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Fake Nehru Gandhi And His Real Life History And His Politics Life . Read In Our Language Hindi
GHIASUDDIN GHASI – Literal meaning of name-Kafir Killer. Mughal noble man who was the city Kotwal of Delhi.Persian ancestry. The British issued a shoot-at-site order to finish off all mughal noblemen who could be potential claimants for the throne of Delhi.
3. आपने नेहरु क
े बारे में बहुत क
ु छ पढा सुना होगा. मेरा िेख पहढए प्रमाण क
े
साथ....
नेहरु हहिंदू थे या मुस्लिम:एक खोज भाग-१
(इिंटरनेट पर उपिब्ध जानकारी क
े अनुसार जो अधधकािंश िोग जानते है)
• धगयासुद्दीन गाजी उर्
फ गिंगाधर नेहरु- पपता मोतीिाि नेहरु
• मोतीिाि नेहरु- पपता जवाहर िाि नेहरु,
• जवाहर िाि नेहरु- पपता मोतीिाि नेहरु/मुबारक अिी
• मैमून बेगम उर्
फ इिंहदरा गााँधी- पपता जवाहर िाि नेहरु
• राजीव खान गााँधी- पपता फर्रोज खान वल्द जहााँगीर नवाब खान, माता मैमून
बेगम
उर्
फ इिंहदरा गााँधी. राजीव खान गााँधी ने ईसाई धमफ अपनाकर अपना नाम रोबटो
रखकर अिंतोननयो मैनो उर्
फ सोननया क
ै थोलिक ईसाई से शादी की
• सिंजय खान गााँधी- पपता मोहम्मद युनुस खान, माता मैमून बेगम उर्
फ इिंहदरा
गााँधी
• राउि पवन्ची उर्
फ राहुि गााँधी- पपता राजीव खान गााँधी उर्
फ रोबटो (क
ै थोलिक
ईसाई)
• बबयािंका उर्
फ पप्रयिंका गााँधी- पपता राजीव खान गााँधी उर्
फ रोबटो (क
ै थोलिक
ईसाई), पनत रोबटफ वढेरा, क
ै थोलिक ईसाई
4. भाग-२ (हमारी खोज)
1. सिंिग्न तलवीर में बायीिं तरर् उपर नेहरु क
े दादा जी का तलवीर है जो आनिंद
भवन में िगा है और स्जसपर लिखा है “जवाहर िाि नेहरु क
े दादा गिंगाधर नेहरु”. ये
१८५७ क
े पवप्िव क
े पूवफ हदल्िी क
े कोतवाि थे. नेहरु ने अपने जीवनी में इनक
े
बारे में लिखा है,
“My grandfather, Ganga Dhar Nehru, was Kotwal of Delhi for some time before
the great revolt of 1857.” (pg.2)
मुगि ररकॉर्फ से पता चिता है की १८५७ क
े पवप्िव क
े समय और उससे पहिे कोई
भी
हहिंदू हदल्िी का कोतवाि नही था. उस समय हदल्िी का कोतवाि था गयासुद्दीन
गाजी.
यह हदल्िी में मुगिों का अिंनतम कोतवाि था. तत्कािीन इनतहास से जानकारी
लमिती
है की अिंग्रेज सैननक इसे ढूढ रहे थे और यह अपनी जान बचाने क
े लिए सपररवार
आगरा
की ओर भाग गया था.
नेहरु ने अपनी जीवनी में लिखा है, “The Revolt of 1857 put an end to our
family’s connection with Delhi…The family, having lost nearly all it
possessed, joined the numerous fugitives who were leaving the old imperial
city and went to Agra. He (Gangadhar) died at the early age of 34 in 1861”
(pg.2)
5. उपयुफक्त तथ्यों से लपष्ट है की धगयासुद्दीन गाजी और गिंगाधर नेहरु दोनों एक
ही व्यस्क्त था. १८५७ में पवप्िव क
े समय जब अिंग्रेज सैननक इन्हें ढूिंर् रहे थे
तो अपनी जान बचाने क
े लिए आगरा की ओर भाग गए साथ ही अपना
पहचान छ
ु पाने क
े लिए
अपना नाम भी बदि लिए और पहचान भी क्योंफक बाद में इनक
े पररवार का
और कोई भी
सदलय धगयासुद्दीन क
े जैसा लिवास पहने नहीिं दीखता है. यह वैसा ही है जैसे
की
१९८४ क
े लसक्ख दिंगे क
े समय अल्पसिंख्यक क्षेत्रों मिं8 लसक्खों ने अपने बाि
मुिंर्वा लिए और पगडी बािंधना छोड हदए थे. परन्तु देखनेवािी बात यह है की
धगयासुद्दीन ने छद्म नाम गिंगाधर हहन्दुवािा तो रख लिया परन्तु सर नेम
फकसी
हहिंदू का नही रखा शायद इसलिए की सर नेम खानदान को व्यक्त करता है.
इसलिए एक
नया सर नेम ‘नेहरु’ रख लिया ताफक जरुरत पडने पर यथापररस्लथनत िोगों को
सिंशय
में र्ाि सक
े और अपनी वालतपवक पहचान छ
ु पा सक
ें . नेहरु सर नेम की
उत्पनत पर
नेहरु ने अपनी जीवनी में लिखा है, “A jagir with a house situated on the
banks of canal had been granted …and, from the fact of this residence,
6. 2. नेहरु ने अपने पपता मोतीिाि नेहरु क
े लशक्षा क
े बारे में लिखा है, “His
early education was confined entirely to Persian and Arabic and he only
began learning English in his early teens.” (pg.3)
प्रश्न उठता है की जब नेहरु पिंडर्त थे तो उन्हें सिंलकृ त की लशक्षा तो अवश्य दी
जानी चाहहए थी भिे ही उन्हें अरबी र्ारसी भी पढाया जाता. परन्तु उन्हें
सिंलकृ त
की लशक्षा ही नही दी गयी. इतना ही नही नेहरु ने अपने जीवनी में कई ऐसे
घटनाओिं
का उल्िेख फकया है जो दशाफता है की पपता मोतीिाि या उनक
े चाचा और
चचेरे भाईओिं
क
े हदि में हहिंदू धमफ, हहिंदुओिं क
े भगवान और हहिंदू कमफकािंर् में कोई हदिचलपी
नही थी. इससे लपष्ट होता है की ‘नेहरु’ पिंडर्त तो क्या हहिंदू भी नही थे. एक
लथान पर नेहरु लिखते है, “Of religion I had very hazy notions. It seemed to
be a woman’s affair. Father and my older cousins treated the religious
question humorously and refused to take it seriously.”
7. ३. नेहरु ने अपने जीवनी में लिखा है मेरा जन्म १४ नवम्बर, १८८९ को इिाहाबाद
में हुआ, पर उन्होंने यह नही बताया की इिाहबाद में फकस जगह हुआ था. मैं जब
इिाहबाद में था तो हहिंदुलतान दैननक में एक िेख छपा था और उससे पता चिा की
नेहरु का जन्म इिाहबाद क
े मीरगिंज इिाक
े में हुआ था. िेख में उनक
े घर की तलवीर
भी दी हुई थी जो एक सामान्य सा दो मिंस्जिा घर था. मुझे िगा मुझे यहााँ से क
ु छ
बेहतर जानकारी लमि सकती है इसलिए मैं वहााँ जाने को उत्सुक हुआ, पर यह जानकर
हैरान रह गया की मीरगिंज इिाका रेर् िाईट एररया था. मुझे आश्चयफ हुआ की इतने
बडे व्यस्क्त का जन्मलथान वेश्यािय क
ै से बन गया, परन्तु जब मैंने इस बाबत
जानकारी इकट्ठी करनी शुरू की तो पता चिा की वो बहुत पहिे से रेर् िाईट एररया था
और मोतीिाि रेर् िाईट एररया में ही रहते थे.
इसी दौरान मुझे एक नई जानकारी लमिी की जवाहर िाि नेहरु क
े असिी पपता मुबारक
अिी था. मेरे पास इस बात क
े कोई साबुत नही है और हो भी नही सकता है, परन्तु
मैं ननम्नलिखखत कारणों से इस बात से इनतर्ाक रखता हु:
• मुबारक अिी एक व्यापारी था और वह मोतीिाि क
े घर आया करता था.
• १८५७ क
े पवप्िव में सबक
ु छ गिंवाने क
े बाद नेहरु पररवार की आधथफक स्लथनत बहुत
खराब हो चुकी थी, शायद इसीलिए वे रेर् िाईट एररया में भी रह रहे थे.
• मुबारक अिी एक अय्याश फकलम का व्यस्क्त था. मोतीिाि का रेर् िाईट एररया में
रहना और खराब आधथफक स्लथनत में क
ु छ भी असम्भव नही है.
• मोतीिाि को ‘इशरत मिंस्जि’ मुबारक अिी से लमिा था स्जसका नाम मोतीिाि ने ‘आनिंद
भवन’ रखा था
• नेहरु लिखते है की जब वे दशवें वर्फ में थे तो वे पुराने मकान से नए मकान
‘आनिंद भवन’ में आये थे. मुबारक अिी से नेहरु आनिंद भवन आने से पूवफ पररधचत थे
और मुबारक अिी आनिंद भवन आता जाता रहता था और नेहरु को बेटे जैसा प्यार करता था.
8. • नेहरु ने मुबारक अिी क
े बारे में अपने जीवनी में लिखा है, “He came from a
well-to-do family of Badaun….and for me he was a sure haven of refuge
whenever I was unhappy or in trouble. I used to snuggle up to him and
listen, wide-eyed, by the hour to his innumerable stories……and the memory
of him still remains with me as a dear and precious possession.”
• नेहरु ने खुद लवीकार फकया है की उनका हहिंदु होना महज एक दुघफटना है और
उनक
े सिंलकार मुस्लिम क
े हैं.
• जवाहर अरबी शब्द है जो एक कीमती पत्थर को व्यक्त करता है. कोई हहिंदू और वो
भी पिंडर्त अपने पुत्र का नाम अरबी क्यों रखेगा.
४. हहिंदू धमफ और हहिंदू सिंलकृ नत क
े पवर्य में नेहरु क
े पवचार फकतने ननम्न लतर
क
े थे और हहिंदू धमफ क
े प्रनत उनक
े हदि में फकतना पवद्वेर् था यह उनक
े
ननम्नलिखखत कथन से झिकता है:
“Hindu culture would injure India’s interests. By education I am an
Englishman, by views an internationalist, by culture a Muslim, and I am a
Hindu only by accident of birth. The ideology of Hindu Dharma is completely
out of tune with the present times and if it took root in India, it would
smash the country to pieces. [Source:Violation of Hindu HR-Need for a Hindu
nation-III by V Sunderam (Retd. IAS Officer), originally in “Reminiscences
of the Nehru Age” by M.O. Mathai]
9. भारतीय सभ्यता, सिंलकृ नत और सनातन धमफ जो पवश्व की प्राचीनतम और महानतम
सभ्यता, सिंलकृ नत और धमों में से एक है, जो स्जयो और जीने दो, वसुधैव
क
ु टुम्बकम और सत्यमेव जयते जैसे आदशों पर आधाररत है, क
े पवर्य में कोई हहिंदू
तो क्या इसे समझने वािा कोई भी इस प्रकार की सोच नही रख सकता है. इन्हें इस
बात का र्र था की यहद हहिंदू धमफ ने अपनी जडे जमा िी तो देश क
े टुकडे हो
जायेंगे. ये ठीक वैसा ही जैसे आज राहुि गााँधी कहता है की भारत को िश्कर ऐ
तोइबा से ज्यादा हहिंदू कट्टरवाद से खतरा है. सवाि है देश क
े टुकडे होने से
उनका तात्पयफ क्या था? मेरा मानना है, उन्हें िगता था की यहद हहिंदू धमफ अपनी
जडें मजबूती से जमा िेती है तो भारत अखिंर् मुस्लिम राज्य नही बन सक
े गा और
हहिंदू अपने लिए हहिंदुलतान िे िेगा और भारत क
े टुकडे हो जायेंगे. शायद आपको
मेरी सोच पर तरस आ रही होगी, िेफकन मेरे इस सोच का पयाफप्त आधार है और आप
भी
देख िीस्जए....
५. नेहरु का कहना है की उनका खानदान र्रुफखलशयर का कृ पा प्राप्त कर उसी क
े समय
(१७१६ ईलवी) कश्मीर छोर्कर मुगिों की सेवा क
े लिए हदल्िी आ बसे थे. वे अपनी
जीवनी में खुद को कश्मीरी पिंडर्त साबबत करने क
े लिए नाना प्रकार क
े अनगफि
प्रिाप फकये है जो की महत्वहीन और असम्बद्ध भी है, परन्तु उन्होंने कहीिं भी
कश्मीर क
े उस भू-भाग का स्जक्र नही फकया है जहााँ क
े वे खुद को खानदानी बताते
है. परन्तु पवर्म्बना देखखये, खुद को कश्मीर पिंडर्त साबबत करने क
े लिए अनगफि
प्रिाप करनेवािा नेहरु की राय कश्मीरी पिंडर्तों क
े सम्बन्ध में फकतना नघनौना और
ननम्नलतरीय है. नेहरु ने अपनी पुलतक Glimses of World history में लिखा है:
“The treatment of men was sometimes worse than that of animals (some of the
animals like cows were actually revered because they were Gods).
10. Lower caste Hindus had a miserable life. Other historians have commented
that the treatment of women was even worse, specially women of lower
castes, they were considered the property of the upper caste Hindus, to be
molested and/or raped at will.
In many cases the new bride had to stay a night with the village Brahman
before she was married off. Kashmir converted to Islam during this time
period. It was cruelty like this that led to the whole sale conversion to
Islam. The new religion offered them equality and saved them from the
Brahmans.”
जरा तीसरे पैरा पर ध्यान दीस्जए. नेहरु का मानना है की कश्मीर की सामास्जक
धालमफक स्लथनत बहुत ही खराब थी और वे ब्राह्मणों क
े अत्याचार से त्रलत थे.
और इन्ही अत्याचार क
े पररस्लथनतयों में कश्मीर क
े िोगों ने सामूहहक रूप से
इलिाम धमफ कबूि कर लिया. कश्मीर क
े इनतहास िेखक कल्हण, पवल्हण या अन्य फकसी
ने भी इसप्रकार की बातें नही लिखी है. दूसरी बात कश्मीर १४ वीिं शताब्दी क
े
उत्तराधफ से ही मुस्लिम अत्याचार से त्रलत था. (मैं कश्मीर क
े इनतहास पर
जाना नही चाहता हूाँ, पर मैं बता दूाँ की नेहरु को भारतीय इनतहास की वालतपवक
जानकारी बबिक
ु ि नही थी.) शायद नेहरु को यह पता नही था की लसकन्दर शाह जैसे
मुस्लिम शासकों ने कश्मीरी पिंडर्तों क
े लिए तीन ही पवकल्प हदए थे-इलिाम कबूि
करो, घाटी छोडो या मरो और उसने िाखों की सिंख्या में ब्राह्मणों का कत्ि
करवाया था और यह की १८४६ में जब कश्मीर क
े महाराज गुिाब लसिंह हुए तो १८४८ में
हजारों की सिंख्या में धमाफन्तररत मुस्लिम उनक
े दरबार में उपस्लथत हुए थे और
अपने उपर मुस्लिम अत्याचार और जबरन धमाफन्तरण का हवािा देकर वापस हहिंदू धमफ
में शालमि करने की प्राथफना की थी. गुिाब लसिंह इसक
े लिए आश्वाशन भी हदए थे पर
उनक
े पुरोहहत की धमाफन्धता क
े कारण यह शुभ कायफ पूरा नही हो सका (My Frozen
Turbulence of Kashmir- by Jagmohan).
11. यह उस कश्मीरी पिंडर्त का पवचार है जो खुद को कश्मीरी कहते नही अघाता है और खुद
को कश्मीरी पिंडर्त साबबत करने क
े लिए मरता हदखाई देता है. कोई भी कश्मीरी पिंडर्त
इस प्रकार की सोच नही रख सकता है. इससे लपष्ट होता है की नेहरु पिंडर्त तो क्या
हहिंदू भी नही थे बस्ल्क कट्टर मुस्लिम थे. और यह उनक
े अगिे वाक्य से लपष्ट
होता है की ‘नए धमफ ने उन्हें समानता का अवसर हदया और उन्हें ब्राह्मणों से
बचाया.’ सवाि है यहद इलिाम उसे इतना ही महान जान पर्ता था तो वे फर्र खुद को
कश्मीरी पिंडर्त साबबत करने क
े लिए क्यों मरे जा रहे थे? वे मुसिमान क्यों नही
हो गये? और यहद कश्मीरी पिंडर्तों का कश्मीर में उतना ही धाक था तो वो छोडकर
मुगिों क
े तिुवे चाटने क्यों आ गए थे?
उपयुफक्त से लपष्ट है की नेहरु क
े लिए हहिंदुओिं और हहिंदू धमफ क
े लिए वैसे ही
घृणा थी जैसे एक कट्टर मुस्लिम में होता था और उसक
े नजर में दार-उि-इलिाम और
इलिाम में धमाफन्तरण ही हहिंदुओिं क
े अत्याचार से मुस्क्त का मागफ था. कश्मीर
दार-उि-इलिाम क
े मागफ पर अग्रसर था जबफक हहिंदू धमफ की मजबूत जडें शेर् भारत
में इस मागफ की बाधाएिं थी और स्जसक
े कारण उन्हें भारत क
े टुकडे होने का खतरा
हदखाई पर्ता था.
६. नेहरु क
े उपयुफक्त ननष्कर्फ कािंग्रेस-वामपिंथी इनतहास िेखकों की प्रेरणा
स्रोत बन गयी है और ये भर्ूवे इनतहासकार अपने आका को खुश करने क
े लिए हर जगह
हहिंदुओिं और हहिंदू सिंलकृ नत को बदनाम करने क
े लिए ऐसे ही ननष्कर्ों का सहारा
िेते है. वालतपवकता यह है की ये बुराइयािं मध्यकािीन मुस्लिम अत्याचार और
भोगवाद को व्यक्त करती है जो कािािंतर में उन्ही से प्रेररत होकर क
ु छ हहिंदू
रजवाडे और जमीिंदार तक पहुच गए थे.
12. ७. फकसी भी सभ्यता सिंकृ नत और धमफ को नष्ट करना हो तो सबसे पहिे वहााँ की
लशक्षा व्यवलथा को पवकृ त कर देना चाहहए ये नेहरु ने अिंग्रेजों से अच्छी तरह
सीख लिया था. प्रधानमिंत्री बनने क
े बाद उसने अबुि किाम आजाद को लशक्षा मिंत्री
बनाकर अपने इस उद्देश्य की पूनतफ हेतु िगा हदया. इसमें हहिंदुओिं क
े गौरवशािी
इनतहास को पवकृ त और घृखणत रूप में पेश फकया गया और आक्रमणकारी मुस्लिमों का
महहमा मिंर्न फकया गया स्जसे पढकर िोगों में हीन भावना उत्पन्न होती है और यही
उसका उद्देश्य भी था. पवश्व में एकमात्र भारत ऐसा देश है जहााँ की इनतहास में
आक्रमणकाररयों को हीरो और अपने देश, अपनी सभ्यता और सिंलकृ नत, धमफ और मयाफदा
की रक्षा हेतू िडनेवािे वीरों को पविेन क
े रूप में पेश फकया गया है.
कािंग्रेस-वामपिंथी इनतहासकार हमे यह पढने और मानने क
े लिए पववश करते है की
मुस्लिमों क
े भारत आने क
े पहिे भारत की आधथफक, सामास्जक, धालमफक, प्रशासननक
स्लथनत बहुत ही खराब थी और उसमे व्यापक सुधार और पवकास मुस्लिमों क
े आगमन
पश्चात ही हुआ है जबफक सच्चाई ठीक इसक
े पवपरीत है. इन बातों से भी लपष्ट है
की नेहरु वालतव में मुसिमान थे.
८. स्जन्ना और मुस्लिम िीग ने जब हहिंदुओिं क
े पवरुद्ध प्रत्यक्ष कायफवाही की
घोर्ण की और हहिंदुओिं की हत्या, िूट और हहिंदू स्लत्रयों क
े बिात्कार होने िगे उस
समय नेहरु भारत क
े अिंतररम प्रधानमिंत्री थे, पर उन्होंने इसे रोकने का कोई
प्रयत्न नही फकया, परन्तु बबहार में जैसे ही कोिकाता में मारे गए िोगों क
े
पररजनों ने इसक
े पवरोध में प्रनतफक्रया व्यक्त की इन्होने तत्काि सेना भेजकर
उन्हें गोलियों से भुनवा हदया.
13. ९. शेख अब्दुल्िा १९३१ से ही घाटी में उत्पात मचा रहा था, महाराजा हररलसिंह क
े
पवरुद्ध आन्दोिन चिा रहा था और हहिंदुओिं का खुिे आम कत्ि और िूटमार कर रहा था,
पर जब महाराजा ने शेखअब्दुल्िा को नजरबिंद कर शािंनत लथापना का प्रयास फकया तो
नेहरु शेख अब्दुल्िा क
े समथफन में कश्मीर में दिंगे फ
ै िाने पहुाँच गए. नेहरु
ने शेख अब्दुल्िा को शेर-ए-कश्मीर एविं िोगो का पप्रय हीरो बताते हुए अपने भार्ण
में कहा, “यह बडे दुुःख की बात है की कश्मीर प्रशासन अपने ही आदलमयों का खून
बहािं रही है. मैं कहूाँगा की उसका यह कृ त्य प्रशासन को कििंफकत कर रही है और अब
यह ज्यादा हदन तक नही हटक सकती. मै कहता हू की कश्मीर की जनता को अब और अपनी
आजादी पर हमिा एक पि भी बदाफश्त नही करना चाहहए. यहद हम अपने शासक पर काबू
पाना चाहते है तो हमे पूरी शस्क्त क
े साथ उसका पवरोध करना चाहहए. (Sardar
Patel’s Correspondence-by Durga Sinh)
ज्ञातव्य है की एक तरर् हररलसिंह जब अपने अल्पसिंख्यक हहिंदुओिं, बौधों और लसक्खों
को बचाने का प्रयास कर रहे थे उसी समय हैदराबाद में ननजाम हहिंदुओिं पर भयानक
अत्याचार कर रहे थे ताफक हैदराबाद से हहिंदू पिायन कर जाये और हैदराबाद मुस्लिम
बहुि हो जाये ताफक वह भारत में पविय करने को बाध्य न हो, पर नेहरु ने उस क्र
ू र
ननजाम को क
ु छ भी नही कहा जबफक हररलसिंह क
े पीछे पर्कर शेख अब्दुि को गद्दी पर
बबठाकर उन्हें राज्य से भी बाहर कर हदया. ऐसा उन्होंने इसलिए फकया क्योंफक वे
न क
े वि सिंलकार से मुस्लिम थे बस्ल्क पवचार से भी मुस्लिम ही थे और हम सहमत है
की उनका हहिंदू होना महज एक दुघफटना मात्र था.
14. १०. जब महाराज हररलसिंह ने जम्मू-कश्मीर का पविय भारत में कर हदया तो नेहरु ने
उसे अलथायी घोपर्त कर प्िेबीसाईट क
े माध्यम से अिंनतम ननणफय की घोर्णा की.
जम्मू-कश्मीर क
े सवेक्षण करनेवािे लशवन िाि सक्सेना ने अपने ररपोटफ में
बताया की ‘७८% मुस्लिम आबादी वािा जम्मू-कश्मीर में प्िेबीसाईट का पररणाम भारत
क
े पक्ष में होने की उम्मीद करना महा पागिपन है’. पर नेहरु ने उनकी बातों पर
ध्यान नही हदया. इतना ही नही शेख अब्दुल्िा क
े साथ लमिकर गुपचुप धारा ३७०
तैयार कर लिया और सिंसद में दबाव र्ािकर पास भी करवा लिया जो आजतक भारत की गिे
की हड्र्ी बनी हुई है. कश्मीरी आतिंकवाद और भारत में मुस्लिम आतिंकवाद की जड
नेहरु की यही तुस्ष्टकरण नीनत थी. (कश्मीर समलया पर पवशेर् जानकारी क
े लिए मेरा
िेख “अखिंर्ता पर सवाि: धारा ३७०” पढें)
११. जब हमारी सेना जीत क
े करीब पहुाँच गयी थी तब इन्होने अकारण एक तरर्ा युद्ध
पवराम की घोर्णा कर दी स्जसक
े कारण आज भी जम्मू-कश्मीर का बहुत बडा हहलसा
पाफकलतान क
े पास है.
१२. जब पाफकलतान ने कश्मीर पर हमिा कर हदया और हमारी सेना उससे िोहा िे रही
थी उस समय पाफकलतान को ५५ करोड रूपया देने में गााँधी क
े साथ इनका भी हाथ था.
१३. नेहरु को राष्रवाद से घृणा था. वह उसे ‘बू’ कहते थे (भारत गााँधी नेहरु
की छाया में- िेखक गुरु दत्त) पर वालतपवकता यह थी की उसकी नजर में राष्रवाद
का मतिब हहिंदू राष्रवाद से था और वे तो हहिंदुओिं से घृणा करते थे. हहिंदू और
हहिंदुत्व की बात करनेवािे उनक
े नजर में देशद्रोही था (भारत गााँधी नेहरु की
छाया में).
15. १४. जब धमफ क
े आधार पर भारत का पवभाजन हुआ तो कायदे से इलिाम क
े सभी अनुयायी
को पाफकलतान और बिंगिादेश में चिे जाना चाहहए था और हहन्द सभ्यता और सिंलकृ नत
क
े समथफक को भारत आ जाना चाहहए था परन्तु गााँधी और नेहरु क
े कारण यह नही हो
सका स्जसका पररणाम यह हुआ है की नेहरु गााँधी क
े छिावे में र्
िं सकर बिंगिादेश और
पाफकलतान में रह जानेवािे िाखों करोडों गैर मुस्लिम आज महज क
ु छ हजारों में
लसमट गए है और मौत से भी बत्तर स्जिंदगी जीने को बाध्य है. वे आज भी िूट, हहिंसा,
बिात्कार और धमाफन्तरण क
े लशकार हो रहे है और अपना अस्लतत्व बचाने क
े लिए
भारत से शरण की मािंग कर रहे है. इतना ही नही हहिंदुलतान क
े हहिंदुओिं क
े सीने पर
आज भी मुसिमान मुिंग दि रहे है तथा कट्टरवादी मुस्लिमों और नेहरु गााँधी क
े उपज
छद्मधमफननरपेक्षवादी राजनेताओिं क
े र्ड्यिंत्र से हहिंदुलतान की अखिंर्ता एकबार
फर्र सिंकट में पडती जान पर रही है.
१५. नेहरु खुद को नास्लतक कहते थे. पर वालतपवकता यह है की वे राजनननतक कारणों
से खुद को मुस्लिम या इलिाम समथफक नही कह पाते थे और इसीलिए वे नास्लतकता का
चोिा ओढे रहते थे और इस नास्लतकता की आड में हहिंदुओिं और हहिंदू धमफ क
े
पवरुद्ध अपने मुस्लिम सिंलकार, पवचार और कायों को सिंरक्षण दे रहे थे.
१६. नेहरु ने धमफननरपेक्षता क
े नाम पर मुस्लिम तुस्ष्टकरण को सिंगहठत रूप हदया
स्जसका दुष्पररणाम पूरा देश भुगत रहा है.
१७. नेहरु खुद तो यह लवीकार करते ही थे की उनक
े सिंलकार मुस्लिम क
े है,
उपयुफक्त तथ्यों और उनक
े कायों क
े आधार पर मेरा मानना है की वे अपने पवचार
और कायफ से भी मुस्लिम ही थे. उनक
े साथ जुडा हहिंदू शब्द उनक
े लिए कष्टकारी
था स्जसकी अलभव्यस्क्त वे यदा कदा और हहिंदू होने को महज एक दुघफटना कहकर व्यक्त
करते थे. उनका नास्लतक होना ठीक वैसे ही था जैसे आज रोमन क
ै थोलिक ईसाई सोननया
और उसकी सिंताने जनता को धोखा देने क
े लिए हर जगह अपना धमफ ‘Religious
Humanity’ लिखते है.
16. भाग-३
इिंहदरा गााँधी क
े जीवन और कायफ भी इस ओर सिंक
े त करता है की नेहरु मुस्लिम थे:
• मैमून बेगम उर्
फ इिंहदरा गााँधी फर्रोज खान वल्द जहााँगीर नवाब खान से ननकाह की
थी.
• मैमून बेगम उर्
फ इिंहदरा गााँधी क
े दोनों पुत्र राजीव खान गााँधी और सिंजय खान
गााँधी क
े पपता मुस्लिम ही थे.
• इिंटरनेट से प्राप्त जानकारी क
े अनुसार इनक
े दोनों पुत्रों का आवश्यक मुस्लिम
सिंलकार भी हुआ था.
• फर्रोज खान का मकबरा इस बात का प्रमाण है की इिंहदरा गााँधी अपने मुस्लिम
सिंलकारों को नही त्यागी थी.
• १९७१ की िडाई में ९२ हजार से उपर पाफकलतानी सैननक बिंदी बनाये गए थे स्जसे
इिंहदरा गााँधी ने बबना शतफ छोड हदया. वे चाहते तो इसक
े बदिे पाक अधधकृ त
कश्मीर का सौदा कर सकती थी. क
ु छ नही तो बदिे में पाफकलतान द्वारा बिंदी बनाये
गए भारतीय सैननकों को तो ररहा करवा ही सकती थी पर उन्होंने ऐसा क
ु छ नही फकया.
• जनसिंख्या ननयिंत्रण की नीनत क
े तहत इनक
े द्वारा चिाये गए नशबिंदी अलभयान क
े
बारे में तत्कािीन इनतहासकार लिखते है, “हहिंदुओिं को उनक
े घरों, दुकानों यहााँ
तक की मिंहदरों से भी खखिंच खखिंच कर नशबिंदी फकया जाने िगा, परन्तु इस सरकार की
कभी हहम्मत नही हुई की वे एक मस्लजद से फकसी मुसिमान को खखिंच िे या एक ईसाई को
फकसी धगरजाघर से खखिंच िें.” इस घटना का स्जक्र होने पर बचपन में मेरी बुआ बताई
थी की इिंहदरा गााँधी हहिंदू और मुसिमान की जनसिंख्या बराबर करना चाहती थी.
• इिंहदरा गााँधी अर्गाननलतान बाबर क
े मजार पर लसजदा करने गयी थी
• अरब क
े पप्रिंस ने इिंहदरा गााँधी को मक्का आने का ननमिंत्रण हदया था जहााँ गैर
मुस्लिमों को जाना वस्जफत है.
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