह समान रघु राया।।
यह गु न साधन त न हं होई। तु हर कृ पाँ पाव कोइ कोई।।
तब रघु प त बोले मु सकाई। तु ह
य मो ह भरत िज म भाई।।
अब सोइ जतनु करहु मन लाई। जे ह ब ध सीता क सु ध पाई।।
ै
दो0- ए ह ब ध होत बतकह आए बानर जू थ।
नाना बरन सकल द स दे खअ क स ब थ।।21।।
–*–*–
बानर कटक उमा म दे खा। सो मू ख जो करन चह लेखा।।
आइ राम पद नाव हं माथा। नर ख बदनु सब हो हं सनाथा।।
अस क प एक न सेना माह ं। राम कसल जे ह पू छ नाह ं।।
ु
यह कछ न हं भु कइ अ धकाई। ब व प यापक रघु राई।।
ु
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सु ीव सब ह समु झाई।।
राम काजु अ मोर नहोरा। बानर जू थ जाहु चहु ँ ओरा।।
जनकसु ता कहु ँ खोजहु जाई। मास दवस महँ आएहु भाई।।
अव ध मे ट जो बनु सु ध पाएँ। आवइ ब न ह सो मो ह मराएँ।।
दो0- बचन सु नत सब बानर जहँ तहँ चले तु रंत ।
तब सु ीवँ बोलाए अंगद नल हनु मंत।।22।।
–*–*–
सु नहु नील अंगद हनु माना। जामवंत म तधीर सु जाना।।
सकल सु भट म ल दि छन जाहू । सीता सु ध पूँछेउ सब काहू ।।
मन
म बचन सो जतन बचारे हु । रामचं कर काजु सँवारे हु ।।
भानु पी ठ सेइअ उर आगी। वा म ह सब भाव छल यागी।।
तिज माया सेइअ परलोका। मट हं सकल भव संभव सोका।।
12. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
दे ह धरे कर यह फलु भाई। भिजअ राम सब काम बहाई।।
सोइ गु न य सोई बड़भागी । जो रघु बीर चरन अनु रागी।।
आयसु मा ग चरन स नाई। चले हर ष सु मरत रघु राई।।
पाछ पवन तनय स नावा। जा न काज भु नकट बोलावा।।
परसा सीस सरो ह पानी। करमु का द ि ह जन जानी।।
बहु कार सीत ह समु झाएहु ।क ह बल बरह बे ग तु ह आएहु ।।
हनु मत ज म सु फल क र माना। चलेउ दयँ ध र कृ पा नधाना।।
ज य प भु जानत सब बाता। राजनी त राखत सु र ाता।।
दो0-चले सकल बन खोजत स रता सर ग र खोह।
राम काज लयल न मन बसरा तन कर छोह।।23।।
–*–*–
कतहु ँ होइ न सचर स भेटा। ान ले हं एक एक चपेटा।।
बहु कार ग र कानन हे र हं। कोउ मु न मलत ता ह सब घेर हं।।
ला ग तृषा अ तसय अक लाने। मलइ न जल घन गहन भु लाने।।
ु
मन हनु मान क ह अनु माना। मरन चहत सब बनु जल पाना।।
च ढ़ ग र सखर चहू ँ द स दे खा। भू म ब बर एक कौतु क पेखा।।
च बाक बक हं स उड़ाह ं। बहु तक खग
बस हं ते ह माह ं।।
ग र ते उत र पवनसु त आवा। सब कहु ँ लै सोइ बबर दे खावा।।
आग क हनु मंत ह ल हा। पैठे बबर बलंबु न क हा।।
ै
दो0-द ख जाइ उपवन बर सर बग सत बहु कज।
ं
मं दर एक
चर तहँ बै ठ ना र तप पु ंज।।24।।
–*–*–
दू र ते ता ह सबि ह सर नावा। पू छ नज बृ तांत सु नावा।।
ते हं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सु रस सु ंदर फल नाना।।
म जनु क ह मधु र फल खाए। तासु नकट पु न सब च ल आए।।
ते हं सब आप न कथा सु नाई। म अब जाब जहाँ रघु राई।।
मू दहु नयन बबर तिज जाहू । पैहहु सीत ह ज न प छताहू ।।
नयन मू द पु न दे ख हं बीरा। ठाढ़े सकल संधु क तीरा।।
सो पु न गई जहाँ रघु नाथा। जाइ कमल पद नाए स माथा।।
13. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
नाना भाँ त बनय ते हं क ह । अनपायनी भग त भु द ह ।।
दो0-बदर बन कहु ँ सो गई भु अ या ध र सीस ।
उर ध र राम चरन जु ग जे बंदत अज ईस।।25।।
–*–*–
इहाँ बचार हं क प मन माह ं। बीती अव ध काज कछ नाह ं।।
ु
सब म ल कह हं पर पर बाता। बनु सु ध लएँ करब का ाता।।
कह अंगद लोचन भ र बार । दुहु ँ कार भइ मृ यु हमार ।।
इहाँ न सु ध सीता क पाई। उहाँ गएँ मा र ह क पराई।।
ै
पता बधे पर मारत मोह । राखा राम नहोर न ओह ।।
पु न पु न अंगद कह सब पाह ं। मरन भयउ कछ संसय नाह ं।।
ु
अंगद बचन सु नत क प बीरा। बो ल न सक हं नयन बह नीरा।।
छन एक सोच मगन होइ रहे । पु न अस वचन कहत सब भए।।
हम सीता क सु ध ल ह बना। न हं जह जु बराज बीना।।
ै
अस क ह लवन संधु तट जाई। बैठे क प सब दभ डसाई।।
जामवंत अंगद दुख दे खी। क हं कथा उपदे स बसेषी।।
तात राम कहु ँ नर ज न मानहु । नगु न
ह अिजत अज जानहु ।।
दो0- नज इ छा भु अवतरइ सु र म ह गो
वज ला ग।
सगु न उपासक संग तहँ रह हं मो छ सब या ग।।26।।
–*–*–
ए ह ब ध कथा कह ह बहु भाँती ग र कदराँ सु नी संपाती।।
ं
बाहे र होइ दे ख बहु क सा। मो ह अहार द ह जगद सा।।
आजु सब ह कहँ भ छन करऊ। दन बहु चले अहार बनु मरऊ।।
ँ
ँ
कबहु ँ न मल भ र उदर अहारा। आजु द ह ब ध एक हं बारा।।
डरपे गीध बचन सु न काना। अब भा मरन स य हम जाना।।
क प सब उठे गीध कहँ दे खी। जामवंत मन सोच बसेषी।।
कह अंगद बचा र मन माह ं। ध य जटायू सम कोउ नाह ं।।
राम काज कारन तनु यागी । ह र पु र गयउ परम बड़ भागी।।
सु न खग हरष सोक जु त बानी । आवा नकट क प ह भय मानी।।
त ह ह अभय क र पू छे स जाई। कथा सकल त ह ता ह सु नाई।।
14. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
सु न संपा त बंधु क करनी। रघु प त म हमा बधु ब ध बरनी।।
ै
दो0- मो ह लै जाहु संधु तट दे उँ तलांज ल ता ह ।
बचन सहाइ कर व म पैहहु खोजहु जा ह ।।27।।
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अनु ज या क र सागर तीरा। क ह नज कथा सु नहु क प बीरा।।
हम वौ बंधु थम त नाई । गगन गए र ब नकट उडाई।।
तेज न स ह सक सो फ र आवा । मै अ भमानी र ब नअरावा ।।
जरे पंख अ त तेज अपारा । परे उँ भू म क र घोर चकारा ।।
मु न एक नाम चं मा ओह । लागी दया दे खी क र मोह ।।
बहु कार त ह यान सु नावा । दे ह ज नत अ भमानी छड़ावा ।।
ताँ
े
म मनु ज तनु ध रह । तासु ना र न सचर प त ह रह ।।
तासु खोज पठइ ह भू दूता। त ह ह मल त होब पु नीता।।
ज मह हं पंख कर स ज न चंता । त ह ह दे खाइ दे हेसु त सीता।।
मु न कइ गरा स य भइ आजू । सु न मम बचन करहु भु काजू ।।
गर
क ट ऊपर बस लंका । तहँ रह रावन सहज असंका ।।
ू
तहँ असोक उपबन जहँ रहई ।। सीता बै ठ सोच रत अहई।।
दो-म दे खउँ तु ह ना ह गीघ ह दि ट अपार।।
बू ढ भयउँ न त करतेउँ कछक सहाय तु हार।।28।।
ु
जो नाघइ सत जोजन सागर । करइ सो राम काज म त आगर ।।
मो ह बलो क धरहु मन धीरा । राम कृ पाँ कस भयउ सर रा।।
पा पउ जा कर नाम सु मरह ं। अ त अपार भवसागर तरह ं।।
तासु दूत तु ह तिज कदराई। राम दयँ ध र करहु उपाई।।
अस क ह ग ड़ गीध जब गयऊ। त ह क मन अ त बसमय भयऊ।।
नज नज बल सब काहू ँ भाषा। पार जाइ कर संसय राखा।।
जरठ भयउँ अब कहइ रछे सा। न हं तन रहा थम बल लेसा।।
जब हं
ब म भए खरार । तब म त न रहे उँ बल भार ।।
दो0-ब ल बाँधत भु बाढे उ सो तनु बर न न जाई।
उभय धर महँ द ह सात दि छन धाइ।।29।।
–*–*–
15. भु
ी राम जी का आशीवाद सब पर सदा बना रहे (S. Sood )
अंगद कहइ जाउँ म पारा। िजयँ संसय कछ फरती बारा।।
ु
जामवंत कह तु ह सब लायक। पठइअ क म सब ह कर नायक।।
कहइ र छप त सु नु हनु माना। का चु प सा ध रहे हु बलवाना।।
पवन तनय बल पवन समाना। बु ध बबेक ब यान नधाना।।
कवन सो काज क ठन जग माह ं। जो न हं होइ तात तु ह पाह ं।।
राम काज ल ग तब अवतारा। सु नत हं भयउ पवताकारा।।
कनक बरन तन तेज बराजा। मानहु अपर ग र ह कर राजा।।
संहनाद क र बार हं बारा। ल लह ं नाषउँ जल न ध खारा।।
स हत सहाय रावन ह मार । आनउँ इहाँ
कट उपार ।।
ू
जामवंत म पूँछउँ तोह । उ चत सखावनु द जहु मोह ।।
एतना करहु तात तु ह जाई। सीत ह दे ख कहहु सु ध आई।।
तब नज भु ज बल रािजव नैना। कौतु क ला ग संग क प सेना।।
छं 0–क प सेन संग सँघा र न सचर रामु सीत ह आ नह।
ैलोक पावन सु जसु सु र मु न नारदा द बखा नह।।
जो सु नत गावत कहत समु झत परम पद नर पावई।
रघु बीर पद पाथोज मधु कर दास तु लसी गावई।।
दो0-भव भेषज रघु नाथ जसु सु न ह जे नर अ ना र।
त ह कर सकल मनोरथ स क र ह
सरा र।।30(क)।।
सो0-नीलो पल तन याम काम को ट सोभा अ धक।
सु नअ तासु गु न ाम जासु नाम अघ खग ब धक।।30(ख)।।
मासपारायण, तेईसवाँ व ाम
—————इ त ीम ामच रतमानसे सकलक लकलु ष व वंसने
चतु थ सोपानः समा तः।
( कि क धाका ड समा त)