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आवरण कथा


 उपाय बकए जाएं.
      एक और अहम िात यह है बक टैम के आंकड़ों का कोई थितंि ऑबडट नहीं
 होता. यह सिाल समय-समय पर उठता रहा है. इसके जिाि में एजेंसी कहती रही
 है बक िह अपनी िबियाओं में अंतररा£‍ीय मानिंडों का पालन करती है और रहा
 सिाल ऑबडट का तो कंपनी खुि तो ऑबडट करती ही है बजसमें काफी सयती
 और पारिबशर्ता िरती जाती है. जहां तक बििेशों का सिाल है तो अमेबरका में
 टेलीबिजन रेबटंग जारी करने का काम मीबडया बरसचर् काउंबसल (एमआरसी) करती
 है. यह एजेंसी जो आंकड़े एकबित करती है उसकी ऑबडबटंग िमाबणत लोक लेखा
 एजेंबसयां करती हैं. इसके िाि काफी बिथतृत बरपोटट तैयार की जाती है.
      मुि‍ा यह भी है बक अगर बकसी व्यबतत या संथथा को रेबटंग एजेंबसयों के काम-
 काज पर संिह है तो िह इन एजेंबसयों के बखलाफ अपनी बशकायत तक नहीं िजर्
               े
 करा सकता. अभी तक भारत में ऐसी व्यिथथा नहीं िन पाई है बक इन एजेंबसयों
 के बखलाफ कहीं बशकायत िजर् करिाई जा सके. इस ििहाली के बलए थथायी
 संसिीय सबमबत ने सूचना और िसारण मंिालय को आड़े हाथों लेते हुए कहा है,
 ‘डेढ़ िशक से सरकार अत्यबधक बहंसा और अकलीलता के िसार और भारतीय
 संथकृबत के क्षरण को इस बनरथर्क िलील के सहारे मूकिशर्क िनकर िेखती रही
 बक अभी तक रेबटंग िणाली
 बिबनयबमत नहीं है और कोई           अभी तक भारत में ऐसी
 नीबत/बिशाबनिवेश इसबलए                                                         हो. केंद्रीय सूचना एिं िसारण मंिी अंबिका सोनी ने भी एक हाबलया साक्षात्कार
 नहीं िनाए गए हैं तयोंबक
                                   व्यवस्था नहीं बन पाई है                     में संकत बिया था बक सरकार िखल के बिककप पर बिचार कर रही है. उनका
                                                                                        े
 रेबटंग एक व्यापाबरक               कक इन एजेंकसयों के                          कहना था, 'यह सरकार की बजम्मेिारी है बक लोगों को सही चीजें िेखने को बमलें.
 गबतबिबध है और जि तक               किलाफ कहीं किकायत                           िूसरी िात यह है बक बिज्ापन एिं िृकय िचार बनिेशालय (डीएिीपी) िेश का
 आम आिमी के बहत का कोई                                                         सिसे िड़ा बिज्ापनिाता है तो ऐसे में आबखर लोग यह कैसे कह सकते हैं बक
 िड़ा सिाल न हो ति तक
                                   दजर् करवाई जा सके                           सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं है. िेश का सिसे िड़ा चैनल िूरिशर्न भी
 सरकार बकसी व्यापाबरक                                                          सरकारी है.' अंबिका सोनी की िात उम्मीि िंधाने िाली लगती तो है लेबकन
 गबतबिबध में हथतक्षेप नहीं करती. मंिालय यह सोच कर आराम से िैठा रहा बक          टीआरपी सबमबत की बसफाबरशों जो हश्र हुआ है उसे िेखकर बनराशा ही होती है.
 इसे अबधक व्यापक आधार िाला और िाबतबनबधक िनाने का काम खुि उयोग                       एक िात तो साफ है बक टीआरपी मापने की मौजूिा िबिया टीिी िशर्कों की
 करेगा. भारत में टीिी िसार को िेखते हुए थपट‍ तौर पर कहा जा सकता है बक          पसंि-नापसंि को पूरी तरह व्यतत करने में सक्षम नहीं है. इसबलए हर तरफ यह
 िचबलत रेबटंग केिल और केिल एक व्यापाबरक गबतबिबध नहीं है.’                      िात उठती है बक टीआरपी मीटरों की संयया में िढ़ोतरी की जाए, पर सैंपल बिथतार
                                                                               में िढ़ोतरी नहीं होने के बलए मीटर की लागत को भी बजम्मेिार ठहराया जा रहा
 मीकिया के कुछ लोग टीआरपी की पूरी िबिया को िोषपूणर् मानते हुए इसमें            है. अबमत बमिा सबमबत ने टीआरपी की िबिया में सुधार के बलए मीटरों की संयया
 सरकारी िखल की मांग करते रहे हैं. हालांबक, कुछ समय पहले तक सरकार यह            िढ़ाकर 30,000 करने की बसफाबरश की है. गांिों का िबतबनबधत्ि सुबनबकचत करने
 कहती थी बक सिवेक्षण के काम में िह िखल नहीं िे सकती तयोंबक यह अबभव्यबतत        के बलए सबमबत ने इनमें से 15,000 मीटर गांिों में लगाने की िात कही है. सबमबत
 की थितंिता से जुड़ा हुआ मामला है. इस सरकारी तकर् को खाबरज करते हुए एनके        के मुताबिक इस क्षमता बिथतार में तकरीिन 660 करोड़ रुपये खचर् होंगे.
 बसंह कहते हैं, 'यह िात सही है बक संबिधान के अनुच्छेि-19(1)(जी) के तहत हर           इस िारे में बसध‍ाथर् कहते हैं, ‘हम इसके बलए तैयार हैं बक मीटरों की संयया
 बकसी को अपनी इच्छानुसार व्यिसाय करने का अबधकार है लेबकन अनुच्छेि-             िढ़ाई जाए. लेबकन सिसे िड़ा सिाल यह है बक इस काम को करने के बलए पैसा
 19(6) में यह साफ बलखा हुआ है बक अगर कोई व्यिसाय जनता के बहतों को              कौन िेगा. अगर बिज्ापन और टेलीबिजन उयोग इसके बलए पैसा िेने या बफर
 िभाबित करता है तो सरकार उसमें िखल िे सकती है. टीआरपी से िेश की जनता           सब्सबिप्शन शुकक िढ़ाने को तैयार हो जाते हैं तो हम मीटरों की संयया िढ़ाने के
 िभाबित हो रही है तयोंबक इसके बहसाि से खिरें िसाबरत हो रही हैं और जनता         बलए तैयार हैं.’ गौरतलि है बक बिज्ापन एजेंबसयां और खिबरया चैनल टैम से
 के मुि‍े ििले जा रहे हैं.' अबमत बमिा सबमबत ने भी इस ओर यह कहते हुए इशारा      बमलने िाले टीआरपी आंकड़ों के बलए सब्सबिप्शन शुकक के तौर पर चार लाख
 बकया है बक रेबटंग एजेंबसयों के थिाबमत्ि में िसारकों, बिज्ापनिाताओं और         रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक खचर् करती हैं. जो बजतना अबधक पैसा िेता
 बिज्ापन एजेंबसयों की बहथसेिारी नहीं होनी चाबहए ताबक बहतों का टकराि नहीं       है उसे उतने ही बिथतृत आंकड़े बमलते हैं.

     29,700 करोड़                                       63,000 करोड़                                     10,300 करोड़
     रुपये का है भारत में टेलीववजन क्ेत्र का           रुपये का हो जाएगा भारतीय टेलीववजन उयोग          रुपये सालाना आमदनी टेलीववजन उयोग को
     कारोबार                                           2015 तक                                         ववज्ापन राजस्व के तौर पर

46    आवरण कथा                                                                                                                 तहलका 15 अक्टूबर 2011

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  • 1. आवरण कथा उपाय बकए जाएं. एक और अहम िात यह है बक टैम के आंकड़ों का कोई थितंि ऑबडट नहीं होता. यह सिाल समय-समय पर उठता रहा है. इसके जिाि में एजेंसी कहती रही है बक िह अपनी िबियाओं में अंतररा£‍ीय मानिंडों का पालन करती है और रहा सिाल ऑबडट का तो कंपनी खुि तो ऑबडट करती ही है बजसमें काफी सयती और पारिबशर्ता िरती जाती है. जहां तक बििेशों का सिाल है तो अमेबरका में टेलीबिजन रेबटंग जारी करने का काम मीबडया बरसचर् काउंबसल (एमआरसी) करती है. यह एजेंसी जो आंकड़े एकबित करती है उसकी ऑबडबटंग िमाबणत लोक लेखा एजेंबसयां करती हैं. इसके िाि काफी बिथतृत बरपोटट तैयार की जाती है. मुि‍ा यह भी है बक अगर बकसी व्यबतत या संथथा को रेबटंग एजेंबसयों के काम- काज पर संिह है तो िह इन एजेंबसयों के बखलाफ अपनी बशकायत तक नहीं िजर् े करा सकता. अभी तक भारत में ऐसी व्यिथथा नहीं िन पाई है बक इन एजेंबसयों के बखलाफ कहीं बशकायत िजर् करिाई जा सके. इस ििहाली के बलए थथायी संसिीय सबमबत ने सूचना और िसारण मंिालय को आड़े हाथों लेते हुए कहा है, ‘डेढ़ िशक से सरकार अत्यबधक बहंसा और अकलीलता के िसार और भारतीय संथकृबत के क्षरण को इस बनरथर्क िलील के सहारे मूकिशर्क िनकर िेखती रही बक अभी तक रेबटंग िणाली बिबनयबमत नहीं है और कोई अभी तक भारत में ऐसी नीबत/बिशाबनिवेश इसबलए हो. केंद्रीय सूचना एिं िसारण मंिी अंबिका सोनी ने भी एक हाबलया साक्षात्कार नहीं िनाए गए हैं तयोंबक व्यवस्था नहीं बन पाई है में संकत बिया था बक सरकार िखल के बिककप पर बिचार कर रही है. उनका े रेबटंग एक व्यापाबरक कक इन एजेंकसयों के कहना था, 'यह सरकार की बजम्मेिारी है बक लोगों को सही चीजें िेखने को बमलें. गबतबिबध है और जि तक किलाफ कहीं किकायत िूसरी िात यह है बक बिज्ापन एिं िृकय िचार बनिेशालय (डीएिीपी) िेश का आम आिमी के बहत का कोई सिसे िड़ा बिज्ापनिाता है तो ऐसे में आबखर लोग यह कैसे कह सकते हैं बक िड़ा सिाल न हो ति तक दजर् करवाई जा सके सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं है. िेश का सिसे िड़ा चैनल िूरिशर्न भी सरकार बकसी व्यापाबरक सरकारी है.' अंबिका सोनी की िात उम्मीि िंधाने िाली लगती तो है लेबकन गबतबिबध में हथतक्षेप नहीं करती. मंिालय यह सोच कर आराम से िैठा रहा बक टीआरपी सबमबत की बसफाबरशों जो हश्र हुआ है उसे िेखकर बनराशा ही होती है. इसे अबधक व्यापक आधार िाला और िाबतबनबधक िनाने का काम खुि उयोग एक िात तो साफ है बक टीआरपी मापने की मौजूिा िबिया टीिी िशर्कों की करेगा. भारत में टीिी िसार को िेखते हुए थपट‍ तौर पर कहा जा सकता है बक पसंि-नापसंि को पूरी तरह व्यतत करने में सक्षम नहीं है. इसबलए हर तरफ यह िचबलत रेबटंग केिल और केिल एक व्यापाबरक गबतबिबध नहीं है.’ िात उठती है बक टीआरपी मीटरों की संयया में िढ़ोतरी की जाए, पर सैंपल बिथतार में िढ़ोतरी नहीं होने के बलए मीटर की लागत को भी बजम्मेिार ठहराया जा रहा मीकिया के कुछ लोग टीआरपी की पूरी िबिया को िोषपूणर् मानते हुए इसमें है. अबमत बमिा सबमबत ने टीआरपी की िबिया में सुधार के बलए मीटरों की संयया सरकारी िखल की मांग करते रहे हैं. हालांबक, कुछ समय पहले तक सरकार यह िढ़ाकर 30,000 करने की बसफाबरश की है. गांिों का िबतबनबधत्ि सुबनबकचत करने कहती थी बक सिवेक्षण के काम में िह िखल नहीं िे सकती तयोंबक यह अबभव्यबतत के बलए सबमबत ने इनमें से 15,000 मीटर गांिों में लगाने की िात कही है. सबमबत की थितंिता से जुड़ा हुआ मामला है. इस सरकारी तकर् को खाबरज करते हुए एनके के मुताबिक इस क्षमता बिथतार में तकरीिन 660 करोड़ रुपये खचर् होंगे. बसंह कहते हैं, 'यह िात सही है बक संबिधान के अनुच्छेि-19(1)(जी) के तहत हर इस िारे में बसध‍ाथर् कहते हैं, ‘हम इसके बलए तैयार हैं बक मीटरों की संयया बकसी को अपनी इच्छानुसार व्यिसाय करने का अबधकार है लेबकन अनुच्छेि- िढ़ाई जाए. लेबकन सिसे िड़ा सिाल यह है बक इस काम को करने के बलए पैसा 19(6) में यह साफ बलखा हुआ है बक अगर कोई व्यिसाय जनता के बहतों को कौन िेगा. अगर बिज्ापन और टेलीबिजन उयोग इसके बलए पैसा िेने या बफर िभाबित करता है तो सरकार उसमें िखल िे सकती है. टीआरपी से िेश की जनता सब्सबिप्शन शुकक िढ़ाने को तैयार हो जाते हैं तो हम मीटरों की संयया िढ़ाने के िभाबित हो रही है तयोंबक इसके बहसाि से खिरें िसाबरत हो रही हैं और जनता बलए तैयार हैं.’ गौरतलि है बक बिज्ापन एजेंबसयां और खिबरया चैनल टैम से के मुि‍े ििले जा रहे हैं.' अबमत बमिा सबमबत ने भी इस ओर यह कहते हुए इशारा बमलने िाले टीआरपी आंकड़ों के बलए सब्सबिप्शन शुकक के तौर पर चार लाख बकया है बक रेबटंग एजेंबसयों के थिाबमत्ि में िसारकों, बिज्ापनिाताओं और रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक खचर् करती हैं. जो बजतना अबधक पैसा िेता बिज्ापन एजेंबसयों की बहथसेिारी नहीं होनी चाबहए ताबक बहतों का टकराि नहीं है उसे उतने ही बिथतृत आंकड़े बमलते हैं. 29,700 करोड़ 63,000 करोड़ 10,300 करोड़ रुपये का है भारत में टेलीववजन क्ेत्र का रुपये का हो जाएगा भारतीय टेलीववजन उयोग रुपये सालाना आमदनी टेलीववजन उयोग को कारोबार 2015 तक ववज्ापन राजस्व के तौर पर 46 आवरण कथा तहलका 15 अक्टूबर 2011