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|| साई बाबा वत पूजा ||
साई बाबा 9 गुरवार वत
साई बाबा वत को कोई भी व्यक्ति कक कर सकता है. इस वत को करने के ि कनयम भी अत्यंत
साधारण है. साई बाबा अपने भको की हर इच्छा पूरी करते है. उनकी कृ््पा से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है.
मांगने से पहले ही वे सब कुछ देते है. उनके स्मरण मात से जीवन मे आ रही बाधाओ मे कमी होती है. कहा भी जाता
है, िक ि कशिरडी वाले श्री साई बाबा िक मि कहमा का कोई और ओर छोर नही है. साई बाबा पर पूरा ि कवश्वास करने वालो
को कभी ि कनराशिा का सामना नही करना पडता है.
साई बाबा वत को कोई भी साधारण जन कर सकता है. यहां तक की बच़्चे भी इस वत को कर सकते
है. साई बाबा अपने भको मे िकसी प्रकार का कोई भेद भाव नही करते है. उनकी शिरण मे अमीर-गरीब या िकसी
भी वगर का व्यक्ति कक आये उसकी कायर ि कसि कद अवश्य पूरी होती है. साई बाबा वत एक बार शिुर करने के बाद ि कनयि कमत
रप से 9 गुरवार तक िकया जाता है. इस वत को कोई भी व्यक्ति कक साई बाबा का नाम लेकर शिुर कर सकता है.
वत करने के ि कलये प्रात: स्नान करने के बाद साई बाबा की फोटो की पूजा िक जाती है. साई बाबा की फोटो लगाने के
ि कलये सबसे पहले पीले रंग का वस ि कबछाया जाता है. इस पर साई बाबा की प्रि कतमा या फोटो लगाई जाती है. इसे
स्वच्छ पानी से पोछ कर इसपर चंदन का ि कतलक लगाया जाता है.
साई बाबा की फोटो पर पीले फू लो का हार चढाना चाि कहए. अगरबती और दीपक जलाकर साई वत की कथा पढनी
चाि कहए. और साई बाबा का स्मरण करना चाि कहए. इसके बाद बेसन के लडडूऔ का प्रसाद बांटा जाता है. इस वत को
फलाहार ग्रहण करके िकया जा सकता है. या िफर के समय मे भोजन करके िकया जा सकता है. इस वत मे कुछ न
कुछ खाना जररी है, भूखे रहकर इस वत को नही िकया जाता है.
इस प्रकार वत करने के बाद 9 गुरवार तक साई बाबा के मंिदर जाकर दशिरन करना भी शिुभ रहता है. घर के ि कनकट
साई बाबा मंिदर न होने पर घर मे भी साई फोटो की पूरी श्रद्वा से पूजा करनी चाि कहए. िकसी भी स्थान पर हो, वत
की संख्या 9 होने से पूवर इसे मध्य मे नही छोडना चाि कहए.
१. सदगुर श्री साईबाबा ि कशिरडी के परम संत हैI उनका हदय फू लो से भी कोमल हैI जो कोई व्यक्ति कक
अपार श्रदा एवम ि कवश्वास से उनको भजता है, वह इस भवसागर के पार उतरता है I जो दुखी व्यक्ति कक
उनको सचे हदय से पुकारता है, साईबाबा उसका दुख तुरंत ही दूर करते है I अतः यह वत श्रदा एवम
ि कवश्वास से करे I
2. यह वत अबाल- वृदा, सी- पुरष अथवा कोई भी व्यक्ति कक एवम अत्यंत ि कनधरन व्यक्ति कक भी सरलता से रख सकता है I
3. लोग बाबा श्री के चरणो मे भाँति कत- भाँति कत की ि कमठाई-पकवान के थाल समिपत करते थे, परन्तु उन्होने सारा जीवन रोटी, भाजी,
छाछ आिद का सादा भोजन ही ि कलया था I इसि कलए इस वत के दौरान भाजी, छाछ अथवा दही का भोग लगाए I
4. एक बार भोजन करके यह वत रखे I चाय, दूध या फल खा सकते है I
5. िकसी भी गुरवार से यह वत आरंभ करे, इस वत मे नौ गुरवार तक वत रखने का ि कनयम करेI
6. ि कजस गुरवार से वत का आरंभ करे, उस िदन संकल्प करेI बाद मे संकल्प करने की आवश्यकता नही है I
7.वत के िदन िनदा न करे, झूट न बोले, िहसा न करे तथा झगड़ा-टन्टा न करे I
8. वत के िदन मन मे भी श्री साईबाबा का सतत स्मरण करे I
9. वत का आरंभ करने से पहले, बाबा श्री के श्री साईनाथ ि कसद बीसा यंत के दशिरन करके, िफर साईबाबा की स्तुि कत करेI ऐसा करने पर
ही फल की प्राि कप होती हैI
10. वत- ि कवि कध सपाप होने पर क्षमायाचना करे I
11. वत मे माने गये गुरवार की संख्या पूणर होने पर वत का उदपन अवश्य करे और संकल्प छोड़ देI
12. यिद सी रजस्वला हो, सूतक हो अथवा बाहरगाव जाना पड़े तब बाबाश्री का मानि कसक पूजन करके बाबाश्री का स्मरण करते रहे
तथा उपवास रखे I इससे वत अखंड रहेगा I
13. यिद भूल-चूक से वत खंि कडत हो जाए, तो िफर से वत करे परंतु घबडाना नही चाि कहए I बाबाश्री िकसी को दंड या सज़ा नही देते है I
भूल चूक के ि कलए क्षमा माँतगकर िफर से वत आरंभ करे I
14. यथाशिि कक गाय अथवा कुत्ते को रोटी ि कखलाए अथवा पि कक्षयो की दाना दे I बाबाश्री मनुष्य, पशिु, पक्षी आिद से भेद नही रखते I उनके
मन मे सभी जीव समान है I
15. बाबाश्री िकसी भी रूप मे पधार सकते है I इसि कलए वत के िदन ि कभक्षुक को कुछ न कुछ अवश्य दे, परन्तु उसे ‘ना’ न कहे अथवा
उसका ि कतरस्कार न करे तथा प्यासो को पानी देने पर बाबाश्री अत्यंत प्रसन होते हैI
16. वत का उदापन करके संकल्प छोड़ना आवश्यक है I उदापन के समय साई बाबा की कृ््पा का प्रचार करने के ि कलये 7,9, 11,
21 साई पुस्तके, अपने आस-पास के लोगो मे बांटनी चाि कहए.
संकल्प
संकल्प करने से वत को दृढ़ता प्राप होती है, इससे इि कच्छत कायर जल्दी पिरपूणर होता है I
इसि कलए चम्मच मे स्वच्छ पानी लेकर, चम्मच को दाि कहने हाथ से पकड़कर, श्रदापूवरक, नीचे ि कलखा संकल्प करे :-
हे दयालु साईबाबा! हे भको के दुखो को दूर करने वाले! मै… (आपकी जो समस्या हो अथवा कामना हो उसका उल्लेख करे) के ि कलए
आपका वत रखता ह I इस वत ि कनि कमत, मै नौ गुरवार तक आपका वत रखने का संकल्प रखता हँत I मेरा वत ि कनिवघ पिरपूणर करवाईए I
वत पिरपूणर होने पर मै वत का उदापन करूँत गा I हे दयालु बाबा! आप मेरा दुख दूर कीि कजए और मेरी इच्छा पूणर कीि कजए
इस प्रकार कहकर, चम्मच का पानी भूि कम पर छोड़ दे I िफर साईबाबा का मंत ” ॐ श्रीसाईनाथाय नमः I ” बोलकर साईबाबा की उदी
(भस्म) माथे पर, गले मे तथा आँतखो मे लगाए I
िफर श्री साईबाबा के ‘ श्री साईनाथ ि कसद बीसा यंत’ का दशिरन करे और श्री साईबाबा स्तुि कत बोलेI बाद मे वत कथा का पठन करे I
अंत मे आरती करके प्रसाद बाटे I
क्षमा याचना
सारी ि कवि कध पूणर होने पर बाबाश्री से क्षमा माँतगते हुए कहे, ‘ हे बाबा! आपका वत रखने मे मुझसे कोई भूल चूक हुई हो तो उसे आप
उदार भाव से क्षमा करे I
संकल्प िकए गये गुरवार पूणर होने पर, उसके बाद के गुरवार को वत के उदापन मे रोटी, भाजी, छाछ या
दही व्यक्तंजन अवश्य रखे I ि कवशिेष मे अपनी शिि कक के अनुसार व्यक्तंजन बनाए I
हर गुरवार की तरह ही बाबा की पूजा करे I यिद शिि कक हो तो गुलाब की फुलो की माला तथा हीना का इत समिपत करे I वत की बाकी
की ि कवि कध पूणर करके प्रसाद मे ि कमठाई समिपत करे I यिद ऐसा न हो सके तो गुड, शिक्कर या फल भी रख सकते है I िफर आरती करे
नािरयल चढ़ाए ओर शिि कक के अनुसार 1,3, अथवा 5 ग़रीबो को प्रेमपूवरक भोजन कराए तथा फल या धन रूपी दि कक्षणा दे I िफर
साईबाबा के सम्मुख, नीचे बताए अनुसार संकल्प छोड़े :–
चम्मच मे पानी लेकर बोले – “हे साईबाबा! मैने अि कत श्रधा एवम् प्रेम से आपका यह वत पूणर िकया है ओर आज़ उसका उदापन िकया
हैI इस वत को करने मे अथवा उसके उदापन मे िकसी भी प्रकार की भूल – चूक हो तो क्षमाभाव से मुझे माफ कर दीि कजए ओर मेरे वत
को स्वीकार कीि कजए आप मुझ पर प्रसन रि कहए ओर मेरी मनोकामना पूणर करने की कृपा कीि कजए I”
ऐसा कहकर पानी भूि कम पर छोड़ देI साईबाबा को चरणवंदन करे, भूल-चूक के ि कलए क्षमा माँतगे ओर वत को पूणर करेI
साई बाबा वत कथा
एक शिहर मे कोिकला नाम की सी और उसके पि कत महेशिभाई रहते थे. दोनो का
वैवाि कहक जीवन सुखमय था. दोनो मे आपस मे स्नेह और प्रेम था. पर महेशि भाई कभी कभार झगडा
करने की आदत थी. परन्तु कोिकला अपने पि कत के कोध का बुरा न मानती थी. वह धािमक आस्था और
ि कवश्वास वाली मि कहला थी. उसके पि कत का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नही था. इस कारण वह अपना
अि कधकतर समय अपने घर पर ही व्यक्ततीत करता था. समय के साथ काम मे और कमी होने पर उसके
स्वभाव मे और अि कधक ि कचडि कचडापन रहने लगा.
एक िदन दोपहर के समय कोिकला के दरवाजे पर एक वृ््द महाराज आये. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ््द
महाराज के ि कभक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल िदये. और दोनो हाथोम से उस वृ््द बाबा को नमस्कार िकया. बाबा
के आि कशिवारद देने पर कोिकला के मन का दु:ख उसकी आंखो से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोिकला को श्री साई
वत के बारे मे बताया और कहा िक इस वत को 9 गुरवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूणर ि कवि कध-ि कवधान से
पूजा करने, और साईबाबा पर अटटू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.
महाराज के बताये अनुसार कोिकला ने वत गुरवार के िदन साई बाबा का वत िकया. और 9 वेम गुरवार को गरीबो
को भोजन भी िदया. साथ ही साई पुस्तके भेट स्वरप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये़् और उसके
घर की सुख शिाि कन्त मे वृ््ि कद हुई. इसके बाद दोनो का जीवन सुखमय हो गया.
एक बार उसकी जेठानी ने बातो-बातो मे उसे बताया, िक उसके बचे पढाई नही करते यही कारण है. िक परीक्षा मे वे
फे ल हो जाते है. कोिकला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 वत का महत्व बताया. कोिकला बहन के
बताये अनुसार जेठानी ने साई वत का पालन िकया. उसके थोडे ही िदनो मे उसके बचे पढाई करने लगे. और बहुत
अच्छे अंको से पास हुए.
"श्री साई बाबा की कृ पा"
अध्याय-१
एक समय की बात है. ममता जी व उनके पि कत रतनदेव अहमदाबाद मे प्रेमपूवरक रहते थे. लेिकन रतन का
स्वभाव झगड़ालू था. अड़ोसी-पड़ोसी उनके स्वभाव से परेशिान थे. लेिकन उनकी पती ममता जी बहुत ही धािमक थी.
भगवान पर ि कवश्वास रखती थी. और ि कबना कु छ कहे सब कु छ सह लेती थी. धीरे-धीरे उनके पि कत का व्यक्तवसाय ठप हो
गया रतन जी िदन भर घर पर ही रहते. ि कजससे उनका स्वभाव और जयादा ि कचि कददा हो गया.
एक रोज ममता के द्वार पर एक साधू आए और उससे उन्होने ि कभक्षा मे दाल-चावल माँतगा. ममता ने तुरंत हाथ धोकर महाराज को दाल-
चावल िदए. और उन्हे नमस्कार िकया. साधू महाराज ने खुशि होकर उसे आशिीवारद िदया और ममता के दु:खो को दूर करने हेतु उसे श्री
साई बाबा के गुरवार वाले वत को करने की ि कवि कध समझाई. उन्होने बताया िक इच्छा के अनुसार ५,७,९,११ या २१ गुरवार तक साई
बाबा का वत करने, ि कवि कध से उदापन करने, गरोबो को भोजन करने से उसकी मनोकामना अवश्य पूणर होगी. इस वत को करते समय
झूठ, छल आिद समस्त बुरी आदतो का त्याग कर देना चाि कहए. वत पूणर होने पर यथाशिि कक ७,११,२१,४१,१०१ िकताबे दान करनी
चाि कहए. श्री साई के वचन है श्रदा व सबूरी. इन्हे ध्यान मे रखासर वत रखे. इस प्रकार वत करने से साई बाबा तेरी सभी मनोकामनाए
पूरी करेगे. इतने सरल वत को सुनकर ममता अत्यंत प्रसन हो गई और अगले गुरवार से ही उसने "साई बाबा वत" का पालन िकया और
देखते ही देखते उसके पि कत के स्वाभाव मे आशयजरनक पिरवतरन आ गया और उसने िफर से व्यक्तापर चालू िकया जो सफल हुआ. घर पर
श्री साई बाबा की कृपा से सुख-शिांि कत हो गई.
एक िदन ममता की बहन और उसके पि कत उससे ि कमलने आए.रतन और ममता को कुषा देख वे भी प्रसन हुए. ममता की बहन ने उससे
पूछा िक यह चमत्कार कैसे हुआ? मेरे बचे ि कबल्कुल पढाई नही करते और िकसी का कहना नही मानते, बहुत उदंड होते जा रहे है,
ि कजसकी वजह से सब-कुछा होते हुए भी मे सुखी नही ह. तब ममता ने उसे साई बाबा सा गुरवार वत िक मि कहमा बताई. इस वत िक
मि कहमा सुन ममता िक बहन प्रसन हुई. उसने पूणर मनोयोग से श्रदा व ि कवश्वास से ९ गुरवार तक यह वत िकया और ि कजसका पिरणाम
यह हुआ िक उसके बचे मन लगाकर पढ़ते व हमेशिा कक्षा मे अववल आते और साथ ही साथ घर के छोटे-मोटे कम मे भी उसका हाथ
बताते. वह सभी लोगो को इस महँत वत का प्रभाव बताने लगी और स्वाम भी इस वत का पालन करती रही. श्री साई बाबा ने जैशि कृपा
उन पर िक, वैसी सभी पर करे. जो पते और सुने उसके भी सभी मनोरथ ि कसद हो जाए.
अध्याय-२
व्यक्तवसाय मे सफलता
मुंबई मे एक व्यक्तापारी जगदीशि प्रसाद रहते थे. शिहर मे उनकी कपडे की कई ि कमले थे. सभी प्रकार की सुख-समि कद थी. अचानक एक-एक
कर सभी ि कमलो मे मजदूरो ने हड़ताल कर दी. सेठ-जी बहुत परेशिां होने लगे कयोिक मामला गंभीर था. व नेताओ के दबाव की वजह से
ि कमले शिुरू होने के आसार भी नही लग रहे थे.
ऐसे समय मे सेठ-जी के एक दूर के िरश्तेदार का उनसे ि कमलने आना हुआ. बातो-बातो मे सेठ-जी को गुरवार वाला "साई बाबा वत"
करने को कहा. उसने कहा-अप और सेठानी दोनो एक साथ यह वत रखे, बाबा की कृपा से सब मंगल होगा. सेठ-सेठानी ने ि कवि कध-पूवरक
गुरवार का वत शिुर िकया और वत शिुर करने के दो सपाह के भीतर ही मजदूरो ने हड़ताल वापस ले ली और सभी ि कमले पुन: शिुर हो गई.
साई बाबा की कृपा से नुकसान मे जा रहे जगदीशि प्रसाद की एक वषर मे ही काफी लाभ हो गया. पिरवार मे सुख-संथी ि कमली. इसका
सारा श्री सेठ-जी ने "साई बाबा वत" को िदया.
अध्याय-३
"कन्या का ि कववाह संपन हुआ."
शांित बहन की बेटी अनीता वैसे तो बहल गुणवान थी लेिकन किल थी. ऊपर से गरीब भी थी. बडा दहेज दे सकने की उसकी हौिसयत
नही थी.
अनीता की उम िववाह योगय हो गई थी, पर उसकी शादी हो नही पा रही थी. धीरे-धीरे उसकी आयु के साथ माता-िपता की िचता भी
बढने लगी. अनीता खाना पकाने, िसलाई-कडी आिद सभी कायो मे बहत कुशल थी. उसने एम.ए. िकया हआ था. सवभाब से भी वह
समझदार और हसमुख थी, पर िफर भी उसे योगय वर नही िमल पा रहा था. एक िदन अनीता पडोस मे अपनी सहेली के यहाँ गई तो
देखा वह एक िकताब पढ रही थाई. सुनीता ने पूछा "कया पढ रही हो?" तब सहेली ने कहा यह "साई बाबा की िकताब है. हमारी मामी
के यहाँ आज इस वत का उदापन था. जहा सभी का एक-एक िकताब बाटी गई. जब अनीता ने िकताब हाथ मे ली और कुछ पष पडे तो
सैबबा की कृपा से उसके मन मे यह वत करने की इचछा जागत हई, वह िकताब सहेली से लेकर घर आ गई. गुरवार को सुबह ११
गुरवार तक वत करने की मनत मानकर अनीता ने साई बाबा वत करने का संकलप िलया. उसके मामाजी एक अचछे घर के पढे-िलखे
डॉकटर का िरशता लेकर आए. अनीता की मामी और लडके की माँ बचपन की सहेली थी. व अनीता की मामी ने लडके से सीधे बात कर
ली थी. अनीता सा बारे मे सुनकर लडका बहत उएसिहत था. उसे अनीता जैसी ही पती की तलाश थी, जो पढी-िलखी व सुनी हो और
उसके साथ कदम से कदम िमलकर चल सके. अनीता यह सब जानकर बहत खुश हई. एक ही माह मे सादगीपूणर समारोह मे सुनीता का
िववाह संपन हो गया.
अधयाय-4
उधारी वसूल हो गई.
िदनेश कुमार जी का प्लािसटक का थोक व्यापर था. पिरवार मे पित-पती और एक पुत था. उनका व्यापर बहत बडा नही था, पर
पिरवार की सुख-सुिवधा के िहसाब से पयारप था, परन्तु मुसीबत कह कर नही अित. उनके व्यापर मे उधर देना जररी था, नही तो
बाजार मे पितसपहार मे वे पीछे रह जाते. ऐसे ही एक व्यापारी की तरफ उनका बढते-बढते ३ लाख उधर फं स गया. उस व्यापारी की
िनयल मे खोट आ गया. और वह रपये चुकाने मे तरह-तरह के बहाने करने लगा.
अब तो िदनेश कुमार जी बहत परेशान रहने लगे. उन्हे कंपनी की तपफ से तगोदे पर तगोदे होने लगे. उनके अनुसार एक माह मे यिद
उन्होंर कंपनी का पैसा जमा नही करवाया तो कंपनी उन्हे मॉल देना बंद कर देगी. िदनेश की तो रातो की नीद उड गई, न तो उन्हे
भोजन मे रस अत था न ही िकसी और बात मे.
एक िदन िदनेश िचता मे बैठे थे, तभी उनके िमत वमार जी आ पहचे. वमार के पूछने पर िदनेश ने उन्हे अपनी िचता का कारण बताया.
वमार जी ने कहा-"बस इतनी-सी बात! िदनेश साडी िचता छोड दीिजए और श्री साई बाबा की शरण लीिजए. गुरवार वाला साई बाबा
वत किलयुग मे तत्काल फल देने वाला है, इसे ख़ुशी-ख़ुशी आरंभ करे और चमत्कार देखे. ऐसा कहकर शमार-जी ने उन्हे साई बाबा वत
कथा की िकताब दी और वत िविध समझाई.
िदनेश जी ने सपती श्रदा और िवश्वास के साथ वत का आरम्भ िकया. वत आरंभ करने के चौथे ही िदन वह व्यापारी उनकी दुकान पर
आया और कहने लगा की उनका मॉल बेचकर उसे बहत लाभ हआ. उन्हे अगले मॉल की जलद जररत है. साथ ही, उसने पुराना पूरा
पैसा तो चुकाया ही, अगले मॉल के भी रूपये अिगम दे गया और रपने चुकाने मे हई देरी हेतु उसने क्षमा मांगी.
िदनेश तो श्री साई बाबा की ऐसी कृपा देख भाव िवभोर हो गए. जो रकम वह डूब चुकी मान रहे थे, वह तो वापस आई ही, व्यापर मे
भी लाभ हो गया. इस अनुपम वत का लोगो को अिधक से अिधक लाभ हो, इसिलए इस वत की १०१ िकताब अपने स्नेहीजनो मे
िवतिरत की.
|| श्री साई चालीसा ||
|| चौपाई ||
पहले साई के चरणों मे, अपना शीश नमाऊं मैं।
कैसे िशरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥
कौन है माता, िपता कौन है, ये न िकसी ने भी जाना।
कहां जन्म साई ने धारा, पश पहेली रहा बना॥
कोई कहे अयोधया के , ये रामचंद भगवान हैं।
कोई कहता साई बाबा, पवन पुत हनुमान हैं॥
कोई कहता मंगल मूित, श्री गजानंद हैं साई।
कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥
शंकर समझे भक कई तो, बाबा को भजते रहते।
कोई कह अवतार दत का, पूजा साई की करते॥
कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान।
ब़डे दयालु दीनबं़़धु, िकतनों को िदया जीवन दान॥
कई वष र पहले की घटना, तुम्हे सुनाऊं गा मैं बात।
िकसी भागयशाली की, िशरडी मे आई थी बारात॥
आया साथ उसी के था, बालक एक बहत सुन्दर।
आया, आकर वही बस गया, पावन िशरडी िकया नगर॥
कई िदनों तक भटकता, िभक्षा माँग उसने दर-दर।
और िदखाई ऐसी लीला, जग मे जो हो गई अमर॥
जैसे-जैसे अमर उमर ब़ढी, ब़ढती ही वैसे गई शान।
घर-घर होने लगा नगर मे, साई बाबा का गुणगान॥
िदग् िदगंत मे लगा गूंजने, िफर तो साई जी का नाम।
दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥
बाबा के चरणों मे जाकर, जो कहता मैं हूं िऩ़ध o न।
दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन॥
कभी िकसी ने मांगी िभक्षा, दो बाबा मुझको संतान।
एवं असतु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान॥
सवयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल।
अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा िवशाल॥
भक एक मदासी आया, घर का बहत ब़डा ़़धनवान।
माल खजाना बेहद उसका, केवल नही रही संतान॥
लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो।
झंझा से झंकृत नैया को, तुम्ही मेरी पार करो॥
कुलदीपक के िबना अं़़धेरा, छाया हआ घर मे मेरे।
इसिलए आया हँ़ू बाबा, होकर शरणागत तेरे॥
कुलदीपक के अभाव मे, व्यथर है दौलत की माया।
आज िभखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥
दे-दो मुझको पुत-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर।
और िकसी की आशा न मुझको, िसफर भरोसा है तुम पर॥
अनुनय-िवनय बहत की उसने, चरणों मे ़़धर के शीश।
तब पसन होकर बाबा ने , िदया भक को यह आशीश॥
`अलला भला करेगा तेरा´ पुत जन्म हो तेरे घर।
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥
अब तक नही िकसी ने पाया, साई की कृपा का पार।
पुत रत दे मदासी को, धन्य िकया उसका संसार॥
तन-मन से जो भजे उसी का, जग मे होता है उदार।
सांच को आंच नही हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥
मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास।
साई जैसा पभु िमला है, इतनी ही कम है कया आस॥
मेरा भी िदन था एक ऐसा, िमलती नही मुझे रोटी।
तन पर कप़डा दूर रहा था, शेष  रही नन्ही सी लंगोटी॥
सिरता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था।
दुि़दरन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था॥
धरती के अितिरक जगत मे, मेरा कुछ अवलम्ब न था।
बना िभखारी मैं दुिनया मे, दर-दर ठोकर खाता था॥
ऐसे मे एक िमत िमला जो, परम भक साई का था।
जंजालों से मुक मगर, जगती मे वह भी मुझसा था॥
बाबा के दशरन की खाितर, िमल दोनों ने िकया िवचार।
साई जैसे दया मूित के, दशरन को हो गए तैयार॥
पावन िशरडी नगर मे जाकर, देख मतवाली मूरित।
धन्य जन्म हो गया िक हमने, जब देखी साई की सूरित॥
जब से िकए हैं दशरन हमने, दुःख सारा काफू र हो गया।
संकट सारे िमटै और, िवपदाओ का अन्त हो गया॥
मान और सम्मान िमला, िभक्षा मे हमको बाबा से।
पितिबम्‍ि़बत हो उठे जगत मे, हम साई की आभा से॥
बाबा ने सन्मान िदया है, मान िदया इस जीवन मे।
इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊं गा जीवन मे॥
साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हआ।
लगता जगती के कण-कण मे, जैसे हो वह भरा हआ॥
`काशीराम´ बाबा का भक, िशरडी मे रहता था।
मैं साई का साई मेरा, वह दुिनया से कहता था॥
सीकर सवयं़ं वस बेचता, गाम-नगर बाजारों मे।
झंकृत उसकी हृदय तंती थी, साई की झंकारों मे॥
सतब़्ध िनशा थी, थे सोय,़े रजनी आंचल मे चाँद िसतारे।
नही सूझता रहा हाथ को हाथ ितिमर के मारे॥
वस बेचकर लौट रहा था, हाय ! हाट से काशी।
िविचत ब़डा संयोग िक उस िदन, आता था एकाकी॥
घेर राह मे ख़डे हो गए, उसे कुिटल अन्यायी।
मारो काटो लूटो इसकी ही, धविन प़डी सुनाई॥
लूट पीटकर उसे वहाँ से कुिटल गए चम्पत हो।
आघातों मे ममारहत हो, उसने दी संज्ञा खो॥
बहत देर तक प़डा रह वह, वही उसी हालत मे।
जाने कब कुछ होश हो उठा, वही उसकी पलक मे॥
अनजाने ही उसके मुंह से, िनकल प़डा था साई।
िजसकी पितधविन िशरडी मे, बाबा को प़डी सुनाई॥
क्षुब़्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए िवकल हो।
लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्ही के सन्मुख हो॥
उन्मादी से इ़़धर-उ़़धर तब, बाबा लेगे भटकने।
सन्मुख चीजे जो भी आई, उनको लगने पटकने॥
और ध़धकते अंगारों मे, बाबा ने अपना कर डाला।
हए सशंिकत सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य िनराला॥
समझ गए सब लोग, िक कोई भक प़डा संकट मे।
क्षुिभत ख़डे थे सभी वहाँ, पर प़डे हए िवसमय मे॥
उसे बचाने की ही खाितिर, बाबा आज िविकल है।
उसकी ही पी़़ड़ा से पीिडिति, उनकी अन्तिःस्थल है॥
इतिने मे ही िवििविध ने अपनी, िवििचत्रतिा िदिखलाई।
लख कर िजसको जनतिा की, श्रद्धा सिरतिा लहराई॥
लेकर संज्ञाहीन भक को, गा़़ड़ी एक विहाँ आई।
सन्मुख अपने दिेख भक को, साई की आंखे भर आई॥
शांति, धीर, गंभीर, िसन्धु सा, बाबा का अन्तिःस्थल।
आज न जाने क्यो रह-रहकर, हो जातिा था चंचल॥
आज दिया की मू स्वियं था, बना हुआ उपचारी।
और भक के िलए आज था, दिेवि बना प्रतितिहारी॥
आज िभक की िविषम परीक्षा मे, सफल हुआ था काशी।
उसके ही दिशर्शन की खाितिर थे, उम़ड़े नगर-िनविासी।
जब भी और जहां भी कोई, भक प़ड़े संकट मे।
उसकी रक्षा करने बाबा, आतिे है पलभर मे॥
युग-युग का है सत्य यह, नही कोई नई कहानी।
आपतिग्रस्ति भक जब होतिा, जातिे खुदि अन्र्तियामी॥
भेदिभावि से परे पुजारी, मानवितिा के थे साई।
िजतिने प्यारे िहन्दिू-मुिस्लम, उतिने ही थे िसक्ख ईसाई॥
भेदि-भावि मंिदिर-िमस्जदि का, तिोड़-फोड़ बाबा ने डिाला।
राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लातिाला॥
घण्टे की प्रतितिध्वििन से गूंजा, िमस्जदि का कोना-कोना।
िमले परस्पर िहन्दिू-मुिस्लम, प्यार बढ़ा िदिन-िदिन दिूना॥
चमत्कार था िकतिना सुन्दिर, पिरचय इस काया ने दिी।
और नीम कडिुविाहट मे भी, िमठास बाबा ने भर दिी॥
सब को स्नेह िदिया साई ने, सबको संतिुल प्यार िकया।
जो कुछ िजसने भी चाहा, बाबा ने उसको विही िदिया॥
ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदिा जो जपा करे।
पविर्शति जैसा दिुःख न क्यो हो, पलभर मे विह दिूर टरे॥
साई जैसा दिातिा हमने, अरे नही दिेखा कोई।
िजसके केविल दिशर्शन से ही, सारी िविपदिा दिूर गई॥
तिन मे साई, मन मे साई, साई-साई भजा करो।
अपने तिन की सुिध-बुिध खोकर, सुिध उसकी तिुम िकया करो॥
जब तिू अपनी सुिध तिज, बाबा की सुिध िकया करेगा।
और राति-िदिन बाबा-बाबा, ही तिू रटा करेगा॥
तिो बाबा को अरे ! िविविश हो, सुिध तिेरी लेनी ही होगी।
तिेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी॥
जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को।
एक जगह केविल िशरडिी मे, तिू पाएगा बाबा को॥
धन्य जगति मे प्रताणी है विह, िजसने बाबा को पाया।
दिुःख मे, सुख मे प्रतहर आठ हो, साई का ही गुण गाया॥
िगरे संकटो के पविर्शति, चाहे िबजली ही टूट पड़े।
साई का ले नाम सदिा तिुम, सन्मुख सब के रहो अड़े॥
इस बूढ़े की सुन करामति, तिुम हो जाओगे हैरान।
दिंग रह गए सुनकर िजसको, जाने िकतिने चतिुर सुजान॥
एक बार िशरडिी मे साधु, ढ़ोगी था कोई आया।
भोली-भाली नगर-िनविासी, जनतिा को था भरमाया॥
जड़ी-बूिटयां उन्हे िदिखाकर, करने लगा विह भाषण।
कहने लगा सुनो श्रोतिागण, घर मेरा है विृन्दिाविन॥
औषिध मेरे पास एक है, और अजब इसमे िशक।
इसके सेविन करने से ही, हो जातिी दिुःख से मुि़क॥
अगर मुक होना चाहो, तिुम संकट से बीमारी से।
तिो है मेरा नम िनविेदिन, हर नर से, हर नारी से॥
लो खरीदि तिुम इसको, इसकी सेविन िवििधयां है न्यारी।
यद्यपिप तिुच्छ विस्तिु है यह, गुण उसके है अिति भारी॥
जो है संतििति हीन यहां यिदि, मेरी औषिध को खाए।
पुत्र-रत हो प्रताप, अरे विह मुंह मांगा फल पाए॥
औषिध मेरी जो न खरीदिे, जीविन भर पछतिाएगा।
मुझ जैसा प्रताणी शायदि ही, अरे यहां आ पाएगा॥
दिुिनया दिो िदिनो का मेला है, मौज शौक तिुम भी कर लो।
अगर इससे िमलतिा है, सब कुछ, तिुम भी इसको ले लो॥
हैरानी बढ़तिी जनतिा की, लख इसकी कारस्तिानी।
प्रतमुिदिति विह भी मन- ही-मन था, लख लोगो की नादिानी॥
खबर सुनाने बाबा को यह, गया दिौड़कर सेविक एक।
सुनकर भृकुटी तिनी और, िविस्मरण हो गया सभी िविविेक॥
हुक्म िदिया सेविक को, सत्विर पकड़ दिुष को लाओ।
या िशरडिी की सीमा से, कपटी को दिूर भगाओ॥
मेरे रहतिे भोली-भाली, िशरडिी की जनतिा को।
कौन नीच ऐसा जो, साहस करतिा है छलने को॥
पलभर मे ऐसे ढोगी, कपटी नीच लुटेरे को।
महानाश के महागतिर्श मे पहुँचा, दिूँ जीविन भर को॥
तििनक िमला आभास मदिारी, क्रूर, कुिटल अन्यायी को।
काल नाचतिा है अब िसर पर, गुस्सा आया साई को॥
पलभर मे सब खेल बंदि कर, भागा िसर पर रखकर पैर।
सोच रहा था मन ही मन, भगविान नही है अब खैर॥
सच है साई जैसा दिानी, िमल न सकेगा जग मे।
अंश ईश का साई बाबा, उन्हे न कुछ भी मुिश्कल जग मे॥
स्नेह, शील, सौजन्य आिदि का, आभूषण धारण कर।
बढ़तिा इस दिुिनया मे जो भी, मानवि सेविा के पथ पर॥
विही जीति लेतिा है जगतिी के, जन जन का अन्तिःस्थल।
उसकी एक उदिासी ही, जग को कर दिेतिी है िवि£ल॥
जब-जब जग मे भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जातिा है।
उसे िमटाने की ही खाितिर, अवितिारी ही आतिा है॥
पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगतिी का हर के।
दिूर भगा दिेतिा दिुिनया के , दिानवि को क्षण भर के॥
ऐसे ही अवितिारी साई, मृत्युलोक मे आकर।
समतिा का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप िमटाकर ॥
नाम द्वारका िमस्जदि का, रखा िशरडिी मे साई ने।
दिाप, तिाप, संतिाप िमटाया, जो कुछ आया साई ने॥
सदिा यादि मे मस्ति राम की, बैठे रहतिे थे साई।
पहर आठ ही राम नाम को, भजतिे रहतिे थे साई॥
सूखी-रूखी तिाजी बासी, चाहे या होविे पकविान।
सौदिा प्यार के भूखे साई की, खाितिर थे सभी समान॥
स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दिे जातिे थे।
बड़े चावि से उस भोजन को, बाबा पाविन करतिे थे॥
कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग मे जातिे थे।
प्रतमुिदिति मन मे िनरख प्रतकृिति, छटा को विे होतिे थे॥
रंग-िबरंगे पुष्प बाग के , मंदि-मंदि िहल-डिुल करके।
बीहड़ विीराने मन मे भी स्नेह सिलल भर जातिे थे॥
ऐसी समुधुर बेला मे भी, दिुख आपाति, िविपदिा के मारे।
अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहतिे बाबा को घेरे॥
सुनकर िजनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आतिे थे।
दिे िविभूिति हर व्यथा, शांिति, उनके उर मे भर दिेतिे थे॥
जाने क्या अदभुति िशक, उस िविभूिति मे होतिी थी।
जो धारण करतिे मस्तिक पर, दिुःख सारा हर लेतिी थी॥
धन्य मनुज विे साक्षाति् दिशर्शन, जो बाबा साई के पाए।
धन्य कमल कर उनके िजनसे, चरण-कमल विे परसाए॥
काश िनभर्शय तिुमको भी, साक्षाति् साई िमल जातिा।
विषो से उजड़ा चमन अपना, िफर से आज िखल जातिा॥
गर पकड़तिा मै चरण श्री के , नही छोड़तिा उमभर॥
मना लेतिा मै जरूर उनको, गर रूठतिे साई मुझ पर॥
|| इिति श्री साई चालीसा समाप ||
साई बाबा आरती
आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ।
चरणो के तेरे हम पुजारी साई बाबा ॥
िविद्या बल बुिद, बन्धु माता िपता हो
तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो
हे जगदाता अवितारे, साई बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥
ब्रह के सगुण अवितार तुम स्विामी
ज्ञानी दयाविान प्रभु अंतरयामी
सुन लो िविनती हमारी साई बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥
आिद हो अनंत ित्रिगुणात्मक मूर्तित
िसधु करुणा के हो उदारक मूर्तित
िशिरडी के संत चमत्कारी साई बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥
भक्तो की खाितर, जनम िलये तुम
प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम िदये तुम
दुिखया जनो के िहतकारी साई बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥
शी साई मंत्रि
ॐ शी साई कालातीताय नमः
ॐ शी साई मृत्युंजयाय नमः
ॐ शी साई आरोगयकेमदाय नमः
Sai vrat katha 9 guruvar vrat katha

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Sai vrat katha 9 guruvar vrat katha

  • 1. || साई बाबा वत पूजा || साई बाबा 9 गुरवार वत साई बाबा वत को कोई भी व्यक्ति कक कर सकता है. इस वत को करने के ि कनयम भी अत्यंत साधारण है. साई बाबा अपने भको की हर इच्छा पूरी करते है. उनकी कृ््पा से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती है. मांगने से पहले ही वे सब कुछ देते है. उनके स्मरण मात से जीवन मे आ रही बाधाओ मे कमी होती है. कहा भी जाता है, िक ि कशिरडी वाले श्री साई बाबा िक मि कहमा का कोई और ओर छोर नही है. साई बाबा पर पूरा ि कवश्वास करने वालो को कभी ि कनराशिा का सामना नही करना पडता है. साई बाबा वत को कोई भी साधारण जन कर सकता है. यहां तक की बच़्चे भी इस वत को कर सकते है. साई बाबा अपने भको मे िकसी प्रकार का कोई भेद भाव नही करते है. उनकी शिरण मे अमीर-गरीब या िकसी भी वगर का व्यक्ति कक आये उसकी कायर ि कसि कद अवश्य पूरी होती है. साई बाबा वत एक बार शिुर करने के बाद ि कनयि कमत रप से 9 गुरवार तक िकया जाता है. इस वत को कोई भी व्यक्ति कक साई बाबा का नाम लेकर शिुर कर सकता है. वत करने के ि कलये प्रात: स्नान करने के बाद साई बाबा की फोटो की पूजा िक जाती है. साई बाबा की फोटो लगाने के ि कलये सबसे पहले पीले रंग का वस ि कबछाया जाता है. इस पर साई बाबा की प्रि कतमा या फोटो लगाई जाती है. इसे स्वच्छ पानी से पोछ कर इसपर चंदन का ि कतलक लगाया जाता है. साई बाबा की फोटो पर पीले फू लो का हार चढाना चाि कहए. अगरबती और दीपक जलाकर साई वत की कथा पढनी चाि कहए. और साई बाबा का स्मरण करना चाि कहए. इसके बाद बेसन के लडडूऔ का प्रसाद बांटा जाता है. इस वत को फलाहार ग्रहण करके िकया जा सकता है. या िफर के समय मे भोजन करके िकया जा सकता है. इस वत मे कुछ न कुछ खाना जररी है, भूखे रहकर इस वत को नही िकया जाता है. इस प्रकार वत करने के बाद 9 गुरवार तक साई बाबा के मंिदर जाकर दशिरन करना भी शिुभ रहता है. घर के ि कनकट साई बाबा मंिदर न होने पर घर मे भी साई फोटो की पूरी श्रद्वा से पूजा करनी चाि कहए. िकसी भी स्थान पर हो, वत
  • 2. की संख्या 9 होने से पूवर इसे मध्य मे नही छोडना चाि कहए. १. सदगुर श्री साईबाबा ि कशिरडी के परम संत हैI उनका हदय फू लो से भी कोमल हैI जो कोई व्यक्ति कक अपार श्रदा एवम ि कवश्वास से उनको भजता है, वह इस भवसागर के पार उतरता है I जो दुखी व्यक्ति कक उनको सचे हदय से पुकारता है, साईबाबा उसका दुख तुरंत ही दूर करते है I अतः यह वत श्रदा एवम ि कवश्वास से करे I 2. यह वत अबाल- वृदा, सी- पुरष अथवा कोई भी व्यक्ति कक एवम अत्यंत ि कनधरन व्यक्ति कक भी सरलता से रख सकता है I 3. लोग बाबा श्री के चरणो मे भाँति कत- भाँति कत की ि कमठाई-पकवान के थाल समिपत करते थे, परन्तु उन्होने सारा जीवन रोटी, भाजी, छाछ आिद का सादा भोजन ही ि कलया था I इसि कलए इस वत के दौरान भाजी, छाछ अथवा दही का भोग लगाए I 4. एक बार भोजन करके यह वत रखे I चाय, दूध या फल खा सकते है I 5. िकसी भी गुरवार से यह वत आरंभ करे, इस वत मे नौ गुरवार तक वत रखने का ि कनयम करेI 6. ि कजस गुरवार से वत का आरंभ करे, उस िदन संकल्प करेI बाद मे संकल्प करने की आवश्यकता नही है I 7.वत के िदन िनदा न करे, झूट न बोले, िहसा न करे तथा झगड़ा-टन्टा न करे I 8. वत के िदन मन मे भी श्री साईबाबा का सतत स्मरण करे I 9. वत का आरंभ करने से पहले, बाबा श्री के श्री साईनाथ ि कसद बीसा यंत के दशिरन करके, िफर साईबाबा की स्तुि कत करेI ऐसा करने पर ही फल की प्राि कप होती हैI 10. वत- ि कवि कध सपाप होने पर क्षमायाचना करे I 11. वत मे माने गये गुरवार की संख्या पूणर होने पर वत का उदपन अवश्य करे और संकल्प छोड़ देI 12. यिद सी रजस्वला हो, सूतक हो अथवा बाहरगाव जाना पड़े तब बाबाश्री का मानि कसक पूजन करके बाबाश्री का स्मरण करते रहे तथा उपवास रखे I इससे वत अखंड रहेगा I 13. यिद भूल-चूक से वत खंि कडत हो जाए, तो िफर से वत करे परंतु घबडाना नही चाि कहए I बाबाश्री िकसी को दंड या सज़ा नही देते है I भूल चूक के ि कलए क्षमा माँतगकर िफर से वत आरंभ करे I 14. यथाशिि कक गाय अथवा कुत्ते को रोटी ि कखलाए अथवा पि कक्षयो की दाना दे I बाबाश्री मनुष्य, पशिु, पक्षी आिद से भेद नही रखते I उनके मन मे सभी जीव समान है I 15. बाबाश्री िकसी भी रूप मे पधार सकते है I इसि कलए वत के िदन ि कभक्षुक को कुछ न कुछ अवश्य दे, परन्तु उसे ‘ना’ न कहे अथवा उसका ि कतरस्कार न करे तथा प्यासो को पानी देने पर बाबाश्री अत्यंत प्रसन होते हैI 16. वत का उदापन करके संकल्प छोड़ना आवश्यक है I उदापन के समय साई बाबा की कृ््पा का प्रचार करने के ि कलये 7,9, 11, 21 साई पुस्तके, अपने आस-पास के लोगो मे बांटनी चाि कहए.
  • 3. संकल्प संकल्प करने से वत को दृढ़ता प्राप होती है, इससे इि कच्छत कायर जल्दी पिरपूणर होता है I इसि कलए चम्मच मे स्वच्छ पानी लेकर, चम्मच को दाि कहने हाथ से पकड़कर, श्रदापूवरक, नीचे ि कलखा संकल्प करे :- हे दयालु साईबाबा! हे भको के दुखो को दूर करने वाले! मै… (आपकी जो समस्या हो अथवा कामना हो उसका उल्लेख करे) के ि कलए आपका वत रखता ह I इस वत ि कनि कमत, मै नौ गुरवार तक आपका वत रखने का संकल्प रखता हँत I मेरा वत ि कनिवघ पिरपूणर करवाईए I वत पिरपूणर होने पर मै वत का उदापन करूँत गा I हे दयालु बाबा! आप मेरा दुख दूर कीि कजए और मेरी इच्छा पूणर कीि कजए इस प्रकार कहकर, चम्मच का पानी भूि कम पर छोड़ दे I िफर साईबाबा का मंत ” ॐ श्रीसाईनाथाय नमः I ” बोलकर साईबाबा की उदी (भस्म) माथे पर, गले मे तथा आँतखो मे लगाए I िफर श्री साईबाबा के ‘ श्री साईनाथ ि कसद बीसा यंत’ का दशिरन करे और श्री साईबाबा स्तुि कत बोलेI बाद मे वत कथा का पठन करे I अंत मे आरती करके प्रसाद बाटे I क्षमा याचना सारी ि कवि कध पूणर होने पर बाबाश्री से क्षमा माँतगते हुए कहे, ‘ हे बाबा! आपका वत रखने मे मुझसे कोई भूल चूक हुई हो तो उसे आप उदार भाव से क्षमा करे I संकल्प िकए गये गुरवार पूणर होने पर, उसके बाद के गुरवार को वत के उदापन मे रोटी, भाजी, छाछ या दही व्यक्तंजन अवश्य रखे I ि कवशिेष मे अपनी शिि कक के अनुसार व्यक्तंजन बनाए I हर गुरवार की तरह ही बाबा की पूजा करे I यिद शिि कक हो तो गुलाब की फुलो की माला तथा हीना का इत समिपत करे I वत की बाकी की ि कवि कध पूणर करके प्रसाद मे ि कमठाई समिपत करे I यिद ऐसा न हो सके तो गुड, शिक्कर या फल भी रख सकते है I िफर आरती करे नािरयल चढ़ाए ओर शिि कक के अनुसार 1,3, अथवा 5 ग़रीबो को प्रेमपूवरक भोजन कराए तथा फल या धन रूपी दि कक्षणा दे I िफर साईबाबा के सम्मुख, नीचे बताए अनुसार संकल्प छोड़े :– चम्मच मे पानी लेकर बोले – “हे साईबाबा! मैने अि कत श्रधा एवम् प्रेम से आपका यह वत पूणर िकया है ओर आज़ उसका उदापन िकया हैI इस वत को करने मे अथवा उसके उदापन मे िकसी भी प्रकार की भूल – चूक हो तो क्षमाभाव से मुझे माफ कर दीि कजए ओर मेरे वत को स्वीकार कीि कजए आप मुझ पर प्रसन रि कहए ओर मेरी मनोकामना पूणर करने की कृपा कीि कजए I” ऐसा कहकर पानी भूि कम पर छोड़ देI साईबाबा को चरणवंदन करे, भूल-चूक के ि कलए क्षमा माँतगे ओर वत को पूणर करेI
  • 4. साई बाबा वत कथा एक शिहर मे कोिकला नाम की सी और उसके पि कत महेशिभाई रहते थे. दोनो का वैवाि कहक जीवन सुखमय था. दोनो मे आपस मे स्नेह और प्रेम था. पर महेशि भाई कभी कभार झगडा करने की आदत थी. परन्तु कोिकला अपने पि कत के कोध का बुरा न मानती थी. वह धािमक आस्था और ि कवश्वास वाली मि कहला थी. उसके पि कत का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नही था. इस कारण वह अपना अि कधकतर समय अपने घर पर ही व्यक्ततीत करता था. समय के साथ काम मे और कमी होने पर उसके स्वभाव मे और अि कधक ि कचडि कचडापन रहने लगा. एक िदन दोपहर के समय कोिकला के दरवाजे पर एक वृ््द महाराज आये. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ््द महाराज के ि कभक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल िदये. और दोनो हाथोम से उस वृ््द बाबा को नमस्कार िकया. बाबा के आि कशिवारद देने पर कोिकला के मन का दु:ख उसकी आंखो से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोिकला को श्री साई वत के बारे मे बताया और कहा िक इस वत को 9 गुरवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूणर ि कवि कध-ि कवधान से पूजा करने, और साईबाबा पर अटटू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी. महाराज के बताये अनुसार कोिकला ने वत गुरवार के िदन साई बाबा का वत िकया. और 9 वेम गुरवार को गरीबो को भोजन भी िदया. साथ ही साई पुस्तके भेट स्वरप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये़् और उसके घर की सुख शिाि कन्त मे वृ््ि कद हुई. इसके बाद दोनो का जीवन सुखमय हो गया. एक बार उसकी जेठानी ने बातो-बातो मे उसे बताया, िक उसके बचे पढाई नही करते यही कारण है. िक परीक्षा मे वे फे ल हो जाते है. कोिकला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 वत का महत्व बताया. कोिकला बहन के बताये अनुसार जेठानी ने साई वत का पालन िकया. उसके थोडे ही िदनो मे उसके बचे पढाई करने लगे. और बहुत अच्छे अंको से पास हुए. "श्री साई बाबा की कृ पा" अध्याय-१ एक समय की बात है. ममता जी व उनके पि कत रतनदेव अहमदाबाद मे प्रेमपूवरक रहते थे. लेिकन रतन का स्वभाव झगड़ालू था. अड़ोसी-पड़ोसी उनके स्वभाव से परेशिान थे. लेिकन उनकी पती ममता जी बहुत ही धािमक थी. भगवान पर ि कवश्वास रखती थी. और ि कबना कु छ कहे सब कु छ सह लेती थी. धीरे-धीरे उनके पि कत का व्यक्तवसाय ठप हो
  • 5. गया रतन जी िदन भर घर पर ही रहते. ि कजससे उनका स्वभाव और जयादा ि कचि कददा हो गया. एक रोज ममता के द्वार पर एक साधू आए और उससे उन्होने ि कभक्षा मे दाल-चावल माँतगा. ममता ने तुरंत हाथ धोकर महाराज को दाल- चावल िदए. और उन्हे नमस्कार िकया. साधू महाराज ने खुशि होकर उसे आशिीवारद िदया और ममता के दु:खो को दूर करने हेतु उसे श्री साई बाबा के गुरवार वाले वत को करने की ि कवि कध समझाई. उन्होने बताया िक इच्छा के अनुसार ५,७,९,११ या २१ गुरवार तक साई बाबा का वत करने, ि कवि कध से उदापन करने, गरोबो को भोजन करने से उसकी मनोकामना अवश्य पूणर होगी. इस वत को करते समय झूठ, छल आिद समस्त बुरी आदतो का त्याग कर देना चाि कहए. वत पूणर होने पर यथाशिि कक ७,११,२१,४१,१०१ िकताबे दान करनी चाि कहए. श्री साई के वचन है श्रदा व सबूरी. इन्हे ध्यान मे रखासर वत रखे. इस प्रकार वत करने से साई बाबा तेरी सभी मनोकामनाए पूरी करेगे. इतने सरल वत को सुनकर ममता अत्यंत प्रसन हो गई और अगले गुरवार से ही उसने "साई बाबा वत" का पालन िकया और देखते ही देखते उसके पि कत के स्वाभाव मे आशयजरनक पिरवतरन आ गया और उसने िफर से व्यक्तापर चालू िकया जो सफल हुआ. घर पर श्री साई बाबा की कृपा से सुख-शिांि कत हो गई. एक िदन ममता की बहन और उसके पि कत उससे ि कमलने आए.रतन और ममता को कुषा देख वे भी प्रसन हुए. ममता की बहन ने उससे पूछा िक यह चमत्कार कैसे हुआ? मेरे बचे ि कबल्कुल पढाई नही करते और िकसी का कहना नही मानते, बहुत उदंड होते जा रहे है, ि कजसकी वजह से सब-कुछा होते हुए भी मे सुखी नही ह. तब ममता ने उसे साई बाबा सा गुरवार वत िक मि कहमा बताई. इस वत िक मि कहमा सुन ममता िक बहन प्रसन हुई. उसने पूणर मनोयोग से श्रदा व ि कवश्वास से ९ गुरवार तक यह वत िकया और ि कजसका पिरणाम यह हुआ िक उसके बचे मन लगाकर पढ़ते व हमेशिा कक्षा मे अववल आते और साथ ही साथ घर के छोटे-मोटे कम मे भी उसका हाथ बताते. वह सभी लोगो को इस महँत वत का प्रभाव बताने लगी और स्वाम भी इस वत का पालन करती रही. श्री साई बाबा ने जैशि कृपा उन पर िक, वैसी सभी पर करे. जो पते और सुने उसके भी सभी मनोरथ ि कसद हो जाए. अध्याय-२ व्यक्तवसाय मे सफलता मुंबई मे एक व्यक्तापारी जगदीशि प्रसाद रहते थे. शिहर मे उनकी कपडे की कई ि कमले थे. सभी प्रकार की सुख-समि कद थी. अचानक एक-एक कर सभी ि कमलो मे मजदूरो ने हड़ताल कर दी. सेठ-जी बहुत परेशिां होने लगे कयोिक मामला गंभीर था. व नेताओ के दबाव की वजह से ि कमले शिुरू होने के आसार भी नही लग रहे थे. ऐसे समय मे सेठ-जी के एक दूर के िरश्तेदार का उनसे ि कमलने आना हुआ. बातो-बातो मे सेठ-जी को गुरवार वाला "साई बाबा वत" करने को कहा. उसने कहा-अप और सेठानी दोनो एक साथ यह वत रखे, बाबा की कृपा से सब मंगल होगा. सेठ-सेठानी ने ि कवि कध-पूवरक गुरवार का वत शिुर िकया और वत शिुर करने के दो सपाह के भीतर ही मजदूरो ने हड़ताल वापस ले ली और सभी ि कमले पुन: शिुर हो गई. साई बाबा की कृपा से नुकसान मे जा रहे जगदीशि प्रसाद की एक वषर मे ही काफी लाभ हो गया. पिरवार मे सुख-संथी ि कमली. इसका सारा श्री सेठ-जी ने "साई बाबा वत" को िदया. अध्याय-३ "कन्या का ि कववाह संपन हुआ."
  • 6. शांित बहन की बेटी अनीता वैसे तो बहल गुणवान थी लेिकन किल थी. ऊपर से गरीब भी थी. बडा दहेज दे सकने की उसकी हौिसयत नही थी. अनीता की उम िववाह योगय हो गई थी, पर उसकी शादी हो नही पा रही थी. धीरे-धीरे उसकी आयु के साथ माता-िपता की िचता भी बढने लगी. अनीता खाना पकाने, िसलाई-कडी आिद सभी कायो मे बहत कुशल थी. उसने एम.ए. िकया हआ था. सवभाब से भी वह समझदार और हसमुख थी, पर िफर भी उसे योगय वर नही िमल पा रहा था. एक िदन अनीता पडोस मे अपनी सहेली के यहाँ गई तो देखा वह एक िकताब पढ रही थाई. सुनीता ने पूछा "कया पढ रही हो?" तब सहेली ने कहा यह "साई बाबा की िकताब है. हमारी मामी के यहाँ आज इस वत का उदापन था. जहा सभी का एक-एक िकताब बाटी गई. जब अनीता ने िकताब हाथ मे ली और कुछ पष पडे तो सैबबा की कृपा से उसके मन मे यह वत करने की इचछा जागत हई, वह िकताब सहेली से लेकर घर आ गई. गुरवार को सुबह ११ गुरवार तक वत करने की मनत मानकर अनीता ने साई बाबा वत करने का संकलप िलया. उसके मामाजी एक अचछे घर के पढे-िलखे डॉकटर का िरशता लेकर आए. अनीता की मामी और लडके की माँ बचपन की सहेली थी. व अनीता की मामी ने लडके से सीधे बात कर ली थी. अनीता सा बारे मे सुनकर लडका बहत उएसिहत था. उसे अनीता जैसी ही पती की तलाश थी, जो पढी-िलखी व सुनी हो और उसके साथ कदम से कदम िमलकर चल सके. अनीता यह सब जानकर बहत खुश हई. एक ही माह मे सादगीपूणर समारोह मे सुनीता का िववाह संपन हो गया. अधयाय-4 उधारी वसूल हो गई. िदनेश कुमार जी का प्लािसटक का थोक व्यापर था. पिरवार मे पित-पती और एक पुत था. उनका व्यापर बहत बडा नही था, पर पिरवार की सुख-सुिवधा के िहसाब से पयारप था, परन्तु मुसीबत कह कर नही अित. उनके व्यापर मे उधर देना जररी था, नही तो बाजार मे पितसपहार मे वे पीछे रह जाते. ऐसे ही एक व्यापारी की तरफ उनका बढते-बढते ३ लाख उधर फं स गया. उस व्यापारी की िनयल मे खोट आ गया. और वह रपये चुकाने मे तरह-तरह के बहाने करने लगा. अब तो िदनेश कुमार जी बहत परेशान रहने लगे. उन्हे कंपनी की तपफ से तगोदे पर तगोदे होने लगे. उनके अनुसार एक माह मे यिद उन्होंर कंपनी का पैसा जमा नही करवाया तो कंपनी उन्हे मॉल देना बंद कर देगी. िदनेश की तो रातो की नीद उड गई, न तो उन्हे भोजन मे रस अत था न ही िकसी और बात मे. एक िदन िदनेश िचता मे बैठे थे, तभी उनके िमत वमार जी आ पहचे. वमार के पूछने पर िदनेश ने उन्हे अपनी िचता का कारण बताया. वमार जी ने कहा-"बस इतनी-सी बात! िदनेश साडी िचता छोड दीिजए और श्री साई बाबा की शरण लीिजए. गुरवार वाला साई बाबा वत किलयुग मे तत्काल फल देने वाला है, इसे ख़ुशी-ख़ुशी आरंभ करे और चमत्कार देखे. ऐसा कहकर शमार-जी ने उन्हे साई बाबा वत कथा की िकताब दी और वत िविध समझाई. िदनेश जी ने सपती श्रदा और िवश्वास के साथ वत का आरम्भ िकया. वत आरंभ करने के चौथे ही िदन वह व्यापारी उनकी दुकान पर आया और कहने लगा की उनका मॉल बेचकर उसे बहत लाभ हआ. उन्हे अगले मॉल की जलद जररत है. साथ ही, उसने पुराना पूरा पैसा तो चुकाया ही, अगले मॉल के भी रूपये अिगम दे गया और रपने चुकाने मे हई देरी हेतु उसने क्षमा मांगी. िदनेश तो श्री साई बाबा की ऐसी कृपा देख भाव िवभोर हो गए. जो रकम वह डूब चुकी मान रहे थे, वह तो वापस आई ही, व्यापर मे भी लाभ हो गया. इस अनुपम वत का लोगो को अिधक से अिधक लाभ हो, इसिलए इस वत की १०१ िकताब अपने स्नेहीजनो मे िवतिरत की. || श्री साई चालीसा || || चौपाई || पहले साई के चरणों मे, अपना शीश नमाऊं मैं। कैसे िशरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥
  • 7. कौन है माता, िपता कौन है, ये न िकसी ने भी जाना। कहां जन्म साई ने धारा, पश पहेली रहा बना॥ कोई कहे अयोधया के , ये रामचंद भगवान हैं। कोई कहता साई बाबा, पवन पुत हनुमान हैं॥ कोई कहता मंगल मूित, श्री गजानंद हैं साई। कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥ शंकर समझे भक कई तो, बाबा को भजते रहते। कोई कह अवतार दत का, पूजा साई की करते॥ कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान। ब़डे दयालु दीनबं़़धु, िकतनों को िदया जीवन दान॥ कई वष र पहले की घटना, तुम्हे सुनाऊं गा मैं बात। िकसी भागयशाली की, िशरडी मे आई थी बारात॥ आया साथ उसी के था, बालक एक बहत सुन्दर। आया, आकर वही बस गया, पावन िशरडी िकया नगर॥ कई िदनों तक भटकता, िभक्षा माँग उसने दर-दर। और िदखाई ऐसी लीला, जग मे जो हो गई अमर॥ जैसे-जैसे अमर उमर ब़ढी, ब़ढती ही वैसे गई शान। घर-घर होने लगा नगर मे, साई बाबा का गुणगान॥ िदग् िदगंत मे लगा गूंजने, िफर तो साई जी का नाम। दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥ बाबा के चरणों मे जाकर, जो कहता मैं हूं िऩ़ध o न। दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बंधन॥
  • 8. कभी िकसी ने मांगी िभक्षा, दो बाबा मुझको संतान। एवं असतु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान॥ सवयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुःखी जन का लख हाल। अन्तःकरण श्री साई का, सागर जैसा रहा िवशाल॥ भक एक मदासी आया, घर का बहत ब़डा ़़धनवान। माल खजाना बेहद उसका, केवल नही रही संतान॥ लगा मनाने साईनाथ को, बाबा मुझ पर दया करो। झंझा से झंकृत नैया को, तुम्ही मेरी पार करो॥ कुलदीपक के िबना अं़़धेरा, छाया हआ घर मे मेरे। इसिलए आया हँ़ू बाबा, होकर शरणागत तेरे॥ कुलदीपक के अभाव मे, व्यथर है दौलत की माया। आज िभखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया॥ दे-दो मुझको पुत-दान, मैं ऋणी रहूंगा जीवन भर। और िकसी की आशा न मुझको, िसफर भरोसा है तुम पर॥ अनुनय-िवनय बहत की उसने, चरणों मे ़़धर के शीश। तब पसन होकर बाबा ने , िदया भक को यह आशीश॥ `अलला भला करेगा तेरा´ पुत जन्म हो तेरे घर। कृपा रहेगी तुझ पर उसकी, और तेरे उस बालक पर॥ अब तक नही िकसी ने पाया, साई की कृपा का पार। पुत रत दे मदासी को, धन्य िकया उसका संसार॥ तन-मन से जो भजे उसी का, जग मे होता है उदार। सांच को आंच नही हैं कोई, सदा झूठ की होती हार॥ मैं हूं सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास।
  • 9. साई जैसा पभु िमला है, इतनी ही कम है कया आस॥ मेरा भी िदन था एक ऐसा, िमलती नही मुझे रोटी। तन पर कप़डा दूर रहा था, शेष रही नन्ही सी लंगोटी॥ सिरता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था। दुि़दरन मेरा मेरे ऊपर, दावाग्नी बरसाता था॥ धरती के अितिरक जगत मे, मेरा कुछ अवलम्ब न था। बना िभखारी मैं दुिनया मे, दर-दर ठोकर खाता था॥ ऐसे मे एक िमत िमला जो, परम भक साई का था। जंजालों से मुक मगर, जगती मे वह भी मुझसा था॥ बाबा के दशरन की खाितर, िमल दोनों ने िकया िवचार। साई जैसे दया मूित के, दशरन को हो गए तैयार॥ पावन िशरडी नगर मे जाकर, देख मतवाली मूरित। धन्य जन्म हो गया िक हमने, जब देखी साई की सूरित॥ जब से िकए हैं दशरन हमने, दुःख सारा काफू र हो गया। संकट सारे िमटै और, िवपदाओ का अन्त हो गया॥ मान और सम्मान िमला, िभक्षा मे हमको बाबा से। पितिबम्‍ि़बत हो उठे जगत मे, हम साई की आभा से॥ बाबा ने सन्मान िदया है, मान िदया इस जीवन मे। इसका ही संबल ले मैं, हंसता जाऊं गा जीवन मे॥ साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हआ। लगता जगती के कण-कण मे, जैसे हो वह भरा हआ॥ `काशीराम´ बाबा का भक, िशरडी मे रहता था। मैं साई का साई मेरा, वह दुिनया से कहता था॥
  • 10. सीकर सवयं़ं वस बेचता, गाम-नगर बाजारों मे। झंकृत उसकी हृदय तंती थी, साई की झंकारों मे॥ सतब़्ध िनशा थी, थे सोय,़े रजनी आंचल मे चाँद िसतारे। नही सूझता रहा हाथ को हाथ ितिमर के मारे॥ वस बेचकर लौट रहा था, हाय ! हाट से काशी। िविचत ब़डा संयोग िक उस िदन, आता था एकाकी॥ घेर राह मे ख़डे हो गए, उसे कुिटल अन्यायी। मारो काटो लूटो इसकी ही, धविन प़डी सुनाई॥ लूट पीटकर उसे वहाँ से कुिटल गए चम्पत हो। आघातों मे ममारहत हो, उसने दी संज्ञा खो॥ बहत देर तक प़डा रह वह, वही उसी हालत मे। जाने कब कुछ होश हो उठा, वही उसकी पलक मे॥ अनजाने ही उसके मुंह से, िनकल प़डा था साई। िजसकी पितधविन िशरडी मे, बाबा को प़डी सुनाई॥ क्षुब़्ध हो उठा मानस उनका, बाबा गए िवकल हो। लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्ही के सन्मुख हो॥ उन्मादी से इ़़धर-उ़़धर तब, बाबा लेगे भटकने। सन्मुख चीजे जो भी आई, उनको लगने पटकने॥ और ध़धकते अंगारों मे, बाबा ने अपना कर डाला। हए सशंिकत सभी वहाँ, लख ताण्डवनृत्य िनराला॥ समझ गए सब लोग, िक कोई भक प़डा संकट मे। क्षुिभत ख़डे थे सभी वहाँ, पर प़डे हए िवसमय मे॥
  • 11. उसे बचाने की ही खाितिर, बाबा आज िविकल है। उसकी ही पी़़ड़ा से पीिडिति, उनकी अन्तिःस्थल है॥ इतिने मे ही िवििविध ने अपनी, िवििचत्रतिा िदिखलाई। लख कर िजसको जनतिा की, श्रद्धा सिरतिा लहराई॥ लेकर संज्ञाहीन भक को, गा़़ड़ी एक विहाँ आई। सन्मुख अपने दिेख भक को, साई की आंखे भर आई॥ शांति, धीर, गंभीर, िसन्धु सा, बाबा का अन्तिःस्थल। आज न जाने क्यो रह-रहकर, हो जातिा था चंचल॥ आज दिया की मू स्वियं था, बना हुआ उपचारी। और भक के िलए आज था, दिेवि बना प्रतितिहारी॥ आज िभक की िविषम परीक्षा मे, सफल हुआ था काशी। उसके ही दिशर्शन की खाितिर थे, उम़ड़े नगर-िनविासी। जब भी और जहां भी कोई, भक प़ड़े संकट मे। उसकी रक्षा करने बाबा, आतिे है पलभर मे॥ युग-युग का है सत्य यह, नही कोई नई कहानी। आपतिग्रस्ति भक जब होतिा, जातिे खुदि अन्र्तियामी॥ भेदिभावि से परे पुजारी, मानवितिा के थे साई। िजतिने प्यारे िहन्दिू-मुिस्लम, उतिने ही थे िसक्ख ईसाई॥ भेदि-भावि मंिदिर-िमस्जदि का, तिोड़-फोड़ बाबा ने डिाला। राह रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लातिाला॥ घण्टे की प्रतितिध्वििन से गूंजा, िमस्जदि का कोना-कोना। िमले परस्पर िहन्दिू-मुिस्लम, प्यार बढ़ा िदिन-िदिन दिूना॥ चमत्कार था िकतिना सुन्दिर, पिरचय इस काया ने दिी।
  • 12. और नीम कडिुविाहट मे भी, िमठास बाबा ने भर दिी॥ सब को स्नेह िदिया साई ने, सबको संतिुल प्यार िकया। जो कुछ िजसने भी चाहा, बाबा ने उसको विही िदिया॥ ऐसे स्नेहशील भाजन का, नाम सदिा जो जपा करे। पविर्शति जैसा दिुःख न क्यो हो, पलभर मे विह दिूर टरे॥ साई जैसा दिातिा हमने, अरे नही दिेखा कोई। िजसके केविल दिशर्शन से ही, सारी िविपदिा दिूर गई॥ तिन मे साई, मन मे साई, साई-साई भजा करो। अपने तिन की सुिध-बुिध खोकर, सुिध उसकी तिुम िकया करो॥ जब तिू अपनी सुिध तिज, बाबा की सुिध िकया करेगा। और राति-िदिन बाबा-बाबा, ही तिू रटा करेगा॥ तिो बाबा को अरे ! िविविश हो, सुिध तिेरी लेनी ही होगी। तिेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी॥ जंगल, जगंल भटक न पागल, और ढूंढ़ने बाबा को। एक जगह केविल िशरडिी मे, तिू पाएगा बाबा को॥ धन्य जगति मे प्रताणी है विह, िजसने बाबा को पाया। दिुःख मे, सुख मे प्रतहर आठ हो, साई का ही गुण गाया॥ िगरे संकटो के पविर्शति, चाहे िबजली ही टूट पड़े। साई का ले नाम सदिा तिुम, सन्मुख सब के रहो अड़े॥ इस बूढ़े की सुन करामति, तिुम हो जाओगे हैरान। दिंग रह गए सुनकर िजसको, जाने िकतिने चतिुर सुजान॥ एक बार िशरडिी मे साधु, ढ़ोगी था कोई आया। भोली-भाली नगर-िनविासी, जनतिा को था भरमाया॥
  • 13. जड़ी-बूिटयां उन्हे िदिखाकर, करने लगा विह भाषण। कहने लगा सुनो श्रोतिागण, घर मेरा है विृन्दिाविन॥ औषिध मेरे पास एक है, और अजब इसमे िशक। इसके सेविन करने से ही, हो जातिी दिुःख से मुि़क॥ अगर मुक होना चाहो, तिुम संकट से बीमारी से। तिो है मेरा नम िनविेदिन, हर नर से, हर नारी से॥ लो खरीदि तिुम इसको, इसकी सेविन िवििधयां है न्यारी। यद्यपिप तिुच्छ विस्तिु है यह, गुण उसके है अिति भारी॥ जो है संतििति हीन यहां यिदि, मेरी औषिध को खाए। पुत्र-रत हो प्रताप, अरे विह मुंह मांगा फल पाए॥ औषिध मेरी जो न खरीदिे, जीविन भर पछतिाएगा। मुझ जैसा प्रताणी शायदि ही, अरे यहां आ पाएगा॥ दिुिनया दिो िदिनो का मेला है, मौज शौक तिुम भी कर लो। अगर इससे िमलतिा है, सब कुछ, तिुम भी इसको ले लो॥ हैरानी बढ़तिी जनतिा की, लख इसकी कारस्तिानी। प्रतमुिदिति विह भी मन- ही-मन था, लख लोगो की नादिानी॥ खबर सुनाने बाबा को यह, गया दिौड़कर सेविक एक। सुनकर भृकुटी तिनी और, िविस्मरण हो गया सभी िविविेक॥ हुक्म िदिया सेविक को, सत्विर पकड़ दिुष को लाओ। या िशरडिी की सीमा से, कपटी को दिूर भगाओ॥ मेरे रहतिे भोली-भाली, िशरडिी की जनतिा को। कौन नीच ऐसा जो, साहस करतिा है छलने को॥
  • 14. पलभर मे ऐसे ढोगी, कपटी नीच लुटेरे को। महानाश के महागतिर्श मे पहुँचा, दिूँ जीविन भर को॥ तििनक िमला आभास मदिारी, क्रूर, कुिटल अन्यायी को। काल नाचतिा है अब िसर पर, गुस्सा आया साई को॥ पलभर मे सब खेल बंदि कर, भागा िसर पर रखकर पैर। सोच रहा था मन ही मन, भगविान नही है अब खैर॥ सच है साई जैसा दिानी, िमल न सकेगा जग मे। अंश ईश का साई बाबा, उन्हे न कुछ भी मुिश्कल जग मे॥ स्नेह, शील, सौजन्य आिदि का, आभूषण धारण कर। बढ़तिा इस दिुिनया मे जो भी, मानवि सेविा के पथ पर॥ विही जीति लेतिा है जगतिी के, जन जन का अन्तिःस्थल। उसकी एक उदिासी ही, जग को कर दिेतिी है िवि£ल॥ जब-जब जग मे भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जातिा है। उसे िमटाने की ही खाितिर, अवितिारी ही आतिा है॥ पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगतिी का हर के। दिूर भगा दिेतिा दिुिनया के , दिानवि को क्षण भर के॥ ऐसे ही अवितिारी साई, मृत्युलोक मे आकर। समतिा का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप िमटाकर ॥ नाम द्वारका िमस्जदि का, रखा िशरडिी मे साई ने। दिाप, तिाप, संतिाप िमटाया, जो कुछ आया साई ने॥ सदिा यादि मे मस्ति राम की, बैठे रहतिे थे साई। पहर आठ ही राम नाम को, भजतिे रहतिे थे साई॥ सूखी-रूखी तिाजी बासी, चाहे या होविे पकविान।
  • 15. सौदिा प्यार के भूखे साई की, खाितिर थे सभी समान॥ स्नेह और श्रद्धा से अपनी, जन जो कुछ दिे जातिे थे। बड़े चावि से उस भोजन को, बाबा पाविन करतिे थे॥ कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग मे जातिे थे। प्रतमुिदिति मन मे िनरख प्रतकृिति, छटा को विे होतिे थे॥ रंग-िबरंगे पुष्प बाग के , मंदि-मंदि िहल-डिुल करके। बीहड़ विीराने मन मे भी स्नेह सिलल भर जातिे थे॥ ऐसी समुधुर बेला मे भी, दिुख आपाति, िविपदिा के मारे। अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहतिे बाबा को घेरे॥ सुनकर िजनकी करूणकथा को, नयन कमल भर आतिे थे। दिे िविभूिति हर व्यथा, शांिति, उनके उर मे भर दिेतिे थे॥ जाने क्या अदभुति िशक, उस िविभूिति मे होतिी थी। जो धारण करतिे मस्तिक पर, दिुःख सारा हर लेतिी थी॥ धन्य मनुज विे साक्षाति् दिशर्शन, जो बाबा साई के पाए। धन्य कमल कर उनके िजनसे, चरण-कमल विे परसाए॥ काश िनभर्शय तिुमको भी, साक्षाति् साई िमल जातिा। विषो से उजड़ा चमन अपना, िफर से आज िखल जातिा॥ गर पकड़तिा मै चरण श्री के , नही छोड़तिा उमभर॥ मना लेतिा मै जरूर उनको, गर रूठतिे साई मुझ पर॥ || इिति श्री साई चालीसा समाप ||
  • 16. साई बाबा आरती आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा । चरणो के तेरे हम पुजारी साई बाबा ॥ िविद्या बल बुिद, बन्धु माता िपता हो तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो हे जगदाता अवितारे, साई बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥ ब्रह के सगुण अवितार तुम स्विामी ज्ञानी दयाविान प्रभु अंतरयामी सुन लो िविनती हमारी साई बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥ आिद हो अनंत ित्रिगुणात्मक मूर्तित िसधु करुणा के हो उदारक मूर्तित िशिरडी के संत चमत्कारी साई बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥ भक्तो की खाितर, जनम िलये तुम प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम िदये तुम दुिखया जनो के िहतकारी साई बाबा । आरती उतारे हम तुम्हारी साई बाबा ॥ शी साई मंत्रि ॐ शी साई कालातीताय नमः ॐ शी साई मृत्युंजयाय नमः ॐ शी साई आरोगयकेमदाय नमः