4. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्र्ा की रीढ़ है। भारत में कृषि ससधिंु घाटी सभ्यता के दौर से की
जाती रही है। १९६० के बाद कृषि के क्षेत्र में हररत क्ािंतत के सार् नया दौर आया। सन ्
२००७ में भारतीय अर्थव्यवस्र्ा में कृषि एविं सम्बन्धधत कायों (जैसे वातनकी) का सकल
घरेलू उत्पाद (GDP) में हहस्सा 16.6% र्ा। उस समय सम्पूर्थ कायथ करने वालों का 52%
कृषि में लगा हुआ र्ा।
5. विपणन के विकास के लिए ननिेश की आिश्यकता स्तर, भंडारण
और कोल्ड स्टोरेज बुननयादी सुविधाओं को भारी होने का अनुमान है।
हाि ही में भारत सरकार ने पूरी तरह से कृवि काययक्रम का
मूल्यांकन करने के लिए ककसान आयोग का गठन ककया। हािांकक
लसफाररशों का केिि एक लमश्रित स्िागत ककया गया है। निम्बर
२०११ में, भारत ने संगठठत खुदरा के क्षेत्र में प्रमुख सुधारों की
घोिणा की। इन सुधारों मे रसद और कृवि उत्पादों की खुदरा शालमि
हुई। यह सुधार घोिणा प्रमुख राजनीनतक वििाद का कारण भी बना।
यह सुधार योजना, ठदसंबर २०११ में भारत सरकार द्िारा होल्ड पर
रख ठदया गया था ॥
6.
7. भारतीय कृवि: चुनौती की ओर
ग्रामीर् भारत में कृषि व उससे जुडी सहायक गततषवधधयााँ
आजीषवका का एक प्रमुख साधन है। हम जैसे ही ई-क्ान्धत के युग
में प्रवेश करते हैं तो पाते हैं कक सभी क्षेत्रों में हदन-प्रततहदन नई
खोज और आषवष्कार हो रहा है। वास्तव में, कृषि का कोई षवकल्प
नही है। अतः कृषि क्षेत्र में आ रहे बदलाव से ककसानों को
तनयसमत रूप से अवगत कराया जाना जरूरी है। हमारे वेब पोटथल
का लक्ष्य ग्रामीर् क्षेत्रों में कृषि समुदाय व सेवा प्रदाताओिं के बीच
उधनत कृषि प्रौद्योधगकी सिंबिंधी सूचनाओिं का प्रचार-प्रसार करना है।
सार् ही, यह ककसान, सहकारी व व्यावसातयक तनकाय, कृषि
उपकरर् षवक्ेता, खाद एविं रासायतनक किंपतनयों, बीमा तनयामक,
कृषि वैज्ञातनकों, परामशी तनकाय एविं कृषि सलाहकारों के सलए
प्लेटफॉमथ तनमाथर् की ओर अग्रसर है। कृषि क्षेत्र में आई.एन.डी.जी
पोटथल का मुख्य जोर- फसल उत्पाद तकनीक, कृषि ऋर्, सरकारी
योजनाएाँ व कायथक्म, राष्रीय ग्रामीर् रोजगार गारिंटी योजना,
बाजार सूचना, कृषि क्षेत्र में सवोत्तम पहल, पशुपालन एविं षवसभधन
उत्पाद व सेवाओिं के बारे में जानकारी देने पर है।